095 परस्परव्यूहरचनायामुत्पातदर्शनः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

भीष्म पर्व

भीष्मवध पर्व

अध्याय 95

सार

भीष्मनन्नु शिखंडियिंद रक्षिसबेकॆंदु दुर्योधननु दुःशासननिगॆ आदेशवन्नित्तुदुदु (1-23). परस्पर व्यूहरचनॆ (24-44). उत्पात दर्शन (45-53).

06095001 संजय उवाच।
06095001a प्रभातायां तु शर्वर्यां प्रातरुत्थाय वै नृपः।
06095001c राज्ञः समाज्ञापयत सेनां योजयतेति ह।
06095001e अद्य भीष्मो रणे क्रुद्धो निहनिष्यति सोमकान्।।

संजयनु हेळिदनु: “रात्रियु कळॆदु बॆळगागुत्तले ऎद्दु नृपनु राजरन्नु करॆयिसि आज्ञापिसिदनु: “सेनॆयन्नु सिद्धगॊळिसि. इंदु भीष्मनु रणदल्लि क्रुद्धनागि सोमकरन्नु संहरिसुत्तानॆ.”

06095002a दुर्योधनस्य तच्च्रुत्वा रात्रौ विलपितं बहु।
06095002c मन्यमानः स तं राजन्प्रत्यादेशमिवात्मनः।।
06095003a निर्वेदं परमं गत्वा विनिंद्य परवाच्यतां।
06095003c दीर्घं दध्यौ शांतनवो योद्धुकामोऽर्जुनं रणे।।

रात्रियल्लि दुर्योधननु बहळवागि अळुत्ता हेळिदन्नु केळि, अदु तन्नन्नु युद्धदिंद हिंदॆसरियलु हेळिदुदॆंदु मनगंडु बहळ खिन्ननागि पराधीनतॆयन्नु निंदिसि शांतनवनु रणदल्लि अर्जुननॊडनॆ युद्ध माडलु बयसि दीर्घ योचनॆयल्लि मुळुगिदनु.

06095004a इंगितेन तु तज्ञात्वा गांगेयेन विचिंतितं।
06095004c दुर्योधनो महाराज दुःशासनमचोदयत्।।

महाराज! गांगेयनु चिंतिसुत्तिरुवुदन्नु अवन मुखभावदिंदले अर्थमाडिकॊंड दुर्योधननु दुःशासननन्नु करॆदु आज्ञापिसिदनु:

06095005a दुःशासन रथास्तूर्णं युज्यंतां भीष्मरक्षिणः।
06095005c द्वात्रिंशत्त्वमनीकानि सर्वाण्येवाभिचोदय।।

“दुःशासन! भीष्मनन्नु रक्षिसलु समर्थ रथगळन्नु कूडले सिद्धगॊळिसु. नम्मल्लिरुव इप्पत्तॆरडु अनीकगळन्नू इदक्कागिये मीसलिडु.

06095006a इदं हि समनुप्राप्तं वर्षपूगाभिचिंतितं।
06095006c पांडवानां ससैन्यानां वधो राज्यस्य चागमः।।

बहळ वर्षगळिंद योचिसिकॊंडु बंदिद्द समयवु ईग बंदॊदगिदॆ. सैन्यदॊंदिगॆ पांडवर वधॆ मत्तु राज्यप्राप्ति इवॆरडू आगलिवॆ.

06095007a तत्र कार्यमहं मन्ये भीष्मस्यैवाभिरक्षणं।
06095007c स नो गुप्तः सुखाय स्याद्धन्यात्पार्थांश्च संयुगे।।

अदरल्लि भीष्मन अभिरक्षणॆये माडबेकाद्दु ऎंदु नन्न अभिप्राय. अवनन्नु नावु रक्षिसिदरॆ अवनु नम्म सहायकनागि पार्थरन्नु युद्धदल्लि संहरिसबल्लनु.

