प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
अश्वमेधिक पर्व
अश्वमेधिक पर्व
अध्याय 85
सार
शकुनिय मगनु अर्जुननॊंदिगॆ युद्धमाडिदुदु (1-18). सेनॆयु पराजयगॊळ्ळलु शकुनिय पत्नियु शरणागतळागि बंदुदु (19-23).
14085001 वैशंपायन उवाच
14085001a शकुनेस्तु सुतो वीरो गांधाराणां महारथः।
14085001c प्रत्युद्ययौ गुडाकेशं सैन्येन महता वृतः।
14085001e हस्त्यश्वरथपूर्णेन पताकाध्वजमालिना।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “शकुनिय मग, गांधारर वीर महारथनु पताक-ध्वज-मालॆगळिंद अलंकृतगॊंड आनॆ-कुदुरॆ-रथगळिंद परिपूर्णवाद महा सेनॆयॊंदिगॆ गुडाकेश अर्जुननॊडनॆ युद्धक्कॆ हॊरटनु.
14085002a अमृष्यमाणास्ते योधा नृपतेः शकुनेर्वधम्।
14085002c अभ्ययुः सहिताः पार्थं प्रगृहीतशरासनाः।।
नृपति शकुनिय वधॆयन्नु सहिसिकॊळ्ळलारदे आ योधरु धनुस्सुगळन्नु हिडिदुकॊंडु ऒंदागि पार्थनन्नु आक्रमणिसिदरु.
14085003a तानुवाच स धर्मात्मा बीभत्सुरपराजितः।
14085003c युधिष्ठिरस्य वचनं न च ते जगृहुर्हितम्।।
धर्मात्म अपराजित बीभत्सुवु अवरिगॆ युधिष्ठिरन संदेशवन्नु तिळिसिदनु. आदरॆ अदन्नु अवरु स्वीकरिसलिल्ल.
14085004a वार्यमाणास्तु पार्थेन सांत्वपूर्वममर्षिताः।
14085004c परिवार्य हयं जग्मुस्ततश्चुक्रोध पांडवः।।
पार्थनु सांत्वपूर्वकवागि अवरन्नु तडॆदरू कुपितराद अवरु कुदुरॆयन्नु सुत्तुवरॆदरु. आग पांडवनु अत्यंत क्रोधितनादनु.
14085005a ततः शिरांसि दीप्ताग्रैस्तेषां चिच्चेद पांडवः।
14085005c क्षुरैर्गांडीवनिर्मुक्तैर्नातियत्नादिवार्जुनः।।
पांडव अर्जुननु हॆच्चिन प्रयत्नपडदे गांडीवदिंद प्रयोगिसल्पट्ट उरियुत्तिरुव क्षुरगळिंद अवर शिरगळन्नु कत्तरिसिदनु.
14085006a ते वध्यमानाः पार्थेन हयमुत्सृज्य संभ्रमात्।
14085006c न्यवर्तंत महाराज शरवर्षार्दिता भृशम्।।
पार्थनिंद वधिसल्पडुत्तिद्द अवरु शरगळिंद अत्यंत गायगॊंडु गाबरियिंद कुदुरॆयन्नु अल्लिये बिट्टु पलायनगैदरु.
14085007a वितुद्यमानस्तैश्चापि गांधारैः पांडवर्षभः।
14085007c आदिश्यादिश्य तेजस्वी शिरांस्येषां न्यपातयत्।।
गांधाररु प्रहरिसुत्तिद्दरू पांडवर्षभ तेजस्वी अर्जुननु अवरन्नु करॆ करॆदु शिरगळन्नु कॆरगुरुळिसिदनु.
14085008a वध्यमानेषु तेष्वाजौ गांधारेषु समंततः।
14085008c स राजा शकुनेः पुत्रः पांडवं प्रत्यवारयत्।।
हीगॆ ऎल्ल कडॆगळल्लि गांधाररु वधिसल्पडुत्तिरलु शुकुनिय मग राजनु पांडवनन्नु आक्रमणिसिदनु.
14085009a तं युध्यमानं राजानं क्षत्रधर्मे व्यवस्थितम्।
14085009c पार्थोऽब्रवीन्न मे वध्या राजानो राजशासनात्।
14085009e अलं युद्धेन ते वीर न तेऽस्त्यद्य पराजयः।।
क्षत्रधर्मदल्लि निरतनागिद्दु युद्धमाडुत्तिद्द राजनिगॆ पार्थनु हेळिदनु: “राजशासनदंतॆ नानु राजरन्नु वधिसुवुदिल्ल! वीर! निन्न युद्धवन्नु निल्लिसु! इंदु नीनु पराजयगॊळ्ळुवॆ!”
14085010a इत्युक्तस्तदनादृत्य वाक्यमज्ञानमोहितः।
14085010c स शक्रसमकर्माणमवाकिरत सायकैः।।
अज्ञानदिंद मोहितनागिद्द शकुनिय मगनु ई मातन्नु अनादरिसि, कर्मगळल्लि शक्रन समनाद अर्जुननन्नु सायकगळिंद मुसुकिदनु.
14085011a तस्य पार्थः शिरस्त्राणमर्धचंद्रेण पत्रिणा।
14085011c अपाहरदसंभ्रांतो जयद्रथशिरो यथा।।
गाभरिगॊळ्ळदे पार्थनु अर्धचंद्रद पत्रियिंद जयद्रथन शिरवन्नु हेगो हागॆ अवन शिरस्त्राणवन्नु अपहरिसिदनु.
