061: इंद्रबृहस्पतिसंवादः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

अनुशासन पर्व

दानधर्म पर्व

अध्याय 61

सार

सर्वदानगळल्लि भूमिदानवे श्रेष्ठवॆंदु भीष्मनु अदन्नु प्रशंसिदुदु (1-48). भूमिदानद कुरितु इंद्र-बृहस्पतियर संवाद (49-93).

13061001 युधिष्ठिर उवाच।
13061001a इदं देयमिदं देयमितीयं श्रुतिचोदना।
13061001c बहुदेयाश्च राजानः किं स्विद्देयमनुत्तमम्।।

युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “इदन्नु कॊडबेकु इदन्नु कॊडबेकु ऎंदु राजरु बहळ वस्तुगळन्नु कॊडबेकु ऎंदु श्रुतियु प्रचोदिसुत्तदॆ. आदरॆ यावुदन्नु कॊडुवुदु अत्यंत उत्तमवु?”

13061002 भीष्म उवाच।
13061002a अति दानानि सर्वाणि पृथिवीदानमुच्यते।
13061002c अचला ह्यक्षया भूमिर्दोग्ध्री कामाननुत्तमान्।।

भीष्मनु हेळिदनु: “ऎल्ल दानगळल्लि भूदानवु अति उत्तमवादुदॆंदु हेळुत्तारॆ. भूमियु अचल मत्तु अक्षय. अदु कामनॆगळन्नु पूरैसुव उत्तम साधनवु.

13061003a दोग्ध्री वासांसि रत्नानि पशून्व्रीहियवांस्तथा।
13061003c भूमिदः सर्वभूतेषु शाश्वतीरेधते समाः।।

वस्त्र, रथ, पशु, मत्तु धान्यगळन्नु पृथ्विये नीडुत्तदॆ. भूमियन्नु दानमाडुववनु सर्वजीविगळल्लि शाश्वतवर्षगळु अभ्युदयवन्नु हॊंदुत्तानॆ.

13061004a यावद्भूमेरायुरिह तावद्भूमिद एधते।
13061004c न भूमिदानादस्तीह परं किं चिद्युधिष्ठिर।।

युधिष्ठिर! ई जगत्तिनल्लि ऎल्लियवरॆगॆ भूमिय आयस्सु इदॆयो अल्लिय वरॆगॆ भूमियन्नु दानमाडिद मनुष्यनु समृद्धशालियागि सुखवन्नु भोगिसुत्तानॆ. आदुदरिंद इल्लि भूमिदानक्किंत दॊड्ड दानवु बेरॆ यावुदू इल्ल.

13061005a अप्यल्पं प्रददुः पूर्वे पृथिव्या इति नः श्रुतम्।
13061005c भूमिमेते ददुः सर्वे ये भूमिं भुंजते जनाः।।

यारु स्वल्पवे भूमियन्नादरू दानमाडुत्तारो अवरु भूमिदानद पूर्णफलवन्नु पडॆदु आ पुण्यवन्नु उपभोगिसुत्तारॆंदु केळिद्देवॆ.

13061006a स्वकर्मैवोपजीवंति नरा इह परत्र च।
13061006c भूमिर्भूतिर्महादेवी दातारं कुरुते प्रियम्।।

मनुष्यनु इल्लि मत्तु परलोकदल्लि तन्नदे कर्मानुसारवागि जीवन निर्वहणॆ माडुत्तानॆ. भूमियु ऐश्वर्यस्वरूपिणियु मत्तु महादेवियु. अवळु दाताररन्नु तन्न प्रियरन्नागि माडिकॊळ्ळुत्ताळॆ.

13061007a य एतां दक्षिणां दद्यादक्षयां पृथिवीपतिः1
13061007c पुनर्नरत्वं संप्राप्य भवेत्स पृथिवीपतिः।।

पृथिवीपते! ई अक्षय भूमियन्नु दानमाडुववनु पुनः नरत्ववन्नु पडॆदुकॊंडु पृथिवीपतियागुत्तानॆ.

13061008a यथा दानं तथा भोग इति धर्मेषु निश्चयः।
13061008c संग्रामे वा तनुं जह्याद्दद्याद्वा पृथिवीमिमाम्।।
13061009a इत्येतां क्षत्रबंधूनां वदंति परमाशिषम्।

यावुदन्नु ऎष्टु दानमाडुत्तेवो अदर अष्टे भोगवु दॊरॆयुत्तदॆ ऎन्नुवुदु धर्मनिश्चय. संग्रामदल्लि देहवन्नु त्यागमाडुवुदु मत्तु ई पृथ्वियन्नु दानमाडुवुदु इवॆरडू क्षत्रियबंधुगळिगॆ परम श्रेयस्करवादवुगळु ऎंदु हेळुत्तारॆ.

13061009c पुनाति दत्ता पृथिवी दातारमिति शुश्रुम।।
13061010a अपि पापसमाचारं ब्रह्मघ्नमपि वानृतम्।
13061010c सैव पापं पावयति सैव पापात्प्रमोचयेत्।।

दानवागि कॊट्ट भूमियु दातारनन्नु पवित्रगॊळिसुत्तदॆ ऎंदु केळिद्देवॆ. ब्रह्महत्यॆ मत्तु असत्यमातु – पापवु ऎष्टे दॊड्डदागिरलि, दानवागि कॊट्ट भूमिये दातारन पापगळन्नु तॊळॆदु हाकुत्तदॆ मत्तु अदे अवनन्नु सर्वथा पापमुक्तनन्नागि माडुत्तदॆ.