06095008a अब्रवीच्च विशुद्धात्मा नाहं हन्यां शिखंडिनं।
06095008c स्त्रीपूर्वको ह्यसौ जातस्तस्माद्वर्ज्यो रणे मया।।

आदरॆ आ विशुद्धात्मनु ननगॆ हेळिद्दनु - “नानु शिखंडियन्नु कॊल्लुवुदिल्ल. मॊदलु अवनु हॆण्णागि हुट्टिद्दनु. आदुदरिंद अवनु रणदल्लि ननगॆ वर्ज्य.

06095009a लोकस्तद्वेद यदहं पितुः प्रियचिकीर्षया।
06095009c राज्यं स्फीतं महाबाहो स्त्रियश्च त्यक्तवान्पुरा।।

नानु तंदॆगॆ इष्टवादुदन्नु माडलु एनु माडिदॆनॆंदु लोकवे तिळिदिदॆ. महाबाहो! हिंदॆये नानु संपद्भरित राज्य मत्तु स्त्रीयन्नु त्यजिसिद्देनॆ.

06095010a नैव चाहं स्त्रियं जातु न स्त्रीपूर्वं कथं चन।
06095010c हन्यां युधि नरश्रेष्ठ सत्यमेतद्ब्रवीमि ते।।

नरशेष्ठ! नानु स्त्रीयन्नु, मॊदलु स्त्रीयागि हुट्टिदवरन्नु ऎंदू युद्धदल्लि कॊल्लुवुदिल्ल. निनगॆ ई सत्यवन्नु हेळुत्तिद्देनॆ.

06095011a अयं स्त्रीपूर्वको राजन्शिखंडी यदि ते श्रुतः।
06095011c उद्योगे कथितं यत्तत्तथा जाता शिखंडिनी।।

राजन्! ई शिखंडियु मॊदलु स्त्रीयागिद्दनु ऎंदु नीनू केळिरबहुदु. युद्धद तयारियल्लिये निनगॆ हेळिदंतॆ इवनु शिखंडिनियागि हुट्टिद्दनु.

06095012a कन्या भूत्वा पुमां जातः स च योत्स्यति भारत।
06095012c तस्याहं प्रमुखे बाणान्न मुंचेयं कथं चन।।

भारत! कन्यॆयागि हुट्टि पुरुषनाद अवनू युद्धमाडुत्तिद्दानॆ. अवन मेलॆ नानु ऎंदू बाणगळन्नु प्रयोगिसुवुदिल्ल.

06095013a युद्धे तु क्षत्रियांस्तात पांडवानां जयैषिणः।
06095013c सर्वानन्यान् हनिष्यामि संप्राप्तान्बाणगोचरान्।।

आदरॆ मगू! युद्धदल्लि पांडवर जयवन्नु बयसि नन्नॊडनॆ युद्धमाडबरुव क्षत्रियरॆल्लरन्नू संहरिसुत्तेनॆ.”

06095014a एवं मां भरतश्रेष्ठो गांगेयः प्राह शास्त्रवित्।
06095014c तत्र सर्वात्मना मन्ये भीष्मस्यैवाभिपालनं।।

हीगॆ ननगॆ शास्त्रविदु भरतश्रेष्ठ गांगेयनु हेळिद्दनु. आदुदरिंद सर्वप्रकारदिंदलू भीष्मनन्नु रक्षिसबेकॆंब अभिप्राय.

06095015a अरक्ष्यमाणं हि वृको हन्यात्सिंहं महावने।
06095015c मा वृकेणेव शार्दूलं घातयेम शिखंडिना।।

महावनदल्लि रक्षणॆयिल्लद सिंहवन्नु तोळवे कॊल्लबहुदु. शिखंडियॆंब तोळवु ई सिंहवन्नु कॊल्लबारदु.

06095016a मातुलः शकुनिः शल्यः कृपो द्रोणो विविंशतिः।
06095016c यत्ता रक्षंतु गांगेयं तस्मिन्गुप्ते ध्रुवो जयः।।

सोदरमाव शकुनि, शल्य, कृप, द्रोण, विविंशति इवरु प्रयत्नपट्टु गांगेयनन्नु रक्षिसलि. इवनन्नु रक्षिसिदरॆ जयवु खंडित.”

