033 चक्रव्यूहनिर्माणः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

द्रोण पर्व

अभिमन्युवध पर्व

अध्याय 33

सार

अभिमन्युविन गुणगळ वर्णनॆ (1-10). चक्रव्यूह निर्माण (11-20).

07033001 संजय उवाच।
07033001a समरेऽत्युग्रकर्माणः कर्मभिर्व्यंजितश्रमाः।
07033001c सकृष्णाः पांडवाः पंच देवैरपि दुरासदाः।।

संजयनु हेळिदनु: “समरदल्लि उग्रकर्मिगळाद, श्रमिसि कर्मगळन्नु माडितोरिसुव ऐवरु पांडवरु कृष्णनन्नू सेरि, देवतॆगळिगू सोलिसलु असाध्यरु.

07033002a सत्त्वकर्मान्वयैर्बुद्ध्या प्रकृत्या यशसा श्रिया।
07033002c नैव भूतो न भविता कृष्णतुल्यगुणः पुमान्।।

सत्त्वगुण, सत्कर्म, वंश, बुद्धि, कीर्ति, यशस्सु मत्तु संपत्तु इवुगळल्लि कृष्णनिगॆ समनाद पुरुषनु हिंदॆ ऎंदू इरलिल्ल. मुंदॆ ऎंदू इरलार.

07033003a सत्यधर्मपरो दाता विप्रपूजादिभिर्गुणैः।
07033003c सदैव त्रिदिवं प्राप्तो राजा किल युधिष्ठिरः।।

सत्यधर्मपरायणनू जितेंद्रियनू आद राजा युधिष्ठिरनु ब्राह्मण सत्कारवे मॊदलाद सद्गुणगळिंद ईगागलॆ स्वर्गवन्नु पडॆदुकॊंडवनागिद्दानॆ.

07033004a युगांते चांतको राजन्जामदग्न्यश्च वीर्यवान्।
07033004c रणस्थो भीमसेनश्च कथ्यंते सदृशास्त्रयः।।

राजन्! युंगांतदल्लि यम, वीर्यवान् जामदग्नि मत्तु रणदल्लिरुव भीमसेन ई मूवरू ऒंदे समरॆंदु हेळुत्तारॆ.

07033005a प्रतिज्ञाकर्मदक्षस्य रणे गांडीवधन्वनः।
07033005c उपमां नाधिगच्चामि पार्थस्य सदृशीं क्षितौ।।

रणदल्लि प्रतिज्ञापूर्वकवागि कर्मगळन्नु माडलु दक्षनाद गांडीव धन्वि पार्थनिगॆ सदृश उपमॆयु ननगॆ प्रपंचदल्लि यारू सिक्किरुवुदिल्ल.

07033006a गुरुवात्सल्यमत्यंतं नैभृत्यं विनयो दमः।
07033006c नकुलेऽप्रातिरूप्यं च शौर्यं च नियतानि षट्।।

अत्यंत गुरुवात्सल्य, मंत्रालोचनॆयन्नु रहस्यवागिट्टुकॊळ्ळुवुदु, विनय, इंद्रिय संयम, अप्रतिम रूप-शौर्य मत्तु संयम ई आरु गुणगळु नकुलनल्लिवॆ.

07033007a श्रुतगांभीर्यमाधुर्यसत्त्ववीर्यपराक्रमैः।
07033007c सदृशो देवयोर्वीरः सहदेवः किलाश्विनोः।।

पांडित्य, गांभीर्य, माधुर्य, सत्त्व, वीर-पराक्रमगळल्लि वीर सहदेवनु देव अश्विनियर सदृश.

07033008a ये च कृष्णे गुणाः स्फीताः पांडवेषु च ये गुणाः।
07033008c अभिमन्यौ किलैकस्था दृश्यंते गुणसंचयाः।।

कृष्णनल्लि याव उज्ज्वल गुणगळिवॆयो, पांडवरल्लि याव गुणगळिवॆयो आ गुणसंचयगळॆल्लवू अभिमन्युविनल्लि इद्दुदु कंडुबरुत्तित्तु.

07033009a युधिष्ठिरस्य धैर्येण कृष्णस्य चरितेन च।
07033009c कर्मभिर्भीमसेनस्य सदृशो भीमकर्मणः।।

धैर्यदल्लि युधिष्ठिरन, चारित्र्यल्लि कृष्णन, कर्मगळल्लि भीमकर्मि भीमसेनन सदृशनागिद्दनु.

07033010a धनंजयस्य रूपेण विक्रमेण श्रुतेन च।
07033010c विनयात्सहदेवस्य सदृशो नकुलस्य च।।

रूप-विक्रमगळल्लि धनंजयन, मत्तु पांडित्य-विनयगळल्लि सहदेव-नकुलर सदृशनागिद्दनु.”

