088 हैडिंबयुद्धः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

भीष्म पर्व

भीष्मवध पर्व

अध्याय 88

सार

घटोत्कचन युद्धपराक्रम (1-38).

06088001 संजय उवाच।
06088001a ततस्तद्बाणवर्षं तु दुःसहं दानवैरपि।
06088001c दधार युधि राजेंद्रो यथा वर्षं महाद्विपः।।

संजयनु हेळिदनु: “राजेंद्रनु दानवरिगू सहिसलसाध्यवाद अवन आ बाणगळ मळॆयन्नु आनॆयु हेगॆ मळॆयन्नु सहिसिकॊळ्ळुत्तदॆयो हागॆ सहिसिकॊंडनु.

06088002a ततः क्रोधसमाविष्टो निःश्वसन्निव पन्नगः।
06088002c संशयं परमं प्राप्तः पुत्रस्ते भरतर्षभ।।

भरतर्षभ! आग क्रोधसमाविष्टनागि, हाविनंतॆ निट्टुसिरुबिडुत्ता निन्न मगनु परम संशयवन्नु ताळिदनु.

06088003a मुमोच निशितांस्तीक्ष्णान्नाराचान्पंचविंशतिं।
06088003c तेऽपतन्सहसा राजंस्तस्मिन्राक्षसपुंगवे।
06088003e आशीविषा इव क्रुद्धाः पर्वते गंधमादने।।

राजन्! अवनु इप्पत्तैदु निशित तीक्ष्ण नाराचगळन्नु प्रयोगिसिदनु. तक्षणवे अवु कोपगॊंड सर्पगळु गंधमादन पर्वतवन्नु हेगो हागॆ आ राक्षस पुंगवन मेलॆ बिद्दवु.

06088004a स तैर्विद्धः स्रवन्रक्तं प्रभिन्न इव कुंजरः।
06088004c दध्रे मतिं विनाशाय राज्ञः स पिशिताशनः।
06088004e जग्राह च महाशक्तिं गिरीणामपि दारणीं।।

अवुगळिंद गायगॊंडु कुंभस्थळवु ऒडॆदु आनॆयंतॆ रक्तवन्नु सुरिसुत्ता अवनु राजन विनाशवन्नु निश्चयिसिदनु. आग पर्वतवन्नू सीळबल्ल, रक्तवन्नु कुडियुव महा शक्तियन्नु हिडिदुकॊंडनु.

06088005a संप्रदीप्तां महोल्काभामशनीं मघवानिव।
06088005c समुद्यच्छन्महाबाहुर्जिघांसुस्तनयं तव।।

महा‌उल्कॆयंतॆ उरियुत्तिद्द, मघवतन वज्रदंतिद्द अदन्नु महाबाहुवु निन्न मगनन्नु कॊल्ललोसुग प्रयोगिसिदनु.

06088006a तामुद्यतामभिप्रेक्ष्य वंगानामधिपस्त्वरन्।
06088006c कुंजरं गिरिसंकाशं राक्षसं प्रत्यचोदयत्।।

अदु बीळुत्तिरुवुदन्नु नोडि वंगद अधिपतियु त्वरॆमाडि पर्वतदंतिरुव आनॆयॊंदन्नु राक्षसन कडॆ ओडिसिदनु.

06088007a स नागप्रवरेणाजौ बलिना शीघ्रगामिना।
06088007c यतो दुर्योधनरथस्तं मार्गं प्रत्यपद्यत।
06088007e रथं च वारयामास कुंजरेण सुतस्य ते।।

अवनु वेगवागि होगबल्ल श्रेष्ठ बलशालि आनॆय मेलॆ कुळितु दुर्योधनन रथद मार्गक्कॆ अड्डबंदु आ आनॆयिंद निन्न मगन रथवन्नु तडॆदनु.

06088008a मार्गमावारितं दृष्ट्वा राज्ञा वंगेन धीमता।
06088008c घटोत्कचो महाराज क्रोधसंरक्तलोचनः।
06088008e उद्यतां तां महाशक्तिं तस्मिंश्चिक्षेप वारणे।।

महाराज! धीमत वंगराजनु मार्गवन्नु तडॆदुदन्नु नोडि क्रोधदिंद कण्णुगळन्नु कॆंपागिसिकॊंडु घटोत्कचनु ऎत्ति हिडिदिद्द आ महाशक्तियन्नु आ आनॆय मेलॆ ऎसॆदनु.

