प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
सौप्तिक पर्व
ऐषीक पर्व
अध्याय 12
सार
अश्वत्थामन मेलॆ प्रतीकारवन्नॆसगलु भीमसेननु हॊरटुहोगलु कृष्णनु युधिष्ठिरनिगॆ हिंदॆ अश्वत्थामनु ब्रह्मशिर अस्त्रद बदलिगागि सुदर्शन चक्रवन्नु केळिद्दनु ऎंब कथॆयन्नु हेळि अश्वत्थामनिंद भीमसेननन्नु उळिसबेकु ऎंदु सूचिसिदुदु (1-40).
10012001 वैशंपायन उवाच।
10012001a तस्मिन्प्रयाते दुर्धर्षे यदूनामृषभस्ततः।
10012001c अब्रवीत्पुंडरीकाक्षः कुंतीपुत्रं युधिष्ठिरं।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “आ दुर्धर्षनु हॊरटुहोगलु यदुगळ ऋषभ पुंडरीकाक्षनु कुंतीपुत्र युधिष्ठिरनिगॆ हेळिदनु:
10012002a एष पांडव ते भ्राता पुत्रशोकमपारयन्।
10012002c जिघांसुर्द्रौणिमाक्रंदे याति भारत भारतः।।
“भारत! निन्न ई भ्राता पांडव भारतनु पुत्रशोकद भारवन्नु हॊत्तु युद्धदल्लि द्रौणियन्नु संहरिसलु बयसि होगुत्तिद्दानॆ!
10012003a भीमः प्रियस्ते सर्वेभ्यो भ्रातृभ्यो भरतर्षभ।
10012003c तं कृच्च्रगतमद्य त्वं कस्मान्नाभ्यवपद्यसे।।
भरतर्षभ! निन्न ऎल्ल सहोदररल्लि भीमनु निनगॆ अत्यंत प्रियनादवनु. इंदु अवनु कष्टक्कॆ सिलुकलिद्दानॆ. अवन सहायक्कॆ नीनु एकॆ एनन्नू माडुत्तिल्ल?
10012004a यत्तदाचष्ट पुत्राय द्रोणः परपुरंजयः।
10012004c अस्त्रं ब्रह्मशिरो नाम दहेद्यत्पृथिवीमपि।।
परपुरंजय द्रोणनु तन्न मगनिगॆ नीडिद्द ब्रह्मशिर ऎंब हॆसरिन अस्त्रवु इडी भूमियन्ने दहिसिबिडबल्लदु.
10012005a तन्महात्मा महाभागः केतुः सर्वधनुष्मतां।
10012005c प्रत्यपादयदाचार्यः प्रीयमाणो धनंजयं।।
सर्वधनुष्मतरल्लि केतुप्रायनाद आ महाभाग आचार्यनु प्रीतियिंद धनंजयनिगॆ आ अस्त्रवन्नु प्रतिपालिसिद्दनु.
10012006a तत्पुत्रोऽस्यैवमेवैनमन्वयाचदमर्षणः।
10012006c ततः प्रोवाच पुत्राय नातिहृष्टमना इव।।
अदन्नु सहिसिकॊळ्ळलारद अवन पुत्रनु आ अस्त्रवन्नु केळिकॊळ्ळलु द्रोणनु असंतोषनागिये अदन्नु तन्न मगनिगॆ उपदेशिसिद्दनु.
10012007a विदितं चापलं ह्यासीदात्मजस्य महात्मनः।
10012007c सर्वधर्मविदाचार्यो नान्विषत्सततं सुतं।।
तन्न मगनु चपलनॆंदु तिळिदिद्द आ महात्म सर्वधर्मविदु आचार्यनु मगनिगॆ सततवू ई अनुशासनवित्तिद्दनु:
10012008a परमापद्गतेनापि न स्म तात त्वया रणे।
10012008c इदमस्त्रं प्रयोक्तव्यं मानुषेषु विशेषतः।।
“मगू! रणदल्लि परम आपत्तिनल्लि सिलुकिकॊंडिद्दागलू नीनु ई अस्त्रवन्नु उपयोगिसकूडदु. अदरल्लू विशेषवागि मनुष्यर मेलॆ प्रयोगिसबारदु!”
10012009a इत्युक्तवान्गुरुः पुत्रं द्रोणः पश्चादथोक्तवान्।
10012009c न त्वं जातु सतां मार्गे स्थातेति पुरुषर्षभ।।
पुरुषर्षभ! इदन्नु हेळिद गुरुद्रोणनु नंतर मगनिगॆ “नीनु यावागलू सत्पुरुषर मार्गदल्लि नडॆयुववनल्ल ऎंदु ननगॆ तिळिदिदॆ!” ऎंदू हेळिद्दनु.
