प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
कर्ण पर्व
कर्णवध पर्व
अध्याय 33
सार
युद्धदल्लि कर्णनु युधिष्ठिरनन्नु पराजयगॊळिसिदुदु (1-34). पलायन माडुत्तिद्द युधिष्ठिरनन्नु हिंबालिसि कर्णनु अवन भुजवन्नु मुट्टि हीयाळिसि कळुहिसिदुदु (35-40). युद्धद वर्णनॆ (41-70).
08033001 संजय उवाच।
08033001a विदार्य कर्णस्तां सेनां धर्मराजमुपाद्रवत्।
08033001c रथहस्त्यश्वपत्तीनां सहस्रैः परिवारितः।।
संजयनु हेळिदनु: “आ सेनॆयन्नु भेदिसि कर्णनु सहस्रारु रथ-आनॆ-कुदुरॆ-पदाति सेनॆगळिंद परिवृतनाद धर्मराजनन्नु आक्रमणिसिदनु.
08033002a नानायुधसहस्राणि प्रेषितान्यरिभिर्वृषः।
08033002c चित्त्वा बाणशतैरुग्रैस्तानविध्यदसंभ्रमः।।
वृष कर्णनु स्वल्पवू गाबरिगॊळ्ळदे शत्रुगळु सुरिसुत्तिद्द सहस्रारु नाना आयुधगळन्नु नूरारु उग्र बाणगळिंद तुंडरिसिदनु.
08033003a निचकर्त शिरांस्येषां बाहूनूरूंश्च सर्वशः।
08033003c ते हता वसुधां पेतुर्भग्नाश्चान्ये विदुद्रुवुः।।
अवनु ऎल्लकडॆ शत्रुगळ शिरगळन्नू, बाहुगळन्नू, तॊडॆगळन्नू कत्तरिसिदनु. अवरु भग्नरागि भूमिय मेलॆ बिद्दरु. अन्यरु पलायनगैदरु.
08033004a द्रविडांध्रनिषाधास्तु पुनः सात्यकिचोदिताः।
08033004c अभ्यर्दयं जिघांसंतः पत्तयः कर्णमाहवे।।
आग सात्यकियिंद प्रचोदितराद द्रविड-आंध्र-निषाध पदातिगळु युद्धदल्लि कर्णनन्नु संहरिसलु बयसि अवनन्नु पुनः आक्रमिसिदरु.
08033005a ते विबाहुशिरस्त्राणाः प्रहताः कर्णसायकैः।
08033005c पेतुः पृथिव्यां युगपच्चिन्नं शालवनं यथा।।
कर्णन सायकगळिंद प्रहरिसल्पट्ट अवरु बाहुगळु, शिरगळु मत्तु किरीटगळन्नु कळॆदुकॊंडु कत्तरिसल्पट्ट शालवृक्षगळ वनदंतॆ भूमिय मेलॆ बिद्दरु.
08033006a एवं योधशतान्याजौ सहस्राण्ययुतानि च।
08033006c हतानीयुर्महीं देहैर्यशसापूरयन्दिशः।।
हीगॆ हतराद नूरारु सहस्रारु लक्षगट्टलॆ योधरु तम्म देहगळिंद भूमियन्नू यशस्सुगळिंद दिक्कुगळन्नू तुंबिबिट्टरु.
08033007a अथ वैकर्तनं कर्णं रणे क्रुद्धमिवांतकं।
08033007c रुरुधुः पांडुपांचाला व्याधिं मंत्रौषधैरिव।।
आग रणरंगदल्लि क्रुद्ध अंतकनंतिद्द वैकर्तन कर्णनन्नु पांडव-पांचालरु व्याधियन्नु मंत्रौषधिगळिंद हेगो हागॆ तडॆदरु.
08033008a स तान्प्रमृद्याभ्यपतत्पुनरेव युधिष्ठिरं।
08033008c मंत्रौषधिक्रियातीतो व्याधिरत्युल्बणो यथा।।
अतियागि उल्बणिसिद व्याधियु मंत्रौषधिगू निलुकदंतॆ कर्णनु अवरन्नु सदॆबडिदु पुनः युधिष्ठिरनन्नु आक्रमणिसिदनु.
