071: यज्ञसामग्रीसंपादनः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

अश्वमेधिक पर्व

अश्वमेधिक पर्व

अध्याय 71

सार

यज्ञसामग्रिगळन्नु ऒंदुगूडिसिदुदु (1-11). व्यासनॊंदिगॆ समालोचनॆगैदु युधिष्ठिरनु अर्जुननन्नु अश्वानुसरणॆगॆ कळुहिसिदुदु (12-26).

14071001 वैशंपायन उवाच
14071001a एवमुक्तस्तु कृष्णेन धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
14071001c व्यासमामंत्र्य मेधावी ततो वचनमब्रवीत्।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “कृष्णनु हीगॆ हेळलु धर्मपुत्र युधिष्ठिरनु मेधावी व्यासनन्नु करॆयिसि ई मातुगळन्नाडिदनु:

14071002a यथा कालं भवान्वेत्ति हयमेधस्य तत्त्वतः।
14071002c दीक्षयस्व तदा मा त्वं त्वय्यायत्तो हि मे क्रतुः।।

“हयमेधक्कॆ तत्त्वतः याव कालवु सरियॆंदु निमगॆ तिळिदिदॆयो आग ननगॆ यज्ञदीक्षॆयन्नु नीडिरि. ई क्रतुवु निम्मन्ने अवलंबिसिदॆ!”

14071003 व्यास उवाच
14071003a अहं पैलोऽथ कौंतेय याज्ञवल्क्यस्तथैव च।
14071003c विधानं यद्यथाकालं तत्कर्तारो न संशयः।।

व्यासनु हेळिदनु: “कौंतेय! कालवु सन्निहितवादॊडनॆये नानु पैल मत्तु याज्ञवल्क्यने मॊदलादवरिंद यज्ञविधानवन्नु नडॆसिकॊडुत्तेनॆ. अदरल्लि संशयविल्लदिरलि!

14071004a चैत्र्यां हि पौर्णमास्यां च तव दीक्षा भविष्यति।
14071004c संभाराः संभ्रियंतां ते यज्ञार्थं पुरुषर्षभ।।

पुरुषर्षभ! बरुव चैत्र शुद्ध पूर्णिमॆयंदु निन्न दीक्षॆयु नडॆयुत्तदॆ. यज्ञार्थक्कागि सामग्रिगळन्नु संग्रहिसु.

14071005a अश्वविद्याविदश्चैव सूता विप्राश्च तद्विदः।
14071005c मेध्यमश्वं परीक्षंतां तव यज्ञार्थसिद्धये।।

निन्न यज्ञसिद्धिगागि अश्वविद्यॆयन्नु तिळिद सूतरु मत्तु विप्ररु पवित्र कुदुरॆयन्नु गुरुतिसलि.

14071006a तमुत्सृज्य यथाशास्त्रं पृथिवीं सागरांबराम्।
14071006c स पर्येतु यशो नाम्ना तव पार्थिव वर्धयन्।।

पार्थिव! यथाशास्त्रवागि अदन्नु बिट्ट नंतर अदु सागरवन्ने वस्त्रवागुळ्ळ पृथ्वियल्लि निन्न यशस्सु-हॆसरन्नु वर्धिसुत्ता सुत्ताडलि!””

14071007 वैशंपायन उवाच 14071007a इत्युक्तः स तथेत्युक्त्वा पांडवः पृथिवीपतिः।
14071007c चकार सर्वं राजेंद्र यथोक्तं ब्रह्मवादिना।
14071007E संभाराश्चैव राजेंद्र सर्वे संकल्पिताभवन्।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “राजेंद्र! हीगॆ हेळलु पृथिवीपति पांडवनु ब्रह्मवादियु हेळिदंतॆ ऎल्लवन्नू माडिदनु. राजेंद्र! सकल सामग्रिगळन्नू संग्रहिसिदनु.

14071008a स संभारान्समाहृत्य नृपो धर्मात्मजस्तदा।
14071008c न्यवेदयदमेयात्मा कृष्णद्वैपायनाय वै।।

सामग्रिगळन्नु ऒट्टुगूडिसिकॊंडु नृप धर्मात्मजनु अमेयात्मा कृष्णद्वैपायननिगॆ निवेदिसिदनु.

