प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
द्रोण पर्व
जयद्रथवध पर्व
अध्याय 99
सार
सात्यकियिंद दुःशासनन पराजय (1-28).
07099001 संजय उवाच।
07099001a ततो दुःशासनो राजन् शैनेयं समुपाद्रवत्।
07099001c किरं शरसहस्राणि पर्जन्य इव वृष्टिमान्।।
संजयनु हेळिदनु: “राजन्! अनंतर दुःशासननु मळॆगरॆयुत्तिरुव मोडदंतॆ सहस्रारु बाणगळन्नु सुरिसुत्ता शैनेय सात्यकियन्नु आक्रमणिसिदनु.
07099002a स विद्ध्वा सात्यकिं षष्ट्या तथा षोडशभिः शरैः।
07099002c नाकंपयत् स्थितं युद्धे मैनाकमिव पर्वतं।।
सात्यकियन्नु अरवत्तु मत्तु हागॆये हदिनारु शरगळिंद हॊडॆदरू युद्धदल्लि मैनाकपर्वतदंतॆ स्थिरनागि निंतिद्द अवनन्नु अलुगाडिसलू आगलिल्ल.
07099003a स तु दुःशासनं वीरः सायकैरावृणोद्भृशं।
07099003c मशकं समनुप्राप्तमूर्णनाभिरिवोर्णया।।
आ वीरनु उक्किबरुत्तिरुव सागरदंतॆ आक्रमणिसुत्तिरुव दुःशासननन्नु सायकगळिंद तुंबा गायगॊळिसिदनु.
07099004a दृष्ट्वा दुःशासनं राजा तथा शरशताचितं।
07099004c त्रिगर्तांश्चोदयामास युयुधानरथं प्रति।।
दुःशासननु हागॆ बाणगळिंद पीडितनादुदन्नु नोडि राजा दुर्योधननु युयुधान सात्यकिय रथद कडॆ धाविसुवंतॆ त्रिगर्तरन्नु प्रचोदिसिदनु.
07099005a तेऽगच्चन्युयुधानस्य समीपं क्रूरकारिणः।
07099005c त्रिगर्तानां त्रिसाहस्रा रथा युद्धविशारदाः।।
आ क्रूरकरिणी युद्धविशारद त्रिगर्तरु मूरु साविर रथगळन्नु कूडिकॊंडु युयुधानन बळि होदरु.
07099006a ते तु तं रथवंशेन महता पर्यवारयन्।
07099006c स्थिरां कृत्वा मतिं युद्धे भूत्वा संशप्तका मिथः।।
अवरु युद्धदल्लि स्थिरबुद्धियन्निरिसिकॊंडु पलायनमाडुवुदिल्लवॆंदु शपथवन्नु तॊट्टु आ महा रथगुंपिनिंद सात्यकियन्नु सुत्तुवरॆदरु.
07099007a तेषां प्रयततां युद्धे शरवर्षाणि मुंचतां।
07099007c योधान्पंचशतान्मुख्यानग्रानीके व्यपोथयत्।।
बाणगळ मळॆयन्नु सुरिसुत्ता युद्धदल्लि प्रयत्नपडुत्तिद्द अवर सेनॆगळ ऎदुरिरुव ऐनूरु योधरन्नु सात्यकियु उरुळिसिबिट्टनु.
07099008a तेऽपतंत हतास्तूर्णं शिनिप्रवरसायकैः।
07099008c महामारुतवेगेन रुग्णा इव महाद्रुमाः।।
कूडले अवरु वेगवागि बीसुत्तिद्द महाचंडमारुतक्कॆ सिलुकि मुरिदुबिद्द महामरगळंतॆ शिनिप्रवरन सायकगळिगॆ सिलुकि हतरागि बिद्दरु.
07099009a रथैश्च बहुधा चिन्नैर्ध्वजैश्चैव विशां पते।
07099009c हयैश्च कनकापीडैः पतितैस्तत्र मेदिनी।।
विशांपते! अनेक रथगळु मत्तु ध्वजगळू तुंडागि मत्तु बंगारदिंद अलंकृत कुदुरॆगळु हतवागि रणभूमियमेलॆ बिद्दिद्दवु.
07099010a शैनेयशरसंकृत्तैः शोणितौघपरिप्लुतैः।
07099010c अशोभत महाराज किंशुकैरिव पुष्पितैः।।
महाराज! शैनेयन शरगळिंद गायगॊंडु रक्तदिंद तोय्दुहोगिद्द अवु हूबिट्ट किंशुक वृक्षगळंतॆ शोभिसिदवु.
