040 संकुलयुद्धः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

कर्ण पर्व

कर्णवध पर्व

अध्याय 40

सार

नकुल-सहदेवरु मत्तु दुर्योधरर नडुवॆ युद्ध (1-19). धृष्टद्युम्न-दुर्योधनर युद्ध; दुर्योधनन पराजय (20-38). कर्णनु पांडव सेनॆयन्नू भीमसेननु कौरव सेनॆयन्नू ध्वंसगॊळिसिदुदु (39-77). अर्जुननु कौरवसेनॆयन्नु प्रवेशिसि युद्धमाडुत्ता कांबोजद सुदक्षिणन तम्मनन्नु वधिसिदुदु (78-106). अर्जुन-अश्वत्थामर युद्ध; अश्वत्थामन पराजय (107-130).

08040001 संजय उवाच।
08040001a भीमसेनं सपांचाल्यं चेदिकेकयसंवृतं।
08040001c वैकर्तनः स्वयं रुद्ध्वा वारयामास सायकैः।।

संजयनु हेळिदनु: “पांचाल्य, चेदि-केकयरॊंदिगॆ संवृतनाद भीमसेननन्नु स्वयं वैकर्तननु सायकगळिंद हॊडॆदु तडॆदनु.

08040002a ततस्तु चेदिकारूषान् सृंजयांश्च महारथान्।
08040002c कर्णो जघान संक्रुद्धो भीमसेनस्य पश्यतः।।

भीमसेननु नोडुत्तिद्दंतॆये कर्णनु संक्रुद्धनागि चेदि-करूषरन्नू महारथ सृंजयरन्नू संहरिसिदनु.

08040003a भीमसेनस्ततः कर्णं विहाय रथसत्तमं।
08040003c प्रययौ कौरवं सैन्यं कक्षमग्निरिव ज्वलन्।।

आग भीमसेननु रथसत्तम कर्णनन्नु बिट्टु प्रज्वलिसुत्तिरुव अग्नियु हुल्लुमॆदॆयन्नु हॊगुवंतॆ कौरव सेनॆयन्नु हॊक्कनु.

08040004a सूतपुत्रोऽपि समरे पांचालान्केकयांस्तथा।
08040004c सृंजयांश्च महेष्वासान्निजघान सहस्रशः।।

सूतपुत्रनादरो समरदल्लि सहस्रारु संख्यॆगळल्लि महेष्वास पांचालरन्नू, केकयरन्नू, सृंजयरन्नू संहरिसिदनु.

08040005a संशप्तकेषु पार्थश्च कौरवेषु वृकोदरः।
08040005c पांचालेषु तथा कर्णः क्षयं चक्रूर्महारथाः।।

महारथ पार्थनु संशप्तकरल्लियू, वृकोदरनु कौरवरल्लियू मत्तु हागॆये महारथ कर्णनु पांचालरल्लियू अत्यधिक क्षयवन्नुंटुमाडिदरु.

08040006a ते क्षत्रिया दह्यमानास्त्रिभिस्तैः पावकोपमैः।
08040006c जग्मुर्विनाशं समरे राजन्दुर्मंत्रिते तव।।

राजन् निन्न दुर्मंत्रदिंद पावकनंतॆ सुडुत्तिद्द आ मूवरिंद समरदल्लि क्षत्रियरु विनाशहॊंदिदरु.

08040007a ततो दुर्योधनः क्रुद्धो नकुलं नवभिः शरैः।
08040007c विव्याध भरतश्रेष्ठ चतुरश्चास्य वाजिनः।।

भरतश्रेष्ठ! आग क्रुद्धनाद दुर्योधननु नकुलनन्नु मत्तु अवन नाल्कु कुदुरॆगळन्नु ऒंभत्तु शरगळिंद हॊडॆदनु.

08040008a ततः पुनरमेयात्मा तव पुत्रो जनाधिपः।
08040008c क्षुरेण सहदेवस्य ध्वजं चिच्छेद कांचनं।।

पुनः निन्न अमेयात्म पुत्र जनाधिपनु क्षुरदिंद सहदेवन कांचन ध्वजवन्नु कत्तरिसिदनु.

08040009a नकुलस्तु ततः क्रुद्धस्तव पुत्रं त्रिसप्तभिः।
08040009c जघान समरे राजन्सहदेवश्च पंचभिः।।

राजन्! आग समरदल्लि क्रुद्धनागि नकुलनु मूरु बाणगळिंद मत्तु सहदेवनु ऐदरिंद निन्न पुत्रनन्नु हॊडॆदरु.

08040010a तावुभौ भरतश्रेष्ठौ श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मतां।
08040010c विव्याधोरसि संक्रुद्धः पंचभिः पंचभिः शरैः।।

दुर्योधननु संक्रुद्धनागि ऐदैदु शरगळिंद सर्वधनुष्मतरल्लि श्रेष्ठ आ इब्बरु भरतश्रेष्ठर वक्षस्थळगळन्नु प्रहरिसिदनु.

08040011a ततोऽपराभ्यां भल्लाभ्यां धनुषी समकृंतत।
08040011c यमयोः प्रहसन् राजन्विव्याधैव च सप्तभिः।।

राजन्! बेरॆ भल्लगळॆरडरिंद आ यमळर धनुस्सुगळन्नु कत्तरिसि नक्कु एळु बाणगळिंद अवरन्नु हॊडॆदनु.

08040012a तावन्ये धनुषी श्रेष्ठे शक्रचापनिभे शुभे।
08040012c प्रगृह्य रेजतुः शूरौ देवपुत्रसमौ युधि।।

आग अवरिब्बरु शूररू शक्रचापगळंतॆ शोभिसुत्तिद्द बेरॆ श्रेष्ठ धनुस्सुगळन्नु तॆगॆदुकॊंडु युद्धदल्लि देवपुत्ररंतॆ शोभिसिदरु.

08040013a ततस्तौ रभसौ युद्धे भ्रातरौ भ्रातरं नृप।
08040013c शरैर्ववर्षतुर्घोरैर्महामेघौ यथाचलं।।

नृप! आग अवरिब्बरु सहोदररू घोरमहामेघगळु पर्वतवन्नु हेगो हागॆ युद्धदल्लि अण्णनन्नु शरवर्षगळिंद अभिषेचिसिदरु.

08040014a ततः क्रुद्धो महाराज तव पुत्रो महारथः।
08040014c पांडुपुत्रौ महेष्वासौ वारयामास पत्रिभिः।।

महाराज! आग निन्न पुत्र महारथनु क्रुद्धनागि पत्रिगळिंद महेष्वास पांडुपुत्ररन्नु तडॆदनु.

08040015a धनुर्मंडलमेवास्य दृश्यते युधि भारत।
08040015c सायकाश्चैव दृश्यंते निश्चरंतः समंततः।।

भारत! आग युद्धदल्लि अवन धनुस्सु मंडलाकारवागि काणुत्तित्तु. अदरिंद ऒंदेसमनॆ हॊरबरुत्तिद्द सायकगळु मात्र काणुत्तिद्दवु.

