प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
शांति पर्व
राजधर्म पर्व
अध्याय 72
सार
प्रजापरिपालनॆय अर्थ (1-33).
12072001 युधिष्ठिर उवाच।
12072001a कथं राजा प्रजा रक्षन्नाधिबंधेन युज्यते।
12072001c धर्मे च नापराध्नोति तन्मे ब्रूहि पितामह।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “पितामह! राजनु हेगॆ प्रजॆगळन्नु रक्षिसुत्तिद्दरॆ चिंतॆयल्लि मग्ननागुवुदिल्ल मत्तु धर्मद विषयदल्लि अपराधियागुवुदिल्ल ऎन्नुवुदन्नु हेळु.”
12072002 भीष्म उवाच।
12072002a समासेनैव ते तात धर्मान्वक्ष्यामि निश्चितान्।
12072002c विस्तरेण हि धर्माणां न जात्वंतमवाप्नुयात्।।
भीष्मनु हेळिदनु: “अय्या! निश्चित धर्मगळन्नु संक्षिप्तवागिये निनगॆ हेळुत्तेनॆ. ई ऎल्ल धर्मगळन्नु विस्तारवागि हेळहॊरटरॆ अदु मुगियुवंथहुद्दल्ल.
12072003a धर्मनिष्ठान् श्रुतवतो वेदव्रतसमाहितान्।
12072003c अर्चितान्वासयेथास्त्वं गृहे गुणवतो द्विजान्।।
12072004a प्रत्युत्थायोपसंगृह्य चरणावभिवाद्य च।
12072004c अथ सर्वाणि कुर्वीथाः कार्याणि सपुरोहितः।।
धर्मनिष्ठ, श्रुतवत, वेदव्रतसमाहित गुणवंत द्विजरन्नु निन्न मनॆगॆ करॆयिसि मेलॆद्दु अर्चसि स्वागतिसबेकु. अवर चरणगळिगॆ वंदिसि पुरोहितनॊंदिगॆ सर्व कर्मगळन्नू माडिसबेकु.
12072005a धर्मकार्याणि निर्वर्त्य मंगलानि प्रयुज्य च।
12072005c ब्राह्मणान्वाचयेथास्त्वमर्थसिद्धिजयाशिषः।।
हीगॆ धर्मकार्यगळन्नु मुगिसि मंगल वस्तुगळन्नु मुट्टि अर्थसिद्धिगागि जयाशीर्वचनगळन्नु ब्राह्मणर मुखेन हेळिसिकॊळ्ळबेकु.
12072006a आर्जवेन च संपन्नो धृत्या बुद्ध्या च भारत।
12072006c अर्थार्थं परिगृह्णीयात्कामक्रोधौ च वर्जयेत्।।
भारत! सरळनागिरबेकु. धैर्य-बुद्धिगळिंद संपन्ननागिरबेकु. यथार्थवादुदन्ने प्रतिग्रहिसबेकु. काम-क्रोधगळन्नु परित्यजिसबेकु.
12072007a कामक्रोधौ पुरस्कृत्य योऽर्थं राजानुतिष्ठति।
12072007c न स धर्मं न चाप्यर्थं परिगृह्णाति बालिशः।।
काम-क्रोधगळन्नु मुंदिट्टुकॊंडु अर्थवन्नु गळिसलु प्रयत्निसुव मूर्ख राजनु धर्मवन्नागली अर्थवन्नागली प्रहिग्रहिसलारनु.
12072008a मा स्म लुब्धांश्च मूर्खांश्च कामे चार्थेषु यूयुजः।
12072008c अलुब्धान्बुद्धिसंपन्नान्सर्वकर्मसु योजयेत्।।
लुब्धरन्नु मूर्खरन्नू कामार्थगळ साधनॆगॆ नियोजिसबेड. अलुब्धरन्नू बुद्धिसंपन्नरन्नू ऎल्ल कार्यगळिगॆ नियोजिसबेकु.
12072009a मूर्खो ह्यधिकृतोऽर्थेषु कार्याणामविशारदः।
12072009c प्रजाः क्लिश्नात्ययोगेन कामद्वेषसमन्वितः।।
कार्यगळल्लि कुशलनल्लद मत्तु काम-द्वेष समन्वितनाद मूर्खनन्नु अर्थसंग्रहक्कॆ अधिकारियन्नागि नियोजिसिकॊंडरॆ अवनु कुत्सित उपायगळिंद प्रजॆगळन्नु कष्टक्कीडुमाडुत्तानॆ.
