प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
भीष्म पर्व
भीष्मवध पर्व
अध्याय 48
सार
युद्धारंभ (1-6). भीष्मार्जुनर युद्ध (7-70).
06048001 धृतराष्ट्र उवाच।
06048001a एवं व्यूढेष्वनीकेषु मामकेष्वितरेषु च।
06048001c कथं प्रहरतां श्रेष्ठाः संप्रहारं प्रचक्रिरे।।
धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “ई रीति सेनॆगळ व्यूहगळन्नु रचिसि श्रेष्ठराद नन्नवरू इतररू हेगॆ प्रहर मत्तु संप्रहारगळल्लि तॊडगिदरु?”
06048002 संजय उवाच।
06048002a समं व्यूढेष्वनीकेषु सन्नद्धा रुचिरध्वजाः।
06048002c अपारमिव संदृश्य सागरप्रतिमं बलं।।
संजयनु हेळिदनु: “सेनॆगळ व्यूहगळन्नु समनागि रचिसि सुंदर ध्वजगळिंद सन्नद्धवागिद्द आ अपारसेनॆयु सागरदंतॆ बलशालियागि तोरितु.
06048003a तेषां मध्ये स्थितो राजा पुत्रो दुर्योधनस्तव।
06048003c अब्रवीत्तावकान्सर्वान्युध्यध्वमिति दंशिताः।।
अवर मध्यॆ निंतिद्द निन्न पुत्र राजा दुर्योधननु निन्नवरॆल्लरिगॆ “कवचधारिगळे! युद्धमाडि!” ऎंदु हेळिदनु.
06048004a ते मनः क्रूरमास्थाय समभित्यक्तजीविताः।
06048004c पांडवानभ्यवर्तंत सर्व एवोच्छ्रितध्वजाः।।
मेलॆ ध्वजगळु हाराडुत्तिरलु अवरु ऎल्लरू मनस्सन्नु क्रूरवागिसिकॊंडु, जीववन्नु तॊरॆदु पांडवर मेलॆ आक्रमण माडिदरु.
06048005a ततो युद्धं समभवत्तुमुलं लोमहर्षणं।
06048005c तावकानां परेषां च व्यतिषक्तरथद्विपं।।
आग निन्नवर मत्तु शत्रुगळ नडुवॆ रथ-गज-अश्व-पदातिगळ लोमहर्षण तुमुल युद्धवु नडॆयितु.
06048006a मुक्तास्तु रथिभिर्बाणा रुक्मपुंखाः सुतेजनाः।
06048006c सन्निपेतुरकुंठाग्रा नागेषु च हयेषु च।।
रथिगळु बिट्ट सुतेजन हरित रुक्मपुंख बाणगळु आनॆ-कुदुरॆगळ मेलॆ बीळुत्तिद्दवु.
06048007a तथा प्रवृत्ते संग्रामे धनुरुद्यम्य दंशितः।
06048007c अभिपत्य महाबाहुर्भीष्मो भीमपराक्रमः।।
हीगॆ संग्रामवु प्रारंभवागलु धनुस्सन्नु ऎत्तिकॊंडु, कवचगळन्नु धरिसि महाबाहु भीमपराक्रमि भीष्मनु आक्रमण माडिदनु.
06048008a सौभद्रे भीमसेने च शैनेये च महारथे।
06048008c केकये च विराटे च धृष्टद्युम्ने च पार्षते।।
06048009a एतेषु नरवीरेषु चेदिमत्स्येषु चाभितः।
06048009c ववर्ष शरवर्षाणि वृद्धः कुरुपितामहः।।
कुरुपितामह वृद्धनु नरवीरराद सौभद्र, भीमसेन, महारथ शैन, केकय, विराट, पार्षत धृष्टद्युम्न मत्तु चेदि-मत्स्यर मेलॆ शरवर्षगळन्नु सुरिसि हॊडॆदनु.
06048010a प्राकंपत महाव्यूहस्तस्मिन्वीरसमागमे।
06048010c सर्वेषामेव सैन्यानामासीद्व्यतिकरो महान्।।
आ वीरसमागमदल्लि महाव्यूहवु कंपिसितु. ऎल्ल सेनॆगळल्लियू महा अस्तव्यस्तवायितु.
