074 संकुलयुद्धः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

भीष्म पर्व

भीष्मवध पर्व

अध्याय 74

सार

संकुल युद्ध (1-36).

06074001 संजय उवाच।
06074001a ततो दुर्योधनो राजा मोहात्प्रत्यागतस्तदा।
06074001c शरवर्षैः पुनर्भीमं प्रत्यवारयदच्युतं।।

संजयनु हेळिदनु: “आग राजा दुर्योधननु मूर्छॆयिंद ऎच्चॆत्तु पुनः अच्युत भीमनन्नु शरवर्षगळिंद आक्रमणिसिदनु.

06074002a एकीभूताः पुनश्चैव तव पुत्रा महारथाः।
06074002c समेत्य समरे भीमं योधयामासुरुद्यताः।।

पुनः निन्न महारथ पुत्ररु ऒंदागि सेरि समरदल्लि भीमनॊंदिगॆ युद्धमाडतॊडगिदरु.

06074003a भीमसेनोऽपि समरे संप्राप्य स्वरथं पुनः।
06074003c समारुह्य महाबाहुर्ययौ येन तवात्मजः।।

महाबाहु भीमसेननू कूड समरदल्लि पुनः तन्न रथवन्नु पडॆदु अदन्नेरि निन्न मक्कळन्नु ऎदुरिसिदनु.

06074004a प्रगृह्य च महावेगं परासुकरणं दृढं।
06074004c चित्रं शरासनं संख्ये शरैर्विव्याध ते सुतान्।।

महावेगवुळ्ळ बंगारदिंद अलंकरिसल्पट्ट दृढवाद बण्णद बिल्लन्नु हिडिदु रणदल्लि निन्न मक्कळन्नु शरगळिंद हॊडॆदनु.

06074005a ततो दुर्योधनो राजा भीमसेनं महाबलं।
06074005c नाराचेन सुतीक्ष्णेन भृशं मर्मण्यताडयत्।।

आग राजा दुर्योधननु महाबल भीमसेननन्नु तीक्ष्ण नाराचगळिंद मर्मगळिगॆ चॆन्नागि हॊडॆदनु.

06074006a सोऽतिविद्धो महेष्वासस्तव पुत्रेण धन्विना।
06074006c क्रोधसंरक्तनयनो वेगेनोत्क्षिप्य कार्मुकं।।
06074007a दुर्योधनं त्रिभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।
06074007c स तथाभिहतो राजा नाचलद्गिरिराडिव।।

निन्न मगनिंद अतियागि पॆट्टुतिंद आ महेष्वासनु क्रोधदिंद कण्णुगळन्नु कॆंपुमाडिकॊंडु वेगदिंद धनुस्सन्नु ऎत्ति दुर्योधननन्नु मूरुबाणगळिंद अवन बाहुगळिगू ऎदॆगू हॊडॆदनु. अवनिंद पॆट्टुतिंदरू राजनु अलुगाडदे पर्वतदंतिद्दनु.

06074008a तौ दृष्ट्वा समरे क्रुद्धौ विनिघ्नंतौ परस्परं।
06074008c दुर्योधनानुजाः सर्वे शूराः संत्यक्तजीविताः।।
06074009a संस्मृत्य मंत्रितं पूर्वं निग्रहे भीमकर्मणः।
06074009c निश्चयं मनसा कृत्वा निग्रहीतुं प्रचक्रमुः।।

समरदल्लि क्रुद्धरागि परस्पररन्नु हॊडॆयुत्तिद्द अवरिब्बरन्नु नोडि जीववन्ने तॊरॆयलु सिद्धरागिद्द दुर्योधनन शूर तम्मंदिरॆल्लरू भीमनन्नु हिडियुव तम्म हिंदिन उपायदंतॆ मनस्सु माडि अवनन्नु सॆरॆहिडियलु प्रयत्निसिदरु.

06074010a तानापतत एवाजौ भीमसेनो महाबलः।
06074010c प्रत्युद्ययौ महाराज गजः प्रतिगजानिव।।

महाराज! अवरु अवन मेलॆ ऎरगलु महाबल भीमसेननु ऎदुराळि आनॆयन्नु इन्नॊंदु आनॆयु हेगो हागॆ ऎदुरिसि युद्ध माडिदनु.

06074011a भृशं क्रुद्धश्च तेजस्वी नाराचेन समर्पयत्।
06074011c चित्रसेनं महाराज तव पुत्रं महायशाः।।

तुंबा क्रुद्धनाद आ तेजस्वियु महायशस्वि निन्न मग चित्रसेननन्नु नाराचगळिंद हॊडॆदनु.

06074012a तथेतरांस्तव सुतांस्ताडयामास भारत।
06074012c शरैर्बहुविधैः संख्ये रुक्मपुंखैः सुवेगितैः।।

भारत! हागॆये निन्न इतर मक्कळन्नू वेगवुळ्ळ अनेक विधद रुक्मपुंख शरगळिंद हॊडॆदनु.