14085012a तद्दृष्ट्वा विस्मयं जग्मुर्गांधाराः सर्व एव ते।
14085012c इच्चता तेन न हतो राजेत्यपि च ते विदुः।।
अदन्नु नोडि गांधाररु ऎल्लरू विस्मयगॊंडरु. उद्देशपूर्वकवागिये अवनु राजनन्नु कॊल्ललिल्लवॆंदु अर्थमाडिकॊंडरु.
14085013a गांधारराजपुत्रस्तु पलायनकृतक्षणः।
14085013c बभौ तैरेव सहितस्त्रस्तैः क्षुद्रमृगैरिव।।
गांधारराजन पुत्रनादरो अवकाशवन्नु हुडुकुत्तिद्दनु. सिंहवन्नु कंडु बॆदरिद क्षुद्र मृगगळंतॆ अनेकरु पलायनगैयुत्तिद्दरु.
14085014a तेषां तु तरसा पार्थस्तत्रैव परिधावताम्।
14085014c विजहारोत्तमांगानि भल्लैः संनतपर्वभिः।।
कूडले पार्थनु सन्नतपर्व भल्लगळिंद ओडिहोगुत्तिद्दवर शिरस्सुगळन्नु कत्तरिसतॊडगिदनु.
14085015a उच्च्रितांस्तु भुजान्के चिन्नाबुध्यंत शरैर्हृतान्।
14085015c शरैर्गांडीवनिर्मुक्तैः पृथुभिः पार्थचोदितैः।।
पार्थनु गांडीवदिंद प्रयोगिसिद शरगळिंद भुजगळु तुंडागिद्दुदू अवरिगॆ स्वल्प समय तिळियुत्तले इरलिल्ल.
14085016a संभ्रांतनरनागाश्वमथ तद्विद्रुतं बलम्।
14085016c हतविध्वस्तभूयिष्ठमावर्तत मुहुर्मुहुः।।
भ्रांतिगॊंड पदातिगळु, आनॆगळु मत्तु कुदुरॆगळ आ बलवु पलायनमाडुत्तित्तु मत्तु हतवागदे उळिदवरु पुनः पुनः संघटितरागि हिंदिरुगि आक्रमणिसुत्तिद्दरु.
14085017a न ह्यदृश्यंत वीरस्य के चिदग्रेऽग्र्यकर्मणः।
14085017c रिपवः पात्यमाना वै ये सहेयुर्महाशरान्।।
आदरॆ महाशरगळिंद शत्रुगळु कॆळगुरुळुत्तिद्दुदरिंद आ अग्र्यकर्मि वीर अर्जुनन मुंदॆ अवर्यारू हॆच्चुहॊत्तु काणिसिकॊळ्ळलिल्ल.
14085018a ततो गांधारराजस्य मंत्रिवृद्धपुरःसरा।
14085018c जननी निर्ययौ भीता पुरस्कृत्यार्घ्यमुत्तमम्।।
आग गांधारराजन जननियु भीतळागि मंत्रिगळन्नू वृद्धरन्नू मुंदिट्टुकॊंडु, उत्तम अर्घ्यवन्नु तॆगॆदुकॊंडु नगरिंद हॊरबंदळु.
14085019a सा न्यवारयदव्यग्रा तं पुत्रं युद्धदुर्मदम्।
14085019c प्रसादयामास च तं जिष्णुमक्लिष्टकारिणम्।।
अव्यग्रळागिद्द अवळु युद्धदुर्मद मगनन्नु तडॆदळु मत्तु अक्लिष्टकारि जिष्णुवन्नु प्रसन्नगॊळिसिदळु.
14085020a तां पूजयित्वा कौंतेयः प्रसादमकरोत्तदा।
14085020c शकुनेश्चापि तनयं सांत्वयन्निदमब्रवीत्।।
अवळन्नु गौरविसि कौंतेयनु प्रसन्ननादनु मत्तु शकुनिय मगनन्नु संतैसुत्ता ई मातन्नाडिदनु:
14085021a न मे प्रियं महाबाहो यत्ते बुद्धिरियं कृता।
14085021c प्रतियोद्धुममित्रघ्न भ्रातैव त्वं ममानघ।।
“महाबाहो! अमित्रघ्न! अनघ! नन्नॊडनॆ युद्धमाडबेकॆंब निन्न ई बुद्धियु ननगॆ हिडिसलिल्ल. एकॆंदरॆ नीनु नन्न सोदरने आगिरुवॆ!
14085022a गांधारीं मातरं स्मृत्वा धृतराष्ट्रकृतेन च।
14085022c तेन जीवसि राजंस्त्वं निहतास्त्वनुगास्तव।।
राजन्! मातॆ गांधारियन्नु स्मरिसिकॊंडु मत्तु धृतराष्ट्रन सलुवागि निन्न अनुयायिगळन्नु संहरिसिदरू निन्नन्नु जीवदिंद उळिसिद्देनॆ.
14085023a मैवं भूः शाम्यतां वैरं मा ते भूद्बुद्धिरीदृशी।
14085023c आगंतव्यं परां चैत्रीमश्वमेधे नृपस्य नः।।
इन्नु मुंदॆ हीगॆ नडॆदुकॊळ्ळबेड! वैरवु इल्लिगे उपशमनगॊळ्ळलि! बरुव चैत्रदल्लागुव नृपन अश्वमेधक्कॆ बरबेकु.””
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते अश्वमेधिकपर्वणि अश्वानुसरणे शकुनिपुत्रपराजये पंचाशीतितमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अश्वमेधिकपर्वदल्लि अश्वानुसरणे शकुनिपुत्रपराजय ऎन्नुव ऎंभत्तैदने अध्यायवु.