06095017a एतच्च्रुत्वा तु राजानो दुर्योधनवचस्तदा।
06095017c सर्वतो रथवंशेन गांगेयं पर्यवारयन्।।

दुर्योधनन मातन्नु केळि राजरु रथसेनॆगळिंद गांगेयनन्नु ऎल्ल कडॆगळिंदलू सुत्तुवरॆदरु.

06095018a पुत्राश्च तव गांगेयं परिवार्य ययुर्मुदा।
06095018c कंपयंतो भुवं द्यां च क्षोभयंतश्च पांडवान्।।

निन्न पुत्ररू कूड गांगेयनन्नु सुत्तुवरॆदु तम्म नडुगॆयिंद भूमियन्नु नडुगिसुत्ता पांडवरन्नु क्षोभिसुत्ता संतोषदिंद मुंदुवरॆदरु.

06095019a तै रथैश्च सुसम्युक्तैर्दंतिभिश्च महारथाः।
06095019c परिवार्य रणे भीष्मं दंशिताः समवस्थिताः।।
06095020a यथा देवासुरे युद्धे त्रिदशा वज्रधारिणं।
06095020c सर्वे ते स्म व्यतिष्ठंत रक्षंतस्तं महारथं।।

उत्तमवागि सुसज्जितवाद रथगळिंद मत्तु आनॆगळिंद कूडि, कवचगळन्नु धरिसि समवस्थितरागि महारथरु रणदल्लि भीष्मनन्नु सुत्तुवरॆदरु. देवासुरर युद्धदल्लि त्रिदशरु वज्रधारिणिय हेगो हागॆ अवरु आ महारथनन्नु रक्षिसुत्ता निंतिद्दरु.

06095021a ततो दुर्योधनो राजा पुनर्भ्रातरमब्रवीत्।
06095021c सव्यं चक्रं युधामन्युरुत्तमौजाश्च दक्षिणं।
06095021e गोप्तारावर्जुनस्यैतावर्जुनोऽपि शिखंडिनः।।

आग राजा दुर्योधननु पुनः सहोदरनिगॆ हेळिदनु: “अर्जुनन रथद बलचक्रवन्नु युधामन्युवू ऎडचक्रवन्नु उत्तमौजसनू कायुत्तिद्दारॆ. अर्जुननु शिखंडियन्नु रक्षिसुत्तिद्दानॆ.

06095022a स रक्ष्यमाणः पार्थेन तथास्माभिर्विवर्जितः।
06095022c यथा भीष्मं न नो हन्याद्दुःशासन तथा कुरु।।

दुःशासन! पार्थन रक्षणॆयल्लिद्द अवनु नम्मिंद तप्पिसिकॊंडु भीष्मनन्नु कॊल्लदंतॆ माडु!”

06095023a भ्रातुस्तद्वचनं श्रुत्वा पुत्रो दुःशासनस्तव।
06095023c भीष्मं प्रमुखतः कृत्वा प्रययौ सेनया सह।।

अण्णन आ मातन्नु केळि निन्न मग दुःशासननु भीष्मनन्नु मुंदाळुवागि माडिकॊंडु सेनॆयॊंदिगॆ हॊरटनु.

06095024a भीष्मं तु रथवंशेन दृष्ट्वा तमभिसंवृतं।
06095024c अर्जुनो रथिनां श्रेष्ठो धृष्टद्युम्नमुवाच ह।।

रथसेनॆगळिंद परिवृतनागिरुव भीष्मनन्नु नोडि रथिगळल्लि श्रेष्ठ अर्जुननु धृष्टद्युम्ननिगॆ हेळिदनु:

06095025a शिखंडिनं नरव्याघ्र भीष्मस्य प्रमुखेऽनघ।
06095025c स्थापयस्वाद्य पांचाल्य तस्य गोप्ताहमप्युत।।

“नरव्याघ्र! अनघ! पांचाल्य! इंदु भीष्मन ऎदुरिगॆ अवनिगॆ रक्षणॆयन्नित्तु शिखंडियन्नु निल्लिसु.”