06048011a सादितध्वजनागाश्च हतप्रवरवाजिनः।
06048011c विप्रयातरथानीकाः समपद्यंत पांडवाः।।
अश्वयोधरु, ध्वजवुळ्ळवरु, आनॆगळु मत्तु रथिकरु अपार संख्यॆयल्लि मरणवन्निप्पिदरु. पांडवर रथसैन्यवु दिक्कापालागि ओडि होयितु.
06048012a अर्जुनस्तु नरव्याघ्रो दृष्ट्वा भीष्मं महारथं।
06048012c वार्ष्णेयमब्रवीत्क्रुद्धो याहि यत्र पितामहः।।
नरव्याघ्र अर्जुननादरो महारथ भीष्मनन्नु नोडि क्रुद्धनागि वार्ष्णेयनिगॆ हेळिदनु: “पितामहनिरुवल्लिगॆ कॊंडॊय्यि!
06048013a एष भीष्मः सुसंक्रुद्धो वार्ष्णेय मम वाहिनीं।
06048013c नाशयिष्यति सुव्यक्तं दुर्योधनहिते रतः।।
वार्ष्णेय! दुर्योधनन हितरतनागि ई भीष्मनु संक्रुद्धनागि नन्न सेनॆयन्नु नाशगॊळिसुत्तिद्दानॆ ऎन्नुवुदु स्पष्टवागि काणुत्तिदॆ.
06048014a एष द्रोणः कृपः शल्यो विकर्णश्च जनार्दन।
06048014c धार्तराष्ट्राश्च सहिता दुर्योधनपुरोगमाः।।
06048015a पांचालान्निहनिष्यंति रक्षिता दृढधन्वना।
06048015c सोऽहं भीष्मं गमिष्यामि सैन्यहेतोर्जनार्दन।।
जनार्दन! ई दृढधन्वियिंद रक्षितरागि द्रोण, कृप, शल्य मत्तु विकर्णरु दुर्योधनन नायकत्वदल्लि धार्तराष्ट्रर सहित पांचालरन्नु नाशमाडिबिडुत्तारॆ. जनार्दन! नन्न सेनॆगोस्कर नानु भीष्मन हत्तिर होगुत्तेनॆ.”
06048016a तमब्रवीद्वासुदेवो यत्तो भव धनंजय।
06048016c एष त्वा प्रापये वीर पितामहरथं प्रति।।
अवनिगॆ वासुदेवनु हेळिदनु: “धनंजय! प्रयत्निसुववनागु! वीर! पितामहन रथद बळि इगो निन्नन्नु तलुपिसुत्तेनॆ.”
06048017a एवमुक्त्वा ततः शौरी रथं तं लोकविश्रुतं।
06048017c प्रापयामास भीष्माय रथं प्रति जनेश्वर।।
जनेश्वर! हीगॆ हेळि शौरियु आ लोकविश्रुत रथवन्नु भीष्मन रथद बळि कॊंडॊय्दनु.
06048018a चंचद्बहुपताकेन बलाकावर्णवाजिना।
06048018c समुच्छ्रितमहाभीमनदद्वानरकेतुना।
06048018e महता मेघनादेन रथेनादित्यवर्चसा।।
अनेक पताकॆगळु हाराडुत्तिद्द, बॆळ्ळक्किय चुक्कॆगळंतॆ अप्पट बिळिय कुदुरॆगळन्नु कट्टिद्द, महाभयंकरवागि घर्जनॆ माडुत्तिद्द वानरनन्नु ध्वजदल्लिरिसिद्द आ आदित्यवर्चस रथवु महा मेघनाददिंद कूडित्तु.
06048019a विनिघ्नन्कौरवानीकं शूरसेनांश्च पांडवः।
06048019c आयाच्चरान्नुदं शीघ्रं सुहृच्छोषविनाशनः।।
06048020a तमापतंतं वेगेन प्रभिन्नमिव वारणं।
06048020c त्रासयानं रणे शूरान्पातयंतं च सायकैः।।
06048021a सैंधवप्रमुखैर्गुप्तः प्राच्यसौवीरकेकयैः।
06048021c सहसा प्रत्युदीयाय भीष्मः शांतनवोऽर्जुनं।।
बरुवाग कौरव शूरसेनॆयन्नु संहरिसुत्ता, शीघ्रवाद बाणगळन्नु बिडुत्त, सुहृदयर शोकवन्नु नाशपडिसुव पांडव अर्जुननु मदोदकवन्नु सुरिसुव आनॆयंतॆ महा वेगदिंद मेलॆ बीळुत्ता रणदल्लि शूररन्नु सायकगळिंद गायगॊळिसि बीळिसुत्ता, सैंधवप्रमुखराद प्राच्य-सौवीर-केकयरु रक्षिसुत्तिद्द भीष्म शांतनवन मेलॆ जोरागि आक्रमण माडिदनु.