06088009a स तयाभिहतो राजंस्तेन बाहुविमुक्तया।
06088009c संजातरुधिरोत्पीडः पपात च ममार च।।

राजन्! अवन बाहुगळिंद हॊरट अदरिंद हतवाद आनॆयु रक्तवन्नु सुरिसि नोविनिंद बिद्दु सत्तुहोयितु.

06088010a पतत्यथ गजे चापि वंगानामीश्वरो बली।
06088010c जवेन समभिद्रुत्य जगाम धरणीतलं।।

आनॆयु कॆळगॆ बीळुत्तिद्दरू बलशाली वंगराजनु वेगदिंद भूमिय मेलॆ हारि इळिदनु.

06088011a दुर्योधनोऽपि संप्रेक्ष्य पातितं वरवारणं।
06088011c प्रभग्नं च बलं दृष्ट्वा जगाम परमां व्यथां।।

दुर्योधननू कूड श्रेष्ठ आनॆयु बिद्दुदन्नु नोडि मत्तु तन्न सेनॆयु भग्नवादुदन्नु नोडि परम व्यथितनादनु.

06088012a क्षत्रधर्मं पुरस्कृत्य आत्मनश्चाभिमानितां।
06088012c प्राप्तेऽपक्रमणे राजा तस्थौ गिरिरिवाचलः।।

क्षत्रधर्मवन्नु गौरविसि, आत्माभिमानदिंद पलायनक्कॆ संदर्भवागिद्दरू राजनु पर्वतदंतॆ अचलवागिद्दनु.

06088013a संधाय च शितं बाणं कालाग्निसमतेजसं।
06088013c मुमोच परमक्रुद्धस्तस्मिन्घोरे निशाचरे।।

परम क्रुद्धनागि कालाग्नितेजस्सिनिंद कूडिद्द हरित बाणवन्नु हूडि अदन्नु घोर निशाचरन मेलॆ प्रयोगिसिदनु.

06088014a तमापतंतं संप्रेक्ष्य बाणमिंद्राशनिप्रभं।
06088014c लाघवाद्वंचयामास महाकायो घटोत्कचः।।

इंद्रन वज्रद प्रभॆयुळ्ळ आ बाणवु बीळुत्तिरुवुदन्नु नोडि महाकाय घटोत्कचनु लाघवदिंद अदन्नु तप्पिसिकॊंडनु.

06088015a भूय एव ननादोग्रः क्रोधसंरक्तलोचनः।
06088015c त्रासयन्सर्वभूतानि युगांते जलदो यथा।।

इन्नॊम्मॆ अवनु क्रोधसंरक्तलोचननागि युगांतदल्लि मोडगळु हेगो हागॆ सर्वभूतगळन्नू नडुगिसुत्ता जोरागि गर्जिसिदनु.

06088016a तं श्रुत्वा निनदं घोरं तस्य भीष्मस्य रक्षसः।
06088016c आचार्यमुपसंगम्य भीष्मः शांतनवोऽब्रवीत्।।

राक्षसन आ भयंकर घोर कूगन्नु केळि भीष्म शांतनवनु आचार्यन बळिबंदु हेळिदनु:

06088017a यथैष निनदो घोरः श्रूयते राक्षसेरितः।
06088017c हैडिंबो युध्यते नूनं राज्ञा दुर्योधनेन ह।।

“राक्षसन ई घोर गर्जनॆयु केळिबरुत्तिदॆयल्लवे? हैडिंबियु राजा दुर्योधननॊडनॆ नेर युद्धवन्नु माडुत्तिरुवंतिदॆ.

06088018a नैष शक्यो हि संग्रामे जेतुं भूतेन केन चित्।
06088018c तत्र गच्छत भद्रं वो राजानं परिरक्षत।।

इवनन्नु संग्रामदल्लि याव जीवियू गॆल्ललु शक्यविल्ल. नीवु अल्लिगॆ होगि राजनन्नु रक्षिसिरि!

06088019a अभिद्रुतं महाभागं राक्षसेन दुरात्मना।
06088019c एतद्धि परमं कृत्यं सर्वेषां नः परंतपाः।।

दुरात्म राक्षसनु महाभागनन्नु आक्रमणिसिद्दानॆ. परंतपरे! अवनन्नु रक्षिसुवुदु नम्मॆल्लर कर्तव्यवागिदॆ!”

