प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
द्रोण पर्व
जयद्रथवध पर्व
अध्याय 117
सार
भूरिश्रव-सात्यकियर वाग्युद्ध (1-18). सात्यकि-भूरिश्रवर युद्ध (19-41). सात्यकियन्नु उळिसलोसुग कृष्णन सूचनॆयंतॆ अर्जुननु खड्गवन्नु हिडिदिद्द भूरिश्रवन बाहुवन्नु कत्तरिसिदुदु (42-62).
07117001 संजय उवाच।
07117001a तमापतंतं संप्रेक्ष्य सात्वतं युद्धदुर्मदं।
07117001c क्रोधाद्भूरिश्रवा राजन्सहसा समुपाद्रवत्।।
संजयनु हेळिदनु: “राजन्! युद्धदुर्मद सात्वतनु मेलॆ बीळुत्तिरुवुदन्नु नोडिद भूरिश्रवनु क्रोधदिंद अवनन्नु ऒम्मॆले आक्रमणिसिदनु.
07117002a तमब्रवीन्महाबाहुः कौरव्यः शिनिपुंगवं।
07117002c अद्य प्राप्तोऽसि दिष्ट्या मे चक्षुर्विषयमित्युत।।
आ महाबाहु कौरव्यनु शिनिपुंगवनिगॆ हेळिदनु: “इंदु निन्नन्नु पडॆदॆ! ऒळ्ळॆयदायितु इंदु नीनु कण्णिगॆ बिद्दॆ!
07117003a चिराभिलषितं काममद्य प्राप्स्यामि संयुगे।
07117003c न हि मे मोक्ष्यसे जीवन्यदि नोत्सृजसे रणं।।
बहळ समयदिंद बयसुत्तिद्द ननगॆ इंदु संयुगदल्लि दॊरकिद्दीयॆ! इंदु रणवन्नु बिट्टु होगदे इद्दरॆ नीनु नन्निंद जीवंत होगलारॆ.
07117004a अद्य त्वां समरे हत्वा नित्यं शूराभिमानिनं।
07117004c नंदयिष्यामि दाशार्ह कुरुराजं सुयोधनं।।
दाशार्ह! शूरनॆंदु नित्यवू अभिमानियागिरुव निन्नन्नु इंदु समरदल्लि कॊंदु कुरुराज सुयोधननन्नु हर्षगॊळिसुत्तेनॆ.
07117005a अद्य मद्बाणनिर्दग्धं पतितं धरणीतले।
07117005c द्रक्ष्यतस्त्वां रणे वीरौ सहितौ केशवार्जुनौ।।
इंदु रणदल्लि नन्न बाणगळिंद दग्धनागि धरणीतलदल्लि बिद्द निन्नन्नु वीरद केशव-अर्जुनरु ऒट्टिगे नोडलिद्दारॆ.
07117006a अद्य धर्मसुतो राजा श्रुत्वा त्वां निहतं मया।
07117006c सव्रीडो भविता सद्यो येनासीह प्रवेशितः।।
इंदु नीनु नन्निंत हतनादॆयॆंदु केळि सेनॆयन्नु प्रवेशिसलु हेळिद राजा धर्मसुतनु सद्यदल्लिये नाचिगॆपडुववनिद्दानॆ.
07117007a अद्य मे विक्रमं पार्थो विज्ञास्यति धनंजयः।
07117007c त्वयि भूमौ विनिहते शयाने रुधिरोक्षिते।।
इंदु नीनु रक्तदल्लि तोय्दु हतनागि भूमियमेलॆ मलगिरलु पार्थ धनंजयनु नन्न विक्रमवन्नु तिळिदुकॊळ्ळुत्तानॆ.
07117008a चिराभिलषितो ह्यद्य त्वया सह समागमः।
07117008c पुरा देवासुरे युद्धे शक्रस्य बलिना यथा।।
हिंदॆ देवासुरर युद्धदल्लि शक्रनु बलियॊंदिगॆ युद्धमाडिदंतॆ निन्नॊडनॆ युद्धमाडबेकॆंब बहुकालद नन्न अभिलाषॆयु इंदु पूरैसलिदॆ.