06048022a को हि गांडीवधन्वानमन्यः कुरुपितामहात्।
06048022c द्रोणवैकर्तनाभ्यां वा रथः संयातुमर्हति।।
कुरुपितामह, द्रोण मत्तु वैकर्तननन्नु बिट्टरॆ बेरॆ यारुताने गांडीवधन्वि अर्जुननन्नु तडॆहिडियबल्लरु?
06048023a ततो भीष्मो महाराज कौरवाणां पितामहः।
06048023c अर्जुनं सप्तसप्तत्या नाराचानां समावृणोत्।।
आग महाराज! कौरवर पितामह भीष्मनु अर्जुननन्नु ऎप्पत्तेळु नाराचगळिंद प्रहरिसिदनु.
06048024a द्रोणश्च पंचविंशत्या कृपः पंचाशता शरैः।
06048024c दुर्योधनश्चतुःषष्ट्या शल्यश्च नवभिः शरैः।।
06048025a सैंधवो नवभिश्चापि शकुनिश्चापि पंचभिः।
06048025c विकर्णो दशभिर्भल्लै राजन्विव्याध पांडवं।।
राजन्! द्रोणनु इप्पत्तैदु बाणगळिंदलू, कृपनु ऐवत्तु बाणगळिंदलू, दुर्योधननु अरवत्नाल्कु बाणगळिंदलू, शल्यनु ऒंभत्तु बाणगळिंदलू, सैंधवनु ऒंभत्तरिंदलू, शकुनियु ऐदरिंदलू, विकर्णनु हत्तु भल्लगळिंदलू पांडवनन्नु हॊडॆदरु.
06048026a स तैर्विद्धो महेष्वासः समंतान्निशितैः शरैः।
06048026c न विव्यथे महाबाहुर्भिद्यमान इवाचलः।।
अवर निशित शरगळिंद ऎल्ल कडॆ हॊडॆयल्पट्टरू बाणद एटिगॊळगाद पर्वतदंतॆ आ महेष्वास महाबाहुवु व्यथितनागलिल्ल.
06048027a स भीष्मं पंचविंशत्या कृपं च नवभिः शरैः।
06048027c द्रोणं षष्ट्या नरव्याघ्रो विकर्णं च त्रिभिः शरैः।।
06048028a आर्तायनिं त्रिभिर्बाणै राजानं चापि पंचभिः।
06048028c प्रत्यविध्यदमेयात्मा किरीटी भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! आग आ नरव्याघ्र अमेयात्म किरीटियु भीष्मनन्नु इप्पत्तैदु बाणगळिंदलू, कृपनन्नु ऒंभत्तु बाणगळिंदलू, द्रोणनन्नु आररिंदलू, विकर्णनन्नु मूरु बाणगळिंदलू, शल्यनन्नु मूरु बाणगळिंदलू राजा दुर्योधननन्नु ऐदरिंदलू मरळि हॊडॆदनु.
06048029a तं सात्यकिर्विराटश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
06048029c द्रौपदेयाभिमन्युश्च परिवव्रुर्धनंजयं।।
धनंजयनन्नु सात्यकि, विराट, धृष्टद्युम्न पार्षत, द्रौपदेयरु मत्तु अभिमन्युवु सुत्तुवरॆदरु.
06048030a ततो द्रोणं महेष्वासं गांगेयस्य प्रिये रतं।
06048030c अभ्यवर्षत पांचाल्यः संयुक्तः सह सोमकैः।।
आग सोमकरॊंदिगॆ कूडि पांचाल्यनु गांगेयन प्रियरत, महेष्वास द्रोणनन्नु आक्रमणिसिदनु.
06048031a भीष्मस्तु रथिनां श्रेष्ठस्तूर्णं विव्याध पांडवं।
06048031c अशीत्या निशितैर्बाणैस्ततोऽक्रोशंत तावकाः।।
रथिगळल्लि श्रेष्ठ भीष्मनादरो पांडवनन्नु लोहद निशित बाणगळिंद वेगवागि हॊडॆयलु निन्नवरु आक्रोशमाडिदरु.
