प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
अश्वमेधिक पर्व
अश्वमेधिक पर्व
अध्याय 78
सार
बभृवाहननु विनयदिंद अर्जुननन्नु पूजिसलु अर्जुननु अवनन्नु धिक्करिसिदुदु (1-7). उलूपिय सूचनॆयंतॆ बभ्रुवाहननु यज्ञकुदुरॆयन्नु कट्टिहाकि अर्जुननॊडनॆ युद्धक्कॆ हॊरटिदुदु (8-17). बभ्रुवाहन-अर्जुनर युद्ध; अर्जुननु मूर्छॆहोदुदु (18-35). तंदॆयु मूर्छितनादुदन्नु नोडि बभ्रुवाहननू मूर्छितनादुदु; चित्रांगदॆयु रणभूमियन्नु प्रवेशिसिदुदु (36-39).
14078001 वैशंपायन उवाच
14078001a श्रुत्वा तु नृपतिर्वीरं पितरं बभ्रुवाहनः।
14078001c निर्ययौ विनयेनार्यो ब्राह्मणार्घ्यपुरःसरः।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “वीर तंदॆयु बंदिद्दानॆंदु केळि नृपति बभ्रुवाहननु विनयदिंद आर्यब्राह्मणरन्नु मुंदिट्टुकॊंडु अर्घ्यगळॊंदिगॆ पट्टणदिंद हॊरटनु.
14078002a मणिपूरेश्वरं त्वेवमुपयातं धनंजयः।
14078002c नाभ्यनंदत मेधावी क्षत्रधर्ममनुस्मरन्।।
क्षत्रधर्मवन्नु स्मरिसिकॊंड मेधावी धनंजयनु हीगॆ बंदिरुव मणिपूरेश्वरनन्नु अभिनंदिसलिल्ल.
14078003a उवाच चैनं धर्मात्मा समन्युः फल्गुनस्तदा।
14078003c प्रक्रियेयं न ते युक्ता बहिस्त्वं क्षत्रधर्मतः।।
आग धर्मात्मा फल्गुननु कोपदिंदले अवनिगॆ हेळिदनु: “क्षत्रधर्मद हॊरक्किरुव ई प्रक्रियॆयु निनगॆ युक्तवादुदल्ल!
14078004a संरक्ष्यमाणं तुरगं यौधिष्ठिरमुपागतम्।
14078004c यज्ञियं विषयांते मां नायोत्सीः किं नु पुत्रक।।
पुत्रक! युधिष्ठिरन यज्ञ कुदुरॆयन्नु संरक्षिसुत्ता निन्न राज्यक्कॆ नानु बंदिरुवाग नन्नॊडनॆ नीनु एकॆ युद्धमाडुत्तिल्ल?
14078005a धिक्त्वामस्तु सुदुर्बुद्धिं क्षत्रधर्माविशारदम्।
14078005c यो मां युद्धाय संप्राप्तं साम्नैवाथो त्वमग्रहीः।।
युद्धक्कागि बंदिरुव नन्नन्नु साम्यदिंद स्वागतिसुत्तिरुव, क्षत्रधर्मवन्नु तिळियदिरुव अत्यंत दुर्बुद्धियाद निनगॆ धिक्कारवु!
14078006a न त्वया पुरुषार्थश्च कश्चिदस्तीह जीवता।
14078006c यस्त्वं स्त्रीवद्युधा प्राप्तं साम्ना मां प्रत्यगृह्णथाः।।
बदुकिरुवाग नीनु याव पुरुषार्थवन्नू साधिसिल्ल. ईग युद्धमाडलु आगमिसिरुव नन्नन्नु स्त्रीयंतॆ साम्यदिंद स्वागतिसुत्तिरुवॆ!
14078007a यद्यहं न्यस्तशस्त्रस्त्वामागच्चेयं सुदुर्मते।
14078007c प्रक्रियेयं ततो युक्ता भवेत्तव नराधम।।
दुर्मते! नराधम! ऒंदुवेळॆ नानु शस्त्रगळन्नु बदिगिट्टु इल्लिगॆ बंदिद्दॆनादरॆ निन्न ई प्रक्रियॆयु युक्तवागुत्तित्तो एनो!”
14078008a तमेवमुक्तं भर्त्रा तु विदित्वा पन्नगात्मजा।
14078008c अमृष्यमाणा भित्त्वोर्वीमुलूपी तमुपागमत्।।
तन्न पतियु हीगॆ हेळुत्तिरुवुदन्नु तिळिद पन्नगात्मजॆ उलूपियु कोपवन्नु सहिसिकॊळ्ळलारदे भूमियन्ने भेदिसिकॊंडु पाताळदिंद मेलॆ बंदळु.