08033009a स राजगृद्धिभी रुद्धः पांडुपांचालकेकयैः।
08033009c नाशकत्तानतिक्रांतुं मृत्युर्ब्रह्मविदो यथा।।
आदरॆ राजनन्नु रक्षिसुव छलदिंद तडॆयुत्तिरुव पांडव-पांचाल-केकयरन्नु मृत्युवु ब्रह्मविदनन्नु हेगो हागॆ अतिक्रमिसलु अवनु शक्तनागलिल्ल.
08033010a ततो युधिष्ठिरः कर्णमदूरस्थं निवारितं।
08033010c अब्रवीत्परवीरघ्नः क्रोधसंरक्तलोचनः।।
आग अनतिदूरदल्लिये तडॆयल्पट्टु निंतिद्द कर्णनिगॆ क्रोधसंरक्तलोचन परवीरघ्न युधिष्ठिरनु इंतॆंदनु:
08033011a कर्ण कर्ण वृथादृष्टे सूतपुत्र वचः शृणु।
08033011c सदा स्पर्धसि संग्रामे फल्गुनेन यशस्विना।
08033011e तथास्मान्बाधसे नित्यं धार्तराष्ट्रमते स्थितः।।
“कर्ण! कर्ण! शून्यदृष्टियवने! सूतपुत्र! नन्न मातन्नु केळु! धार्तराष्ट्रन अभिप्रायदंतॆ नडॆदुकॊळ्ळुव नीनु सदा संग्रामदल्लि यशस्वि फल्गुननॊंदिगॆ स्पर्धिसुत्तीयॆ मत्तु नित्यवू नम्मन्नु बाधिसुत्तिद्दीयॆ!
08033012a यद्बलं यच्च ते वीर्यं प्रद्वेषो यश्च पांडुषु।
08033012c तत्सर्वं दर्शयस्वाद्य पौरुषं महदास्थितः।
08033012e युद्धश्रद्धां स तेऽद्याहं विनेष्यामि महाहवे।।
निन्नल्लि ऎष्टु बलविदॆयो, ऎष्टु वीर्यविदॆयो, पांडवर मेलॆ ऎष्टु द्वेषविदॆयो अवॆल्लवन्नू इंदु महापौरुषवन्नाश्रयिसि तोरिसु!”
08033013a एवमुक्त्वा महाराज कर्णं पांडुसुतस्तदा।
08033013c सुवर्णपुंखैर्दशभिर्विव्याधायस्मयैः शितैः।।
महाराज! हीगॆ हेळि पांडुसुत युधिष्ठिरनु हत्तु सुवर्णपुंखगळुळ्ळ लोहमय बाणगळिंद कर्णनन्नु प्रहरिसिदनु.
08033014a तं सूतपुत्रो नवभिः प्रत्यविध्यदरिंदमः।
08033014c वत्सदंतैर्महेष्वासः प्रहसन्निव भारत।।
भारत! अवनन्नु प्रतियागि महेष्वास अरिंदम सूतपुत्रनु नगुत्तिरुवनो ऎन्नुवंतॆ ऒंभत्तु वत्सदंतगळिंद हॊडॆदनु.
08033015a ततः क्षुराभ्यां पांचाल्यौ चक्ररक्षौ महात्मनः।
08033015c जघान समरे शूरः शरैः सन्नतपर्वभिः।।
अनंतर आ शूर महात्मनु समरदल्लि युधिष्ठिरन चक्ररक्षकरागिद्द इब्बरु पांचालरन्नु31 सन्नतपर्व क्षुरगळिंद संहरिसिदनु.
08033016a तावुभौ धर्मराजस्य प्रवीरौ परिपार्श्वतः।
08033016c रथाभ्याशे चकाशेते चंद्रस्येव पुनर्वसू।।
धर्मराजन रथद पक्कगळल्लि बिद्दिद्द आ इब्बरु प्रवीररू चंद्रन बळियल्लिद्द पुनर्वसु नक्षत्रगळंतॆ शोभिसुत्तिद्दरु.
08033017a युधिष्ठिरः पुनः कर्णमविध्यत्त्रिंशता शरैः।
08033017c सुषेणं सत्यसेनं च त्रिभिस्त्रिभिरताडयत्।।
पुनः युधिष्ठिरनु कर्णनन्नु मूवत्तु बाणगळिंद प्रहरिसि, सुषेण-सत्यसेनरन्नु मूरु मूरु बाणगळिंद हॊडॆदनु.
