प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
भीष्म पर्व
भीष्मवध पर्व
अध्याय 69
सार
अर्जुन-अश्वत्थामर द्वंद्वयुद्ध (1-15). भीमसेन-दुर्योधनर द्वंद्वयुद्ध (16-22). अभिमन्यु-लक्ष्मणर द्वंद्वयुद्ध (23-41).
06069001 संजय उवाच।
06069001a विराटोऽथ त्रिभिर्बाणैर्भीष्ममार्चन्महारथं।
06069001c विव्याध तुरगांश्चास्य त्रिभिर्बाणैर्महारथः।।
संजयनु हेळिदनु: “महारथ विराटनु महारथ भीष्मनन्नु मूरु बाणगळिंद हॊडॆदु अवन कुदुरॆगळन्नू मूरु बाणगळिंद गायगॊळिसिदनु.
06069002a तं प्रत्यविध्यद्दशभिर्भीष्मः शांतनवः शरैः।
06069002c रुक्मपुंखैर्महेष्वासः कृतहस्तो महाबलः।।
आग महेष्वास, सिद्धहस्त महाबल भीष्म शांतनवनु अवनन्नु रुक्मपुंख शरगळिंद तिरुगि हॊडॆदनु.
06069003a द्रौणिर्गांडीवधन्वानं भीमधन्वा महारथः।
06069003c अविध्यदिषुभिः षड्भिर्दृढहस्तः स्तनांतरे।।
महारथि दृढहस्त द्रौणियु भीमधन्वि गांडीवधन्विय ऎदॆगॆ आरु बाणगळिंद हॊडॆदनु.
06069004a कार्मुकं तस्य चिच्छेद फल्गुनः परवीरहा।
06069004c अविध्यच्च भृशं तीक्ष्णैः पत्रिभिः शत्रुकर्शनः।।
आग परवीरह शत्रुकर्शन फल्गुननु तुंबा तीक्ष्णवाद पत्रिगळिंद अवन कार्मुकवन्नु तुंडरिसिदनु.
06069005a सोऽन्यत्कार्मुकमादाय वेगवत्क्रोधमूर्चितः।
06069005c अमृष्यमाणः पार्थेन कार्मुकच्छेदमाहवे।।
06069006a अविध्यत्फल्गुनं राजन्नवत्या निशितैः शरैः।
06069006c वासुदेवं च सप्तत्या विव्याध परमेषुभिः।।
राजन्! क्रोधमूर्छितनाद अवनु आहवदल्लि पार्थनु कार्मुकवन्नु छेदिसिदुदन्नु सहिसिकॊळ्ळलारदे वेगदल्लि इन्नॊंदु कार्मुकवन्नु तॆगॆदुकॊंडु फल्गुननन्नु ऒंभत्तु निशित शरगळिंदलू वासुदेवनन्नु एळु शरगळिंदलू हॊडॆदनु.
06069007a ततः क्रोधाभिताम्राक्षः सह कृष्णेन फल्गुनः।
06069007c दीर्घमुष्णं च निःश्वस्य चिंतयित्वा मुहुर्मुहुः।।
06069008a धनुः प्रपीड्य वामेन करेणामित्रकर्शनः।
06069008c गांडीवधन्वा संक्रुद्धः शितान्सन्नतपर्वणः।।
06069008e जीवितांतकरान्घोरान्समादत्त शिलीमुखान्।।
06069009a तैस्तूर्णं समरेऽविध्यद्द्रौणिं बलवतां वरं।
06069009c तस्य ते कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे।।
आग कृष्णनॊंदिगॆ अमित्रकर्शण गांडीवधन्वि फल्गुननु क्रोधदिंद कण्णुगळन्नु कॆंपुमाडिकॊंडु, दीर्घ बिसि निट्टुसिरु बिडुत्ता, पुनः पुनः चिंतिसुत्ता ऎडगैयिंद धनुस्सन्नु मीटि, संक्रुद्धनागि जीववन्ने कॊनॆगॊळिसबल्ल घोर शिलीमुख हरित सन्नतपर्वगळन्नु तक्षणवे तॆगॆदुकॊंडु समरदल्लि बलवंतरल्ले श्रेष्ठनाद द्रौणिगॆ हॊडॆदनु. आहवदल्लि अदु अवन कवचवन्नु सीळि रक्तवन्नु कुडिदवु.
06069010a न विव्यथे च निर्भिन्नो द्रौणिर्गांडीवधन्वना।
06069010c तथैव शरवर्षाणि प्रतिमुंचन्नविह्वलः।
06069010e तस्थौ स समरे राजंस्त्रातुमिच्छन्महाव्रतं।।
गांडीवधन्वियिंद अवन शरीरवु निर्भिन्नवादरू द्रौणियु व्यथॆपडल्ल. विह्वलनागदे हागॆये शरवर्षगळन्नु प्रयोगिसिदनु. राजन्! अवनु महाव्रतनन्नु रक्षिसलु बयसि समरदल्लि निंतुकॊंडनु.