14078009a सा ददर्श ततः पुत्रं विमृशंतमधोमुखम्।
14078009c संतर्ज्यमानमसकृद्भर्त्रा युद्धार्थिना विभो।।
विभो! अल्लि अवळु मुखकॆळगॆ माडिकॊंडु एनुमाडबेकॆंदु विमर्शिसुत्तिरुव मगनन्नू मत्तु युद्धार्थियाद पतियु अवनन्नु कठोरमातुगळिंद निंदिसुत्तिरुवुदन्नू नोडिदळु.
14078010a ततः सा चारुसर्वांगी तमुपेत्योरगात्मजा।
14078010c उलूपी प्राह वचनं क्षत्रधर्मविशारदा।।
आग आ क्षत्रधर्मवन्नु तिळिदिद्द सुंदरसर्वांगी उरगात्मजॆ उलूपियु बभ्रुवाहननिगॆ इंतॆंदळु:
14078011a उलूपीं मां निबोध त्वं मातरं पन्नगात्मजाम्।
14078011c कुरुष्व वचनं पुत्र धर्मस्ते भविता परः।।
“नीनु नन्नन्नु निन्न तायि पन्नगात्मजॆ उलूपियॆंदु तिळि! मगू! नन्न ई मातन्नु केळु. इदरिंद नीनु महाधर्मवन्नॆसगिदंतागुत्तदॆ!
14078012a युध्यस्वैनं कुरुश्रेष्ठं धनंजयमरिंदम।
14078012c एवमेष हि ते प्रीतो भविष्यति न संशयः।।
अरिंदम! नीनु ई कुरुश्रेष्ठ धनंजयनॊडनॆ युद्धमाडु! इदरिंदले निनगॆ संतोषवागुत्तदॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल.”
14078013a एवमुद्धर्षितो मात्रा स राजा बभ्रुवाहनः।
14078013c मनश्चक्रे महातेजा युद्धाय भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! हीगॆ तायियिंद उत्साहगॊळिसल्पट्ट महातेजस्वी राजा बभ्रुवाहननु युद्धक्कॆ मनस्सु माडिदनु.
14078014a संनह्य कांचनं वर्म शिरस्त्राणं च भानुमत्।
14078014c तूणीरशतसंबाधमारुरोह महारथम्।।
अवनु कांचन कवचवन्नु मत्तु हॊळॆयुत्तिरुव शिरस्त्राणवन्नू तॊट्टु, नूरारु भत्तळिकॆगळन्नु तुंबिसिद्द महारथवन्नेरिदनु.
14078015a सर्वोपकरणैर्युक्तं युक्तमश्वैर्मनोजवैः।
14078015c सुचक्रोपस्करं धीमान् हेमभांडपरिष्कृतम्।।
14078016a परमार्चितमुच्च्रित्य ध्वजं सिंहं हिरण्मयम्।
14078016c प्रययौ पार्थमुद्दिश्य स राजा बभ्रुवाहनः।।
सर्वोपकरणगळिंद कूडिद्द, मनोवेगदल्लि होगबल्ल कुदुरॆगळन्नु कट्टिद्द, चक्रवे मॊदलाद इतर सामाग्रिगळिंद कूडिद्द, हॊळॆयुव सुवर्णमय आभरणगळिंद अलंकृतगॊंडिद्द, परमार्चितवाद हिरण्मय सिंहध्वजवन्नु मेलेरिसिकॊंडु राजा बभ्रुवाहननु पार्थनन्नु ऎदुरिसि हॊरटनु.
14078017a ततोऽभ्येत्य हयं वीरो यज्ञियं पार्थरक्षितम्।
14078017c ग्राहयामास पुरुषैर्हयशिक्षाविशारदैः।।
आग वीर बभ्रुवाहननु पार्थन रक्षॆयल्लिद्द आ यज्ञद कुदुरॆयन्नु हयशिक्षाविशारद पुरुषरिंद कट्टिहाकिसिदनु.
14078018a गृहीतं वाजिनं दृष्ट्वा प्रीतात्मा स धनंजयः।
14078018c पुत्रं रथस्थं भूमिष्ठः संन्यवारयदाहवे।।
अवनु कुदुरॆयन्नु कट्टिहाकिदुदन्नु नोडि संतोषगॊंड धनंजयनु भूमियमेलॆ निंतुकॊंडे रथस्थनागिरुव मगनन्नु रणदल्लि तडॆदनु.