08033018a शल्यं नवत्या विव्याध त्रिसप्तत्या च सूतजं।
08033018c तांश्चास्य गोप्तॄन्विव्याध त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः।।
शल्यनन्नु तॊंभत्तु मत्तु सूतजनन्नु ऎप्पत्मूरु बाणगळिंद हॊडॆदु युधिष्ठिरनु चक्ररक्षकरन्नु मूरु मूरु जिह्मगगळिंद प्रहरिसिदनु.
08033019a ततः प्रहस्याधिरथिर्विधुन्वानः स कार्मुकं।
08033019c भित्त्वा भल्लेन राजानं विद्ध्वा षष्ट्यानदन्मुदा।।
आग आधिरथि कर्णनु गहगहिसि नगुत्ता धनुस्सन्नु जग्गिसुत्ता भल्लदिंद राज युधिष्ठिरनन्नु हॊडॆदु, पुनः अरवत्तरिंद प्रहरिसि सिंहगर्जनॆ माडिदनु.
08033020a ततः प्रवीराः पांडूनामभ्यधावन्युधिष्ठिरं।
08033020c सूतपुत्रात्परीप्संतः कर्णमभ्यर्दयं शरैः।।
आग पांडव प्रवीररु सूतपुत्रन पीडॆगॊळगागिद्द युधिष्ठिरनन्नु समीपिसि शरगळिंद कर्णनन्नु आक्रमणिसिदरु.
08033021a सात्यकिश्चेकितानश्च युयुत्सुः पांड्य एव च।
08033021c धृष्टद्युम्नः शिखंडी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।।
08033022a यमौ च भीमसेनश्च शिशुपालस्य चात्मजः।
08033022c कारूषा मत्स्यशेषाश्च केकयाः काशिकोसलाः।
08033022e एते च त्वरिता वीरा वसुषेणमवारयन्।।
सात्यकि, चेकितान, युयुत्सु, पांड्य, धृष्टद्युम्न, शिखंडी, द्रौपदेयरु, प्रभद्रकरु, यमळरु, भीमसेन, शिशुपालन मग, कारूषरु, अळिदुळिद मत्स्यरु, केकयरु, काशि-कोसलरु – ई वीररु त्वरॆमाडि वसुषेण कर्णनन्नु तडॆदरु.
08033023a जनमेजयश्च पांचाल्यः कर्णं विव्याध सायकैः।
08033023c वराहकर्णैर्नाराचैर्नालीकैर्निशितैः शरैः।
08033023e वत्सदंतैर्विपाठैश्च क्षुरप्रैश्चटकामुखैः।।
पांचाल्य जनमेजयनु कर्णनन्नु सायक, वराहकर्ण, नाराच, नालीक, वत्सदंत, विपाठ, क्षुरप्र, मत्तु चटकामुखगळे मॊदलाद निशित शरगळिंद प्रहरिसिदनु.
08033024a नानाप्रहरणैश्चोग्रै रथहस्त्यश्वसादिनः।
08033024c सर्वतोऽभ्याद्रवन्कर्णं परिवार्य जिघांसया।।
कर्णनन्नु संहरिसलु बयसि नाना उग्र प्रहरणगळिंद, रथ-आनॆ-कुदुरॆ-पदातिगणगळॊंदिगॆ अवरु कर्णनन्नु ऎल्लकडॆगळिंद सुत्तुवरॆदु आक्रमणिसिदरु.
08033025a स पांडवानां प्रवरैः सर्वतः समभिद्रुतः।
08033025c उदैरयद्ब्राह्ममस्त्रं शरैः संपूरयन्दिशः।।
पांडव प्रवररिंद सुत्तलू मुत्तल्पट्ट कर्णनु ब्रह्मास्त्रवन्नु प्रयोगिसुत्ता सर्वदिक्कुगळन्नू शरगळिंद मुच्चिबिट्टनु.
08033026a ततः शरमहाज्वालो वीर्योष्मा कर्णपावकः।
08033026c निर्दहन्पांडववनं चारु पर्यचरद्रणे।।
आग शरगळॆंब महाज्वालॆगळिंदलू, वीर्यवॆंब तापदिंदलू कर्णनॆंब पावकनु पांडवरॆंब वनवन्नु दहिसुत्ता रणदल्लि संचरिसुत्तिद्दनु.