06088020a पितामहवचः श्रुत्वा त्वरमाणा महारथाः।
06088020c उत्तमं जवमास्थाय प्रययुर्यत्र कौरवः।।

पितामहन मातन्नु केळि महारथरु त्वरॆमाडि उत्तम वेगदिंद कौरवनिद्दल्लिगॆ हॊरटरु.

06088021a द्रोणश्च सोमदत्तश्च बाह्लिकश्च जयद्रथः।
06088021c कृपो भूरिश्रवाः शल्यश्चित्रसेनो विविंशतिः।।
06088022a अश्वत्थामा विकर्णश्च आवंत्यश्च बृहद्बलः।
06088022c रथाश्चानेकसाहस्रा ये तेषामनुयायिनः।
06088022e अभिद्रुतं परीप्संतः पुत्रं दुर्योधनं तव।।

द्रोण, सोमदत्त, बाह्लिक, जयद्रथ, कृप, भूरिश्रव, शल्य, चित्रसेन, विविंशति, अश्वत्थाम, विकर्ण, अवंतियवरु, बृहद्बल, मत्तु अवरन्नु हिंबालिसि अनेक सहस्र रथगळु निन्न मग दुर्योधननन्नु रक्षिसलु धाविसि बंदरु.

06088023a तदनीकमनाधृष्यं पालितं लोकसत्तमैः।
06088023c आततायिनमायांतं प्रेक्ष्य राक्षससत्तमः।
06088023e नाकंपत महाबाहुर्मैनाक इव पर्वतः।।

लोक सत्तमरिंद पालितवाद आ अनाधृष्ठ सेनॆयॊंदिगॆ बरुत्तिद्द आ आततायियन्नु नोडि राक्षस सत्तम महाबाहुवु मैनाक पर्वतदंतॆ अलुगाडलिल्ल.

06088024a प्रगृह्य विपुलं चापं ज्ञातिभिः परिवारितः।
06088024c शूलमुद्गरहस्तैश्च नानाप्रहरणैरपि।।

शूल-मुद्गरगळन्नू नाना प्रहरणगळन्नू हिडिद ज्ञातिगळिंद सुत्तुवरॆयल्पट्टिद्द अवनु विपुल धनुस्सन्नु ऎत्तिकॊंडनु.

06088025a ततः समभवद्युद्धं तुमुलं लोमहर्षणं।
06088025c राक्षसानां च मुख्यस्य दुर्योधनबलस्य च।।

आग राक्षस मुख्य मत्तु दुर्योधनन सेनॆय नडुवॆ रोमांचकारियाद तुमुल युद्धवु नडॆयितु.

06088026a धनुषां कूजतां शब्दः सर्वतस्तुमुलोऽभवत्।
06088026c अश्रूयत महाराज वंशानां दह्यतामिव।।

महाराज! धनुस्सुगळ टेंकारद शब्धवु ऎल्लकडॆ जोरागि बिदिरु मॆळॆगळु सुडुत्तिरुवंतॆ केळि बरुत्तित्तु.

06088027a शस्त्राणां पात्यमानानां कवचेषु शरीरिणां।
06088027c शब्दः समभवद्राजन्नद्रीणामिव दीर्यतां।।

राजन्! शरीरगळ कवचगळ मेलॆ बीळुत्तिद्द शस्त्रगळ शब्धवु पर्वतगळु सीळुत्तिवॆयो ऎंबंतॆ केळिबरुत्तित्तु.

06088028a वीरबाहुविसृष्टानां तोमराणां विशां पते।
06088028c रूपमासीद्वियत्स्थानां सर्पाणां सर्पतामिव।।

विशांपते! वीरबाहुगळु प्रयोगिसिद तोमरगळु आकाशदल्लि तीव्रगतियल्लि चलिसुव सर्पगळंतिद्दवु.

06088029a ततः परमसंक्रुद्धो विस्फार्य सुमहद्धनुः।
06088029c राक्षसेंद्रो महाबाहुर्विनदन्भैरवं रवं।।

आग महाबाहु राक्षसेंद्रनु महा धनुस्सन्नु टेंकरिसि भैरव कूगन्नु कूगिदनु.

06088030a आचार्यस्यार्धचंद्रेण क्रुद्धश्चिच्छेद कार्मुकं।
06088030c सोमदत्तस्य भल्लेन ध्वजमुन्मथ्य चानदत्।।

अवनु क्रुद्धनागि आचार्यन धनुस्सन्नु अर्धचंद्र बाणदिंद कत्तरिसिदनु. भल्लदिंद सोमदत्तन ध्वजवन्नु हारिसि गर्जिसिदनु.