14078019a ततः स राजा तं वीरं शरव्रातैः सहस्रशः।
14078019c अर्दयामास निशितैराशीविषविषोपमैः।।
आग राजा बभ्रुवाहननु वीर अर्जुननन्नु सर्पविषगळिगॆ समानवाद सहस्रारु निशित बाणगळिंद पीडिसिदनु.
14078020a तयोः समभवद्युद्धं पितुः पुत्रस्य चातुलम्।
14078020c देवासुररणप्रख्यमुभयोः प्रीयमाणयोः।।
परस्पररिगॆ संतोषवन्नु कॊडुत्तिद्द आ तंदॆ-मगन नडुवॆ देवासुरर नडुवॆ नडॆदंथह सरिसाटियिल्लद महायुद्धवे नडॆयितु.
14078021a किरीटिनं तु विव्याध शरेण नतपर्वणा।
14078021c जत्रुदेशे नरव्याघ्रः प्रहसन्बभ्रुवाहनः।।
नरव्याघ्र बभ्रुवाहननु नतपर्व शरदिंद किरीटिय जत्रुदेशक्कॆ हॊडॆदु जोरागि नक्कनु.
14078022a सोऽभ्यगात्सह पुंखेन वल्मीकमिव पन्नगः।
14078022c विनिर्भिद्य च कौंतेयं महीतलमथाविशत्।।
सर्पवु हुत्तवन्नु हेगो हागॆ आ बाणवु पुंखदॊंदिगॆ कौंतेयनन्नु भेदिसि भूमिय ऒळहॊक्कितु.
14078023a स गाढवेदनो धीमानालंब्य धनुरुत्तमम्।
14078023c दिव्यं तेजः समाविश्य प्रमीत इव संबभौ।।
धीमान् अर्जुननु गाढवेदनॆयिंद उत्तम धनुस्सन्नु अवलंबिसि हागॆये निंतुकॊंडनु. आग अवनु दिव्य तेजस्सिनिंद कूडिद्द यज्ञपशुविनंतॆये काणुत्तिद्दनु.
14078024a स संज्ञामुपलभ्याथ प्रशस्य पुरुषर्षभः।
14078024c पुत्रं शक्रात्मजो वाक्यमिदमाह महीपते।।
महीपते! पुनः संज्ञॆगळन्नु पडॆदुकॊंड पुरुषर्षभ शक्रात्मजनु मगनन्नु प्रशंसिसुत्ता ई मातुगळन्नाडिदनु:
14078025a साधु साधु महाबाहो वत्स चित्रांगदात्मज।
14078025c सदृशं कर्म ते दृष्ट्वा प्रीतिमानस्मि पुत्रक।।
14078026a विमुंचाम्येष बाणांस्ते पुत्र युद्धे स्थिरो भव।
14078026c इत्येवमुक्त्वा नाराचैरभ्यवर्षदमित्रहा।।
“भले! भले! महाबाहो! मगू! चित्रांगदात्मज! पुत्रक! अनुरूपवाद निन्न ई कॆलसवन्नु नोडि नानु हर्षितनागिद्देनॆ. पुत्र! ई बाणवन्नु निन्न मेलॆ प्रयोगिसुत्तिद्देनॆ. युद्धदल्लि स्थिरवागिरु!” हीगॆ हेळि आ अमित्रह अर्जुननु नाराचगळन्नु अवन मेलॆ सुरिसिदनु.
14078027a तान्स गांडीवनिर्मुक्तान्वज्राशनिसमप्रभान्।
14078027c नाराचैरच्चिनद्राजा सर्वानेव त्रिधा त्रिधा।।
गांडीवदिंद हॊरट वज्रद मिंचुगळिगॆ समान प्रभॆयुळ्ळ आ नाराचगळॆल्लवन्नू राजा बभ्रुवाहननु मूरु मूरु भागगळन्नागि तुंडरिसिदनु.
14078028a तस्य पार्थः शरैर्दिव्यैर्ध्वजं हेमपरिष्कृतम्।
14078028c सुवर्णतालप्रतिमं क्षुरेणापाहरद्रथात्।।
पार्थनु दिव्य क्षुरप्र शरगळिंद सुवर्णतालवृक्षदंतिद्द बभ्रुवाहनन कांचन ध्वजवन्नु अवन रथदिंद अपहरिसिदनु.