06048032a तेषां तु निनदं श्रुत्वा प्रहृष्टानां प्रहृष्टवत्।
06048032c प्रविवेश ततो मध्यं रथसिंहः प्रतापवान्।।
प्रहृष्टराद अवर आ संतोषद कूगन्नु केळि प्रतापवान् रथसिंहनु अवर मध्यॆ प्रवेशिसिदनु.
06048033a तेषां तु रथसिंहानां मध्यं प्राप्य धनंजयः।
06048033c चिक्रीड धनुषा राजऽल्लक्ष्यं कृत्वा महारथान्।।
राजन्! आ रथसिंहर मध्यॆ प्रवेशिसिद धनंजयनु महारथरन्नु गुरियागिट्टुकॊंडु धनुस्सिनॊंदिगॆ आटवाडतॊडगिदनु.
06048034a ततो दुर्योधनो राजा भीष्ममाह जनेश्वरः।
06048034c पीड्यमानं स्वकं सैन्यं दृष्ट्वा पार्थेन संयुगे।।
आग राजा जनेश्वर दुर्योधननु संयुगदल्लि पार्थनु तन्न सेनॆयन्नु पीडिसुवुदन्नु नोडि भीष्मनिगॆ हेळिदनु:
06048035a एष पांडुसुतस्तात कृष्णेन सहितो बली।
06048035c यततां सर्वसैन्यानां मूलं नः परिकृंतति।
06048035e त्वयि जीवति गांगेये द्रोणे च रथिनां वरे।।
“अय्या! ई बली पांडुसुतनु कृष्णन सहित, गांगेय! नीनु मत्तु रथिगळल्लि श्रेष्ठ द्रोणनु जीवंतविरुवागले प्रयत्निसुत्तिरुव सर्वसेनॆगळन्नु बुडसहित कित्तॊगॆयुत्तिद्दानल्ल!
06048036a त्वत्कृते ह्येष कर्णोऽपि न्यस्तशस्त्रो महारथः।
06048036c न युध्यति रणे पार्थं हितकामः सदा मम।।
निन्निंदागि महारथ कर्णनू कूड शस्त्रवन्नु कॆळगिट्टिद्दानॆ. आदुदरिंदले सदा नन्न हितवन्ने बयसुव अवनु रणदल्लि पार्थनॊंदिगॆ युद्धमाडुत्तिल्ल!
06048037a स तथा कुरु गांगेय यथा हन्येत फल्गुनः।
06048037c एवमुक्तस्ततो राजन्पिता देवव्रतस्तव।
06048037e धिक् क्षत्रधर्ममित्युक्त्वा ययौ पार्थरथं प्रति।।
गांगेय! फल्गुननन्नु कॊल्लुवंतहुदन्नु माडु!” अवनु हीगॆ हेळलु राजन्! निन्न पित देवव्रतनु “क्षत्रधर्मक्कॆ धिक्कार!” ऎंदु हेळि पार्थन रथद बळि नडॆदनु.
06048038a उभौ श्वेतहयौ राजन्संसक्तौ दृश्य पार्थिवाः।
06048038c सिंहनादान्भृशं चक्रुः शंखशब्दांश्च भारत।।
राजन्! भारत! इब्बरू श्वेतहयरू संघर्षणॆगॆ सिद्धरागिरुवुदन्नु नोडि पार्थिवरु जोरागि सिंहनादगैदरु मत्तु शंखगळ शब्धगळन्नु माडिदरु.
06048039a द्रौणिर्दुर्योधनश्चैव विकर्णश्च तवात्मजः।
06048039c परिवार्य रणे भीष्मं स्थिता युद्धाय मारिष।।
मारिष! द्रौणि, दुर्योधन मत्तु निन्न मग विकर्णनु रणदल्लि भीष्मनन्नु सुत्तुवरॆदु युद्धक्कॆ निंतरु.
06048040a तथैव पांडवाः सर्वे परिवार्य धनंजयं।
06048040c स्थिता युद्धाय महते ततो युद्धमवर्तत।।
हागॆये पांडवरॆल्लरू धनंजयनन्नु सुत्तुवरॆदु युद्धक्कॆ निंतरु. आग महायुद्धवु नडॆयितु.
