047 भीष्मस्तवराजः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

शांति पर्व

राजधर्म पर्व

अध्याय 47

सार

भीष्मस्तवराजः (1-72).

12047001 जनमेजय उवाच।
12047001a शरतल्पे शयानस्तु भरतानां पितामहः।
12047001c कथमुत्सृष्टवान्देहं कं च योगमधारयत्।।

जनमेजयनु हेळिदनु: “शरतल्पदल्लि मलगिद्द भरतर पितामह भीष्मनु हेगॆ देहत्याग माडिदनु मत्तु आग अवनु याव योगधारणॆ माडिद्दनु?”

12047002 वैशंपायन उवाच।
12047002a शृणुष्वावहितो राजन्शुचिर्भूत्वा समाहितः।
12047002c भीष्मस्य कुरुशार्दूल देहोत्सर्गं महात्मनः।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “राजन्! कुरुशार्दूल! शुचियागि एकमनस्कनागि सावधानदिंद महात्म भीष्मन देहत्यागद कुरितु केळु.

12047003a निवृत्तमात्रे त्वयन उत्तरे वै दिवाकरे।
12047003c समावेशयदात्मानमात्मन्येव समाहितः।।

दिवाकरनु उत्तरायणक्कॆ तिरुगिदॊडनॆये भीष्मनु एकाग्रचित्तनागि तन्न मनस्सन्नु बुद्धियॊडनॆ मत्तु बुद्धियन्नु आत्मनल्लि लीनगॊळिसिदनु.

12047004a विकीर्णांशुरिवादित्यो भीष्मः शरशतैश्चितः।
12047004c शिश्ये परमया लक्ष्म्या वृतो ब्राह्मणसत्तमैः।।
12047005a व्यासेन वेदश्रवसा नारदेन सुरर्षिणा।
12047005c देवस्थानेन वात्स्येन तथाश्मकसुमंतुना।।
12047006a एतैश्चान्यैर्मुनिगणैर्महाभागैर्महात्मभिः।
12047006c श्रद्धादमपुरस्कारैर्वृतश्चंद्र इव ग्रहैः।।

नूरारु बाणगळिंद चुच्चल्पट्ट भीष्मनु किरणगळन्नु पसरिसुव सूर्यनंतॆयू; वेदगळन्नु तिळिदिद्द व्यास, सुरर्षि नारद, देवस्थान, वात्स्य, अश्मक, सुमंतु मत्तु इन्नू अनेक महात्म महाभाग मुनिगणगळु, श्रद्धॆ-शमोपेतराद ब्राह्मणसत्तमरिंद सुत्तुवरॆयल्पट्टु, ग्रहगळिंद सुत्तुवरॆयल्पट्ट चंद्रनंतॆ अपार कांतियिंद प्रकाशिसुत्तिद्दनु.

12047007a भीष्मस्तु पुरुषव्याघ्रः कर्मणा मनसा गिरा।
12047007c शरतल्पगतः कृष्णं प्रदध्यौ प्रांजलिः स्थितः।।

शरतल्पदल्लि मलगिद्द पुरुषव्याघ्र भीष्मनादरो कैमुगिदु कर्म-मनस्सु-वाणिगळ मूलक कृष्णनन्नु ध्यानिसतॊडगिदनु.

12047008a स्वरेण पुष्टनादेन तुष्टाव मधुसूदनम्।
12047008c योगेश्वरं पद्मनाभं विष्णुं जिष्णुं जगत्पतिम्।।

अवनु पुष्टनादद स्वरदल्लि मधुसूदन, योगेश्वर, पद्मनाभ, जिष्णु, जगत्पति विष्णुवन्नु स्तुतिसतॊडगिदनु.

12047009a कृतांजलिः शुचिर्भूत्वा वाग्विदां प्रवरः प्रभुम्।
12047009c भीष्मः परमधर्मात्मा वासुदेवमथास्तुवत्।।

शुचियागि आ वाग्विदरल्लि श्रेष्ठ परमधर्मात्म भीष्मनु प्रभु वासुदेवनन्नु ई रीति स्तुतिसिदनु:

12047010a आरिराधयिषुः कृष्णं वाचं जिगमिषामि याम्।
12047010c तया व्याससमासिन्या प्रीयतां पुरुषोत्तमः।।

“विवरवाद मत्तु संक्षेपवाद याव वाणियिंद कृष्णनन्नु आराधिसुवॆनो अदरिंदले आ पुरुषोत्तमनु सुप्रीतनागलि!

12047011a शुचिः शुचिषदं1 हंसं तत्परः परमेष्ठिनम्।
12047011c युक्त्वा सर्वात्मनात्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।।

शुचियागि तत्परनागि नन्न सर्ववन्नू आत्मनल्लि योजिसि आ शुचिषद, हंस, परमेष्टि, प्रजापतियन्नु शरणुहोगुत्तेनॆ.

12047012a 2यस्मिन्विश्वानि भूतानि तिष्ठंति च विशंति च। 12047012c गुणभूतानि भूतेशे सूत्रे मणिगणा इव।।
12047013a यस्मिन्नित्ये तते तंतौ दृढे स्रगिव तिष्ठति।
12047013c सदसद्ग्रथितं विश्वं विश्वांगे विश्वकर्मणि।।
12047014a हरिं सहस्रशिरसं सहस्रचरणेक्षणम्।
12047014c प्राहुर्नारायणं देवं यं विश्वस्य परायणम्।।
12047015a अणीयसामणीयांसं स्थविष्ठं च स्थवीयसाम्।
12047015c गरीयसां गरिष्ठं च श्रेष्ठं च श्रेयसामपि।।
12047016a यं वाकेष्वनुवाकेषु निषत्सूपनिषत्सु च।
12047016c गृणंति सत्यकर्माणं सत्यं सत्येषु सामसु।।
12047017a चतुर्भिश्चतुरात्मानं सत्त्वस्थं सात्वतां पतिम्।
12047017c यं दिव्यैर्देवमर्चंति गुह्यैः परमनामभिः।। 12047018a 3यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्। 12047018c भौमस्य ब्रह्मणो गुप्त्यै दीप्तमग्निमिवारणिः।।
12047019a यमनन्यो व्यपेताशीरात्मानं वीतकल्मषम्।
12047019c इष्ट्वानंत्याय गोविंदं पश्यत्यात्मन्यवस्थितम्।।
12047020a पुराणे पुरुषः प्रोक्तो ब्रह्मा प्रोक्तो युगादिषु।
12047020c क्षये संकर्षणः प्रोक्तस्तमुपास्यमुपास्महे।।