06095026a ततः शांतनवो भीष्मो निर्ययौ सेनया सह।
06095026c व्यूहं चाव्यूहत महत्सर्वतोभद्रमाहवे।।

आग शांतनव भीष्मनु सेनॆयॊंदिगॆ हॊरटनु. अवनु आहवदल्लि सर्वतोभद्र महा व्यूहवन्नु रचिसिदनु.

06095027a कृपश्च कृतवर्मा च शैब्यश्चैव महारथः।
06095027c शकुनिः सैंधवश्चैव कांबोजश्च सुदक्षिणः।।
06095028a भीष्मेण सहिताः सर्वे पुत्रैश्च तव भारत।
06095028c अग्रतः सर्वसैन्यानां व्यूहस्य प्रमुखे स्थिताः।।

भारत! कृप, कृतवर्म, महारथ शैब्य, शकुनि, सैंधव, कांबोजद सुदक्षिण, मत्तु निन्न पुत्ररॆल्लरू भीष्मनॊंदिगॆ व्यूहद अग्रभागदल्लि सर्व सेनॆगळ प्रमुखरागि निंतरु.

06095029a द्रोणो भूरिश्रवाः शल्यो भगदत्तश्च मारिष।
06095029c दक्षिणं पक्षमाश्रित्य स्थिता व्यूहस्य दंशिताः।।

मारिष! द्रोण, भूरिश्रव, शल्य, भगदत्त इवरु कवचगळन्नु धरिसि व्यूहद ऎडभागदल्लिद्दरु.

06095030a अश्वत्थामा सोमदत्त आवंत्यौ च महारथौ।
06095030c महत्या सेनया युक्ता वामं पक्षमपालयन्।।

अश्वत्थाम, सोमदत्त मत्तु अवंतिय महारथरिब्बरू महासेनॆयिंदॊडगूडि बलभागवन्नु रक्षिसिदरु.

06095031a दुर्योधनो महाराज त्रिगर्तैः सर्वतो वृतः।
06095031c व्यूहमध्ये स्थितो राजन्पांडवान्प्रति भारत।।

महाराज! राजन्! दुर्योधननु त्रिगर्तरिंद ऎल्लकडॆगळिंदलू आवृतनागि पांडवरन्नु ऎदुरिसि व्यूहमध्यदल्लि निंतिद्दनु.

06095032a अलंबुसो रथश्रेष्ठः श्रुतायुश्च महारथः।
06095032c पृष्ठतः सर्वसैन्यानां स्थितौ व्यूहस्य दंशितौ।।

रथश्रेष्ठ अलंबुस मत्तु महारथ श्रुतायु इब्बरू कवचधारिगळागि सर्वसेनॆगळ व्यूहद हिंभागदल्लि निंतिद्दरु.

06095033a एवमेते तदा व्यूहं कृत्वा भारत तावकाः।
06095033c सन्नद्धाः समदृश्यंत प्रतपंत इवाग्नयः।।

भारत! हीगॆ व्यूहवन्नु माडिकॊंडु निन्नवरु सन्नद्धरागि अग्नियंतॆ उरियुत्तिद्दरु.

06095034a तथा युधिष्ठिरो राजा भीमसेनश्च पांडवः।
06095034c नकुलः सहदेवश्च माद्रीपुत्रावुभावपि।।
06095034e अग्रतः सर्वसैन्यानां स्थिता व्यूहस्य दंशिताः।।

आग राजा युधिष्ठिर, पांडव भीमसेन, माद्रीपुत्र नकुल-सहदेवरिब्बरू कवचधारिगळागि सर्वसेनॆगळ व्यूहद अग्रभागदल्लि निंतिद्दरु.

06095035a धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्च महारथः।
06095035c स्थिताः सैन्येन महता परानीकविनाशनाः।।

शत्रुसेनविनाशिगळाद धृष्टद्युम्न, विराट, महारथि सात्यकि इवरु महा सेनॆगळॊंदिगॆ निंतिद्दरु.

