प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
अनुशासन पर्व
दानधर्म पर्व
अध्याय 49
सार
विविध प्रकारद पुत्रर वर्णनॆ (1-29).
13049001 युधिष्ठिर उवाच।
13049001a ब्रूहि पुत्रान्कुरुश्रेष्ठ वर्णानां त्वं पृथक्पृथक्।
13049001c कीदृश्यां कीदृशाश्चापि पुत्राः कस्य च के च ते।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “कुरुश्रेष्ठ! प्रत्येक प्रत्येक वर्णगळल्लि ऎंतह स्त्रीय गर्भदिंद ऎंतह पुत्रनु उत्पन्ननागुत्तानॆ मत्तु याव पुत्ररु यारल्लि हुट्टुत्तारॆ ऎन्नुवुदन्नु हेळु.
13049002a विप्रवादाः सुबहुशः श्रूयंते पुत्रकारिताः।
13049002c अत्र नो मुह्यतां राजन्संशयं चेत्तुमर्हसि।।
पुत्रर विषयदल्लि अनेक मातुगळन्नु केळुत्तेवॆ. राजन्! आदरॆ मोहद कारणदिंद निश्चयमाडलु आगुत्तिल्ल. आदुदरिंद नीनु आ संशयगळन्नु दूरमाडु.”
13049003 भीष्म उवाच।
13049003a आत्मा पुत्रस्तु विज्ञेयस्तस्यानंतरजश्च यः।
13049003c नियुक्तजश्च विज्ञेयः सुतः प्रसृतजस्तथा।।
भीष्मनु हेळिदनु: “मॊदलनॆय पुत्रनन्नु आत्मनॆंदे तिळियबेकु. अनंतरदवनन्नु नियुक्तजनॆंदू मूरनॆयवनन्नु प्रसृतजनॆंदू तिळियबेकु.
13049004a पतितस्य च भार्यायां भर्त्रा सुसमवेतया।
13049004c तथा दत्तकृतौ पुत्रावध्यूढश्च तथापरः।।
तन्न भार्यॆयल्लि पतित पुरुषनु स्वयं पुत्रनन्नु हुट्टिसिदरॆ अवनु नाल्कने श्रेणिय पुत्रनागुत्तानॆ. इदन्नु बिट्टु दत्तक मत्तु खरीदिसिद पुत्ररू इरुत्तारॆ. इवॆल्ल ऒट्टिगे आरु रीतिय पुत्ररादरु. एळनॆयवनु अध्यूड1.
13049005a षडपध्वंसजाश्चापि कानीनापसदास्तथा।
13049005c इत्येते ते समाख्यातास्तान्विजानीहि भारत।।
ऎंटनॆयवनु “कानीन” पुत्र. इवरल्लदे आरु “अपध्वंसज” (अनुलोम) पुत्ररू हागॆये आरु “अपसद” (प्रतिलोम) पुत्ररू आगुत्तारॆ. भारत! ई प्रकार पुत्रर भेदगळन्नु हेळिद्दारॆ. ई ऎल्ल पुत्रर कुरितू निनगॆ तिळिदिरबेकु.”
13049006 युधिष्ठिर उवाच।
13049006a षडपध्वंसजाः के स्युः के वाप्यपसदास्तथा।
13049006c एतत्सर्वं यथातत्त्वं व्याख्यातुं मे त्वमर्हसि।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “आरु प्रकारद अपध्वंसज मत्तु आरु प्रकारद अपसद पुत्ररॆंदु यारिगॆ करॆयुत्तारॆ? इवॆल्लवन्नू यथातत्त्ववागि ननगॆ हेळबेकु.”
13049007 भीष्म उवाच।
13049007a त्रिषु वर्णेषु ये पुत्रा ब्राह्मणस्य युधिष्ठिर।
13049007c वर्णयोश्च द्वयोः स्यातां यौ राजन्यस्य भारत।।
13049008a एको द्विवर्ण एवाथ तथात्रैवोपलक्षितः।
13049008c षडपध्वंसजास्ते हि तथैवापसदान् शृणु।।
भीष्मनु हेळिदनु: “युधिष्ठिर! राजन्! भारत! ब्राह्मणनिगॆ क्षत्रिय, वैश्य मत्तु शूद्र – ई मूरु वर्णद स्त्रीयरल्लि हुट्टुव पुत्ररन्नु मूरु प्रकारद अपध्वंसज पुत्ररॆंदु करॆयुत्तारॆ. क्षत्रियनिगॆ वैश्य मत्तु शूद्र जातिय स्त्रीयरल्लि हुट्टुव पुत्ररन्नु ऎरडु प्रकारद अपध्वंसज पुत्ररॆंदु करॆयुत्तारॆ. हागॆये वैश्यनिगॆ शूद्रजातिय स्त्रीयल्लि हुट्टुव पुत्रनू ऒंदु प्रकारद अपध्वंसजनॆनिसिकॊळ्ळुत्तानॆ. इदन्नु ईगागले नानु निनगॆ हेळियागिदॆ. इन्नु आरु विधद अपसद पुत्रर कुरितु केळु.