06069011a तस्य तत्सुमहत्कर्म शशंसुः पुरुषर्षभाः।
06069011c यत्कृष्णाभ्यां समेताभ्यां नापत्रपत संयुगे।।
इब्बरु कृष्णरन्नु ऒट्टिगे ऎदुरिसुत्तिद्द अवन आ महाकार्यवन्नु संयुगदल्लि पुरुषर्षभरु प्रशंसिसिदरु.
06069012a स हि नित्यमनीकेषु युध्यतेऽभयमास्थितः।
06069012c अस्त्रग्रामं ससंहारं द्रोणात्प्राप्य सुदुर्लभं।।
द्रोणनिंद उपसंहारगळॊंदिगॆ दुर्लभ अस्त्रग्रामगळन्नु पडॆदिद्द अवनु नित्य अभयनागि सेनॆगळॊडनॆ युद्धमाडिदनु.
06069013a ममायमाचार्यसुतो द्रोणस्यातिप्रियः सुतः।
06069013c ब्राह्मणश्च विशेषेण माननीयो ममेति च।।
06069014a समास्थाय मतिं वीरो बीभत्सुः शत्रुतापनः।
06069014c कृपां चक्रे रथश्रेष्ठो भारद्वाजसुतं प्रति।।
आदरॆ “इवनु नन्न आचार्यन मग, द्रोणन अतिप्रियनाद मग. विशेषवागि ब्राह्मणनागिरुवुदरिंद ननगॆ माननीय” ऎंदु अभिप्रायवन्नु तळॆदु वीर शत्रुतापन बीभत्सुवु रथश्रेष्ठ भारद्वाजसुतन मेलॆ कृपॆतोरिदनु.
06069015a द्रौणिं त्यक्त्वा ततो युद्धे कौंतेयः शत्रुतापनः।
06069015c युयुधे तावकान्निघ्नंस्त्वरमाणः पराक्रमी।।
आग युद्धदल्लि शत्रुतापन पराक्रमी कौंतेयनु द्रौणियुन्नु बिट्टु निन्न कडॆयवरॊंदिगॆ त्वरॆमाडि यद्धदल्लि तॊडगिदनु.
06069016a दुर्योधनस्तु दशभिर्गार्ध्रपत्रैः शिलाशितैः।
06069016c भीमसेनं महेष्वासं रुक्मपुंखैः समर्पयत्।।
दुर्योधननादरो हत्तु गार्ध्रपत्र शिलाशित रुक्मपुंखगळिंद महेष्वास भीमसेननन्नु हॊडॆदनु.
06069017a भीमसेनस्तु संक्रुद्धः परासुकरणं दृढं।
06069017c चित्रं कार्मुकमादत्त शरांश्च निशितान्दश।।
06069018a आकर्णप्रहितैस्तीक्ष्णैर्वेगितैस्तिग्मतेजनैः।
06069018c अविध्यत्तूर्णमव्यग्रः कुरुराजं महोरसि।।
अव्यग्र भीमसेननादरो संक्रुद्धनागि शत्रुगळ प्राणवन्नु अपहरिसबल्ल दृढवाद, चित्र कार्मुकवन्नू हत्तु निशित शरगळन्नू तॆगॆदुकॊंडु तीक्ष्णवागियू अति वेगदल्लियू आकर्णपर्यंतवागि ऎळॆदु बेगने कुरुराजनन्नु विशाल ऎदॆय मेलॆ हॊडॆदनु.
06069019a तस्य कांचनसूत्रस्तु शरैः परिवृतो मणिः।
06069019c रराजोरसि वै सूर्यो ग्रहैरिव समावृतः।।
शरगळिंद चुच्चल्पट्ट अवन चिन्नद सरदल्लिद्द मणियु ग्रहगळिंद समावृतवाद सूर्यनंतॆ राराजिसितु.
06069020a पुत्रस्तु तव तेजस्वी भीमसेनेन ताडितः।
06069020c नामृष्यत यथा नागस्तलशब्दं समीरितं।।
निन्न तेजस्वी पुत्रनादरो चप्पाळॆय शब्धवन्नु मदिसिद आनॆयु हेगो हागॆ भीमसेननिंद तागिसिकॊंडिदुदन्नु सहिसिकॊळ्ळलिल्ल.
