089 संकुलयुद्धः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

भीष्म पर्व

भीष्मवध पर्व

अध्याय 89

सार

घटोत्कचन सहायक्कॆ भीमसेन मॊदलादवरु बंदुदु (1-17). संकुलयुद्ध (18-41).

06089001 संजय उवाच।
06089001a विमुखीकृत्य तान्सर्वांस्तावकान्युधि राक्षसः।
06089001c जिघांसुर्भरतश्रेष्ठ दुर्योधनमुपाद्रवत्।।

संजयनु हेळिदनु: “भरतश्रेष्ठ! युद्धदल्लि अवरॆल्लरन्नू विमुखरन्नागि माडि राक्षसनु कॊल्ललु बयसि दुर्योधननन्नु आक्रमणिसिदनु.

06089002a तमापतंतं संप्रेक्ष्य राजानं प्रति वेगितं।
06089002c अभ्यधावज्जिघांसंतस्तावका युद्धदुर्मदाः।।

राजन मेलॆ वेगदिंद बीळुत्तिद्द अवनन्नु नोडि युद्धदुर्मदराद निन्नवरु अवनन्नु संहरिसुव सलुवागि धाविसि बंदरु.

06089003a तालमात्राणि चापानि विकर्षंतो महाबलाः।
06089003c तमेकमभ्यधावंत नदंतः सिंहसंघवत्।।

तालप्रमाणद (सुमारु नाल्कु मॊळ उद्दद) बिल्लुगळन्नु ऎळॆयुत्ता मत्तु सिंहगळ हिंडिनंतॆ गर्जिसुत्ता आ महाबलरु अवनॊब्बनन्ने आक्रमणिसिदरु.

06089004a अथैनं शरवर्षेण समंतात्पर्यवारयन्।
06089004c पर्वतं वारिधाराभिः शरदीव बलाहकाः।।

आग अवनन्नु ऎल्ल कडॆगळिंद सुत्तुवरॆदु मोडगळु पर्वतवन्नु मळॆय नीरिनिंद मुच्चिबिडुवंतॆ बाणगळ मळॆयिंद मुच्चिदरु.

06089005a स गाढविद्धो व्यथितस्तोत्त्रार्दित इव द्विपः।
06089005c उत्पपात तदाकाशं समंताद्वैनतेयवत्।।

गाढवागि गायगॊंडु अंकुशगळिंद तिवियल्पट्ट आनॆयंतॆ व्यथितनागि अवनु ऎल्लकडॆ हारबल्ल वैनतेयनंतॆ आकाशक्कॆ हारिदनु.

06089006a व्यनदत्सुमहानादं जीमूत इव शारदः।
06089006c दिशः खं प्रदिशश्चैव नादयन्भैरवस्वनः।।

कर्कशध्वनियिद्द अवनु शरदृतुविन मेघदंतॆ दिक्कुगळन्नू, आकाशवन्नू, उपदिक्कुगळन्नू मॊळगिसुवंतॆ जोरागि गर्जिसिदनु.

06089007a राक्षसस्य तु तं शब्दं श्रुत्वा राजा युधिष्ठिरः।
06089007c उवाच भरतश्रेष्ठो भीमसेनमिदं वचः।।

राक्षसन आ शब्धवन्नु केळि भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिरनु भीमसेननिगॆ हेळिदनु:

06089008a युध्यते राक्षसो नूनं धार्तराष्ट्रैर्महारथैः।
06089008c यथास्य श्रूयते शब्दो नदतो भैरवं स्वनं।
06089008e अतिभारं च पश्यामि तत्र तात समाहितं।।

“अय्या! भैरव स्वरदल्लि कूगुत्तिरुवुदन्नु केळिदरॆ राक्षसनु महारथ धार्तराष्ट्ररॊंदिगॆ युद्ध माडुत्तिरुवनॆंदु तोरुत्तिदॆ. अल्लि अवनु अति भारवाद कॆलसवन्ने माडुत्तिद्दानॆ.

06089009a पितामहश्च संक्रुद्धः पांचालान् हंतुमुद्यतः।
06089009c तेषां च रक्षणार्थाय युध्यते फल्गुनः परैः।।

पितामहनू कूड संक्रुद्धनागि पांचालरन्नु कॊल्ललु तॊडगिद्दानॆ. अवरन्नु रक्षिसलोसुग फल्गुननु शत्रुगळॊंदिगॆ युद्धमाडुत्तिद्दानॆ.

06089010a एतच्च्रुत्वा महाबाहो कार्यद्वयमुपस्थितं।
06089010c गच्छ रक्षस्व हैडिंबं संशयं परमं गतं।।

महाबाहो! इदन्नु केळिदरॆ ऎरडु कार्यगळु बंदॊदगिवॆ. होगु! परम संशयदल्लिरुव हैडिंबियन्नु रक्षिसु!”

