140: पवनार्जुनसंवादः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

अनुशासन पर्व

दानधर्म पर्व

अध्याय 140

सार

अगस्त्यन महात्म्यॆ (1-14). वसिष्ठन महात्म्यॆ (15-26).

13140001 भीष्म उवाच।
13140001a इत्युक्तः स तदा तूष्णीमभूद्वायुस्ततोऽब्रवीत्।
13140001c शृणु राजन्नगस्त्यस्य माहात्म्यं ब्राह्मणस्य ह।।

भीष्मनु हेळिदनु: “वायुवु इदन्नु हेळलु राजनु सुम्मने इद्दनु. आग वायुवु हेळिदनु: “राजन्! ब्राह्मण अगस्त्यन महात्म्यॆयन्नु केळु.

13140002a असुरैर्निर्जिता देवा निरुत्साहाश्च ते कृताः।
13140002c यज्ञाश्चैषां हृताः सर्वे पितृभ्यश्च स्वधा तथा।।

असुररिंद सोत देवतॆगळु निरुत्साहरागिद्दरु. अवर यज्ञभागगळन्नू पितृगळ स्वधा ऎल्लवन्नू अवरु अपहरिसिद्दरु.

13140003a कर्मेज्या मानवानां च दानवैर्हैहयर्षभ।
13140003c भ्रष्टैश्वर्यास्ततो देवाश्चेरुः पृथ्वीमिति श्रुतिः।।

हैहयर्षभ! मानवर कर्मगळन्नू यज्ञगळन्नू दानवरु भ्रष्टगॊळिसिदरु. आग देवतॆगळु भूमिय मेलॆ अलॆदाडुत्तिद्दरॆंदु केळिद्देवॆ.

13140004a ततः कदा चित्ते राजन्दीप्तमादित्यवर्चसम्।
13140004c ददृशुस्तेजसा युक्तमगस्त्यं विपुलव्रतम्।।

राजन्! आग ऒम्मॆ अवरु आदित्यवर्चस्सिनिंद बॆळगुत्तिद्द तेजोयुक्तनाद विपुलव्रत अगस्त्यनन्नु कंडरु.

13140005a अभिवाद्य च तं देवा दृष्ट्वा च यशसा वृतम्।
13140005c इदमूचुर्महात्मानं वाक्यं काले जनाधिप।।

जनाधिप! देवतॆगळु यशस्सिनिंद आवृतनागिद्द आ महात्मनन्नु नोडि अभिवंदिसि कालक्कॆ तक्कुदाद ई मातन्नाडिदरु.

13140006a दानवैर्युधि भग्नाः स्म तथैश्वर्याच्च भ्रंशिताः।
13140006c तदस्मान्नो भयात्तीव्रात्त्राहि त्वं मुनिपुंगव।।

“मुनिपुंगव! युद्धदल्लि नावु दानवरिंद भग्नरादॆवु. ऐश्वर्यदिंदलू वंचितरादॆवु. अदरिंद नम्मल्लि तीव्र भयवुंटागिदॆ. नीने नम्मन्नु रक्षिसबेकु.”

13140007a इत्युक्तः स तदा देवैरगस्त्यः कुपितोऽभवत्।
13140007c प्रजज्वाल च तेजस्वी कालाग्निरिव संक्षये।।

देवतॆगळु हीगॆ हेळलु अगस्यनु कुपितनादनु. आ तेजस्वियु युगांत्यद कालाग्नियंतॆ प्रज्वलिसिदनु.

13140008a तेन दीप्तांशुजालेन निर्दग्धा दानवास्तदा।
13140008c अंतरिक्षान्महाराज न्यपतंत सहस्रशः।।

महाराज! अवनिंद हॊरहॊम्मिद बॆंकिय किडिगळ जालदिंदले सहस्रारु दानवरु दग्धरागि अंतरिक्षदिंद कॆळक्कुरुळिदरु.

13140009a दह्यमानास्तु ते दैत्यास्तस्यागस्त्यस्य तेजसा।
13140009c उभौ लोकौ परित्यज्य ययुः काष्ठां स्म दक्षिणाम्।।

अगस्त्यन तेजस्सिनिंद सुट्टुहोगुत्तिद्द आ दैत्यरु ऎरडू लोकगळन्नू परित्यजिसि दक्षिण दिक्किगॆ ओडि होदरु.

