335: नारायणीयः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

शांति पर्व

मोक्षधर्म पर्व

अध्याय 335

सार

श्रीहरिय हयग्रीवावतारद कथॆ (1-72); नारायणन महिमॆ (73-89).

12335001 जनमेजय उवाच1
12335001a श्रुतं भगवतस्तस्य माहात्म्यं परमात्मनः।
12335001c जन्म धर्मगृहे चैव नरनारायणात्मकम्।
12335001e महावराहसृष्टा च पिंडोत्पत्तिः पुरातनी।।

जनमेजयनु हेळिदनु: “निन्निंद आ परमात्मन महात्मॆयन्नु – नरनारायणात्मकरागि धर्मन मनॆयल्लि अवन जन्म, पुरातन महावराहन सृष्टि मत्तु पिंडोत्पत्ति – इवुगळन्नु केळिदॆनु.

12335002a प्रवृत्तौ च निवृत्तौ च यो यथा परिकल्पितः।
12335002c स तथा नः श्रुतो ब्रह्मन्कथ्यमानस्त्वयानघ।।

ब्रह्मन्! अनघ! प्रवृत्ति-निवृत्तिगळु हेगॆ परिकल्पितवागिवॆयो अदन्नू कूड निन्निंद नावु केळिदॆवु.

12335003a यच्च तत्कथितं पूर्वं त्वया हयशिरो महत्।
12335003c हव्यकव्यभुजो विष्णोरुदक्पूर्वे महोदधौ।
12335003e तच्च दृष्टं भगवता ब्रह्मणा परमेष्ठिना।।

ई मॊदलु नीनु हव्यकव्यभुज विष्णुवु हिंदॆ महोदधियिंद हयशिरनागि मेलॆ बंदुदन्नु परमेष्ठि ब्रह्मनु नोडिदनु ऎंदु हेळिदॆ.

12335004a किं तदुत्पादितं पूर्वं हरिणा लोकधारिणा।
12335004c रूपं प्रभावमहतामपूर्वं धीमतां वर।।

धीमंतरल्लि श्रेष्ठ! हिंदॆ लोकदारि हरियु आ परमाद्भुतवाद प्रभावशालियाद अपूर्ववाद रूपवन्नु एकॆ सृष्टिसिदनु?

12335005a दृष्ट्वा हि विबुधश्रेष्ठमपूर्वममितौजसम्।
12335005c तदश्वशिरसं पुण्यं ब्रह्मा किमकरोन्मुने।।

मुने! आ विबुधश्रेष्ठ अपूर्व अमितौजस पुण्य अश्वशिरसनन्नु नोडि ब्रह्मनु एनु माडिदनु?

12335006a एतन्नः संशयं ब्रह्मन्पुराणज्ञानसंभवम्।
12335006c कथयस्वोत्तममते महापुरुषनिर्मितम्।
12335006e पाविताः स्म त्वया ब्रह्मन्पुण्यां कथयता कथाम्।।

ब्रह्मन्! उत्तममते! इदु नम्म संदेह! महापुरुषनिर्मितवाद पुराणज्ञानसंभववाद ई कथॆयन्नु हेळबेकु. ब्रह्मन्! नीनु पुण्य कथॆयन्नु हेळि नम्मन्नु पवित्ररन्नागि माडु.”

12335007 वैशंपायन उवाच।
12335007a कथयिष्यामि ते सर्वं पुराणं वेदसंमितम्।
12335007c जगौ यद्भगवान्व्यासो राज्ञो धर्मसुतस्य वै।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “वेदसंमित पुराणवॆल्लवन्नू निनगॆ हेळुत्तेनॆ. ऒम्मॆ भगवान् व्यासनु राजा धर्मसुतन बळि होगिद्दनु.

12335008a श्रुत्वाश्वशिरसो मूर्तिं देवस्य हरिमेधसः।
12335008c उत्पन्नसंशयो राजा तमेव समचोदयत्।।

हरिमेधस देवन अश्वशिरस मूर्तिय कुरितु केळि संशयताळिद राजनु अवनन्ने प्रश्निसिद्दनु.

12335009 युधिष्ठिर उवाच।
12335009a यत्तद्दर्शितवान्ब्रह्मा देवं हयशिरोधरम्।
12335009c किमर्थं तत्समभवद्वपुर्देवोपकल्पितम्।।

युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “हयशिरवन्नु धरिसिद्द देवनन्नु ब्रह्मनु नोडिदनॆंदु नीवु हेळिदिरल्ला आ अपूर्व रूपवन्नु देवनु याव कारणदिंद धरिसिद्दनु?”

12335010 व्यास उवाच।
12335010a यत्किं चिदिह लोके वै देहबद्धं विशां पते।
12335010c सर्वं पंचभिराविष्टं भूतैरीश्वरबुद्धिजैः।।

व्यासनु हेळिदनु: “विशांपते! ई लोकदल्लि देहबद्धवागि एनॆल्ल इवॆयू अवॆल्लवू ईश्वरन बुद्धियिंद हुट्टिद पंचभूतगळिंद आविष्टगॊंडिवॆ.