06074013a ततः संस्थाप्य समरे स्वान्यनीकानि सर्वशः।
06074013c अभिमन्युप्रभृतयस्ते द्वादश महारथाः।।
06074014a प्रेषिता धर्मराजेन भीमसेनपदानुगाः।
06074014c प्रत्युद्ययुर्महाराज तव पुत्रान्महाबलान्।।

महाराज! आग भीमसेननन्नु अनुसरिसि होगबेकॆंदु धर्मराजनु अभिमन्युविन नायकत्वदल्लि कळुहिसिद्द हन्नॆरडु महारथरु तम्म ऎल्ल सेनॆगळॊंदिगॆ बंदु निन्न महाबल पुत्ररन्नु ऎदुरिसि युद्धमाडिदरु.

06074015a दृष्ट्वा रथस्थांस्तां शूरान्सूर्याग्निसमतेजसः।
06074015c सर्वानेव महेष्वासाम्भ्राजमानां श्रिया वृतान्।।
06074016a महाहवे दीप्यमानान्सुवर्णकवचोज्ज्वलान्।
06074016c तत्यजुः समरे भीमं तव पुत्रा महाबलाः।।

आ शूरर सूर्याग्निसमतेजस्सिन रथगळन्नू, श्रीयिंद आवृतरागि बॆळगुत्तिरुव मत्तु महाहवदल्लि सुवर्णकवचगळ बॆळकिनिंद बॆळगुत्तिरुव आ महेष्वासरन्नू नोडि निन्न महाबल पुत्ररु समरदल्लि अवनन्नु त्यजिसिदरु.

06074017a तान्नामृष्यत कौंतेयो जीवमाना गता इति।
06074017c अन्वीय च पुनः सर्वांस्तव पुत्रानपीडयत्।।

अवरु जीवसहितरागि हॊरटुहोदुदन्नु कौंतेयनु सहिसलिल्ल. अवरन्नु बॆन्नट्टिहोगि निन्न पुत्ररन्नु पुनः पीडिसिदनु.

06074018a अथाभिमन्युं समरे भीमसेनेन संगतं।
06074018c पार्षतेन च संप्रेक्ष्य तव सैन्ये महारथाः।।
06074019a दुर्योधनप्रभृतयः प्रगृहीतशरासनाः।
06074019c भृशमश्वैः प्रजवितैः प्रययुर्यत्र ते रथाः।।

आग समरदल्लि भीमसेन मत्तु पार्षतरॊडनॆ अभिमन्युवु इरुवुदन्नु नोडि निन्न सेनॆयल्लिद्द दुर्योधनने मॊदलाद महारथरु धन्नुस्सुगळन्नु हिडिदु उत्तम अश्वगळिंद ऎळॆयल्पट्ट रथगळल्लि अवरिरुवल्लिगॆ धाविसिदरु.

06074020a अपराह्णे ततो राजन्प्रावर्तत महान्रणः।
06074020c तावकानां च बलिनां परेषां चैव भारत।।

राजन्! भारत! आग अपराह्णदल्लि निन्नवर मत्तु बलशालि शत्रुगळ नडुवॆ महा रणवायितु.

06074021a अभिमन्युर्विकर्णस्य हयान् हत्वा महाजवान्।
06074021c अथैनं पंचविंशत्या क्षुद्रकाणां समाचिनोत्।।

अभिमन्युवु विकर्णन महावेगद कुदुरॆगळन्नु कॊंदु इप्पत्तैदु क्षुद्रकगळिंद अवनन्नु हॊडॆदनु.

06074022a हताश्वं रथमुत्सृज्य विकर्णस्तु महारथः।
06074022c आरुरोह रथं राजंश्चित्रसेनस्य भास्वरं।।

राजन्! अश्ववु हतवागलु महारथ विकर्णनु चित्रसेनन हॊळॆयुव रथवन्नु एरिदनु.

06074023a स्थितावेकरथे तौ तु भ्रातरौ कुरुवर्धनौ।
06074023c आर्जुनिः शरजालेन चादयामास भारत।।

भारत! ऒंदे रथदल्लि निंतिद्द आ इब्बरु कुरुवर्धन सहोदररन्नु आर्जुनियु शरजालगळिंद मुच्चिदनु.

06074024a दुर्जयोऽथ विकर्णश्च कार्ष्णिं पंचभिरायसैः।
06074024c विव्यधाते न चाकंपत्कार्ष्णिर्मेरुरिवाचलः।।

आग दुर्जय मत्तु विकर्णरु कार्ष्णियन्नु ऐदु आयसगळिंद हॊडॆदरू कार्ष्णियु मेरुविनंतॆ अलुगाडदे अचलवागिद्दनु.

06074025a दुःशासनस्तु समरे केकयान्पंच मारिष।
06074025c योधयामास राजेंद्र तदद्भुतमिवाभवत्।।

मारिष! राजेंद्र! दुःशासननादरो समरदल्लि ऐवरु केकयरॊंदिगॆ युद्धमाडतॊडगिदनु. अदु अद्भुतवागित्तु.