13049009a चंडालो व्रात्यवेनौ च ब्राह्मण्यां क्षत्रियासु च।
13049009c वैश्यायां चैव शूद्रस्य लक्ष्यंतेऽपसदास्त्रयः।।
ब्राह्मण, क्षत्रिय मत्तु वैश्य स्त्रीयल्लि शूद्रनिगॆ हुट्टुव चंडाल, व्रात्य मत्तु वेन इवरु मूरु प्रकारद अपसदरॆंदु हेळुत्तारॆ.
13049010a मागधो वामकश्चैव द्वौ वैश्यस्योपलक्षितौ।
13049010c ब्राह्मण्यां क्षत्रियायां च क्षत्रियस्यैक एव तु।।
13049011a ब्राह्मण्यां लक्ष्यते सूत इत्येतेऽपसदाः स्मृताः।
13049011c पुत्ररेतो न शक्यं हि मिथ्या कर्तुं नराधिप।।
नराधिप! ब्राह्मण मत्तु क्षत्रिय स्त्रीयल्लि वैश्यनिगॆ हुट्टुव पुत्ररन्नु – क्रमशः मागध मत्तु वामकरन्नु – ऎरडु प्रकारद अपसद पुत्ररॆंदु हेळुत्तारॆ. ब्राह्मणियल्लि क्षत्रियनु पडॆयुव सूतनॆंदु करॆयल्पडुव पुत्रनु अपसद पुत्रने. ई आरु अपसद अर्थात् प्रतिलोम पुत्ररॆंदु तिळियलागुत्तदॆ. ई पुत्ररु मिथ्यरॆंदु हेळलिक्कागुवुदिल्ल.”
13049012 युधिष्ठिर उवाच।
13049012a क्षेत्रजं के चिदेवाहुः सुतं के चित्तु शुक्रजम्।
13049012c तुल्यावेतौ सुतौ कस्य तन्मे ब्रूहि पितामह।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “तन्न पत्निय गर्भदल्लि हुट्टुव ऎल्लरू तन्नदे पुत्ररॆंदु कॆलवरु हेळिदरॆ तन्न वीर्यदिंद हुट्टुववनु मात्र तन्न पुत्रनॆंदु तिळियुत्तारॆ. ई इब्बरु पुत्ररू समानरे? पितामह! इदर कुरितु ननगॆ हेळु.”
13049013 भीष्म उवाच।
13049013a रेतजो वा भवेत्पुत्रस्त्यक्तो वा क्षेत्रजो भवेत्।
13049013c अध्यूढः समयं भित्त्वेत्येतदेव निबोध मे।।
भीष्मनु हेळिदनु: “तन्नदे वीर्यदिंद उत्पन्न पुत्रनु निजवागि तन्न पुत्रनॆंदे आगुत्तानॆ. ऒंदु वेळॆ वीर्यवन्नित्त पुरुषनु स्त्रीयन्नु त्यजिसिद्दरॆ अवळल्लि हुट्टुव पुत्रनु क्षेत्रजनॆंदागुत्तानॆ. ई रीति समयभेदन माडिये अध्यूढ पुत्रन विषयदल्लि तिळिदुकॊळ्ळबेकु.”
13049014 युधिष्ठिर उवाच।
13049014a रेतोजं विद्म वै पुत्रं क्षेत्रजस्यागमः कथम्।
13049014c अध्यूढं विद्म वै पुत्रं हित्वा च समयं कथम्।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “वीर्यदिंद उत्पन्न पुत्रनन्नु मात्र पुत्रनॆंदु तिळियुत्तेवॆ. तन्न वीर्यदिंदल्लद क्षेत्रज पुत्रनु हेगागबल्लनु? हागॆये याव रीतियल्लि समयभेदन माडि नावु अध्यूड पुत्रनॆंदु तिळियबेकु?”
