176 रामांबासंवादः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

उद्योग पर्व

अंबोऽपाख्यान पर्व

अध्याय 176

सार

अकृतव्रण अंबॆयरु चर्चॆमाडि भीष्मनन्ने शिक्षिसबेकॆंदु निर्धरिसिदुदु (1-14). मरुदिन बॆळिग्गॆ आगमिसिद परशुरामनल्लि अंबॆय कष्टगळन्नु निवेदिसिदुदु (15-42).

05176001 अकृतव्रण उवाच।
05176001a दुःखद्वयमिदं भद्रे कतरस्य चिकीर्षसि।
05176001c प्रतिकर्तव्यमबले तत्त्वं वत्से ब्रवीहि मे।।

अकृतव्रणनु हेळिदनु: “भद्रे! इल्लि ऎरडु दुःखगळिवॆ. यावुदन्नु होगलाडिसलु बयसुवॆ? यावुदर प्रतीकारवन्नु बयसुत्तीयॆ? सत्यवन्नु ननगॆ हेळु वत्से!

05176002a यदि सौभपतिर्भद्रे नियोक्तव्यो मते तव।
05176002c नियोक्ष्यति महात्मा तं रामस्त्वद्धितकाम्यया।।

भद्रे! ऒंदुवेळॆ सौभपतियन्नु सेरबेकॆंदु निन्न मनस्सिद्दरॆ महात्म रामनु निनगोस्करवागि अवन मेलॆ निबंधनॆयन्नु हाकबल्लनु.

05176003a अथापगेयं भीष्मं तं रामेणेच्चसि धीमता।
05176003c रणे विनिर्जितं द्रष्टुं कुर्यात्तदपि भार्गवः।।

अथवा आपगेय भीष्मनन्नु रणदल्लि सोलुवुदन्नु नोडबेकॆंदु इच्छिसिदरॆ आ धीमत भार्गव रामनु अदन्नू माडबल्लनु.

05176004a सृंजयस्य वचः श्रुत्वा तव चैव शुचिस्मिते।
05176004c यदत्रानंतरं कार्यं तदद्यैव विचिंत्यतां।।

शुचिस्मिते! निन्न मत्तु सृंजयन मातन्नु केळि अनंतर यावुदन्नु माडबेकॆंदु योचिसोण.”

05176005 अंबोवाच।
05176005a अपनीतास्मि भीष्मेण भगवन्नविजानता।
05176005c न हि जानाति मे भीष्मो ब्रह्मं शाल्वगतं मनः।।

अंबॆयु हेळिदळु: “भगवन्! भीष्मनु तिळियदॆये नन्नन्नु अपहरिसिदनु. एकॆंदरॆ ब्रह्मन्! भीष्मनिगॆ नन्न मनस्सु शाल्वनिगॆ होगित्तॆंदु तिळिदिरलिल्ल.

05176006a एतद्विचार्य मनसा भवानेव विनिश्चयं।
05176006c विचिनोतु यथान्यायं विधानं क्रियतां तथा।।

ई विचारवन्नु मनस्सिनल्लिट्टुकॊंडु यथान्यायवाद उपायवन्नु नीवे निश्चयिसबेकु मत्तु अदरंतॆ माडबेकु.

05176007a भीष्मे वा कुरुशार्दूले शाल्वराजेऽथ वा पुनः।
05176007c उभयोरेव वा ब्रह्मन्यद्युक्तं तत्समाचर।।

ब्रह्मन्! कुरुशार्दूल भीष्म अथवा शाल्वराज इब्बरल्लि ऒब्बर मेलॆ अथवा इब्बर मेलू, यावुदु सरियो, अदन्नु माडु.

05176008a निवेदितं मया ह्येतद्दुःखमूलं यथातथं।
05176008c विधानं तत्र भगवन्कर्तुमर्हसि युक्तितः।।

भगवन्! नन्न दुःखद मूलवन्नु यथावत्तागि हेळिद्देनॆ. भगवन्! अदर कुरितु यावुदु सरियो अदन्नु माडबेकु.”

05176009 अकृतव्रण उवाच।
05176009a उपपन्नमिदं भद्रे यदेवं वरवर्णिनि।
05176009c धर्मं प्रति वचो ब्रूयाः शृणु चेदं वचो मम।।

अकृतव्रणनु हेळिदनु: “भद्रे! वरवर्णिनि! नीनु हेळिदुदॆल्लवू धर्मद प्रकारवे इवॆ. इन्नु नन्न मातन्नू केळु.

05176010a यदि त्वामापगेयो वै न नयेद्गजसाह्वयं।
05176010c शाल्वस्त्वां शिरसा भीरु गृह्णीयाद्रामचोदितः।।

ऒंदुवेळॆ आपगेयनु निन्नन्नु गजसाह्वयक्कॆ करॆदुकॊंडु होगदे इद्दिद्दरॆ भीरु! रामन हेळिकॆयन्नु तलॆयल्लि हॊत्तु शाल्वनु निन्नन्नु स्वीकरिसुत्तिद्दनु.