10012010a स तदाज्ञाय दुष्टात्मा पितुर्वचनमप्रियं।
10012010c निराशः सर्वकल्याणैः शोचन्पर्यपतन्महीं।।
तंदॆय आ अप्रिय मातन्नु स्वीकरिसि दुष्टात्म अश्वत्थामनु सर्वकल्याणगळिंद निराशनागि शोकिसुत्ता भूमियल्लि अलॆयतॊडगिदनु.
10012011a ततस्तदा कुरुश्रेष्ठ वनस्थे त्वयि भारत।
10012011c अवसद्द्वारकामेत्य वृष्णिभिः परमार्चितः।।
कुरुश्रेष्ठ! भारत! नीवु वनदल्लिद्दाग अवनु द्वारकॆगू बंदिद्द मत्तु वृष्णिगळु अवनन्नु परम गौरवदिंद सत्करिसिद्दरु.
10012012a स कदा चित्समुद्रांते वसन्द्वारवतीमनु।
10012012c एक एकं समागम्य मामुवाच हसन्निव।।
ऒम्मॆ अवनु द्वारवतिय हत्तिर समुद्रतीरदल्लि वासिसुत्तिद्दाग एकांगियागिद्द नन्नन्नु ऒंटियागि संधिसि नगुत्ता इदन्नु हेळिद्दनु:
10012013a यत्तदुग्रं तपः कृष्ण चरन्सत्यपराक्रमः।
10012013c अगस्त्याद्भारताचार्यः प्रत्यपद्यत मे पिता।।
10012014a अस्त्रं ब्रह्मशिरो नाम देवगंधर्वपूजितं।
10012014c तदद्य मयि दाशार्ह यथा पितरि मे तथा।।
“कृष्ण! दाशार्ह! सत्यपराक्रमि मत्तु भारतर आचार्य नन्न तंदॆयु उग्रतपस्सन्नु आचरिसि अगस्त्यनिंद देवगंधर्व पूजित ब्रह्मशिर ऎंब हॆसरिन अस्त्रवन्नु पडॆदुकॊंडिद्दनु. तंदॆयल्लिद्द आ अस्त्रवु इंदु नन्नल्लियू इदॆ.
10012015a अस्मत्तस्तदुपादाय दिव्यमस्त्रं यदूत्तम।
10012015c ममाप्यस्त्रं प्रयच्च त्वं चक्रं रिपुहरं रणे।।
यदूत्तम! नन्निंद ई दिव्यास्त्रवन्नु पडॆदुकॊंडु नीनु ननगॆ रणदल्लि रिपुहरणमाडबल्ल चक्रवन्नु दयपालिसु!”
10012016a स राजन्प्रीयमाणेन मयाप्युक्तः कृतांजलिः।
10012016c याचमानः प्रयत्नेन मत्तोऽस्त्रं भरतर्षभ।।
राजन्! भरतर्षभ! हीगॆ कैमुगिदु नन्न अस्त्रवन्नु केळुत्तिद्द अवनिगॆ प्रयत्नपट्टु प्रीतियिंदले नानु हेळिदॆ:
10012017a देवदानवगंधर्वमनुष्यपतगोरगाः।
10012017c न समा मम वीर्यस्य शतांशेनापि पिंडिताः।।
“देव-दानव-गंधर्व-मनुष्य-पक्षि-उरगगळल्लि नन्न वीर्यद नूरनॆय ऒंदु भागदष्टु समनादवरु यारू इल्ल.
10012018a इदं धनुरियं शक्तिरिदं चक्रमियं गदा।
10012018c यद्यदिच्चसि चेदस्त्रं मत्तस्तत्तद्ददानि ते।।
इदु नन्न धनुस्सु. इदु शक्ति. इदु चक्र. इदु गदॆ. नीनु नन्निंद याव अस्त्रवन्नु पडॆयलिच्छिसुवॆयो आ अस्त्रवन्नु नानु निनगॆ कॊडुत्तेनॆ.
10012019a यच्चक्नोषि समुद्यंतुं प्रयोक्तुमपि वा रणे।
10012019c तद्गृहाण विनास्त्रेण यन्मे दातुमभीप्ससि।।
यावुदन्नु ऎत्तिकॊळ्ळलु अथवा रणदल्लि प्रयोगिसलु निनगॆ साध्यवागुवुदो अदन्नु नीनु, ननगॆ कॊडबेकॆंदु बयसिरुव आ अस्त्रवन्नु कॊडदे, नन्निंद पडॆदुकॊळ्ळबहुदु.”
10012020a स सुनाभं सहस्रारं वज्रनाभमयस्मयं।
10012020c वव्रे चक्रं महाबाहो स्पर्धमानो मया सह।।
महाबाहो! नन्नॊडनॆ स्पर्धिसुत्तिद्द अवनु सुंदर नाभियिंद कूडिद्द, वज्रमय नाभियन्नु हॊंदिद्द, सहस्र अरॆगळुळ्ळ चक्रवन्नु आरिसिकॊंडनु.
