प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
भीष्म पर्व
भीष्मवध पर्व
अध्याय 66
सार
मिश्र युद्ध (1-22).
06066001 संजय उवाच।
06066001a अकरोत्तुमुलं युद्धं भीष्मः शांतनवस्तदा।
06066001c भीमसेनभयादिच्छन्पुत्रांस्तारयितुं तव।।
संजयनु हेळिदनु: “निन्न पुत्ररन्नु भीमसेनन भयदिंद पारुगॊळिसलु बयसि भीष्म शांतनवनु तुमुल युद्धवन्नु माडिदनु.
06066002a पूर्वाह्णे तन्महारौद्रं राज्ञां युद्धमवर्तत।
06066002c कुरूणां पांडवानां च मुख्यशूरविनाशनं।।
आ पूर्वाह्णदल्लि शूरमुख्यर विनाशकारक महारौद्र युद्धवु कुरु मत्तु पांडव राजर नडुवॆ नडॆयितु.
06066003a तस्मिन्नाकुलसंग्रामे वर्तमाने महाभये।
06066003c अभवत्तुमुलः शब्दः संस्पृशन्गगनं महत्।।
आ महाभयंकर मिश्र संग्रामवु नडॆयुत्तिरलु गगनवन्नु मुट्टुव महा तुमुल शब्धवु उंटायितु.
06066004a नदद्भिश्च महानागैर्हेषमाणैश्च वाजिभिः।
06066004c भेरीशंखनिनादैश्च तुमुलः समपद्यत।।
महा आनॆगळ घीळु, कुदुरॆगळ हेषावर, भेरि-शंखगळ नादद तुमुल शब्धवु उंटायितु.
06066005a युयुत्सवस्ते विक्रांता विजयाय महाबलाः।
06066005c अन्योन्यमभिगर्जंतो गोष्ठेष्विव महर्षभाः।।
विजयक्कागि विक्रांतरागि युद्धमाडुत्तिद्द महाबल महर्षभरु कॊट्टिगॆयल्लि गूळिगळंतॆ अन्योन्यर मेलॆ गर्जिसुत्तिद्दरु.
06066006a शिरसां पात्यमानानां समरे निशितैः शरैः।
06066006c अश्मवृष्टिरिवाकाशे बभूव भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! समरदल्लि तलॆय मेलॆ बीळुत्तिद्द निशित बाणगळु आकाशदिंद बीळुव कल्लिन मळॆगळंतिद्दवु.
06066007a कुंडलोष्णीषधारीणि जातरूपोज्ज्वलानि च।
06066007c पतितानि स्म दृश्यंते शिरांसि भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! हॊळॆयुव बंगारद कुंडल-किरीटगळन्नु धरिसिद्द शिरगळु बीळुत्तिरुवुदु काणुत्तित्तु.
06066008a विशिखोन्मथितैर्गात्रैर्बाहुभिश्च सकार्मुकैः।
06066008c सहस्ताभरणैश्चान्यैरभवच्चादिता मही।।
विशिखगळिंद कत्तरिसल्पट्ट देहगळु, बाहुगळु, कार्मुकगळु, आभरणगळॊंदिगॆ कैगळु इवुगळिंद भूमियु मुच्चि होयितु.
06066009a कवचोपहितैर्गात्रैर्हस्तैश्च समलंकृतैः।
06066009c मुखैश्च चंद्रसंकाशै रक्तांतनयनैः शुभैः।।
06066010a गजवाजिमनुष्याणां सर्वगात्रैश्च भूपते।
06066010c आसीत्सर्वा समाकीर्णा मुहूर्तेन वसुंधरा।।
भूपते! मुहूर्तदल्लि वसुंधरॆय मेलॆ कवचगळु अप्पिरुव देहगळु, समलंकृत कैगळु, चंद्रसंकाश मुखगळु, रक्तांत शुभ नयनगळु, गज-वाजि-मनुष्यरॆल्लर देहगळु ऎल्ल कडॆ हरडि होगित्तु.
06066011a रजोमेघैश्च तुमुलैः शस्त्रविद्युत्प्रकाशितैः।
06066011c आयुधानां च निर्घोषः स्तनयित्नुसमोऽभवत्।।
धूळु मोडगळंतॆयू तुमुल शस्त्रगळु मिंचिनंतॆयू प्रकाशिसिदवु. आयुधगळ निर्घोषवु गुडुगिनंतॆ केळिदवु.