06069021a ततः शरैर्महाराज रुक्मपुंखैः शिलाशितैः।
06069021c भीमं विव्याध संक्रुद्धस्त्रासयानो वरूथिनीं।।
आग महाराज! अवनु संक्रुद्धनागि सेनॆयन्नु हॆदरिसि भीमनन्नु शिलाशित रुक्मपुंखगळिंद हॊडॆदनु.
06069022a तौ युध्यमानौ समरे भृशमन्योन्यविक्षतौ।
06069022c पुत्रौ ते देवसंकाशौ व्यरोचेतां महाबलौ।।
समरदल्लि अन्योन्यरन्नु लक्षिसदे युद्धमाडुत्तिद्द निन्न महाबल पुत्ररिब्बरू देवतॆगळंतॆ मिंचिदरु.
06069023a चित्रसेनं नरव्याघ्रं सौभद्रः परवीरहा।
06069023c अविध्यद्दशभिर्बाणैः पुरुमित्रं च सप्तभिः।।
06069024a सत्यव्रतं च सप्तत्या विद्ध्वा शक्रसमो युधि।
06069024c नृत्यन्निव रणे वीर आर्तिं नः समजीजनत्।।
परवीरह वीर सौभद्रनु नरव्याघ्र चित्रसेननन्नु हत्तु बाणगळिंदलू, पुरुमित्रनन्नु एळरिंदलू, सत्यव्रतनन्नु एळरिंदलू हॊडॆदु युद्धदल्लि शक्रनंतॆ रणदल्लि नृत्यमाडुत्तिरुवनो ऎन्नुवंतॆ ऎदुरिसिदवरॆल्लरन्नू हॊडॆयुत्ता नम्मवरन्नु आर्तरन्नागिसिदनु.
06069025a तं प्रत्यविद्यद्दशभिश्चित्रसेनः शिलीमुखैः।
06069025c सत्यव्रतश्च नवभिः पुरुमित्रश्च सप्तभिः।।
अवनन्नु तिरुगि चित्रसेननु हत्तु शिलीमुखगळिंदलू सत्यव्रतनु ऒंभत्तरिंदलू पुरुमित्रनु एळरिंदलू हॊडॆदरु.
06069026a स विद्धो विक्षरन्रक्तं शत्रुसंवारणं महत्।
06069026c चिच्छेद चित्रसेनस्य चित्रं कार्मुकमार्जुनिः।
06069026e भित्त्वा चास्य तनुत्राणं शरेणोरस्यताडयत्।।
पॆट्टु तिंदु रक्तवन्नु सुरिसुत्तिद्द आर्जुनियु चित्रसेनन शत्रुसंवारण महा चित्र कार्मुकवन्नु तुंडरिसिदनु. शरदिंद अवन कवचवन्नु सीळि ऎदॆगॆ तागिसि हॊडॆदनु.
06069027a ततस्ते तावका वीरा राजपुत्रा महारथाः।
06069027c समेत्य युधि संरब्धा विव्यधुर्निशितैः शरैः।
आग निन्न वीर राजपुत्र महारथरु कोपदिंद ऒट्टागि युद्धदल्लि अवनन्नु निशित शरगळिंद हॊडॆदरु.
06069027e तांश्च सर्वान् शरैस्तीक्ष्णैर्जघान परमास्त्रवित्।।
06069028a तस्य दृष्ट्वा तु तत्कर्म परिवव्रुः सुतास्तव।
06069028c दहंतं समरे सैन्यं तव कक्षं यथोल्बणं।।
अवरॆल्लरन्नू आ परमास्त्रविदुवु तीक्ष्ण शरगळिंद हॊडॆदनु. अरण्यद दावाग्नियु ऒणहुल्लुगळन्नु निरायासवागि दहिसुवंतिद्द अवन आ कृत्यवन्नु नोडि निन्न पुत्ररु अवनन्नु सुत्तुवरॆदरु.
06069029a अपेतशिशिरे काले समिद्धमिव पावकः।
06069029c अत्यरोचत सौभद्रस्तव सैन्यानि शातयन्।।
निन्न सेनॆगळन्नु विनाशगॊळिसुत्ता सौभद्रियु छळिगालद अंत्यदल्लि धगधगिसि उरियुव पावकनंतॆ विराजिसिदनु.
06069030a तत्तस्य चरितं दृष्ट्वा पौत्रस्तव विशां पते।
06069030c लक्ष्मणोऽभ्यपतत्तूर्णं सात्वतीपुत्रमाहवे।।
विशांपते! अवन आ चरितवन्नु नोडि निन्न मॊम्मग लक्ष्मणनु आहवदल्लि बेगने सात्वतीपुत्रनन्नु ऎदुरिसिदनु.
