055: च्यवनकुशिकसंवादः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

अनुशासन पर्व

दानधर्म पर्व

अध्याय 55

सार

कुशिकन प्रश्नॆगॆ उत्तरवागि च्यवननु कुशिकन अरमनॆगॆ बंद कारणवन्नु हेळिदुदु (1-27). कुशिकनिगॆ वरगळन्नु कॊट्टिदुदु (28-35).

13055001 च्यवन उवाच।
13055001a वरश्च गृह्यतां मत्तो यश्च ते संशयो हृदि।
13055001c तं च ब्रूहि नरश्रेष्ठ सर्वं संपादयामि ते।।

च्यवननु हेळिदनु: “नन्निंद वरवन्नु पडॆदुको. नरश्रेष्ठ! निन्न हृदयदल्लिरुव संशयवन्नु हेळु. ऎल्लवन्नू होगलाडिसुत्तेनॆ.”

13055002 कुशिक उवाच।
13055002a यदि प्रीतोऽसि भगवंस्ततो मे वद भार्गव।
13055002c कारणं श्रोतुमिच्चामि मद्गृहे वासकारितम्।।

कुशिकनु हेळिदनु: “भगवन्! भार्गव! नीनु प्रीतनागिद्दरॆ ननगॆ हेळु. नन्न मनॆयल्लि नीनु वासमाडिदुदर कारणवन्नु केळ बयसुत्तेनॆ.

13055003a शयनं चैकपार्श्वेन दिवसानेकविंशतिम्।
13055003c अकिंचिदुक्त्वा गमनं बहिश्च मुनिपुंगव।।
13055004a अंतर्धानमकस्माच्च पुनरेव च दर्शनम्।
13055004c पुनश्च शयनं विप्र दिवसानेकविंशतिम्।।
13055005a तैलाभ्यक्तस्य गमनं भोजनं च गृहे मम।
13055005c समुपानीय विविधं यद्दग्धं जातवेदसा।
13055005e निर्याणं च रथेनाशु सहसा यत्कृतं त्वया।।
13055006a धनानां च विसर्गस्य वनस्यापि च दर्शनम्।
13055006c प्रासादानां बहूनां च कांचनानां महामुने।।
13055007a मणिविद्रुमपादानां पर्यंकानां च दर्शनम्।
13055007c पुनश्चादर्शनं तस्य श्रोतुमिच्चामि कारणम्।।

मुनिपुंगव! विप्र! महामुने! इप्पत्तॊंदु दिवसगळ पर्यंत ऒंदे मग्गुलिनल्लि मलगिकॊंडिदुदु, एनन्नू हेळदे हॊरक्कॆ हॊरटुहोदुदु, अकस्मात्तागि अंतर्धाननादुदु मत्तु पुनः काणिसिकॊंडिदुदु, पुनः इप्पत्तॊंदु दिवसगळु मलगिकॊंडिद्दुदु, तैलाभ्यंजनक्कॆ होदुदु मत्तु नन्न मनॆयल्लि भोजन माडिदुदु, जातवेदसनिंद वस्तुगळॆल्लवू दग्धवागिहोदुदु, नंतर ऒम्मॆले नीनु रथदल्लि हॊरटिदुदु, नीनु माडिद धनगळ वितरणॆ, वनद दर्शन, कांचनद अनेक भवनगळु, मत्तु मणिविद्रुम वृक्ष-पर्यंकगळ दर्शन हागू पुनः अवुगळु काणदंतादुदु, इवॆल्लवुगळ कारणवन्नु केळबयसुत्तेनॆ.

13055008a अतीव ह्यत्र मुह्यामि चिंतयानो दिवानिशम्।
13055008c न चैवात्राधिगच्चामि सर्वस्यास्य विनिश्चयम्।
13055008e एतदिच्चामि कार्त्स्न्येन सत्यं श्रोतुं तपोधन।।

तपोधन! हगलु-रात्रि इदर कुरितु चिंतिसुत्ता मोहितनागिद्देनॆ. आदरू इवॆल्लवुगळ कुरितु निश्चयिसलागदवनागिद्देनॆ. संपूर्ण सत्यवन्नु केळबयसुत्तेनॆ.”