14071009a ततोऽब्रवीन्महातेजा व्यासो धर्मात्मजं नृपम्।
14071009c यथाकालं यथायोगं सज्जाः स्म तव दीक्षणे।।

आग महातेजस्वी व्यासनु नृप धर्मात्मजनिगॆ हेळिदनु: “यथाकालदल्लि यथायोगदल्लि निनगॆ दीक्षॆयन्नु नीडलु सिद्धरिद्देवॆ!

14071010a स्फ्यश्च कूर्चश्च सौवर्णो यच्चान्यदपि कौरव।
14071010c तत्र योग्यं भवेत्किं चित्तद्रौक्मं क्रियतामिति।।

कौरव! नीनु सुवर्णमय स्फ्यशवन्नू कूर्चवन्नू माडिसु. बेरॆ यावुदर अवश्यकतॆयिदॆयो अवुगळॆल्लवन्नु सुवर्णदल्लि माडिसु!

14071011a अश्वश्चोत्सृज्यतामद्य पृथ्व्यामथ यथाक्रमम्।
14071011c सुगुप्तश्च चरत्वेष यथाशास्त्रं युधिष्ठिर।।

युधिष्ठिर! इंदु यथाक्रमवागि अश्ववन्नु भूमिय मेलॆ संचरिसलु बिट्टुबिडु. चॆन्नागि रक्षिसल्पट्टु अदु यथाशास्त्रवागि संचरिसलि!”

14071012 युधिष्ठिर उवाच
14071012a अयमश्वो मया ब्रह्मन्नुत्सृष्टः पृथिवीमिमाम्।
14071012c चरिष्यति यथाकामं तत्र वै संविधीयताम्।।

युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “ब्रह्मन्! ई अश्ववन्नु नानु बिट्टिद्देनॆ. इदु मनबंदंतॆ इडी भूमियन्नु सुत्ताडुत्तदॆ. इदर कुरितु नीवु ननगॆ सलहॆयन्नु नीडबेकु.

14071013a पृथिवीं पर्यटंतं हि तुरगं कामचारिणम्।
14071013c कः पालयेदिति मुने तद्भवान्वक्तुमर्हति।।

मुने! भूमियन्नु सुत्ताडुत्ता बेकादल्लि होगुव ई तुरगवन्नु यारु रक्षिसबेकु ऎन्नुवुदन्नु नीवु हेळबेकु!””

14071014 वैशंपायन उवाच
14071014a इत्युक्तः स तु राजेंद्र कृष्णद्वैपायनोऽब्रवीत्।
14071014c भीमसेनादवरजः श्रेष्ठः सर्वधनुष्मताम्।।
14071015a जिष्णुः सहिष्णुर्धृष्णुश्च स एनं पालयिष्यति।

वैशंपायननु हेळिदनु: “राजेंद्र! इदक्कॆ कृष्णद्वैपायननु हेळिदनु: “भीमसेनन तम्म, सर्वधनुष्मतरल्लि श्रेष्ठ, जिष्णु सहनशील धैर्यवंत अर्जुननु इदन्नु रक्षिसुत्तानॆ.

14071015c शक्तः स हि महीं जेतुं निवातकवचांतकः।।
14071016a तस्मिन् ह्यस्त्राणि दिव्यानि दिव्यं संहननं तथा।
14071016c दिव्यं धनुश्चेषुधी च स एनमनुयास्यति।।

निवातकवचरन्नु संहरिसिद इवनु भूमियन्ने गॆल्ललु शक्तनागिद्दानॆ. अवनल्लि दिव्यास्त्रगळिवॆ. दिव्य कवचविदॆ. मत्तु दिव्यवाद धनुस्सू-भत्तळिकॆगळू इवॆ. अवने ई कुदुरॆयन्नु अनुसरिसि होगुत्तानॆ.

14071017a स हि धर्मार्थकुशलः सर्वविद्याविशारदः।
14071017c यथाशास्त्रं नृपश्रेष्ठ चारयिष्यति ते हयम्।।

नृपश्रेष्ठ! धर्मार्थकुशलनू सर्वविद्याविशारदनू आद अवने यथाशास्त्रवागि ई कुदुरॆयन्नु तिरुगाडिसुत्तानॆ.

