152 दुर्योधनसैन्यविभागः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

उद्योग पर्व

सेनानिर्याण पर्व

अध्याय 152

सार

दुर्योधननु तन्न सेनॆगळ विभागगळन्नु रचिसिद्दुदु (1-31).

05152001 वैशंपायन उवाच।
05152001a व्युषितायां रजन्यां तु राजा दुर्योधनस्ततः।
05152001c व्यभजत्तान्यनीकानि दश चैकं च भारत।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “भारत! रात्रियु कळॆयलु राजा दुर्योधननु तन्न हन्नॊंदु सेनॆगळन्नु विंगडिसिदनु.

05152002a नरहस्तिरथाश्वानां सारं मध्यं च फल्गु च।
05152002c सर्वेष्वेतेष्वनीकेषु संदिदेश महीपतिः।।

आ महीपतियु तन्न पुरुषरन्नु, आनॆगळन्नु, कुदुरॆगळन्नु अवरवर गुणगळ आधारद मेलॆ सारवुळ्ळवरु, मध्यमरु मत्तु कीळादवरॆंदु बेरॆ बेरॆ सेनॆगळल्लि विभजिसिदनु.

05152003a सानुकर्षाः सतूणीराः सवरूथाः सतोमराः।
05152003c सोपासंगाः सशक्तीकाः सनिषंगाः सपोथिकाः।।
05152004a सध्वजाः सपताकाश्च सशरासनतोमराः।
05152004c रज्जुभिश्च विचित्राभिः सपाशाः सपरिस्तराः।।
05152005a सकचग्रहविक्षेपाः सतैलगुडवालुकाः।
05152005c साशीविषघटाः सर्वे ससर्जरसपांसवः।।
05152006a सघंटाफलकाः सर्वे वासीवृक्षादनान्विताः।
05152006c व्याघ्रचर्मपरीवारा वृताश्च द्वीपिचर्मभिः।।
05152007a सवस्तयः सशृंगाश्च सप्रासविविधायुधाः।
05152007c सकुठाराः सकुद्दालाः सतैलक्षौमसर्पिषः।।
05152008a चित्रानीकाः सुवपुषो ज्वलिता इव पावकाः।

मरद कांडगळु, तूणीरगळु, कल्लुबंडॆगळु, तोमरगळु, ईटिगळु, कल्लुगळु, ध्वजगळु, पताकॆगळु, शरासन तोमरगळु, विचित्ररीतिय हग्गगळु, नेणुगळु, कंबळिगळु, कूदलन्नु ऎळॆयुव आयुधगळु, ऎण्णॆ, बॆल्ल, मरळुगळु, विषसर्पगळु तुंबिद मडिकॆगळु, मरद मेणगळु, धूळुगळु, गंटॆगळुळ्ळ फलकगळु, कॊडलि खड्गगळु, व्याघ्र चर्म, चिरतॆय चर्म, वस्तिगळु, शृंगगळु, प्रासवे मॊदलाद विविध आयुधगळु, कुठार, कुद्दाल, मत्तु ऎळ्ळॆण्णॆ-हरळॆण्णॆगळिंद सुसज्जितरागि, बण्णबण्णद उडुपुगळन्नु धरिसिद आ सेनॆयु पावकनंतॆ प्रज्वलिसुत्तित्तु.

05152008c तथा कवचिनः शूराः शस्त्रेषु कृतनिश्रमाः।।
05152009a कुलीना हययोनिज्ञाः सारथ्ये विनिवेशिताः।

कवचिगळु, शूररु, शस्त्रगळल्लि कृतनिश्रमरु, कुलीनरु, हयविज्ञानवन्नु तिळिदवरु सारथिगळागि निवेशितरादरु.

05152009c बद्धारिष्टा बद्धकक्ष्या बद्धध्वजपताकिनः।।
05152010a चतुर्युजो रथाः सर्वे सर्वे शस्त्रसमायुताः।
05152010c संहृष्टवाहनाः सर्वे सर्वे शतशरासनाः।।

अरिष्टगळन्नु कट्टिद, कक्ष्यगळन्नु कट्टिद, ध्वज-पताकॆगळन्नु कट्टिद, नाल्कु कुदुरॆगळन्नु कट्टिद्द रथगळॆल्लवू ऎल्ल शस्त्रगळिंद तुंबिद्दवु. ऎल्लवू संहृष्ट वाहनगळागिद्दवु. ऎल्लवुगळल्लि नूरारु शरासनगळिद्दवु.

05152011a धुर्ययोर्हययोरेकस्तथान्यौ पार्ष्णिसारथी।
05152011c तौ चापि रथिनां श्रेष्ठौ रथी च हयवित्तथा।।

ऎरडु कुदुरॆगळिगॆ ऒब्ब उस्तुवारियिद्दनु. पक्कदल्लि इन्नॊब्ब सारथियिद्दनु. इब्बरू रथिगळल्लि श्रेष्ठरागिद्दरु. इब्बरु रथिकरू हयवित्तरागिद्दरु.