06088031a बाह्लिकं च त्रिभिर्बाणैरभ्यविध्यत्स्तनांतरे।
06088031c कृपमेकेन विव्याध चित्रसेनं त्रिभिः शरैः।।

मूरु बाणगळिंद बाह्लिकन ऎदॆगॆ हॊडॆदनु. ऒंदरिंद कृपनन्नू मूरु शरगळिंद चित्रसेननन्नू हॊडॆदनु.

06088032a पूर्णायतविसृष्टेन सम्यक्प्रणिहितेन च।
06088032c जत्रुदेशे समासाद्य विकर्णं समताडयत्।
06088032e न्यषीदत्स रथोपस्थे शोणितेन परिप्लुतः।।

चॆन्नागि संपूर्णवागि धनुस्सन्नु ऎळॆदु विकर्णन जत्रुदेशक्कॆ गुरियिट्टु हॊडॆदनु. अवनु रक्तदिंद रथदल्लिये कुसिदु बिद्दनु.

06088033a ततः पुनरमेयात्मा नाराचान्दश पंच च।
06088033c भूरिश्रवसि संक्रुद्धः प्राहिणोद्भरतर्षभ।।
06088033e ते वर्म भित्त्वा तस्याशु प्राविशन्मेदिनीतलं।।

भरतर्षभ! पुनः आ अमेयात्मनु संक्रुद्धनागि हदिनैदु बाणगळन्नु भूरिश्रवन मेलॆ प्रयोगिसिदनु. अवु अवन कवचवन्नु भेदिसि शीघ्रवागि भूमिय ऒळहॊक्कवु.

06088034a विविंशतेश्च द्रौणेश्च यंतारौ समताडयत्।
06088034c तौ पेततू रथोपस्थे रश्मीनुत्सृज्य वाजिनां।।

विविंशति मत्तु द्रौणियर सारथिगळन्नु हॊडॆयलु अवरिब्बरू कुदुरॆगळ कडिवाणगळन्नु बिट्टु रथदिंद कॆळक्कॆ बिद्दरु.

06088035a सिंधुराज्ञोऽर्धचंद्रेण वाराहं स्वर्णभूषितं।
06088035c उन्ममाथ महाराज द्वितीयेनाच्छिनद्धनुः।।

महाराज! अर्धचंद्र बाणदिंद सिंधुराजन वाराह चिह्नॆय स्वर्णभूषित ध्वजवन्नु कत्तरिसि कॆडविदनु. ऎरडनॆयदरिंद अवन बिल्लन्नु तुंडरिसिदनु.

06088036a चतुर्भिरथ नाराचैरावंत्यस्य महात्मनः।
06088036c जघान चतुरो वाहान्क्रोधसंरक्तलोचनः।।

आग क्रोधसंरक्तलोचननाद आ महात्मनु अवंतियवन नाल्कु कुदुरॆगळन्नु नाल्कु नाराचगळिंद संहरिसिदनु.

06088037a पूर्णायतविसृष्टेन पीतेन निशितेन च।
06088037c निर्बिभेद महाराज राजपुत्रं बृहद्बलं।
06088037e स गाढविद्धो व्यथितो रथोपस्थ उपाविशत्।।

महाराज! संपूर्णवागि ऎळॆदु बिट्ट निशित बाणदिंद राजपुत्र बृहद्बलनन्नु हॊडॆदनु. आळवागि गायगॊंड अवनु व्यथितनागि रथदल्लिये कुळितुकॊंडनु.

06088038a भृशं क्रोधेन चाविष्टो रथस्थो राक्षसाधिपः।
06088038c चिक्षेप निशितांस्तीक्ष्णां शरानाशीविषोपमान्।
06088038e बिभिदुस्ते महाराज शल्यं युद्धविशारदं।।

बहळ कोपदिंद आविष्टनागि रथदल्लि निंतिद्द राक्षसाधिपनु सर्पगळ विषक्कॆ समानवाद निशित तीक्ष्ण शरगळन्नु युद्धविशारद शल्यन मेलॆ ऎसॆयलु अवु अवन शरीरवन्नु भेदिसिदवु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि हैडिंबयुद्धे अष्टाशीतितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्मपर्वदल्लि भीष्मवधपर्वदल्लि हैडिंबयुद्ध ऎन्नुव ऎंभत्तॆंटने अध्यायवु.