093 सात्यकिप्रवेशे सात्यकिपराक्रमः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

द्रोण पर्व

जयद्रथवध पर्व

अध्याय 93

सार

सात्यकियु द्रोणन रथवन्नु ओडिसि पराजयगॊळिसिदुदु (1-35).

07093001 संजय उवाच।
07093001a काल्यमानेषु सैन्येषु शैनेयेन ततस्ततः।
07093001c भारद्वाजः शरव्रातैर्महद्भिः समवाकिरत्।।

संजयनु हेळिदनु: “शैनेयनु अल्लल्लि सेनॆगळन्नु नाशपडिसुत्तिरलु भारद्वाज द्रोणनु महा शरव्रातगळिंद अवनन्नु मुच्चिदनु.

07093002a स संप्रहारस्तुमुलो द्रोणसात्वतयोरभूत्।
07093002c पश्यतां सर्वसैन्यानां बलिवासवयोरिव।।

आग ऎल्ल सेनॆगळू नोडुत्तिद्दंतॆ बलि मत्तु वासवर नडुवॆ नडॆद युद्धदंथह संप्रहार तुमुल युद्धवु द्रोण मत्तु सात्यकियर नडुवॆ नडॆयितु.

07093003a ततो द्रोणः शिनेः पौत्रं चित्रैः सर्वायसैः शरैः।
07093003c त्रिभिराशीविषाकारैर्ललाटे समविध्यत।।

द्रोणनु शिनिय मॊम्मॊगन हणॆगॆ मूरु चित्रित लोहमय सर्पसदृश बाणगळन्नु प्रहरिसिदनु.

07093004a तैर्ललाटार्पितैर्बाणैर्युयुधानस्त्वजिह्मगैः।
07093004c व्यरोचत महाराज त्रिशृंग इव पर्वतः।।

महाराज! हणॆगॆ चुच्चिकॊंड आ जिह्मगगळिंद युयुधाननु त्रिशृंग पर्वतदंतॆ शोभिसिदनु.

07093005a ततोऽस्य बाणानपरानिंद्राशनिसमस्वनान्।
07093005c भारद्वाजोऽम्तरप्रेक्षी प्रेषयामास संयुगे।।

शत्रुविन दुर्बल छिद्रवन्ने हुडुकुत्तिद्द द्रोणनु इंद्रन वज्रायुध समान ध्वनियिद्द इन्नू अनेक बाणगळन्नु संयुगदल्लि सात्यकिय मेलॆ समयवरितु प्रयोगिसिदनु.

07093006a तान्द्रोणचापनिर्मुक्तान्दाशार्हः पततः शरान्।
07093006c द्वाभ्यां द्वाभ्यां सुपुंखाभ्यां चिच्चेद परमास्त्रवित्।।

द्रोणन धनुस्सिनिंद हॊरटु बीळुत्तिद्द आ शरगळन्नु परमास्त्रविदु दाशार्हनु पुंखगळुळ्ळ ऎरॆडॆरडु बाणगळिंद कत्तरिसिदनु.

07093007a तामस्य लघुतां द्रोणः समवेक्ष्य विशां पते।
07093007c प्रहस्य सहसाविध्यद्विंशत्या शिनिपुंगवं।।

विशांपते! अवन हस्तलाघववन्नु नोडिद द्रोणनु जोरागि नक्कु तक्षणवे शिनिपुंगवनन्नु इप्पत्तु बाणगळिंद हॊडॆदनु.

07093008a पुनः पंचाशतेषूणां शतेन च समार्पयत्।
07093008c लघुतां युयुधानस्य लाघवेन विशेषयन्।।

युयुधानन हस्तलाघववन्नु तन्न हस्तलाघवदिंद मीरिसुत्ता द्रोणनु पुनः ऐवत्तु निशित बाणगळिंद प्रहरिसिदनु.

07093009a समुत्पतंति वल्मीकाद्यथा क्रुद्धा महोरगाः।
07093009c तथा द्रोणरथाद्राजन्नुत्पतंति तनुच्चिदः।।

क्रुद्ध महासर्पगळु हुत्तदिंद हेगॆ ऒंदॊंदागि हॊरबरुत्तवॆयो हागॆ द्रोणन रथदिंद देहवन्नु सीळबल्ल बाणगळु हॊरबरुत्तिद्दवु.