06048041a गांगेयस्तु रणे पार्थमानर्चन्नवभिः शरैः।
06048041c तमर्जुनः प्रत्यविध्यद्दशभिर्मर्मवेधिभिः।।
रणदल्लि गांगेयनादरो पार्थनन्नु ऒंभत्तु शरगळिंद हॊडॆदनु. अवनन्नु अर्जुननु हत्तु मर्मवेधिगळिंद तिरुगि हॊडॆदनु.
06048042a ततः शरसहस्रेण सुप्रयुक्तेन पांडवः।
06048042c अर्जुनः समरश्लाघी भीष्मस्यावारयद्दिशः।।
आग समरश्लाघी पांडव अर्जुननु चॆन्नागि गुरियिट्ट सहस्र बाणगळिंद भीष्मनन्नु ऎल्ल कडॆगळिंदलू मुच्चिबिट्टनु.
06048043a शरजालं ततस्तत्तु शरजालेन कौरव।
06048043c वारयामास पार्थस्य भीष्मः शांतनवस्तथा।।
आग कौरव! पार्थन आ शरजालवन्नु भीष्म शांतनवनु शरजालदिंदले तडॆदनु.
06048044a उभौ परमसंहृष्टावुभौ युद्धाभिनंदिनौ।
06048044c निर्विशेषमयुध्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ।।
इब्बरू परम संहृष्टरागिद्दरु. इब्बरू युद्धदल्लि परस्पररन्नु श्लाघिसुत्तिद्दरु. ऒब्बरु प्रहरिसिदरॆ इन्नॊब्बरु अदक्कॆ प्रतियागि प्रहरिसुत्तिद्दरु. अवरिब्बर युद्धदल्लि व्यत्यासवे काणलिल्ल.
06048045a भीष्मचापविमुक्तानि शरजालानि संघशः।
06048045c शीर्यमाणान्यदृश्यंत भिन्नान्यर्जुनसायकैः।।
भीष्मन चापदिंद प्रयोगिसल्पट्ट गुंपु गुंपाद शरजालगळु अर्जुनन सायकगळिंद चूरु चूरागि कॆळगॆ बीळुवुदु काणुत्तित्तु.
06048046a तथैवार्जुनमुक्तानि शरजालानि भागशः।
06048046c गांगेयशरनुन्नानि न्यपतंत महीतले।।
हागॆये अर्जुननु बिट्ट शरजालगळु गांगेयन शरगळिंद तुंडागि नॆलद मेलॆ बीळुत्तिद्दवु.
06048047a अर्जुनः पंचविंशत्या भीष्ममार्च्छच्चितैः शरैः।
06048047c भीष्मोऽपि समरे पार्थं विव्याध त्रिंशता शरैः।।
अर्जुननु इप्पत्तैदु निशित बाणगळिंद भीष्मनन्नु चुच्चिदनु. समरदल्लि भीष्मनू कूड पार्थनन्नु मूवत्तु बाणगळिंद हॊडॆदनु.
06048048a अन्योन्यस्य हयान्विद्ध्वा ध्वजौ च सुमहाबलौ।
06048048c रथेषां रथचक्रे च चिक्रीडतुररिंदमौ।।
आ इब्बरु सुमहाबल अरिंदमरु अन्योन्यर कुदुरॆगळन्नू रथगळ ईषादंडगळन्नू, रथचक्रगळन्नू हॊडॆदु आटवाडुत्तिद्दरु.
06048049a ततः क्रुद्धो महाराज भीष्मः प्रहरतां वरः।
06048049c वासुदेवं त्रिभिर्बाणैराजघान स्तनांतरे।।
महाराज! आग प्रहरिगळल्लि श्रेष्ठ भीष्मनु क्रुद्धनागि वासुदेवन ऎदॆगॆ मूरु बाणगळिंद हॊडॆदनु.
06048050a भीष्मचापच्युतैर्बाणैर्निर्विद्धो मधुसूदनः।
06048050c विरराज रणे राजन्सपुष्प इव किंशुकः।।
राजन्! भीष्मन चापदिंद हॊरट बाणगळु तागिद मधुसूदननु रणदल्लि हूबिट्ट किंशुकदंतॆ राराजिसिदनु.