13061011a अपि पापकृतां राज्ञां प्रतिगृह्णंति साधवः।
13061011c पृथिवीं नान्यदिच्चंति पावनं जननी यथा।।

साधुगळु पापकर्मि राजनिंद बेरॆ एनन्नु बयसदिद्दरू कूड भूदानवन्नु स्वीकरिसुत्तारॆ. पृथ्वियु जननियंतॆ पावनळु.

13061012a नामास्याः प्रियदत्तेति गुह्यं देव्याः सनातनम्।
13061012c दानं वाप्यथ वा ज्ञानं नाम्नोऽस्याः परमं प्रियम्2
313061012e तस्मात्प्राप्यैव पृथिवीं दद्याद्विप्राय पार्थिवः।।

ई देविय सनातन गुह्य नामवु प्रियदत्ता ऎंदिदॆ. इदर दान मत्तु ग्रहण ऎरडू दात मत्तु प्रतिगृहीतनिगॆ प्रियवादवुगळु. आदुदरिंद पृथ्विय मेलॆ अधिकार दॊरॆत कूडले पार्थिवनु स्वल्प भूमियन्नु ब्राह्मणरिगॆ दानमाडबेकु.

13061013a नाभूमिपतिना भूमिरधिष्ठेया कथं चन।
13061013c न वा पात्रेण वा गूहेदंतर्धानेन वा चरेत्4

याव भूमिय ऒडॆयनल्लवो अदर मेलॆ यावुदे रीतिय अधिकारवन्नु तोरिसबारदु.

13061013e ये चान्ये भूमिमिच्चेयुः कुर्युरेवमसंशयम्।।
13061014a यः साधोर्भूमिमादत्ते न भूमिं विंदते तु सः।

मुंदिन जन्मदल्लि भूमियन्नु इच्छिसुव इतररू कूड ई जन्मदल्लि भूमिदानवन्नु माडबेकु ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. यारु साधुजनर भूमियन्नु अपहरण माडि तम्मदागिसिकॊळ्ळुत्तारो अवरिगॆ मुंदिन जन्मदल्लि भूमियु प्राप्तवागुवुदिल्ल.

13061014c भूमिं तु दत्त्वा साधुभ्यो विंदते भूमिमेव हि।
13061014e प्रेत्येह च स धर्मात्मा संप्राप्नोति महद्यशः।।

साधुपुरुषरिगॆ भूमियन्नु दानमाडुवुदरिंद दातारनु भूमियन्ने मुंदिन जन्मदल्लि पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ मत्तु आ धर्मात्मनु इहदल्लि मत्तु परदल्लि महा यशस्सन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.

513061015a यस्य विप्रानुशासंति साधोर्भूमिं सदैव हि।
13061015c न तस्य शत्रवो राजन्प्रशासंति वसुंधराम्।।

राजन्! ब्राह्मणनु तनगॆ साधु पुरुषनित्त भूमियन्नु ऎष्टु प्रशंसिसुत्तानो अष्टु आ भूमिय राजन शत्रुवु प्रशंसिसुवुदिल्ल.

13061016a यत्किं चित्पुरुषः पापं कुरुते वृत्तिकर्शितः।
13061016c अपि गोचर्ममात्रेण भूमिदानेन पूयते।।

जीवन निर्वहणॆगॆ आधारविल्लदवनु एनॆल्ल पापगळन्नु माडुत्तानो अवु भूमिदानदिंद गोचर्मदंतॆ तॊळॆदुहोगुत्तवॆ.

13061017a येऽपि संकीर्णकर्माणो राजानो रौद्रकर्मिणः।
13061017c तेभ्यः पवित्रमाख्येयं भूमिदानमनुत्तमम्।।

कठोर कर्मि मत्तु पापपरायण राजरिगॆ अवरु पापगळिंद मुक्तरागलु भूमिदानवे परम पवित्रवू उत्तमवू ऎंदु हेळबेकु.

13061018a अल्पांतरमिदं शश्वत्पुराणा मेनिरे जनाः।
13061018c यो यजेदश्वमेधेन दद्याद्वा साधवे महीम्।।

अश्वमेधवन्नु माडुव मत्तु भूदानवन्नु माडुव इब्बरु साधुपुरुषरल्लि हॆच्चेनू अंतरविल्लवॆंदु प्राचीन कालदिंदलू जनरु मन्निसिकॊंडु बंदिद्दारॆ.

13061019a अपि चेत्सुकृतं कृत्वा शंकेरन्नपि पंडिताः।
13061019c अशक्यमेकमेवैतद्भूमिदानमनुत्तमम्।।

उळिद सुकृतगळन्नु माडिदुदर कुरितु पंडितरु शंकिसबहुदु. आदरॆ भूदानवु अत्यंत उत्तमवादुदु ऎन्नुवुदरल्लि मात्र शंकॆये इल्ल.

13061020a सुवर्णं रजतं वस्त्रं मणिमुक्तावसूनि च।
13061020c सर्वमेतन्महाप्राज्ञ ददाति वसुधां ददत्।।

महाप्राज्ञ! यारु भूमियन्नु दानमाडुत्तानो अवनु सुवर्ण, रजत, वस्त्र, मणि-मुत्तु-रत्नगळन्नू दानमाडिदंतॆये.

13061021a तपो यज्ञः श्रुतं शीलमलोभः सत्यसंधता।
13061021c गुरुदैवतपूजा च नातिवर्तंति भूमिदम्।।

भूमियन्नु दानमाडिदवनिगॆ तपस्सु, यज्ञ, शील, अलोभ, सत्यसंधतॆ, गुरु-दैवता पूजॆ इवॆल्लवुगळ पुण्यगळू दॊरॆयुत्तवॆ.