14071018a राजपुत्रो महाबाहुः श्यामो राजीवलोचनः।
14071018c अभिमन्योः पिता वीरः स एनमनुयास्यति।।

राजपुत्र महाबाहु श्यामवर्णि राजीवलोचन अभिमन्युविन तंदॆ ई वीरने इदन्नु अनुसरिसि होगुत्तानॆ.

14071019a भीमसेनोऽपि तेजस्वी कौंतेयोऽमितविक्रमः।
14071019c समर्थो रक्षितुं राष्ट्रं नकुलश्च विशां पते।।

विशांपते! तेजस्वी कौंतेय अमितविक्रमि भीमसेन मत्तु नकुलरु राष्ट्रवन्नु रक्षिसलु समर्थरागिद्दारॆ.

14071020a सहदेवस्तु कौरव्य समाधास्यति बुद्धिमान्।
14071020c कुटुंबतंत्रं विधिवत्सर्वमेव महायशाः।।

कौरव्य! बुद्धिमान् महायशस्वि सहदेवनादरो कुटुंबरक्षणॆय सलुवागि समस्त कार्यगळन्नू कैगॊळ्ळुत्तानॆ.”

14071021a तत्तु सर्वं यथान्यायमुक्तं कुरुकुलोद्वहः।
14071021c चकार फल्गुनं चापि संदिदेश हयं प्रति।।

अवनु हेळिदंतॆ ऎल्लवन्नू यथान्यायवागि कुरुकुलोद्वह युधिष्ठिरनु माडि कुदुरॆय कुरितागि फल्गुननिगॆ हीगॆ हेळिदनु.

14071022 युधिष्ठिर उवाच
14071022a एह्यर्जुन त्वया वीर हयोऽयं परिपाल्यताम्।
14071022c त्वमर्हो रक्षितुं ह्येनं नान्यः कश्चन मानवः।।

युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “वीर अर्जुन! इल्लि बा! नीनु ई कुदुरॆयन्नु रक्षिसबेकु. बेरॆ याव मानवनू इदन्नु रक्षिसलु अर्हनल्ल.

14071023a ये चापि त्वां महाबाहो प्रत्युदीयुर्नराधिपाः।
14071023c तैर्विग्रहो यथा न स्यात्तथा कार्यं त्वयानघ।।

महाबाहो! अनघ! ऒंदु वेळॆ नराधिपरु नम्मन्नु विरोधिसिदरू अवरॊडनॆ युद्धवागद रीतियल्लि नीनु कार्यनिर्वहिसबेकु.

14071024a आख्यातव्यश्च भवता यज्ञोऽयं मम सर्वशः।
14071024c पार्थिवेभ्यो महाबाहो समये गम्यतामिति।।

ऎल्लरिगू नन्न ई यज्ञद कुरितु तिळिसबेकु मत्तु महाबाहो! यज्ञद समयक्कॆ बरुवंतॆ ऎल्ल पार्थिवरन्नू आह्वानिसबेकु.”

14071025a एवमुक्त्वा स धर्मात्मा भ्रातरं सव्यसाचिनम्।
14071025c भीमं च नकुलं चैव पुरगुप्तौ समादधत्।।

तम्म सव्यसाचिगॆ हीगॆ हेळि धर्मात्म युधिष्ठिरनु भीम-नकुलरन्नु पुरद रक्षणॆगॆ विधिसिदनु.

14071026a कुटुंबतंत्रे च तथा सहदेवं युधां पतिम्।
14071026c अनुमान्य महीपालं धृतराष्ट्रं युधिष्ठिरः।।

युधिष्ठिरनु महीपाल धृतराष्ट्रन अनुमतियन्नु पडॆदु सेनापति सहदेवनन्नु कुटुंबरक्षणॆगॆ नेमिसिदनु.”

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते अश्वमेधिकपर्वणि यज्ञसामग्रीसंपादने एकसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अश्वमेधिकपर्वदल्लि यज्ञसामग्रीसंपादन ऎन्नुव ऎप्पत्तॊंदने अध्यायवु.