05176011a तेन त्वं निर्जिता भद्रे यस्मान्नीतासि भामिनि।
05176011c संशयः शाल्वराजस्य तेन त्वयि सुमध्यमे।।

आदरॆ भद्रे! भामिनी! सुमध्यमे! निन्नन्नु अवनु गॆद्दु अपहरिसिकॊंडु होदुदरिंद शाल्वराजनिगॆ निन्न मेलॆ संशय बंदिदॆ.

05176012a भीष्मः पुरुषमानी च जितकाशी तथैव च।
05176012c तस्मात्प्रतिक्रिया युक्ता भीष्मे कारयितुं त्वया।।

भीष्मनु पौरुषद सॊक्किनल्लिद्दानॆ. गॆद्द जंबदल्लिद्दानॆ. आदुदरिंद नीनु भीष्मनिगॆ प्रतिक्रियॆ माडिसुवुदु युक्तवागिदॆ.”

05176013 अंबोवाच।
05176013a ममाप्येष महान्ब्रह्मन् हृदि कामोऽभिवर्तते।
05176013c घातयेयं यदि रणे भीष्ममित्येव नित्यदा।।

अंबॆयु हेळिदळु: “ब्रह्मन्! ऒंदुवेळॆ नानु रणदल्लि भीष्मनन्नु कॊल्लबहुदागिद्दरॆ ऎन्नुव महा कामवु नित्यवू नन्न हृदयदल्लि बॆळॆयुत्तिदॆ.

05176014a भीष्मं वा शाल्वराजं वा यं वा दोषेण गच्चसि।
05176014c प्रशाधि तं महाबाहो यत्कृतेऽहं सुदुःखिता।।

दोषवु भीष्मन मेलादरू अथवा शाल्वराजन मेलादरू होगलि. आदरॆ महाबाहो! यार कृत्यदिंद नानु तुंबा दुःखितळागिद्देनो अवनन्नु शिक्षिसबेकु.””

05176015 भीष्म उवाच।
05176015a एवं कथयतामेव तेषां स दिवसो गतः।
05176015c रात्रिश्च भरतश्रेष्ठ सुखशीतोष्णमारुता।।

भीष्मनु हेळिदनु: “भरतश्रेष्ठ! ई रीति अवरु मातनाडिकॊळ्ळुत्तिरुवाग दिनवु कळॆयितु. मत्तु सुख शीतोष्ण मारुतवु बीसि रात्रियू कळॆयितु.

05176016a ततो रामः प्रादुरासीत्प्रज्वलन्निव तेजसा।
05176016c शिष्यैः परिवृतो राजं जटाचीरधरो मुनिः।।

आग राजन्! शिष्यरिंद परिवृतनागि जटाचीरधर मुनि रामनु प्रज्वलिसुव तेजस्सिनॊंदिगॆ आगमिसिदनु.

05176017a धनुष्पाणिरदीनात्मा खड्गं बिभ्रत्परश्वधी।
05176017c विरजा राजशार्दूल सोऽभ्ययात्सृंजयं नृपं।।

राजशार्दूल! कैयल्लि धनुस्सु, खड्ग मत्तु परशुगळन्नु हिडिदु धूळिल्लदे हॊळॆयुत्ता अवनु सृंजयर नृपनन्नु समीपिसिदनु.

05176018a ततस्तं तापसा दृष्ट्वा स च राजा महातपाः।
05176018c तस्थुः प्रांजलयः सर्वे सा च कन्या तपस्विनी।।

आग आ तापसनन्नु नोडि आ राज महातपस्वि, आ तपस्विनि कन्यॆ मत्तु ऎल्लरू कैमुगिदु निंतुकॊंडरु.

05176019a पूजयामासुरव्यग्रा मधुपर्केण भार्गवं।
05176019c अर्चितश्च यथायोगं निषसाद सहैव तैः।।

भार्गवनन्नु मधुपर्कदिंद पूजिसिदरु. यथायोगवागि पूजिसल्पट्टु अवनु अवरॊंदिगॆ कुळितुकॊंडनु.

05176020a ततः पूर्वव्यतीतानि कथयेते स्म तावुभौ।
05176020c सृंजयश्च स राजर्षिर्जामदग्न्यश्च भारत।।

भारत! आग राजर्षि सृंजय मत्तु जामदग्नि इब्बरू हिंदॆ नडॆदुदर कुरितु मातुकथॆयन्नाडिदरु.