13061022a भर्तुर्निःश्रेयसे युक्तास्त्यक्तात्मानो रणे हताः।
13061022c ब्रह्मलोकगताः सिद्धा नातिक्रामंति भूमिदम्।।

तन्न स्वामिय श्रेयस्सिगागि यारु रणदल्लि देहत्यागमाडुववरो मत्तु ब्रह्मलोकक्कॆ होगिरुव सिद्धरू कूड पुण्यदल्लि भूदानमाडिदवनन्नु अतिक्रमिसलाररु.

13061023a यथा जनित्री क्षीरेण स्वपुत्रं भरते सदा।
13061023c अनुगृह्णाति दातारं तथा सर्वरसैर्मही।।

जननियु हेगॆ तन्न हालिनिंद पुत्रनन्नु सदा पॊरॆयुत्ताळो हागॆ महियू कूड तन्नन्नु दानमाडिदवनन्नु सर्व रसगळिंद अनुग्रहिसुत्ताळॆ.

13061024a मृत्योर्वै किंकरो दंडस्तापो वह्नेः सुदारुणः।
13061024c घोराश्च वारुणाः पाशा नोपसर्पंति भूमिदम्।।

मृत्युविन किंकरराद दंड, सुदारुण अग्निय ताप मत्तु वरुणन घोर पाशगळु भूमियन्नु दानमाडिदवन बळि सुळियुवुदिल्ल.

13061025a पितॄंश्च पितृलोकस्थान्देवलोके च देवताः।
13061025c संतर्पयति शांतात्मा यो ददाति वसुंधराम्।।

वसुंधरॆयन्नु दानमाडिद शांतात्मनु पितृलोकस्थराद पितृगळन्नू, देवलोकदल्लिरुव देवतॆगळन्नू तृप्तिपडिसुत्तारॆ.

13061026a कृशाय म्रियमाणाय वृत्तिम्लानाय सीदते।
13061026c भूमिं वृत्तिकरीं दत्त्वा सत्री भवति मानवः।।

दुर्बल, जीविकॆयिल्लदे दुःख मत्तु हसिवॆय कष्टदिंद कुसिदिद्द ब्राह्मणनिगॆ वृत्तियन्नॊदगिसुव भूमियन्नु दानमाडिद मनुष्यनिगॆ यज्ञमाडिद फलवु दॊरकुत्तदॆ.

13061027a यथा धावति गौर्वत्सं क्षीरमभ्युत्सृजंत्युत।
13061027c एवमेव महाभाग भूमिर्भवति भूमिदम्।।

महाभाग! करुविगॆ मॊलॆहालन्नुणिसलु गोवु हेगॆ अदर बळि ओडि बरुत्तदॆयो अदे रीति भूमियु भूमियन्नु दानमाडिदवन बळि ओडि बरुत्ताळॆ.

13061028a हलकृष्टां महीं दत्त्वा सबीजां सफलामपि।
13061028c उदीर्णं वापि शरणं तथा भवति कामदः।।

भूमियन्नु ऊळि, बीजबित्ति, फसलिनॊंदिगॆ अथवा भूमिय मेलॆ मनॆकट्टि दानमाडिदरॆ दानमाडिदवन सर्वकामनॆगळू पूर्णवागुत्तवॆ.

13061029a ब्राह्मणं वृत्तसंपन्नमाहिताग्निं शुचिव्रतम्।
13061029c नरः प्रतिग्राह्य महीं न याति यमसादनम्।।

वृत्तसंपन्न, अग्निहोत्री मत्तु शुचिव्रत ब्राह्मणनिगॆ पृथ्वियन्नु दानमाडुववनु यमसादनक्कॆ होगुवुदिल्ल.

13061030a यथा चंद्रमसो वृद्धिरहन्यहनि जायते।
13061030c तथा भूमिकृतं दानं सस्ये सस्ये विवर्धते।।

दिनदिनवू चंद्रन कांतियु वृद्धियागुवंतॆ दानमाडिद भूमियल्लि हुट्टुव सस्य सस्यगळिंदलू दानमाडिदवन पुण्यवु वृद्धियागुत्तदॆ.

13061031a अत्र गाथा भूमिगीताः कीर्तयंति पुराविदः।
13061031c याः श्रुत्वा जामदग्न्येन दत्ता भूः काश्यपाय वै।।

प्राचीन विषयगळन्नु तिळिदिरुवरु जामदग्नि परशुरामनु याव भूमिगीतॆयन्नु केळि काश्यपनिगॆ भूमियन्नु दानमाडिदनो आ गीतॆयन्नु वर्णिसुत्तारॆ:

13061032a मामेवादत्त मां दत्त मां दत्त्वा मामवाप्स्यथ।
13061032c अस्मिऽल्लोके परे चैव ततश्चाजनने पुनः।।

“नन्नन्ने दानवन्नागि कॊडु. नन्नन्ने दानवन्नागि स्वीकरिसु. नन्नन्नु कॊट्टे नन्नन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तीयॆ. एकॆंदरॆ ई लोकदल्लि मनुष्यनु एनॆल्ल दानमाडुत्तानो अदे अवनिगॆ इह मत्तु परलोकगळल्लि प्राप्तवागुत्तदॆ.”

13061033a य इमां व्याहृतिं वेद ब्राह्मणो ब्रह्मसंश्रितः।
13061033c श्राद्धस्य हूयमानस्य ब्रह्मभूयं स गच्चति।।

श्राद्धकालदल्लि याव ब्राह्मणनु पृथ्विय ई गीतॆयन्नु पठिसुत्तानो अवनु ब्रह्मभूयनागुत्तानॆ.

13061034a कृत्यानामभिशस्तानां दुरिष्टशमनं महत्।
13061034c प्रायश्चित्तमहं कृत्वा पुनात्युभयतो दश।।

मरणभयवन्नु होगलाडिसुव महा साधनवु भूदान. भूमिदानद प्रायश्चित्तदिंद मनुष्यनु तन्न हिंदिन मत्तु मुंदिन हत्तु पीळिगॆगळन्नु पवित्रगॊळिसुत्तानॆ.