12335011a ईश्वरो हि जगत्स्रष्टा प्रभुर्नारायणो विराट्।
12335011c भूतांतरात्मा वरदः सगुणो निर्गुणोऽपि च।
12335011e भूतप्रलयमव्यक्तं शृणुष्व नृपसत्तम।।

नृपसत्तम! प्रभु नारायण ईश्वर विराटने जगत्तिन सृष्टा. अवने भूतगळ अंतरात्म, वरद, सगुण मत्तु निर्गुणनू कूड. ईग अव्यक्तदल्लि भूतगळु लयहॊंदिद विषयद कुरितु केळु.

12335012a धरण्यामथ लीनायामप्सु चैकार्णवे पुरा।
12335012c ज्योतिर्भूते जले चापि लीने ज्योतिषि चानिले।।
12335013a वायौ चाकाशसंलीने आकाशे च मनोनुगे।
12335013c व्यक्ते मनसि संलीने व्यक्ते चाव्यक्ततां गते।।
12335014a अव्यक्ते पुरुषं याते पुंसि सर्वगतेऽपि च।
12335014c तम एवाभवत्सर्वं न प्राज्ञायत किं चन।।

हिंदॆ महाप्रळयवादाग भूमियु नीरिनल्लि नयवायितु. जलवु ज्योतियल्लियू ज्योतियु वायुविनल्लियू, वायुवु आकाशदल्लियू, आकाशवु मनस्सिनल्लियू, मनस्सु व्यक्तदल्लियू, व्यक्तवु अव्यक्तदल्लियू, अव्यक्तवु पुरुषनल्लियू, हीगॆ ऎल्लवू पुरुषनल्लि लीनवागि होयितु. आग ऎल्लॆल्लियू कत्तलॆयु तुंबित्तु. यावुदू तिळियुत्तिरलिल्ल.

12335015a तमसो ब्रह्म संभूतं तमोमूलमृतात्मकम्।
12335015c तद्विश्वभावसंज्ञांतं पौरुषीं तनुमास्थितम्।।

आ तमस्सिनिंद ब्रह्मवु हुट्टितु. तमोमूलवाद अदु ऋतात्मकवादुदु. अदे पुरुषन शरीरवन्नु ताळि विश्वद प्रादुर्भावक्कॆ कारणवागुत्तदॆ.

12335016a सोऽनिरुद्ध इति प्रोक्तस्तत् प्रधानं प्रचक्षते।
12335016c तदव्यक्तमिति ज्ञेयं त्रिगुणं नृपसत्तम।।

नृपसत्तम! अवनन्नु अनिरुद्धनॆंदॆ हेळुत्तारॆ. अवने प्रधाननॆंदू करॆयल्पडुत्तानॆ. त्रिगुणात्मननाद अव्यक्तनॆंदू अवनन्नु तिळियबेकु.

12335017a विद्यासहायवान्देवो विष्वक्सेनो हरिः प्रभुः।
12335017c अप्स्वेव शयनं चक्रे निद्रायोगमुपागतः।

विद्यॆय सहायदिंद विष्वक्सेन हरि प्रभुवु निद्रायोगवन्नु हॊंदि नीरिनल्लिये मलगिदनु.

12335017e जगतश्चिंतयन्सृष्टिं चित्रां बहुगुणोद्भवाम्।।
12335018a तस्य चिंतयतः सृष्टिं महानात्मगुणः स्मृतः।
12335018c अहंकारस्ततो जातो ब्रह्मा शुभचतुर्मुखः।
12335018e हिरण्यगर्भो भगवान्सर्वलोकपितामहः।।

बहुगुणगळिंद कूडि उद्भविसुव अद्भुत जगत्तिन सृष्टिय कुरितु अवनु योचिसुत्तिद्दाग अवनिगॆ तन्नदे गुणवाद महत्तत्त्ववॆंब गुणद स्मरणॆयायितु. आग महत्तिनिंद अहंकारवु हुट्टितु मत्तु अहंकारदिंद शुभ चतुर्मुख हिरण्यगर्भ भगवान् लोकपितामह ब्रह्मनु हुट्टिदनु.

12335019a पद्मेऽनिरुद्धात्संभूतस्तदा पद्मनिभेक्षणः।
12335019c सहस्रपत्रे द्युतिमानुपविष्टः सनातनः।।
12335020a ददृशेऽद्भुतसंकाशे लोकानापोमयान्प्रभुः।
12335020c सत्त्वस्थः परमेष्ठी स ततो भूतगणान् सृजत्।।

आ पद्मनिभेक्षणनु पद्मरूपि अनिरुद्धनिंद हुट्टिदनु. आ द्युतिमान् सनातननु सहस्रदळद पद्मदमेलॆ कुळितिद्दनु. अद्भुतरूपवन्नु धरिसिद्द आ प्रभुवु लोकगळॆल्लवू जलमयवागिरुवुदन्नु कंडनु. बळिक सत्त्वगुणदिंद आविर्भुतनागिद्द आ परमेष्ठियु भूतगणगळन्नु सृष्टिसलु प्रारंभिसिदनु.

12335021a पूर्वमेव च पद्मस्य पत्रे सूर्यांशुसप्रभे।
12335021c नारायणकृतौ बिंदू अपामास्तां गुणोत्तरौ।।

सूर्यनकिरणगळंतॆ प्रज्वलिसुत्तिद्द आ पद्मद ऎलॆगळ मेलॆ मॊदले नारायणनु सृष्टिसिद रजोगुण-तमोगुणप्रतीकगळाद ऎरडु नीरिन बिंदुगळिद्दवु.