08033027a स संवार्य महास्त्राणि महेष्वासो महात्मनां।
08033027c प्रहस्य पुरुषेंद्रस्य शरैश्चिच्चेद कार्मुकं।।
महेष्वास महात्म कर्णनु जोरागि नक्कु महास्त्रगळन्नु संधानमाडि शरगळिंद पुरुषेंद्र युधिष्ठिरन कार्मुकवन्नु कत्तरिसिदनु.
08033028a ततः संधाय नवतिं निमेषान्नतपर्वणां।
08033028c बिभेद कवचं राज्ञो रणे कर्णः शितैः शरैः।।
नंतर कर्णनु रणदल्लि निमिषमात्रदल्लि हॊस सन्नतपर्व शरगळन्नु हूडि आ निशित शरगळिंद राजन कवचवन्नू कत्तरिसिदनु.
08033029a तद्वर्म हेमविकृतं रराज निपतत्तदा।
08033029c सविद्युदभ्रं सवितुः शिष्टं वातहतं यथा।।
हेमविकृत आ कवचवु बीळुवाग सूर्यनॊडनिद्द मोडवु भिरुगाळिगॆ सिलुकि मिंचिनॊंदिगॆ कॆळगॆ बीळुत्तिरुवंतॆ राराजिसितु.
08033030a तदंगं पुरुषेंद्रस्य भ्रष्टवर्म व्यरोचत।
08033030c रत्नैरलंकृतं दिव्यैर्व्यभ्रं निशि यथा नभः।।
पुरुषेंद्रन देहदिंद कळचि बिद्द रत्नालंकृत आ कवचवु नक्षत्रमंडलदिंद शोभायमानवाद रात्रिय आकाशदंतॆ तोरुत्तित्तु.
08033031a स विवर्मा शरैः पार्थो रुधिरेण समुक्षितः।
08033031c क्रुद्धः सर्वायसीं शक्तिं चिक्षेपाधिरथिं प्रति।।
कवचन्नु कळॆदुकॊंड आ पार्थनु शरप्रहारगळिंद रक्तवन्नु सोरिसुत्ता क्रुद्धनागि सर्ववू लोहमयवागिद्द शक्तियन्नु आधिरथिय मेलॆ प्रयोगिसिदनु.
08033032a तां ज्वलंतीमिवाकाशे शरैश्चिच्चेद सप्तभिः।
08033032c सा चिन्ना भूमिमपतन्महेष्वासस्य सायकैः।।
आकाशदल्लि प्रज्वलिसुत्तिरुव आ शक्तियन्नु महेष्वास कर्णनु एळु सायक शरगळिंद कत्तरिसि भूमिय मेलॆ कॆडविदनु.
08033033a ततो बाह्वोर्ललाटे च हृदि चैव युधिष्ठिरः।
08033033c चतुर्भिस्तोमरैः कर्णं ताडयित्वा मुदानदत्।।
आग युधिष्ठिरनु कर्णन बाहुगळु, हणॆ मत्तु ऎदॆगळन्नु नाल्कु तोमरगळिंद हॊडॆदु जोरागि गर्जिसिदनु.
08033034a उद्भिन्नरुधिरः कर्णः क्रुद्धः सर्प इव श्वसन्।
08033034c ध्वजं चिच्चेद भल्लेन त्रिभिर्विव्याध पांडवं।
08033034e इषुधी चास्य चिच्चेद रथं च तिलशोऽच्चिनत्।।
उक्किबरुत्तिरुव रक्तप्रवाहदिंद क्रुद्धनाद कर्णनु सर्पदंतॆ भुसुगुट्टुत्ता भल्लदिंद अवन ध्वजवन्नु तुंडरिसिदनु मत्तु मूररिंद पांडव युधष्ठिरनन्नु हॊडॆदनु. बाणगळिंद अवन रथवन्नु कूड ऎळ्ळिन काळुगळष्टु सण्ण सण्ण चूरुगळन्नागिसि तुंडरिसिदनु.
08033035a एवं पार्थो व्यपायात्स निहतप्रार्ष्टिसारथिः।
08033035c अशक्नुवन्प्रमुखतः स्थातुं कर्णस्य दुर्मनाः।।
तन्न पार्ष्णिसारथिगळन्नू कळॆदुकॊंडिद्द पार्थनु कर्णनन्नु ऎदुरिसलागदे दुर्मनस्कनागि पलायनगैदनु.