06089011a भ्रातुर्वचनमाज्ञाय त्वरमाणो वृकोदरः।
06089011c प्रययौ सिंहनादेन त्रासयन्सर्वपार्थिवान्।
06089011e वेगेन महता राजन्पर्वकाले यथोदधिः।।

राजन्! अण्णन मातन्नु तिळिदुकॊंडु वृकोदरनु त्वरॆमाडि सिंहनाददिंद सर्व पार्थिवरन्नु नडुगिसुत्ता, पर्वकालदल्लि सागरवु हेगो हागॆ महा वेगदिंद आगमिसिदनु.

06089012a तमन्वयात्सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः।
06089012c श्रेणिमान्वसुदानश्च पुत्रः काश्यस्य चाभिभूः।।
06089013a अभिमन्युमुखाश्चैव द्रौपदेया महारथाः।
06089013c क्षत्रदेवश्च विक्रांतः क्षत्रधर्मा तथैव च।।
06089014a अनूपाधिपतिश्चैव नीलः स्वबलमास्थितः।
06089014c महता रथवंशेन हैडिंबं पर्यवारयन्।।

अवनन्ने हिंबालिसि सत्यधृति, युद्धदुर्मद सौचित्ति, श्रेणिमान्, वसुदान, काशिराजन मग अभिभू, अभिमन्युविन नायकत्वदल्लि महारथ द्रौपदेयरु, पराक्रमि क्षत्रदेव, क्षत्रधर्म, हागॆये अनूपाधिप स्वबलाश्रयि नील इवरु महा रथगुंपुगळिंद बंदु हैडिंबनन्नु सुत्तुवरॆदरु.

06089015a कुंजरैश्च सदा मत्तैः षट्सहस्रैः प्रहारिभिः।
06089015c अभ्यरक्षंत सहिता राक्षसेंद्रं घटोत्कचं।।

आरु साविर सदा मत्तिनल्लिरुव आनॆगळु मत्तु प्रहारिगळु ऒट्टिगे राक्षसेंद्र घटोत्कचनन्नु रक्षिसुत्तिद्दवु.

06089016a सिंहनादेन महता नेमिघोषेण चैव हि।
06089016c खुरशब्दनिनादैश्च कंपयंतो वसुंधरां।।

महासिंहनाददिंद, रथद गालिगळ घोषदिंद, कुदुरॆगळ खुरपुटगळ शब्धगळिंद अवरु भूमियन्ने नडुगिसिदरु.

06089017a तेषामापततां श्रुत्वा शब्दं तं तावकं बलं।
06089017c भीमसेनभयोद्विग्नं विवर्णवदनं तथा।
06089017e परिवृत्तं महाराज परित्यज्य घटोत्कचं।।

महाराज! अवरु हीगॆ मेलॆ ऎरगि बरुव शब्धवन्नु केळि निन्न सेनॆयु भीमसेनन भयदिंद उद्विग्नवागि मुखद कळॆयन्नु कळॆदुकॊंडु घटोत्कचनन्नु मुत्तिगॆ हाकुवुदन्नु निल्लिसितु.

06089018a ततः प्रववृते युद्धं तत्र तत्र महात्मनां।
06089018c तावकानां परेषां च संग्रामेष्वनिवर्तिनां।।

आग अल्लल्लि संग्रामदिंद हिंदॆसरियदे इद्द महात्मराद निन्नवर शत्रुगळवर नडुवॆ युद्धवु प्रारंभवायितु.

06089019a नानारूपाणि शस्त्राणि विसृजंतो महारथाः।
06089019c अन्योन्यमभिधावंतः संप्रहारं प्रचक्रिरे।
06089019e व्यतिषक्तं महारौद्रं युद्धं भीरुभयावहं।।

नाना रूपद शस्त्रगळन्नु प्रयोगिसुत्ता आ महारथरु अन्योन्यर मेलॆ ऎरगि प्रहारमाड तॊडगिदरु. भीरुगळिगॆ भयवन्नुंटुमाडुव महारौद्र संकुल युद्धवु अल्लि नडॆयितु.

06089020a हया गजैः समाजग्मुः पादाता रथिभिः सह।
06089020c अन्योन्यं समरे राजन्प्रार्थयाना महद्यशः।।

राजन्! महायशसन्नु बयसिद कुदुरॆगळु आनॆगळन्नु मत्तु पदातिगळु रथिगळन्नु ऎदुरिसि समरदल्लि अन्योन्यरन्नु आक्रमणिसिदरु.