13140010a बलिस्तु यजते यज्ञमश्वमेधं महीं गतः।
13140010c येऽन्ये स्वस्था महीस्थाश्च ते न दग्धा महासुराः।।

बलियादरो आग भूमिगॆ होगि अश्वमेधयज्ञदल्लि तॊडगिद्दनु. आग अवन जॊतॆयल्लि भूमिय मेलिद्द महासुररु स्वस्थरागिद्दरु. अवरु अगस्त्यन तेजस्सिनिंद सुट्टुहोगलिल्ल.

13140011a ततो लोकाः पुनः प्राप्ताः सुरैः शांतं च तद्रजः।
13140011c अथैनमब्रुवन्देवा भूमिष्ठानसुरान् जहि।।

अनंतर पुनः तम्म लोकगळन्नु पडॆदु सुररु शांतरादरु. मत्तॆ देवतॆगळु अवनिगॆ “भूमिय मेलिद्द असुररन्नु संहरिसु!” ऎंदु केळिकॊंडरु.

13140012a इत्युक्त आह देवान्स न शक्नोमि महीगतान्।
13140012c दग्धुं तपो हि क्षीयेन्मे धक्ष्यामीति च पार्थिव।।

पार्थिव! आग अवनु देवतॆगळिगॆ “भूमिय मेलिरुववरन्नु दहिसलु नानु शक्यनागिल्ल. अवरन्नु सुट्टरॆ नन्न तपस्सु क्षीणवागुत्तदॆ. आदुरिंद अवरन्नु सुडुवुदिल्ल” ऎंदनु.

13140013a एवं दग्धा भगवता दानवाः स्वेन तेजसा।
13140013c अगस्त्येन तदा राजंस्तपसा भावितात्मना।।

राजन्! हीगॆ भावितात्म भगवान् अगस्यनु तन्नदे तेजस्सिनिंद दानवरन्नु सुट्टुहाकिदनु.

13140014a ईदृशश्चाप्यगस्त्यो हि कथितस्ते मयानघ।
13140014c ब्रवीम्यहं ब्रूहि वा त्वमगस्त्यात्क्षत्रियं वरम्।।

अनघ! नानु हेळिदंतॆ अगस्त्यनु हीगिद्दनु. अगस्त्यनिगिंतलू श्रेष्ठनाद क्षत्रियनिद्दरॆ हेळु. अथवा नानु मुंदुवरिसि हेळुत्तेनॆ.”

13140015a इत्युक्तः स तदा तूष्णीमभूद्वायुस्ततोऽब्रवीत्।
13140015c शृणु राजन्वसिष्ठस्य मुख्यं कर्म यशस्विनः।।

वायुवु हीगॆ हेळलु राजनु सुम्मनादनु. आग वायुवु हेळिदनु: “राजन्! यशस्वी वसिष्ठन मुख्य कर्मद कुरितु केळु.

13140016a आदित्याः सत्रमासंत सरो वै मानसं प्रति।
13140016c वसिष्ठं मनसा गत्वा श्रुत्वा तत्रास्य गोचरम्।।

वसिष्ठमुनिय महिमॆयन्नु तिळिदु मनसारॆ अवन शरणुहॊक्कु आदित्यरु मानससरोवरद बळि सत्रदल्लि तॊडगिद्दरु.

13140017a यजमानांस्तु तान्दृष्ट्वा व्यग्रान्दीक्षानुकर्शितान्।
13140017c हंतुमिच्चंति शैलाभाः खलिनो नाम दानवाः।।

यज्ञद यजमानरागि दीक्षॆयन्नु पडॆद देवतॆगळु व्यग्ररू, दीनरू, दुर्बलरू आगिरुवुदन्नु कंडु पर्वतगळंतह शरीरवुळ्ळ खलि ऎंब हॆसरिन दानवरु अवरन्नु संहरिसलु बयसिदरु.