12335022a तावपश्यत्स भगवाननादिनिधनोऽच्युतः।
12335022c एकस्तत्राभवद्बिंदुर्मध्वाभो रुचिरप्रभः।।
12335023a स तामसो मधुर्जातस्तदा नारायणाज्ञया।
12335023c कठिनस्त्वपरो बिंदुः कैटभो राजसस्तु सः।।

अनादिनिधन अच्युत भगवाननु अवुगळन्नु नोडिदनु. आ ऎरडु बिंदुगळल्लि जेनुतुप्पद कांतियिंद कूडिद्द तमोगुणद ऒंदु बिंदुविनिंद नारायणन आज्ञॆयिंद मधुवु हुट्टिदनु. अत्यंत कठिणवागिद्द इन्नॊंदु राजस गुणद बिंदुविनिंद कैटभनु हुट्टिदनु.

12335024a तावभ्यधावतां श्रेष्ठौ तमोरजगुणान्वितौ।
12335024c बलवंतौ गदाहस्तौ पद्मनालानुसारिणौ।।

तमोरजगुणान्वितराद आ इब्बरु श्रेष्ठ बलवंतरू गदॆगळन्नु हिडिदु पद्मद कांडवन्ने अनुसरिसि मेलॆ ओडि बंदरु.

12335025a ददृशातेऽरविंदस्थं ब्रह्माणममितप्रभम्।
12335025c सृजंतं प्रथमं वेदांश्चतुरश्चारुविग्रहान्।।

अवरु कमलदमेलॆ कुळितु प्रथमवागि सुंदर देहगळुळ्ळ नाल्कु वेदगळन्नु सृष्टिसुत्तिद्द अमितप्रभ ब्रह्मनन्नु नोडिदरु.

12335026a ततो विग्रहवंतौ तौ वेदान् दृष्ट्वासुरोत्तमौ।
12335026c सहसा जगृहतुर्वेदान् ब्रह्मणः पश्यतस्तदा।।

आग विशालकायरागिद्द आ असुरश्रेष्ठरु ब्रह्मनु नोडुत्तिद्दंतॆये आ वेदगळन्नु ऒम्मॆले हिडिदरु.

12335027a अथ तौ दानवश्रेष्ठौ वेदान् गृह्य सनातनान्।
12335027c रसां विविशतुस्तूर्णमुदक्पूर्वे महोदधौ।।

आ दानवश्रेष्ठरु सनातन वेदगळन्नु हिडिदु शीघ्रवागि महादधिय ईशान्यदिक्किनल्लिद्द भूमियन्नु प्रवेशिसिदरु.

12335028a ततो हृतेषु वेदेषु ब्रह्मा कश्मलमाविशत्।
12335028c ततो वचनमीशानं प्राह वेदैर्विनाकृतः।।

वेदगळु हीगॆ अपहृतवागलु खिन्ननाद ब्रह्मनु वेदगळिंद रहितनागि ईशाननिगॆ हेळिदनु:

12335029a वेदा मे परमं चक्षुर्वेदा मे परमं बलम्।
12335029c वेदा मे परमं धाम वेदा मे ब्रह्म चोत्तमम्।।

“वेदगळु नन्न परम कण्णुगळु. वेदगळु नन्न परम बल. वेदगळु नन्न परम धाम. वेदगळे नन्न उत्तम ब्रह्मवु.

12335030a मम वेदा हृताः सर्वे दानवाभ्यां बलादितः।
12335030c अंधकारा हि मे लोका जाता वेदैर्विनाकृताः।
12335030e वेदानृते हि किं कुर्यां लोकान्वै स्रष्टुमुद्यतः।।

नन्न वेदगळॆल्लवन्नू बलात्कारदिंद ई दानवरिब्बरू अपहरिसिद्दारॆ. वेदगळिंद विहीननाद ननगॆ लोकगळॆल्लवू अंधकारमयवागिवॆ. वेदगळिल्लदे नानु हेगॆ ताने लोकगळन्नु सृष्टिसलु प्रारंभिसलि?

12335031a अहो बत महद्दुःखं वेदनाशनजं मम।
12335031c प्राप्तं दुनोति हृदयं तीव्रशोकाय रंधयन्।।

अय्यो! वेदगळ नाशदिंद ननगॆ महा दुःखवे प्राप्तवागिदॆ. तीव्रशोकदिंद नन्न हृदयवु पीडॆगॊळगागि नोयुत्तिदॆ.

12335032a को हि शोकार्णवे मग्नं मामितोऽद्य समुद्धरेत्।
12335032c वेदांस्तानानयेन्नष्टान्कस्य चाहं प्रियो भवे।।

शोकसागरदल्लि मुळुगिरुव नन्नन्नु इंदु यारु उद्धरिसुत्तारॆ? नष्टवागि होगिरुव नन्न वेदगळन्नु तंदुकॊडुवष्टु नानु यारिगॆ प्रियनागिद्देनॆ?”

12335033a इत्येवं भाषमाणस्य ब्रह्मणो नृपसत्तम।
12335033c हरेः स्तोत्रार्थमुद्भूता बुद्धिर्बुद्धिमतां वर।
12335033e ततो जगौ परं जप्यं सांजलिप्रग्रहः प्रभुः।।

नृपसत्तम! बुद्धिवंतरल्लि श्रेष्ठ! ब्रह्मनु हीगॆ मातनाडुत्तिरुवाग अवनिगॆ हरियन्नु स्तुतिसबेकॆंब बुद्धियुंटायितु. आग प्रभुवु कैमुगिदु परम जप्यवाद स्तोत्रदिंद स्तुतिसलु उपक्रमिसिदनु.