05176021a ततः कथांते राजर्षिर्भृगुश्रेष्ठं महाबलं।
05176021c उवाच मधुरं काले रामं वचनमर्थवत्।।

आग मातिन कॊनॆयल्लि मधुर कालदल्लि राजर्षियु महाबल भृगुश्रेष्ठ रामनिगॆ अर्थवत्ताद ई मातुगळन्नाडिदनु:

05176022a रामेयं मम दौहित्री काशिराजसुता प्रभो।
05176022c अस्याः शृणु यथातत्त्वं कार्यं कार्यविशारद।।

“राम! प्रभो! इवळु नन्न मगळ मगळु, काशिराजसुतॆ. कार्यविशारद! इवळन्नु केळि हेगॆ तिळियुत्तदॆयो हागॆ माडु.”

05176023a परमं कथ्यतां चेति तां रामः प्रत्यभाषत।
05176023c ततः साभ्यगमद्रामं ज्वलंतमिव पावकं।।

“आगलि. हेळु!” ऎंदु रामनु अवळिगॆ हेळलु अवळु बॆंकियंत कण्णीरन्नु सुरिसुत्ता रामनल्लिगॆ बंदळु.

05176024a सा चाभिवाद्य चरणौ रामस्य शिरसा शुभा।
05176024c स्पृष्ट्वा पद्मदलाभाभ्यां पाणिभ्यामग्रतः स्थिता।।

आ शुभॆयु रामन चरणगळिगॆ शिरसा नमस्करिसि, पद्मदलगळंतिरुव कैगळिंद मुट्टि, निंतुकॊंडळु.

05176025a रुरोद सा शोकवती बाष्पव्याकुललोचना।
05176025c प्रपेदे शरणं चैव शरण्यं भृगुनंदनं।।

कण्णीरुतुंबिद कण्णुगळ आ शोकवतियु रोदिसिदळु. शरण्य भृगुनंदनन शरणु हॊक्कळु.

05176026 राम उवाच।
05176026a यथासि सृंजयस्यास्य तथा मम नृपात्मजे।
05176026c ब्रूहि यत्ते मनोदुःखं करिष्ये वचनं तव।।

रामनु हेळिदनु: “नृपात्मजे! सृंजयनिगॆ नीनु हेगो हागॆ ननगू कूड. निन्न मनोदुःखवेनॆंदु हेळु. निन्न मातन्नु माडिकॊडुत्तेनॆ.”

05176027 अंबोवाच।
05176027a भगवं शरणं त्वाद्य प्रपन्नास्मि महाव्रत।
05176027c शोकपंकार्णवाद्घोरादुद्धरस्व च मां विभो।।

अंबॆयु हेळिदळु: “महाव्रत! भगवन्! इंदु निन्न शरणु हॊक्किद्देनॆ. विभो! नन्नन्नु घोरवाद ई शोकद कॆसरु-कूपदिंद उद्धरिसु.””

05176028 भीष्म उवाच।
05176028a तस्याश्च दृष्ट्वा रूपं च वयश्चाभिनवं पुनः।
05176028c सौकुमार्यं परं चैव रामश्चिंतापरोऽभवत्।।

भीष्मनु हेळिदनु: “अवळ रूप, वयस्सु, अभिनव मत्तु परम सौकुमार्यवन्नु नोडि रामनु चिंतापरनादनु.

05176029a किमियं वक्ष्यतीत्येवं विमृशन्भृगुसत्तमः।
05176029c इति दध्यौ चिरं रामः कृपयाभिपरिप्लुतः।।

“इवळु एनन्नु हेळलिद्दाळॆ?” ऎंदु विमर्शिसि भृगुसत्तम रामनु ऒंदु क्षण योचिसि कृपॆयिंद अवळन्नु नोडिदनु.

05176030a कथ्यतामिति सा भूयो रामेणोक्ता शुचिस्मिता।
05176030c सर्वमेव यथातत्त्वं कथयामास भार्गवे।।

“हेळु!” ऎंदु पुनः रामनु हेळलु शुचिस्मितॆयु भार्गवनिगॆ नडॆदुदॆल्लवन्नू हेळिदळु.

05176031a तच्च्रुत्वा जामदग्न्यस्तु राजपुत्र्या वचस्तदा।
05176031c उवाच तां वरारोहां निश्चित्यार्थविनिश्चयं।।

राजपुत्रिय आ मातुगळन्नु केळि जामदग्नियु निश्चितार्थवन्नु आ वरारोहॆगॆ तिळिसिदनु.

05176032a प्रेषयिष्यामि भीष्माय कुरुश्रेष्ठाय भामिनि।
05176032c करिष्यति वचो धर्म्यं श्रुत्वा मे स नराधिपः।।

“भामिनी! कुरुश्रेष्ठ भीष्मनिगॆ हेळि कळुहिसुत्तेनॆ. आ नराधिपनु नन्न मातुगळन्नु केळि धर्मयुक्तवादुदन्नु माडुत्तानॆ.