07117009a अद्य युद्धं महाघोरं तव दास्यामि सात्वत।
07117009c ततो ज्ञास्यसि तत्त्वेन मद्वीर्यबलपौरुषं।।
सात्वत! इंदु निनगॆ महाघोर युद्धवन्नु नीडुत्तेनॆ. आग निनगॆ नन्न बलपौरुषवेनॆंदु तिळियुत्तदॆ.
07117010a अद्य सम्यमनीं याता मया त्वं निहतो रणे।
07117010c यथा रामानुजेनाजौ रावणिर्लक्ष्मणेन वै।।
रामानुज लक्ष्मणनिंद रावणियु हेगॆ यमलोकक्कॆ कळुहिसल्पट्टनो हागॆ इंदु नीनू कूड रणदल्लि नन्निंद हतनागि यमलोकक्कॆ होगुवॆ.
07117011a अद्य कृष्णश्च पार्थश्च धर्मराजश्च माधव।
07117011c हते त्वयि निरुत्साहा रणं त्यक्ष्यंत्यसंशयं।।
माधव! इंदु नीनु हतनागलु कृष्ण, पार्थ मत्तु धर्मराजरु निरुत्साहरागि रणवन्नु तॊरॆयुवुदु खंडित.
07117012a अद्य तेऽपचितिं कृत्वा शितैर्माधव सायकैः।
07117012c तत्स्त्रियो नंदयिष्यामि ये त्वया निहता रणे।।
माधव! निशित सायकगळिंद इंदु निनगॆ पूजॆगैदु निन्निंद रणदल्लि हतरादवर स्त्रीयरिगॆ आनंदवन्नुंटुमाडुत्तेनॆ.
07117013a चक्षुर्विषयसंप्राप्तो न त्वं माधव मोक्ष्यसे।
07117013c सिंहस्य विषयं प्राप्तो यथा क्षुद्रमृगस्तथा।।
माधव! सिंहद आहारवागि बंद क्षुद्रमृगवु हेगो हागॆ नन्न दृष्टिय परिधियल्लि बंदिरुव नीनु बिडुगडॆ हॊंदलारॆ.”
07117014a युयुधानस्तु तं राजन्प्रत्युवाच हसन्निव।
07117014c कौरवेय न संत्रासो विद्यते मम संयुगे।।
राजन्! युयुधाननादरो अवनिगॆ नगुत्ता उत्तरिसिदनु: “कौरवेय! युद्धदल्लि ननगॆ भयवॆंबुदे गॊत्तिल्ल.
07117015a स मां निहन्यात्संग्रामे यो मां कुर्यान्निरायुधं।
07117015c समास्तु शाश्वतीर्हन्याद्यो मां हन्याद्धि संयुगे।।
संग्रामदल्लि यारु नन्नन्नु निरायुधनन्नागि माडुत्तारो अवरे नन्नन्नु संहरिसबल्लरु. बहळ वर्षगळ वरॆगॆ नन्नन्नु संहरिसदिद्द नीनु इंदु संयुगदल्लि कॊल्ललारॆ.
07117016a किं मृषोक्तेन बहुना कर्मणा तु समाचर।
07117016c शारदस्येव मेघस्य गर्जितं निष्फलं हि ते।।
सॊक्किनिंद हेळिद बहळ मातुगळन्नु कर्मदल्लि माडितोरिसु. शरदृतुविन मोडद गुडुगिनंतॆ निन्न ई कूगाटवु निष्फलवादुदु.
07117017a श्रुत्वैतद्गर्जितं वीर हास्यं हि मम जायते।
07117017c चिरकालेप्सितं लोके युद्धमद्यास्तु कौरव।।
वीर! निन्न ई गर्जनॆयन्नु केळि ननगॆ नगु बरुत्तिदॆ. कौरव! बहुकालदिंद नीनु बयसुत्तिरुव ई युद्धवु इंदु नडॆयलि.
