प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
शांति पर्व
मोक्षधर्म पर्व
अध्याय 172
सार
प्रह्राद मत्तु आजगर वृत्तियन्नाचरिसुत्तिद्द मुनिय संवाद (1-37).
12172001 युधिष्ठिर उवाच।
12172001a केन वृत्तेन वृत्तज्ञ वीतशोकश्चरेन्महीम्।
12172001c किं च कुर्वन्नरो लोके प्राप्नोति परमां गतिम्।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “सदाचारवन्नु तिळिदिरुव पितामह! मनुष्यनु याव आचार-व्यवहारगळिंद शोकरहितनागि प्रपंचपर्यटन माडबल्लनु मत्तु याव कर्मवन्नु माडुवुदरिंद परम गतियन्नु हॊंदुत्तानॆ?”
12172002 भीष्म उवाच।
12172002a अत्राप्युदाहरंतीममितिहासं पुरातनम्।
12172002c प्रह्रादस्य च संवादं मुनेराजगरस्य च।।
भीष्मनु हेळिदनु: “इदक्कॆ संबंधिसिदंतॆ पुरातन इतिहासवाद प्रह्राद1 मत्तु अजगर वृत्तिय मुनिय नडुविन संवादवन्नु उदाहरिसुत्तारॆ.
12172003a चरंतं ब्राह्मणं कं चित्कल्यचित्तमनामयम्2।
12172003c पप्रच्च राजन्प्रह्रादो बुद्धिमान्प्राज्ञसंमतः।।
राजन्! प्रपंचपर्यटनॆ माडुत्तिद्द ओर्व सुदृढचित्त दुःख-शोकरहित मत्तु प्राज्ञसम्मत बुद्धिमान् ब्राह्मणनन्नु प्रह्रादनु केळिदनु:
12172004a स्वस्थः शक्तो मृदुर्दांतो निर्विवित्सोऽनसूयकः।
12172004c सुवाग्बहुमतो लोके प्राज्ञश्चरसि बालवत्।।
“स्वस्थ, शक्तिवंत, मृदु, दांत, कर्मारंभगळन्नु माडद, अनसूयक, सुंदरवागि मातनाडुव, बहुमत प्राज्ञनाद नीनु बालकनंतॆ लोकदल्लि संचरिसुत्तिरुवॆ.
12172005a नैव प्रार्थयसे लाभं नालाभेष्वनुशोचसि।
12172005c नित्यतृप्त इव ब्रह्मन्न किं चिदवमन्यसे3।।
ब्रह्मन्! नीनु याव लाभवन्नू बयसुत्तिल्ल मत्तु हानियादाग अदक्कागि शोकिसुवुदू इल्ल. नित्यतृप्तनागिरुव नीनु यावुदन्नू परिगणिसुवुदिल्ल.
12172006a स्रोतसा ह्रियमाणासु प्रजास्वविमना इव।
12172006c धर्मकामार्थकार्येषु कूटस्थ इव लक्ष्यसे।।
ऎल्लरू कामाक्रोधादि प्रवाहदल्लि कॊच्चिकॊंडु होगुत्तिरुवाग नीनु अवुगळल्लि उदासीननंतिद्दु धर्मकामार्थकार्यगळल्लियू कूटस्थनंतॆ4 काणुत्तिरुवॆ.
12172007a नानुतिष्ठसि धर्मार्थौ न कामे चापि वर्तसे।
12172007c इंद्रियार्थाननादृत्य मुक्तश्चरसि साक्षिवत्।।
नीनु धर्मार्थ संबंधी कार्यगळ अनुष्ठानमाडुत्तिल्ल मत्तु कामदल्लियू निन्न प्रवृत्तियिल्ल. नीनु इंद्रियगळ संपूर्ण विषयगळन्नू उपेक्षिसि साक्षियंतॆ मुक्तरूपदल्लि संचरिसुत्तिरुवॆ.