08040016a तस्य सायकसंचन्नौ चकाशेतां च पांडवौ।
08040016c मेघच्छन्नौ यथा व्योम्नि चंद्रसूर्यौ हतप्रभौ।।

अवन सायकगळ गुंपुगळु मेघगळु आकाशवन्नु तुंबि चंद्र-सूर्यर प्रभॆगळन्नु कुंदिसुवंतॆ आ पांडवरन्नु कुंदिसिदवु.

08040017a ते तु बाणा महाराज हेमपुंखाः शिलाशिताः।
08040017c आच्चादयन्दिशः सर्वाः सूर्यस्येवांशवस्तदा।।

महाराज! आ हेमपुंख शिलाशित बाणगळु सूर्यन किरणगळंतॆ सर्व दिक्कुगळन्नू आच्छादिसिदवु.

08040018a बाणभूते ततस्तस्मिन्संछन्ने च नभस्तले।
08040018c यमाभ्यां ददृशे रूपं कालांतकयमोपमं।।

नभस्तलवू बाणमयवागि मुच्चिहोगलु यमळरिगॆ दुर्योधनन रूपवु कालांतक यमनंतॆये तोरितु.

08040019a पराक्रमं तु तं दृष्ट्वा तव सूनोर्महारथाः।
08040019c मृत्योरुपांतिकं प्राप्तौ माद्रीपुत्रौ स्म मेनिरे।।

निन्न मगन आ पराक्रमवन्नु नोडि माद्रिपुत्ररिगॆ मृत्युवु समीपवायितॆंदे महारथरु भाविसिदरु.

08040020a ततः सेनापती राजन्पांडवस्य महात्मनः।
08040020c पार्षतः प्रययौ तत्र यत्र राजा सुयोधनः।।

राजन्! आग पांडवर सेनापति महात्म पार्षत धृष्टद्युम्ननु राजा सुयोधननिद्दल्लिगॆ आगमिसिदनु.

08040021a माद्रीपुत्रौ ततः शूरौ व्यतिक्रम्य महारथौ।
08040021c धृष्टद्युम्नस्तव सुतं ताडयामास सायकैः।।

महारथ शूर माद्रीपुत्ररीर्वरन्नू दाटि मुंदॆ होगि धृष्टद्युम्ननु सायकगळिंद निन्न मगनन्नु प्रहरिसिदनु.

08040022a तमविध्यदमेयात्मा तव पुत्रोऽत्यमर्षणः।
08040022c पांचाल्यं पंचविंशत्या प्रहस्य पुरुषर्षभ।।

पुरुषर्षभ! निन्न मग अमेयात्म असहनशील मगनु नगुत्तले पांचाल्यनन्नु इप्पत्तैदु बाणगळिंद प्रहरिसिदनु.

08040023a ततः पुनरमेयात्मा पुत्रस्ते पृथिवीपते।
08040023c विद्ध्वा ननाद पांचाल्यं षष्ट्या पंचभिरेव च।।

पुनः निन्न पुत्र अमेयात्म पृथिवीपतियु पांचाल्यनन्नु अरवत्तैदु बाणगळिंद हॊडॆदु गर्जिसिदनु.

08040024a अथास्य सशरं चापं हस्तावापं च मारिष।
08040024c क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन राजा चिच्छेद संयुगे।।

मारिष! आग संयुगदल्लि राजा दुर्योधननु सुतीक्ष्ण क्षुरप्रदिंद शरयुक्तवाद अवन धनुस्सन्नू कैचीलवन्नू कत्तरिसिदनु.

08040025a तदपास्य धनुश्छिन्नं पांचाल्यः शत्रुकर्शनः।
08040025c अन्यदादत्त वेगेन धनुर्भारसहं नवं।।

तुंडाद धनुस्सन्नु बिसुटु शत्रुकर्शन पांचाल्यनु वेगदिंद इन्नॊंदु भारवन्नु सहिसुव हॊस धनुस्सन्नु कैगॆत्तिकॊंडनु.

08040026a प्रज्वलन्निव वेगेन संरंभाद्रुधिरेक्षणः।
08040026c अशोभत महेष्वासो धृष्टद्युम्नः कृतव्रणः।।

तुंबागायगॊंडिद्द, कोपदिंद कण्णुगळु कॆंपागिद्द महेष्वास धृष्टद्युम्ननु वेगदिंद प्रज्वलिसुत्तिरुव अग्नियंतॆये शोभिसिदनु.

08040027a स पंचदश नाराचां श्वसतः पन्नगानिव।
08040027c जिघांसुर्भरतश्रेष्ठं धृष्टद्युम्नो व्यवासृजत्।।

भरतश्रेष्ठ दुर्योधननन्नु संहरिसलोसुग धृष्टद्युम्ननु पन्नगगळंतॆ भुसुगुडुत्तिरुव हदिनैदु नाराचगळन्नु प्रयोगिसिदनु.

08040028a ते वर्म हेमविकृतं भित्त्वा राज्ञः शिलाशिताः।
08040028c विविशुर्वसुधां वेगात्कंकबर्हिणवाससः।।

रणहद्दिन रॆक्कॆगळे वस्त्रगळागिद्द आ शिलाशित बाणगळु राजन सुवर्णमय कवचवन्नु भेदिसि वेगवागि नॆलवन्नु हॊक्कवु.

08040029a सोऽतिविद्धो महाराज पुत्रस्तेऽतिव्यराजत।
08040029c वसंते पुष्पशबलः सपुष्प इव किंशुकः।।

महाराज! अतियागि गायगॊंड निन्न मगनु वसंतदल्लि हूबिट्ट मुत्तुगद मरदंतॆये तोरिदनु.

08040030a स चिन्नवर्मा नाराचैः प्रहारैर्जर्जरच्चविः।
08040030c धृष्टद्युम्नस्य भल्लेन क्रुद्धश्चिच्छेद कार्मुकं।।

नाराचगळ प्रहारदिंद कवचवु छिद्रवागलु दुर्योधनन शरीरवु जर्जरितवायितु. आग अवनु क्रुद्धनागि भल्लदिंद धृष्टद्युम्नन कार्मुकवन्नु तुंडरिसिदनु.

08040031a अथैनं छिन्नधन्वानं त्वरमाणो महीपतिः।
08040031c सायकैर्दशभी राजन् भ्रुवोर्मध्ये समार्दयत्।।

राजन्! कूडले आ महीपतियु त्वरॆमाडि धनुस्सु तुंडागिद्द धृष्टद्युम्नन हुब्बुगळ मध्यॆ हत्तु सायकगळन्नु प्रहरिसिदनु.

08040032a तस्य तेऽशोभयन्वक्त्रं कर्मारपरिमार्जिताः।
08040032c प्रफुल्लं चंपकं यद्वद्भ्रमरा मधुलिप्सवः।।

मधुवन्नपेक्षिसुव दुंबिगळु अरळिद तावरॆयन्नु हेगो हागॆ कम्मारनिंद हदगॊळिसिद्द आ बाणगळु धृष्टद्युम्नन मुखवन्नु शोभॆगॊळिसिदवु.

08040033a तदपास्य धनुश्छिन्नं धृष्टद्युम्नो महामनाः।
08040033c अन्यदादत्त वेगेन धनुर्भल्लांश्च षोडश।।

आग महामनस्वि धृष्टद्युम्ननु तुंडाद धनुस्सन्नु बिसुटु वेगदिंद इन्नॊंदु धनुस्सन्नू हदिनारु भल्लगळन्नू ऎत्तिकॊंडनु.

