प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आश्रमवासिक पर्व
आश्रमवास पर्व
अध्याय 7
सार
धृतराष्ट्र-गांधारियरन्नु नोडिदवरल्लि शोक (1-10). नाल्कु दिनगळिंद आहारसेविसदे इद्द धृतराष्ट्रनिगॆ युधिष्ठिरनु आहार सेविसुवंतॆ हेळिदुदु; अल्लिगॆ व्यासन आगमन (11-19).
15007001 धृतराष्ट्र उवाच।
15007001a स्पृश मां पाणिना भूयः परिष्वज च पांडव।
15007001c जीवामीव हि संस्पर्शात्तव राजीवलोचन।।
धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “पांडव! निन्न कैगळिंद पुनः नन्नन्नु मुट्टि सवरु! आलंगिसु! राजीवलोचन! निन्न संस्पर्शदिंद नानु पुनः जीवंतनागिद्देनॆ!
15007002a मूर्धानं च तवाघ्रातुमिच्चामि मनुजाधिप।
15007002c पाणिभ्यां च परिस्प्रष्टुं प्राणा हि न जहुर्मम।।
मनुजाधिप! निन्न नॆत्तियन्नु आघ्राणिसलु बयसुत्तेनॆ. कैगळिंद निन्नन्नु मुट्टलु बयसुत्तेनॆ. अदरिंद नन्न प्राणवन्ने उळिसिकॊळ्ळुत्तेनॆ!
15007003a अष्टमो ह्यद्य कालोऽयमाहारस्य कृतस्य मे।
15007003c येनाहं कुरुशार्दूल न शक्नोमि विचेष्टितुम्।।
कुरुशार्दूल! नानु आहारवन्नु सेविसि इंदिगॆ नाल्कु दिनगळादवु. इदरिंदागि अलुगाडलू ननगॆ साध्यवागुत्तिल्ल!
15007004a व्यायामश्चायमत्यर्थं कृतस्त्वामभियाचता।
15007004c ततो ग्लानमनास्तात नष्टसंज्ञ इवाभवम्।।
निन्न अप्पणॆयन्नु केळलोसुग इष्टॆल्ल मातनाडि आयासगॊंडिद्देनॆ. मगू! मनस्सिन दुःखदिंद ऎच्चरतप्पिदवनंतादॆनु!
15007005a तवामृतसमस्पर्शं हस्तस्पर्शमिमं विभो।
15007005c लब्ध्वा संजीवितोऽस्मीति मन्ये कुरुकुलोद्वह।।
विभो! कुरुकुलोद्वह! अमृतस्पर्शदंतिरुव निन्न ई स्पर्शदिंद नानु नूतन चेतनवन्नु पडॆदुकॊंडॆनॆंदु भाविसुत्तेनॆ!””
15007006 वैशंपायन उवाच।
15007006a एवमुक्तस्तु कौंतेयः पित्रा ज्येष्ठेन भारत।
15007006c पस्पर्श सर्वगात्रेषु सौहार्दात्तं शनैस्तदा।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “भारत! तन्न दॊड्डप्पनु हीगॆ हेळलु कौंतेयनु सौहार्दतॆयिंद मॆल्लने अवन सर्वांगगळन्नू मुट्टि सवरिदनु.
15007007a उपलभ्य ततः प्राणान्धृतराष्ट्रो महीपतिः।
15007007c बाहुभ्यां संपरिष्वज्य मूर्ध्न्याजिघ्रत पांडवम्।।
आग महीपति धृतराष्ट्रनु पुनः प्राणगळन्ने पडॆदुकॊंडु, तन्न बाहुगळॆरडरिंद पांडवनन्नु बिगिदप्पि नॆत्तियन्नु आघ्राणिसिदनु.
15007008a विदुरादयश्च ते सर्वे रुरुदुर्दुःखिता भृशम्।
15007008c अतिदुःखाच्च राजानं नोचुः किं चन पांडवाः।।
विदुरादिगळॆल्लरू अत्यंत दुःखितरागि रोदिसिदरु. अतिदुःखदिंद पांडवरू कूड राजनिगॆ एनन्नू हेळलिल्ल.
15007009a गांधारी त्वेव धर्मज्ञा मनसोद्वहती भृशम्।
15007009c दुःखान्यवारयद्राजन्मैवमित्येव चाब्रवीत्।।
राजन्! धर्मज्ञॆ गांधारियु मनस्सिनल्लि महा दुःखवन्ने अनुभविसुत्तिद्दरू दुःखितरात अन्यरिगॆ “हीगॆ अळबेडिरि!” ऎंदळु.
