प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
भीष्म पर्व
भीष्मवध पर्व
अध्याय 68
सार
संकुलयुद्ध (1-33).
06068001 संजय उवाच।
06068001a शिखंडी सह मत्स्येन विराटेन विशां पते।
06068001c भीष्ममाशु महेष्वासमाससाद सुदुर्जयं।।
संजयनु हेळिदनु: “विशांपते! शिखंडियु मत्स्य- विराटरन्नॊडगूडिकॊंडु महेष्वास सुदुर्जय भीष्मनिद्दॆडॆगॆ धाविसिदनु.
06068002a द्रोणं कृपं विकर्णं च महेष्वासान्महाबलान्।
06068002c राज्ञश्चान्यान्रणे शूरान् बहूनार्चद्धनंजयः।।
रणदल्लि धनंजयनु अन्य शूर, महेष्वास, महाबल राजरन्नू, द्रोण, कृप, विकर्णरन्नू बहुवागि बाधिसिदनु.
06068003a सैंधवं च महेष्वासं सामात्यं सह बंधुभिः।
06068003c प्राच्यांश्च दाक्षिणात्यांश्च भूमिपान्भूमिपर्षभ।।
06068004a पुत्रं च ते महेष्वासं दुर्योधनममर्षणं।
06068004c दुःस्सहं चैव समरे भीमसेनोऽभ्यवर्तत।।
भूमिपर्षभ! समरदल्लि भीमसेननु अमात्य-बंधुगळॊडनॆ महेष्वास सैंधवनन्नु, पूर्व मत्तु दक्षिण प्रदेशगळ भूमिपरन्नू, निन्न पुत्र महेष्वास अमर्षण दुर्योधन मत्तु दुःस्सहरन्नु ऎदुरिसिदनु.
06068005a सहदेवस्तु शकुनिमुलूकं च महारथं।
06068005c पितापुत्रौ महेष्वासावभ्यवर्तत दुर्जयौ।।
दुर्जयरू महेष्वासरू तंदॆ-मगराद महारथ शकुनि-उलूकरन्नु सहदेवनु ऎदुरिसिदनु.
06068006a युधिष्ठिरो महाराज गजानीकं महारथः।
06068006c समवर्तत संग्रामे पुत्रेण निकृतस्तव।।
महाराज! निन्न मगनिंद वंचितनागिद्द महारथ युधिष्ठिरनु संग्रामदल्लि गजसेनॆयॊंदिगॆ होराडुत्तिद्दनु.
06068007a माद्रीपुत्रस्तु नकुलः शूरः संक्रंदनो युधि।
06068007c त्रिगर्तानां रथोदारैः समसज्जत पांडवः।।
माद्रीपुत्र शूर नकुल पांडवनु युद्धदल्लि संक्रंदनंतॆ रथोदार त्रिगर्तरॊडनॆ युद्धमाडिदनु.
06068008a अभ्यवर्तंत दुर्धर्षाः समरे शाल्वकेकयान्।
06068008c सात्यकिश्चेकितानश्च सौभद्रश्च महारथः।।
समरदल्लि दुर्धर्ष शाल्व-केकयरॊंदिगॆ महारथ सात्यकि, चेकितान मत्तु सौभद्ररु होराडुत्तिद्दरु.
06068009a धृष्टकेतुश्च समरे राक्षसश्च घटोत्कचः।
06068009c पुत्राणां ते रथानीकं प्रत्युद्याताः सुदुर्जयाः।।
समरदल्लि दुर्जय धृष्टकेतु मत्तु राक्षस घटोत्कचरु निन्न मक्कळ रथसेनॆयॊंदिगॆ होराडुत्तिद्दरु.
06068010a सेनापतिरमेयात्मा धृष्टद्युम्नो महाबलः।
06068010c द्रोणेन समरे राजन्समियायेंद्रकर्मणा।।
राजन्! सेनापति अमेयात्म महाबल धृष्टद्युम्ननु समरदल्लि उग्रकर्मि द्रोणनॊंदिगॆ युद्ध माडुत्तिद्दनु.
06068011a एवमेते महेष्वासास्तावकाः पांडवैः सह।
06068011c समेत्य समरे शूराः संप्रहारं प्रचक्रिरे।।
हीगॆ महेष्वास शूरराद निन्नवरु पांडवरॊंदिगॆ समरदल्लि सेरि संप्रहरिसलु तॊडगिदरु.