12172008a का नु प्रज्ञा श्रुतं वा किं वृत्तिर्वा का नु ते मुने।
12172008c क्षिप्रमाचक्ष्व मे ब्रह्मन् श्रेयो यदिह मन्यसे।।
ब्रह्मन्! मुने! निन्न प्रज्ञॆयु ऎंथहुदु? नीनु एनन्नु अध्ययनमाडिरुवॆयॆंदु हीगिरुवॆ? निन्न वृत्तियु यावुदु? इल्लि ननगॆ श्रेयस्सन्नुंटुमाडुवुदु यावुदु ऎंदु निन्न मत? बेगने हेळु.”
12172009a अनुयुक्तः स मेधावी लोकधर्मविधानवित्।
12172009c उवाच श्लक्ष्णया वाचा प्रह्रादमनपार्थया।।
प्रह्रादनु हीगॆ प्रार्थिसलु लोकधर्मद विधानवन्नु तिळिदिद्द मेधावी मुनियु मधुरवाद अर्थयुक्तवाद ई मातुगळन्नाडिदनु:
12172010a पश्यन् प्रह्राद भूतानामुत्पत्तिमनिमित्ततः।
12172010c ह्रासं वृद्धिं विनाशं च न प्रहृष्ये न च व्यथे।।
“प्रह्राद! नोडु! प्रपंचदल्लि भूतगळ उत्पत्ति, वृत्ति, अवनति मत्तु विनाश – इवुगळॆल्लवू कारणविल्लदॆये नडॆयुत्तवॆ. अदक्कागि नानु हर्षपडुवुदू इल्ल. व्यथॆपडुवुदू इल्ल.
12172011a स्वभावादेव संदृश्य वर्तमानाः प्रवृत्तयः।
12172011c स्वभावनिरताः सर्वाः परितप्ये5 न केन चित्।।
पूर्वकृत कर्मानुसार उंटागिरुव स्वभावदिंदले प्राणिगळ वर्तमान प्रवृत्तिगळु प्रकटवागुत्तवॆ. आदुदरिंद समस्त प्रजॆगळू स्वभावदल्लिये तत्पररागिरुत्तारॆ. अवरिगॆ बेरॆ याव आश्रयवू इल्ल. ई रहस्यवन्नु तिळिदु मनुष्यनिगॆ यावुदे परिस्थितियल्लियू परितपिसबेकागिल्ल.
12172012a पश्यन्प्रह्राद संयोगान्विप्रयोगपरायणान्।
12172012c संचयांश्च विनाशांतान्न क्व चिद्विदधे मनः।।
प्रह्राद! नोडु! संयोगगळु वियोगगळल्लिये कॊनॆगॊळ्ळुत्तवॆ. संचयगळॆल्लवू विनाशदल्लिये अंत्यवागुत्तवॆ. इदन्नु नोडि नन्न मनस्सु संयोग-संचयगळिंद दूरसरिदिदॆ. यावुदरल्लियू प्रवृत्तवागिल्ल.
12172013a अंतवंति च भूतानि गुणयुक्तानि पश्यतः।
12172013c उत्पत्तिनिधनज्ञस्य किं कार्यमवशिष्यते।।
सत्त्व-रजो-तमोगुणयुक्तवाद भूतगळॆल्लवू अंत्यवागुवुदन्नु नोडुत्तिरुववनिगॆ मत्तु उत्पत्ति-निधनगळन्नु तिळिदिरुववनिगॆ इल्लि माडबेकाद कार्यवादरू एनु उळिदुकॊंडिदॆ?
12172014a जलजानामपि ह्यंतं पर्यायेणोपलक्षये।
12172014c महतामपि कायानां सूक्ष्माणां च महोदधौ।।
महासागरदल्लि हुट्टि वासिसुत्तिरुव विशाल शरीरगळ तिमिंगिलगळू मत्तु सूक्ष्म क्रिमि-कीटगळू मत्तॆ मत्तॆ विनाशगॊळ्ळुवुदन्नु नानु नोडुत्तेनॆ.
12172015a जंगमस्थावराणां च भूतानामसुराधिप।
12172015c पार्थिवानामपि व्यक्तं मृत्युं पश्यामि सर्वशः।।
असुराधिप! भूमिय मेलिरुव स्थावर-जंगम प्राणिगळॆल्लवू मृत्युहॊंदुवुदन्नु नानु स्पष्टवागि नोडुत्तिद्देनॆ.