12335034a नमस्ते ब्रह्महृदय नमस्ते मम पूर्वज।
12335034c लोकाद्य भुवनश्रेष्ठ सांख्ययोगनिधे विभो।।

“ब्रह्महृदय! निनगॆ नमस्कार! नन्न पूर्वज! निनगॆ नमस्कार! लोकगळ आदिये! भुवनश्रेष्ठ! सांख्ययोगनिधे! विभो! निनगॆ नमस्कार!

12335035a व्यक्ताव्यक्तकराचिंत्य क्षेमं पंथानमास्थित।
12335035c विश्वभुक्सर्वभूतानामंतरात्मन्नयोनिज।।
12335036a अहं प्रसादजस्तुभ्यं लोकधाम्ने स्वयंभुवे।
12335036c त्वत्तो मे मानसं जन्म प्रथमं द्विजपूजितम्।।

व्यक्ताव्यक्तगळ कर्तृवे! अचिंत्य! क्षेममार्गवन्नु आश्रयिसिरुववने! विश्चभुक्! सर्वभूतगळ अंतरात्मा! अयोनिज! नानु निन्न प्रसाददिंदले हुट्टिद्देनॆ. लोकधाम्न! स्वयंभुव! निन्न मनस्सिनिंदले प्रथमवागि द्विजरिंद पूजितनाद नन्न जन्मवायितु.

12335037a चाक्षुषं वै द्वितीयं मे जन्म चासीत्पुरातनम्।
12335037c त्वत्प्रसादाच्च मे जन्म तृतीयं वाचिकं महत्।।

निन्न कण्णुगळिंद नन्न पुरातन ऎरडनॆय जन्मवायितु. निन्न प्रसाददिंदले निन्न वाक्किनिंद महत्तरवाद नन्न मूरनॆय जन्मवायितु.

12335038a त्वत्तः श्रवणजं चापि चतुर्थं जन्म मे विभो।
12335038c नासिक्यं चापि मे जन्म त्वत्तः पंचममुच्यते।।

विभो! निन्न किविगळिंद हुट्टि नन्न नाल्कनॆय जन्मवन्नु पडॆदुकॊंडॆनु. निन्न नासिकनिंद आद नन्न जन्मवु ऐदनॆयदु ऎंदु हेळुत्तारॆ.

12335039a अंडजं चापि मे जन्म त्वत्तः षष्ठं विनिर्मितम्।
12335039c इदं च सप्तमं जन्म पद्मजं मेऽमितप्रभ।।

अमितप्रभ! निन्न अंडदिंद कूड नन्न जन्मवायितु. अदु नन्न आरनॆय जन्म. निन्न पद्मदिंद हुट्टिदइ दु नन्न एळनॆय जन्म.

12335040a सर्गे सर्गे ह्यहं पुत्रस्तव त्रिगुणवर्जितः।
12335040c प्रथितः पुंडरीकाक्ष प्रधानगुणकल्पितः।।

त्रिगुणवर्जित! सृष्टि-सृष्टियल्लियू नानु निन्न मगनागिये हुट्टुत्तेनॆ. पुंडरीकाक्ष! नानु प्रधानगुणकल्पितनॆंदु प्रथितनागिद्देनॆ.

12335041a त्वमीश्वरस्वभावश्च स्वयंभूः पुरुषोत्तमः।
12335041c त्वया विनिर्मितोऽहं वै वेदचक्षुर्वयोतिगः।।

नीनु ईश्वर! नीने स्वभाववु. स्वयंभू. पुरुषोत्तम. वेदगळन्ने कण्णुगळन्नागुळ्ळ नानु निन्निंदले निर्मितनागिद्देनॆ.

12335042a ते मे वेदा हृताश्चक्षुरंधो जातोऽस्मि जागृहि।
12335042c ददस्व चक्षुषी मह्यं प्रियोऽहं ते प्रियोऽसि मे।।

नन्न कण्णुगळागिद्द वेदगळु अपहृतवादुदरिंद नानु अंधनागिबिट्टिद्देनॆ. ऎद्देळु! नन्न कण्णुगळन्नु नीडु. नानु निन्न प्रियनागिद्देनॆ. नीनू कूड नन्न प्रियनागिद्दीयॆ.”

12335043a एवं स्तुतः स भगवान्पुरुषः सर्वतोमुखः।
12335043c जहौ निद्रामथ तदा वेदकार्यार्थमुद्यतः।
12335043e ऐश्वरेण प्रयोगेण द्वितीयां तनुमास्थितः।।

अवनु हीगॆ स्तुतिसलु सर्वतोमुख भगवान् पुरुषनु निद्रॆयिंद ऎच्चॆत्तु वेदकार्यक्कॆ उद्युक्तनादनु. तन्न योगैश्वर्यदिंद ऎरडनॆय देहवन्नु धरिसिदनु.