13061035a पुनाति य इदं वेद वेद चाहं तथैव च।
13061035c प्रकृतिः सर्वभूतानां भूमिर्वै शाश्वती मता6।।

वेदवन्नु तिळियुवुदरिंद हेगो हागॆ ई भूमिगीतॆयन्नु तिळिदुकॊळ्ळुवुदरिंदलू मनुष्यनु तन्न हिंदिन मत्तु मुंदिन हत्तु पीळिगॆगळन्नु पवित्रगॊळिसुत्तानॆ. भूमिये सर्वभूमिगळ उत्पत्तिस्थान मत्तु अदे शाश्वतवादुदु.

13061036a अभिषिच्यैव नृपतिं श्रावयेदिममागमम्।
13061036c यथा श्रुत्वा महीं दद्यान्नादद्यात्साधुतश्च ताम्।।

नृपतिय राज्याभिषेकद समयदल्लि ई भूमिगीतॆयन्नु अवनिगॆ केळिसबेकु. अदन्नु केळि अवनु भूमियन्नु दानमाडबहुदु मत्तु साधुजनर भूमियन्नु कसिदुकॊळ्ळदे इरबहुदु.

13061037a सोऽयं कृत्स्नो ब्राह्मणार्थो राजार्थश्चाप्यसंशयम्।
13061037c राजा हि धर्मकुशलः प्रथमं भूतिलक्षणम्।।

इवॆल्लवू ब्राह्मण मत्तु क्षत्रियरन्नु संबंधिसिवॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. राजनु धर्मकुशलनागिरुवुदु राज्यद ऐश्वर्यद प्रथम लक्षणवु.

13061038a अथ येषामधर्मज्ञो राजा भवति नास्तिकः।
13061038c न ते सुखं प्रबुध्यंते न सुखं प्रस्वपंति च।।
13061039a सदा भवंति चोद्विग्नास्तस्य दुश्चरितैर्नराः।
13061039c योगक्षेमा हि बहवो राष्ट्रं नास्याविशंति तत्।।

यार राजनु अधर्मज्ञनू नास्तिकनू आगिरुत्तानो आ प्रजॆगळु सुखवागि निद्रॆमाडुवुदू इल्ल मत्तु सुखदिंद एळुवुदू इल्ल. आ राजन दुराचारगळिंद सदा उद्विग्नरागिये इरुत्तारॆ. इंतह राष्ट्रदल्लि हॆच्चागि योग-क्षेम ऎन्नुवुदे इरुवुदिल्ल.

13061040a अथ येषां पुनः प्राज्ञो राजा भवति धार्मिकः।
13061040c सुखं ते प्रतिबुध्यंते सुसुखं प्रस्वपंति च।।

आदरॆ यार राजनु प्राज्ञनू धार्मिकनू आगिरुत्तानो आ प्रजॆगळु सुखवागि निद्रॆमाडुत्तारॆ मत्तु सुखदिंद एळुत्तारॆ कूड.

13061041a तस्य राज्ञः शुभैरार्यैः कर्मभिर्निर्वृताः प्रजाः।
13061041c योगक्षेमेण वृष्ट्या च विवर्धंते स्वकर्मभिः।।

आ राजन शुभ नडतॆगळु मत्तु कर्मगळिंद प्रजॆगळु संतुष्टरागिरुत्तारॆ. ऎल्लर योगक्षेमगळागुत्तवॆ. कालक्कॆ सरियागि मळॆबीळुत्तदॆ, प्रजॆगळु तम्म तम्म कर्मगळल्लि तॊडगिकॊंडु अभिवृद्धियन्नु हॊंदुत्तारॆ.

13061042a स कुलीनः स पुरुषः स बंधुः स च पुण्यकृत्।
13061042c स दाता स च विक्रांतो यो ददाति वसुंधराम्।।

वसुंधरॆयन्नु दानवागि कॊडुववने कुलीननु. अवने पुरुष, बंधु, पुण्यकर्मि, दात मत्तु विक्रांत.

13061043a आदित्या इव दीप्यंते तेजसा भुवि मानवाः।
13061043c ददंति वसुधां स्फीतां ये वेदविदुषि द्विजे।।

वेदविदुषि द्विजनिगॆ धन-धान्यसंपन्न भूमियन्नु दानमाडुव मानवरु ई भूमियल्लि आदित्यनंतॆ तेजस्सिनिंद बॆळगुत्तारॆ.

13061044a यथा बीजानि रोहंति प्रकीर्णानि महीतले।
13061044c तथा कामाः प्ररोहंति भूमिदानसमार्जिताः।।

भूमियल्लि बित्तिद बीजगळु हेगॆ हॆच्चु फलवन्नु कॊडुत्तवॆयो हागॆ भूमिदानवन्नु माडुवुदरिंद संपूर्ण कामनॆगळु सफलवागुत्तवॆ.

13061045a आदित्यो वरुणो विष्णुर्ब्रह्मा सोमो हुताशनः।
13061045c शूलपाणिश्च भगवान्प्रतिनंदंति भूमिदम्।।

आदित्य, वरुण, विष्णु, ब्रह्म, सोम, हुताशन मत्तु भगवान् शूलपाणियू कूड भूमिदानमाडिदवनन्नु अभिनंदिसुत्तारॆ.