13055009 च्यवन उवाच।
13055009a शृणु सर्वमशेषेण यदिदं येन हेतुना।
13055009c न हि शक्यमनाख्यातुमेवं पृष्टेन पार्थिव।।

च्यवननु हेळिदनु: “पार्थिव! इवुगळ कारणगळन्नु इद्दहागॆ संपूर्णवागि केळु. नीनु केळिदुदक्कॆ हेळदे इरलु शक्यविल्ल.

13055010a पितामहस्य वदतः पुरा देवसमागमे।
13055010c श्रुतवानस्मि यद्राजंस्तन्मे निगदतः शृणु।।

राजन्! हिंदॆ देवसमागमदल्लि पितामहनु हेळिद्दुदन्नु नानु केळिद्दॆ. अदन्ने निनगॆ हेळुत्तेनॆ. केळु.

13055011a ब्रह्मक्षत्रविरोधेन भविता कुलसंकरः।
13055011c पौत्रस्ते भविता राजंस्तेजोवीर्यसमन्वितः।।

ब्रह्मक्षत्रविरोधदिंद कुलसंकरवागलिक्किदॆ. राजन्! निन्न मॊम्मगनु तेजोवीर्यसमन्वितनागुत्तानॆ.

13055012a ततः स्वकुलरक्षार्थमहं त्वा समुपागमम्।
13055012c चिकीर्षन्कुशिकोच्चेदं संदिधक्षुः कुलं तव।।

नन्न कुलद रक्षणार्थवागि नानु निन्न बळिबंदॆनु. कुशिक! निन्न कुलवन्नु भस्ममाडलु बयसिद्दॆनु.

13055013a ततोऽहमागम्य पुरा त्वामवोचं महीपते।
13055013c नियमं कं चिदारप्स्ये शुश्रूषा क्रियतामिति।।

महीपते! आग नीनु हेळिदंतॆ हिंदॆ निन्न पुरक्कॆ आगमिसि यावुदो नियमवन्नु प्रारंभिसुत्तिद्देनॆ, शुश्रूषॆमाडु ऎंदु केळिदॆनु.

13055014a न च ते दुष्कृतं किं चिदहमासादयं गृहे।
13055014c तेन जीवसि राजर्षे न भवेथास्ततोऽन्यथा।।

राजर्षे! नानु निन्न गृहदल्लि वासमाडुत्तिरुवाग नीनु यावुदे दुष्कृतवन्नू माडलिल्ल. अदरिंदले नीनु जीविसिरुवॆ. अन्यथा नीनु जीविसुत्तिरलिल्ल.

13055015a एतां बुद्धिं समास्थाय दिवसानेकविंशतिम्।
13055015c सुप्तोऽस्मि यदि मां कश्चिद्बोधयेदिति पार्थिव।।

पार्थिव! यारादरू नन्नन्नु ऎब्बिसुत्तारॆ ऎंदु योचिसि नानु इप्पत्तॊंदु दिनगळु मलगिकॊंडे इद्दॆ.

13055016a यदा त्वया सभार्येण संसुप्तो न प्रबोधितः।
13055016c अहं तदैव ते प्रीतो मनसा राजसत्तम।।

राजसत्तम! मलगिरुव नन्नन्नु भार्यॆयॊडनॆ नीनु ऎब्बिसलिल्ल. आगले नानु निन्नमेलॆ प्रीतनादॆनु.

13055017a उत्थाय चास्मि निष्क्रांतो यदि मां त्वं महीपते।
13055017c पृच्चेः क्व यास्यसीत्येवं शपेयं त्वामिति प्रभो।।

महीपते! प्रभो! ऎल्लिगॆ होगुत्तिद्दीयॆ ऎंदु नीनु केळुत्तीयॆ मत्तु आग नानु निन्नन्नु शपिसबहुदु ऎंदु नानु ऎद्दु हॊर हॊरटॆ.

13055018a अंतर्हितश्चास्मि पुनः पुनरेव च ते गृहे।
13055018c योगमास्थाय संविष्टो दिवसानेकविंशतिम्।।

पुनः अंतर्हितनादॆ मत्तु पुनः निन्न गृहदल्लि योगवन्नाश्रयिसि इप्पत्तॊंदु दिवसगळु निद्रिसिदॆ..