05176033a न चेत्करिष्यति वचो मयोक्तं जाह्नवीसुतः।
05176033c धक्ष्याम्येनं रणे भद्रे सामात्यं शस्त्रतेजसा।।

भद्रे! नानु हेळिद मातिनंतॆ नडॆदुकॊळ्ळदे इद्दरॆ नानु अस्त्रतेजस्सिनिंद अमात्यरॊंदिगॆ जाह्नवीसुतनन्नु रणदल्लि सुट्टुहाकुत्तेनॆ.

05176034a अथ वा ते मतिस्तत्र राजपुत्रि निवर्तते।
05176034c तावच्चाल्वपतिं वीरं योजयाम्यत्र कर्मणि।।

अथवा राजपुत्रि! निनगॆ आ कडॆ मनस्सु तिरुगिदरॆ मॊदलु नानु वीर शाल्वपतियन्नु कार्यगतनागुवंतॆ माडुत्तेनॆ.”

05176035 अंबोवाच।
05176035a विसर्जितास्मि भीष्मेण श्रुत्वैव भृगुनंदन।
05176035c शाल्वराजगतं चेतो मम पूर्वं मनीषितं।।

अंबॆयु हेळिदळु: “भृगुनंदन! मॊदले नन्न मनस्सु शाल्वराजन मेलॆ होगिदॆ ऎंदु तिळिदकूडले भीष्मनु नन्नन्नु बिट्टुबिट्टिद्दानॆ.

05176036a सौभराजमुपेत्याहमब्रुवं दुर्वचं वचः।
05176036c न च मां प्रत्यगृह्णात्स चारित्रपरिशंकितः।।

सौभराजनल्लिगॆ होगि अवनिगॆ नन्न कष्टद मातुगळन्नाडिदॆनु. अवनादरो नन्न चारित्रवन्नु शंकिसि नन्नन्नु स्वीकरिसलिल्ल.

05176037a एतत्सर्वं विनिश्चित्य स्वबुद्ध्या भृगुनंदन।
05176037c यदत्रौपयिकं कार्यं तच्चिंतयितुमर्हसि।।

भृगुनंदन! इवॆल्लवन्नू स्वबुद्धियिंद विमर्शिसि ई विषयदल्लि एनन्नु माडबेकॆन्नुवुदन्नु चिंतिसबेकागिदॆ.

05176038a ममात्र व्यसनस्यास्य भीष्मो मूलं महाव्रतः।
05176038c येनाहं वशमानीता समुत्क्षिप्य बलात्तदा।।

अल्लि नन्नन्नु वशमाडिकॊंडु बलात्कारवागि ऎत्तिकॊंडु होद महाव्रत भीष्मने नन्न ई व्यसनद मूल.

05176039a भीष्मं जहि महाबाहो यत्कृते दुःखमीदृशं।
05176039c प्राप्ताहं भृगुशार्दूल चराम्यप्रियमुत्तमं।।

महाबाहो! भृगुशार्दूल! ई रीतिय दुःखवन्नु ननगॆ तंदॊदगिसिद, यारिंद ई महा दुःखवन्नु हॊत्तु तिरुगुत्तिद्देनो आ भीष्मनन्नु कॊल्लु!

05176040a स हि लुब्धश्च मानी च जितकाशी च भार्गव।
05176040c तस्मात्प्रतिक्रिया कर्तुं युक्ता तस्मै त्वयानघ।।

भार्गव! अवनु लुब्ध, सॊक्किनव, विजयशालियॆंदु जंबविदॆ. अनघ! आदुदरिंद अवनॊंदिगॆ सेडु तीरिसिकॊळ्ळुवुदु युक्तवागिदॆ.

05176041a एष मे ह्रियमाणाया भारतेन तदा विभो।
05176041c अभवद्धृदि संकल्पो घातयेयं महाव्रतं।।

विभो! भारतनु नन्नन्नु अपहरिसिकॊंडु होगुत्तिरुवाग आ महाव्रतनन्नु कॊल्लबेकॆन्नुव संकल्पवु नन्न हृदयदल्लि बंदित्तु.

05176042a तस्मात्कामं ममाद्येमं राम संवर्तयानघ।
05176042c जहि भीष्मं महाबाहो यथा वृत्रं पुरंदरः।।

राम! अनघ! महाबाहो! नन्न बयकॆयन्नु पूरैसु. पुरंदरनु वृत्रनन्नु हेगो हागॆ भीष्मनन्नु संहरिसु!””

समाप्ति

इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि अंबोऽपाख्यान पर्वणि रामांबासंवादे षड्‌सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि अंबोऽपाख्यान पर्वदल्लि रामांबासंवाददल्लि नूराऎप्पत्तारनॆय अध्यायवु.