दारदल्लि पोणिसल्पट्ट मणिगळंतॆ विश्व-भूतगळु यारल्लि नॆलॆसि सेरिकॊंडिवॆयो अवनन्नु; गट्टियाद दारदिंद कट्टल्पट्ट हूविन मालॆयंतॆ यारल्लि ई विश्ववे दृढवागि निंतिरुवुदो आ विश्वांग विश्वकर्मियन्नु; विश्वपरायणनू, सहस्रशिरस्सुगळुळ्ळवनू, सहस्रचरणगळुळ्ळवनू, सहस्राक्षनू, मत्तु नारायणनॆंदु करॆयल्पडुव देवनन्नू; सूक्ष्मगळल्लि सूक्ष्मनू, स्थूलगळल्लि स्थूलनू, भारवादवुगळिगिंत भारवादवनू, श्रेष्ठवादवुगळल्लि श्रेष्ठनू आगिरुववनन्नु; वाक्4, अनुवाक्5, निषत्6, उपनिषत्तु मत्तु सत्य साम7गळल्लि यारन्नु सत्यकर्मनॆंदु वर्णिसुत्तारो अवनन्नु; नाल्करिंदाद चतुरात्मनन्नु8, सत्यदल्लि नॆलॆसिरुव सात्वतर ऒडॆयनन्नू, दिव्यवू गुह्यवू आद परम नामगळिंद यारन्नु अर्चिसुत्तारो आ देवनन्नु; भूमियल्लि ब्रह्मज्ञानवन्न रक्षिसलु अरणिय मंथनदिंद प्रज्वलिसव अग्नियन्नु हुट्टिसुवंतॆ देवकी देवी मत्तु वसुदेवरु हुट्टिसिद देवनन्नु; अनंत मोक्षवन्नु बयसि, कामनॆगळन्नु त्यजिसि, अनन्यभावदिंद आत्मनल्लि व्यवस्थितनागिरव यारन्नु काणुत्तारो आ कल्मषरहित गोविंदनन्नु; पुराणगळल्लि पुरुषनॆंदू, युगादिगळल्लि ब्रह्मनॆंदू, लयकालगळल्लि संकर्षणनॆंदू करॆयल्पडुव आद आ उपास्य कृष्णनन्नु उपासिसुत्तेनॆ.

12047021a अतिवाय्विंद्रकर्माणमतिसूर्याग्नितेजसम्।
12047021c अतिबुद्धींद्रियात्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।।

यारु इंद्र-वायुगळन्नू मीरिसिद कार्यगळन्नु माडुवनो, यार तेजस्सु सूर्यन तेजस्सिगिंतलू अधिकवागिरुवुदो, इंद्रिय-मनस्सु-बुद्धिगळिगू यारु अतीतनागिरुवनो आ प्रजापतिगॆ शरणु होगुत्तेनॆ.

12047022a यं वै विश्वस्य कर्तारं जगतस्तस्थुषां पतिम्।
12047022c वदंति जगतोऽध्यक्षमक्षरं परमं पदम्।।

यारन्नु विश्वकर्तारनॆंदू, जगत्तिनल्लिरुवुगळिगॆ ऒडॆयनॆंदू, जगत्तिन अध्यक्षनॆंदू करॆयुत्तारो आ अक्षर परमपदनिगॆ नमस्कारगळु.

12047023a हिरण्यवर्णं यं गर्भमदितिर्दैत्यनाशनम्।
12047023c एकं द्वादशधा जज्ञे तस्मै सूर्यात्मने नमः।।

अदितिय गर्भदल्लि उदिसि दैत्यरन्नु नाशपडिसिद, ऒब्बनागिद्दरू हन्नॆरडागि जनिसिद, चिन्नद कांतियन्नु हॊंदिरुव सूर्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047024a शुक्ले देवान्पितृन्कृष्णे तर्पयत्यमृतेन यः।
12047024c यश्च राजा द्विजातीनां तस्मै सोमात्मने नमः।।

शुक्लपक्षगळल्लि देवतॆगळन्नू कृष्णपक्षगळल्लि पितृगळन्नू अमृतदिंद तृप्तिपडिसुव, द्विजातियवर राज सोमात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047025a महतस्तमसः पारे पुरुषं ज्वलनद्युतिम्।
12047025c यं ज्ञात्वा मृत्युमत्येति तस्मै ज्ञेयात्मने नमः।।

महा तपस्सिन आचॆ बॆळकिनिंद प्रज्चलिसुत्तिरुव याव पुरुषनन्नु तिळिदु मृत्युवन्नु अतिक्रमिसबहुदो आ ज्ञेयात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047026a यं बृहंतं बृहत्युक्थे यमग्नौ यं महाध्वरे।
12047026c यं विप्रसंघा गायंति तस्मै वेदात्मने नमः।।

महा उक्थयज्ञदल्लि बृहंतनॆंदू, महाध्वरदल्लि अग्नियॆंदू यारन्नु विप्रसंघगळु हाडुत्तारो आ वेदात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047027a ऋग्यजुःसामधामानं दशार्धहविराकृतिम्।
12047027c यं सप्ततंतुं तन्वंति तस्मै यज्ञात्मने नमः।।

ऋग्यजुःसामगळन्ने आश्रयिसि, ऐदु विधद हविस्सु9गळन्नु हॊंदिरुव, गायत्रिये मॊदलाद ऐदु छंदस्सुगळे तंतुगळागिरुव यज्ञवन्नु यारकुरितु माडुत्तारो आ यज्ञात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047028a 10यः सुपर्णो यजुर्नाम चंदोगात्रस्त्रिवृच्चिराः।
12047028c रथंतरबृहत्यक्षस्तस्मै स्तोत्रात्मने नमः।।