12172016a अंतरिक्षचराणां च दानवोत्तम पक्षिणाम्।
12172016c उत्तिष्ठति यथाकालं मृत्युर्बलवतामपि।।
दानवोत्तम! आकाशदल्लि संचरिसुव महाबलशाली पक्षिगळिगू कालानुक्रमवागि मृत्युवु प्राप्तवागुत्तदॆ.
12172017a दिवि संचरमाणानि ह्रस्वानि च महांति च।
12172017c ज्योतींषि च यथाकालं पतमानानि लक्षये।।
आकाशदल्लि संचरिसुव चिक्क मत्तु दॊड्ड ज्योतिर्मय नक्षत्रगळू यथाकालदल्लि कॆळक्कॆ बीळुवुदु तोरुत्तदॆ.
12172018a इति भूतानि संपश्यन्ननुषक्तानि मृत्युना।
12172018c सर्वसामान्यतो विद्वान् कृतकृत्यः सुखं स्वपे।।
हीगॆ नानु सर्व भूतगळू मृत्युविनिंद बंधितवागिरुवुदन्नु नोडुत्तेनॆ. इदक्कागिये तत्त्ववन्नु तिळिदु कृतकृत्यनागि ऎल्लदर कुरितु समान भाववन्निट्टुकॊंडु सुखवागि निद्रिसुत्तेनॆ.
12172019a सुमहांतमपि ग्रासं ग्रसे लब्धं यदृच्चया।
12172019c शये पुनरभुंजानो दिवसानि बहून्यपि।।
दैवेच्छॆयिंद आकस्मिकवागि हॆच्चिन आहारवु सिक्किदरॆ अष्टन्नू तिंदुबिडुत्तेनॆ. अदू सिक्कदिद्दरॆ अनेक दिवसगळ वरॆगॆ आहारविल्लदे मलगुत्तेनॆ.
12172020a आस्रवत्यपि6 मामन्नं पुनर्बहुगुणं बहु।
12172020c पुनरल्पगुणं स्तोकं पुनर्नैवोपपद्यते।।
कॆलवॊम्मॆ बहुगुणयुक्त समृद्ध मृष्टान्न भोजनवु दॊरॆयुत्तदॆ. कॆलवॊम्मॆ स्वल्पवे आहारवु दॊरॆयुत्तदॆ. कॆलवॊम्मॆ अत्यल्प आहारवु दॊरकिदरॆ इन्नु कॆलवॊम्मॆ आहारवे दॊरकुवुदिल्ल.
12172021a कणान्कदा चित्खादामि पिण्याकमपि च ग्रसे।
12172021c भक्षये शालिमांसानि भक्षांश्चोच्चावचान्पुनः।।
ऒम्मॊम्मॆ काळिन किरुनुच्चन्ने तिन्नुत्तेनॆ. कॆलवॊम्मॆ ऎण्णॆतॆगॆद हिंडियन्ने तिन्नुत्तेनॆ. कॆलवॊम्मॆ शाल्यान्नादिगळन्नु तिन्नुत्तेनॆ. इन्नु कॆलवॊम्मॆ भक्षगळु दॊरकिदाग अवन्नू तिन्नुत्तेनॆ.
12172022a शये कदा चित्पर्यंके भूमावपि पुनः शये।
12172022c प्रासादेऽपि च मे शय्या कदा चिदुपपद्यते।।
कॆलवॊम्मॆ पर्यंकद मेलॆ मलगुत्तेनॆ. पुनः इन्नॊम्मॆ नॆलद मेलॆ मलगुत्तेनॆ. कॆलवॊम्मॆ मलगलु भवनगळल्लि प्रासादगळू दॊरॆयुत्तवॆ.
12172023a धारयामि च चीराणि शाणीं क्षौमाजिनानि च।
12172023c महार्हाणि च वासांसि धारयाम्यहमेकदा।।
नारुमडियन्नुडुत्तेनॆ. सॆणबिन बट्टॆगळन्नु धरिसुत्तेनॆ. कॆलवॊम्मॆ रेष्मॆ वस्त्रगळन्नू, कॆलवॊम्मॆ मृगचर्मवन्नू धरिसुत्तेनॆ. कॆलवॊम्मॆ पीतांबरगळन्नू उडुत्तेनॆ.