08040034a ततो दुर्योधनस्याश्वान् हत्वा सूतं च पंचभिः।
08040034c धनुश्चिच्छेद भल्लेन जातरूपपरिष्कृतं।।

आग अवनु ऐदु भल्लगळिंद दुर्योधनन कुदुरॆगळन्नू सारथियन्नु संहरिसि आरनॆयदरिंद अवन सुवर्णपरिष्कृत धनुस्सन्नु तुंडरिसिदनु.

08040035a रथं सोपस्करं चत्रं शक्तिं खड्गं गदां ध्वजं।
08040035c भल्लैश्चिच्चेद नवभिः पुत्रस्य तव पार्षतः।।

पार्षतनु उळिद ऒंभत्तु भल्लगळिंद युद्धसामग्रिगळिंद युक्तवागिद्द निन्न मगन रथ, चत्र, शक्ति, खड्ग, गदॆ मत्तु ध्वजगळन्नु तुंडरिसिदनु.

08040036a तपनीयांगदं चित्रं नागं मणिमयं शुभं।
08040036c ध्वजं कुरुपतेश्छिन्नं ददृशुः सर्वपार्थिवाः।।

चिन्नद अंगदगळिंद शोभिसुत्तिद्द आ मणिमय, नागद चिह्नॆयुळ्ळ कुरुपतिय ध्वजवु तुंडागिद्दुदन्नु सर्व पार्थिवरू नोडिदरु.

08040037a दुर्योधनं तु विरथं छिन्नसर्वायुधं रणे।
08040037c भ्रातरः पर्यरक्षंत सोदर्या भरतर्षभ।।

भरतर्षभ! रणदल्लि विरथनागिद्द, सर्वायुधगळन्नू कळॆदुकॊंडिद्द आण्ण दुर्योधननन्नु सहोदररु परिरक्षिसुत्तिद्दरु.

08040038a तमारोप्य रथे राजन्दंडधारो जनाधिपं।
08040038c अपोवाह च संभ्रांतो धृष्टद्युम्नस्य पश्यतः।।

राजन्! धृष्टद्युम्ननु नोडुत्तिद्दंतॆये संभ्रांतनागिद्द जनाधिप दुर्योधननन्नु दंडधारनु तन्न रथदल्लि एरिसिकॊंडनु.

08040039a कर्णस्तु सात्यकिं जित्वा राजगृद्धी महाबलः।
08040039c द्रोणहंतारमुग्रेषुं ससाराभिमुखं रणे।।

राजन हिताकांक्षी महाबल कर्णनादरो सात्यकियन्नु गॆद्दु रणदल्लि उग्र द्रोणहंतार धृष्टद्युम्ननन्नु ऎदुरिसि होदनु.

08040040a तं पृष्ठतोऽभ्ययात्तूर्णं शैनेयो वितुदं शरैः।
08040040c वारणं जघनोपांते विषाणाभ्यामिव द्विपः।।

ऒंदु आनॆयु इन्नॊंदु आनॆय हिंभागवन्नु दंतगळिंद तिवियुवंतॆ शैनेयनु वेगवागि शरगळिंद कर्णनन्नु पीडिसुत्ता अवन हिंदॆये होदनु.

08040041a स भारत महानासीद्योधानां सुमहात्मनां।
08040041c कर्णपार्षतयोर्मध्ये त्वदीयानां महारणः।।

भारत! आग महारणदल्लि कर्ण-पार्षतर मध्यॆ मत्तु निन्नकडॆय महात्म योधर महायुद्धवु नडॆयितु.

08040042a न पांडवानामस्माकं योधः कश्चित्पराङ्मुखः।
08040042c प्रत्यदृश्यत यत्कर्णः पांचालांस्त्वरितो ययौ।।

पांडवर मत्तु नम्मवर याव योधनू परांङ्मुखनादुदु तोरलिल्ल. आग कर्णनु त्वरॆमाडि पांचालरन्नु आक्रमणिसिदनु.

08040043a तस्मिन् क्षणे नरश्रेष्ठ गजवाजिनरक्षयः।
08040043c प्रादुरासीदुभयतो राजन्मध्यंगतेऽहनि।।

नरश्रेष्ठ! राजन्! मध्याह्नद आ समयदल्लि ऎरडू पक्षगळल्लि आनॆ-कुदुरॆ-मनुष्यर विनाशवु नडॆयितु.

08040044a पांचालास्तु महाराज त्वरिता विजिगीषवः।
08040044c सर्वतोऽभ्यद्रवन्कर्णं पतत्रिण इव द्रुमं।।

महाराज! जयवन्नु बयसिद पांचालरादरो त्वरॆमाडि पक्षिगळु वृक्षवन्नु हेगो हागॆ कर्णनन्नु ऎल्लकडॆगळिंद आक्रमणिसिदरु.

08040045a तेषामाधिरथिः क्रुद्धो यतमानान्मनस्विनः।
08040045c विछिन्वन्नेव बाणाग्रैः समासादयदग्रतः।।

क्रुद्धनाद आधिरथियु प्रयत्नपडुत्तिद्द आ मनस्विगळन्नु अय्दाय्दुकॊंडु बाणाग्रगळिंद संहरिसलु उपक्रमिसिदनु.

08040046a व्याघ्रकेतुं सुशर्माणं शंकुं चोग्रं धनंजयं।
08040046c शुक्लं च रोचमानं च सिंहसेनं च दुर्जयं।।
08040047a ते वीरा रथवेगेन परिवव्रुर्नरोत्तमं।
08040047c सृजंतं सायकान्क्रुद्धं कर्णमाहवशोभिनं।।

व्याघ्रकेतु, सुशर्म, शंकु, उग्र, धनंजय, शुक्ल, रोचमान, सिंहसेन मत्तु दुर्जय – ई वीररु रथवेगदिंद क्रुद्धनागि सायकगळन्नु प्रयोगिसुत्तिद्द आहवशोभी नरोत्तम कर्णनन्नु सुत्तुवरॆदरु.

08040048a युध्यमानांस्तु तान् शूरान्मनुजेंद्रः प्रतापवान्।
08040048c अष्टाभिरष्टौ राधेयो न्यहनन्निशितैः शरैः।।

युद्धमाडुत्तिद्द आ ऎंटु शूररन्नु मनुजेंद्र प्रतापवान् राधेयनु ऎंटु निशित शरगळिंद संहरिसिदनु.

08040049a अथापरान्महाराज सूतपुत्रः प्रतापवान्।
08040049c जघान बहुसाहस्रान्योधान्युद्धविशारदः।।

महाराज! प्रतापवान् युद्धविशारद सूतपुत्रनु इन्नू अनेक सहस्रारु योधरन्नु संहरिसिदनु.

08040050a विष्णुं च विष्णुकर्माणं देवापिं भद्रमेव च।
08040050c दंडं च समरे राजंश्चित्रं चित्रायुधं हरिं।।
08040051a सिंहकेतुं रोचमानं शलभं च महारथं।
08040051c निजघान सुसंक्रुद्धश्चेदीनां च महारथान्।।

राजन्! संक्रुद्धनागिद्द अवनु समरदल्लि चेदिदेशद विष्णु, विष्णुकर्म, देवापि, भद्र, दंड, चित्र, चित्रायुध, हरि, सिंहकेतु, रोचमान, मत्तु महारथ शलभरन्नू संहरिसिदनु.