यजुस्सॆंब हॆसरन्नू, छंधस्सुगळॆंब अंगांगगळन्नू, ऋग्यजुस्सामात्मिक यज्ञवॆंब शिरस्सन्नू, रथंतर मत्तु बृहत् गळन्नु प्रीतिवाक्यगळन्नू हॊंदिरुव सुपर्ण ऎन्नुव स्तोत्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047029a यः सहस्रसवे सत्रे जज्ञे विश्वसृजामृषिः।
12047029c हिरण्यवर्णः शकुनिस्तस्मै हंसात्मने नमः।।

प्रजापतिगळ सहस्रवर्षपर्यंतद यज्ञदल्लि सुवर्णमय रॆक्कॆगळ पक्षिय रूपवन्नु धरिसि प्रकटवाद आ ऋषि हंसात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047030a पदांगं संधिपर्वाणं स्वरव्यंजनलक्षणम्।
12047030c यमाहुरक्षरं नित्यं तस्मै वागात्मने नमः।।

श्लोकपादगळ समूहगळे अवयवगळागिरुव, पदगळ संधिगळे गिण्णुगळागिरुव, स्वराक्षर-व्यंजनगळे अलंकारप्रायवागिरुव दिव्याक्षर ऎंब हॆसरिनिंद करॆयल्पडुव वागात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047031a 11यश्चिनोति सतां सेतुमृतेनामृतयोनिना।
12047031c धर्मार्थव्यवहारांगैस्तस्मै सत्यात्मने नमः।।

धर्मार्थव्यवहारगळॆंब अंगगळिंदलू, अमृतयोनि सत्यदिंदलू सत्पुरुषरु अमरत्ववन्नु हॊंदलु सेतुवॆयन्नु कल्पिसिकॊडुव सत्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047032a यं पृथग्धर्मचरणाः पृथग्धर्मफलैषिणः।
12047032c पृथग्धर्मैः समर्चंति तस्मै धर्मात्मने नमः।।

प्रत्येक धर्माचरणॆगळुळ्ळवरु, प्रत्येक धर्मगळ फलवन्नु अपेक्षिसुववरु यारन्नु प्रत्येक धर्मगळिंद अर्चिसुत्तारो आ धर्मात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047033a 12यं तं व्यक्तस्थमव्यक्तं विचिन्वंति महर्षयः।
12047033c क्षेत्रे क्षेत्रज्ञमासीनं तस्मै क्षेत्रात्मने नमः।।

व्यक्तवादवुगळल्लि अव्यक्तनागिरुव अथवा बुद्धियल्लिरुव याव क्षेत्रज्ञनन्नु महर्षिगळु हुडुकुत्तारॆयो आ क्षेत्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047034a यं दृगात्मानमात्मस्थं13 वृतं षोडशभिर्गुणैः।
12047034c प्राहुः सप्तदशं सांख्यास्तस्मै सांख्यात्मने नमः।।

हदिनारु गुण14गळिंद आवृतनागिरुव हदिनेळनॆयदागि आत्मा ऎंदु सांख्यरु करॆयुव आ आत्मस्थ सांख्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047035a यं विनिद्रा जितश्वासाः सत्त्वस्थाः संयतेंद्रियाः।
12047035c ज्योतिः पश्यंति युंजानास्तस्मै योगात्मने नमः।।

निद्रॆयिल्लदे श्वासगळन्नु नियंत्रिसि इंद्रियगळन्नु संयमदल्लिट्टुकॊंडु सत्त्वदल्लिये नॆलॆसिकॊंडु मनस्सन्नु बुद्धियल्लि लीनगॊळिसिद योगिगळु याव ज्योतियन्नु काणुत्तारो आ योगात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047036a अपुण्यपुण्योपरमे यं पुनर्भवनिर्भयाः।
12047036c शांताः संन्यासिनो यांति तस्मै मोक्षात्मने नमः।।

पुण्य-पापगळु क्षयहॊंदिद नंतर पुनः हुट्टु-सावुगळ भयविल्लद शांत संन्यासिगळु यारन्नु सेरुत्तारॆयो आ मोक्षात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047037a योऽसौ युगसहस्रांते प्रदीप्तार्चिर्विभावसुः।
12047037c संभक्षयति भूतानि तस्मै घोरात्मने नमः।।

सहस्रयुगगळ अंत्यदल्लि धगधगिसुव ज्वालॆगळॊंदिगॆ प्रळयाग्निय रूपवन्नु हॊंदि ऎल्लवन्नू भक्षिसुव घोरात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047038a संभक्ष्य सर्वभूतानि कृत्वा चैकार्णवं जगत्।
12047038c बालः स्वपिति यश्चैकस्तस्मै मायात्मने नमः।।

इरुव ऎल्लवन्नू भक्षिसि जगत्तन्नु जलमयवन्नागिसि अदर मेलॆ बालकनागि मलगुव आ मायात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047039a 15सहस्रशिरसे तस्मै पुरुषायामितात्मने।
12047039c चतुःसमुद्रपर्याययोगनिद्रात्मने नमः।।

नाल्कु समुद्रगळन्नू ऒंदुगूडिसि हासिगॆयन्नागिसिकॊंडु अदर मेलॆ मलगुव आ सहस्रशिरस, पुरुष, अमितात्म, योगनिद्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047040a अजस्य नाभावध्येकं यस्मिन्विश्वं प्रतिष्ठितम्।
12047040c पुष्करं पुष्कराक्षस्य तस्मै पद्मात्मने नमः।।

हुट्टे इल्लद मत्तु इल्लदिरुवंतागद यार मेलॆ ई विश्ववु प्रतिष्ठितवागिदॆयो आ पुष्कर पुष्कराक्ष पद्मात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047041a यस्य केशेषु जीमूता नद्यः सर्वांगसंधिषु।
12047041c कुक्षौ समुद्राश्चत्वारस्तस्मै तोयात्मने नमः।।