07117018a त्वरते मे मतिस्तात त्वयि युद्धाभिकांक्षिणि।
07117018c नाहत्वा सन्निवर्तिष्ये त्वामद्य पुरुषाधम।।
अय्या पुरुषाधम! निन्नॊडनॆ युद्धमाडलु बयसिद नन्न मतियु त्वरॆमाडुत्तिदॆ. निन्नन्नु कॊल्लदे नानिंदु हिंदिरुगुवुदिल्ल.”
07117019a अन्योन्यं तौ तदा वाग्भिस्तक्षंतौ नरपुंगवौ।
07117019c जिघांसू परमक्रुद्धावभिजघ्नतुराहवे।।
हीगॆ अन्योन्यरन्नु वाग्बाणगळिंद गायगॊळिसुत्ता आ नरपुंगवरु परम क्रुद्धरागि परस्परर प्राणगळन्नु तॆगॆयलु बयसि रणरंगदल्लि होराडिदरु.
07117020a समेतौ तौ नरव्याघ्रौ शुष्मिणौ स्पर्धिनौ रणे।
07117020c द्विरदाविव संक्रुद्धौ वाशितार्थे मदोत्कटौ।।
आ इब्बरु नरव्याघ्र योधरु रणदल्लि स्पर्धिसुत्ता हॆण्णानॆगॆ मदोत्कट सलगगळॆरडु संक्रुद्धरागि होराडुवंतॆ परस्परर मेलॆ ऎरगिदरु.
07117021a भूरिश्रवाः सात्यकिश्च ववर्षतुररिंदमौ।
07117021c शरवर्षाणि भीमानि मेघाविव परस्परं।।
अरिंदम भूरिश्रव मत्तु सात्यकियरु भयंकर मोडगळंतॆ परस्परर मेलॆ शरवर्षगळन्नु सुरिसिदरु.
07117022a सौमदत्तिस्तु शैनेयं प्रच्चाद्येषुभिराशुगैः।
07117022c जिघांसुर्भरतश्रेष्ठ विव्याध निशितैः शरैः।।
भरतश्रेष्ठ! सौमदत्तियादरो शैनेयनन्नु आशुगगळिंद मुच्चि संहरिसलु बयसि निशित शरगळिंद हॊडॆदनु.
07117023a दशभिः सात्यकिं विद्ध्वा सौमदत्तिरथापरान्।
07117023c मुमोच निशितान्बाणान्जिघांसुः शिनिपुंगवं।।
इन्नू बेरॆ हत्तरिंद सात्यकियन्नु हॊडॆदु, आ शिनिपुंगवनन्नु कॊल्ललु निशित बाणगळन्नु बिट्टनु.
07117024a तानस्य विशिखांस्तीक्ष्णानंतरिक्षे विशां पते।
07117024c अप्राप्तानस्त्रमायाभिरग्रसत्सात्यकिः प्रभो।।
विशांपते! प्रभो! आ तीक्ष्ण विशाखगळु बरुवुदरॊळगॆ अंतरिक्षदल्लिये सात्यकियु अस्त्रगळिंद तुंडरिसिदनु.
07117025a तौ पृथक् शरवर्षाभ्यामवर्षेतां परस्परं।
07117025c उत्तमाभिजनौ वीरौ कुरुवृष्णियशस्करौ।।
कुरु-वृष्णियर यशस्करराद, उत्तम कुलदल्लि जनिसिदवरू आद आ वीररिब्बरू मत्तॆ परस्परर मेलॆ शरवर्षगळन्नु सुरिसिदरु.
07117026a तौ नखैरिव शार्दूलौ दंतैरिव महाद्विपौ।
07117026c रथशक्तिभिरन्योन्यं विशिखैश्चाप्यकृंततां।।
ऎरडु हुलिगळु तम्म उगुरुगळिंद मत्तु महागजगळु तम्म दंतगळिंद हेगो हागॆ अवरिब्बरू रथशक्तिगळिंद मत्तु विशिखगळिंद अन्योन्यरन्नु गायगॊळिसिदरु.