08040052a तेषामाददतः प्राणानासीदाधिरथेर्वपुः।
08040052c शोणिताभ्युक्षितांगस्य रुद्रस्येवोर्जितं महत्।।

अवर प्राणगळन्नु हीरिकॊळ्ळुत्तिद्द मत्तु अंगांगगळु रक्तसिक्तवागिद्द आ राधेयन शरीरवु रुद्रन विशाल शरीरदंतॆ काणुत्तित्तु.

08040053a तत्र भारत कर्णेन मातंगास्ताडिताः शरैः।
08040053c सर्वतोऽभ्यद्रवन्भीताः कुर्वंतो महदाकुलं।।

भारत! अल्लि कर्णन शरगळिंद प्रहरिसल्पट्ट आनॆगळु भयगॊंडु ऎल्लकडॆ ओडिहोगुत्ता महा व्याकुलवन्नुंटुमाडुत्तिद्दवु.

08040054a निपेतुरुर्व्यां समरे कर्णसायकपीडिताः।
08040054c कुर्वंतो विविधान्नादान्वज्रनुन्ना इवाचलाः।।

समरदल्लि कर्णन सायकगळिंद पीडित आनॆगळु विविध कूगुगळन्नु कूगुत्ता वज्राहत पर्वतगळंतॆ भूमिय मेलॆ बीळुत्तिद्दवु.

08040055a गजवाजिमनुष्यैश्च निपतद्भिः समंततः।
08040055c रथैश्चावगतैर्मार्गे पर्यस्तीर्यत मेदिनी।।

कर्णनु होगुत्तिद्द मार्गगळल्लि ऎल्लकडॆगळल्लि आनॆ-कुदुरॆ-मनुष्यरु मत्तु रथगळु बिद्दु रणभूमियन्नु तुंबुत्तिद्दवु.

08040056a नैव भीष्मो न च द्रोणो नाप्यन्ये युधि तावकाः।
08040056c चक्रुः स्म तादृशं कर्म यादृशं वै कृतं रणे।।

कर्णनु रणदल्लि माडिदंथ साहसकर्मवन्नु निन्नकडॆय यारू – भीष्मनागली, द्रोणनागली अथवा इन्यारे आगली – युद्धदल्लि माडिदुदन्नु नानु नोडिरलिल्ल.

08040057a सूतपुत्रेण नागेषु रथेषु च हयेषु च।
08040057c नरेषु च नरव्याघ्र कृतं स्म कदनं महत्।।

नरव्याघ्र सूतपुत्रनु आनॆगळु, रथगळु, कुदुरॆगळु मत्तु मनुष्यरॊंदिगॆ महाकदनवाडिदनु.

08040058a मृगमध्ये यथा सिंहो दृश्यते निर्भयश्चरन्।
08040058c पांचालानां तथा मध्ये कर्णोऽचरदभीतवत्।।

मृगगळ मध्यदल्लि सिंहवु निर्भयवागि संचरिसुवंतॆ पांचालर मध्यदल्लि कर्णनु भीतियिल्लदे संचरिसुत्तिद्दनु.

08040059a यथा मृगगणांस्त्रस्तान्सिंहो द्रावयते दिशः।
08040059c पांचालानां रथव्रातान्कर्णो द्रावयते तथा।।

भयगॊंड मृगगणगळन्नु सिंहवु हेगॆ दिक्कापालागि ओडिसुवुदो हागॆ कर्णनु पांचालर रथसमूहगळन्नु ओडिसुत्तिद्दनु.

08040060a सिंहास्यं च यथा प्राप्य न जीवंति मृगाः क्व चित्।
08040060c तथा कर्णमनुप्राप्य न जीवंति महारथाः।।

सिंहनिगॆ सिलुकिद मृगगळु हेगॆ जीवंतवागिरुवुदिल्लवो हागॆ कर्णनिगॆ सिलुकिद महारथरु जीवदिंदिरुत्तिरलिल्ल.

08040061a वैश्वानरं यथा दीप्तं दह्यंते प्राप्य वै जनाः।
08040061c कर्णाग्निना रणे तद्वद्दग्धा भारत सृंजयाः।।

भारत! प्रज्वलिसुत्तिरुव वैश्वानरनिगॆ सिलुकिद जनरु हेगॆ सुट्टुहोगुवरो हागॆ रणदल्लि कर्णाग्नियिंद सृंजयरु दहिसिहोगुत्तिद्दरु.

08040062a कर्णेन चेदिष्वेकेन पांचालेषु च भारत।
08040062c विश्राव्य नाम निहता बहवः शूरसम्मताः।।

भारत! कर्णनु तन्न हॆसरन्नु हेळिकॊंडु अनेक शूरसम्मत चेदि-केकय-पांचालरन्नु संहरिसिदनु.

08040063a मम चासीन्मनुष्येंद्र दृष्ट्वा कर्णस्य विक्रमं।
08040063c नैकोऽप्याधिरथेर्जीवन्पांचाल्यो मोक्ष्यते युधि।।

मनुष्येंद्र! कर्णन विक्रमवन्नु नोडि ऒब्ब पांचल्यनू युद्धदल्लि आधिरथियिंद जीवसहित उळियलारनु ऎंदु भाविसिदॆनु.

08040064a पांचालान्विधमन्संख्ये सूतपुत्रः प्रतापवान्।
08040064c अभ्यधावत संक्रुद्धो धर्मपुत्रं युधिष्ठिरं।।

युद्धदल्लि पांचालरन्नु सदॆबडिदु प्रतापवान् सूतपुत्रनु संक्रुद्धनागि धर्मपुत्र युधिष्ठिरनन्नु आक्रमणिसिदनु.

08040065a धृष्टद्युम्नश्च राजानं द्रौपदेयाश्च मारिष।
08040065c परिवव्रुरमित्रघ्नं शतशश्चापरे जनाः।।

मारिष! आग धृष्टद्युम्न, द्रौपदेयरु मत्तु नूरारु इतररु अमित्रघ्न राज युधिष्ठिरनन्नु सुत्तुवरॆदरु.

08040066a शिखंडी सहदेवश्च नकुलो नाकुलिस्तथा।
08040066c जनमेजयः शिनेर्नप्ता बहवश्च प्रभद्रकाः।।
08040067a एते पुरोगमा भूत्वा धृष्टद्युम्नस्य संयुगे।
08040067c कर्णमस्यंतमिष्वस्त्रैर्विचेरुरमितौजसः।।

शिखंडी, सहदेव, नकुल, शतानीक, जनमेजय, सात्यकि मत्तु अनेक प्रभद्रकरु धृष्टद्युम्ननन्नु मुंदिरिसिकॊंडु युद्धदल्लि अमितौजस कर्णनन्नु अस्त्र-शस्त्रगळिंद प्रहरिसुत्ता संचरिसुत्तिद्दरु.

