231: शुकानुप्रश्नः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

शांति पर्व

मोक्षधर्म पर्व

अध्याय 231

सार

ज्ञानद साधनॆ मत्तु महिमॆ (1-34).

12231001 भीष्म उवाच।
12231001a इत्युक्तोऽभिप्रशस्यैतत्परमर्षेस्तु शासनम्।
12231001c मोक्षधर्मार्थसंयुक्तमिदं प्रष्टुं प्रचक्रमे।।

भीष्मनु हेळिदनु: “हीगॆ महर्षियु उपदेशिसलु अवन शासनवन्नु प्रशंसिसि शुकनु मोक्षधर्मार्थसंयुक्तवाद ई प्रश्नॆयन्नु केळलु उपक्रमिसिदनु.

12231002 शुक उवाच।
12231002a प्रजावान्1 श्रोत्रियो यज्वा वृद्धः प्रज्ञोऽनसूयकः।
12231002c अनागतमनैतिह्यं कथं ब्रह्माधिगच्चति।।

शुकनु हेळिदनु: “संतानवन्नु पडॆद, श्रोत्रीयनाद, याज्ञिकनाद, अनसूयकनाद मत्तु शुद्ध बुद्धियुळ्ळवनु इदु हीगॆ ऎंदु निष्कर्षिसलु असाध्यवागिरुव ब्रह्मवन्नु हेगॆ पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ?

12231003a तपसा ब्रह्मचर्येण सर्वत्यागेन मेधया।
12231003c सांख्ये वा यदि वा योगे एतत्पृष्टोऽभिधत्स्व मे।।

अवनु अदन्नु तपस्सिनिंद अथवा ब्रह्मचर्यदिंद अथवा सर्वत्यागदिंद अथवा मेधाशक्तियिंद अथवा ज्ञानदिंद अथवा योगदिंद – यावुदरिंद पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ?

12231004a मनसश्चेंद्रियाणां चाप्यैकाग्र्यं समवाप्यते।
12231004c येनोपायेन पुरुषैस्तच्च व्याख्यातुमर्हसि।।

याव उपायदिंद मनुष्यनु मनस्सु मत्तु इंद्रियगळन्नु एकाग्रगॊळिसबल्लनु? इदर कुरितु हेळबेकु.”

12231005 व्यास उवाच।
12231005a नान्यत्र विद्यातपसोर्नान्यत्रेंद्रियनिग्रहात्।
12231005c नान्यत्र सर्वसंत्यागात्सिद्धिं विंदति कश्चन।।

व्यासनु हेळिदनु: “विद्यॆ, तपस्सु, इंद्रियनिग्रह, मत्तु सर्वत्याग – इवुगळ हॊरतागि यारू सिद्धियन्नु हॊंदुवुदिल्ल.

12231006a महाभूतानि सर्वाणि पूर्वसृष्टिः स्वयंभुवः।
12231006c भूयिष्ठं प्राणभृद्ग्रामे निविष्टानि शरीरिषु।।

सर्व पंचमहाभूतगळू स्वयंभुविनिंद मॊदलु सृष्टिसल्पट्टवु. अवु समस्त प्राणिसमुदायगळल्लियू शरीरिगळल्लियू अधिकवागि सेरिकॊंडिवॆ.

12231007a भूमेर्देहो जलात्सारो ज्योतिषश्चक्षुषी स्मृते।
12231007c प्राणापानाश्रयो वायुः खेष्वाकाशं शरीरिणाम्।।

देहवु भूमितत्त्वदिंदलू, सारवु जलतत्त्वदिंदलू, कण्णुगळु ज्योतितत्त्वदिंदलू आगिवॆयॆंदु हेळुत्तारॆ. प्राणापानगळु वायुवन्नाश्रयिसिवॆ मत्तु रंध्रगळु आकाशतत्त्वदिंद उंटागिवॆ.

12231008a क्रांते विष्णुर्बले शक्रः कोष्ठेऽग्निर्भुक्तमर्चति।
12231008c कर्णयोः प्रदिशः श्रोत्रे जिह्वायां वाक्सरस्वती।।

नडुगॆयल्लि विष्णुविद्दानॆ. भुजबलदल्लि इंद्रनिद्दानॆ. जठरदल्लि अग्नियु भोजनवन्नु बयसुत्तानॆ. किविगळल्लि श्रवणशक्ति मत्तु दिक्कुगळिवॆ. नालिगॆयल्लि मातु मत्तु सरस्वतियरिद्दारॆ.