13061046a भूमौ जायंति पुरुषा भूमौ निष्ठां व्रजंति च।
13061046c चतुर्विधो हि लोकोऽयं योऽयं भूमिगुणात्मकः।।

पुरुषरु भूमियल्लि हुट्टुत्तारॆ मत्तु भूमियल्लिये लीनरागुत्तारॆ. अंडज, जरायुज, स्वेदज मत्तु उद्भिज – ई नाल्कू प्रकारद प्राणिगळ शरीरगळु भूमिगुणात्मकवादवुगळे.

13061047a एषा माता पिता चैव जगतः पृथिवीपते।
13061047c नानया सदृशं भूतं किं चिदस्ति जनाधिप।।

पृथिवीपते! जनाधिप! ई भूमियु जगत्तिन माता मत्तु पिता. इवळिगॆ समान बेरॆ यावुदू इल्ल.

13061048a अत्राप्युदाहरंतीममितिहासं पुरातनम्।
13061048c बृहस्पतेश्च संवादमिंद्रस्य च युधिष्ठिर।।

युधिष्ठिर! इदक्कॆ संबंधिसिदंतॆ पुरातन इतिहासवाद बृहस्पति मत्तु इंद्रर ई संवादवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ.

13061049a इष्ट्वा क्रतुशतेनाथ महता दक्षिणावता।
13061049c मघवा वाग्विदां श्रेष्ठं पप्रच्चेदं बृहस्पतिम्।।

महादक्षिणायुक्तवाद नूरु क्रतुगळन्नु पूरैसिद मघवा इंद्रनु वाग्विदरल्लि श्रेष्ठ बृहस्पतियल्लि केळिदनु:

13061050a भगवन्केन दानेन स्वर्गतः सुखमेधते।
13061050c यदक्षयं महार्घं च तद्ब्रूहि वदतां वर।।

“भगवन्! मातनाडुववरल्लि श्रेष्ठ! याव दानद प्रभावदिंद स्वर्गक्किंतलू हॆच्चिन सुखवु दॊरॆयुत्तदॆ? यावुदर फलवु अक्षय मत्तु अधिक फलपूर्णवादुदु? अदर कुरितु ननगॆ हेळु.”

13061051a इत्युक्तः स सुरेंद्रेण ततो देवपुरोहितः।
13061051c बृहस्पतिर्महातेजाः प्रत्युवाच शतक्रतुम्।।

सुरेंद्रनु हीगॆ केळलु देवपुरोहित महातेजस्वी बृहस्पतियु शतक्रतुविगॆ उत्तरिसिदनु:

13061052a सुवर्णदानं गोदानं भूमिदानं च वृत्रहन्।
[7]13061052c दददेतान्महाप्राज्ञः सर्वपापैः प्रमुच्यते।।

“वृत्रहन्! सुवर्णदान, गोदान मत्तु भूमिदानवन्नु माडुव महाप्राज्ञनु सर्वपापगळिंद मुक्तनागुत्तानॆ.

13061053a न भूमिदानाद्देवेंद्र परं किं चिदिति प्रभो।
13061053c विशिष्टमिति मन्यामि यथा प्राहुर्मनीषिणः।।

देवेंद्र! प्रभो! मनीषिणरु हेळुवंतॆ नानु भूमिदानक्किंतलू श्रेष्ठवादुदु यावुदू इल्ल ऎंदु अभिप्रायपडुत्तेनॆ.

[^8]13061054a ये शूरा निहता युद्धे स्वर्याता दानगृद्धिनः।
13061054c सर्वे ते विबुधश्रेष्ठ नातिक्रामंति भूमिदम्।।

विबुधश्रेष्ठ! रणदल्लि उत्साहितरागि युद्धदल्लि हतरागि स्वर्गक्कॆ होद शूररॆल्लरू भूमियन्नु दानमाडिदवनन्नु अतिक्रमिसलाररु.

13061055a भर्तुर्निःश्रेयसे युक्तास्त्यक्तात्मानो रणे हताः।
13061055c ब्रह्मलोकगताः शूरा नातिक्रामंति भूमिदम्।।

स्वामिय श्रेयस्सन्ने मनस्सिनल्लिट्टुकॊंडु रणभूमियल्लि हतनागि ब्रह्मलोकवन्नु सेरुव शूरनू कूड भूमियन्नु दानमाडिदवनन्नु अतिक्रमिसुवुदिल्ल.

13061056a पंच पूर्वादिपुरुषाः षट्च ये वसुधां गताः।
13061056c एकादश ददद्भूमिं परित्रातीह मानवः।।

भूमियन्नु दानमाडुववनु तन्न पूर्वजर ऐदु पीळिगॆ मत्तु मुंदॆ बरलिरुव आरु पीळिगॆगळन्नु ऒट्टु हन्नॊंदु पीळिगॆगळन्नु उद्धरिसुत्तानॆ.

13061057a रत्नोपकीर्णां वसुधां यो ददाति पुरंदर।
13061057c स मुक्तः सर्वकलुषैः स्वर्गलोके महीयते।।

पुरंदर! रत्नयुक्त वसुधॆयन्नु दानमाडुववनु सर्वकल्मशगळिंद मुक्तनागि स्वर्गलोकदल्लि मॆरॆयुत्तानॆ.

13061058a महीं स्फीतां ददद्राजा सर्वकामगुणान्विताम्।
13061058c राजाधिराजो भवति तद्धि दानमनुत्तमम्।।

धन-धान्यसंपन्न मत्तु समस्त कामगुणगळिंद युक्त भूमियन्नु दानमाडिदवनु इन्नॊंदु जन्मदल्लि राजाधिराजनागुत्तानॆ. एकॆंदरॆ इदु सर्वोत्तम दानवु.

13061059a सर्वकामसमायुक्तां काश्यपीं यः प्रयच्चति।
13061059c सर्वभूतानि मन्यंते मां ददातीति वासव।।

वासव! सर्वकामसमायुक्तळाद काश्यपी भूमियन्नु यारु कॊडुत्तारो अवनन्नु सर्वभूतगळू नन्नन्ने दानवागि कॊडुत्तिद्दानॆ ऎंदु तिळियुत्तवॆ.