13055019a क्षुधितो मामसूयेथाः श्रमाद्वेति नराधिप।
13055019c एतां बुद्धिं समास्थाय कर्शितौ वां मया क्षुधा।।

नराधिप! नीविब्बरू बेसत्तु नन्नन्नु निंदिसुविरॆंदु योचिसि निम्मन्नु हसिवु-बायारिकॆगळिंद मत्तु श्रमदिंद बळलिसिदॆनु.

13055020a न च तेऽभूत्सुसूक्ष्मोऽपि मन्युर्मनसि पार्थिव।
13055020c सभार्यस्य नरश्रेष्ठ तेन ते प्रीतिमानहम्।।

पार्थिव! भार्यॆयॊडनॆ निन्नल्लि अणुवष्टू कोपविल्ल. नरश्रेष्ठ! अदरिंद नानु निन्न मेलॆ प्रीतनादॆ.

13055021a भोजनं च समानाय्य यत्तदादीपितं मया।
13055021c क्रुध्येथा यदि मात्सर्यादिति तन्मर्षितं च ते।।

भोजनवन्नू तरिसिदॆ मत्तु ऎल्लवन्नू सुट्टुबिट्टॆ. आदरू क्रोधवागली मात्सर्यवागली निन्नन्नु मुट्टलिल्ल.

13055022a ततोऽहं रथमारुह्य त्वामवोचं नराधिप।
13055022c सभार्यो मां वहस्वेति तच्च त्वं कृतवांस्तथा।।

नराधिप! अनंतर नानु रथवन्नेरि भार्यॆयॊंदिगॆ नन्न रथवन्नु ऎळॆदुकॊंडु होगु ऎंदु हेळिदॆ. अदन्नू कूड नीनु माडिदॆ.

13055023a अविशंको नरपते प्रीतोऽहं चापि तेन ते।
13055023c धनोत्सर्गेऽपि च कृते न त्वां क्रोधः प्रधर्षयत्।।

नरपते! आगलू अविशंकनागिद्द निन्न मेलॆ नानु प्रीतनादॆ. धनवन्नु हंचुत्तिरुवागलू नीनु क्रोधवन्नु प्रदर्शिसलिल्ल.

13055024a ततः प्रीतेन ते राजन्पुनरेतत्कृतं तव।
13055024c सभार्यस्य वनं भूयस्तद्विद्धि मनुजाधिप।।

राजन्! मनुजाधिप! अनंतर भार्यॆयॊंदिगॆ निनगॆ ई वनवन्नु तोरिसि प्रियवादुदन्नु माडिदॆ.

13055025a प्रीत्यर्थं तव चैतन्मे स्वर्गसंदर्शनं कृतम्।
13055025c यत्ते वनेऽस्मिन्नृपते दृष्टं दिव्यं निदर्शनम्।।

नृपते! निन्न प्रीत्यर्थवागि ई वनदल्लि निनगॆ स्वर्गद संदर्शनवन्नु माडिसिदॆनु. दिव्य निदर्शनवन्नु तोरिसिदॆनु.

13055026a स्वर्गोद्देशस्त्वया राजन्सशरीरेण पार्थिव।
13055026c मुहूर्तमनुभूतोऽसौ सभार्येण नृपोत्तम।।

पार्थिव! नृपोत्तम! भार्यॆयॊंदिगॆ सशरीरियागिये नीनु स्वर्गप्रदेशवन्नु अनुभविसिदॆ.

13055027a निदर्शनार्थं तपसो धर्मस्य च नराधिप।
13055027c तत्र यासीत् स्पृहा राजंस्तच्चापि विदितं मम।।

राजन्! तपस्सु मत्तु धर्मद निदर्शनार्थवागि नानु इवॆल्लवन्नू सृष्टिसिदॆनु.