06095036a शिखंडी विजयश्चैव राक्षसश्च घटोत्कचः।
06095036c चेकितानो महाबाहुः कुंतिभोजश्च वीर्यवान्।
06095036e स्थिता रणे महाराज महत्या सेनया वृताः।।

महाराज! शिखंडी, विजय, राक्षस घटोत्कच, महाबाहु चेकितान, वीर्यवान् कुंतिभोज इवरु महा सेनॆगळिंद आवृतरागि रणदल्लि निंतिद्दरु.

06095037a अभिमन्युर्महेष्वासो द्रुपदश्च महारथः।
06095037c केकया भ्रातरः पंच स्थिता युद्धाय दंशिताः।।

महेष्वास अभिमन्यु, महारथ द्रुपद, ऐवरु केकय सहोदररु कवचधारिगळागि युद्धक्कॆ निंतिद्दरु.

06095038a एवं तेऽपि महाव्यूहं प्रतिव्यूह्य सुदुर्जयं।
06095038c पांडवाः समरे शूराः स्थिता युद्धाय मारिष।।

मारिष! हीगॆ पांडव शूररू कूड सुदुर्जयवॆंब प्रतिव्यूहवन्नु रचिसिकॊंडु समरदल्लि युद्धक्कागि निंतरु.

06095039a तावकास्तु रणे यत्ताः सहसेना नराधिपाः।
06095039c अभ्युद्ययू रणे पार्थान्भीष्मं कृत्वाग्रतो नृप।।

नृप! रणदल्लि निन्नवर नराधिपरु भीष्मनन्नु अग्रनन्नागि माडिकॊंडु पार्थरन्नु ऎदुरिसि युद्धमाडिदरु.

06095040a तथैव पांडवा राजन्भीमसेनपुरोगमाः।
06095040c भीष्मं युद्धपरिप्रेप्सुं संग्रामे विजिगीषवः।।

राजन्! हागॆये पांडवरु भीमसेननन्नु मुंदिरिसिकॊंडु संग्रामदल्लि जयवन्नु बयसि भीष्मनन्नु ऎदुरिसि युद्धमाडिदरु.

06095041a क्ष्वेडाः किलिकिलाशब्दान्क्रकचान्गोविषाणिकाः।
06095041c भेरीमृदंगपणवान्नादयंतश्च पुष्करान्।
06095041e पांडवा अभ्यधावंत नदंतो भैरवान्रवान्।।

गर्जनॆ मत्तु किलकिल शब्धगळिंद, क्रकच-गोविषाणिकगळन्नु ऊदुत्ता, भेरि-मृदंग-पणवगळन्नु बारिसुत्ता, शंखगळन्नु ऊदुत्ता, भैरव कूगुगळन्नु कूगुत्ता पांडवरु धाविसि बंदरु.

06095042a भेरीमृदंगशंखानां दुंदुभीनां च निस्वनैः।
06095042c उत्क्रुष्टसिंहनादैश्च वल्गितैश्च पृथग्विधैः।।
06095043a वयं प्रतिनदंतस्तानभ्यगच्छाम सत्वराः।
06095043c सहसैवाभिसंक्रुद्धास्तदासीत्तुमुलं महत्।।

भेरी-मृदंग-शंखगळ मत्तु दुंदुभिगळ निस्वनगळिंद, जोराद सिंहनादगळिंद, विविध कूगुगळिंद नावुकूड अवरिगॆ प्रतिस्पंदिसि कूगुत्ता अवर मेलॆ ऒम्मिंदॊम्मॆले क्रुद्धरागि ऎरगिदॆवु. आग महा तुमुलवुंटायितु.

06095044a ततोऽन्योन्यं प्रधावंतः संप्रहारं प्रचक्रिरे।
06095044c ततः शब्देन महता प्रचकंपे वसुंधरा।।

आग ओडिहोगि अन्योन्यरन्नु कॊल्लुवुदन्नु माडतॊडगिदरु. आग महा शब्धदिंद वसुंधरॆयु नडुगिदळु.