यार केशराशिगळल्लि मेघगळिवॆयो, यार सर्वांगसंधिगळल्लि नदिगळिवॆयो, मत्तु यार हॊट्टॆयल्लि नाल्कू समुद्रगळिवॆयो आ तोयात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047042a 16युगेष्वावर्तते योऽंशैर्दिनर्त्वनयहायनैः।
12047042c सर्गप्रलययोः कर्ता तस्मै कालात्मने नमः।।

यारु युगयुगदल्लियू योगमायॆयिंद अवतरिसुवनो, मास-ऋतु-आयन-संवत्सरगळु उरुळिदंतॆ सृष्टि-लयगळन्न नडॆसुत्तानो आ कालात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047043a ब्रह्म वक्त्रं भुजौ क्षत्रं कृत्स्नमूरूदरं विशः।
12047043c पादौ यस्याश्रिताः शूद्रास्तस्मै वर्णात्मने नमः।।

यारिगॆ ब्राह्मणने मुखनागिरुवनो, समस्त क्षत्रियरू भुजगळागिरुवरो, वैश्यरु हॊट्टॆ-तॊडॆगळागिरुवरो मत्तु यार पादगळल्लि शूद्ररु आश्रितरागिरुवरो आ वर्णात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047044a यस्याग्निरास्यं द्यौर्मूर्धा खं नाभिश्चरणौ क्षितिः।
12047044c सूर्यश्चक्षुर्दिशः श्रोत्रे तस्मै लोकात्मने नमः।।

यारिगॆ अग्नियु मुखनागिरुवनो, स्वर्गवु तलॆयागिरुवुदो, आकाशवु नाभियागिरुवुदो, भूमियु पादगळागिरुवुदो, सूर्यने कण्णागिरुवनो, मत्तु दिक्कुगळे किविगळागिरुववो आ लोकात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047045a विषये वर्तमानानां यं तं वैशेषिकैर्गुणैः।
12047045c प्राहुर्विषयगोप्तारं तस्मै गोप्त्रात्मने नमः।।

वैशेषिक गुणगळिंद आकर्षितरागि विषयसुखगळल्लिये इरुववरन्नु विषयगळिंद रक्षिसुववनॆंदु यारन्नु करॆयुत्तारो आ गोप्त्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047046a अन्नपानेंधनमयो रसप्राणविवर्धनः।
12047046c यो धारयति भूतानि तस्मै प्राणात्मने नमः।।

अन्न-पानगळॆंब इंधनरूपनागि रस-प्राणगळन्नु वृद्धिपडिसुत्ता यारु प्राणिगळन्नु धरिसिरुवनो आ प्राणात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047047a परः कालात्परो यज्ञात्परः सदसतोश्च यः।
12047047c अनादिरादिर्विश्वस्य तस्मै विश्वात्मने नमः।।

यारु कालातीतनागि, यज्ञातीतनागि, परक्किंतलू अत्यंत श्रेष्ठनागि, आद्यंतरहितनागि, विश्वक्के आदिभूतनागिरुवनो आ विश्वात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047048a 17यो मोहयति भूतानि स्नेहरागानुबंधनैः।
12047048c सर्गस्य रक्षणार्थाय तस्मै मोहात्मने नमः।।

यारु सृष्टिपरंपरॆय रक्षणार्थवागि ऎल्ल प्राणिगळन्नू स्नेहपाशगळ बंधनगळिंद विमोहगॊळिसुत्तानॆयो आ मोहात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047049a आत्मज्ञानमिदं ज्ञानं ज्ञात्वा पंचस्ववस्थितम्।
12047049c यं ज्ञानिनोऽधिगच्चंति तस्मै ज्ञानात्मने नमः।।

ई आत्मज्ञानवु अन्नमय-प्राणमय-मनोमय-विज्ञानमय-आनंदमयगळॆंब ऐदु कोशगळल्लिरुवुदॆन्नुवुदन्नु तिळिदु ज्ञानयोगद मूलक योगिगळु यारन्नु साक्षात्करिसिकॊळ्ळुवरो आ ज्ञानात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047050a अप्रमेयशरीराय सर्वतोऽनंतचक्षुषे।
12047050c अपारपरिमेयाय तस्मै चिंत्यात्मने18 नमः।।

यारु अळतॆगॆ विषयवागदे इरुव शरीरवन्नु हॊंदिरुवनो, यार बुद्धिरूपी कण्णुगळु सर्वत्र व्यापिसिरुववो, यारल्लि अनंत विषयगळ समावेशविरुवुदो, यार तुदियन्नु काणलु साध्यविल्लवो आ चिंत्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047051a जटिने दंडिने नित्यं लंबोदरशरीरिणे।
12047051c कमंडलुनिषंगाय तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।।

जटॆयन्नू-दंडवन्नू धरिसिरुव, लंबोदर शरीरी, यावागलू कमंडलुवन्नु हिडिदिरुव ब्रह्मात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047052a शूलिने त्रिदशेशाय त्र्यंबकाय महात्मने।
12047052c भस्मदिग्धोर्ध्वलिंगाय तस्मै रुद्रात्मने नमः।।

शूलियू, त्रिदशेशनू, त्यंबकनू, महात्मनू, भस्मदिग्धनू, ऊर्ध्वलिंगनू आद रुद्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047053a 19पंचभूतात्मभूताय20 भूतादिनिधनात्मने। 12047053c अक्रोधद्रोहमोहाय तस्मै शांतात्मने नमः।।

प्राणिगळल्लि पंचभूतात्मनागिरुव, प्राणिगळ हुट्टु-सावुगळिगॆ कारणनागिरुव, यारल्लि क्रोध-द्रोह-मोहगळिल्लवो आ शांतात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047054a यस्मिन्सर्वं यतः सर्वं यः सर्वं सर्वतश्च यः।
12047054c यश्च सर्वमयो नित्यं तस्मै सर्वात्मने नमः।।

यारल्लि सर्ववू इरुववो, यारिंद ई ऎल्लवू सृष्टिसल्पट्टिरुववो, यारु ऎल्लदरल्लियू इरुवनो, यारु ऎल्ल कडॆगळल्लियू इरुवनो आ सर्वमय सर्वात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ.