07099011a ते वध्यमानाः समरे युयुधानेन तावकाः।
07099011c त्रातारं नाध्यगच्चंत पंकमग्ना इव द्विपाः।।
समरदल्लि युयुधाननिंद वधिसल्पडुत्तिद्द निन्नवरु कॆसरिनल्लि सिलुकिद्द आनॆगळंतॆ त्रातारन्यारन्नू पडॆयलिल्ल.
07099012a ततस्ते पर्यवर्तंत सर्वे द्रोणरथं प्रति।
07099012c भयात्पतगराजस्य गर्तानीव महोरगाः।।
आग अवरॆल्लरू पतगराजन भयदिंद बिलगळन्नु सेरुव महोरगगळंतॆ द्रोणन रथद बळि सेरिदरु.
07099013a हत्वा पंचशतान्योधान् शरैराशीविषोपमैः।
07099013c प्रायात्स शनकैर्वीरो धनंजयरथं प्रति।।
विषसर्पगळंतिरुव शरगळिंद आ ऐनूरु योधरन्नु संहरिसि वीर सात्यकियु निधानवागि धनंजयन रथद कडॆ प्रयाणिसिदनु.
07099014a तं प्रयांतं नरश्रेष्ठं पुत्रो दुःशासनस्तव।
07099014c विव्याध नवभिस्तूर्णं शरैः सन्नतपर्वभिः।।
मुंदॆ सागुत्तिद्द आ नरश्रेष्ठनन्नु निन्न मग दुशासननु कूडले ऒंभत्तु सन्नतपर्व शरगळिंद हॊडॆदनु.
07099015a स तु तं प्रतिविव्याध पंचभिर्निशितैः शरैः।
07099015c रुक्मपुंखैर्महेष्वासो गार्ध्रपत्रैरजिह्मगैः।।
महेष्वास सात्यकियादरो अवनन्नु ऐदु रुक्मपुंखगळ, हद्दिन गरिगळ निशित जिह्मग शरगळिंद तिरुगि हॊडॆदनु.
07099016a सात्यकिं तु महाराज प्रहसन्निव भारत।
07099016c दुःशासनस्त्रिभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पंचभिः।।
महाराज! भारत! दुःशासननादरो नगुत्तिरुवनो ऎन्नुवंतॆ सात्यकियन्नु मूररिंद हॊडॆदु पुनः ऐदरिंद हॊडॆदनु.
07099017a शैनेयस्तव पुत्रं तु विद्ध्वा पंचभिराशुगैः।
07099017c धनुश्चास्य रणे चित्त्वा विस्मयन्नर्जुनं ययौ।।
शैनेयनु निन्न मगनन्नु ऐदु आशुगगळिंद हॊडॆदु मत्तु रणदल्लि अवन धनुस्सन्नु कत्तरिसि विस्मयनन्नागिसि अर्जुनन कडॆ होदनु.
07099018a ततो दुःशासनः क्रुद्धो वृष्णिवीराय गच्चते।
07099018c सर्वपारशवीं शक्तिं विससर्ज जिघांसया।।
वृष्णिवीरनु हागॆ होगलु क्रुद्धनाद दुःशासननु अवनन्नु कॊल्ललु बयसि सर्ववू उक्किन मयवागिद्द शक्तियन्नु अवन मेलॆ प्रयोगिसिदनु.
07099019a तां तु शक्तिं तदा घोरां तव पुत्रस्य सात्यकिः।
07099019c चिच्चेद शतधा राजन्निशितैः कंकपत्रिभिः।।
राजन्! निन्न मगन आ घोर शक्तियन्नादरो सात्यकियु निशित कंकपत्रिगळिंद नूरुतुंडुगळन्नागि कत्तरिसिदनु.
07099020a अथान्यद्धनुरादाय पुत्रस्तव जनेश्वर।
07099020c सात्यकिं दशभिर्विद्ध्वा सिंहनादं ननाद ह।।
जनेश्वर! आग निन्न मगनु इन्नॊंदु धनुस्सॆन्नॆत्तिकॊंडु सात्यकियन्नु हत्तु बाणगळिंद हॊडॆदु सिंहनादगैदनु.