13140018a अदूरात्तु ततस्तेषां ब्रह्मदत्तवरं सरः।
13140018c हता हता वै ते तत्र जीवंत्याप्लुत्य दानवाः।।

हत्तिरदल्लिये ब्रह्मनु वरवन्नित्तिद्द सरोवरवित्तु. सत्त दानवरन्नु अल्लि हाकिदाग अवरु जीवितरागि मेलेळुत्तिद्दरु.

13140019a ते प्रगृह्य महाघोरान्पर्वतान् परिघान् द्रुमान्।
13140019c विक्षोभयंतः सलिलमुत्थिताः शतयोजनम्।।

अवरु महाघोर पर्वतगळन्नू, परिघगळन्नू, वृक्षगळन्नू हिडिदु शतयोजन विस्तीर्णद आ सरोवरवन्नु क्षोभॆगॊळिसुत्ता मेलेळुत्तिद्दरु.

13140020a अभ्यद्रवंत देवांस्ते सहस्राणि दशैव ह।
13140020c ततस्तैरर्दिता देवाः शरणं वासवं ययुः।।

हत्तु साविर दानवरु बॆन्नट्टि बरलु आर्दितराद देवतॆगळु वासवन शरणुहॊक्करु.

13140021a स च तैर्व्यथितः शक्रो वसिष्ठं शरणं ययौ।
13140021c ततोऽभयं ददौ तेभ्यो वसिष्ठो भगवानृषिः।।

व्यथितनाद शक्रनु वसिष्ठन शरणुहॊक्कनु. आग भगवान् ऋषि वसिष्ठनु अवरिगॆ अभयवन्नित्तनु.

13140022a तथा तान्दुःखितान् जानन्नानृशंस्यपरो मुनिः।
13140022c अयत्नेनादहत्सर्वान्खलिनः स्वेन तेजसा।।

अवरु हागॆ दुःखितरादुदन्नु तिळिदु परम दयाळुवाद मुनियु तन्नदे तेजस्सिनिंद स्वल्पवू यत्नविल्लदे आ खलिगळन्नु संहरिसिदनु.

13140023a कैलासं प्रस्थितां चापि नदीं गंगां महातपाः।
13140023c आनयत्तत्सरो दिव्यं तया भिन्नं च तत्सरः।।

आ महातपस्वियु कैलासद कडॆ होगुत्तिद्द गंगानदियन्नु आ सरोवरक्कॆ करॆतंदनु. दिव्य गंगॆयु आ सरोवरद दंडॆगळन्ने ऒडॆदु हाकिदळु.

13140024a सरो भिन्नं तया नद्या सरयूः सा ततोऽभवत्।
13140024c हताश्च खलिनो यत्र स देशः खलिनोऽभवत्।।

गंगानदियिंद आ सरोवरवु ऒडॆदुहोगि नदियल्लि सेरलु गंगॆयु सरयू ऎंदादळु. खलिगळु नाशवाद आ प्रदेशवु खलिनदेशवॆंदायितु.

13140025a एवं सेंद्रा वसिष्ठेन रक्षितास्त्रिदिवौकसः।
13140025c ब्रह्मदत्तवराश्चैव हता दैत्या महात्मना।।

हीगॆ इंद्रनॊडनॆ देवतॆगळन्नु वसिष्ठनु रक्षिसिदनु. ब्रह्मनु वरवन्नु कॊट्टिद्दरू आ दैत्यरु महात्म वसिष्ठनिंद हतरादरु.

13140026a एतत्कर्म वसिष्ठस्य कथितं ते मयानघ।
13140026c ब्रवीम्यहं ब्रूहि वा त्वं वसिष्ठात्क्षत्रियं वरम्।।

अनघ! इगो नानु निनगॆ वसिष्ठन महत्कर्मद कुरितु हेळिद्देनॆ. वसिष्ठनिगिंतलू श्रेष्ठनाद क्षत्रियनिद्दरॆ हेळु. अथवा नानु मुंदुवरिसि हेळुत्तेनॆ.””

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि पवनार्जुनसंवादे चत्वारिंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अनुशासनपर्वदल्लि दानधर्मपर्वदल्लि पवनार्जुनसंवाद ऎन्नुव नूरानल्वत्तने अध्यायवु.