12047055a विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु विश्वात्मन्विश्वसंभव।
12047055c अपवर्गोऽसि भूतानां पंचानां परतः स्थितः।।

विश्ववन्नु रचिसिरुववने! विश्वात्मने! विश्वसंभवने! निनगॆ नमस्कार! पंचभूतगळिगू अतीतनाद नीनु प्राणिगळिगॆ मोक्षदायकनागिरुवॆ!

12047056a नमस्ते त्रिषु लोकेषु नमस्ते परतस्त्रिषु।
12047056c नमस्ते दिक्षु सर्वासु त्वं हि सर्वपरायणम्।।

मूरुलोकगळल्लियू व्यापिसिरुव निनगॆ नमस्कार! ई मूरु लोकगळ आचॆयू इरुव निनगॆ नमस्कार! ऎल्ल दिक्कुगळल्लियू व्यापिसिरुव निनगॆ नमस्कार! सर्वर परायणनागिरुव निनगॆ नमस्कार!

12047057a नमस्ते भगवन्विष्णो लोकानां प्रभवाप्यय।
12047057c त्वं हि कर्ता हृषीकेश संहर्ता चापराजितः।।

भगवन् विष्णो! लोकगळ उत्पत्ति-विनाशगळ कर्तने! निनगॆ नमस्कार! हृषीकेश! नीने सृष्टिकर्तनू संहारकर्तनू आगिरुवॆ. यारिंदलू निनगॆ पराजयविल्ल!

12047058a तेन पश्यामि ते दिव्यान्भावान्हि त्रिषु वर्त्मसु।
12047058c तच्च पश्यामि तत्त्वेन यत्ते रूपं सनातनम्।।

मूरु लोकगळल्लियू व्याप्तवागिरुव निन्न दिव्यतॆ भावगळन्नु नानु काणलारॆनु. आदरॆ तत्त्वदृष्टियिंद निन्न सनातन रूपवन्नु काणुत्तिद्देनॆ.

12047059a दिवं ते शिरसा व्याप्तं पद्भ्यां देवी वसुंधरा।
12047059c विक्रमेण त्रयो लोकाः पुरुषोऽसि सनातनः।।

आकाशवु निन्न शिरस्सिनिंद व्याप्तवागिदॆ. देवी वसुंधरॆयु निन्न पादगळिंद व्याप्तळागिद्दाळॆ. मूरु लोकगळू निन्न विक्रमदिंद व्याप्तवागिदॆ. नीनु सनातन पुरुष!

12047060a 21अतसीपुष्पसंकाशं पीतवाससमच्युतम्। 12047060c ये नमस्यंति गोविंदं न तेषां विद्यते भयम्।।

अगसे हूविन कांतियन्नु हॊंदिरुव, पीतवासस, अच्युत गोविंदनन्नु यारु नमस्करिसुत्तारो अवरिगॆ भयवॆन्नुवुदे तिळियदु.

12047061a 22यथा विष्णुमयं सत्यं यथा विष्णुमयं हविः। 12047061c यथा विष्णुमयं सर्वं पाप्मा मे नश्यतां तथा।।

सत्यवु हेगॆ विष्णुमयवागिरुवुदो, जगत्तु हेगॆ विष्णुमयवागिरुवुदो, सर्ववू हेगॆ विष्णुमयवागिरुवुदो हागॆ ई सत्यद प्रभावदिंद नन्न सकल पापगळू नाशहॊंदलि.

12047062a त्वां प्रपन्नाय भक्ताय गतिमिष्टां जिगीषवे।
12047062c यच्च्रेयः पुंडरीकाक्ष तद्ध्यायस्व सुरोत्तम।।

सुरोत्तम! पुंडरीकाक्ष! निन्नन्ने अनन्यशरणनागि शरणुहॊंदिरुव भक्तनाद अभीष्ट गतियन्नु इच्छिसुत्तिरुव ननगॆ यावुदु श्रेयस्करवॆन्नुवुदन्नु नीने योचिसि निर्धरिसु!

12047063a इति विद्यातपोयोनिरयोनिर्विष्णुरीडितः।
12047063c वाग्यज्ञेनार्चितो देवः प्रीयतां मे जनार्दनः।।

ई रीति विद्यॆ-तपस्सुगळिगॆ जन्मस्थाननाद अयोनिज भगवंत विष्णुवु नन्निंद स्तुतिसल्पट्टु देव जनार्दननु नन्नमेलॆ प्रसन्ननागलि!”

12047064a 23एतावदुक्त्वा वचनं भीष्मस्तद्गतमानसः। 12047064c नम इत्येव कृष्णाय प्रणाममकरोत्तदा।।

ई मातन्नु हेळि कृष्णनल्लिये मनस्सिट्टु भीष्मनु “नमः कृष्णाय!” ऎंदु हेळि प्रणाम माडिदनु.

12047065a अभिगम्य तु योगेन भक्तिं भीष्मस्य माधवः।
12047065c त्रैकाल्यदर्शनं ज्ञानं दिव्यं दातुं ययौ हरिः।।

तन्न योगबलदिंद भीष्मन भक्तियन्नु तिळिदुकॊंड माधव हरियु अवनिगॆ त्रिकालदृष्टिय दिव्य ज्ञानवन्नु नीडलु हॊरटनु.

12047066a तस्मिन्नुपरते शब्दे ततस्ते ब्रह्मवादिनः।
12047066c भीष्मं वाग्भिर्बाष्पकंठास्तमानर्चुर्महामतिम्।।

भीष्मन स्तोत्रवु निल्ललु सुत्तलू नॆरॆदिद्द ब्रह्मवादिगळु आनंदभाष्पदिंद कूडिदवरागि गद्गदध्वनियल्लि भीष्मनन्नु प्रशंसिसिदरु.

12047067a ते स्तुवंतश्च विप्राग्र्याः केशवं पुरुषोत्तमम्।
12047067c भीष्मं च शनकैः सर्वे प्रशशंसुः पुनः पुनः।।

केशव पुरुषोत्तमनन्नु स्तुतिसुत्तिद्द आ विप्राग्र्यरु ऎल्लरू मॆल्लनॆ पुनः पुनः भीष्मनन्नु प्रशंसिसिदरु.