10012021a गृहाण चक्रमित्युक्तो मया तु तदनंतरं।
10012021c जग्राहोपेत्य सहसा चक्रं सव्येन पाणिना।
10012021e न चैतदशकत् स्थानात्संचालयितुमच्युत।।
चक्रवन्नु ऎत्तिको ऎंदु नानु हेळिद नंतर बेगने हारिबंदु अवनु ऎडगैयिंद चक्रवन्नु हिडिदुकॊंडनु. अच्युत! आदरॆ अवनिगॆ अदन्नु ऎत्तुवुदिरलि अदिद्द स्थळदिंद अलुगिसलु कूड अवनिगॆ साध्यवागलिल्ल!
10012022a अथ तद्दक्षिणेनापि ग्रहीतुमुपचक्रमे।
10012022c सर्वयत्नेन तेनापि गृह्णन्नेतदकल्पयत्।।
आग अवनु बलगैयन्नू मुंदॆ चाचि ऎरडू कैगळिंद चक्रवन्नु मेलॆत्तलु प्रयत्निसिदनु. सर्व प्रयत्नदिंदलू अवनिगॆ अदन्नु हिडिदॆत्तलु साध्यवागलिल्ल.
10012023a ततः सर्वबलेनापि यच्चैतन्न शशाक सः।
10012023c उद्धर्तुं वा चालयितुं द्रौणिः परमदुर्मनाः।
10012023e कृत्वा यत्नं परं श्रांतः स न्यवर्तत भारत।।
भारत! हीगॆ सर्वबलवन्नुपयोगिसियू अदन्नु अलुगाडिसलु अथवा ऎत्तलु साध्यवागदिद्दाग परम दुर्मननाद द्रौणियु परम यत्नवन्नु माडि आयासगॊंडु हिंदॆ सरिदनु.
10012024a निवृत्तमथ तं तस्मादभिप्रायाद्विचेतसं।
10012024c अहमामंत्र्य सुस्निग्धमश्वत्थामानमब्रुवं।।
हिंदॆसरिद मत्तु अदरिंदागि मनस्सन्नु कॆडिसिकॊंडिद्द उद्विग्न अश्वत्थामनिगॆ नानु हीगॆ हेळिद्दॆनु:
10012025a यः स देवमनुष्येषु प्रमाणं परमं गतः।
10012025c गांडीवधन्वा श्वेताश्वः कपिप्रवरकेतनः।।
10012026a यः साक्षाद्देवदेवेशं शितिकंठमुमापतिं।
10012026c द्वंद्वयुद्धे पराजिष्णुस्तोषयामास शंकरं।।
10012027a यस्मात्प्रियतरो नास्ति ममान्यः पुरुषो भुवि।
10012027c नादेयं यस्य मे किं चिदपि दाराः सुतास्तथा।।
“देव-मनुष्यरल्लि अत्यंत प्रामाणिकनॆंदु ख्यातिगॊंडिरुव, गांडीवधन्वि, श्वेताश्व, कपिप्रवरननन्नु ध्वजदल्लिट्टिकॊंडिरुव, साक्षात् देवदेवेश शितिकंठ उमापति शंकरनन्नु द्वंद्वयुद्धदल्लि पराजयगॊळिसलु प्रयत्निसि तृप्तिगॊळिसिद अर्जुननिगिंत हॆच्चिन प्रिय पुरुषनु ई भुवियल्लि बेरॆ यारू इल्ल. नन्न पत्नियरु मत्तु मक्कळल्लिकूड अवनिगॆ नानु कॊडलारदवरु यारू इल्ल.
10012028a तेनापि सुहृदा ब्रह्मन्पार्थेनाक्लिष्टकर्मणा।
10012028c नोक्तपुर्वमिदं वाक्यं यत्त्वं मामभिभाषसे।।
ब्राह्मण! ननगॆ अत्यंत सुहृदनाद अक्लिष्टकर्मि पार्थनू कूड नीनु नन्नॊडनॆ केळिदंतॆ इदूवरॆगू केळिल्ल.
10012029a ब्रह्मचर्यं महद्घोरं चीर्त्वा द्वादशवार्षिकं।
10012029c हिमवत्पार्श्वमभ्येत्य यो मया तपसार्चितः।।
10012030a समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योऽन्वजायत।
10012030c सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम मे सुतः।।
हन्नॆरडु वर्षगळु हिमवत्पर्वतदल्लि ब्रह्मचर्यदिंद घोर तपस्सन्नु माडिद नन्निंद समानव्रतचारिणि रुक्मिणियल्लि जनिसिद सनत्कुमारन तेजस्सुळ्ळ प्रद्युम्ननॆंब नन्न मगनिद्दानॆ.