08033036a तमभिद्रुत्य राधेयः स्कंदं संस्पृश्य पाणिना।
08033036c अब्रवीत्प्रहसन्राजन्कुत्सयन्निव पांडवं।।
राजन्! युधिष्ठिरनन्नु हिंबालिसि होगि राधेयनु कैयिंद अवन भुजवन्नु मुट्टि पांडवनन्नु हीयाळिसुवंतॆ नगुत्ता हेळिदनु:
08033037a कथं नाम कुले जातः क्षत्रधर्मे व्यवस्थितः।
08033037c प्रजह्यात्समरे शत्रून्प्राणान्रक्षन्महाहवे।।
“श्रेष्ठ कुलदल्लि हुट्टि क्षत्रधर्मदल्लि व्यवस्थितनागिद्दुकॊंडु ई महासमरदल्लि प्राणगळन्नु रक्षिसिकॊळ्ळलोसुग एकॆ पलायनमाडुत्तिरुवॆ?
08033038a न भवान् क्षत्रधर्मेषु कुशलोऽसीति मे मतिः।
08033038c ब्राह्मे बले भवान् युक्तः स्वाध्याये यज्ञकर्मणि।।
नीनु क्षत्रधर्मदल्लि कुशलनल्लवॆंदु ननगन्निसुत्तिदॆ. नीनु स्वाध्याय मत्तु यज्ञकर्मयुक्तवाद ब्रह्मबलदिंद कूडिरुवॆ.
08033039a मा स्म युध्यस्व कौंतेय मा च वीरान्समासदः।
08033039c मा चैनानप्रियं ब्रूहि मा च व्रज महारणं।।
आदुदरिंद कौंतेय! युद्धमाडबेड! वीररॊंदिगॆ सॆणॆसबेड! वीररॊंदिगॆ अप्रिय मातुगळन्नाडबेड. युद्धभूमिगॆ इन्नॊम्मॆ कालन्ने इडबेड!”
08033040a एवमुक्त्वा ततः पार्थं विसृज्य च महाबलः।
08033040c न्यहनत्पांडवीं सेनां वज्रहस्त इवासुरीं।
08033040e ततः प्रायाद्द्रुतं राजन् व्रीडन्निव जनेश्वरः।।
हीगॆ हेळि पार्थनन्नु अल्लिये बिट्टु वज्रपाणि इंद्रनु असुरी सेनॆयन्नु हेगो हागॆ पांडवी सेनॆयन्नु संहरिसिदनु. राजन्! आग जनेश्वर युधिष्ठिरनु नाचिकॊंडवनंतॆ शीघ्रवागि रणदिंद हॊरटुहोदनु.
08033041a अथ प्रयांतं राजानमन्वयुस्ते तदाच्युतं।
08033041c चेदिपांडवपांचालाः सात्यकिश्च महारथः।
08033041e द्रौपदेयास्तथा शूरा माद्रीपुत्रौ च पांडवौ।।
आग हिंदिरुगुत्तिद्द आ अच्युत युधिष्ठिरनन्नु अनुसरिसि चेदि-पांडव-पांचालरू, महारथ सात्यकियू, शूर द्रौपदेयरू, पांडव माद्रीपुत्ररिब्बरू हॊरटुहोदरु.
08033042a ततो युधिष्ठिरानीकं दृष्ट्वा कर्णः पराङ्मुखं।
08033042c कुरुभिः सहितो वीरैः पृष्ठगैः पृष्ठमन्वयात्।।
युधिष्ठिरन सेनॆयु पराङ्मुखवादुदन्नु नोडि कर्णनु कुरुवीररन्नॊडगूडि अवन सेनॆयन्नु हिंबालिसि होदनु.
08033043a शंखभेरीनिनादैश्च कार्मुकाणां च निस्वनैः।
08033043c बभूव धार्तराष्ट्राणां सिंहनादरवस्तदा।।
आग धार्तराष्ट्रर कडॆयल्लि शंख-भेरि निनादगळू, बिल्लुगळ टेंकार शब्धवू, मत्तु जोराद सिंहगर्जनॆगळू केळिबंदवु.
08033044a युधिष्ठिरस्तु कौरव्य रथमारुह्य सत्वरः।
08033044c श्रुतकीर्तेर्महाराज दृष्टवान्कर्णविक्रमं।।
कौरव्य! महाराज! युधिष्ठिरनादरो बहुबेग श्रुतकीर्तिय रथवन्नेरि कर्णन विक्रमवन्नु नोडुत्तिद्दनु.