08040068a तांस्तत्राधिरथिः संख्ये चेदिपांचालपांडवान्।
08040068c एको बहूनभ्यपतद्गरुत्मन्पन्नगानिव।।

गरुडनु सर्पगळ मेलॆ बीळुवंतॆ युद्धदल्लि आधिरथि कर्णनु ऒब्बने अनेक चेदि-पांचाल-पांडवर मेलॆ ऎरगिदनु.

08040069a भीमसेनस्तु संक्रुद्धः कुरून्मद्रान्सकेकयान्।
08040069c एकः संख्ये महेष्वासो योधयन्बह्वशोभत।।

संक्रुद्धनागिद्द महेष्वास भीमसेननादरो ऒंटियागि केकयरॊंदिगॆ युद्धदल्लि कुरु-मद्ररन्नु ऎदुरिसुत्ता बहळवागि शोभिसिदनु.

08040070a तत्र मर्मसु भीमेन नाराचैस्ताडिता गजाः।
08040070c प्रपतंतो हतारोहाः कंपयंति स्म मेदिनीं।।

भीमन नाराचगळिंद मर्मगळु भेदिसल्पट्ट आनॆगळु हतराद गजारोहिगळॊडनॆ मेदिनियन्ने नडुगिसुत्ता कॆळगॆ बीळुत्तिद्दवु.

08040071a वाजिनश्च हतारोहाः पत्तयश्च गतासवः।
08040071c शेरते युधि निर्भिन्ना वमंतो रुधिरं बहु।।

हतगॊंड कुदुरॆगळू, कुदुरॆ सवाररू, जीवतॊरॆद पदातिगळु युद्धदल्लि निर्भिन्नरागि बहळ रक्तवन्नु कारुत्ता मलगिद्दरु.

08040072a सहस्रशश्च रथिनः पतिताः पतितायुधाः।
08040072c अक्षताः समदृश्यंत भीमाद्भीता गतासवः।।

सहस्रारु रथिगळु बिद्दिद्दरु. अवर आयुधगळू बिद्दिद्दवु. क्षत-विक्षतराद अवरु भीमन भयदिंदले प्राणगळन्नु तॊरॆदंतॆ तोरुत्तिद्दरु.

08040073a रथिभिर्वाजिभिः सूतैः पत्तिभिश्च तथा गजैः।
08040073c भीमसेनशरच्चिन्नैरास्तीर्णा वसुधाभवत्।।

भीमसेनन शरगळिंद नाशगॊंड रथिगळु, कुदुरॆगळु, सारथिगळु, पदातिगळु मत्तु आनॆगळिंद युद्धभूमियु तुंबिहोगित्तु.

08040074a तत्स्तंभितमिवातिष्ठद्भीमसेनबलार्दितं।
08040074c दुर्योधनबलं राजन्निरुत्साहं कृतव्रणं।।

राजन्! भीमसेनन बलदिंद पीडितगॊंडु गायगॊंडिद्द दुर्योधनन सेनॆयु निरुत्साहगॊंडु स्तब्धवागि निंतुबिट्टित्तु.

08040075a निश्चेष्टं तुमुले दीनं बभौ तस्मिन्महारणे।
08040075c प्रसन्नसलिलः काले यथा स्यात्सागरो नृप।।

नृप! भरतविल्लद समयदल्लि समुद्रवु प्रशांतवागिरुवंतॆ आ तुमुल महारणवु दीनवू निश्चेष्टवू आगिद्दितु.

08040076a मन्युवीर्यबलोपेतं बलात्पर्यवरोपितं।
08040076c अभवत्तव पुत्रस्य तत्सैन्यमिषुभिस्तदा।
08040076e रुधिरौघपरिक्लिन्नं रुधिरार्द्रं बभूव ह।।

आ समयदल्लि कूड निन्न मगन सेनॆयु कोप, वीर्य, बलगळिंद कूडित्तु. आदरॆ अदर दर्पवु उडुगिहोगित्तु. रक्तवु सोरि अदे रक्तदिंदले सेनॆयु तोय्दुहोयितु.

08040077a सूतपुत्रो रणे क्रुद्धः पांडवानामनीकिनीं।
08040077c भीमसेनः कुरूंश्चापि द्रावयन्बह्वशोभत।।

रणदल्लि क्रुद्धनाद सूतपुत्रनु पांडव सेनॆयन्नु मत्तु भीमसेननु कुरुसेनॆयन्नु पलायनगॊळिसुत्ता बहळवागि शोभिसिदरु.

08040078a वर्तमाने तथा रौद्रे संग्रामेऽद्भुतदर्शने।
08040078c निहत्य पृतनामध्ये संशप्तकगणान् बहून्।।
08040079a अर्जुनो जयतां श्रेष्ठो वासुदेवमथाब्रवीत्।

हागॆ नोडलु अद्भुतवागिद्द आ रौद्र संग्रामवु नडॆयुत्तिरलु सेनामध्यदल्लि अनेक संशप्तकगणगळन्नु संहरिसि जयिगळल्लि श्रेष्ठ अर्जुननु वासुदेवनिगॆ हेळिदनु:

08040079c प्रभग्नं बलमेतद्धि योत्स्यमानं जनार्दन।।
08040080a एते धावंति सगणाः संशप्तकमहारथाः।
08040080c अपारयंतो मद्बाणान्सिंहशब्दान्मृगा इव।।

“जनार्दन! युद्धमाडुत्तिरुववर सेनॆयु भग्नवायितॆंदे तिळि! इगो! सिंहगर्जनॆयन्नु जिंकॆगळु हेगो हागॆ नन्न बाणगळन्नु सहिसलारदे संशप्तक महारथरु सेनॆगळॊडनॆ ओडि होगुत्तिद्दारॆ!

08040081a दीर्यते च महत्सैन्यं सृंजयानां महारणे।
08040081c हस्तिकक्ष्यो ह्यसौ कृष्ण केतुः कर्णस्य धीमतः।
08040081e दृश्यते राजसैन्यस्य मध्ये विचरतो मुहुः।।

कृष्ण! आनॆयन्नु कट्टुव हग्गद चिह्नॆयुळ्ळ धीमत कर्णनु महारणदल्लि सृंजयर महासेनॆयन्नु सीळुत्ता राजसैन्यद मध्यॆ अत्तित्त संचरिसुत्तिरुवुदु काणुत्तिदॆ.

08040082a न च कर्णं रणे शक्ता जेतुमन्ये महारथाः।
08040082c जानीते हि भवान्कर्णं वीर्यवंतं पराक्रमे।।

रणदल्लि कर्णनन्नु गॆल्ललु अन्य महारथरु शक्तरिल्ल. वीर्यवंत कर्णन पराक्रमवन्नु नीनु तिळिदुकॊंडिरुवॆ!

08040083a तत्र याहि यतः कर्णो द्रावयत्येष नो बलं।
08040084a वर्जयित्वा रणे याहि सूतपुत्रं महारथं।
08040084c श्रमो मा बाधते कृष्ण यथा वा तव रोचते।।

कृष्ण! नम्म सेनॆगळन्नु ऎल्लि कर्णनु ओडिसुत्तिरुवनो अल्लिगॆ कॊंडॊय्यि! निनगॆ श्रमवागदिद्दरॆ अथवा निनगॆ इष्टवादरॆ ई रणरंगवन्नु बिट्टु महारथ सूतपुत्रनिरुवल्लिगॆ करॆदॊय्यि!”

