प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
उद्योग पर्व
भगवद्यान पर्व
अध्याय 124
सार
भीष्म-द्रोणरु पुनः अविधेय दुर्योधननिगॆ वैषम्यवन्नु मुगिसॆंदु हेळिदुदु (1-18).
05124001 वैशंपायन उवाच।
05124001a धृतराष्ट्रवचः श्रुत्वा भीष्मद्रोणौ समर्थ्य तौ।
05124001c दुर्योधनमिदं वाक्यमूचतुः शासनातिगं।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “धृतराष्ट्रन मातन्नु केळि समर्थराद भीष्म-द्रोणरु अविधेय दुर्योधननिगॆ ई मातन्नु आडिदरु:
05124002a यावत्कृष्णावसम्नद्धौ यावत्तिष्ठति गांडिवं।
05124002c यावद्धौम्यो न सेनाग्नौ जुहोतीह द्विषद्बलं।।
05124003a यावन्न प्रेक्षते क्रुद्धः सेनां तव युधिष्ठिरः।
05124003c ह्रीनिषेधो महेष्वासस्तावच्चाम्यतु वैशसं।।
“इन्नू कृष्णरिब्बरु सन्नद्धरागिल्ल. इन्नू गांडीववन्नु ऎत्ति हिडिदिल्ल. शत्रुगळ बलनाशनक्कॆ धौम्यनु इन्नू अग्नियल्लि आहुतिगळन्नु हाकिल्ल. विनयतॆयन्नु आभरणवन्नागिसिकॊंडिरुव महेष्वास युधिष्ठिरनु इन्नू कृद्धनागि निन्न सेनॆयन्नु नोडुत्तिल्ल. आदुदरिंद वैशम्यवु ईगले मुगियलि.
05124004a यावन्न दृष्यते पार्थः स्वेष्वनीकेष्ववस्थितः।
05124004c भीमसेनो महेष्वासस्तावच्चाम्यतु वैशसं।।
इदूवरॆगॆ पार्थ महेष्वास भीमसेननु तन्न सेनॆय केंद्रस्थानदल्लि निंतिल्ल. आदुदरिंद वैशम्यवु ईगले मुगियलि.
05124005a यावन्न चरते मार्गान्पृतनामभिहर्षयन्।
05124005c यावन्न शातयत्याजौ शिरांसि गजयोधिनां।।
05124006a गदया वीरघातिन्या फलानीव वनस्पतेः।
05124006c कालेन परिपक्वानि तावच्चाम्यतु वैशसं।।
इन्नू अवनु मार्गदल्लि संचरिसुत्ता तन्न सेनॆयन्नु हर्षगॊळिसुत्तिल्ल. इन्नू अवनु आनॆय मेलॆ कुळित योद्धर तलॆयन्नु वीरघाति गदॆयिंद परिपक्ववाद वनस्पतिय फलगळन्नु कालबंदाग कत्तरिसुवंतॆ माडुत्तिल्ल. आदुदरिंद ईगले ई वैषम्यवु मुगियलि.
05124007a नकुलः सहदेवश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
05124007c विराटश्च शिखंडी च शैशुपालिश्च दंशिताः।।
05124008a यावन्न प्रविशंत्येते नक्रा इव महार्णवं।
05124008c कृतास्त्राः क्षिप्रमस्यंतस्तावच्चाम्यतु वैशसं।।
नकुल-सहदेवरु, पार्षत धृष्टद्युम्न, विराट, शिखंडि, कोपगॊंडिरुव शिशुपालन मग मॊदलाद कृतास्त्ररु, क्षिप्रवागि बाणप्रयोगिसुववरु, मॊसळॆगळु सागरद मेलॆ हेगो हागॆ आक्रमणवन्नु माडुवुदर मॊदले ई वैशम्यवु कॊनॆगॊळ्ळलि.
05124009a यावन्न सुकुमारेषु शरीरेषु महीक्षितां।
05124009c गार्ध्रपत्राः पतंत्युग्रास्तावच्चाम्यतु वैशसं।।
हद्दिन गरिय बाणगळु महीक्षितर सुकुमार शरीरगळिगॆ हॊगुव मॊदलु ई वैरवु कॊनॆगॊळ्ळलि.