07117027a निर्भिदंतौ हि गात्राणि विक्षरंतौ च शोणितं।
07117027c व्यष्टंभयेतामन्योन्यं प्राणद्यूताभिदेविनौ।।
देहगळन्नु जर्झरिसुत्ता, गायगळिंद रक्तवन्नु सुरिसुत्ता अवरिब्बरू अन्योन्यर प्राणगळन्नु पणवागिट्टु जूजाडुत्तिद्दरु.
07117028a एवमुत्तमकर्माणौ कुरुवृष्णियशस्करौ।
07117028c परस्परमयुध्येतां वारणाविव यूथपौ।।
हीगॆ आ इब्बरु उत्तमकर्मिगळु कुरु-वृष्णि यशस्कररु परस्पररॊंदिगॆ आनॆगळ हिंडिन सलगगळंतॆ होराडिदरु.
07117029a तावदीर्घेण कालेन ब्रह्मलोकपुरस्कृतौ।
07117029c जिगीषंतौ परं स्थानमन्योन्यमभिजघ्नतुः।।
परम स्थान ब्रह्मलोकवन्ने बयसिद्द अवरु अन्योन्यरन्नु कॊल्ललु बयसि बहळ काल युद्धमाडुत्तिद्दरु.
07117030a सात्यकिः सौमदत्तिश्च शरवृष्ट्या परस्परं।
07117030c हृष्टवद्धार्तराष्ट्राणां पश्यतामभ्यवर्षतां।।
सात्यकि-सौमदत्तियरु परस्पररन्नु शरवृष्टिगळिंद सुरिसि मुच्चिसि नोडुत्तिरुव धार्तराष्ट्रर संतोषवन्नु हॆच्चिसिदरु.
07117031a संप्रैक्षंत जनास्तत्र युध्यमानौ युधां पती।
07117031c यूथपौ वाशिताहेतोः प्रयुद्धाविव कुंजरौ।।
हॆण्णानॆय सलुवागि गुंपुगळ ऒडॆतनवन्नु हॊंदिरुव ऎरडु सलगगळु सॆणॆसाडुवंतॆ परस्पररॊडनॆ सॆणसाडुत्तिद्द आ सेनापतिगळन्नु नोडुत्ता निंतुबिट्टरु.
07117032a अन्योन्यस्य हयान् हत्वा धनुषी विनिकृत्य च।
07117032c विरथावसियुद्धाय समेयातां महारणे।।
परस्परर कुदुरॆगळन्नु संहरिसि धनुस्सन्नु कत्तरिसि अवरु विरथरन्नागिसि महारणदल्लि ऒट्टिगॆ होराडिदनु.
07117033a आर्षभे चर्मणी चित्रे प्रगृह्य विपुले शुभे।
07117033c विकोशौ चाप्यसी कृत्वा समरे तौ विचेरतुः।।
ऎत्तिन चर्मदिंद माडिद चित्रित विशाल शुभ गुराणियन्नु इब्बरू हिडिदु कत्तियन्नु ऒरॆयिंद तॆगॆदु समरदल्लि संचरिसतॊडगिदरु.
07117034a चरंतौ विविधान्मार्गान्मंडलानि च भागशः।
07117034c मुहुराजघ्नतुः क्रुद्धावन्योन्यमरिमर्दनौ।।
07117035a सखड्गौ चित्रवर्माणौ सनिष्कांगदभूषणौ।
07117035c रणे रणोत्कटौ राजन्नन्योन्यं पर्यकर्षतां।।
राजन्! खड्गगळन्नू, बण्णद गुराणिगळन्नु हिडिदु बंगारद अंगद भूषित आ रणोत्कट अरिमर्दनरिब्बरू विविध मार्ग-मंडलगळल्लि संचरिसुत्ता अन्योन्यरन्नु प्रहरिसिदरु.
07117036a मुहूर्तमिव राजेंद्र परिकृष्य परस्परं।
07117036c पश्यतां सर्वसैन्यानां वीरावाश्वसतां पुनः।।
राजेंद्र! परस्पररॊडनॆ सॆणॆसाडि, ऒंदु क्षण विश्रांति पडॆदु सर्व सेनॆगळु नोडुत्तिद्दंतॆ आ वीररु पुनः होराड तॊडगिदरु.