07093010a तथैव युयुधानेन सृष्टाः शतसहस्रशः।
07093010c अवाकिरन्द्रोणरथं शरा रुधिरभोजनाः।।

अदे रीतियल्लि युयुधाननु सृष्टिसिद नूरारु साविरारु रक्तवन्नु कुडियुव शरगळु द्रोणन रथवन्नु मुत्तिदवु.

07093011a लाघवाद्द्विजमुख्यस्य सात्वतस्य च मारिष।
07093011c विशेषं नाध्यगच्चाम समावास्तां नरर्षभौ।।

मारिष! द्विजमुख्य द्रोण मत्तु सात्वत इवरिब्बरु नरर्षभर नडुवॆ हस्त लाघवदल्लि नावु याव रीतिय व्यत्यासवन्नू काणलिल्ल.

07093012a सात्यकिस्तु ततो द्रोणं नवभिर्नतपर्वभिः।
07093012c आजघान भृशं क्रुद्धो ध्वजं च निशितैः शरैः।
07093012e सारथिं च शतेनैव भारद्वाजस्य पश्यतः।।

अनंतर सात्यकियु द्रोणनन्नु ऒंभत्तु नतपर्वगळिंद हॊडॆदनु. मत्तु अत्यंत क्रुद्धनागि भारद्वाजनु नोडुत्तिद्दंतॆये नूरु निशित शरगळिंद अवन ध्वजवन्नू सारथियन्नू हॊडॆदनु.

07093013a लाघवं युयुधानस्य दृष्ट्वा द्रोणो महारथः।
07093013c सप्तत्या सात्यकिं विद्ध्वा तुरगांश्च त्रिभिस्त्रिभिः।
07093013e ध्वजमेकेन विव्याध माधवस्य रथे स्थितं।।

युयुधानन हस्तलाघववन्नु कंडु महारथ द्रोणनु सात्यकियन्नु ऎप्पत्तु बाणगळिंद हॊडॆदु, मूररिंद कुदुरॆगळन्नू, ऒंदरिंद माधवन रथदल्लिद्द ध्वजवन्नू हॊडॆदनु.

07093014a अथापरेण भल्लेन हेमपुंखेन पत्रिणा।
07093014c धनुश्चिच्चेद समरे माधवस्य महात्मनः।।

समरदल्लि द्रोणनु चिन्नद रॆक्कॆगळिद्द इन्नॊंदु भल्लदिंद महात्म माधवन धनुस्सन्नु तुंडरिसिदनु.

07093015a सात्यकिस्तु ततः क्रुद्धो धनुस्त्यक्त्वा महारथः।
07093015c गदां जग्राह महतीं भारद्वाजाय चाक्षिपत्।।

आग महारथ सात्यकियादरो क्रुद्धनागि धनुस्सन्नु बिसुटु महा गदॆयॊंदन्नु हिडिदु भारद्वाजन मेलॆ ऎसॆदनु.

07093016a तामापतंतीं सहसा पट्टबद्धामयस्मयीं।
07093016c न्यवारयच्चरैर्द्रोणो बहुभिर्बहुरूपिभिः।।

तन्न मेलॆ रभसदिंद बरुत्तिद्द आ चिन्नद पट्टियिंद सुत्तल्पट्टिद्द लोहमय गदॆयन्नु द्रोणनु अनेक बहुरूपी बाणगळिंद निरसनगॊळिसिदनु.

07093017a अथान्यद्धनुरादाय सात्यकिः सत्यविक्रमः।
07093017c विव्याध बहुभिर्वीरं भारद्वाजं शिलाशितैः।।

अनंतर सत्यविक्रमि सात्यकियु इन्नॊंदु धनुस्सन्नु ऎत्तिकॊंडु वीर भारद्वाजनन्नु अनेक शिलाशित शरगळिंद गायगॊळिसिदनु.