14078029a हयांश्चास्य महाकायान्महावेगपराक्रमान्।
14078029c चकार राज्ञो निर्जीवान्प्रहसन्पांडवर्षभः।।
पांडवर्षभनु नगुत्ता राज बभ्रुवाहनन महावेगपराक्रमगळिद्द महाकायद कुदुरॆगळन्नु कूड निर्जीवगॊळिसिदनु.
14078030a स रथादवतीर्याशु राजा परमकोपनः।
14078030c पदातिः पितरं कोपाद्योधयामास पांडवम्।।
परम कुपितनाद राजा बभ्रुवाहननु रथदिंद कॆळगिळिदु पदातियागिये तंदॆ पांडव अर्जुननॊडनॆ कोपदिंद युद्धमाडिदनु.
14078031a संप्रीयमाणः पांडूनामृषभः पुत्रविक्रमात्।
14078031c नात्यर्थं पीडयामास पुत्रं वज्रधरात्मजः।।
पांडुगळ वृषभ वज्रधरात्मजनु मगन विक्रमदिंद संतुष्टनागि मगनन्नु हॆच्चु पीडिसलिल्ल.
14078032a स हन्यमानो विमुखं पितरं बभ्रुवाहनः।
14078032c शरैराशीविषाकारैः पुनरेवार्दयद्बली।।
आक्रमण माडदिरुवुदन्नु नोडि तंदॆयु विमुखनादनॆंदे तिळिदु बलशाली बभ्रुवाहननु सर्पद विषदंतिद्द शरगळिंद पुनः अवनन्नु प्रहरिसिदनु.
14078033a ततः स बाल्यात्पितरं विव्याध हृदि पत्रिणा।
14078033c निशितेन सुपुंखेन बलवद्बभ्रुवाहनः।।
आग बाल्यतनदिंद बलवंतनाद बभ्रुवाहननु पुंखगळिद्द निशित पत्रियिंद तंदॆय हृदयक्कॆ हॊडॆदनु.
14078034a स बाणस्तेजसा दीप्तो ज्वलन्निव हुताशनः।
14078034c विवेश पांडवं राजन्मर्म भित्त्वातिदुःखकृत्।।
राजन्! आ बाणवु उरियुत्तिरुव बॆंकियंतॆ तेजस्सिनिंद बॆळगुत्ता पांडवन मर्मवन्नु भेदिसि ऒळहॊक्कु अत्यंत दुःखवन्नुंटुमाडितु.
14078035a स तेनातिभृशं विद्धः पुत्रेण कुरुनंदनः।
14078035c महीं जगाम मोहार्तस्ततो राजन्धनंजयः।।
राजन्! हागॆ मगनिंत अति जोरागि हॊडॆयल्पट्ट कुरुनंदन धनंजयनु मूर्छितनागि नॆलक्कुरुळिदनु.
14078036a तस्मिन्निपतिते वीरे कौरवाणां धुरंधरे।
14078036c सोऽपि मोहं जगामाशु ततश्चित्रांगदासुतः।।
कौरवर वीर दुरंधरनु कॆळक्कुरुळलु चित्रांगदन मगनू कूड मूर्छितनादनु.
14078037a व्यायम्य संयुगे राजा दृष्ट्वा च पितरं हतम्।
14078037c पूर्वमेव च बाणौघैर्गाढविद्धोऽर्जुनेन सः।।
मॊदले अर्जुनन बाणसंघगळिंद अतियागि गायगॊंडु बळलिद्द राजा बभ्रुवाहननु युद्धदल्लि तंदॆयु हतनादुदन्नु नोडि मूर्छॆहोदनु.
14078038a भर्तारं निहतं दृष्ट्वा पुत्रं च पतितं भुवि।
14078038c चित्रांगदा परित्रस्ता प्रविवेश रणाजिरम्।।
पतियु हतनादुदन्नु मत्तु मगनु भूमिय मेलॆ बिद्दुदन्नु नोडि परितपिसिद चित्रांगदॆयु रणांगणवन्नु प्रवेशिसिदळु.
14078039a शोकसंतप्तहृदया रुदती सा ततः शुभा।
14078039c मणिपूरपतेर्माता ददर्श निहतं पतिम्।।
शोकसंतप्तहृदयियागि रोदिसुत्तिद्द आ शुभॆ मणिपूरपतिय मातॆयु तन्न पतियु हतनागिरुवुदन्नु नोडिदळु.”
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते अश्वमेधिकपर्वणि अर्जुनबभ्रुवाहनयुद्धे अष्टसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अश्वमेधिकपर्वदल्लि अर्जुनबभ्रुवाहनयुद्ध ऎन्नुव ऎप्पत्तॆंटने अध्यायवु.