07099021a सात्यकिस्तु रणे क्रुद्धो मोहयित्वा सुतं तव।
07099021c शरैरग्निशिखाकारैराजघान स्तनांतरे।
07099021e सर्वायसैस्तीक्ष्णवक्त्रैरष्टाभिर्विव्यधे पुनः।।
रणदल्लि क्रुद्धनाद सात्यकियादरो निन्न मगनन्नु मूर्छॆगॊळिसुत्ता अग्निशिखॆगळ आकारदल्लिद्द शरगळन्नु अवन ऎदॆगॆ गुरियिट्टु हॊडॆदनु. पुनः ऎंटु तीक्ष्णमुखगळुळ्ळ उक्किन बाणगळिंद हॊडॆदनु.
07099022a दुःशासनस्तु विंशत्या सात्यकिं प्रत्यविध्यत।
07099022c सात्वतोऽपि महाराज तं विव्याध स्तनांतरे।
07099022e त्रिभिरेव महावेगैः शरैः सन्नतपर्वभिः।।
अदक्कॆ प्रतियागि दुःशासननू कूड सात्यकियन्नु इप्पत्तु बाणगळिंद हॊडॆदनु. महाराज! तिरुगि सात्वतनू कूड महावेगदिंद अवन ऎदॆगॆ मूरु सन्नतपर्व शरगळिंद हॊडॆदनु.
07099023a ततोऽस्य वाहान्निशितैः शरैर्जघ्ने महारथः।
07099023c सारथिं च सुसंक्रुद्धः शरैः सन्नतपर्वभिः।।
आग तुंबा क्रोधितनाद महारथ सात्यकियु दुःशासनन कुदुरॆगळन्नु निशित बाणगळिंद मत्तु सारथियन्नु कूड सन्नत पर्व शरगळिंद हॊडॆदु संहरिसिदनु.
07099024a धनुरेकेन भल्लेन हस्तावापं च पंचभिः।
07099024c ध्वजं च रथशक्तिं च भल्लाभ्यां परमास्त्रवित्।
07099024e चिच्चेद विशिखैस्तीक्ष्णैस्तथोभौ पार्ष्णिसारथी।।
ऒंदे भल्लदिंद अवन धनुस्सन्नू, हस्तावापवन्नू कत्तरिसि, ऎरडु भल्लगळिंद ध्वजवन्नू रथशक्तियन्नू तुंडरिसि आ परमास्त्रविदुवु तीक्ष्ण विशिखगळिंद अवन इब्बरु पार्ष्णिसारथिगळन्नू संहरिसिदनु.
07099025a स चिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
07099025c त्रिगर्तसेनापतिना स्वरथेनापवाहितः।।
धनुस्सु मुरिदु विरथनाद, कुदुरॆ-सारथिगळन्नु कळॆदुकॊंड दुःशासननन्नु त्रिगर्तसेनापतियु तन्न रथदल्लि एरिसिकॊंडनु.
07099026a तमभिद्रुत्य शैनेयो मुहूर्तमिव भारत।
07099026c न जघान महाबाहुर्भीमसेनवचः स्मरन्।।
भारत! महाबाहु भीमसेनन मातन्नु नॆनपिसिकॊंडु ऒंदु क्षण दॊरकिद्दरू शैनेयनु दुःशासननन्नु कॊल्ललिल्ल.
07099027a भीमसेनेन हि वधः सुतानां तव भारत।
07099027c प्रतिज्ञातः सभामध्ये सर्वेषामेव संयुगे।।
भारत! संयुगदल्लि निन्न ऎल्ल मक्कळ वधॆयन्नू ताने माडुत्तेनॆंदु सभामध्यदल्लि भीमसेननु प्रतिज्ञॆमाडिद्दनु.
07099028a तथा दुःशासनं जित्वा सात्यकिः संयुगे प्रभो।
07099028c जगाम त्वरितो राजन्येन यातो धनंजयः।।
प्रभो! राजन्! हागॆ संयुगदल्लि दुःशासननन्नु गॆद्द सात्यकियु त्वरॆमाडि धनंजयनु होगिरुवल्लिगॆ होदनु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते द्रोण पर्वणि जयद्रथवध पर्वणि सात्यकिप्रवेशे दुःशासनपराजये एकोनशततमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि द्रोण पर्वदल्लि जयद्रथवध पर्वदल्लि सात्यकिप्रवेशे दुःशासनपराजय ऎन्नुव तॊंभत्तॊंभत्तने अध्यायवु.