12072010a बलिषष्ठेन शुल्केन दंडेनाथापराधिनाम्।
12072010c शास्त्रनीतेन लिप्सेथा वेतनेन धनागमम्।।
प्रजॆगळ आदायद आरनॆय ऒंदु भागवन्नु राजादयवन्नागि पडॆयबेकु. अपराधिगळिगॆ दंदवन्नु विधिसबेकु. शास्त्रानुसारवागि राजसेवकरिंद संरक्षत व्यापारिगळिंद धनवन्नु संग्रहिसबेकु.
12072011a दापयित्वा करं धर्म्यं राष्ट्रं नित्यं यथाविधि।
12072011c अशेषान्कल्पयेद्राजा योगक्षेमानतंद्रितः।।
धर्मानुकूलवागि करवन्नु तॆगॆदुकॊंडु धर्मदिंद यथाविधियागि नित्यवू आलसिकॆयिल्लदे राष्ट्रद योगक्षेमगळन्नु नोडिकॊळ्ळबेकु.
12072012a गोपायितारं दातारं धर्मनित्यमतंद्रितम्।
12072012c अकामद्वेषसंयुक्तमनुरज्यंति मानवाः।।
रक्षिसुव, दानमाडुव, धर्मनित्यनू, आलसिकॆयिल्लदवनू, कामद्वेषगळिल्लदवनू आद राजनन्नु प्रजॆगळु प्रीतिसुत्तारॆ.
12072013a मा स्माधर्मेण लाभेन लिप्सेथास्त्वं धनागमम्।
12072013c धर्मार्थावध्रुवौ तस्य योऽपशास्त्रपरो भवेत्।।
नीनु अधर्मपूर्वकवागि लाभद आसॆयिंद धनवन्नु संग्रहिसबेड. नीतिशास्त्रगळन्नु उल्लंघसिरुववनल्लि धर्म-अर्थ इवॆरडू स्थिरवागि निल्लुवुदिल्ल.
12072014a अपशास्त्रपरो राजा संचयान्नाधिगच्चति।
12072014c अस्थाने चास्य तद्वित्तं सर्वमेव विनश्यति।।
शास्त्रक्कॆ विरुद्धवागि वर्तिसुव राजनु धर्ममूलवागि अधिक धनवन्नु संग्रहिसुवुदिल्ल. अधर्ममूलकवागि पडॆद ऎल्ल धनवू दुर्व्ययवागि नाशवागुत्तदॆ.
12072015a अर्थमूलोऽपहिंसां च कुरुते स्वयमात्मनः।
12072015c करैरशास्त्रदृष्टैर्हि मोहात्संपीडयन्प्रजाः।।
अर्थवन्ने प्रधानवागिट्टुकॊंडु लोभि राजनु शास्त्रविरुद्धवागि प्रजॆगळन्नु पीडिसि अधिक तॆरिगॆगळ मूलक धनसंपादिसिदरॆ अदु अवनिगे पीडॆयन्नु तरुत्तदॆ.
12072016a ऊधश्चिंद्याद्धि यो धेन्वाः क्षीरार्थी न लभेत्पयः।
12072016c एवं राष्ट्रमयोगेन पीडितं न विवर्धते।।
हालन्नु अपेक्षिसुववनु हसुवु कॊडुवष्टु हालन्नु कॆच्चलिनिंद करॆदुकॊंडु तृप्तनागबेके हॊरतु कॆच्चलन्ने कत्तरिसबिडबारदु. हागॆ माडुवुदरिंद अवनिगॆ हालिन ऒंदु हनिय दॊरकुवुदिल्ल. हागॆये कुत्सित उपायगळिंद प्रजॆगळन्नु पीडिसिदरॆ राष्ट्रवु अभिवृद्धिहॊंदुवुदिल्ल.
12072017a यो हि दोग्ध्रीमुपास्ते तु स नित्यं लभते पयः।
12072017c एवं राष्ट्रमुपायेन भुंजानो लभते फलम्।
हसुवन्नु साकुववनिगॆ हालु नित्यवू दॊरॆयुत्तदॆ. हागॆये उपायदिंद राष्ट्रवन्नु भोगिसुववनिगॆ फलवु दॊरॆयुत्तदॆ.