06048051a ततोऽर्जुनो भृशं क्रुद्धो निर्विद्धं प्रेक्ष्य माधवं।
06048051c गांगेयसारथिं संख्ये निर्बिभेद त्रिभिः शरैः।।
आग पॆट्टुतिंद माधवनन्नु नोडि क्रुद्धनाद अर्जुननु तुंबा क्रुद्धनागि युद्धदल्लि गांगेयन सारथियन्नु मूरु शरगळिंद हॊडॆदनु.
06048052a यतमानौ तु तौ वीरावन्योन्यस्य वधं प्रति।
06048052c नाशक्नुतां तदान्योन्यमभिसंधातुमाहवे।।
आ वीररिब्बरू अन्योन्यरन्नु वधिसलु प्रयुत्न माडुत्तिद्दरू युद्धदल्लि अन्योन्यरन्नु मीरलु शक्यरागलिल्ल.
06048053a मंडलानि विचित्राणि गतप्रत्यागतानि च।
06048053c अदर्शयेतां बहुधा सूतसामर्थ्यलाघवात्।।
मंडलाकारवागि, विचित्रवागि, मुंदॆ मत्तु हिंदॆ चलिसुवुदु मॊदलाद सामर्थ्य लाघवगळन्नु सारथिगळु तोरिसिकॊडुत्तिद्दरु.
06048054a अंतरं च प्रहारेषु तर्कयंतौ महारथौ।
06048054c राजन्नंतरमार्गस्थौ स्थितावास्तां मुहुर्मुहुः।।
राजन्! प्रहारगळ मध्यदल्लि इब्बरु महारथरू तर्किसुत्तिद्दरु. पुनः पुनः मध्यमार्गवन्नु हिडिदु युद्धमाडुत्तिद्दरु.
06048055a उभौ सिंहरवोन्मिश्रं शंखशब्दं प्रचक्रतुः।
06048055c तथैव चापनिर्घोषं चक्रतुस्तौ महारथौ।।
इब्बरू सिंहनाद मिश्रित शंखध्वनियन्नु माडुत्तिद्दरु. हागॆये इब्बरु महारथरू धनुष्टेंकारवन्नू माडुत्तिद्दरु.
06048056a तयोः शंखप्रणादेन रथनेमिस्वनेन च।
06048056c दारिता सहसा भूमिश्चकंप च ननाद च।।
अवर शंखप्रणाददिंद मत्तु रथचक्रगळ शब्धदिंद भूमियु सीळि, नडुगि महाशब्धवुंटायितु.
06048057a न तयोरंतरं कश्चिद्ददृशे भरतर्षभ।
06048057c बलिनौ समरे शूरावन्योन्यसदृशावुभौ।।
भरतर्षभ! अवरिब्बरल्लि यावुदे अंतरवु काणलिल्ल. समरदल्लि आ बलि शूररिब्बरू अन्योन्यरंतॆये इद्दरु.
06048058a चिह्नमात्रेण भीष्मं तु प्रजज्ञुस्तत्र कौरवाः।
06048058c तथा पांडुसुताः पार्थं चिह्नमात्रेण जज्ञिरे।।
कौरवरु ध्वजचिह्नॆयिंद मात्र भीष्मनन्नु गुरुतिसुत्तिद्दरु. हागॆये पांडुसुतरु पार्थनन्नु केवल ध्वजचिह्नॆयिंद गुरुतिसुत्तिद्दरु.
06048059a तयोर्नृवरयो राजन्दृश्य तादृक्पराक्रमं।
06048059c विस्मयं सर्वभूतानि जग्मुर्भारत संयुगे।।
राजन्! भारत! संयुगदल्लि आ नरश्रेष्ठर अंथह पराक्रमवन्नु नोडि सर्वभूतगळू विस्मयगॊंडवु.
06048060a न तयोर्विवरं कश्चिद्रणे पश्यति भारत।
06048060c धर्मे स्थितस्य हि यथा न कश्चिद्वृजिनं क्व चित्।।
भारत! हेगॆ धर्मदल्लि स्थितनागिरुववनल्लि यावुदे रीतिय न्यूनतॆगळु कंडुबरुवुदिल्लवो हागॆ अवरिब्बरल्लि यावुदे रीतिय कुंदुगळु काणुत्तिरलिल्ल.
06048061a उभौ हि शरजालेन तावदृश्यौ बभूवतुः।
06048061c प्रकाशौ च पुनस्तूर्णं बभूवतुरुभौ रणे।।
इब्बरू बाणगळ बलॆगळिंद मुच्चिहोगिरुवुदु काणुत्तित्तु. पुनः तक्षणवे इब्बरू रणदल्लि प्रकाशमानरागिरुत्तिद्दरु.