06066012a स संप्रहारस्तुमुलः कटुकः शोणितोदकः।
06066012c प्रावर्तत कुरूणां च पांडवानां च भारत।।
भारत! कुरुगळ मत्तु पांडवर आ कटुक संप्रहार तुमुलवु रक्तवे नीरागिरुव नदियन्ने हरिसितु.
06066013a तस्मिन्महाभये घोरे तुमुले लोमहर्षणे।
06066013c ववर्षुः शरवर्षाणि क्षत्रिया युद्धदुर्मदाः।।
आ महाभयंकर लोमहर्षण घोर तुमुलदल्लि युद्धदुर्मद क्षत्रियरु शरगळ मळॆयन्ने सुरिसिदरु.
06066014a क्रोशंति कुंजरास्तत्र शरवर्षप्रतापिताः।
06066014c तावकानां परेषां च संयुगे भरतोत्तम।
भरतोत्तम! संयुगदल्लि शरवर्षदिंद पीडितराद निन्न मत्तु अवर कडॆय आनॆगळु चीरिकॊळ्ळुत्तिद्दवु.
06066014e अश्वाश्च पर्यधावंत हतारोहा दिशो दश।।
06066015a उत्पत्य निपतंत्यन्ये शरघातप्रपीडिताः।
आरोहिगळन्नु कळॆदुकॊंड शरघात पीडित कुदुरॆगळु हत्तू दिक्कुगळल्लि ओडि, हारि, इन्नु कॆलवु बीळुत्तिद्दवु.
06066015c तावकानां परेषां च योधानां भरतर्षभ।।
06066016a अश्वानां कुंजराणां च रथानां चातिवर्ततां।
06066016c संघाताः स्म प्रदृश्यंते तत्र तत्र विशां पते।।
भरतर्षभ! विशांपते! अल्लल्लि पलायन माडुत्तिद्द अथवा हॊडॆदु बिद्दिद्द निन्न मत्तु अवर कडॆय योधरु, कुदुरॆगळु, आनॆगळु, रथगळु कंडुबंदवु.
06066017a गदाभिरसिभिः प्रासैर्बाणैश्च नतपर्वभिः।
06066017c जघ्नुः परस्परं तत्र क्षत्रियाः कालचोदिताः।।
कालचोदित क्षत्रियरु अल्लि गदॆ, खड्ग, प्रास, नतपर्व बाणगळिंद परस्पररन्नु कॊंदरु.
06066018a अपरे बाहुभिर्वीरा नियुद्धकुशला युधि।
06066018c बहुधा समसज्जंत आयसैः परिघैरिव।।
इन्नु कॆलवु युद्ध कुशल वीररु युद्धदल्लि उक्किन परिघगळंतिरुव बाहुगळिंदले हलवरन्नु जज्जि हाकिदरु.
06066019a मुष्टिभिर्जानुभिश्चैव तलैश्चैव विशां पते।
06066019c अन्योन्यं जघ्निरे वीरास्तावकाः पांडवैः सह।।
विशांपते! निन्नवर मत्तु पांडवर वीररु मुष्टिगळिंद, ऒदॆगळिंद, हॊडॆतदिंद अन्योन्यरन्नु संहरिसिदरु.
06066020a विरथा रथिनश्चात्र निस्त्रिंशवरधारिणः।
06066020c अन्योन्यमभिधावंत परस्परवधैषिणः।।
अल्लि विरथरू मत्तु रथिगळू श्रेष्ठ खड्गगळन्नु हिडिदु परस्पररन्नु द्वेषिसि अन्योन्यरन्नु हॊडॆयत्तिद्दरु.
06066021a ततो दुर्योधनो राजा कलिंगैर्बहुभिर्वृतः।
06066021c पुरस्कृत्य रणे भीष्मं पांडवानभ्यवर्तत।।
आग राजा दुर्योधननु अनेक कलिंगरिंद आवृतनागि रणदल्लि भीष्मनन्नु मुंदिरिसिकॊंडु पांडवर मेलॆ ऎरगिदनु.
06066022a तथैव पांडवाः सर्वे परिवार्य वृकोदरं।
06066022c भीष्ममभ्यद्रवन्क्रुद्धा रणे रभसवाहनाः।।
हागॆये पांडवरॆल्लरू वृकोदरनन्नु सुत्तुवरॆदु रभस वाहनरागि क्रुद्धरागि भीष्मनन्नु ऎदुरिसिदरु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि संकुलयुद्धे षट्षष्ठितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि संकुलयुद्ध ऎन्नुव अरवत्तारने अध्यायवु.