12231009a कर्णौ त्वक्चक्षुषी जिह्वा नासिका चैव पंचमी।
12231009c दर्शनानींद्रियोक्तानि द्वाराण्याहारसिद्धये।।

किविगळु, चर्म, कण्णुगळु, नालिगॆ, मत्तु ऐदनॆयदागि मूगु – इवु ज्ञानेंद्रियगळु. इवुगळन्नु विषयानुभवगळ द्वारवॆंदु हेळुत्तारॆ.

12231010a शब्दं स्पर्शं तथा रूपं रसं गंधं च पंचमम्।
12231010c इंद्रियाणि पृथक्त्वर्थान्मनसो दर्शयंत्युत।।

शब्द, स्पर्श, रूप, रस, मत्तु ऐदनॆय गंध इवु इंद्रियगळ विषयगळु. इवु इंद्रियगळिगिंत यावागलू प्रत्येकवागिरुववु ऎंदु तिळियबेकु.

12231011a इंद्रियाणि मनो युंक्ते वश्यान्यंतेव वाजिनः।
12231011c मनश्चापि सदा युंक्ते भूतात्मा हृदयाश्रितः।।

सारथियु कडिवाणगळिंद कुदुरॆगळन्नु नियंत्रिसि नडॆसुवंतॆ मनस्सु इंद्रियगळन्नु तन्न वशदल्लिरिसिकॊंडु इच्छानुसारवागि विषयगळ कडॆ प्रचोदिसुत्तिरुत्तदॆ. आदरॆ हृदयदल्लिरुव भूतात्मनु सदा मनस्सन्नु नियंत्रिसुत्तिरुत्तानॆ.

12231012a इंद्रियाणां तथैवेषां सर्वेषामीश्वरं मनः।
12231012c नियमे च विसर्गे च भूतात्मा मनसस्तथा।।

मनस्सु हेगॆ ऎल्लरीतियल्लियू इंद्रियगळ ईश्वरनो हागॆ भूतात्मनू कूड मनस्सन्नु ऒळक्कॆ ऎळॆदुकॊळ्ळुवुदरल्लि मत्तु हॊरक्कॆ बिडुवुदरल्लि ईश्वरनागिद्दानॆ.

12231013a इंद्रियाणींद्रियार्थाश्च स्वभावश्चेतना मनः।
12231013c प्राणापानौ च जीवश्च नित्यं देहेषु देहिनाम्।।

इंद्रियगळु, इंद्रियार्थगळु, स्वभावगळु, चेतन, मनस्सु, प्राणापानगळु मत्तु नित्यवू देहिगळ देहगळल्लि इरुत्तवॆ.

12231014a आश्रयो नास्ति सत्त्वस्य गुणशब्दो न चेतना।
12231014c सत्त्वं हि तेजः सृजति न गुणान्वै कदा चन।।

शुद्ध बुद्धिगॆ गुणगळागली, शब्दादि इंद्रियविषयगळागली, चेतनवागली आश्रयस्थानवल्ल. एकॆंदरॆ बुद्धिये तेजस्सन्नु सृष्टिसुत्तदॆ. बुद्धियु त्रिगुणात्मक प्रकृतियन्नु सृष्टिसुवुदिल्ल. आदरॆ बुद्धियु प्रकृतिय कार्यवे आगिदॆ.

12231015a एवं सप्तदशं देहे वृतं षोडशभिर्गुणैः।
12231015c मनीषी मनसा विप्रः पश्यत्यात्मानमात्मनि।।

हीगॆ बुद्धिवंत विप्रनु देहदल्लि हदिनारु गुणगळिंद2 आवृतनागिरुव हदिनेळनॆय परमात्मनन्नु अंतःकरणदल्लि साक्षात्करिसिकॊळ्ळुत्तानॆ.

12231016a न ह्ययं चक्षुषा दृश्यो न च सर्वैरपींद्रियैः।
12231016c मनसा संप्रदीप्तेन महानात्मा प्रकाशते।।

आ परमात्मनन्नु कण्णुगळिंद नोडुवुदक्कागुवुदिल्ल. सर्व इंद्रियगळिंदलू अवनन्नु तिळियुवुदक्कागुवुदिल्ल. विशुद्ध मनस्सिन दीपदिंदले महान् आत्मवु प्रकाशिसुत्तदॆ.

12231017a अशब्दस्पर्शरूपं तदरसागंधमव्ययम्।
12231017c अशरीरं शरीरे स्वे निरीक्षेत निरिंद्रियम्।।

आत्मतत्त्ववु शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंधगळिंद रहितवागिदॆ. अविकारियागिदॆ. अदक्कॆ शरीरविल्ल. इंद्रियगळिल्ल. आदरू अदन्नु शरीरदल्लिये काणबहुदागिदॆ3.