08033045a काल्यमानं बलं दृष्ट्वा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
08033045c तान्योधानब्रवीत् क्रुद्धो हतैनं वै सहस्रशः।।
तन्न सेनॆयु कदडिहोगुत्तिरुवुदन्नु नोडि धर्मराज युधिष्ठिरनु क्रुद्धनागि तन्न योधरिगॆ “सहस्रारु संख्यॆगळल्लि अवरन्नु कॊल्लिरि!” ऎंदु हेळिदनु.
08033046a ततो राज्ञाभ्यनुज्ञाताः पांडवानां महारथाः।
08033046c भीमसेनमुखाः सर्वे पुत्रांस्ते प्रत्युपाद्रवन्।।
आग राजनिंद आज्ञापितराद पांडव महारथरॆल्लरू भीमसेननन्नु मुंदागिसिकॊंडु निन्न पुत्ररन्नु ऎदुरिसि आक्रमणिसिदरु.
08033047a अभवत्तुमुलः शब्दो योधानां तत्र भारत।
08033047c हस्त्यश्वरथपत्तीनां शस्त्राणां च ततस्ततः।।
भारत! आग अल्लल्लि आनॆ-कुदुरॆ-रथ-पदातिगळ मत्तु योधर शस्त्रगळ तुमुल शब्धवु केळि बंदितु.
08033048a उत्तिष्ठत प्रहरत प्रैताभिपततेति च।
08033048c इति ब्रुवाणा अन्योन्यं जघ्नुर्योधा रणाजिरे।।
“मेलेळिरि! प्रहरिसिरि! मुंदॆ होगिरि! शत्रुविन मेलॆ बीळिरि!” हीगॆ हेळुत्ता योधरु रणरंगदल्लि अन्योन्यरन्नु संहरिसिदरु.
08033049a अभ्रच्चायेव तत्रासीच्चरवृष्टिभिरंबरे।
08033049c समावृत्तैर्नरवरैर्निघ्नद्भिरितरेतरं।।
इतरेतररन्नु संहरिसुत्तिद्द नरवररु प्रयोगिसुत्तिद्द शरवृष्टिगळु आकाशवन्नु तुंबि मोडगळंतॆये नॆरळन्नु नीडुत्तिद्दवु.
08033050a विपताकाध्वजच्चत्रा व्यश्वसूतायुधा रणे।
08033050c व्यंगांगावयवाः पेतुः क्षितौ क्षीणा हतेश्वराः।।
रणदल्लि हतराद भूपालकरु पताकॆ-ध्वज-चत्र-अश्व-सूत-आयुधगळन्नु कळॆदुकॊंडु अंग-अवयवगळिंद विहीनरागि भूमिय मेलॆ बीळुत्तिद्दरु.
08033051a प्रवराणीव शैलानां शिखराणि द्विपोत्तमाः।
08033051c सारोहा निहताः पेतुर्वज्रभिन्ना इवाद्रयः।।
वज्रदिंद ऒडॆदु होद गिरिगळंतॆ शैलशिखरगळंतिद्द उत्तम आनॆगळु सवाररॊंदिगॆ हतरागि कॆळगुरुळुत्तिद्दवु.
08033052a चिन्नभिन्नविपर्यस्तैर्वर्मालंकारविग्रहैः।
08033052c सारोहास्तुरगाः पेतुर्हतवीराः सहस्रशः।।
छिन्न-भिन्नवाद मत्तु अस्तव्यस्थवाद अलंकार शरीरगळिंद कूडिद सहस्रारु कुदुरॆगळु वीर आरोहिगळॊंदिगॆ हतगॊंडु बीळुत्तिद्दवु.
08033053a विप्रविद्धायुधांगाश्च द्विरदाश्वरथैर्हताः।
08033053c प्रतिवीरैश्च सम्मर्दे पत्तिसंघाः सहस्रशः।।
आनॆ-कुदुरॆ-रथगळिंद हतरागि, ऎदुरिद्द वीररिंद सदॆबडॆयल्पट्टु गायगॊंड मत्तु कळॆदुकॊंड अंगांगगळिंद युक्तवागिद्द सहस्रारु पदातिसंघगळु बीळुत्तिद्दवु.