15007010a इतरास्तु स्त्रियः सर्वाः कुंत्या सह सुदुःखिताः।
15007010c नेत्रैरागतविक्लेदैः परिवार्य स्थिताभवन्।।
अंतःपुरद इतर स्त्रीयरॆल्लरू अत्यंत दुःखितरागि कुंतियॊडनॆ कण्णीरिडुत्ता गांधारी-धृतराष्ट्ररन्नु सुत्तुवरॆदु निंतिद्दरु.
15007011a अथाब्रवीत्पुनर्वाक्यं धृतराष्ट्रो युधिष्ठिरम्।
15007011c अनुजानीहि मां राजंस्तापस्ये भरतर्षभ।।
आग पुनः धृतराष्ट्रनु युधिष्ठिरनिगॆ हेळिदनु: “भरतर्षभ! राजन्! ननगॆ तपस्सन्नु माडलु अनुमतियन्नु कॊडु!
15007012a ग्लायते मे मनस्तात भूयो भूयः प्रजल्पतः।
15007012c न मामतः परं पुत्र परिक्लेष्टुमिहार्हसि।।
मगू! पुनः पुनः हेळिदुदन्ने हेळि नन्न मनस्सु दुर्बलवागुत्तिदॆ. पुत्र! आदुदरिंद नन्नन्नु इन्नू हॆच्चु दुःखक्कीडुमाडुवुदु सरियल्ल!”
15007013a तस्मिंस्तु कौरवेंद्रे तं तथा ब्रुवति पांडवम्।
15007013c सर्वेषामवरोधानामार्तनादो महानभूत्।।
कौरवेंद्रनु पांडवनिगॆ हागॆ हेळुत्तिरुवाग अल्लिद्द योधरल्लॆल्ला महा आर्तनादवुंटायितु.
15007014a दृष्ट्वा कृशं विवर्णं च राजानमतथोचितम्।
15007014c उपवासपरिश्रांतं त्वगस्थिपरिवारितम्।।
15007015a धर्मपुत्रः स पितरं परिष्वज्य महाभुजः।
15007015c शोकजं बाष्पमुत्सृज्य पुनर्वचनमब्रवीत्।।
यथोचितवल्लदे उपवासदिंद बळलि चर्म-अस्थिमात्र उळिदुकॊंडु कृशनू विवर्णनू आगिरुव राज धृतराष्ट्रनन्नु नोडि महाभुज धर्मपुत्रनु तंदॆयन्नु आलंगिसि, शोकदिंद कण्णीरन्नु सुरिसुत्ता पुनः ई मातन्नाडिदनु:
15007016a न कामये नरश्रेष्ठ जीवितं पृथिवीं तथा।
15007016c यथा तव प्रियं राजंश्चिकीर्षामि परंतप।।
“नरश्रेष्ठ! परंतप! राजन्! निनगॆ प्रियवन्नुंटुमाडलु ऎष्टु बयसुत्तेनॆयो अष्टु ई जीवितवन्नागली पृथ्वियन्नागली बयसुवुदिल्ल!
15007017a यदि त्वहमनुग्राह्यो भवतो दयितोऽपि वा।
15007017c क्रियतां तावदाहारस्ततो वेत्स्यामहे वयम्।।
नानु निन्न अनुग्रहक्कॆ योग्यनागिद्दरॆ मत्तु निन्न प्रीतिगॆ पात्रनागिद्दरॆ नीनु अहारसेवनॆयन्नु माडबेकॆंदु नानु निनगॆ ऒत्तायिसुत्तेनॆ.”
15007018a ततोऽब्रवीन्महातेजा धर्मपुत्रं स पार्थिवः।
15007018c अनुज्ञातस्त्वया पुत्र भुंजीयामिति कामये।।
हीगॆ हेळलु पार्थिवनु महातेजस्वि धर्मपुत्रनिगॆ “पुत्र! नीनु बयसिदरॆ निन्न अनुज्ञॆयंतॆ ऊटमाडुत्तेनॆ!” ऎंदु हेळिदनु.
15007019a इति ब्रुवति राजेंद्रे धृतराष्ट्रे युधिष्ठिरम्।
15007019c ऋषिः सत्यवतीपुत्रो व्यासोऽभ्येत्य वचोऽब्रवीत्।।
राजेंद्र धृतराष्ट्रनु युधिष्ठिरनिगॆ हीगॆ हेळुत्तिरलु सत्यवती पुत्र ऋषि व्यासनु अल्लिगॆ आगमिसि ई मातन्नाडिदनु.
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पर्वणि आश्रमवासपर्वणि धृतराष्ट्रनिर्वेदे सप्तमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि आश्रमवासिकपर्वदल्लि आश्रमवासपर्वदल्लि धृतराष्ट्रनिर्वेद ऎन्नुव एळने अध्यायवु.