12231018a अव्यक्तं व्यक्तदेहेषु मर्त्येष्वमरमाश्रितम्।
12231018c योऽनुपश्यति स प्रेत्य कल्पते ब्रह्मभूयसे।।

व्यक्तदेहदल्लि अव्यक्तनागिरुव मत्तु सायुव देहवन्नु आश्रयिसिरुव आ अमरनन्नु काणुववनु मरणानंतर ब्रह्मभूयनागुत्तानॆ.

12231019a विद्याभिजनसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
12231019c शुनि चैव श्वपाके च पंडिताः समदर्शिनः।।

पंडितरु विद्या-कुल संपन्ननागिरुव ब्राह्मणनल्लियू, गोविनल्लियू, नायियल्लियू, नायियमांसवन्नु तिन्नुववनल्लियू, साम्यवन्नु काणुत्तारॆ.

12231020a स हि सर्वेषु भूतेषु जंगमेषु ध्रुवेषु च।
12231020c वसत्येको महानात्मा येन सर्वमिदं ततम्।।

यारिंद ई सर्ववू आगिवॆयो आ महान् आत्मनॊब्बने सर्व चराचरप्राणिगळल्लि वासमाडुत्तिद्दानॆ.

12231021a सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
12231021c यदा पश्यति भूतात्मा ब्रह्म संपद्यते तदा।।

भूतात्मनु यावाग सर्वभूतगळल्लि तन्नन्नु मत्तु सर्वभूतगळन्नु तन्नल्लि कंडुकॊळ्ळुत्तानो आग अवनु ब्रह्मभाववन्नु हॊंदुत्तानॆ.

12231022a यावानात्मनि वेदात्मा तावानात्मा परात्मनि।
12231022c य एवं सततं वेद सोऽमृतत्वाय कल्पते।।

तन्नल्लि याव आत्मनिद्दानो अदे आत्मनु पररल्लियू इद्दानॆ ऎंदु सततवू तिळिदुकॊंडिरुववनु अमृतत्त्ववन्नु हॊंदुत्तानॆ.

12231023a सर्वभूतात्मभूतस्य सर्वभूतहितस्य च।
12231023c देवापि मार्गे मुह्यंति अपदस्य पदैषिणः।।

सर्वभूतात्मभूत सर्वभूतहित मत्तु अस्पष्टमार्गनाद आ परमात्मन पदवन्नु बयसुव देवतॆगळू कूड मार्गदल्लि भ्रमॆगॊळ्ळुत्तारॆ.

12231024a शकुनीनामिवाकाशे जले वारिचरस्य वा।
12231024c यथा गतिर्न दृश्येत तथैव सुमहात्मनः।।

आकाशदल्लि पक्षिगळ पदचिह्नॆगळु मत्तु नीरिनल्लि मीनुगळ पदचिह्नॆगळु हेगॆ अगोचरवागिरुववो हागॆ महात्मर मार्गगळू काणसिगुवुदिल्ल.

12231025a कालः पचति भूतानि सर्वाण्येवात्मनात्मनि।
12231025c यस्मिंस्तु पच्यते कालस्तं न वेदेह कश्चन।।

कालनु सर्वभूतगळन्नू तन्नल्लि सेरिसिकॊंडु बेयिसुत्तिरुत्तानॆ. आदरॆ कालनन्ने बेयिसुव परमात्मनन्नु यारू तिळियरु.

12231026a न तदूर्ध्वं न तिर्यक्च नाधो न च तिरः पुनः।
12231026c न मध्ये प्रतिगृह्णीते नैव कश्चित्कुतश्चन।।

अवनन्नु मेलागली, कॆळगागली, अक्क-पक्कदल्लागली, मध्यदल्लागली – यावुदू यावकडॆयिंदलू, ऎल्लियू हिडिदुकॊळ्ळलु साध्यविल्ल.

12231027a सर्वेऽंतःस्था इमे लोका बाह्यमेषां न किं चन।
12231027c यः सहस्रं समागच्चेद्यथा बाणो गुणच्युतः।।
12231028a नैवांतं कारणस्येयाद्यद्यपि स्यान्मनोजवः।

ई ऎल्ल लोकगळू अवनल्लिये अडगिकॊंडिवॆ. अवन हॊरगॆ एनू इरुवुदिल्ल. ऒंदु साविर बाणगळन्नु ऒंदे समनॆ ऒंदाद मेलॆ ऒंदरंतॆ मनोवेगदल्लि प्रयोगिसिदरू सर्वक्कू कारणवागिरुव अदर कॊनॆयन्नू मुट्टुवुदिल्ल.