06089021a सहसा चाभवत्तीव्रं सम्निपातान्महद्रजः।
06089021c रथाश्वगजपत्तीनां पदनेमिसमुद्धतं।।

गजाश्वरथपदातिगळ पदसंघट्टनॆयिंद मत्तु रथचक्रगळिंद महा धूळु तीव्रवागि हुट्टितु.

06089022a धूम्रारुणं रजस्तीव्रं रणभूमिं समावृणोत्।
06089022c नैव स्वे न परे राजन्समजानन्परस्परं।।

राजन्! हुट्टिद धूळु स्वल्प हॊत्तिनल्लिये रणांगणवन्नु आवरिसितु. अल्लि निन्न कडॆयवरागली शत्रुगळ कडॆयवरागली यारु यारॆंबुदन्नु तिळियलू साध्यवागुत्तिरलिल्ल.

06089023a पिता पुत्रं न जानीते पुत्रो वा पितरं तथा।
06089023c निर्मर्यादे तथा भूते वैशसे लोमहर्षणे।।

मर्यादॆये इल्लद, रोमांचकारियाद, जीविगळ संहारकारियाद आ युद्धदल्लि तंदॆयु मगनन्नागली मगनु तंदॆयन्नागली गुरुतिसलागुत्तिरलिल्ल.

06089024a शस्त्राणां भरतश्रेष्ठ मनुष्याणां च गर्जतां।
06089024c सुमहानभवच्चब्दो वंशानां इव दह्यतां।।

भरतश्रेष्ठ! शस्त्रगळ मत्तु मनुष्यर गर्जनॆयिंद बिदुरुमॆळॆगळु सुडुत्तिरुवंतॆ महा शब्धवु उंटायितु.

06089025a गजवाजिमनुष्याणां शोणितांत्रतरंगिणी।
06089025c प्रावर्तत नदी तत्र केशशैवलशाद्वला।।

आनॆ-कुदुरॆ-मनुष्यर रक्तवे नीरागि, करुळुगळे प्रवाहवागिद्द, तलॆगूदलुगळे पाचि हुल्लुगळागिद्द नदियु अल्लि हरियितु.

06089026a नराणां चैव कायेभ्यः शिरसां पततां रणे।
06089026c शुश्रुवे सुमहां शब्दः पततामश्मनामिव।।

रणदल्लि मनुष्यर देहदिंद बीळुत्तिरुव तलॆगळिंद कल्लुगळु बीळुवंतॆ महा शब्धवु केळिबरुत्तित्तु.

06089027a विशिरस्कैर्मनुष्यैश्च चिन्नगात्रैश्च वारणैः।
06089027c अश्वैः संभिन्नदेहैश्च संकीर्णाभूद्वसुंधरा।।

शिरगळिल्लद मनुष्यरिंदलू, छिन्न-भिन्नवाद आनॆगळ देहगळिंदलू, कत्तरिसल्पट्ट कुदुरॆगळ देहगळिंदलू वसुंधरॆयु तुंबिहोयितु.

06089028a नानाविधानि शस्त्राणि विसृजंतो महारथाः।
06089028c अन्योन्यमभिधावंतः संप्रहारं प्रचक्रिरे।।

नानाविधद शस्त्रगळन्नु प्रयोगिसुत्ता महारथरु अन्योन्यरन्नु आक्रमणिसि हॊडॆय तॊडगिदरु.

06089029a हया हयान्समासाद्य प्रेषिता हयसादिभिः।
06089029c समाहत्य रणेऽन्योन्यं निपेतर्गतजीविताः।।

अश्वारोहिगळिंद कळुहिसल्पट्ट कुदुरॆगळु अन्योन्य कुदुरॆगळॊडनॆ होराडि रणदल्लि जीववन्नु तॊरॆदु बीळुत्तिद्दवु.

06089030a नरा नरान्समासाद्य क्रोधरक्तेक्षणा भृशं।
06089030c उरांस्युरोभिरन्योन्यं समाश्लिष्य निजघ्निरे।।

तुंबा क्रोधदिंद कण्णुगळन्नु कॆंपु माडिकॊंडु मनुष्यरु अन्योन्य मनुष्यरन्नु बिगिदप्पि हिग्गामुग्गागि सॆळॆदाडि बीळिसि संहरिसुत्तिद्दरु.

06089031a प्रेषिताश्च महामात्रैर्वारणाः परवारणाः।
06089031c अभिघ्नंति विषाणाग्रैर्वारणानेव संयुम्युगे।।

कळुहिसल्पट्ट महागात्रद आनॆगळु शत्रुगळ आनॆगळन्नु सॊंडिलुगळिंद हिडिदॆळॆदु संयुगदल्लि दंतगळिंद तिविदु गायगॊळिसुत्तिद्दवु.