12335044a सुनासिकेन कायेन भूत्वा चंद्रप्रभस्तदा।
12335044c कृत्वा हयशिरः शुभ्रं वेदानामालयं प्रभुः।।

अवन शरीरवु चंद्रप्रभॆयिंद बॆळगुत्तित्तु. सुंदर नासिकद शुभ्र हयद शिरवन्नु धरिसिद आ प्रभुवु वेदगळ आलयदंतिद्दनु.

12335045a तस्य मूर्धा समभवद्द्यौः सनक्षत्रतारका।
12335045c केशाश्चास्याभवन्दीर्घा रवेरंशुसमप्रभाः।।

नक्षत्र-तारॆगळिंद कूडिद स्वर्गलोकवे अवन नॆत्तियागित्तु. अवन कूदलुगळु नीळवागियू सूर्यन रश्मियंतॆ प्रभायुक्तवू आगिद्दवु.

12335046a कर्णावाकाशपाताले ललाटं भूतधारिणी।
12335046c गंगा सरस्वती पुण्या2 भ्रुवावास्तां महानदी।।

आकाश-पाताळगळु अवन किविगळागिद्दवु. भूतधारिणी भूमिये अवन हणॆयागित्तु. महानदी पुण्य गंगा-सरस्वतियरु अवन हुब्बागिद्दवु.

12335047a चक्षुषी सोमसूर्यौ ते नासा संध्या पुनः स्मृता।
12335047c ओंकारस्त्वथ संस्कारो विद्युज्जिह्वा च निर्मिता।।

सोम-सूर्यरे अवन कण्णुगळागिद्दवु. संध्याकालवु नासिकवागित्तु. ओकारवु आभरणवागित्तु. विद्युत्ते नालिगॆयागित्तु.

12335048a दंताश्च पितरो राजन्सोमपा इति विश्रुताः।
12335048c गोलोको ब्रह्मलोकश्च ओष्ठावास्तां महात्मनः।
12335048e ग्रीवा चास्याभवद्राजन्कालरात्रिर्गुणोत्तरा।।

राजन्! सोमपरॆंदु विश्रुतराद पितृगळु अवन हल्लुगळागिद्दरु. गोलोक-ब्रह्मलोकगळु आ महात्मन तुटिगळागिद्दवु. राजन्! तमोगुणमयवाद कालरात्रिये अवन कुत्तिगॆयागित्तु.

12335049a एतद्धयशिरः कृत्वा नानामूर्तिभिरावृतम्।
12335049c अंतर्दधे स विश्वेशो विवेश च रसां प्रभुः।।

हीगॆ नानामूर्तिगळिंद संघटितवाद हयशिरन आकृतियन्नु हॊंदिद विश्वेश प्रभुवु रसातळवन्नु प्रवेशिसि अदृश्यनादनु.

12335050a रसां पुनः प्रविष्टश्च योगं परममास्थितः।
12335050c शैक्षं स्वरं समास्थाय ओमिति प्रासृजत्स्वरम्।।

परमयोगवन्नु आश्रयिसि अवनु रसातळवन्नु प्रवेशिसि ओंकारदॊंदिगॆ शिक्ष स्वरदल्लि सामवेदवन्नु हाडतॊडगिदनु.

12335051a स स्वरः सानुनादी च सर्वगः स्निग्ध एव च।
12335051c बभूवांतर्महीभूतः सर्वभूतगुणोदितः।।

सर्वत्र प्रतिध्वनिसुत्तिद्द आ मनोहर सामगान स्वरवु समस्त प्राणिगळिगू गुणगळन्नु उद्भोदिसुत्ता भूमिय कॆळभागदल्लिद्द रसातळदल्लि व्यापिसितु.

12335052a ततस्तावसुरौ कृत्वा वेदान्समयबंधनान्।
12335052c रसातले विनिक्षिप्य यतः शब्दस्ततो द्रुतौ।।

आग आ असुररु वेदगळन्नु कालपाशगळिंद बंधिसि रसातळदल्लि बच्चिट्टु सामगानद शब्धवु केळिबरुत्तिद्द कडॆ धाविसिदरु.

12335053a एतस्मिन्नंतरे राजन्देवो हयशिरोधरः।
12335053c जग्राह वेदानखिलान्रसातलगतान् हरिः।
12335053e प्रादाच्च ब्रह्मणे भूयस्ततः स्वां प्रकृतिं गतः।।

राजन्! ई मध्यदल्लि देव हयशिरोधर हरियु रसातळदल्लिद्द अखिल वेदगळन्नू तॆगॆदुकॊंडु ब्रह्मनिगॆ कॊट्टु पुनः तन्न मूल प्रकृतियन्ने हॊंदिदनु.

12335054a स्थापयित्वा हयशिर उदक्पूर्वे महोदधौ।
12335054c वेदानामालयश्चापि बभूवाश्वशिरास्ततः।।

महोदधिय ईशान्यभागदल्लि वेदगळिगॆ आलयनाद हयशिरनन्नु स्थापिसि अंदिनिंद अवनु अश्वशिरनॆंब हॆसरिनिंद विख्यातनादनु.

12335055a अथ किं चिदपश्यंतौ दानवौ मधुकैटभौ।
12335055c पुनराजग्मतुस्तत्र वेगितौ पश्यतां च तौ।
12335055e यत्र वेदा विनिक्षिप्तास्तत् स्थानं शून्यमेव च।।

इत्तलागि दानव मधु-कैटभरु एनन्नू काणदे वेगदिंद ऎल्लि अवरु वेदगळन्नु अडगिसिट्टिद्दरो अल्लिगॆ बंदु आ स्थानवू शून्यवागिद्दुदन्नु नोडिदरु.