12231028c तस्मात्सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरं नास्ति स्थूलतरं ततः।।
12231029a सर्वतःपाणिपादांतं सर्वतोक्षिशिरोमुखम्।
12231029c सर्वतःश्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।

अदक्किंतलू सूक्ष्मतरवादुदु इल्ल. अदक्किंतलू स्थूलवादुदू इल्ल. सर्वतः पाणि-पादगळन्नुळ्ळ, सर्वतः शिर-मुखगळन्नुळ्ळ, सर्वतः किविगळन्नुळ्ळ अदु सर्वलोकगळन्नू आवरिसिकॊंडिदॆ.

12231030a तदेवाणोरणुतरं तन्महद्भ्यो महत्तरम्।
12231030c तदंतः सर्वभूतानां ध्रुवं तिष्ठन्न दृश्यते।।

आ ब्रह्मवस्तुवु अणुविगिंतलू चिक्कदु. अति दॊड्डदक्किंतलू दॊड्डदु. सर्वभूतगळल्लियू निश्चयवागि इरुव अदु यारिगू काणिसुवुदिल्ल.

12231031a अक्षरं च क्षरं चैव द्वैधीभावोऽयमात्मनः।
12231031c क्षरः सर्वेषु भूतेषु दिव्यं ह्यमृतमक्षरम्।।

अदक्कॆ अक्षर मत्तु क्षर ऎंब ऎरडू भावगळिवॆ. सर्वभूतगळल्लियू अदर क्षरभावविदॆ. अवुगळल्लिरुव अक्षरभाववु दिव्यवादुदु मत्तु अमृतवु4.

12231032a नवद्वारं पुरं गत्वा हंसो हि नियतो वशी।
12231032c ईशः सर्वस्य भूतस्य स्थावरस्य चरस्य च।।

सर्वभूतगळ – स्थावर जंगमगळ – ईशनु नवद्वारगळिरुव पुरक्कॆ होगि अदर वशनागि हंसनॆंब हॆसरिनिंद निवासिसुत्तानॆ.

12231033a हानिभंगविकल्पानां नवानां संश्रयेण च।
12231033c शरीराणामजस्याहुर्हंसत्वं पारदर्शिनः।।

जन्मरहितनागिद्दरू अदु हॊस हॊस शरीरगळल्लि आश्रयिसि हानि, भंग मत्तु विकल्पगळन्नु स्वेच्छॆयिंद संग्रहिसुवुदरिंद अदक्कॆ तत्त्वज्ञानिगळु हंस ऎंदु हेळिद्दारॆ.

12231034a हंसोक्तं चाक्षरं चैव कूटस्थं यत्तदक्षरम्।
12231034c तद्विद्वानक्षरं प्राप्य जहाति प्राणजन्मनी।।

हंस ऎंदु करॆयल्पट्टिरुववने अक्षरनु. आ अक्षरने कूटस्थनु. आ अक्षरनन्नु पडॆदु विद्वांसरु प्राणजन्मगळ बंधनगळन्नु कळचिकॊळ्ळुत्तारॆ.”

समाप्ति

इति श्रीमहाभारते शांतिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि शुकानुप्रश्ने एकत्रिंशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि शांतिपर्वदल्लि मोक्षधर्मपर्वदल्लि शुकानुप्रश्न ऎन्नुव इन्नूरामूवत्तॊंदने अध्यायवु.


  1. प्रज्ञावान् (भारत दर्शन). ↩︎

  2. हदिनारु गुणगळु: ऐदु इंद्रियगळु, ऐदु इंद्रियार्थगळु, स्वभाव, चेतन, मनस्सु, प्राण, अपान मत्तु जीव. (भारत दर्शन) ↩︎

  3. शरीरदिंदल्लदे आत्मनन्नु बेरॆ यावुदरिंदलू काणलु/अनुभविसलु साध्यविल्ल. ↩︎

  4. द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च। क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।। लोकदल्लि इब्बरु पुरुषरिद्दारॆ: क्षर मत्तु अक्षर. सर्वभूतगळु क्षर. अवुगळल्लिरुव कूटस्थनु अक्षर. (भीष्मपर्व, भगवद्गीता पर्व, अध्याय 37, श्लोक 16). ↩︎