08033054a विशालायतताम्राक्षैः पद्मेंदुसदृशाननैः।
08033054c शिरोभिर्युद्धशौंडानां सर्वतः संस्तृता मही।।
विशालवू, अगलवू, कॆंपागियू इद्द कण्णुगळिंद मत्तु पद्म-चंद्ररंतिद्द मुखगळिंदलू कूडिद युद्धशौंडर शिरगळिंद भूमियु ऎल्लॆल्लियू तुंबिहोगित्तु.
08033055a तथा तु वितते व्योम्नि निस्वनं शुश्रुवुर्जनाः।
08033055c विमानैरप्सरःसंघैर्गीतवादित्रनिस्वनैः।।
भूमियल्लि हेगो हागॆ आकाशदल्लियू विमानगळल्लिद्द अप्सर संघगळु गीत-वाद्यगळ ध्वनियन्नु जनरु केळुत्तिद्दरु.
08033056a हतान्कृत्तानभिमुखान्वीरान्वीरैः सहस्रशः।
08033056c आरोप्यारोप्य गच्चंति विमानेष्वप्सरोगणाः।।
युद्धाभिमुखरागि वीररिंद हतराद सहस्रारु वीररन्नु अप्सरगणगळु विमानगळल्लि एरिसिकॊंडु होगुत्तिद्दवु.
08033057a तद्दृष्ट्वा महदाश्चर्यं प्रत्यक्षं स्वर्गलिप्सया।
08033057c प्रहृष्टमनसः शूराः क्षिप्रं जग्मुः परस्परं।।
प्रत्यक्षवागि आ महदाश्चर्यवन्नु नोडि स्वर्गवन्नु बयसि प्रहृष्टमनस्करागि शूररु बेगबेगनॆ परस्पररन्नु कॊल्लुत्तिद्दरु.
08033058a रथिनो रथिभिः सार्धं चित्रं युयुधुराहवे।
08033058c पत्तयः पत्तिभिर्नागा नागैः सह हयैर्हयाः।।
युद्धदल्लि रथिगळु रथिगळॊंदिगॆ, पदातिगळु पदातिगळॊंदिगॆ, आनॆगळु आनॆगळॊंदिगॆ मत्तु कुदुरॆगळु कुदुरॆगळॊंदिगॆ विचित्रवागि होराडिदरु.
08033059a एवं प्रवृत्ते संग्रामे गजवाजिजनक्षये।
08033059c सैन्ये च रजसा व्याप्ते स्वे स्वां जघ्नुः परे परान्।।
ई रीति संग्रामदल्लि आनॆ-कुदुरॆ-जनर क्षयवागुत्तिरलु सेनॆयु धूळिनिंद आवृतवागि दिक्कुकाणदे नम्मवरु नम्मवरन्ने मत्तु शत्रुगळु शत्रुगळन्ने कॊल्लतॊडगिदरु.
08033060a कचाकचि बभौ युद्धं दंतादंति नखानखि।
08033060c मुष्टियुद्धं नियुद्धं च देहपाप्मविनाशनं।।
देह-पापगळन्नु विनाशिसुव आ युद्धदल्लि परस्परर कूदलन्नु जग्गाडुत्तिद्दरु. हल्लुगळिंद कच्चुत्तिद्दरु. उगुरुगळिंद परॆदाडुत्तिद्दरु. मुष्टियुद्ध माडुत्तिद्दरु.
08033061a तथा वर्तति संग्रामे गजवाजिजनक्षये।
08033061c नराश्वगजदेहेभ्यः प्रसृता लोहितापगा।
08033061e नराश्वगजदेहान्सा व्युवाह पतितान्बहून्।।
आ रीति आनॆ-कुदुरॆ-जन क्षयवु नडॆयुत्तिरलु संग्रामदल्लि नररु, आनॆगळु मत्तु कुदुरॆगळ देहदिंद सुरियुत्तिद्द रक्तवु प्रवाहवागि हरिदु कॆळगॆ बिद्दिद्द अनेक नरर, आनॆगळ मत्तु कुदुरॆगळ देहगळन्ने कॊच्चिकॊंडु होगुत्तित्तु.
08033062a नराश्वगजसंबाधे नराश्वगजसादिनां।
08033062c लोहितोदा महाघोरा नदी लोहितकर्दमा।
08033062e नराश्वगजदेहान्सा वहंती भीरुभीषणी।।
नराश्वगज संपन्नवागिद्द आ महाघोर नदियल्लि नराश्वगजसवारर रक्तवे नीरागिद्दितु. मांसवे कॆसरागिद्दितु. नराश्वगजदेहगळु तेलुत्तिद्द आ रक्तद नदियु हेडिगळिगॆ भयवन्नुंटुमाडुत्तित्तु.