13055028a ब्राह्मण्यं कांक्षसे हि त्वं तपश्च पृथिवीपते।
13055028c अवमन्य नरेंद्रत्वं देवेंद्रत्वं च पार्थिव।।

पृथिवीपते! पार्थिव! नरेंद्रत्व मत्तु देवेंद्रत्ववन्नु तिरस्करिसि नीनु ब्राह्मण्यवन्नु पडॆदु तपस्सन्नाचरिसलु आकांक्षिसुत्तिद्दीयॆ.

13055029a एवमेतद्यथात्थ त्वं ब्राह्मण्यं तात दुर्लभम्।
13055029c ब्राह्मण्ये सति चर्षित्वमृषित्वे च तपस्विता।।

अय्या! नीनु उद्गरिसिदुदु निजवु. ब्राह्मण्यवु दुर्लभवु. ब्राह्मण्यक्किंतलू ऋषित्ववु दुर्लभवु. ऋषित्वक्किंतलू तपस्वित्ववु दुर्लभवादुदु.

13055030a भविष्यत्येष ते कामः कुशिकात्कौशिको द्विजः।
13055030c तृतीयं पुरुषं प्राप्य ब्राह्मणत्वं गमिष्यति।।

निन्न बयकॆयु भविष्यदल्लि पूरैसुत्तदॆ. कुशिकनिंद कौशिकनॆंब द्विजनागुत्तानॆ. निन्निंद मूरनॆय पुरुषनु ब्राह्मणत्ववन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.

13055031a वंशस्ते पार्थिवश्रेष्ठ भृगूणामेव तेजसा।
13055031c पौत्रस्ते भविता विप्र तपस्वी पावकद्युतिः।।

पार्थिवश्रेष्ठ! भृगुवंशीयर तेजस्सिनिंद निन्न मॊम्मगनु पावकद्युति तपस्वी विप्रनागुत्तानॆ.

13055032a यः स देवमनुष्याणां भयमुत्पादयिष्यति।
13055032c त्रयाणां चैव लोकानां सत्यमेतद्ब्रवीमि ते।।

अवनु देव-मनुष्यरल्लि मत्तु मूरु लोकगळल्लियू भयवन्नुंटुमाडुत्तानॆ. निनगॆ सत्यवन्ने हेळुत्तिद्देनॆ.

13055033a वरं गृहाण राजर्षे यस्ते मनसि वर्तते।
13055033c तीर्थयात्रां गमिष्यामि पुरा कालोऽतिवर्तते।।

राजर्षे! निन्न मनस्सिनल्लिरुवुदन्नु वरवागि पडॆदुको. कालवु कळॆयुव मॊदले तीर्थयात्रॆगॆ होगुत्तेनॆ.”

13055034 कुशिक उवाच।
13055034a एष एव वरो मेऽद्य यत्त्वं प्रीतो महामुने।
13055034c भवत्वेतद्यथात्थ त्वं तपः पौत्रे ममानघ।
13055034e ब्राह्मण्यं मे कुलस्यास्तु भगवन्नेष मे वरः।।

कुशिकनु हेळिदनु: “महामुने! अनघ! नीनु नन्न मेलॆ प्रीतनागिरुवुदे ननगॆ इंदु वरवागिदॆ. नीनु हेळिदंतॆये आगलि. नन्न पौत्रनु तपस्वियागलि. नन्न कुलवु ब्राह्मण्यवागलि. भगवन्! अदे नन्न वर.

13055035a पुनश्चाख्यातुमिच्चामि भगवन्विस्तरेण वै।
13055035c कथमेष्यति विप्रत्वं कुलं मे भृगुनंदन।
13055035e कश्चासौ भविता बंधुर्मम कश्चापि संमतः।।

भगवन्! भृगुनंदन! नन्न कुलक्कॆ विप्रत्ववु हेगॆ बरुत्तदॆ ऎन्नुवुदन्नु पुनः विस्तारवागि केळबयसुत्तेनॆ. सर्वसम्मतनागुव आ नन्न बंधुवु यारु?”

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते अनुशासन पर्वणि दानधर्म पर्वणि च्यवनकुशिकसंवादे पंचपंचाशत्तमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अनुशासन पर्वदल्लि दानधर्म पर्वदल्लि च्यवनकुशिकसंवाद ऎन्नुव ऐवत्तैदने अध्यायवु.