13049015 भीष्म उवाच।
13049015a आत्मजं पुत्रमुत्पाद्य यस्त्यजेत्कारणांतरे।
13049015c न तत्र कारणं रेतः स क्षेत्रस्वामिनो भवेत्।।
भीष्मनु हेळिदनु: “तन्न वीर्यदिंद पुत्रनन्नु हुट्टिसि अन्य कारणगळिंद अवळन्नु परित्यजिसिदरॆ, केवल वीर्यस्थापनॆ माडिद कारणदिंद अवनिगॆ आ पुत्रन मेलॆ अधिकारविरुवुदिल्ल. आ पुत्रनु आ क्षेत्र अथवा स्त्रीय स्वामियवनदागुत्तानॆ.
13049016a पुत्रकामो हि पुत्रार्थे यां वृणीते विशां पते।
13049016c तत्र क्षेत्रं प्रमाणं स्यान्न वै तत्रात्मजः सुतः।।
विशांपते! पुत्रनन्नु बयसिदवनु पुत्रनिगागि यारन्नु विवाहवागुत्तानो अवळ क्षेत्रज पुत्रनु आ विवाहवाद पतियद्दु ऎंदु निश्चयिसुत्तारॆ. अल्लि गर्भस्थापनॆ माडिदवन अधिकारविरुवुदिल्ल.
13049017a अन्यत्र क्षेत्रजः पुत्रो लक्ष्यते भरतर्षभ।
13049017c न ह्यात्मा शक्यते हंतुं दृष्टांतोपगतो ह्यसौ।।
भरतर्षभ! बेरॆ क्षेत्रदल्लि उत्पन्ननाद पुत्रन विभिन्न लक्षणगळिंद अवनु यार पुत्रनु ऎंदु तिळिदुहोगुत्तदॆ. यारू तन्न वास्तववन्नु मुच्चिडलारनु. अदु स्वतः प्रत्यक्षवागिबिडुत्तदॆ.
13049018a कश्चिच्च कृतकः पुत्रः संग्रहादेव लक्ष्यते।
13049018c न तत्र रेतः क्षेत्रं वा प्रमाणं स्याद्युधिष्ठिर।।
युधिष्ठिर! कॆलवॊम्मॆ कृत्रिम पुत्ररू आगुत्तारॆ. अवरु ग्रहण मात्रदिंद अथवा तन्नवरॆंदु स्वीकरिसुवुदर मात्रदिंदले तन्न पुत्ररागुत्तारॆ. अल्लि वीर्य अथवा क्षेत्रगळ कुरितु योचिसि अवन पुत्रत्ववन्नु निर्धरिसलु आगुवुदिल्ल.”
13049019 युधिष्ठिर उवाच।
13049019a कीदृशः कृतकः पुत्रः संग्रहादेव लक्ष्यते।
13049019c शुक्रं क्षेत्रं प्रमाणं वा यत्र लक्ष्येत भारत।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “भारत! पुत्रत्वद निश्चयदल्लि वीर्य मत्तु क्षेत्रद प्रमाणवु ऎल्लि इरुवुदिल्लवो मत्तु केवल संग्रह मात्रदिंदले पुत्रनॆंदॆनिसिकॊळ्ळुत्तानो अंतह कृत्रिम पुत्रनु हेगिरुत्तानॆ?”
13049020 भीष्म उवाच।
13049020a मातापितृभ्यां संत्यक्तं पथि यं तु प्रलक्षयेत्।
13049020c न चास्य मातापितरौ ज्ञायेते स हि कृत्रिमः।।
भीष्मनु हेळिदनु: “तंदॆ-तायियरु मार्गदल्लि त्यजिसिरुव मत्तु हुडुकिदरू यार तंदॆ-तायियरु सिगलिल्लवो, आ बालकनन्नु पालनॆ-पोषणॆ माडुववरिगॆ अवनु कृत्रिम पुत्रनॆनिसिकॊळ्ळुत्तानॆ.
13049021a अस्वामिकस्य स्वामित्वं यस्मिन्संप्रतिलक्षयेत्।
13049021c सवर्णस्तं च पोषेत सवर्णस्तस्य जायते।।
अनाथनागिरुव अवनन्नु वर्तमानदल्लि पालनॆ पोषणॆ माडुववर जातिये आ पुत्रनद्दू आगुत्तदॆ.”