06069031a अभिमन्युस्तु संक्रुद्धो लक्ष्मणं शुभलक्षणं।
06069031c विव्याध विशिखैः षड्भिः सारथिं च त्रिभिः शरैः।।
संक्रुद्धनाद अभिमन्युवादरो शुभलक्षण लक्ष्मणनन्नु आरु विशिखगळिंद हॊडॆदु मूरु शरगळिंद सारथियन्नू हॊडॆदनु.
06069032a तथैव लक्ष्मणो राजन्सौभद्रं निशितैः शरैः।
06069032c अविध्यत महाराज तदद्भुतमिवाभवत्।।
राजन्! महाराज! हागॆये लक्ष्मणनू कूड सौभद्रनन्नु निशित शरगळिंद हॊडॆयलु अल्लि अद्भुतवॊंदु नडॆयितु.
06069033a तस्याश्वांश्चतुरो हत्वा सारथिं च महाबलः।
06069033c अभ्यद्रवत सौभद्रो लक्ष्मणं निशितैः शरैः।।
आग महाबल सौभद्रनु अवन नाल्कु कुदुरॆगळन्नू सारथियन्नु कॊंदु लक्ष्मणनन्नु निशित शरगळिंद प्रहरिसिदनु.
06069034a हताश्वे तु रथे तुष्ठऽल्लक्ष्मणः परवीरहा।
06069034c शक्तिं चिक्षेप संक्रुद्धः सौभद्रस्य रथं प्रति।।
परवीरह लक्ष्मणनु रथद कुदुरॆगळु सत्तरू धृतिगॆडदे संक्रुद्धनागि सौभद्रन रथद मेलॆ शक्तियन्नु ऎसॆदनु.
06069035a तामापतंतीं सहसा घोररूपां दुरासदां।
06069035c अभिमन्युः शरैस्तीक्ष्णैश्चिच्छेद भुजगोपमां।।
ऒम्मॆले बीळुत्तिद्द आ घोररूपी, दुरासद भुजगोपम शक्तियन्नु अभिमन्युवु तीक्ष्ण शरगळिंद तुंडरिसिदनु.
06069036a ततः स्वरथमारोप्य लक्ष्मणं गौतमस्तदा।
06069036c अपोवाह रथेनाजौ सर्वसैन्यस्य पश्यतः।।
आग गौतमनु लक्ष्मणनन्नु तन्न रथदल्लेरिसिकॊंडु ऎल्ल सैनिकरू नोडुत्तिद्दंतॆये इन्नॊंदॆडॆ रथवन्नु वेगवागि ओडिसि हॊरटु होदनु.
06069037a ततः समाकुले तस्मिन्वर्तमाने महाभये।
06069037c अभ्यद्रवं जिघांसंतः परस्परवधैषिणः।।
आग आ समाकुलदल्लि महाभयुंकर युद्धवु मुंदुवरॆयितु. परस्पररन्नु वधिसलु इच्छिसि आक्रमण माडि कॊल्लुत्तिद्दरु.
06069038a तावकाश्च महेष्वासाः पांडवाश्च महारथाः।
06069038c जुह्वंतः समरे प्राणान्निजघ्नुरितरेतरं।।
निन्न कडॆय महेष्वासरू पांडवर महारथरू समरदल्लि आहुतियागलु सिद्धरागि परस्परर प्राणगळन्नु तॆगॆदरु.
06069039a मुक्तकेशा विकवचा विरथाश्चिन्नकार्मुकाः।
06069039c बाहुभिः समयुध्यंत सृंजयाः कुरुभिः सह।।
तलॆकूदलु बिच्चिहोगि, कवचगळिल्लदे, विरथरागि, कार्मुकगळु तुंडागि बाहुगळिंद सृंजयरु कुरुगळॊडनॆ युद्धमाडिदरु.
06069040a ततो भीष्मो महाबाहुः पांडवानां महात्मनां।
06069040c सेनां जघान संक्रुद्धो दिव्यैरस्त्रैर्महाबलः।।
आग महाबाहु महाबल भीष्मनु संक्रुद्धनागि दिव्यास्त्रगळिंद महात्म पांडवर सेनॆगळन्नु संहरिसिदनु.
06069041a हतेश्वरैर्गजैस्तत्र नरैरश्वैश्च पातितैः।
06069041c रथिभिः सादिभिश्चैव समास्तीर्यत मेदिनी।।
सत्तु बिद्दिद्द आनॆगळिंद, मावुतरिंद, कॆळगुरुळिद्द पदातिगळु, अश्वगळु, रथगळु मत्तु कुदुरॆ सवाररिंद रणभूमियु मुच्चिहोगित्तु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि द्वंद्वयुद्धे एकोनसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्मपर्वदल्लि भीष्मवधपर्वदल्लि द्वंद्वयुद्ध ऎन्नुव अरवत्तॊंभत्तने अध्यायवु.