08040085a एतच्छृत्वा महाराज गोविंदः प्रहसन्निव।
08040085c अब्रवीदर्जुनं तूर्णं कौरवां जहि पांडव।।

महाराज! इदन्नु केळि गोविंदनु नसुनगुत्ता “पांडव! बेगने कौरवरन्नु संहरिसु!” ऎंदु अर्जुननिगॆ हेळिदनु.

08040086a ततस्तव महत्सैन्यं गोविंदप्रेरिता हयाः।
08040086c हंसवर्णाः प्रविविशुर्वहंतः कृष्णपांडवौ।।

अनंतर गोविंदप्रेरित हंसवर्णद कुदुरॆगळु कृष्ण-पांडवरन्नु हॊत्तु निन्न महा सेनॆयन्नु प्रवेशिसिदवु.

08040087a केशवप्रहितैरश्वैः श्वेतैः कांचनभूषणैः।
08040087c प्रविशद्भिस्तव बलं चतुर्दिशमभिद्यत।।

केशवनिंद नडॆसल्पट्ट कांचनभूषित श्वेतहयगळु प्रवेशिसुत्तिद्दंतॆये निन्न सेनॆयु नाल्कु दिक्कुगळिगू चदुरितु.

08040088a तौ विदार्य महासेनां प्रविष्टौ केशवार्जुनौ।
08040088c क्रुद्धौ संरंभरक्ताक्षौ व्यभ्राजेतां महाद्युती।।

क्रुद्धरागिद्द, कोपदिंद कण्णुगळु कॆंपागिद्द महाद्युती केशवार्जुनरु आ महासेनॆयन्नु सीळि प्रवेशिसि बहळवागि राराजिसिदरु.

08040089a युद्धशौंडौ समाहूतावरिभिस्तौ रणाध्वरं।
08040089c यज्वभिर्विधिनाहूतौ मखे देवाविवाश्विनौ।।

ऋत्विजरिंद विधिवत्तागि अह्वानिसल्पट्ट अश्विनी देवतॆगळंतॆ युद्धक्कॆ आह्वानिसल्पट्ट आ इब्बरु युद्धशौंडरू रणाध्वरवन्नु प्रवेशिसिदरु.

08040090a क्रुद्धौ तौ तु नरव्याघ्रौ वेगवंतौ बभूवतुः।
08040090c तलशब्धेन रुषितौ यथा नागौ महाहवे।।

महाहवदल्लि चप्पाळॆ शब्धगळन्नु केळि रोषगॊंड मद्दानॆगळंतॆ आ इब्बरु नरव्याघ्ररू क्रुद्धरागि वेगवागि कुरुसेनॆयन्नु प्रवेशिसिदरु.

08040091a विगाहन्स रथानीकमश्वसंघांश्च फल्गुनः।
08040091c व्यचरत्पृतनामध्ये पाशहस्त इवांतकः।।

महाराज! फल्गुननु आ रथसेनॆ-अश्वसेनॆगळन्नु भेदिसि ऒळनुग्गि पाशहस्त अंतकनंतॆ सेनामध्यदल्लि संचरिसुत्तिद्दनु.

08040092a तं दृष्ट्वा युधि विक्रांतं सेनायां तव भारत।
08040092c संशप्तकगणान्भूयः पुत्रस्ते समचोदयत्।।

भारत! निन्न सेनॆगळ मध्यदल्लि अवन युद्धविक्रमवन्नु कंडु निन्न मगनु संशप्तकगणगळन्नु पुनः प्रचोदिसिदनु.

08040093a ततो रथसहस्रेण द्विरदानां त्रिभिः शतैः।
08040093c चतुर्दशसहस्रैश्च तुरगाणां महाहवे।।
08040094a द्वाभ्यां शतसहस्राभ्यां पदातीनां च धन्विनां।
08040094c शूराणां नामलब्धानां विदितानां समंततः।
08040094e अभ्यवर्तंत तौ वीरौ चादयंतो महारथाः।।

आग महाहवदल्लि आ महारथ संशप्तकरु साविर रथगळु, मूरु नूरु आनॆगळु, हदिनाल्कु साविर कुदुरॆगळु मत्तु ऎरडु लक्ष शूर धन्वि युद्धनिपुण पदातिगळॊंदिगॆ गर्जिसुत्ता आ इब्बरु वीररन्नु मुत्तिगॆ हाकि आक्रमणिसिदरु.

08040095a स छाद्यमानः समरे शरैः परबलार्दनः।
08040095c दर्शयन्रौद्रमात्मानं पाशहस्त इवांतकः।
08040095e निघ्नन्संशप्तकान्पार्थः प्रेक्षणीयतरोऽभवत्।।

हागॆ समरदल्लि शरगळिंद आच्छादितनाद परबलार्दन पार्थनु पाशहस्त अंतकनंतॆ रौद्ररूपवन्नु ताळि संशप्तकरन्नु संहरिसुत्ता प्रेक्षणीयनादनु.

08040096a ततो विद्युत्प्रभैर्बाणैः कार्तस्वरविभूषितैः।
08040096c निरंतरमिवाकाशमासीन्नुन्नैः किरीटिना।।

आग किरीटियिंद निरंतरवागि प्रयोगिसल्पट्ट सुवर्णविभूषित विद्युत् प्रभॆय बाणगळिंद स्वल्पवू स्थळविल्लदंतॆ आकाशवु तुंबिहोयितु.

08040097a किरीटिभुजनिर्मुक्तैः संपतद्भिर्महाशरैः।
08040097c समाच्छन्नं बभौ सर्वं काद्रवेयैरिव प्रभो।।

प्रभो! किरीटिय भुजगळिंद हॊरट आ महाशरगळिंद तुंबिहोगिद्द आ प्रदेशवु सर्पगळिंद तुंबिरुवुदो ऎन्नुवंतॆ काणुत्तित्तु.

08040098a रुक्मपुंखन्प्रसन्नाग्रां शरान्सन्नतपर्वणः।
08040098c अदर्शयदमेयात्मा दिक्षु सर्वासु पांडवः।।

अमेयात्म पांडवनु रुक्मपुंखगळ प्रसन्नाग्र सन्नतपर्व शरगळन्नु ऎल्लदिक्कुगळल्लियू सुरिसिदनु.

08040099a हत्वा दश सहस्राणि पार्थिवानां महारथः।
08040099c संशप्तकानां कौंतेयः प्रपक्षं त्वरितोऽभ्ययात्।।

हत्तु साविर संशप्तक पार्थिवरन्नु संहरिसि महारथ कौंतेयनु त्वरॆमाडि शत्रुसेनॆय कडॆ धाविसिदनु.

08040100a प्रपक्षं स समासाद्य पार्थः कांबोजरक्षितं।
08040100c प्रममाथ बलाद्बाणैर्दानवानिव वासवः।।

शत्रुपक्षवन्नु हॊक्कु पार्थनु वासवनु दानव सेनॆयन्नु हेगो हागॆ बाणगळिंद कांबोजरक्षित सेनॆयन्नु मथिसिदनु.