07033011 धृतराष्ट्र उवाच।
07033011a अभिमन्युमहं सूत सौभद्रमपराजितं।
07033011c श्रोतुमिच्चामि कार्त्स्न्यॆन कथमायोधने हतः।।

धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “सूत! अपराजित सौभद्र अभिमन्युवु हतनादुदन्नु संपूर्णवागि केळलु बयसुत्तेनॆ. युद्धमाडुत्तिरुवाग अवनु हेगॆ हतनाद?”

07033012 संजय उवाच।
07033012a चक्रव्यूहो महाराज आचार्येणाभिकल्पितः।
07033012c तत्र शक्रोपमाः सर्वे राजानो विनिवेशिताः।।

संजयनु हेळिदनु: “महाराज! आचार्यरु रचिसिद चक्रव्यूहदल्लि इंद्रसमान राजरॆल्लरू प्रतिष्ठितरागिद्दरु.

07033013a संघातो राजपुत्राणां सर्वेषामभवत्तदा।
07033013c कृताभिसमयाः सर्वे सुवर्णविकृतध्वजाः।।

आग अल्लि ऎल्ल प्रतिज्ञॆमाडिद्द, सुवर्णविकृतध्वज राजपुत्रर ऒक्कूटवु सेरित्तु.

07033014a रक्तांबरधराः सर्वे सर्वे रक्तविभूषणाः।
07033014c सर्वे रक्तपताकाश्च सर्वे वै हेममालिनः।।

ऎल्लरू कॆंपु वस्त्रगळन्नु धरिसिद्दरु. ऎल्लरू कॆंपु आभरणगळन्नु धरिसिद्दरु. ऎल्लरिगू कॆंपु ध्वजगळिद्दवु. ऎल्लरू चिन्नद मालॆगळन्नु धरिसिद्दरु.

07033015a तेषां दशसहस्राणि बभूवुर्दृढधन्विनां।
07033015c पौत्रं तव पुरस्कृत्य लक्ष्मणं प्रियदर्शनं।।

निन्न मॊम्मग प्रियदर्शन लक्ष्मणनन्नु मुंदॆ इरिसिकॊंडिद्द आ दृढधन्विगळ संख्यॆ हत्तुसाविरवागित्तु.

07033016a अन्योन्यसमदुःखास्ते अन्योन्यसमसाहसाः।
07033016c अन्योन्यं स्पर्धमानाश्च अन्योन्यस्य हिते रताः।।

ऒब्बनिगागुव दुःखवु ऎल्लरिगू समानवॆंदु भाविसिद्दरु. साहसदल्लि अन्योन्यर समनागिद्दरु. अन्योन्यरॊंदिगॆ स्पर्धिसुत्तिद्दरु. मत्तु अन्योन्यर हितासक्तियुळ्ळवरागिद्दरु.

07033017a कर्णदुःशासनकृपैर्वृतो राजा महारथैः।
07033017c देवराजोपमः श्रीमान् श्वेतच्चत्राभिसंवृतः।
07033017e चामरव्यजनाक्षेपैरुदयन्निव भास्करः।।
07033018a प्रमुखे तस्य सैन्यस्य द्रोणोऽवस्थितनायके।

कर्ण-दुःशासनरिंद मत्तु महारथ राजरिंद परिवृतनागि, देवराजनंतिद्द श्रीमान् श्वेतचत्रदडियल्लि, चामर बीसणिगॆगळन्नु बीसुत्तिरलु, उदयिसुत्तिरुव भास्करनंतॆ आ सैन्यद प्रमुख नायकनागि द्रोणनु व्यवस्थितनागिद्दनु.

07033018c सिंधुराजस्तथातिष्ठच्च्रीमान्मेरुरिवाचलः।।
07033019a सिंधुराजस्य पार्श्वस्था अश्वत्थामपुरोगमाः।

अल्लि मेरु पर्वतदंतॆ श्रीमान् सिंधुराजनु निंतिद्दनु. सिंधुराजन पक्कदल्लि अश्वत्थामने मॊदलादवरु निंतिद्दरु.

07033019c सुतास्तव महाराज त्रिंशत्त्रिदशसन्निभाः।।
07033020a गांधारराजः कितवः शल्यो भूरिश्रवास्तथा।
07033020c पार्श्वतः सिंधुराजस्य व्यराजंत महारथाः।।

महाराज! देव सन्निभराद निन्न मूवत्तु मक्कळू, जूजुगार गांधारराजनू, महारथ शल्य-भूरिश्रवरू सिंधुराजन पक्कदल्लि विराजमानरागिद्दरु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते द्रोण पर्वणि अभिमन्युवध पर्वणि चक्रव्यूहनिर्माणे त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि द्रोण पर्वदल्लि अभिमन्युवध पर्वदल्लि चक्रव्यूहनिर्माण ऎन्नुव मूवत्मूरने अध्यायवु.