05124010a चंदनागरुदिग्धेषु हारनिष्कधरेषु च।
05124010c नोरःस्सु यावद्योधानां महेष्वासैर्महेषवः।।
05124011a कृतास्त्रैः क्षिप्रमस्यद्भिर्दूरपातिभिरायसाः।
05124011c अभिलक्ष्यैर्निपात्यंते तावच्चाम्यतु वैशसं।।
चंदन अगरुगळन्नु बळिदुकॊंड, हार मत्तु चिन्नद कवचगळन्नु धरिसिरुव नम्म योद्धर ऎदॆगळन्नु महेष्वास, कृतास्त्ररादवरु क्षिप्रवागि बहुदूरदिंद प्रयोगिसिद उक्किन बाणगळु तागि बीळुवुदक्किंत मॊदले ई वैशम्यवु मुगियलि.
05124012a अभिवादयमानं त्वां शिरसा राजकुंजरः।
05124012c पाणिभ्यां प्रतिगृह्णातु धर्मराजो युधिष्ठिरः।।
शिरदिंद अभिवादिसुव निन्नन्नु आ राजकुंजर धर्मराज युधिष्ठिरनु तन्न ऎरडू कैगळिंद मेलॆत्ति स्वीकरिसलि.
05124013a ध्वजांकुशपताकांकं दक्षिणं ते सुदक्षिणः।
05124013c स्कंधे निक्षिपतां बाहुं शांतये भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! शांतिय गुरुतागि अवनु तन्न सुदक्षिण, ध्वज-अंकुश-पताकॆगळ गुरुतिरुव बलगैयन्नु निन्न बाहुगळ मेलिरिसलि.
05124014a रत्नौषधिसमेतेन रत्नांगुलितलेन च।
05124014c उपविष्टस्य पृष्ठं ते पाणिना परिमार्जतु।।
नीनु कुळितिरुवाग अवनु रत्नौषधिगळिंद कूडिद रत्नांगुलित कैगळिंद निन्न बॆन्नन्नु तट्टलि.
05124015a शालस्कंधो महाबाहुस्त्वां स्वजानो वृकोदरः।
05124015c साम्नाभिवदतां चापि शांतये भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! आ शालस्कंध, महाबाहु वृकोदरनु शांतियिंद निन्नन्नु अप्पिकॊंडु सामदिंद अभिनंदिसलि.
05124016a अर्जुनेन यमाभ्यां च त्रिभिस्तैरभिवादितः।
05124016c मूर्ध्नि तान्समुपाघ्राय प्रेम्णाभिवद पार्थिव।।
पार्थिव! अर्जुन मत्तु यमळरु ई मूवरू निनगॆ वंदिसलु नीनु अवर नॆत्तियन्नु आघ्राणिसि प्रेमदिंद अभिनंदिसु.
05124017a दृष्ट्वा त्वां पांडवैर्वीरैर्भ्रातृभिः सह संगतं।
05124017c यावदानंदजाश्रूणि प्रमुंचंतु नराधिपाः।।
नीनु वीर सहोदर पांडवरॊंदिगॆ सेरिकॊंडिद्दुदन्नु नोडि नराधिपरु आनंद बाष्पगळन्नु सुरिसलि.
05124018a घुष्यतां राजधानीषु सर्वसंपन्महीक्षितां।
05124018c पृथिवी भ्रातृभावेन भुज्यतां विज्वरो भव।।
राजधानिगळल्लि घोषिसल्पडलि. महीक्षितरु सर्वसंपन्नरागि आनंदिसलि. भ्रातृभावदिंद पृथ्वियन्नु भोगिसलि. विज्वरनागु.””
समाप्ति
इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि भगवद्यान पर्वणि भीष्मद्रोणवाक्ये चतुर्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि भगवद्यान पर्वदल्लि भीष्मद्रोणवाक्यदल्लि नूराइप्पत्नाल्कनॆय अध्यायवु.