06068012a मध्यंदिनगते सूर्ये नभस्याकुलतां गते।
06068012c कुरवः पांडवेयाश्च निजघ्नुरितरेतरं।।
सूर्यनु नडुनॆत्तिगॆ बंदु आकाशवु तापगॊळ्ळुत्तिद्दरू कौरव-पांडवरु परस्परर संहारक्रियॆयल्लि तॊडगिद्दरु.
06068013a ध्वजिनो हेमचित्रांगा विचरंतो रणाजिरे।
06068013c सपताका रथा रेजुर्वैयाघ्रपरिवारणाः।।
ध्वज-पताकॆगळिंद कूडिद बंगार चित्रगळिंद अलंकरिसल्पट्टिद्द, हुलिय चर्मगळन्नु हॊदिसिद्द रथगळु रजदल्लि संचरिसुत्ता प्रकाशिसिदवु.
06068014a समेतानां च समरे जिगीषूणां परस्परं।
06068014c बभूव तुमुलः शब्दः सिंहानामिव नर्दतां।।
परस्पररन्नु समरदल्लि गॆल्ललु सेरिद्दवर सिंहगर्जनॆगळिंद तुमुल शब्धवुंटायितु.
06068015a तत्राद्भुतमपश्याम संप्रहारं सुदारुणं।
06068015c यमकुर्वन्रणे वीराः सृंजयाः कुरुभिः सह।।
अल्लि रणदल्लि वीर सृंजयरु कुरुगळॊंदिगॆ सुदारुण संप्रहार माडुत्तिरुव अद्भुतवन्नु नोडिदॆवु.
06068016a नैव खं न दिशो राजन्न सूर्यं शत्रुतापन।
06068016c विदिशो वाप्यपश्याम शरैर्मुक्तैः समंततः।।
राजन्! शत्रुतापन! ऎल्लकडॆगळल्लियू प्रयोगिसुत्तिद्द शरगळिंद दिक्कुगळु मुच्चि, आकाशवागली, दिक्कुगळागली, सूर्यनागली काणले इल्ल.
06068017a शक्तीनां विमलाग्राणां तोमराणां तथास्यतां।
06068017c निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलोत्पलनिभाः प्रभाः।।
06068018a कवचानां विचित्राणां भूषणानां प्रभास्तथा।
06068018c खं दिशः प्रदिशश्चैव भासयामासुरोजसा।।
थळथळिसुव मॊनॆय शक्तिगळु, हागॆये प्रयोगिसुत्तिरुव तोमरगळ, हरित खड्गगळ कन्नैदिलॆ बण्णद प्रभॆगळिंद, विचित्र कवच-भूषणगळ प्रभॆगळिंद आकाश, दिक्कुगळु मत्तु उपदिक्कुगळु तम्म उज्वल प्रकाशदिंद बॆळगुत्तिद्दवु.
06068018e विरराज तदा राजंस्तत्र तत्र रणांगणं।।
06068019a रथसिंहासनव्याघ्राः समायांतश्च संयुगे।
06068019c विरेजुः समरे राजन्ग्रहा इव नभस्तले।।
राजन्! अल्लल्लि रणांगणवु विराजिसुत्तित्तु. राजन्! संयुगदल्लि बंदु सेरिद्द रथसिंहासनव्याघ्ररु नभस्तलदल्लि बॆळगुव ग्रहगळंतॆ विराजिसिदरु.
06068020a भीष्मस्तु रथिनां श्रेष्ठो भीमसेनं महाबलं।
06068020c अवारयत संक्रुद्धः सर्वसैन्यस्य पश्यतः।।
रथिगळल्लि श्रेष्ठ भीष्मनादरो संक्रुद्धनागि सर्वसेनॆगळू नोडुत्तिद्दंतॆये महाबल भीमसेननन्नु तडॆदनु.
06068021a ततो भीष्मविनिर्मुक्ता रुक्मपुंखाः शिलाशिताः।
06068021c अभ्यघ्नन्समरे भीमं तैलधौताः सुतेजनाः।।
आग भीष्मनु प्रयोगिसिद रुक्मपुंख, शिलाशित, तैलदल्लि अद्दिद्द, सुतेजस बाणगळु समरदल्लि भीमनिगॆ तागिदवु.
06068022a तस्य शक्तिं महावेगां भीमसेनो महाबलः।
06068022c क्रुद्धाशीविषसंकाशां प्रेषयामास भारत।।
भारत! महाबल भीमसेननु अवन मेलॆ क्रुद्ध सर्पद विषक्कॆ समान शक्त्यायुधवन्नु प्रयोगिसिदनु.