12172024a न संनिपतितं धर्म्यमुपभोगं यदृच्चया।
12172024c प्रत्याचक्षे न चाप्येनमनुरुध्ये सुदुर्लभम्।।
दैवेच्छॆयिंद ननगॆ धर्मानुकूलवाद भोग्यपदार्थगळु दॊरकिदरॆ अवन्नु नानु द्वेषिसुवुदिल्ल. उपभोगिसुत्तेनॆ. अंथह भोग्यवस्तुगळन्नु नानु निरीक्षिसुवुदिल्ल. दुर्लभवाद भोग्यवस्तुगळन्नु पडॆदुकॊळ्ळलु ऎंदू बयसुवुदू इल्ल.
12172025a अचलमनिधनं शिवं विशोकं शुचिमतुलं विदुषां मते निविष्टम्।
12172025c अनभिमतमसेवितं च मूढैर् व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
नानु यावागलू शुचियागिद्दु, सुदृढवाद, अमृतरूपवाद, मंगळकरवाद, शोकरहितवाद, परिशुद्धवाद, अनुपमवाद, विद्वांसर अभिमतक्कॆ अनुगुणवाद, मूढरु अनुमोदिसद, मत्तु आचरिसलु कष्टसाध्यवाद आजगरव्रत7वन्नु आचरिसुत्तेनॆ.
12172026a अचलितमतिरच्युतः स्वधर्मात् परिमितसंसरणः परावरज्ञः।
12172026c विगतभयकषायलोभमोहो व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
अचलित बुद्धियन्नु हॊंदि, स्वधर्मदिंद च्युतनागदे, प्रापंचिक विषयगळल्लि परिमितवाद व्यवहारवन्नु मात्रवे इट्टुकॊंडु, भय-अनुराग-लोभ मत्तु मोहगळिल्लदवनागि परमश्रेष्ठ परब्रह्मवन्नु तिळिदुकॊंडु परिशुद्धनागि ई आजगरव्रतवन्नु आचरिसुत्तेनॆ.
12172027a अनियतफलभक्ष्यभोज्यपेयं विधिपरिणामविभक्तदेशकालम्।
12172027c हृदयसुखमसेवितं कदर्यैर् व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
ई आजगर व्रतवु नन्न हृदयक्कॆ सुखवन्नु नीडुत्तिदॆ. इदरल्लि भक्ष्य-भोज्य, पेय मत्तु फल मॊदलादवुगळु दॊरॆयलु यावुदे नियत व्यवस्थॆयिरुवुदिल्ल. अनियतरूपदल्लि यावुदु सिक्किदरू अदरिंदले निर्वाहिसबेकागुत्तदॆ. ई व्रतदल्लि प्रारब्धद परिणामवन्नु अनुसरिसि देश मत्तु कालगळ विभागवु नियतवागिरुत्तदॆ. विषयलोलुप नीच मनुष्यनु ई व्रतवन्नु नडॆसलारनु. नानु पवित्र भावदिंद इदे व्रतवन्नु अनुसरिसुत्तेनॆ.
12172028a इदमिदमिति तृष्णयाभिभूतं जनमनवाप्तधनं विषीदमानम्।
12172028c निपुणमनुनिशाम्य तत्त्वबुद्ध्या व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
इदु बेकु, अदु बेकु, ऎल्लवू बेकु ऎंदु तृष्णॆयिंद कूडिदवरन्नू, धनवु सिगदे इरुव कारणदिंद निरंतर विषादहॊंदुववर दशॆयन्नू चॆन्नागि नोडि तात्त्विक बुद्धियिंद संपन्ननाद नानु पवित्रभावदिंद ई आजगरव्रतवन्नु आचरिसुत्तिद्देनॆ.