06095045a पक्षिणश्च महाघोरं व्याहरंतो विबभ्रमुः।
06095045c सप्रभश्चोदितः सूर्यो निष्प्रभः समपद्यत।।

महाघोर पक्षिगळु आकाशदल्लि हारडतॊडगिदवु. उत्तम प्रभॆयिंद उदिसिद सूर्यनु तन्न प्रभॆयन्नु कळॆदुकॊळ्ळतॊडगिदनु.

06095046a ववुश्च तुमुला वाताः शंसंतः सुमहद्भयं।
06095046c घोराश्च घोरनिर्ह्रादाः शिवास्तत्र ववाशिरे।
06095046e वेदयंत्यो महाराज महद्वैशसमागतं।।

महाराज! महा भयवन्नु सूचिसुत्ता भिरुगाळियु बीसतॊडगितु. बरलिरुव महा कष्टवन्नु तिळिसुत्ता अल्लि तोळगळु घोरवागि अमंगळवागि कूगिकॊंडवु.

06095047a दिशः प्रज्वलिता राजन्पांसुवर्षं पपात च।
06095047c रुधिरेण समुन्मिश्रमस्थिवर्षं तथैव च।।

राजन्! दिक्कुगळन्नु प्रज्वलिसुत्ता रक्त मत्तु मूळॆगळ सम्मिश्र मांसद मळॆयु बिद्दितु.

06095048a रुदतां वाहनानां च नेत्रेभ्यः प्रापतज्जलं।
06095048c सुस्रुवुश्च शकृन्मूत्रं प्रध्यायंतो विशां पते।।

विशांपते! अळुत्तिद्द वाहन-प्राणिगळ कण्णुगळल्लि कण्णीरु हरियितु. बॆदरि मल-मूत्रगळन्नु विसर्जिसिदवु.

06095049a अंतर्हिता महानादाः श्रूयंते भरतर्षभ।
06095049c रक्षसां पुरुषादानां नदतां भैरवान्रवान्।।

भरतर्षभ! अडगिद्द नरभक्ष राक्षसरु कूगुत्तिद्द भैरव रव महानादवु केळिबंदितु.

06095050a संपतंतः स्म दृश्यंते गोमायुबकवायसाः।
06095050c श्वानश्च विविधैर्नादैर्भषंतस्तत्र तस्थिरे।।

नरिगळु, हद्दुगळु, कागॆगळु मत्तु नायिगळु अल्लि बहुविधदल्लि कूगुत्ता बीळुत्तिद्दवु.

06095051a ज्वलिताश्च महोल्का वै समाहत्य दिवाकरं।
06095051c निपेतुः सहसा भूमौ वेदयाना महद्भयं।।

उरियुत्तिरुव महा उल्कॆगळु दिवाकरन मंडलक्कॆ तागि तक्षणवे भूमिय मेलॆ बिद्दु महा भयवन्नु सूचिसिदवु.

06095052a महांत्यनीकानि महासमुच्छ्रये समागमे पांडवधार्तराष्ट्रयोः।
06095052c प्रकाशिरे शंखमृदंगनिस्वनैः प्रकंपितानीव वनानि वायुना।।

आग अल्लि सेरिद्द पांडव-धार्तराष्ट्रर महा सेनॆगळु शंख-मृदंग निस्वनगळिंद भिरुगाळियिंद वनगळु अल्लाडुवंतॆ कंपिसिदवु.

06095053a नरेंद्रनागाश्वसमाकुलानां अभ्यायतीनामशिवे मुहूर्ते।
06095053c बभूव घोषस्तुमुलश्चमूनां वातोद्धुतानामिव सागराणां।।

नरेंद्ररिंदलू, गज-अश्व समाकुलगळिंद कूडिद, अशुभ मुहूर्तदल्लि हॊरटिद्द सैन्यगळ भयंकर शब्धवु भिरुगाळियिंद अल्लोल-कल्लोलवाद समुद्रगळ भोर्गरॆगॆ समानवागित्तु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि परस्परव्यूहरचनायामुत्पातदर्शने पंचनवतितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि परस्परव्यूहरचनॆ मत्तु उत्पातदर्शन ऎन्नुव तॊंभत्तैदने अध्यायवु.