05152012a नगराणीव गुप्तानि दुरादेयानि शत्रुभिः।
05152012c आसन्रथसहस्राणि हेममालीनि सर्वशः।।

अल्लि ऎल्लॆल्लू गुप्त नगरगळंतॆ शत्रुगळिगॆ जयिसलसाध्यवाद हलवु साविर हेममालि रथगळिद्दवु.

05152013a यथा रथास्तथा नागा बद्धकक्ष्याः स्वलंकृताः।
05152013c बभूवुः सप्त पुरुषा रत्नवंत इवाद्रयः।।

रथगळंतॆ आनॆगळिगॆ कूड कक्ष्यगळन्नु कट्टिद्दरु. अलंकारगॊंडु रत्नवंत गिरिगळंतॆ काणुत्तिद्दवु. प्रतियॊंदक्कू एळु जनरिद्दरु.

05152014a द्वावंकुशधरौ तेषु द्वावुत्तमधनुर्धरौ।
05152014c द्वौ वरासिधरौ राजन्नेकः शक्तिपताकधृक्।।

राजन्! अवरल्लि इब्बरु अंकुशधररागिद्दरु. इब्बरु उत्तम धनुर्धररागिद्दरु. इब्बरु श्रेष्ठ खड्गधररागिद्दरु मत्तु ऒब्बनु शक्ति मत्तु पताकॆगळन्नु हिडिदवनागिद्दनु.

05152015a गजैर्मत्तैः समाकीर्णं सवर्मायुधकोशकैः।
05152015c तद्बभूव बलं राजन्कौरव्यस्य सहस्रशः।।

राजन्! कौरवन बलदल्लि सर्वायुधकोषकगळिंद तुंबिद सहस्रारु मत्त गजगळु इद्दवु.

05152016a विचित्रकवचामुक्तैः सपताकैः स्वलंकृतैः।
05152016c सादिभिश्चोपसंपन्ना आसन्नयुतशो हयाः।।
05152017a सुसंग्राहाः सुसंतोषा हेमभांडपरिच्चदाः।
05152017c अनेकशतसाहस्रास्ते च सादिवशे स्थिताः।।

अल्लि सवारियल्लिरुव हत्तु साविर विचित्रकवचगळन्नु धरिसिद, पताकॆगळन्नुळ्ळ, अलंकृतगॊंडिरुव कुदुरॆगळिद्दवु. प्रतियॊंदन्नु चॆन्नागि हिडिदिद्दरु. संतोषदल्लिट्टिद्दरु. बंगारद पट्टिगळन्नु हॊदॆसिद्दरु. अनेक नूरु साविर कुदुरॆगळिद्दरू ऎल्लवन्नू नियंत्रणदल्लिरिसलागित्तु.

05152018a नानारूपविकाराश्च नानाकवचशस्त्रिणः।
05152018c पदातिनो नरास्तत्र बभूवुर्हेममालिनः।।

अल्लि हेममालिगळाद, नानारूपविकारगळ, नाना कवच शस्त्रगळन्नु धरिसिद पदाति नररिद्दरु.

05152019a रथस्यासन्दश गजा गजस्य दश वाजिनः।
05152019c नरा दश हयस्यासन्पादरक्षाः समंततः।।

ऒंदु रथक्कॆ हत्तु आनॆगळिद्दवु, ऒंदु आनॆगॆ हत्तु कदुरॆसवारिगळिद्दवु. ऒंदु कुदुरॆगॆ नाल्कू कालुगळल्लि हत्तु पादरक्षकरिद्दरु.

05152020a रथस्य नागाः पंचाशन्नागस्यासं शतं हयाः।
05152020c हयस्य पुरुषाः सप्त भिन्नसंधानकारिणः।।

ऒडकन्नु मुच्चलु ऒंदु रथक्कॆ ऐवत्तु आनॆगळन्नू, नूरु कुदुरॆगळन्नू, प्रति कुदुरॆगॆ एळु पुरुषरन्नू इडलागित्तु.

05152021a सेना पंचशतं नागा रथास्तावंत एव च।
05152021c दशसेना च पृतना पृतना दशवाहिनी।।

ऒंदु सेनॆयल्लि ऐनूरु आनॆगळू मत्तु अष्टे संख्यॆय रथगळू इरुत्तवॆ. अंतह हत्तु सेनॆगळु ऒंदु पृतनवॆनिसिकॊळ्ळुत्तदॆ. हत्तु पृतनगळु ऒंदु वाहिनि.