12072018a अथ राष्ट्रमुपायेन भुज्यमानं सुरक्षितम्।
12072018c जनयत्यतुलां नित्यं कोशवृद्धिं युधिष्ठिर।।
युधिष्ठिर! सुरक्षितवागिट्टुकॊंडु उपायदिंद भोगिसुववन राष्ट्रदल्लि नित्यवू अतुल कोशवृद्धियागुत्तदॆ.
12072019a दोग्धि धान्यं हिरण्यं च प्रजा राज्ञि सुरक्षिता।
12072019c नित्यं स्वेभ्यः परेभ्यश्च तृप्ता माता यथा पयः।।
राजनिंद सुरक्षितवाद ई भूमियु तन्न करुविगल्लदे इतररिगू साकागुवष्टु हालन्नु कॊडुव तायिहसुविनंतॆ हसुगळु, धान्य, हिरण्य मत्तु संतानगळन्नु नीडुत्तिरुत्तदॆ.
12072020a मालाकारोपमो राजन्भव मांगारिकोपमः।
12072020c तथा युक्तश्चिरं राष्ट्रं भोक्तुं शक्यसि पालयन्।।
राजन्! नीनु हूविन मालॆकट्टुववनंतागु. इद्दिलु माडुववनंतागबेड. हागिद्दरॆ नीनु बहुकाल राष्ट्रवन्नु पालिसिकॊंडु भोगिसबल्लॆ.
12072021a परचक्राभियानेन यदि ते स्याद्धनक्षयः।
12072021c अथ साम्नैव लिप्सेथा धनमब्राह्मणेषु यत्।।
शत्रुगळ आक्रमणदिंदागि ऒंदुवेळॆ निन्न धनवु कडिमॆयादरॆ सामदिंद धनिक क्षत्रिय, वैश्य शूद्ररिंद धनवन्नु पडॆदुकॊळ्ळबेकु.
12072022a मा स्म ते ब्राह्मणं दृष्ट्वा धनस्थं प्रचलेन्मनः।
12072022c अंत्यायामप्यवस्थायां किमु स्फीतस्य भारत।।
भारत! नीनु ऎंतहुदे दुरवस्थॆयल्लिद्दरू, अंत्यावस्थॆयल्लिद्दरू, धनद अभावदिंद प्राणहोगुव समय बंदरू ऐश्वर्यवंत ब्राह्मणरन्नु नोडि अवरिंद धनवन्नु संग्रहिसबेकॆंब चांचल्यवु निन्न मनस्सिनल्लि मूडदिरलि. हीगिरुवाग नीनु ऐश्वर्यवंतनागिरुवाग ब्राह्मणन स्वत्तिन विषयदल्लि इन्नु हेळबेकागिल्ल.
12072023a धनानि तेभ्यो दद्यास्त्वं यथाशक्ति यथार्हतः।
12072023c सांत्वयन्परिरक्षंश्च स्वर्गमाप्स्यसि दुर्जयम्।।
यथाशक्ति यथार्हवागि ब्राह्मणरिगॆ नीनु धनवन्नु नीडुत्तले इरबेकु. अवरन्नु सांत्वनपूर्वकवागि परिरक्षिसुवुदरिंद नीनु जयिसलसाध्य स्वर्गवन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तीयॆ.
12072024a एवं धर्मेण वृत्तेन प्रजास्त्वं परिपालयन्।
12072024c स्वंतं पुण्यं यशोवंतं प्राप्स्यसे कुरुनंदन।।
कुरुनंदन! ई रीतियल्लि धर्मदिंद व्यवहरिसि प्रजॆगळन्नु नीनु परिपालिसि स्वंत पुण्यवन्नू गळिसुत्तीयॆ मत्तु यशोवंतनू आगुत्तीयॆ.
12072025a धर्मेण व्यवहारेण प्रजाः पालय पांडव।
12072025c युधिष्ठिर तथा युक्तो नाधिबंधेन योक्ष्यसे।।
पांडव! धर्मव्यवहारगळिंद प्रजॆगळन्नु पालिसु. युधिष्ठिर! आग नीनु मानसिक व्यथॆय बंधनक्कॆ ऒळगागुवुदिल्ल.