07117037a असिभ्यां चर्मणी शुभ्रे विपुले च शरावरे।
07117037c निकृत्य पुरुषव्याघ्रौ बाहुयुद्धं प्रचक्रतुः।।
खड्गगळिंद गुराणिगळन्नु कत्तरिसि विशाल खड्गगळन्नु ऎसॆदु आ पुरुषव्याघ्ररु बाहु युद्धदल्लि तॊडगिदरु.
07117038a व्यूढोरस्कौ दीर्घभुजौ नियुद्धकुशलावुभौ।
07117038c बाहुभिः समसज्जेतामायसैः परिघैरिव।।
विशाल ऎदॆय, नीळ भुजगळ, बाहुयुद्धकुशलराद अवरिब्बरू कब्बिणद परिघगळंतिद्द बाहुगळिंद परस्पररन्नु प्रहरिसिदरु.
07117039a तयोरासन्भुजाघाता निग्रहप्रग्रहौ तथा।
07117039c शिक्षाबलसमुद्भूताः सर्वयोधप्रहर्षणाः।।
शिक्षाबलदिंद कूडिद अवर भुजाघात60, निग्रह61-प्रग्रह62गळु सर्वयोधरिगू हर्षवन्नुंटुमाडुत्तिद्दवु.
07117040a तयोर्नृवरयो राजन्समरे युध्यमानयोः।
07117040c भीमोऽभवन्महाशब्दो वज्रपर्वतयोरिव।।
राजन्! आ नरश्रेष्ठरु समरदल्लि युद्धमाडुत्तिरुवाग वर्जायुधक्कू पर्वतक्कू तागुव हागॆ महा भयंकर शब्धवुंटायितु.
07117041a द्विपाविव विषाणाग्रैः शृंगैरिव महर्षभौ।
07117041c युयुधाते महात्मानौ कुरुसात्वतपुंगवौ।।
आनॆगळु दंतगळ तुदियिंद, महा होरिगळु कोडिन तुदियिंद हेगो हागॆ आ कुरु-सात्वत पुंगव महात्मरु सॆणसाडिदरु.
07117042a क्षीणायुधे सात्वते युध्यमाने ततोऽब्रवीदर्जुनं वासुदेवः।
07117042c पश्यस्वैनं विरथं युध्यमानं रणे केतुं सर्वधनुर्धराणां।।
सात्वतनु आयुधगळन्नु कळॆदुकॊंडु युद्धमाडुत्तिरलु वासुदेवनु अर्जुननिगॆ हेळिदनु: “सर्वधनुर्धररल्लि श्रेष्ठनादवनु रणदल्लि विरथनागि युद्धमाडुत्तिरुवुदन्नु नोडु!
07117043a प्रविष्टो भारतीं सेनां तव पांडव पृष्ठतः।
07117043c योधितश्च महावीर्यैः सर्वैर्भारत भारतैः।।
पांडव! भारत! निन्न हिंदॆये भारती सेनॆयन्नु प्रवेशिसि इवनु महावीर्यदिंद ऎल्ल भारतरॊंदिगॆ युद्धमाडुत्तिद्दानॆ.
07117044a परिश्रांतो युधां श्रेष्ठः संप्राप्तो भूरिदक्षिणं।
07117044c युद्धकांक्षिणमायांतं नैतत्सममिवार्जुन।।
आयासगॊंडिरुव योधश्रेष्ठनन्नु युद्धाकांक्षि भूरिदक्षिणनु तडॆदिरुवनु. अर्जुन! इदु समानर युद्धवल्ल!”
07117045a ततो भूरिश्रवाः क्रुद्धः सात्यकिं युद्धदुर्मदं।
07117045c उद्यम्य न्यहनद्राजन्मत्तो मत्तमिव द्विपं।।
राजन्! आग भूरिश्रवनु क्रुद्धनागि युददुर्मद सात्यकियन्नु मदिसिद आनॆयु इन्नॊंदु मदिसिद आनॆयन्नु हेगो हागॆ प्रयत्नपूर्वकवागि प्रहरिसिदनु.