06089032a ते जातरुधिरापीडाः पताकाभिरलंकृताः।
06089032c संसक्ताः प्रत्यदृश्यंत मेघा इव सविद्युतः।।

पताकॆगळिंद अलंकृतवागिद्द अवुगळु रक्तमयवागि विद्युत्तिनिंद कूडिद मेघगळंतॆ तोरुत्तिद्दवु.

06089033a के चिद्भिन्ना विषाणाग्रैर्भिन्नकुंभाश्च तोमरैः।
06089033c विनदंतोऽभ्यधावंत गर्जंतो जलदा इव।।

कॆलवुगळ अग्रभागगळु ऒडॆदिद्दवु. कॆलवुगळ कुंभगळु तोमरगळिंद ऒडॆदुहोगिद्दवु. अवु मोडगळंतॆ गर्जिसुत्ता ओडि होगुत्तिद्दवु.

06089034a के चिद्धस्तैर्द्विधा चिन्नैश्चिन्नगात्रास्तथापरे।
06089034c निपेतुस्तुमुले तस्मिंश्चिन्नपक्षा इवाद्रयः।।

कॆलवुगळ सॊंडिलुगळु तुंडागिद्दवु. इन्नु कॆलवुगळ शरीरवे तुंडागित्तु. रॆक्कॆगळु कत्तरिसल्पट्ट पर्वतगळंतॆ अवु रणांगणदल्लि बिद्दिद्दवु.

06089035a पार्श्वैस्तु दारितैरन्ये वारणैर्वरवारणाः।
06089035c मुमुचुः शोणितं भूरि धातूनिव महीधराः।।

इतर श्रेष्ठ आनॆगळ पक्कॆगळन्नु इतर आनॆगळु इरिदु अवु खनिजवन्नु सुरिसुव पर्वतगळंतॆ रक्तवन्नु सुरिसुत्तिद्दवु.

06089036a नाराचाभिहतास्त्वन्ये तथा विद्धाश्च तोमरैः।
06089036c हतारोहा व्यदृश्यंत विशृंगा इव पर्वताः।।

कॆलवु नाराचगळिंद हतवागिद्दवु. कॆलवु तोमरगळिंद हॊडॆयल्पट्टिद्दवु. आरोहिगळु हतरागि अवु शृंगगळिल्लद पर्वतगळंतॆ तोरुत्तिद्दवु.

06089037a के चित्क्रोधसमाविष्टा मदांधा निरवग्रहाः।
06089037c रथान्हयान्पदातांश्च ममृदुः शतशो रणे।।

कॆलवु मदांधरागि क्रोधसमाविष्टगॊंडु, नियंत्रणविल्लदे रणदल्लि नूरारु रथ-कुदुरॆ-पदातिगळन्नु तुळिदु नाशपडिसिदवु.

06089038a तथा हया हयारोहैस्ताडिताः प्रासतोमरैः।
06089038c तेन तेनाभ्यवर्तंत कुर्वंतो व्याकुला दिशः।।

हागॆये प्रासतोमरगळिंद हयारोहिगळिंद हॊडॆयल्पट्ट कुदुरॆगळु दिक्कुगॆट्टु ओडुत्ता व्याकुलवन्नुंटुमाडुत्ता ओडि होगुत्तिद्दवु.

06089039a रथिनो रथिभिः सार्धं कुलपुत्रास्तनुत्यजः।
06089039c परां शक्तिं समास्थाय चक्रुः कर्माण्यभीतवत्।।

कुलपुत्रराद रथिगळु देहवन्नु त्यजिसि भीतियिल्लदॆ इतर रथिगळॊंदिगॆ परम शक्तियन्नु उपयोगिसि होराडिदरु.

06089040a स्वयंवर इवामर्दे प्रजह्रुरितरेतरं।
06089040c प्रार्थयाना यशो राजन्स्वर्गं वा युद्धशालिनः।।

राजन्! यशस्सु अथवा स्वर्गवन्नु बयसिद आ युद्धशालिगळु स्वयंवरदंतॆ परस्पररन्नु आरिसिकॊंडु प्रहरिसुत्तिद्दरु.

06089041a तस्मिंस्तथा वर्तमाने संग्रामे लोमहर्षणे।
06089041c धार्तराष्ट्रं महत्सैन्यं प्रायशो विमुखीकृतं।।

हागॆ नडॆयुत्तिद्द रोमांचकारी संग्रामदल्लि धार्तराष्ट्रन महा सैन्यद हॆच्चु भागवु युद्धदिंद हिंदॆ सरियितु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि संकुलयुद्धे एकोननवतितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि संकुलयुद्ध ऎन्नुव ऎंभत्तॊंभत्तने अध्यायवु.