06048062a तत्र देवाः सगंधर्वाश्चारणाश्च सहर्षिभिः।
06048062c अन्योन्यं प्रत्यभाषंत तयोर्दृष्ट्वा पराक्रमं।।
अल्लि अवर पराक्रमवन्नु कंडु देवतॆगळु, गंधर्व-चारण-ऋषिगळॊंदिगॆ अन्योन्यरल्लि मातनाडिकॊळ्ळुत्तिद्दरु.
06048063a न शक्यौ युधि संरब्धौ जेतुमेतौ महारथौ।
06048063c सदेवासुरगंधर्वैर्लोकैरपि कथं चन।।
“युद्धदल्लि मग्नरागिरुव ई इब्बरु महारथरन्नु गॆल्ललु देवासुरगंधर्वरिंदलू लोकगळिंदलू ऎंदू साध्यविल्ल.
06048064a आश्चर्यभूतं लोकेषु युद्धमेतन्महाद्भुतं।
06048064c नैतादृशानि युद्धानि भविष्यंति कथं चन।।
महाद्भुतवाद ई युद्धवु लोकगळल्लि आश्चर्यवन्नुंटुमाडुत्तिदॆ. हीगॆ काणुव युद्धवु मुंदॆ ऎंदू नडॆयलिक्किल्ल.
06048065a नापि शक्यो रणे जेतुं भीष्मः पार्थेन धीमता।
06048065c सधनुश्च रथस्थश्च प्रवपन् सायकान्रणे।।
धनुस्सु रथगळॊंदिगॆ रणदल्लि सायकगळन्नु बित्तुत्तिरुव भीष्मनन्नु धीमत पार्थनु गॆल्ललार.
06048066a तथैव पांडवं युद्धे देवैरपि दुरासदं।
06048066c न विजेतुं रणे भीष्म उत्सहेत धनुर्धरं।।
हागॆये युद्धदल्लि देवतॆगळिगू दुरासदनाद धनुर्धर पांडवनन्नु रणदल्लि गॆल्ललु भीष्मनिगू साध्यविल्ल.”
06048067a इति स्म वाचः श्रूयंते प्रोच्चरंत्यस्ततस्ततः।
06048067c गांगेयार्जुनयोः संख्ये स्तवयुक्ता विशां पते।।
विशांपते! गांगेय-अर्जुनर युद्धवन्नु प्रशंसिसुव ई मातुगळु ऎल्ल कडॆयिंदलू केळि बरुत्तिद्दवु.
06048068a त्वदीयास्तु ततो योधाः पांडवेयाश्च भारत।
06048068c अन्योन्यं समरे जघ्नुस्तयोस्तत्र पराक्रमे।।
भारत! आग निन्न मत्तु पांडवेयर योधरु समरदल्लि पराक्रमदिंद अन्योन्यरन्नु संहरिसिदरु.
06048069a शितधारैस्तथा खड्गैर्विमलैश्च परश्वधैः।
06048069c शरैरन्यैश्च बहुभिः शस्त्रैर्नानाविधैर्युधि।
06048069e उभयोः सेनयोर्वीरा न्यकृंतंत परस्परं।।
हरित अलगिन खड्गगळिंद, फळ-फळिसुव परशुगळिंद, शरगळिंद, नानाविधद अनेक शस्त्रगळिंद ऎरडू सेनॆगळ वीररु परस्पररन्नु युद्धदल्लि कडिदुरुळिसुत्तिद्दरु.
06048070a वर्तमाने तथा घोरे तस्मिन्युद्धे सुदारुणे।
06048070c द्रोणपांचाल्ययो राजन्महानासीत्समागमः।।
राजन्! हीगॆ सुदारुणवाद घोर युद्धवु नडॆयुत्तिरलु द्रोण मत्तु पांचाल्यन नडुवॆ महा द्वंद्वयुद्धवु नडॆयितु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते भीष्म पर्वणि भीष्मवध पर्वणि भीष्मार्जुनयुद्धे अष्ठचत्वारिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि भीष्म पर्वदल्लि भीष्मवध पर्वदल्लि भीष्मार्जुनयुद्ध ऎन्नुव नल्वत्तॆंटने अध्यायवु.