13061060a सर्वकामदुघां धेनुं सर्वकामपुरोगमाम्।
13061060c ददाति यः सहस्राक्ष स स्वर्गं याति मानवः।।

सहस्राक्ष! सर्वकामनॆगळन्नू पूरैसुव मत्तु सर्वकामगुणयुक्त कामधेनुस्वरूपी भूमियन्नु दानमाडुव मानवनु स्वर्गक्कॆ होगुत्तानॆ.

13061061a मधुसर्पिःप्रवाहिन्यः पयोदधिवहास्तथा।
13061061c सरितस्तर्पयंतीह सुरेंद्र वसुधाप्रदम्।।

सुरेंद्र! इल्लि भूमिदानवन्नु माडिदवनिगॆ परलोकदल्लि जेनुहनि, तुप्प, हालु मत्तु मॊसरिन प्रवाहवुळ्ळ नदिगळु तृप्तिपडिसुत्तवॆ.

13061062a भूमिप्रदानान्नृपतिर्मुच्यते राजकिल्बिषात्।
13061062c न हि भूमिप्रदानेन दानमन्यद्विशिष्यते।।

भूमिदानदिंद नृपतियु राजकिल्बिषगळिंद मुक्तनागुत्तानॆ. भूमिदानक्किंतलू हॆच्चिन दानवु इल्ल.

13061063a ददाति यः समुद्रांतां पृथिवीं शस्त्रनिर्जिताम्।
13061063c तं जनाः कथयंतीह यावद्धरति गौरियम्।।

समुद्रांत ई भूमियन्नु शस्त्रगळिंद गॆद्दु दानमाडुववन कुरितु ऎल्लियवरॆगॆ ई भूमियु इरुवुदो अल्लियवरॆगॆ जनरु हेळिकॊळ्ळुत्तिरुत्तारॆ.

13061064a पुण्यामृद्धरसां भूमिं यो ददाति पुरंदर।
13061064c न तस्य लोकाः क्षीयंते भूमिदानगुणार्जिताः।।

पुरंदर! रसभरितवाद ई पुण्य भूमियन्नु दानमाडुवन भूमिदानदिंद गळिसिद गुणयुक्त लोकगळु क्षीणिसुवुदिल्ल.

13061065a सर्वथा पार्थिवेनेह सततं भूतिमिच्चता।
13061065c भूर्देया विधिवच्चक्र पात्रे सुखमभीप्सता।।

शक्र! सततवू ऐश्वर्य मत्तु सुखवन्नु बयसुव पार्थिवनु विधिवत्तागि सत्पात्ररिगॆ भूमिदानवन्नु माडबेकु.

13061066a अपि कृत्वा नरः पापं भूमिं दत्त्वा द्विजातये।
13061066c समुत्सृजति तत्पापं जीर्णां त्वचमिवोरगः।।

पापवन्नु माडिदवनू द्विजातियवरिगॆ भूमियन्नु दानमाडि हावु तन्न पॊरॆयन्नु कळचुवंतॆ माडिद पापगळन्नु कळचिकॊळ्ळुत्तानॆ.

13061067a सागरान्सरितः शैलान्काननानि च सर्वशः।
13061067c सर्वमेतन्नरः शक्र ददाति वसुधां ददत्।।

शक्र! वसुधॆयन्नु दानवन्नागि कॊडुव नरनु सागर, नदिगळु, पर्वतगळु मत्तु वनगळु ऎल्लवन्नू दानवागि कॊट्ट फलवन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.

13061068a तडागान्युदपानानि स्रोतांसि च सरांसि च।
13061068c स्नेहान्सर्वरसांश्चैव ददाति वसुधां ददत्।।

हागॆये वसुधॆयन्नु दानमाडुववनु कॆरॆ, बावि, जलपातगळु, सरोवरगळु, कॊब्बु, मत्तु सर्व प्रकारद रसगळन्नु दानमाडिदुदर फलवन्नू पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.

13061069a ओषधीः क्षीरसंपन्ना नगान्पुष्पफलान्वितान्।
13061069c काननोपलशैलांश्च ददाति वसुधां ददत्।।

वसुधॆयन्नु दानमाडुववनु क्षीरसंपन्न औषधिगळु, फल मत्तु पुष्पभरित वृक्षगळु, वन, हुल्लुगावलु मत्तु पर्वतगळन्नू दानमाडुत्तानॆ.

13061070a अग्निष्टोमप्रभृतिभिरिष्ट्वा च स्वाप्तदक्षिणैः।
13061070c न तत्फलमवाप्नोति भूमिदानाद्यदश्नुते।।

भूमिदानदिंद पडॆदुकॊळ्ळुवष्टु फलवन्नु भूरिदक्षिणॆगळन्नित्तु अग्निष्टोमादि यज्ञगळिंदलू पडॆयलिक्कागुवुदिल्ल.

13061071a दाता दशानुगृह्णाति दश हंति तथा क्षिपन्।
13061071c पूर्वदत्तां हरन्भूमिं नरकायोपगच्चति।।
13061072a न ददाति प्रतिश्रुत्य दत्त्वा वा हरते तु यः।
13061072c स बद्धो वारुणैः पाशैस्तप्यते मृत्युशासनात्।।

भूमियन्नु दानमाडुववनु तन्न हत्तु पीळिगॆगळन्नु उद्धरिसुत्तानॆ मत्तु कॊट्टु हिंदॆ कसिदुकॊळ्ळुववनु तन्न हत्तु पीळिगॆयवरन्नु नरकदल्लि तळ्ळुत्तानॆ. मॊदले कॊट्टिद्द भूमियन्नु अपहरिसुववनु स्वयं नरकक्कॆ होगुत्तानॆ. भूदानद प्रतिज्ञॆमाडि दानमाडद मत्तु कॊट्टु हिंतॆगॆदुकॊळ्ळुववनु मृत्युविन आज्ञॆयंतॆ वरुणन पाशगळिगॆ सिलुकि अनेक कष्टगळन्नु अनुभविसुत्तानॆ.