12047068a विदित्वा भक्तियोगं तु भीष्मस्य पुरुषोत्तमः।
12047068c सहसोत्थाय संहृष्टो यानमेवान्वपद्यत।।

भीष्मन भक्तियोगवन्नु अरित पुरुषोत्तमनु संहृष्टनागि तक्षणवे मेलॆद्दु रथवन्नेरि कुळितुकॊंडनु.

12047069a केशवः सात्यकिश्चैव रथेनैकेन जग्मतुः।
12047069c अपरेण महात्मानौ युधिष्ठिरधनंजयौ।।

केशव-सात्यकियरु ऒंदु रथदल्लि मत्तु इन्नॊंदु रथदल्लि महात्म युधिष्ठिर-धनंजयरु हॊरटरु.

12047070a भीमसेनो यमौ चोभौ रथमेकं समास्थितौ।
12047070c कृपो युयुत्सुः सूतश्च संजयश्चापरं रथम्।।

भीमसेन मत्तु नकुल-सहदेवरु ऒंदे रथदल्लि कुळितिद्दरु. कृप, युयुत्सु, मत्तु सूत संजयरु इन्नॊंदु रथदल्लिद्दरु.

12047071a ते रथैर्नगराकारैः प्रयाताः पुरुषर्षभाः।
12047071c नेमिघोषेण महता कंपयंतो वसुंधराम्।।

आ पुरुषर्षभरु नगराकारद रथगळल्लि कुळितु रथचक्रगळ घोषदिंद भूमियन्ने नडुगिसुत्ता प्रयाणमाडिदरु.

12047072a ततो गिरः पुरुषवरस्तवान्विता द्विजेरिताः पथि सुमनाः स शुश्रुवे।
12047072c कृतांजलिं प्रणतमथापरं जनं स केशिहा मुदितमनाभ्यनंदत।।

आग पुरुषोत्तमनु मार्गदल्लि अनेक ब्राह्मणरु सुमनस्करागि स्तुतिसुत्तिद्दुदन्नु केळिदनु. केशिहंतक कृष्णनु आनंदतुंदिलनागि कैमुगिदु प्रणाममाडुत्तिद्द इतर जनरन्नु अभिनंदिसिदनु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते शांतिपर्वणि राजधर्मपर्वणि भीष्मस्तवराजे सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारत शांतिपर्वद राजधर्मपर्वदल्लि भीष्मस्तवराज ऎन्नुव नल्वत्तेळने अध्यायवु.


  1. शुचिं शुचिपदं ऎन्नुव पाठांतरविदॆ (भारत दर्शन) ↩︎

  2. भारतदर्शनदल्लि इदर मॊदलु ई कॆळगिन मूरु श्लोकगळु सेरिकॊंडिवॆ: (१) अनाद्यंतं परं ब्रह्म न देवानर्षयो विदुः। एको यं वेद भगवान् धाता नारायणो हरिः।। अर्थात्: आदि-अंत्यगळिल्लदिरुव, प्ररब्रह्म स्वरूपनन्नु देवतॆगळागली ऋषिगळागलि तिळिदुकॊंडिल्ल. ऎल्लर धारणॆ-पोषणॆगळन्नू माडुव नारायण अथवा हरियु एकमात्रनु. (२) नाराणादृषिगणास्तथा सिद्धमहोरगाः। देवा देवर्षयश्चैव यं विदुः परमव्ययं।। अर्थात्: आ नारायणनिंदले ऋषिगणगळु, सिद्धरू, महासर्पगळू, देवतॆगळू, मत्तु देवर्षिगळू आविर्भविसिरुत्तारॆ मत्तु अवनन्नु परम अव्ययनॆंदु तिळिदुकॊंडिरुत्तारॆ. (३) देवदानवगंधर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः। यं न जानंति को ह्येष कुतो वा भगवानिति।। अर्थात्: देव-दानव गंधर्वरागली, यक्ष-राक्षस-पन्नगगळागली ई भगवंतनु यारु मत्तु ऎल्लिंद बंदनु ऎन्नुवदन्नु अरितिल्ल. ↩︎

  3. भारतदर्शनदल्लि ई श्लोकद मॊदलु इन्नॊंदु श्लोकविदॆ: यस्मिन्नित्यं तपस्तप्तं यदंगेष्वनुतिष्ठति। सर्वात्मा सर्ववित्सर्वः सर्वज्ञः सर्वभावनः।। अर्थत्: यार अनुग्रहक्कागि निरंतर तपस्सन्नाचरिसुवरो, यारु ऎल्लर हृदयगळल्लि विराजमाननागिरुवनो, यारु समस्तर आत्मस्वरूपनो, अंतह सर्वज्ञ, सर्वभावन, सर्वनू आगिरुववनन्नु शरणुहोगुत्तेनॆ. ↩︎

  4. कर्मांगगळिगॆ संबंधिसिद वेद मंत्रगळु ↩︎

  5. मंत्रार्थगळन्नु विवरिसुव ब्राह्मणवे इत्यादिगळु ↩︎

  6. देवतादिगळन्नु स्तुतिसुव मंत्रगळु ↩︎

  7. ज्येष्ठ साम ↩︎

  8. परमात्म-जीव-मनस्सु-अहंकारगळॆंब नाल्कु तत्त्वगळिंद वासुदेव-संकर्षण-प्रद्युम्न-अनिरुद्धरॆंब नाल्कु रूपगळन्नु ताळिरुववनु ↩︎

  9. धानाकरंभ-परिवाप-पुरोडाश-पयस्य इवु ऐदु विधद हविस्सुगळु. ↩︎

  10. इदक्कॆ मॊदलु भारत दर्शनदल्लि ई श्लोकविदॆ: चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पंचभिरेव च। हूयते च पुनर्द्वाभ्यां तस्मै होमात्मने नमः।। अर्थात्: आश्रावय ऎंब नाल्कु अक्षरगळु, अस्तुश्रौषट् ऎंब नाल्कु अक्षरगळु, यज ऎंब ऎरडक्षरगळु, ये यजामहे ऎंब ऐदु अक्षरगळु, वषट् ऎंब ऎरडक्षरगळु – ऒट्टु हदिनेळु अक्षरगळ मंत्रदिंद होममाडल्पडुव होमात्मनिगॆ नमस्करिसत्तेन. ↩︎