12172029a बहुविधमनुदृश्य चार्थहेतोः कृपणमिहार्यमनार्यमाश्रयंतम्।
12172029c उपशमरुचिरात्मवान् प्रशांतो व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
धनक्कागि श्रेष्ठ पुरुषरू नीच पुरुषरन्नु आश्रयिसुवुदन्नु नोडि धनदल्लिरुव नन्न रुचियु प्रशांतवागिबिट्टिदॆ. आदुदरिंद नानु नन्न स्वरूपवन्नु पडॆदुकॊंडु सर्वथा शांतनागिबिट्टिद्देनॆ मत्तु पवित्रभावदिंद ई आजगर व्रतवन्नु पालिसुत्तिद्देनॆ.
12172030a सुखमसुखमनर्थमर्थलाभं रतिमरतिं मरणं च जीवितं च।
12172030c विधिनियतमवेक्ष्य तत्त्वतोऽहं व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
सुख-असुख, लाभ-हानि, अनुकूल-प्रतिकूल हागू जीवन-मरण – इवॆल्लवू दैवक्कॆ अधीनवागिवॆ. इदन्नु यथार्थरूपदल्लि तिळिदुकॊंडु नानु शुद्धभावदिंद ई आजगरव्रतवन्नु पालिसुत्तिद्देनॆ.
12172031a अपगतभयरागमोहदर्पो धृतिमतिबुद्धिसमन्वितः प्रशांतः।
12172031c उपगतफलभोगिनो निशाम्य व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
नन्न भय, राग, मोह मत्तु अभिमानगळु नष्टवागिबिट्टिवॆ. नानु धृति, मति, मत्तु बुद्धिसंपन्ननागि प्रशांतनागिबिट्टिद्देनॆ. प्रारब्धवश तानागिये नन्न समीप बरुव वस्तुवन्ने उपभोगमाडुववरन्नु नोडि नानु पवित्रभावदिंद ई आजगर व्रतवन्नु पालिसुत्तिद्देनॆ.
12172032a अनियतशयनासनः प्रकृत्या दमनियमव्रतसत्यशौचयुक्तः।
12172032c अपगतफलसंचयः प्रहृष्टो व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
ननगॆ मलगिकॊळ्ळलु अथवा कुळितुकॊळ्ळलु नियत स्थानव्यावुदू इल्ल. नानु स्वभावतः दम, नियम, व्रत, सत्य मत्तु शौचाचार संपन्ननु. नन्न कर्मफलसंचयवु नाशवागिबिट्टिदॆ. नानु प्रसन्नतापूर्वकवागि पवित्रभावदिंद ई आजगर व्रतवन्नु पालिसुत्तिद्देनॆ.
12172033a अभिगत8मसुखार्थमीहनार्थैर् उपगतबुद्धिरवेक्ष्य चात्मसंस्थः।
12172033c तृषितमनियतं मनो नियंतुं व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
दुःखक्कॆ कारणवाद काम्यप्रयोजनगळिंद विरक्तराद आत्मनिष्ठ महापुरुषरन्नु नोडि नानु सुज्ञानवन्नु पडॆदुकॊंडिद्देनॆ. आसॆयिंद बद्धवागिरुव मत्तु चंचलवागिरुव मनस्सन्नु नियंत्रिसलोसुग नानु ई आजगर व्रतवन्नु पालिसुत्तिद्देनॆ.
12172034a न हृदयमनुरुध्यते मनो वा9 प्रियसुखदुर्लभतामनित्यतां च।
12172034c तदुभयमुपलक्षयन्निवाहं व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि।।
हृदयवन्नागली मनस्सन्नागली निरोधिसदे प्रियवन्नुंटुमाडुव विषयसुखगळिगागिये हातॊरॆयुववरन्नू मत्तु आ विषयसुखगळु अवरिगॆ लभिसदे इरुवुदन्नू, लभिसिदरू शाश्वतवागि उळियदे इरुवुदन्नू – ई ऎरडन्नु लक्ष्यविट्टु नोडुववनंतॆ नानु अवेक्षिसि इदक्कॆ औषधप्रायवागिरुव ई आजगरव्रतवन्नु पवित्रभावदिंद आचरिसुत्तिद्देनॆ.