08040101a प्रचिच्छेदाशु भल्लैश्च द्विषतामाततायिनां।
08040101c शस्त्रपाणींस्तथा बाहूंस्तथापि च शिरांस्युत।।

आ द्वेषी आततायिनर शस्त्रगळन्नू, कैगळन्नू, बाहुगळन्नू मत्तु शिरगळन्नू अर्जुननु भल्लगळिंद तुंडरिसिदनु.

08040102a अंगांगावयवैश्छिन्नैर्व्यायुधास्तेऽपतन् क्षितौ।।
08040102c विष्वग्वाताभिसंभग्ना बहुशाखा इव द्रुमाः।

भिरुगाळिगॆ सिलुकि उरुळिद बहुशाखॆगळुळ्ळ वृक्षगळंतॆ शत्रु योधरु अंगागगळु तुंडागि निरायुधरागि भूमिय मेलॆ बिद्दरु.

08040103a हस्त्यश्वरथपत्तीनां व्रातान्निघ्नंतमर्जुनं।
08040103c सुदक्षिणादवरजः शरवृष्ट्याभ्यवीवृषत्।।

आनॆ-कुदुरॆ-रथ-पदातिगळन्नु भिरुगाळियंतॆ संहरिसुत्तिद्द अर्जुननन्नु कांबोजराज सुदक्षिणन तम्मनु शरवृष्टियिंद अभिषेचिसिदनु.

08040104a अस्यास्यतोऽर्धचंद्राभ्यां स बाहू परिघोपमौ।
08040104c पूर्णचंद्राभवक्त्रं च क्षुरेणाभ्यहनच्छिरः।।

अर्जुननु अवन परिघोपम बाहुगळन्नु ऎरडु अर्धचंद्रगळिंद तुंडरिसि क्षुरदिंद पूर्णचंद्रनंतिरुव मुखवुळ्ळ अवन शिरवन्नु अपहरिसिदनु.

08040105a स पपात ततो वाहात्स्वलोहितपरिस्रवः।
08040105c मनःशिलागिरेः शृंगं वज्रेणेवावदारितं।।

आग वज्रायुधप्रहारदिंद ऒडॆदु कॆळगॆ बिद्द मनःशिल गिरिय शिखरदंतॆ अवनु तन्नदे रक्तदल्लि तोय्दु रथदिंद कॆळक्कॆ बिद्दनु.

08040106a सुदक्षिणादवरजं कांबोजं ददृशुर्हतं।
08040106c प्रांशुं कमलपत्राक्षमत्यर्थं प्रियदर्शनं।
08040106e कांचनस्तंभसंकाशं भिन्नं हेमगिरिं यथा।।

कमलपत्राक्ष प्रियदर्शन कांचन स्थंभदंतॆ उन्नतनागिद्द कांबोज सुदक्षिणन कडॆय तम्मनु हतनादुदन्नु ऎल्लरू नोडिदरु.

08040107a ततोऽभवत्पुनर्युद्धं घोरमद्भुतदर्शनं।
08040107c नानावस्थाश्च योधानां बभूवुस्तत्र युध्यतां।।

आग पुनः नोडलु अद्भुतवागिद्द घोर युद्धवु प्रारंभवायितु. अल्लि युद्धमाडुत्तिद्द योधरु नानावस्थॆगळिगीडादरु.

08040108a एतेष्वावर्जितैरश्वैः कांबोजैर्यवनैः शकैः।
08040108c शोणिताक्तैस्तदा रक्तं सर्वमासीद्विशां पते।।

विशांपते! ऒंदॊंदे बाणदिंद हतरागि रक्तसिक्त कांबोज, यवन मत्तु शकरिंद हागू कुदुरॆगळिंद सर्ववू रक्तमयवायितु.

08040109a रथै रथाश्वसूतैश्च हतारोहैश्च वाजिभिः।
08040109c द्विरदैश्च हतारोहैर्महामात्रैर्हतद्विपैः।
08040109e अन्योन्येन महाराज कृतो घोरो जनक्षयः।।

महाराज! कुदुरॆ-सारथिगळु हतराद रथगळिंदलू, सवाररु हतराद कुदुरॆगळिंदलू, मावुतरु हतराद आनॆगळिंदलू अन्योन्यरिंद हतगॊंड महाकायद आनॆगळिंदलू घोर जनक्षयवु नडॆयितु.

08040110a तस्मिन्प्रपक्षे पक्षे च वध्यमाने महात्मना।
08040110c अर्जुनं जयतां श्रेष्ठं त्वरितो द्रौणिराययौ।।

सेनॆय पक्ष-प्रपक्षगळॆरडन्नू वधिसुत्तिद्द विजयिगळल्लि श्रेष्ठ महात्म अर्जुननन्नु द्रौणियु त्वरॆमाडि आक्रमणिसिदनु.

08040111a विधुन्वानो महच्छापं कार्तस्वरविभूषितं।
08040111c आददानः शरान्घोरान्स्वरश्मीनिव भास्करः।।

सुवर्ण विभूषित महाधनुस्सन्नु टेंकरिसुत्ता अवनु भास्करनु तन्न किरणगळन्नु हेगो हागॆ घोर शरगळन्नु पुंखानुपुंखवागि प्रयोगिसिदनु.

08040112a तैः पतद्भिर्महाराज द्रौणिमुक्तैः समंततः।
08040112c संचादितौ रथस्थौ तावुभौ कृष्णधनंजयौ।।

महाराज! द्रौणियिंद बिडल्पट्ट आ शरगळु रथदल्लिद्द कृष्ण-धनंजयरिब्बरन्नू ऎल्लकडॆगळिंद मुच्चिबिट्टवु.

08040113a ततः शरशतैस्तीक्ष्णैर्भारद्वाजः प्रतापवान्।
08040113c निश्चेष्टौ तावुभौ चक्रे युद्धे माधवपांडवौ।।

आग प्रतापवान् भारद्वाजनु युद्धदल्लि नूरु तीक्ष्ण शरगळिंद माधव-पांडवरिब्बरन्नू निश्चेष्टरन्नागि माडिदनु.

08040114a हाहाकृतमभूत्सर्वं जंगमं स्थावरं तथा।
08040114c चराचरस्य गोप्तारौ दृष्ट्वा संचादितौ शरैः।।

चराचरगळॆल्लवन्नू रक्षिसुव अवरिब्बरू शरगळिंद मुच्चिहोदुदन्नु नोडि स्थावर-जंगमगळल्लि हाहाकारवुंटायितु.

08040115a सिद्धचारणसंघाश्च संपेतुर्वै समंततः।
08040115c चिंतयंतो भवेदद्य लोकानां स्वस्त्यपीत्यह।।

“इंदु लोकगळु उळियुववे?” ऎंदु चिंतिसुत्ता सिद्ध-चारण संघगळु ऎल्लकडॆगळिंद बंदु अल्लि सेरिदवु.

08040116a न मया तादृशो राजन्दृष्टपूर्वः पराक्रमः।
08040116c संजज्ञे यादृशो द्रौणेः कृष्णौ संचादयिष्यतः।।

राजन्! युद्धदल्लि कृष्णार्जुनरन्नु आ रीति आच्छादिसिद द्रौणिय पराक्रमवन्नु नानु इदर हिंदॆ ऎंदू नोडिरलिल्ल.

