080: अर्जुनप्रत्युज्जीवनः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

अश्वमेधिक पर्व

अश्वमेधिक पर्व

अध्याय 80

सार

मूर्छॆयिंद ऎच्चॆत्त बभ्रुवाहननु शोकिसुत्ता आमरणांत उपवासवन्नु कैगॊंडिदुदु (1-22).

14080001 वैशंपायन उवाच
14080001a तथा विलप्योपरता भर्तुः पादौ प्रगृह्य सा।
14080001c उपविष्टाभवद्देवी सोच्च्वासं पुत्रमीक्षती।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “हागॆ पतिय पादगळॆरडन्नू हिडिदु विलपिसुत्त कुळितिद्द देवी चित्रांगदॆयु मगनु उसिराडुत्तिरुवुदन्नु गमनिसिदळु.

14080002a ततः संज्ञां पुनर्लब्ध्वा स राजा बभ्रुवाहनः।
14080002c मातरं तामथालोक्य रणभूमावथाब्रवीत्।।

अनंतर संज्ञॆगळन्नु पुनः पडॆद राजा बभ्रुवाहननु रणभूमियल्लि तन्न तायियन्नु नोडि ई मातुगळन्नाडिदनु:

14080003a इतो दुःखतरं किं नु यन्मे माता सुखैधिता।
14080003c भूमौ निपतितं वीरमनुशेते मृतं पतिम्।।

“अय्यो! सुखवन्ने तिळिदिरुव नन्न ई तायियु मृतनाद वीर पतियॊडनॆ भूमिय मेलॆ बिद्दु मलगिद्दाळल्ला! इदक्किंतलू हॆच्चिन दुःखवु यावुदिदॆ?

14080004a निहंतारं रणेऽरीणां सर्वशस्त्रभृतां वरम्।
14080004c मया विनिहतं संख्ये प्रेक्षते दुर्मरं बत।।

रणदल्लि अरिगळन्नु संहरिसुव, सर्वशस्त्रभृतरल्लियू श्रेष्ठनागिद्दवनु नन्निंद युद्धदल्लि हतनागि दुर्मरण हॊंदिरुवुदन्नु इवळु नोडुत्तिरुवळल्ल!

14080005a अहोऽस्या हृदयं देव्या दृढं यन्न विदीर्यते।
14080005c व्यूढोरस्कं महाबाहुं प्रेक्षंत्या निहतं पतिम्।।

ई विशालवक्षस्थळविरुव महाबाहु पतियु हतनागिरुवुदन्नु नोडियू ई देविय हृदयवु ऒडॆदुहोगुत्तिल्ल ऎंदरॆ इवळ हृदयवु दृढवागिये इरबेकु!

14080006a दुर्मरं पुरुषेणेह मन्ये ह्यध्वन्यनागते।
14080006c यत्र नाहं न मे माता विप्रयुज्येत जीवितात्।।

दुर्मरणदंथह ई संकटवु संभविसिदागलू नन्न अथवा नन्न तायिय प्राणवु हॊरटुहोगुत्तिल्लवल्ल!

14080007a अहो धिक्कुरुवीरस्य ह्युरःस्थं कांचनं भुवि।
14080007c व्यपविद्धं हतस्येह मया पुत्रेण पश्यत।।

अय्यो! ननगॆ धिक्कार! ई कुरुवीरन कांचन कवचवु भूमिय मेलॆ कॆडवल्पट्टु मगनाद नन्निंद हतनागिरुव इवनन्नु नोडिरि!

14080008a भो भो पश्यत मे वीरं पितरं ब्राह्मणा भुवि।
14080008c शयानं वीरशयने मया पुत्रेण पातितम्।।

भो! भो! ब्राह्मणरे! नन्न वीर तंदॆयु मगनाद नन्निंद कॆळगुरुळिसल्पट्टु वीरशयनदल्लि मलगिरुवुदन्नु नोडिरि!

14080009a ब्राह्मणाः कुरुमुख्यस्य प्रयुक्ता हयसारिणः।
14080009c कुर्वंतु शांतिकां त्वद्य रणे योऽयं मया हतः।।

कुरुमुख्यन कुदुरॆयन्नु हिंबालिसि बंदिरुव ब्राह्मणरु इंदु नन्निंद रणदल्लि हतनागिरुव इवनिगॆ याव शांतिकर्मगळन्नु माडुवरु?

14080010a व्यादिशंतु च किं विप्राः प्रायश्चित्तमिहाद्य मे।
14080010c सुनृशंसस्य पापस्य पितृहंतू रणाजिरे।।

विप्ररे! रणरंगदल्लि तंदॆयन्नु कॊंद ई क्रूरि पापिगॆ प्रायश्चित्तवेनन्नादरू विदिसिरि!