12335056a तत उत्तममास्थाय वेगं बलवतां वरौ।
12335056c पुनरुत्तस्थतुः शीघ्रं रसानामालयात्तदा।
12335056e ददृशाते च पुरुषं तमेवादिकरं प्रभुम्।।
12335057a श्वेतं चंद्रविशुद्धाभमनिरुद्धतनौ स्थितम्।
12335057c भूयोऽप्यमितविक्रांतं निद्रायोगमुपागतम्।।

आग आ बलवंतरल्लि श्रेष्ठरिब्बरू उत्तम वेगदिंद रसातलदिंद हॊरटु शीघ्रवागि मेलॆ बंदरु. अल्लि अवरु चंद्रन विशुद्ध कांतियिंद कूडिद्द गौरवर्णनाद अनिरुद्धन रूपदल्लिद्द आदिकर प्रभु अमितविक्रांत पुरुषनु योगनिद्रॆयल्लिरुवुदन्नु नोडिदरु.

12335058a आत्मप्रमाणरचिते अपामुपरि कल्पिते।
12335058c शयने नागभोगाढ्ये ज्वालामालासमावृते।।
12335059a निष्कल्मषेण सत्त्वेन संपन्नं रुचिरप्रभम्।
12335059c तं दृष्ट्वा दानवेंद्रौ तौ महाहासममुंचताम्।।

नीरिन मेलॆ तन्न शरीरद प्रमाणक्कनुगुणवागि कल्पितवागिद्द, ज्वालामालॆगळिंद आवृत नागन शरीररूपद हासिगॆयल्लि मलगिद्द निष्कल्मष सत्त्वदिंद संपन्ननागिद्द सुंदर प्रभॆयिंद प्रकाशिसुत्तिद्द अवनन्नु नोडि आ इब्बरु दानवेंद्ररू अट्टहासदिंद नगतॊडगिदरु.

12335060a ऊचतुश्च समाविष्टौ रजसा तमसा च तौ।
12335060c अयं स पुरुषः श्वेतः शेते निद्रामुपागतः।।
12335061a अनेन नूनं वेदानां कृतमाहरणं रसात्।
12335061c कस्यैष को नु खल्वेष किं च स्वपिति भोगवान्।।

रजो मत्तु तमोगुणगळिंद समाविष्टरागिद्द अवरिब्बरू मातनाडिकॊंडरु: “निद्रावशनागि मलगिरुव ई श्वेत पुरुषने रसातलदिंद वेदगळन्नु अपहरिसिदनु. सर्पमेलॆ मलगिरुव इवनु यार मगनु? यारिरबहुदु?”

12335062a इत्युच्चारितवाक्यौ तौ बोधयामासतुर्हरिम्।
12335062c युद्धार्थिनौ तु विज्ञाय विबुद्धः पुरुषोत्तमः।।
12335063a निरीक्ष्य चासुरेंद्रौ तौ ततो युद्धे मनो दधे।

हीगॆ मातनाडिकॊळ्ळुत्ता अवरिब्बरू हरियन्नु ऎब्बिसतॊडगिदरु. ऎच्चॆद्द पुरुषोत्तमनु आ असुरेंद्ररिब्बरन्नू अवरु युद्धमाडुव इच्छॆयुळ्ळवरागिरुवरॆंबुदन्नु तिळिदु तानू अवरॊडनॆ युद्धमाडलु निश्चयिसिदनु.

12335063c अथ युद्धं समभवत्तयोर्नारायणस्य च।।
12335064a रजस्तमोविष्टतनू तावुभौ मधुकैटभौ।
12335064c ब्रह्मणोपचितिं कुर्वन् जघान मधुसूदनः।।

आग अवरिब्बरॊंदिगॆ नारायणन युद्धवु नडॆयितु. ब्रह्मनिगॆ अभ्युदयवन्नुंटुमाडुत्ता मधुसूदननु रजस्सु-तमोगुणगळिंद व्याप्त शरीरगळन्नु पडॆदिद्द आ मधुकैटभरन्नु संहरिसिदनु.

12335065a ततस्तयोर्वधेनाशु वेदापहरणेन च।
12335065c शोकापनयनं चक्रे ब्रह्मणः पुरुषोत्तमः।।

हीगॆ अवरन्नु वधिसि वेदगळन्नु तंदुकॊट्टु ब्रह्मन शोकवन्नु होगलाडिसिदनु.

12335066a ततः परिवृतो ब्रह्मा हतारिर्वेदसत्कृतः।
12335066c निर्ममे स तदा लोकान्कृत्स्नान्स्थावरजंगमान्।।

शत्रुगळु हतरागलु वेदगळिंद परिवृतनागि सत्कृतनाद ब्रह्मनु युक्तवाद सकल लोकगळन्नू, स्थावर जंगमगळन्नू सृष्टिसिदनु.

12335067a दत्त्वा पितामहायाग्र्यां बुद्धिं लोकविसर्गिकीम्।
12335067c तत्रैवांतर्दधे देवो यत एवागतो हरिः।।

पितामहनिगॆ लोकसृष्टिगॆ श्रेष्ठ बुद्धियन्नु दयपालिसि देव हरियु अंतर्गतनागि ऎल्लिंद बंदिद्दनो अल्लिगॆ हॊरटुहोदनु.