08040117a द्रौणेस्तु धनुषः शब्दमहितत्रासनं रणे।
08040117c अश्रौषं बहुशो राजन्सिंहस्य नदतो यथा।।

राजन्! सिंहद गर्जनॆयंतॆ रणदल्लि शत्रुगळन्नु भयगॊळिसुत्तिद्द द्रौणिय धनुस्सिन टेंकार शब्धवन्नु बहुषः यारू केळिरलिल्ल.

08040118a ज्या चास्य चरतो युद्धे सव्यदक्षिणमस्यतः।
08040118c विद्युदंबुदमध्यस्था भ्राजमानेव साभवत्।।

मोडगळ मध्यॆ प्रकाशिसुव मिंचिनंतॆ युद्धदल्लि ऎड-बलगळल्लि बाणगळन्नु हॊरहाकुत्तिद्द अवन शिंजनियु प्रकाशिसुत्तित्तु.

08040119a स तथा क्षिप्रकारी च दृढहस्तश्च पांडवः।
08040119c सम्मोहं परमं गत्वा प्रैक्षत द्रोणजं ततः।।

अग द्रोणजनन्नु नोडि क्षिप्रकारी दृढहस्त पांडव अर्जुननू कूड परम विमूढनादनु.

08040120a स विक्रमं हृतं मेने आत्मनः सुमहात्मना।
08040120c तथास्य समरे राजन्वपुरासीत्सुदुर्दृशं।।

महात्म अश्वत्थामनिंद तन्न विक्रमवु कुंदुगॊंडितॆंदे अवनु तिळिदुकॊंडनु. राजन्! आग समरदल्लि अश्वत्थामन भयंकर मुखवन्नु नोडलू साध्यवागुत्तिरलिल्ल.

08040121a द्रौणिपांडवयोरेवं वर्तमाने महारणे।
08040121c वर्धमाने च राजेंद्र द्रोणपुत्रे महाबले।
08040121e हीयमाने च कौंतेये कृष्णं रोषः समभ्ययात्।।

राजेंद्र! महारणदल्लि द्रौणि मत्तु पांडव इब्बरू ई रीति वर्तिसुत्तिरुवुदन्नु, महाबल द्रोणपुत्रनु वर्धिसुत्तिरुवुदन्नू मत्तु कौंतेयनु क्षीणनागुत्तिरुवुदन्नु नोडि कृष्णनिगॆ महारोषवुंटायितु.

08040122a स रोषान्निःश्वसन्राजन्निर्दहन्निव चक्षुषा।
08040122c द्रौणिं ह्यपश्यत्संग्रामे फल्गुनं च मुहुर्मुहुः।।

राजन्! रोषदिंद भुसुगुट्टुत्ता, कण्णिनिंदले सुट्टुबिडुवनो ऎन्नुवंतॆ अवनु संग्रामदल्लि द्रौणियन्नु मत्तु फल्गुननन्नु पदे पदे नोडुत्तिद्दनु.

08040123a ततः क्रुद्धोऽब्रवीत्कृष्णः पार्थं सप्रणयं तदा।
08040123c अत्यद्भुतमिदं पार्थ तव पश्यामि संयुगे।
08040123e अतिशेते हि यत्र त्वा द्रोणपुत्रोऽद्य भारत।।

आग क्रुद्धनागिद्दरू कृष्णनु प्रीतियिंद पार्थनिगॆ हेळिदनु: “पार्थ! ई युद्धदल्लि निन्न अति अद्भुतवर्तनॆयन्नु नोडुत्तिद्देनॆ! भारत! इंदु द्रोणपुत्रनु निन्नन्नु मीरि युद्धमाडुत्तिद्दानॆ!

08040124a कच्चित्ते गांडिवं हस्ते रथे तिष्ठसि चार्जुन।
08040124c कच्चित्कुशलिनौ बाहू कच्चिद्वीर्यं तदेव ते।।

अर्जुन! गांडीववन्नु कैयल्लि हिडिदे रथदल्लि निंतिरुवॆयल्लवे? निन्न बाहुगळु कुशलवागिवॆ ताने? निन्न शरीरदल्लि वीर्यविदॆ ताने?”

08040125a एवमुक्तस्तु कृष्णेन क्षिप्त्वा भल्लांश्चतुर्दश।
08040125c त्वरमाणस्त्वराकाले द्रौणेर्धनुरथाच्चिनत्।
08040125e ध्वजं चत्रं पताकां च रथं शक्तिं गदां तथा।।

कृष्णनु हीगॆ हेळिदॊडनॆये अर्जुननु हदिनाल्कु भल्लगळन्नु कैगॆत्तिकॊंडु अवसरद समयदल्लि त्वरॆमाडि द्रौणिय रथ, ध्वज, चत्र, पताक, शक्ति मत्तु गदॆगळन्नु कत्तरिसिदनु.

08040126a जत्रुदेशे च सुभृशं वत्सदंतैरताडयत्।
08040126c स मूर्च्चां परमां गत्वा ध्वजयष्टिं समाश्रितः।।

अवन जत्रुदेश – कुत्तिगॆय ऎलुबुप्रदेश – वन्नु वत्सदंतगळिंद जोरागि हॊडॆयलु अश्वत्थामनु परम मूर्छितनागि ध्वजस्तंभवन्नु हिडिदु कुळितुबिट्टनु.

08040127a तं विसंज्ञं महाराज किरीटिभयपीडितं।
08040127c अपोवाह रणात्सूतो रक्षमाणो धनंजयात्।।

महाराज! किरीटिय भयदिंद पीडितनागि मूर्छितनाद अवनन्नु रक्षिसलोसुग अवन सारथियु धनंजयनिरुव रणभूमियिंद करॆदुकॊंडु होदनु.

08040128a एतस्मिन्नेव काले तु विजयः शत्रुतापनः।
08040128c न्यवधीत्तावकं सैन्यं शतशोऽथ सहस्रशः।
08040128e पश्यतस्तव पुत्रस्य तस्य वीरस्य भारत।।

भारत! इदे समयदल्लि शत्रुतापन विजय अर्जुननु निन्न वीर पुत्रनु नोडुत्तिद्दंतॆये निन्न सेनॆयन्नु नूरारु सहस्रारु संख्यॆगळल्लि वधिसिदनु.

08040129a एवमेष क्षयो वृत्तस्तावकानां परैः सह।
08040129c क्रूरो विशसनो घोरो राजन्दुर्मंत्रिते तव।।

राजन्! हीगॆ निन्न दुरालोचनॆगळिंदागि शत्रुगळिंद निन्नवर क्रूर, घोर विनाशकर क्षयवु नडॆयितु.

08040130a संशप्तकांश्च कौंतेयः कुरूंश्चापि वृकोदरः।
08040130c वसुषेणं च पांचालः कृत्स्नेन व्यधमद्रणे।।

कौंतेयनु संशप्तकरन्नू, वृकोदरनु कुरुगळन्नू, पांचाल्यनु वसुषेणनन्नू रणदल्लि संहरिसतॊडगिदरु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते कर्णपर्वणि संकुलयुद्धे चत्वारिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि कर्णपर्वदल्लि संकुलयुद्ध ऎन्नुव नल्वत्तने अध्यायवु.