12072026a एष एव परो धर्मो यद्राजा रक्षते प्रजाः।
12072026c भूतानां हि यथा धर्मे रक्षणं च परा दया।।
राजनु प्रजॆगळन्नु रक्षिसुत्तिद्दानॆ ऎन्नुवुदे राजनादवनिगॆ परम धर्मवु. सर्ववन्नू रक्षिसुवुदु मत्तु इतररन्नु परम दयॆयिंद काणुवुदु इवे राजन धर्मगळु.
12072027a तस्मादेवं परं धर्मं मन्यंते धर्मकोविदाः।
12072027c यद्राजा रक्षणे युक्तो भूतेषु कुरुते दयाम्।।
आदुदरिंदले जीविगळिगॆ दयॆयन्नु तोरिसुत्ता राजनु रक्षिसुत्तिद्दानंदरॆ अदे परम धर्मवॆंदु धर्मकोविदरु मन्निसुत्तारॆ.
12072028a यदह्ना कुरुते पापमरक्षन्भयतः प्रजाः।
12072028c राजा वर्षसहस्रेण तस्यांतमधिगच्चति।।
प्रजॆगळन्नु भयदिंद ऒंदु हगलु रक्षिसदे इद्दरू राजनादवनु ऒंदु साविर वर्षगळु नरकदल्लि कळॆदनंतरवे आ पापवु कॊनॆयागुत्तदॆ.
12072029a यदह्ना कुरुते पुण्यं प्रजा धर्मेण पालयन्।
12072029c दश वर्षसहस्राणि तस्य भुंक्ते फलं दिवि।।
प्रजॆगळन्नु धर्मदिंद परिपालिसिद पुण्यवन्नु ऒंदु हगले माडिदरू अदर फलवन्नु राजनु हत्तु साविर वर्षगळु स्वर्गदल्लि भोगिसुत्तानॆ.
12072030a स्विष्टिः स्वधीतिः सुतपा लोकान्जयति यावतः।
12072030c क्षणेन तानवाप्नोति प्रजा धर्मेण पालयन्।।
आश्रमधर्मगळन्नु पालिसुववरु यागगळु, स्वाध्याय मत्तु महा तपस्सुगळिंद याव लोकवन्नु गॆल्लुत्तारो आ लोकगळन्नु प्रजॆगळन्नु धर्मदिंद पालिसुव राजनु क्षणदल्लिये पडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ.
12072031a एवं धर्मं प्रयत्नेन कौंतेय परिपालयन्।
12072031c इह पुण्यफलं लब्ध्वा नाधिबंधेन योक्ष्यसे।।
कौंतेय! हीगॆ प्रयत्नपट्टु धर्मवन्नु परिपालिसु. इदरिंद पुण्यफलवन्नु पडॆदु मनोव्यथॆय बंधनक्कॆ सिलुकुवुदिल्ल.
12072032a स्वर्गलोके च महतीं श्रियं प्राप्स्यसि पांडव।
12072032c असंभवश्च धर्माणामीदृशानामराजसु।
12072032e तस्माद्राजैव नान्योऽस्ति यो महत्फलमाप्नुयात्।।
पांडव! राजरल्लदवरिगॆ ई रीतिय धर्मवु असंभववु. स्वर्गलोकदल्लि नीनु महा श्रीयन्नु पडॆदुकॊळ्ळुत्तीयॆ. आदुदरिंद राज्यदिंदले ई महा फलवु प्राप्तवागुत्तदॆ. अन्यथा अल्ल.
12072033a स राज्यमृद्धिमत्प्राप्य धर्मेण परिपालयन्।
12072033c इंद्रं तर्पय सोमेन कामैश्च सुहृदो जनान्।।
धैर्यदिंद पडॆदुकॊंड ई राज्यवन्नु धर्मदिंद परिपालिसि सोमदिंद इंद्रनन्नु तृप्तिपडिसि कामगळिंद सुहृद जनरन्नु तृप्तिगॊळिसु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते शांति पर्वणि राजधर्म पर्वणि द्विसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारत शांति पर्वद राजधर्म पर्वदल्लि ऎप्पत्तॆरडने अध्यायवु.