13061073a आहिताग्निं सदायज्ञं कृशभृत्यं प्रियातिथिम्।
13061073c ये भरंति द्विजश्रेष्ठं नोपसर्पंति ते यमम्।।

अग्निहोत्रि, सदा यज्ञगळल्लि तॊडगिरुव, अतिथिगळन्नु आदरिसुव आदरॆ जीविकावृत्तियन्नु कळॆदुकॊंडिरुव द्विजश्रेष्ठनन्नु परिपालिसुववनु यमन बळिसारुवुदिल्ल.

13061074a ब्राह्मणेष्वृणभूतं स्यात्पार्थिवस्य पुरंदर।
13061074c इतरेषां तु वर्णानां तारयेत्कृशदुर्बलान्।।

पुरंदर! राजनादवनु ब्राह्मणरिगॆ ऋणीभूतनागिरबेकु. इतर वर्णदवरल्लियू दुर्बलरादवन्नु उद्धरिसबेकु.

13061075a नाच्चिंद्यात्स्पर्शितां भूमिं परेण त्रिदशाधिप।
13061075c ब्राह्मणाय सुरश्रेष्ठ कृशभृत्याय कश्चन।।

त्रिदशाधिप! सुरश्रेष्ठ! जीवन वृतियु नष्टवागिरुव ब्राह्मणनिगॆ इतररु कॊट्टिद्द भूमियन्नु ऎंदू कसिदुकॊळ्ळबारदु.

13061076a अथाश्रु पतितं तेषां दीनानामवसीदताम्।
13061076c ब्राह्मणानां हृते क्षेत्रे हन्यात्त्रिपुरुषं कुलम्।।

तन्न भूमियन्नु कळॆदुकॊंडु दुःखितनागि दीन ब्राह्मणनु सुरिसुव कण्णीरु भूमियन्नु कसिदुकॊंडवन मूरु पीळिगॆगळन्नु नाशपडिसुत्तदॆ.

13061077a भूमिपालं च्युतं राष्ट्राद्यस्तु संस्थापयेत्पुनः।
13061077c तस्य वासः सहस्राक्ष नाकपृष्ठे महीयते।।

सहस्राक्ष! राष्ट्रदिंद च्युतनाद भूमिपालनन्नु पुनः संस्थापिसुववनु नाकपृष्ठदल्लि वासिसि मॆरॆयुत्तानॆ.

13061078a इक्षुभिः संततां भूमिं यवगोधूमसंकुलाम्।
13061078c गोश्ववाहनसंपूर्णां बाहुवीर्यसमार्जिताम्।।
13061079a निधिगर्भां ददद्भूमिं सर्वरत्नपरिच्चदाम्।
13061079c अक्षयाऽल्लभते लोकान्भूमिसत्रं हि तस्य तत्।।

कब्बुगळिंद तुंबिरुव, जोळ-गोधिगळ फसलुगळिरुव, गोवु-कुदुरॆगळ वाहनगळिंद संपूर्णवागिरुव, निधिगर्भॆ सर्वरत्नपरिच्छदॆ भूमियन्नु बाहुवीर्यदिंद गॆद्दु दानमाडिदवनिगॆ अक्षय लोकगळु दॊरॆयुत्तवॆ. इदन्ने भूमिसत्र ऎंदू करॆयुत्तारॆ.

13061080a विधूय कलुषं सर्वं विरजाः संमतः सताम्।
13061080c लोके महीयते सद्भिर्यो ददाति वसुंधराम्।।

वसुंधरॆयन्नु दानमाडिदवनु सर्व कलुषगळन्नु तॊळॆदुकॊंडु पापरहितनागि साधुपुरुषर गौरवक्कॆ पात्रनागि साधुगळ लोकगळल्लि मॆरॆयुत्तानॆ.

13061081a यथाप्सु पतितः शक्र तैलबिंदुर्विसर्पति।
13061081c तथा भूमिकृतं दानं सस्ये सस्ये विसर्पति।।

शक्र! नीरिनल्लि हाकिद ऎण्णॆय ऒंदे ऒंदु बिंदुवु हेगॆ ऎल्लकडॆ हरडिकॊळ्ळुत्तदॆयो हागॆ दानमाडिद भूमियल्लि सस्यगळु बॆळॆद हागॆ दानमाडिदवन पुण्यवु हॆच्चागुत्तदॆ.

13061082a ये रणाग्रे महीपालाः शूराः समितिशोभनाः।
13061082c वध्यंतेऽभिमुखाः शक्र ब्रह्मलोकं व्रजंति ते।।

शक्र! शत्रुगळिगॆ अभिमुखरागि रणाग्रदल्लि वधिसल्पडुव समितिशोभन शूर महीपालरु ब्रह्मलोकक्कॆ होगुत्तारॆ.

13061083a नृत्यगीतपरा नार्यो दिव्यमाल्यविभूषिताः।
13061083c उपतिष्ठंति देवेंद्र सदा भूमिप्रदं दिवि।।

देवेंद्र! भूमियल्लि दानमाडिदवन सेवॆगॆ सदा दिवियल्लि नृत्यगीतपर दिव्यमालाविभूषित नारियरु निंतिरुत्तारॆ.