12172035a बहु कथितमिदं हि बुद्धिमद्भिः कविभिरभिप्रथयद्भिरात्मकीर्तिम्।
12172035c इदमिदमिति तत्र तत्र तत्तत् स्वपरमतैर्गहनं प्रतर्कयद्भिः।।
तम्म कीर्तियन्नु विस्तारगॊळिसुव बुद्धिवंतरु तम्म मत्तु इतरर अभिप्रायगळिंद गहनवाद ई व्रतद विषयवागि तर्क-वितर्कगळन्नु माडुत्ता इदु हीगॆये सरि, इदन्नु हीगॆये आचरिसबेकु ऎंदु तम्म विचारगळन्नु अल्लल्लि हेळिरुत्तारॆ.
12172036a तदहमनुनिशाम्य विप्रयातं पृथगभिपन्नमिहाबुधैर्मनुष्यैः।
12172036c अनवसितमनंतदोषपारं नृषु विहरामि विनीतरोषतृष्णः।।
मूर्खमनुष्यरु ई व्रतद नियमानुष्ठानगळन्नु केळिये प्रपातदल्लि बिद्दवरंतॆ भयगॊळ्ळुत्तारॆ. महाविद्वांसरु इदर विषयदल्लि बेरॆ अभिप्रायवुळ्ळवरागिद्दारॆ. इदु अज्ञाननाशकवॆंदू समस्त दोषगळिंद पारुमाडुवुदॆंदू नानु तिळिदिद्देनॆ. आदुदरिंद तृष्णादोषदिंद विमुक्तनागि नानु मनुष्यर मध्यॆ संचरिसुत्तेनॆ.””
12172037 भीष्म उवाच।
12172037a अजगरचरितं व्रतं महात्मा य इह नरोऽनुचरेद्विनीतरागः।
12172037c अपगतभयमन्युलोभमोहः स खलु सुखी विहरेदिमं विहारम्।।
भीष्मनु हेळिदनु: “याव महापुरुषनु राग, भय, लोभ, मोह मत्तु क्रोधगळन्नु त्यजिसि ई आजगर व्रतवन्नु आचरिसुत्तानो अवनु ई प्रपंचदल्लि आनंददिंद विहरिसुत्तानॆ.”
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते शांतिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि अजगरप्रह्लादसंवादे द्विसप्तत्यधिकशतमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि शांतिपर्वदल्लि मोक्षधर्मपर्वदल्लि अजगरप्रह्लादसंवाद ऎन्नुव नूराऎप्पत्तॆरडने अध्यायवु.
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प्रह्लाद ऎंब पाठांतरविदॆ (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎
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कल्पचित्तमनामयम्। (गीता प्रॆस्). ↩︎
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किंचिदिव मन्यसे। (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎
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निर्व्यापारनंतॆ (भारत दर्शन). ↩︎
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परितुष्ये (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎
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अशयंत्यपि (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎
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प्रयत्नवे इल्लदे जीविसुव हॆब्बाविन व्रतवन्नु होलुव व्रत, हॆब्बाविन व्रत. अजगर ऎंदरॆ हॆब्बावु. काडिनल्लि ऎल्लियो मरद कॆळगॆ हॆब्बावु बिद्दुकॊंडिरुत्तदॆ. स्थूलशरीरियाद अदु ऎल्लिगू होगदे यावागलू ऒंदे जागदल्लि मरद कॊरडिनंतॆये बिद्दुकॊंडिरुत्तदॆ. आदरॆ अदर परिसरदल्लि यावुदे प्राणियु सिक्किदरू अदन्नु बिडदे नुंगिबिडुत्तदॆ. आ प्राणियु यावाग बरुत्तदॆ, हेगॆ अदक्कॆ आहारवागुत्तदॆ ऎंब प्रतीक्षेयेनू अदक्किरुवुदिल्ल. अदृष्टायुक्तवागि यावुदादरू प्राणियु यावागलो बंदु आ हाविगॆ आहारवागुत्तदॆ. अदरंतॆ आचरिसुवुदक्कॆ आजगरव्रतवॆंदु हॆसरु (भारत दर्शन). ↩︎
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अपगत (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎
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न हृदयमनुरुध्य वाङ्मनो वा। (गीता प्रॆस्/भारत दर्शन). ↩︎