13049022 युधिष्ठिर उवाच।
13049022a कथमस्य प्रयोक्तव्यः संस्कारः कस्य वा कथम्।
13049022c देया कन्या कथं चेति तन्मे ब्रूहि पितामह।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “पितामह! इंथह बालकन संस्कारगळन्नु याव जातिय अनुसार माडबेकु? वास्तवदल्लि अवनु याव वर्णदवनु ऎंदु हेगॆ तिळियबहुदु? हागॆये अवनन्नु याव वर्णद कन्यॆयॊडनॆ विवाह माडबेकु? अदन्नु ननगॆ हेळु.”
13049023 भीष्म उवाच।
13049023a आत्मवत्तस्य कुर्वीत संस्कारं स्वामिवत्तथा।
13049024a त्यक्तो मातापितृभ्यां यः सवर्णं प्रतिपद्यते।
भीष्मनु हेळिदनु: “तंदॆ-तायियरिंद त्यक्तनादवनु पालकनिगॆ सवर्णिये आगुत्तानॆ. आदुदरिंद अवन संस्कारगळन्नु पालकन वर्णद प्रकारवे माडबेकु.
13049024c तद्गोत्रवर्णतस्तस्य कुर्यात्संस्कारमच्युत।।
13049025a अथ देया तु कन्या स्यात्तद्वर्णेन युधिष्ठिर।
युधिष्ठिर! अच्युत! पालक तंदॆय सगोत्र बंधुगळल्लि याव संस्कारगळागुत्तवॆयो अवुगळन्ने आ पुत्रनिगू माडबेकु. मत्तु हागॆये अदे वर्णद कन्यॆयॊडनॆ अवन विवाहवन्नू माडबेकु.
13049025c संस्कर्तुं मातृगोत्रं च मातृवर्णविनिश्चये।।
13049026a कानीनाध्यूढजौ चापि विज्ञेयौ पुत्रकिल्बिषौ।
ऒंदु वेळॆ आ पुत्रन तायिय वर्ण मत्तु गोत्रगळ कुरितु तिळिदिद्दरॆ आ बालकन संस्कारवन्नु अवन तायिय वर्ण-गोत्रगळिगनुसारवागिये माडबेकु. कानीन मत्तु अध्यूडज पुत्ररु इब्बरू किल्बिष पुत्ररॆंदे तिळियबेकु.
13049026c तावपि स्वाविव सुतौ संस्कार्याविति निश्चयः।।
13049027a क्षेत्रजो वाप्यपसदो येऽध्यूढास्तेषु चाप्यथ।
13049027c आत्मवद्वै प्रयुंजीरन्संस्कारं ब्राह्मणादयः।।
13049028a धर्मशास्त्रेषु वर्णानां निश्चयोऽयं प्रदृश्यते।
13049028c एतत्ते सर्वमाख्यातं किं भूयः श्रोतुमिच्चसि।।
ई ऎरडु प्रकारद पुत्ररिगू समान संस्कारगळन्नु माडबेकॆंदु शास्त्रनिश्चयविदॆ. ब्राह्मणादि वर्णदवरु क्षेत्रज, अपसद मत्तु अध्यूड ई ऎल्ल प्रकारद पुत्ररिगू तम्मदे वर्णद समान संस्कारगळन्नु नीडबेकु. वर्णसंस्कारगळ विषयदल्लि धर्मशास्त्रगळ इदे निश्चयविदॆ. ई प्रकार नानु निनगॆ ऎल्लवन्नू हेळिद्देनॆ. इन्नू एनन्नु केळलु बयसुत्तीयॆ?”
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते अनुशासन पर्वणि दानधर्म पर्वणि विवाहधर्मे पुत्रप्रतिनिधिकथने एकोनपंचाशत्तमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि अनुशासन पर्वदल्लि दानधर्म पर्वदल्लि विवाहधर्मे पुत्रप्रतिनिधिकथन ऎन्नुव नल्वत्तॊंभत्तने अध्यायवु.
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कुमारी अवस्थॆयल्लिये तायिय गर्भदल्लिद्दवनु विवाहितनादवन मनॆगॆ बंदमेलॆ हुट्टिदवनु (भारत दर्शन). ↩︎