12335068a तौ दानवौ हरिर्हत्वा कृत्वा हयशिरस्तनुम्।
12335068c पुनः प्रवृत्तिधर्मार्थं तामेव विदधे तनुम्।।

हयशिरन शरीरवन्नु धरिसि हरियु आ दानवरिब्बरन्नू संहरिसि प्रवृत्तिधर्मवन्नु स्थापिसलु पुनः अदे हयग्रीवन रूपवन्नु ताळिदनु.

12335069a एवमेष महाभागो बभूवाश्वशिरा हरिः।
12335069c पौराणमेतदाख्यातं रूपं वरदमैश्वरम्।।

हीगॆ महाभाग हरियु अश्वशिरनादनु. वरदायकवाद अवन ई ईश्वर रूपवु पुराणगळल्लि प्रसिद्धवादुदु.

12335070a यो ह्येतद्ब्राह्मणो नित्यं शृणुयाद्धारयेत वा।
12335070c न तस्याध्ययनं नाशमुपगच्चेत्कदा चन।।

याव ब्राह्मणनु नित्यवू इदन्नु केळुत्तानो अथवा स्मरिसिकॊळ्ळुत्तानो अवन अध्ययनवु ऎंदू नाशवागुवुदिल्ल.

12335071a आराध्य तपसोग्रेण देवं हयशिरोधरम्।
12335071c पांचालेन क्रमः प्राप्तो रामेण3 पथि देशिते।।

पांचालदेशद गालव मुनियु रामनु उपदेशिसिद मार्गदल्लि हयग्रीवनन्नु उग्र तपस्सिनिंद आराधिसि क्रमपाठवन्नु पडॆदुकॊंडनु.

12335072a एतद्धयशिरो राजन्नाख्यानं तव कीर्तितम्।
12335072c पुराणं वेदसमितं यन्मां त्वं परिपृच्चसि।।

राजन्! नीनु नन्नल्लि केळिद पुराणवेदसमितवाद हयशिरन आख्यानविदु.

12335073a यां यामिच्चेत्तनुं देवः कर्तुं कार्यविधौ क्व चित्।
12335073c तां तां कुर्याद्विकुर्वाणः स्वयमात्मानमात्मना।।

देवनु याव याव कार्यसिद्धिगॆ याव याव शरीरवन्नु धरिसलु इच्छिसुवनो आया कार्यगळन्नु माडुव समयदल्लि ननगिष्टवाद आया शरीरवन्नु तन्निंदले प्रकटपडिसुत्तानॆ.

12335074a एष वेदनिधिः श्रीमानेष वै तपसो निधिः।
12335074c एष योगश्च सांख्यं च ब्रह्म चाग्र्यं हरिर्विभुः।।

इवने वेदनिधि. ई श्रीमानने तपस्सिन निधि. इवने योग, सांख्य, ब्रह्म, श्रेष्ठ हविस्सु मत्तु विभु.

12335075a नारायणपरा वेदा यज्ञा नारायणात्मकाः।
12335075c तपो नारायणपरं नारायणपरा गतिः।।

वेदगळॆल्लवू नारायणपरवागिये इवॆ. यज्ञगळु नारायणन स्वरूपगळे आगिवॆ. तपस्सिन परम फलवू नारायणने. नारायणने परम गतियू आगिद्दानॆ.

12335076a नारायणपरं सत्यमृतं नारायणात्मकम्।
12335076c नारायणपरो धर्मः पुनरावृत्तिदुर्लभः।।

नारायणने परम सत्य. ऋतवु नारायणात्मकवु. पुनरावृत्तिदुर्लभवाद निवृत्ति धर्मवू नारायणने.

12335077a प्रवृत्तिलक्षणश्चैव धर्मो नारायणात्मकः।
12335077c नारायणात्मको गंधो भूमौ श्रेष्ठतमः स्मृतः।।

प्रवृत्तिलक्षण धर्मवू कूड नारायणात्मकवु. भूमिय श्रेष्ठ गुणवाद गंधवू नारायणात्मकवॆंदु हेळल्पट्टिदॆ.

12335078a अपां चैव गुणो राजन्रसो नारायणात्मकः।
12335078c ज्योतिषां च गुणो रूपं स्मृतं नारायणात्मकम्।।

राजन्! जलद गुणवाद रसवू नारायणात्मकवु. ज्योतिगळ गुणवाद रूपवू नारायणात्मकवॆंदु हेळुत्तारॆ.

12335079a नारायणात्मकश्चापि स्पर्शो वायुगुणः स्मृतः।
12335079c नारायणात्मकश्चापि शब्द आकाशसंभवः।।

वायुविन गुणवाद स्पर्शवू कूड नारायणात्मकवॆंदु हेळल्पट्टिदॆ. आकाशसंभववाद शब्दवू कूड नारायणात्मकवु.

12335080a मनश्चापि ततो भूतमव्यक्तगुणलक्षणम्।
12335080c नारायणपरः कालो ज्योतिषामयनं च यत्।।

अव्यक्त गुणलक्षणगळनन्नु हॊंदिरुव मनस्सॆंब वस्तुवू, काल मत्तु नक्षत्रमंडलगळू नारायणनन्ने आश्रयिसिवॆ.