13061084a मोदते च सुखं स्वर्गे देवगंधर्वपूजितः।
13061084c यो ददाति महीं सम्यग्विधिनेह द्विजातये।।

उत्तम विधियल्लि द्विजातियरिगॆ महियन्नु दानमाडिदवनु देव-गंधर्वरिंद पूजितनागि स्वर्गदल्लि सुखवागि आनंदिसुत्तानॆ.

13061085a शतमप्सरसश्चैव दिव्यमाल्यविभूषिताः।
13061085c उपतिष्ठंति देवेंद्र सदा भूमिप्रदं नरम्।।

देवेंद्र! भूमियन्नु दानमाडिद मनुष्यनन्नु सदा दिव्यमालाविभूषित नूरु अप्सरॆयरु सेवॆगैयुत्तारॆ.

13061086a शंखं भद्रासनं चत्रं वराश्वा वरवारणाः।
13061086c भूमिप्रदानात्पुष्पाणि हिरण्यनिचयास्तथा।।

भूमियन्नु दानमाडिदवनिगॆ शंख, सिंहासन, चत्र, उत्तम कुदुरॆगळु, मत्तु श्रेष्ठ आनॆगळु, पुष्पगळु मत्तु हिरण्यभंडारगळु दॊरॆयुत्तवॆ.

13061087a आज्ञा सदाप्रतिहता जयशब्दो भवत्यथ।
13061087c भूमिदानस्य पुष्पाणि फलं स्वर्गः पुरंदर।।

पुरंदर! भूमिदातनिगॆ ऎंदू मुरियद आज्ञॆ, जयघोष, पुष्पगळु मत्तु स्वर्गफलगळु दॊरॆयुत्तवॆ.

13061088a हिरण्यपुष्पाश्चौषध्यः कुशकांचनशाड्वलाः।
13061088c अमृतप्रसवां भूमिं प्राप्नोति पुरुषो ददत्।।

भूमियन्नु दानमाडिद पुरुषनु हिरण्यपुष्पगळु, औषधगळु, सुंदर कुश मत्तु हुल्लुगावलुगळु मत्तु अमृतवन्नु हुट्टिसुव भूमियन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.

13061089a नास्ति भूमिसमं दानं नास्ति मातृसमो गुरुः।
13061089c नास्ति सत्यसमो धर्मो नास्ति दानसमो निधिः।।

भूमिगॆ समनाद दानविल्ल. तायिगॆ समनाद गुरुविल्ल. सत्यक्कॆ समनाद धर्मविल्ल. दानक्कॆ समनाद निधियिल्ल.”

13061090a एतदांगिरसाच्च्रुत्वा वासवो वसुधामिमाम्।
13061090c वसुरत्नसमाकीर्णां ददावांगिरसे तदा।।

आंगिरसन ई मातन्नु केळि वासवनु वसुरत्नसमाकीर्ण ई वसुधॆयन्नु आंगिरसनिगॆ दानवन्नागित्तनु.

13061091a य इमं श्रावयेच्च्राद्धे भूमिदानस्य संस्तवम्।
13061091c न तस्य रक्षसां भागो नासुराणां भवत्युत।।

भूमिदानद ई किर्तनॆयन्नु श्राद्धदल्लि पठिसिदरॆ आ श्राद्धवु राक्षसर मत्तु असुरर पालागुवुदिल्ल.

13061092a अक्षयं च भवेद्दत्तं पितृभ्यस्तन्न संशयः।
13061092c तस्माच्च्राद्धेष्विदं विप्रो भुंजतः श्रावयेद्द्विजान्।।

पितृगळिगॆ नीडिद्दुदु अक्षयवागुत्तवॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. आदुदरिंद श्राद्धद समयदल्लि ऊटमाडुत्तिरुव ब्राह्मणरिगॆ विप्रनु इदन्नु केळिसबेकु.

13061093a इत्येतत्सर्वदानानां श्रेष्ठमुक्तं तवानघ।
13061093c मया भरतशार्दूल किं भूयः श्रोतुमिच्चसि।।

अनघ! भरतशार्दूल! हीगॆ नानु सर्वदानगळल्लि श्रेष्ठवादुदर कुरितु हेळिदॆ. इन्नू एनन्नु केळबयसुत्तीयॆ?”

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते अनुशासन पर्वणि दानधर्म पर्वणि इंद्रबृहस्पतिसंवादे एकषष्टितमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अनुशासन पर्वदल्लि दानधर्म पर्वदल्लि इंद्रबृहस्पतिसंवाद ऎन्नुव अरवत्तॊंदने अध्यायवु.


  1. राजसत्तम (भारत दर्शन). ↩︎

  2. दानं वाप्यथवाऽऽदानं नामास्याः प्रथमं प्रियम्। (भारत दर्शन). ↩︎

  3. इदक्कॆ मॊदलु ई अधिक श्लोकगळिवॆ: य एतां विदुषे दध्यात् पृथिवीं पृथिवीपतिः। पृथिव्यामेतदिष्टं स राजा राज्यमितोव्रजेत्।। पुनश्चासौ जनिं प्राप्य राजवत् स्यान्न संशयः।। (गीता प्रॆस्). ↩︎

  4. न चापात्रेण वा ग्राह्या दत्तदाने न चाचरेत्। (गीता प्रॆस्). ↩︎

  5. इदक्कॆ मॊदलु ई ऒंदु अधिक श्लोकविदॆ: एकागारकरीं दत्त्वा षष्टिसाहस्रमूर्ध्वगः। तावत्या हरणे पृथ्व्या नरकं द्विगुणोत्तरम्।। (भारत दर्शन). ↩︎

  6. भूमिर्वैश्वानरी मता। (गीता प्रॆस्). ↩︎