07093018a स विद्ध्वा समरे द्रोणं सिंहनादममुंचत।
07093018c तं वै न ममृषे द्रोणः सर्वशस्त्रभृतां वरः।।

समरदल्लि द्रोणनन्नु हागॆ गायगॊळिसि सात्यकियु सिंहनादगैदनु. आग सर्वशस्त्रभृतरल्लि श्रेष्ठनाद द्रोणनु अवन आ कृत्यवन्नु सहिसिकॊळ्ळलिल्ल.

07093019a तथः शक्तिं गृहीत्वा तु रुक्मदंडामयस्मयीं।
07093019c तरसा प्रेषयामास माधवस्य रथं प्रति।।

चिन्नद दंडदिंद कूडिद्द लोहमय शक्त्यायुधवन्नॆत्तिकॊंडु माधवन रथद मेलॆ रभसदिंद ऎसॆदनु.

07093020a अनासाद्य तु शैनेयं सा शक्तिः कालसन्निभा।
07093020c भित्त्वा रथं जगामोग्रा धरणीं दारुणस्वना।।

कालनंतिद्द आ शक्तियु शैनेयनन्नु मुट्टदे अवन रथवन्नु मात्र भेदिसि उग्र दारुण स्वरदॊंदिगॆ भूमिय मेलॆ बिद्दितु.

07093021a ततो द्रोणं शिनेः पौत्रो राजन्विव्याध पत्रिणा।
07093021c दक्षिणं भुजमासाद्य पीडयन्भरतर्षभ।।

राजन्! भरतर्षभ! आग शिनिय मॊम्मगनु द्रोणनन्नु पत्रिगळिंद हॊडॆदनु. अदु द्रोणन बलभुजक्कॆ तागि पीडॆयन्नुंटुमाडितु.

07093022a द्रोणोऽपि समरे राजन्माधवस्य महद्धनुः।
07093022c अर्धचंद्रेण चिच्चेद रथशक्त्या च सारथिं।।

राजन्! द्रोणनादरो समरदल्लि माधवन महा धनुस्सन्नु अर्धचंद्रदिंद तुंडरिसि रथशक्ति29यिंद सारथियन्नु हॊडॆदनु.

07093023a मुमोह सरथिस्तस्य रथशक्त्या समाहतः।
07093023c स रथोपस्थमासाद्य मुहूर्तं सम्न्यषीदत।।

रथशक्तियिंद प्रहृतनाद सारथियु मूर्छॆहॊंदि मुहूर्तकाल रथपीठद हिंबदियल्लि सुम्मने कुळितुकॊंडनु.

07093024a चकार सात्यकी राजंस्तत्र कर्मातिमानुषं।
07093024c अयोधयच्च यद्द्रोणं रश्मीं जग्राह च स्वयं।।

राजन्! आग सात्यकियु अल्लि अतिमानुष कर्मवन्नु माडिदनु. स्वयं ताने कुदुरॆगळ कडिवाणगळन्नु हिडिदुकॊंडु द्रोणनॊंदिगॆ युद्धमाडिदनु.

07093025a ततः शरशतेनैव युयुधानो महारथः।
07093025c अविध्यद्ब्राह्मणं संख्ये हृष्टरूपो विशां पते।।

विशांपते! आग युद्धदल्लि हृष्टरूपनाद महारथ युयुधाननु ब्राह्मणनन्नु नूरु बाणगळिंद हॊडॆदनु.

07093026a तस्य द्रोणः शरान्पंच प्रेषयामास भारत।
07093026c ते तस्य कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे।।

भारत! आग रणदल्लि द्रोणनु अवन मेलॆ ऐदु बाणगळन्नु प्रयोगिसलु अवु अवन कवचवन्नु कत्तरिसि रक्तवन्नु कुडिदवु.

07093027a निर्विद्धस्तु शरैर्घोरैरक्रुध्यत्सात्यकिर्भृशं।
07093027c सायकान्व्यसृजच्चापि वीरो रुक्मरथं प्रति।।

घोर शरगळिंद गायगॊंड सात्यकियु तुंबा क्रुद्धनादनु. आ वीरनु द्रोणन बंगारद रथद मेलॆ सायकगळ मळॆयन्ने सुरिसिदनु.