06074026a द्रौपदेया रणे क्रुद्धा दुर्योधनमवारयन्।
06074026c एकैकस्त्रिभिरानर्चत्पुत्रं तव विशां पते।।

विशांपते! द्रौपदेयरु रणदल्लि क्रुद्धरागि निन्न मग दुर्योधननन्नु सुत्तुवरॆदु ऒब्बॊब्बरू मूरु बाणगळिंद हॊडॆदरु.

06074027a पुत्रोऽपि तव दुर्धर्षो द्रौपद्यास्तनयान्रणे।
06074027c सायकैर्निशितै राजन्नाजघान पृथक्पृथक्।।

राजन्! निन्न मग दुर्धर्षनू कूड रणदल्लि द्रौपदेयरन्नु प्रत्येक प्रत्येकवागि निशित सायकगळिंद हॊडॆदनु.

06074028a तैश्चापि विद्धः शुशुभे रुधिरेण समुक्षितः।
06074028c गिरिप्रस्रवणैर्यद्वद्गिरिर्धातुविमिश्रितैः।।

अवरिंदलू पॆट्टुतिंद अवनु रक्तदिंद तोय्दु गैरिकादि धातुगळ सम्मिश्रणगळिंद कूडिद झरिगळिरुव गिरियंतॆ शोभिसिदनु.

06074029a भीष्मोऽपि समरे राजन्पांडवानामनीकिनीं।
06074029c कालयामास बलवान्पालः पशुगणानिव।।

राजन्! भीष्मनू कूड समरदल्लि गोपालकनु हसुगळन्नु तरुबुवंतॆ पांडवर सेनॆयन्नु तडॆदिद्दनु.

06074030a ततो गांडीवनिर्घोषः प्रादुरासीद्विशां पते।
06074030c दक्षिणेन वरूथिन्याः पार्थस्यारीन्विनिघ्नतः।।

आग विशांपते! रणभूमिय दक्षिणभागदिंद सेनॆगळन्नु संहरिसुत्तिद्द पार्थन गांडीव निर्घोषवु केळिबंदितु.

06074031a उत्तस्थुः समरे तत्र कबंधानि समंततः।
06074031c कुरूणां चापि सैन्येषु पांडवानां च भारत।।

भारत! अल्लि समरदल्लि कुरुगळ मत्तु पांडवर सेनॆगळल्लि ऎल्ल कडॆ संहृतरादवर मुंडगळु ऎद्दु निंतिद्दवु.

06074032a शोणितोदं रथावर्तं गजद्वीपं हयोर्मिणं।
06074032c रथनौभिर्नरव्याघ्राः प्रतेरुः सैन्यसागरं।।

सैन्यवॆंब सागरदल्लि रक्तवे नीरागित्तु. बाणगळु सुळियागिद्दवु. आनॆगळु द्वीपगळंतिद्दवु. कुदुरॆगळु अलॆगळागिद्दवु. रथगळु नरव्याघ्ररु दाटलु बळसिद नौकॆगळंतिद्दवु.

06074033a चिन्नहस्ता विकवचा विदेहाश्च नरोत्तमाः।
06074033c पतितास्तत्र दृश्यंते शतशोऽथ सहस्रशः।।

अल्लि कैगळु कत्तरिसिद, कवचगळिल्लद, देहवे इल्लद नूरारु साविरारु नरोत्तमरु अल्लि बिद्दिरुवुदु काणुत्तित्तु.

06074034a निहतैर्मत्तमातंगैः शोणितौघपरिप्लुतैः।
06074034c भूर्भाति भरतश्रेष्ठ पर्वतैराचिता यथा।।

भारत! रक्तदिंद तोयिसल्पट्टु निहतवाद मत्त मातंगगळु नॆलद मेलॆ पर्वतगळंतॆ तोरुत्तिद्दवु.

06074035a तत्राद्भुतमपश्याम तव तेषां च भारत।
06074035c न तत्रासीत्पुमान्कश्चिद्यो योद्धुं नाभिकांक्षति।।

भारत! अंतह अल्लियू नावु ऒंदु परमाद्भुतवन्नु कंडॆवु. निन्नवरल्लियागली अवरल्लियागली युद्धवु बेडवॆंदु हेळुववरु यारू इरलिल्ल.

06074036a एवं युयुधिरे वीराः प्रार्थयाना महद्यशः।
06074036c तावकाः पांडवैः सार्धं कांक्षमाणा जयं युधि।।

हीगॆ महायशस्सन्नु बयसुत्ता निन्न वीररु युद्धदल्लि जयवन्ने बयसि पांडवरॊंदिगॆ युद्धमाडिदरु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि संकुलयुद्धे चतुःसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि संकुलयुद्ध ऎन्नुव ऎप्पत्नाल्कने अध्यायवु.