12335081a नारायणपरा कीर्तिः श्रीश्च लक्ष्मीश्च देवताः।
12335081c नारायणपरं सांख्यं योगो नारायणात्मकः।।

कीर्ति, श्री, लक्ष्मि मत्तु देवतॆगळु नारायणनन्ने आश्रयिसिवॆ. नारायणपरवाद सांख्य योगवू नारायणात्मकवु.

12335082a कारणं पुरुषो येषां प्रधानं चापि कारणम्।
12335082c स्वभावश्चैव कर्माणि दैवं येषां च कारणम्।।

इवॆल्लवक्कू पुरुषनु कारणनु. प्रधानवू कारणवु. स्वभाव-कर्मगळू कारणगळु. आदरॆ इवॆल्लवक्कू देव नारायणने कारणनु.

412335083a पंचकारणसंख्यातो निष्ठा सर्वत्र वै हरिः। 12335083c तत्त्वं जिज्ञासमानानां हेतुभिः सर्वतोमुखैः।।
12335084a तत्त्वमेको महायोगी हरिर्नारायणः प्रभुः।

ऐदु कारणगळ रूपदल्लि सर्वत्र हरिये इद्दानॆ. सर्वतोमुख कारणगळिंद तत्त्ववन्नु तिळियलु इच्छिसुववरिगॆ महायोगि प्रभु हरि नारायणने ज्ञेयनाद एकैक महातत्त्ववु.

12335084c सब्रह्मकानां लोकानामृषीणां च महात्मनाम्।।
12335085a सांख्यानां योगिनां चापि यतीनामात्मवेदिनाम्।
12335085c मनीषितं विजानाति केशवो न तु तस्य ते।।

ब्रह्मादि देवतॆगळ, लोकगळ, महात्म ऋषिगळ, सांख्ययोगिगळ, आत्मवेदी यतिगळ अंतरंगवन्नु केशवनु तिळिदिरुत्तानॆ. आदरॆ इवरल्लि यारू अवन अंतरंगवन्नु तिळिदिल्ल.

12335086a ये के चित्सर्वलोकेषु दैवं पित्र्यं च कुर्वते।
12335086c दानानि च प्रयच्चंति तप्यंति च तपो महत्।।
12335087a सर्वेषामाश्रयो विष्णुरैश्वरं विधिमास्थितः।
12335087c सर्वभूतकृतावासो वासुदेवेति चोच्यते।।

ऎल्ल लोकगळल्लि यावुदे देव मत्तु पितृकार्यगळन्नु माडुत्तारो, दानगळन्नु नीडलागुत्तदॆयो, महा तपस्सन्नु तपिसलागुत्तदॆयो, इवॆल्लवुगळ आश्रयनु ओगैश्वर्यदल्लि स्थितनागिरुव विष्णुवु. सर्वभूतगळल्लियू वासमाडुवुदरिंद अवनन्नु वासुदेवनॆंदू करॆयुत्तारॆ.

12335088a अयं हि नित्यः परमो महर्षिर् महाविभूतिर्गुणवान्निर्गुणाख्यः।
12335088c गुणैश्च संयोगमुपैति शीघ्रं कालो यथर्तावृतुसंप्रयुक्तः।।

ई परम महर्षियु नित्य. महा विभूतियुळ्ळवनू, गुणवंतनू मत्तु निर्गुणनॆंदू करॆयल्पट्टिद्दानॆ. गुणगळिंद रहितवागिरुव कालवु हेगॆ ऋतुगळिगॆ संबंधिसिद शीतोष्णादि गुणगळिंद शीघ्रवागि युक्तवागुवुदो हागॆ परमात्मनु निर्गुणनागिद्दरू समयगळल्लि गुणगळॊडनॆ संपर्कहॊंदुत्तानॆ.

12335089a नैवास्य विंदंति गतिं महात्मनो न चागतिं कश्चिदिहानुपस्यति।
12335089c ज्ञानात्मकाः संयमिनो महर्षयः पश्यंति नित्यं पुरुषं गुणाधिकम्।।

ई महात्मन गतियन्नु यारू तिळियलाररु. अवन आगमनद विषयवन्नू यारू अरियलाररु. ज्ञानस्वरूपरागिरुव महर्षिगळु मात्र अनंतगुण संपन्न नित्य आ पुरुषनन्नु नोडुत्तारॆ.”

समाप्ति इति श्रीमहाभारते शांति पर्वणि मोक्षधर्म पर्वणि नारायणीये पंचत्रिंशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। इदु श्रीमहाभारतदल्लि शांति पर्वदल्लि मोक्षधर्म पर्वदल्लि नारायणीय ऎन्नुव मुन्नूरामूवत्तैदने अध्यायवु.

  1. शौनक उवाच (भारत दर्शन). ↩︎

  2. श्रोण्यौ (भारत दर्शन). ↩︎

  3. देवेन (भारत दर्शन). ↩︎

  4. मॊदलु ई अधिक श्लोकविदॆ: अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्। विविधा च तथा चेष्टा दैवं चैवात्र पंचमम्।। अर्थात्: अधिष्ठान, कर्ता, करण नानाविधद चेष्टॆगळु मत्तु दैव इवु पंचकारणगळु. (भारत दर्शन) ↩︎