07093028a ततो द्रोणस्य यंतारं निपात्यैकेषुणा भुवि।
07093028c अश्वान्व्यद्रावयद्बाणैर्हतसूतान्महात्मनः।।

अनंतर अवनु ऒंदे बाणदिंद महात्म द्रोणन सारथियन्नु हॊडॆदु नॆलक्कॆ बीळिसिदनु. मत्तु सूतनु हतनागलु बाणगळिंद हॊडॆदु कुदुरॆगळन्नु ओडिसिदनु.

07093029a स रथः प्रद्रुतः संख्ये मंडलानि सहस्रशः।
07093029c चकार राजतो राजन्भ्राजमान इवांशुमान्।।

राजन्! बॆळ्ळियंतॆ हॊळॆयुत्तिद्द आ रथवु रणदल्लि सहस्रारु सुत्तुगळन्नु हाकि, सूर्यनंतॆ प्रकाशिसितु.

07093030a अभिद्रवत गृह्णीत हयान्द्रोणस्य धावत।
07093030c इति स्म चुक्रुशुः सर्वे राजपुत्राः सराजकाः।।

आग अल्लिद्द राजरु मत्तु राजपुत्ररु ऎल्लरू “ओडिहोगि! हिडियिरि! द्रोणन कुदुरॆगळन्नु तडॆयिरि!” ऎंदु कूगिकॊळ्ळुत्तिद्दरु.

07093031a ते सात्यकिमपास्याशु राजन्युधि महारथाः।
07093031c यतो द्रोणस्ततः सर्वे सहसा समुपाद्रवन्।।

राजन्! युद्धदल्लि सात्यकियन्नु अल्लिये बिट्टु महारथरॆल्लरू कूडले द्रोणन रथवु होगुत्तिद्द कडॆगे तम्म रथगळन्नू ओडिसिदरु.

07093032a तान्दृष्ट्वा प्रद्रुतान्सर्वान्सात्वतेन शरार्दितान्।
07093032c प्रभग्नं पुनरेवासीत्तव सैन्यं समाकुलं।।

सात्वतन शरगळिंद पीडितवागिद्द निन्न सैन्य समाकुलवु अवरु ओडि होगुत्तिद्दुदन्नु नोडि पुनः प्रभग्नवायितु.

07093033a व्यूहस्यैव पुनर्द्वारं गत्वा द्रोणो व्यवस्थितः।
07093033c वातायमानैस्तैरश्वैर्हृतो वृष्णिशरार्दितैः।।

वृष्णिय शरगळिंद पीडितगॊंडु वायुवेगदिंद ओडि होगुत्तिद्द कुदुरॆगळिंदले पुनः हिंदक्कॆ करतरल्पट्ट द्रोणनु व्यूहद महाद्वारक्कॆ होगि पुनः अल्लिये व्यवस्थितनादनु.

07093034a पांडुपांचालसंभग्नं व्यूहमालोक्य वीर्यवान्।
07093034c शैनेये नाकरोद्यत्नं व्यूहस्यैवाभिरक्षणे।।

पांडवरु मत्तु पांचालरिंद तन्न व्यूहवु भग्नवागुत्तिरुवुदन्नु नोडि वीर्यवान् द्रोणनु शैनेयनन्नु हिंबालिसि होगदे व्यूहद रक्षणॆयल्लिये निरतनादनु.

07093035a निवार्य पांडुपांचालान्द्रोणाग्निः प्रदहन्निव।
07093035c तस्थौ क्रोधाग्निसंदीप्तः कालसूर्य इवोदितः।।

कोपवॆंब कट्टिगॆयिंद प्रज्वलिसुत्तिद्द द्रोणनु पांडु पांचाल योधरन्नु दहिसिबिडुवनो ऎंबंतॆ व्यूहद अग्रभागदल्लि निंतु प्रळयकालद सूर्यनंतॆ प्रकाशिसुत्तिद्दनु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते द्रोण पर्वणि जयद्रथवध पर्वणि सात्यकिप्रवेशे सात्यकिपराक्रमे त्रिनवतितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि द्रोण पर्वदल्लि जयद्रथवध पर्वदल्लि सात्यकिप्रवेशे सात्यकिपराक्रम ऎन्नुव तॊंभत्मूरने अध्यायवु.