08033063a तस्याः परमपारं च व्रजंति विजयैषिणः।
08033063c गाधेन च प्लवंतश्च निमज्ज्योन्मज्ज्य चापरे।।
विजयैषिणिगळु आळविल्लद स्थळदल्लि दाटिकॊंडु होगुत्तिद्दरु. आळविद्दल्लि हारिकॊंडु होगुत्तिद्दरु मत्तु इन्नु कॆलवरु आ रक्तकोडियल्लि मुळुगिहोगुत्तिद्दरु.
08033064a ते तु लोहितदिग्धांगा रक्तवर्मायुधांबराः।
08033064c सस्नुस्तस्यां पपुश्चासृं मम्लुश्च भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! रक्तदिंद तोय्दु होगिद्द अवर देहगळु, कवचगळु मत्तु वस्त्रगळु रक्तदंतॆ कॆंपागि काणुत्तिद्दवु. आ रक्तनदियल्लि कॆलवरु गुटुकुहाकुत्तिद्दरु, स्नानमाडुत्तिद्दरु मत्तु मूर्छॆहोगुत्तिद्दरु.
08033065a रथानश्वान्नरान्नागानायुधाभरणानि च।
08033065c वसनान्यथ वर्माणि हन्यमानान् हतानपि।
08033065e भूमिं खं द्यां दिशश्चैव प्रायः पश्याम लोहितं।।
रथ-कुदुरॆ-आनॆगळु, आयुध-आभरणगळु, वस्त्र-कवचगळु, कॊल्लल्पडुत्तिद्दवरु मत्तु सत्तुहोदवरु, भूमि, आकाश, स्वर्ग, दिक्कुगळु प्रायशः इवॆल्लवू कॆंपागिये तोरुत्तिद्दवु.
08033066a लोहितस्य तु गंदेन स्पर्शेन च रसेन च।
08033066c रूपेण चातिरिक्तेन शब्देन च विसर्पता।
08033066e विषादः सुमहानासीत्प्रायः सैन्यस्य भारत।।
भारत! आ कॆंपुनदिय वासनॆ, स्पर्ष, रुचि, रूप, जोरागि हरिदुहोगुत्तिद्दुदर शब्ध, इवुगळिंद प्रायशः सेनॆगळु महा विषादक्कॊळगागिद्दरु.
08033067a तत्तु विप्रहतं सैन्यं भीमसेनमुखैस्तव।
08033067c भूयः समाद्रवन्वीराः सात्यकिप्रमुखा रथाः।।
आगले नाशवागिहोगिद्द निन्न सेनॆयन्नु भीमसेनन नायकत्वदल्लि सात्यकि मत्तु इतर प्रमुख महारथरु पुनः आक्रमणिसिदरु.
08033068a तेषामापततां वेगमविषह्य महात्मनां।
08033068c पुत्राणां ते महत्सैन्यमासीद्राजन्पराङ्मुखं।।
राजन्! वेगवागि आक्रमणिसुत्तिद्द आ महात्मरन्नु सहिसिकॊळ्ळलागदे निन्न मक्कळ आ महासेनॆयु पराङ्मुखवायितु.
08033069a तत्प्रकीर्णरथाश्वेभं नरवाजिसमाकुलं।
08033069c विध्वस्तचर्मकवचं प्रविद्धायुधकार्मुकं।।
रथाश्वगजपदातिगणगळु चॆल्लापिल्लियागि होदवु. योधर कवच-आभरणगळु विध्वस्तवादवु. आयुध-धनुस्सुगळु तुंडागि भूमिय मेलॆ बिद्दवु.
08033070a व्यद्रवत्तावकं सैन्यं लोड्यमानं समंततः।
08033070c सिंहार्दितं महारण्ये यथा गजकुलं तथा।।
महारण्यदल्लि सिंहदिंद आक्रमणिसल्पट्ट गजसंकुलवु हेगो हागॆ वधिसल्पडुत्तिरुव निन्न सेनॆयु ऎल्ल कडॆगळिगॆ पलायनगैदितु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते कर्णपर्वणि संकुलयुद्धे त्र्यात्रिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि कर्णपर्वदल्लि संकुलयुद्ध ऎन्नुव मूवत्मूरने अध्यायवु.