06068023a तामापतंतीं सहसा रुक्मदंडां दुरासदां।
06068023c चिच्छेद समरे भीष्मः शरैः सन्नतपर्वभिः।।
मेलॆ बीळुत्तिद्द रुक्मदंडद आ दुरासद शक्तियन्नु समरदल्लि भीष्मनु तक्षणवे सन्नतपर्व शरगळिंद तुंडरिसिदनु.
06068024a ततोऽपरेण भल्लेन पीतेन निशितेन च।
06068024c कार्मुकं भीमसेनस्य द्विधा चिच्छेद भारत।।
भारत! इन्नॊंदु पीतलद निशित भल्लदिंद भीमसेनन कार्मुकवन्नु ऎरडागि तुंडरिसिदनु.
06068025a सात्यकिस्तु ततस्तूर्णं भीष्ममासाद्य सम्युगे।
06068025c शरैर्बहुभिरानर्चत्पितरं ते जनेश्वर।।
जनेश्वर! आग सात्यकियू कूड बेगने संयुगदल्लि भीष्मन बळिसारि निन्न तंदॆय मेलॆ अनेक शरगळन्नु सुरिसिदनु.
06068026a ततः संधाय वै तीक्ष्णं शरं परमदारुणं।
06068026c वार्ष्णेयस्य रथाद्भीष्मः पातयामास सारथिं।।
आग भीष्मनु परमदारुण तीक्ष्ण शरवन्नु हूडि वार्ष्णेयन सारथियन्नु रथदिंद कॆडविदनु.
06068027a तस्याश्वाः प्रद्रुता राजन्निहते रथसारथौ।
06068027c तेन तेनैव धावंति मनोमारुतरंहसः।।
राजन्! अवन रथद सारथियु बीळलु अदर कुदुरॆगळु मनोमारुतहंसगळंतॆ बेकादल्लि ओडतॊडगिदवु.
06068028a ततः सर्वस्य सैन्यस्य निस्वनस्तुमुलोऽभवत्।
06068028c हाहाकारश्च संजज्ञे पांडवानां महात्मनां।।
आग सर्व सैन्यगळल्लि कूगु तुमुलगळादवु. महात्म पांडवरल्लि हाहाकारवू उंटायितु.
06068029a अभिद्रवत गृह्णीत हयान्यच्छत धावत।
06068029c इत्यासीत्तुमुलः शब्दो युयुधानरथं प्रति।।
ऎल्लॆल्लो ओडिहोगुत्तिद्द युयुधानन रथवन्नु हिडियुवुदर कुरितु अल्लि महा तुमुल शब्धवुंटायितु.
06068030a एतस्मिन्नेव काले तु भीष्मः शांतनवः पुनः।
06068030c व्यहनत्पांडवीं सेनामासुरीमिव वृत्रहा।।
इदे समयदल्लि पुनः भीष्म शांतनवनु वृत्रहनु असुरी सेनॆयन्नु हेगो हागॆ नाशगॊळिसिदनु.
06068031a ते वध्यमाना भीष्मेण पांचालाः सोमकैः सह।
06068031c आर्यां युद्धे मतिं कृत्वा भीष्ममेवाभिदुद्रुवुः।।
भीष्मनिंद वधिसल्पडुत्तिद्दरू पांचाल-सोमकरु ऒट्टिगे भीष्मनन्नु ऎदुरिसि युद्ध माडुव दृढ निश्चयवन्नु माडि होराडिदरु.
06068032a धृष्टद्युम्नमुखाश्चापि पार्थाः शांतनवं रणे।
06068032c अभ्यधावं जिगीषंतस्तव पुत्रस्य वाहिनीं।।
धृष्टद्युम्नने मॊदलाद पार्थरु निन्न पुत्रन सेनॆयन्नु गॆल्ललु बयसि रणदल्लि शांतनवनन्नु ऎदुरिसिदरु.
06068033a तथैव तावका राजन्भीष्मद्रोणमुखाः परान्।
06068033c अभ्यधावंत वेगेन ततो युद्धमवर्तत।।
राजन्! हागॆयॆ निन्नवर भीष्म-द्रोणप्रमुखरु वेगदिंद शत्रुगळन्नु ऎदुरिसि युद्धवन्नु नडॆसिदरु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि पंचमदिवसयुद्धे अष्ठषष्ठितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि पंचमदिवसयुद्ध ऎन्नुव अरवत्तॆंटने अध्यायवु.