10012031a तेनाप्येतन्महद्दिव्यं चक्रमप्रतिमं मम।
10012031c न प्रार्थितमभून्मूढ यदिदं प्रार्थितं त्वया।।
मूढ! आ नन्न मगनू कूड इंदु नीनु नन्निंद केळिद ई दिव्यवाद अप्रतिम चक्रवन्नु इदूवरॆगॆ केळलिल्ल!
10012032a रामेणातिबलेनैतन्नोक्तपूर्वं कदा चन।
10012032c न गदेन न सांबेन यदिदं प्रार्थितं त्वया।।
नीनु केळिद इदन्नु ऎंदू अतिबलनाद रामनू, गदनू, सांबनू नन्नन्नु केळलिल्ल!
10012033a द्वारकावासिभिश्चान्यैर्वृष्ण्यंधकमहारथैः।
10012033c नोक्तपूर्वमिदं जातु यदिदं प्रार्थितं त्वया।।
नीनु केळुव इदन्नु द्वारकावासिगळल्लि मत्तु वृष्णि-अंधक महारथरल्लि बेरॆ यारू मॊदलु केळिरलिल्ल!
10012034a भारताचार्यपुत्रः सन्मानितः सर्वयादवैः।
10012034c चक्रेण रथिनां श्रेष्ठ किं नु तात युयुत्ससे।।
अय्या! भारताचार्यपुत्र! सर्वयादवरिंद सन्मानितनागिरुव रथिगळल्लि श्रेष्ठनाद नीनु यारॊडनॆ युद्धमाडलु बयसुत्तिरुवॆ?”
10012035a एवमुक्तो मया द्रौणिर्मामिदं प्रत्युवाच ह।
10012035c प्रयुज्य भवते पूजां योत्स्ये कृष्ण त्वयेत्युत।।
नानु इदन्नु केळलु द्रौणियु ननगॆ उत्तरिसिद्दनु: “कृष्ण! निन्नन्नु पूजिसि निन्नॊडनॆये युद्धमाडलु बयसिद्दॆ.
10012036a ततस्ते प्रार्थितं चक्रं देवदानवपूजितं।
10012036c अजेयः स्यामिति विभो सत्यमेतद्ब्रवीमि ते।।
अजेयनॆनिसिकॊळ्ळबेकॆंदे नानु निन्न देवदानवपूजित चक्रवन्नु केळिदॆनु. विभो! नानु निनगॆ सत्यवन्ने हेळुत्तिद्देनॆ.
10012037a त्वत्तोऽहं दुर्लभं काममनवाप्यैव केशव।
10012037c प्रतियास्यामि गोविंद शिवेनाभिवदस्व मां।।
केशव! निन्निंद नानु ई दुर्लभ कामनॆयन्नु पडॆयदे हिंदिरुगुत्तेनॆ. गोविंद! नन्नन्नु मंगळकर मातिनिंद बीळ्कॊडु!
10012038a एतत्सुनाभं वृष्णीनामृषभेण त्वया धृतं।
10012038c चक्रमप्रतिचक्रेण भुवि नान्योऽभिपद्यते।।
सुंदर नाभियुळ्ळ इदन्नु वृष्णिगळल्लि ऋषभनाद नीने धरिसबेकु. ई अप्रतिम चक्रवन्नु तिरुगिसलु भुवियल्लि बेरॆ यारिगू साध्यवागलारदु!”
10012039a एतावदुक्त्वा द्रौणिर्मां युग्यमश्वान्धनानि च।
10012039c आदायोपययौ बालो रत्नानि विविधानि च।।
ननगॆ हीगॆ हेळि बालक द्रौणियु ऎरडु कुदुरॆगळन्नू, धनवन्नू, विविधरत्नगळन्नू तॆगॆदुकॊंडु हॊरटु होदनु.
10012040a स संरंभी दुरात्मा च चपलः क्रूर एव च।
10012040c वेद चास्त्रं ब्रह्मशिरस्तस्माद्रक्ष्यो वृकोदरः।।
अवनु महाकोपिष्ट. दुरात्मि. चपल मत्तु क्रूरि कूड. ब्रह्मशिरास्त्रवन्नु तिळिदिरुव अवनिंद वृकोदरनन्नु रक्षिसु!””
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते सौप्तिकपर्वणि ऐषीकपर्वणि युधिष्ठिरकृष्णसंवादे द्वादशोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतदल्लि सौप्तिकपर्वदल्लि ऐषीकपर्वदल्लि युधिष्ठिरकृष्णसंवाद ऎन्नुव हन्नॆरडने अध्यायवु.