14080011a दुश्चरा द्वादश समा हत्वा पितरमद्य वै।
14080011c ममेह सुनृशंसस्य संवीतस्यास्य चर्मणा।।
14080012a शिरःकपाले चास्यैव भुंजतः पितुरद्य मे।
14080012c प्रायश्चित्तं हि नास्त्यन्यद्धत्वाद्य पितरं मम।।

इंदु तंदॆयन्नु कॊंद नानु हन्नॆरडु वर्षगळु कष्टदल्लि इरबेकु. क्रूरनागिरुव नानु इवनदे चर्मवन्नु हॊदॆदुकॊंडु इवनदे शिरवन्नु कपालवन्नागि हिडिदु संचरिसबेकु. तंदॆयन्ने कॊंद ननगॆ इदक्किंत बेरॆ याव प्रायश्चित्तवू इल्ल!

14080013a पश्य नागोत्तमसुते भर्तारं निहतं मया।
14080013c कृतं प्रियं मया तेऽद्य निहत्य समरेऽर्जुनम्।।

नागोत्तमन मगळे! नोडु! निन्न पतियन्नु नानु संहरिसिद्देनॆ! समरदल्लि अर्जुननन्नु संहरिसि इंदु नानु निनगॆ प्रियवादुदन्नु माडिद्देनॆ!

14080014a सोऽहमप्यद्य यास्यामि गतिं पितृनिषेविताम्।
14080014c न शक्नोम्यात्मनात्मानमहं धारयितुं शुभे।।

शुभे! आदरॆ नानु नन्न जीववन्ने धरिसिरलु शक्यनागिल्ल! इंदु नन्न तंदॆयु याव मार्गदल्लि होगिरुवनो अदे मार्गदल्लि होगुत्तेनॆ!

14080015a सा त्वं मयि मृते मातस्तथा गांडीवधन्वनि।
14080015c भव प्रीतिमती देवि सत्येनात्मानमालभे।।

माता! गांडीवधन्वियॊडनॆ नानू मृतनाद नंतर नीनु संतोषदिंदिरु! देवि! इवनिल्लदे नानु बदुकिरलारॆ ऎन्नुवुदु सत्य!”

14080016a इत्युक्त्वा स तदा राजा दुःखशोकसमाहतः।
14080016c उपस्पृश्य महाराज दुःखाद्वचनमब्रवीत्।।

महाराज! हीगॆ हेळि दुःखशोकसमाहतनाद राज बभ्रुवाहननु आचमन माडि दुःखदिंद ई मातन्नाडिदनु:

14080017a शृण्वंतु सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च।
14080017c त्वं च मातर्यथा सत्यं ब्रवीमि भुजगोत्तमे।।

“स्थावर-चर सर्वभूतगळू केळिरि! भुजगोत्तमे! माता! नीनू कूड नानु हेळलिरुव ई सत्यवन्नु केळु!

14080018a यदि नोत्तिष्ठति जयः पिता मे भरतर्षभः।
14080018c अस्मिन्नेव रणोद्देशे शोषयिष्ये कलेवरम्।।

ऒंदु वेळॆ नन्न तंदॆ ई भरतर्षभ जयनु मेलेळदिद्दरॆ इदे रणप्रदेशदल्लि नानु नन्न शरीरवन्नु शोषिसिबिडुत्तेनॆ!

14080019a न हि मे पितरं हत्वा निष्कृतिर्विद्यते क्व चित्।
14080019c नरकं प्रतिपत्स्यामि ध्रुवं गुरुवधार्दितः।।

तंदॆयन्नु कॊंदिरुव ननगॆ यावुदे रीतिय प्रायश्चित्तवू इल्ल! गुरुवन्नु वधिसिद पापमाडिद नानु निश्चयवागियू नरकवन्ने पडॆयुत्तेनॆ!

14080020a वीरं हि क्षत्रियं हत्वा गोशतेन प्रमुच्यते।
14080020c पितरं तु निहत्यैवं दुस्तरा निष्कृतिर्मया।।

नूरु गोवुगळन्नु दानमाडुवुदरिंद वीर क्षत्रियनन्नु कॊंद पापदिंद मुक्तनागबहुदु. आदरॆ तंदॆयन्ने कॊंद ई पापवन्नु माडिरुव ननगॆ बिडुगडॆये इल्लवागिदॆ!

14080021a एष ह्येको महातेजाः पांडुपुत्रो धनंजयः।
14080021c पिता च मम धर्मात्मा तस्य मे निष्कृतिः कुतः।।

पांडुविन मगनाद ई धनंजयनु अद्वितीयनु. महातेजस्वियु. धर्मात्मनाद ई तंदॆयन्नु कॊंद ननगॆ ऎल्लिय प्रायश्चित्तवु?”

14080022a इत्येवमुक्त्वा नृपते धनंजयसुतो नृपः।
14080022c उपस्पृश्याभवत्तूष्णीं प्रायोपेतो महामतिः।।

हीगॆ हेळि नृपति धनंजयन मग नृप महामति बभ्रुवाहननु आचमन माडि आमरणांत उपवासव्रतवन्नु कैगॊंडु मौनवागि कुळितनु.”

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते अश्वमेधिकपर्वणि अर्जुनप्रत्युज्जीवने आशीतितमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अश्वमेधिकपर्वदल्लि अर्जुनप्रत्युज्जीवन ऎन्नुव ऎंभत्तने अध्यायवु.