  11. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई ऎरडु श्लोकगळिवॆ: (१) यज्ञांगो यो वराहो वै भूत्वा गामुज्जहार ह। लोकत्रयहितार्थाय तस्मै वीरात्मने नमः।। अर्थात्: यारु मूरुलोकगळ हितार्थवागि यज्ञमय वराहरूपवन्नु धरिसि पृथ्वियन्नु रसातलदिंद मेलक्कॆत्तिदनो आ वीर्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (२) यः शेते यागमास्थाय पर्यंके नागभूषिते। फणासहस्ररचिते तस्मै निद्रात्मने नमः।। अर्थात्: यारु योगमायॆयन्नाश्रयिसि शेषनागन साविर हॆडॆगळिंद रचितवाद दिव्यमंचद मेलॆ पवडिसिरुवनो आ निद्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  12. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई श्लोकविदॆ: यतः सर्वे प्रसूयंते ह्यनंगात्मांगदेहिनः। उन्मादः सर्वभूतानां तस्मै कामात्मने नमः।। अर्थात्: याव अनंगदेहियिंद ऎल्लरू संतानवन्नु पडॆयुत्तारो आ सर्वप्राणिगळन्नू उन्मत्तरन्नागिसुव कामात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  13. यं त्रिधात्मानमात्मस्थं अर्थात् आत्मनल्लिरुव सत्व-रजस्सु-तमो ऎंब मूरु गुणगळिंद कूडिदवनु ऎन्नुव पाठंतरविदॆ (भारत दर्शन). ↩︎

  14. हन्नॊंदु इंद्रियगळु (ऐदु ज्ञानेंद्रियगळु (श्रोत्र, त्वक्कु, जक्षुसु, जिह्वा, मत्तु नासिक); ऐदु कर्मेंद्रियगळु (वाक्कु, पाणि, पाद, पायु मत्तु उपस्थ); मत्तु मनस्सु) मत्तु पंचभूतगळु (पृथ्वी, आप्, तेजस्सु, वायु, आकाश) – ऒट्टु हदिनारु. ↩︎

  15. इदक्कॆ मॊदलु भारतदर्शनदल्लि ई श्लोकविदॆ: तद्यस्य नाभ्यां संभूतं यस्मिन्विश्वं प्रतिष्ठितं। पुष्करे पुष्कराक्षस्य तस्मै पद्मात्मने नमः।। अर्थात्: यार नाभियिंद कमलवु हुट्टितो मत्तु आ कमलदल्लिये विश्ववु प्रतिष्ठितवागिरुवुदो आ पुष्कराक्ष पद्मात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  16. इदक्कॆ मॊदलु भारतदर्शनदल्लि ई ऐदु श्लोकगळिवॆ: (१) यस्मात्सर्वाः प्रसूयंते सर्गप्रलयविक्रियाः। यस्मिंश्चैव प्रलीयंते तस्मै हेत्वात्मने नमः।। अर्थात्: सृष्टि-प्रळय रूपद समस्त विकारगळू यारिंद हुट्टुत्तवॆयो, मत्तु अंत्यदल्लि यारल्लि लीनगॊळ्ळुत्तवॆयो आ हेत्वात्म(ऎल्लक्कू कारणनादव) निगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (२) यो निषण्णो भवेद्रात्रौ दिवा भवति विष्ठितः। इष्टानिष्टस्य च द्रष्टा तस्मै द्रष्टात्मने नमः।। अर्थात्: यारु रात्रियल्लि प्राणिगळॆल्लवू मलगि निद्रिसुत्तिरुवाग ऎल्लर हृदयगळल्लियू इरुव तानु मात्र जाग्रतनागिये इरुवनो, यारु हगलिनल्लि प्राणिगळ कर्मगळिगॆ साक्षियागिरुवनो मत्तु यारु सदाकाल प्राणिगळ इष्टानिष्टगळन्नु गमनिसुत्तिरुवनो आ द्रष्टात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (३) अकुंठं सर्वकार्येषु धर्मकार्यार्थमुद्यतं। वैकुंठं स्य च तद्रूपं तस्मै कार्यात्मने नमः।। अर्थात्: अडगडॆगळिल्लदे सर्वकार्यगळन्नु माडुव, धर्मार्थकार्यगळल्लिये तॊडगिरुव, मत्तु वैकुंठरूपनागिरुव कार्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (४) त्रिःसप्तकृत्वो यः क्षत्रं धर्मव्युत्क्रांतगौरवं। क्रुद्धो निजघ्ने समरे तस्मै शौर्यात्मने नमः।। अर्थात्: क्रुद्धनागि यारु धर्मगौरववन्नु उल्लंघिसिद क्षत्रिय समूहवन्नु इप्पत्तॊंदु बारि संहरिसिदनो आ शौर्यात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (५) विभज्य पंचदात्मानं वायुर्भूत्वा शरीरगः। यश्चेष्टयति भूतानि तस्मै वाय्वात्मने नमः।। अर्थात्: यार वायुस्वरूपवन्न ताळि ऎल्ल प्राणिगळ शरीरगळन्नू प्रवेशिसि तन्नन्नु प्राण-अपान-व्यान-उदान-समानगळॆंदु ऐदु प्रकारवागि विभागिसिकॊंडु क्रियाशीलरन्नागि माडुत्तानो आ वाय्वात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  17. इदक्कॆ मॊदलु भारतदर्शनदल्लि ई नाल्कु श्लोकगळिवॆ: (१) प्राणानां धारणार्थाय योऽन्नं भुंक्ते चतुर्विधम्। अंतर्भूतः पचत्यग्निस्तस्मै पाकात्मने नमः।। प्राणगळन्नु धरिसिरलु चतुर्विध आहारवन्नु सेविसुव मत्तु ताने प्राणिगळल्लि जठराग्नियागि आहारवन्नु पचनमाडुव आ पाकात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (२) पिंगेक्षणसटं यस्य रूपं दंष्ट्रानखायुधं। दानवेंद्रांतकरणं तस्मै दृप्तात्मने नमः।। अर्थात्: यार कण्णु-केसरगळु हळदी बण्णद्दागित्तो, यार आयुधगळु कोरॆदाडॆ-उगुरुगळागिद्दवो मत्तु यारु दानवेंद्र हिरण्यकशिपुवन्नु अंत्यगॊळिसिदनो आ दृप्तात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (३) यं न देवा न गंधर्वा न दैत्या न च दानवाः। तत्त्वतो हि विजानंति तस्मै सूक्षात्मने नमः।। अर्थात्: यारन्नु देवतॆगळागली, गंधर्वरागली, दैत्यरागली, दानवरागली तत्त्वतः अरियलाररो आ सूक्ष्मात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (४) रसातलगतः श्रीमाननंतो भगवान्विभुः। जगद्धारयते कृत्सं तस्मै वीरात्मने नमः।। अर्थात्: रसातलक्कॆ होगि इडी जगत्तन्नू हॊत्तिरुव श्रीमान् अनंत, भगवान्, विभु वीरात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  18. दिव्यात्मने नमः ऎन्नुव पाठांतरविदॆ. ↩︎