07117046a रथस्थयोर्द्वयोर्युद्धे क्रुद्धयोर्योधमुख्ययोः।
07117046c केशवार्जुनयो राजन्समरे प्रेक्षमाणयोः।।
राजन्! क्रुद्धराद आ योधमुख्यर युद्धवन्नु समरदल्लि रथस्थरागि केशवार्जुनरु नोडुत्तिद्दरु.
07117047a अथ कृष्णो महाबाहुरर्जुनं प्रत्यभाषत।
07117047c पश्य वृष्ण्यंधकव्याघ्रं सौमदत्तिवशं गतं।।
आग महाबाहु कृष्णनु अर्जुननिगॆ पुनः हेळिदनु: “वृष्णि-अंधकर व्याघ्रनु सौमदत्तिय वशनागिरुवुदन्नु नोडु!
07117048a परिश्रांतं गतं भूमौ कृत्वा कर्म सुदुष्करं।
07117048c तवांतेवासिनं शूरं पालयार्जुन सात्यकिं।।
दुष्कर कर्मगळन्नु माडि बळलि भूमिगॆ कुसिदिरुव निन्न शूर शिष्य सात्यकियन्नु पालिसु अर्जुन!
07117049a न वशं यज्ञशीलस्य गच्चेदेष वरारिहन्।
07117049c त्वत्कृते पुरुषव्याघ्र तदाशु क्रियतां विभो।।
पुरुषव्याघ्र! विभो! निनगागि होराडुत्तिरुव इवनु यज्ञशील63न वशनागदंतॆ प्रयत्निसु!”
07117050a अथाब्रवीद्धृष्टमना वासुदेवं धनंजयः।
07117050c पश्य वृष्णिप्रवीरेण क्रीडंतं कुरुपुंगवं।
07117050e महाद्विपेनेव वने मत्तेन हरियूथपं।।
आग संतोषदिंद धनंजयनु वासुदेवनिगॆ हेळिदनु: “सिंहराजनु वनदल्लि गजराजनॊंदिगॆ सॆणसाडुवंतॆ वृष्णिप्रवीरनॊडनॆ आटवाडुत्तिरुव कुरुपुंगवनन्नु नोडु!”
07117051a हाहाकारो महानासीत्सैन्यानां भरतर्षभ।
07117051c यदुद्यम्य महाबाहुः सात्यकिं न्यहनद्भुवि।।
भरतर्षभ! आ महाबाहु भूरिश्रवनु सात्यकियन्नु कुक्कि नॆलक्कॆ कॆडवलु सेनॆगळल्लि महा हाहाकारवुंटायितु.
07117052a स सिंह इव मातंगं विकर्षन्भूरिदक्षिणः।
07117052c व्यरोचत कुरुश्रेष्ठः सात्वतप्रवरं युधि।।
कुरुश्रेष्ठ भूरिदक्षिण64नु सिंहवॊंदु आनॆयन्नु हेगो हागॆ युद्धदल्लि सात्वतप्रवरनन्नु गिरगिरनॆ तिरुगिसिदनु.
07117053a अथ कोशाद्विनिष्कृष्य खड्गं भूरिश्रवा रणे।
07117053c मूर्धजेषु निजग्राह पदा चोरस्यताडयत्।।
आग रणदल्लि भूरिश्रवनु ऒरॆयिंद खड्गवन्नु ऎळॆदु तॆगॆदु, अवन मुडियन्नु हिडिदु कालिनिंद ऎदॆगॆ ऒदॆदनु.