05152022a वाहिनी पृतना सेना ध्वजिनी सादिनी चमूः।
05152022c अक्षौहिणीति पर्यायैर्निरुक्ताथ वरूथिनी।
05152022e एवं व्यूढान्यनीकानि कौरवेयेण धीमता।।

आदरॆ वाहिनी, पृतना, सेना, ध्वजिनि, सादिनी, अक्षौहिणी, वरूथिनी ऎंदु पर्यायशब्धगळन्नू बळसुत्तारॆ. हीगॆ धीमत कौरवन सेनॆयु रचिसल्पट्टित्तु.

05152023a अक्षौहिण्यो दशैका च संख्याताः सप्त चैव ह।
05152023c अक्षौहिण्यस्तु सप्तैव पांडवानामभूद्बलं।।
05152023e अक्षौहिण्यो दशैका च कौरवाणामभूद् बलं।।

हन्नॊंदु मत्तु एळु सेरि ऒट्टु हदिनॆंटु अक्षौहिणिगळिद्दवु: पांडवर बलदल्लि एळे अक्षौहिणिगळिद्दवु. कौरवर बलवु हन्नॊंदु अक्षौहिणियदागित्तु.

05152024a नराणां पंचपंचाशदेषा पत्तिर्विधीयते।
05152024c सेनामुखं च तिस्रस्ता गुल्म इत्यभिसंज्ञैतः।।

ऐदु इप्पत्तैदु सैनिकरन्नु ऒंदु पत्ति ऎन्नुत्तारॆ. अंथह मूरु सेनामुख अथवा गुल्मवॆनिसिकॊळ्ळुत्तवॆ.

05152025a दश गुल्मा गणस्त्वासीद्गणास्त्वयुतशोऽभवन्।
05152025c दुर्योधनस्य सेनासु योत्स्यमानाः प्रहारिणः।।

हत्तु गुल्मगळु ऒंदु गणवागुत्तदॆ. दुर्योधनन सेनॆयल्लि अंथह युद्धोत्सुकराद, प्रहारिगळाद हत्तु साविर गणगळिद्दवु.

05152026a तत्र दुर्योधनो राजा शूरान्बुद्धिमतो नरान्।
05152026c प्रसमीक्ष्य महाबाहुश्चक्रे सेनापतींस्तदा।।

अल्लि महाबाहु राजा दुर्योधननु शूररू बुद्धिवंतरू आदवरन्नु नोडि सेनापतिगळन्नागि नियोजिसिदनु.

05152027a पृथगक्षौहिणीनां च प्रणेतन्नरसत्तमान्।
05152027c विधिपूर्वं समानीय पार्थिवानभ्यषेचयत्।।
05152028a कृपं द्रोणं च शल्यं च सैंधवं च महारथं।
05152028c सुदक्षिणं च कांबोजं कृतवर्माणमेव च।।
05152029a द्रोणपुत्रं च कर्णं च भूरिश्रवसमेव च।
05152029c शकुनिं सौबलं चैव बाह्लीकं च महारथं।।

प्रत्येकवागि अक्षौहिणिगळिगॆ प्रणेत नरसत्तम पार्थिवरन्नु करॆयिसि विधिपूर्वकवागि अभिषेकिसिदनु: कृप, द्रोण, शल्य, महारथि सैंधव, कांबोज सुदक्षिण, कृतवर्म, द्रोण पुत्र, कर्ण, भूरिश्रव, सौबल शकुनि मत्तु महारथि बाह्लीक.

05152030a दिवसे दिवसे तेषां प्रतिवेलं च भारत।
05152030c चक्रे स विविधाः संज्ञाः प्रत्यक्षं च पुनः पुनः।।

भारत! दिवस दिवसवू, प्रतिवेळॆयू अवरिगॆ प्रत्यक्षवागि विविध सूचनॆगळन्नु पुनः पुनः कॊडुत्तिद्दनु.

05152031a तथा विनियताः सर्वे ये च तेषां पदानुगाः।
05152031c बभूवुः सैनिका राजन्राज्ञाः प्रियचिकीर्षवः।।

राजन्! हीगॆ विनयितराद अवरॆल्लरू अवन आज्ञॆयन्नु अनुसरिसुव सैनिकरागि राजनिगॆ प्रियवादुदन्नु माडलु उत्सुकरागिद्दरु.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि सेनानिर्याण पर्वणि दुर्योधनसैन्यविभागे द्विपंचाशदधिकशततमोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि सेनानिर्याण पर्वदल्लि दुर्योधनसैन्यविभागददल्लि नूराऐवत्तॆरडनॆय अध्यायवु. इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि सेनानिर्याण पर्वः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि सेनानिर्याण पर्ववु. इदूवरॆगिन ऒट्टु महापर्वगळु-4/18, उपपर्वगळु-26/100, अध्यायगळु-815/1995, श्लोकगळु-26687/73784.