  19. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई श्लोकविदॆ: चंद्रार्धकृतशीर्षाय व्यालयज्ञोपवितिने। पिनाकशूलहस्ताय तस्मै उग्रात्मने नमः।। अर्थात्: यार तलॆयल्लि अर्धचंद्रन मुकुटविरुवुदो, यारु सर्पवन्ने यज्ञोपवीतवन्नागि धरिसिरुवनो, यार कैयल्लि पिनाकवू त्रिशूलवू इरुववो आ उग्रात्मनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. ↩︎

  20. सर्वभूतात्मभूताय ऎंब पाठांतरविदॆ. ↩︎

  21. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई श्लोकविदॆ: दिशो भुजा रविश्चक्षुर्वीर्ये शुक्रः प्रतिष्ठितः। सप्त मार्गानिरुद्धास्ते वायोरमिततेजसः।। अर्थात्: दिक्कुगळे निन्न भुजगळु. सूर्यने निन्न कण्णुगळल्लिद्दानॆ. शुक्रनु निन्न वीर्यदल्लिद्दानॆ. अमिततेजस्वी वायुविन एळु मार्गगळन्नू नीनु तडॆदिरुवॆ. ↩︎

  22. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई ऐदु श्लोकगळिवॆ: (१) एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो। दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः।। दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म। कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय।। अर्थात्: कृष्णनिगॆ माडिद ऒंदे प्रणामवु हत्तु अश्वमेधयागगळ अवभृथस्नानवन्नु माडिद फलक्कॆ समनागिदॆ. आदरॆ ऒंदे व्यत्यास. हत्तु अश्वमेधयागगळन्नु माडिदवनिगॆ पुनर्जन्मवु तप्पिद्दल्ल. कृष्णनिगॆ प्रणाम माडिदवनिगॆ पुनर्जन्मवे इल्ल. (२) कृष्णव्रताः कृष्ण मनुस्मरंतो। रात्रौ च कृष्णं पुनरुत्थिता ये।। ते कृष्णदेहाः प्रविशंति कृष्ण। माज्यं यथामंत्रहुतं हुताशे।। अर्थात्: कृष्णनन्ने व्रतवन्नागिट्टुकॊंडिरुव, कृष्णनन्ने ध्यानिसुत्तिरुव, रात्रियल्लि कृष्ण मत्तु बॆळिग्गॆ ऎद्दाग कृष्ण ऎंदु स्मरिसिकॊळ्ळुत्तिरुववरु कृष्णन देहवन्ने प्रवेशिसुत्तारॆ. मंत्रपूर्वकवागि अग्नियल्लि होममाडल्पट्ट आज्यवु यज्ञेश्वरनल्लिये लीनवागुवंतॆ कृष्णनल्लिये लीनरागुत्तारॆ. (३) नमो नरकसंत्रासरक्षामंडलकारिणे। संसारनिम्नगावर्ततरिकाष्ठाय विष्णवे।। अर्थात्: नरकभयपीडितरिगॆ रक्षामंडलवन्नु रचिसुववने! संसारवॆंब हॊळॆयल्लि सुळियन्नु दाटलिच्छिसुववरिगॆ तॆप्पद रूपदल्लिरुववने! महाविष्णुवे! निनगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (४) नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहितकराय च। जगद्धिताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः।। अर्थात्: ब्रह्मक्कॆ (तपस्सु, वेद, ब्राह्मण मत्तु ज्ञानगळिगॆ) हितनागिरुव, जगत्तिगॆ हितवन्नुंटुमाडलु गो-ब्राह्मणरिगॆ हितवन्नुंटुमाडुव कृष्ण गोविंदनिगॆ नमस्करिसुत्तेनॆ. (५) प्राणकांतारपाथेयं संसारोच्छेदभेषजं। दुःखशोकपरित्राणं हरिरित्यक्षरद्वयं।। अर्थात्: हरि ऎंब ऎरडक्षरवु प्राणप्रयाणसमयदल्लि नडुगाडिन बुत्तिय रूपदल्लिरुत्तदॆ. संसारवॆंब रोगद निवारणॆगॆ औषधप्रायवागिदॆ. सकलविधद दुःख-शोकगळन्नू परिहरिसि रक्षणॆ नीडुत्तदॆ. ↩︎

  23. भारतदर्शनदल्लि इदक्कॆ मॊदलु ई श्लोकविदॆ: नारायणः परं ब्रह्म नारायणपरं तपः। नारायणः परो देवः सर्वं नारायणं सदा।। अर्थात्: नारायणने परब्रह्मनु. नारायणने परम तपस्सु. नारायणने ऎल्ल देवतॆगळल्लियू श्रेष्ठ देवनु. सर्ववू नारायणने!” ↩︎