07117054a तथा तु परिकृष्यंतं दृष्ट्वा सात्वतमाहवे।
07117054c वासुदेवस्ततो राजन्भूयोऽर्जुनमभाषत।।
राजन्! हागॆ आहवदल्लि ऎळॆदाडल्पडुत्तिद्द सात्वतनन्नु नोडि वासुदेवनु इन्नॊम्मॆ अर्जुननिगॆ हेळिदनु:
07117055a पश्य वृष्ण्यंधकव्याघ्रं सौमदत्तिवशं गतं।
07117055c तव शिष्यं महाबाहो धनुष्यनवरं त्वया।।
“महाबाहो! वृष्णि-अंधकर व्याघ्र, धनुर्विद्यॆयल्लि निनगिंथ कडिमॆयिल्लद निन्न शिष्यनु सौमदत्तिय वशनागिरुवुदन्नु नोडु!
07117056a असत्यो विक्रमः पार्थ यत्र भूरिश्रवा रणे।
07117056c विशेषयति वार्ष्णेयं सात्यकिं सत्यविक्रमं।।
पार्थ! रणदल्लि भूरिश्रवनु वार्ष्णेय सत्यविक्रम सात्यकियन्नु मीरिसिदनॆंदरॆ विक्रमवॆंबुदे असत्यवागिबिडुत्तदॆ65.”
07117057a एवमुक्तो महाबाहुर्वासुदेवेन पांडवः।
07117057c मनसा पूजयामास भूरिश्रवसमाहवे।।
रणदल्लि महाबाहु वासुदेवनु हीगॆ हेळलु पांडवनु मनस्सिनल्लिये भूरिश्रवनन्नु प्रशंसिसिदनु.
07117058a विकर्षन्सात्वतश्रेष्ठं क्रीडमान इवाहवे।
07117058c संहर्षयति मां भूयः कुरूणां कीर्तिवर्धनः।।
07117059a प्रवरं वृष्णिवीराणां यन्न हन्याद्धि सात्यकिं।
07117059c महाद्विपमिवारण्ये मृगेंद्र इव कर्षति।।
“कुरुगळ कीर्तिवर्धननु सात्वतश्रेष्ठनन्नु ऎळॆदाडि रणक्रीडॆयाडुवंतिद्दानॆ. अरण्यदल्लि सिंहवु महा आनॆयॊंदन्नु हेगो हागॆ अवनु वृष्णिवीररल्लि श्रेष्ठ सात्यकियन्नु ऎळॆदाडुत्तिद्दानॆ. अवनन्नु इन्नू कॊल्लदे नन्न संतोषवन्नु हॆच्चिसुत्तिद्दानॆ!”
07117060a एवं तु मनसा राजन्पार्थः संपूज्य कौरवं।
07117060c वासुदेवं महाबाहुरर्जुनः प्रत्यभाषत।।
राजन्! हीगॆ मनस्सिनल्लिये कौरवनन्नु गौरविसि पार्थ महाबाहु अर्जुननु वासुदेवनिगॆ उत्तरिसिदनु:
07117061a सैंधवासक्तदृष्टित्वान्नैनं पश्यामि माधव।
07117061c एष त्वसुकरं कर्म यादवार्थे करोम्यहं।।
“सैंधवनल्लिये आसक्तनागि गुरियिट्टिरुव नानु इवनन्नु नोडलिल्ल माधव! इदु ऒळ्ळॆय कॆलसवल्लदिद्दरू66 नानु इदन्नु यादवनिगागि माडुत्तेनॆ!”
07117062a इत्युक्त्वा वचनं कुर्वन्वासुदेवस्य पांडवः।
07117062c सखड्गं यज्ञशीलस्य पत्रिणा बाहुमच्चिनत्।।
हीगॆ हेळि वासुदेवन मातिनंतॆ माडुत्ता पांडवनु पत्रियिंद खड्गवन्नु हिडिदिद्द यज्ञशीलन बाहुवन्नु कत्तरिसिदनु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते द्रोण पर्वणि जयद्रथवध पर्वणि भूरिश्रवोबाहुच्छेदे सप्तदशाधिकशततमोऽध्यायः ।।
इदु श्री महाभारतदल्लि द्रोण पर्वदल्लि जयद्रथवध पर्वदल्लि भूरिश्रवबाहुच्छेद ऎन्नुव नूराहदिनेळने अध्यायवु.