093 श्रीकृष्णवाक्यः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

उद्योग पर्व

भगवद्यान पर्व

अध्याय 93

सार

कृष्णनु कुरुसभॆयल्लि धृतराष्ट्रनिगॆ “वीरर नाशवागदे कुरुगळल्लि मत्तु पांडवरल्लि शांतियन्नुंटुमाडुव प्रयत्नदिंद नानु इल्लिगॆ बंदिद्देनॆ” ऎंदु प्रारंभिसि “नीनु पुत्ररन्नु तडॆ! नानु इतररन्नु तडॆयुत्तेनॆ…आदरॆ युद्धवे आगबेकॆंदरॆ महानाशवु काणुत्तिदॆ…ऎल्लि धर्मवु अधर्मदिंद मत्तु सत्यवु सुळ्ळिनिंद सायिसल्पडुत्तदॆयो अदन्नु अल्लिद्दु नोडुत्तिरुव सभासदरू हतरागुत्तारॆ…पांडवरिगॆ यथोचितवागि अवर पितृगळ अंशवन्नु कॊडु!…पार्थरु निन्न सेवॆमाडलु सिद्धरागिद्दारॆ, युद्दक्कू सिद्धरागिद्दारॆ” ऎंदे मॊदलागि हेळिदुदु (1-62).

05093001 वैशंपायन उवाच।
05093001a तेष्वासीनेषु सर्वेषु तूष्णींभूतेषु राजसु।
05093001c वाक्यमभ्याददे कृष्णः सुदंष्ट्रो दुंदुभिस्वनः।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “आ सर्व राजरू आसीनरागि सुम्मनाद नंतर, सुदंष्ट्र कृष्णनु गुडुगिन स्वरदल्लि मातन्नु प्रारंभिसिदनु.

05093002a जीमूत इव घर्मांते सर्वान्संश्रावयन्सभां।
05093002c धृतराष्ट्रमभिप्रेक्ष्य समभाषत माधवः।।

मोडवु मॊळगुवंतॆ, माधवनु सभॆयल्लि ऎल्लरिगू केळिसुवंतॆ, धृतराष्ट्रनन्नु उद्देशिसि ई उत्तम मातुगळन्नु हेळिदनु.

05093003a कुरूणां पांडवानां च शमः स्यादिति भारत।
05093003c अप्रयत्नेन वीराणामेतद्यतितुमागतः।।

“भारत! वीरर नाशवागदे कुरुगळल्लि मत्तु पांडवरल्लि शांतियन्नुंटुमाडुव प्रयत्नदिंद नानु इल्लिगॆ बंदिद्देनॆ.

05093004a राजन्नान्यत्प्रवक्तव्यं तव निःश्रेयसं वचः।
05093004c विदितं ह्येव ते सर्वं वेदितव्यमरिंदम।।

अरिंदम! राजन्! इदर हॊरतागिरुव बेरॆ याव श्रेयस्कर मातन्नू नानु हेळुवुदिल्ल. एकॆंदरॆ तिळियबेकागिरुव ऎल्लवू निनगॆ तिळिदे इदॆ.

05093005a इदमद्य कुलं श्रेष्ठं सर्वराजसु पार्थिव।
05093005c श्रुतवृत्तोपसंपन्नं सर्वैः समुदितं गुणैः।।

पार्थिव! ई कुलवु इंदु अध्ययन, नडतॆगळिंद कूडिद्दु सर्व गुणगळिंद तुंबिद्दु ऎल्ल राजरल्लि श्रेष्ठवॆनिसिकॊंडिदॆ.

05093006a कृपानुकंपा कारुण्यमानृशंस्यं च भारत।
05093006c तथार्जवं क्षमा सत्यं कुरुष्वेतद्विशिष्यते।।

भारत! विशेषवागि कृपॆ, अनुकंप, कारुण्य, अहिंसॆ, आर्जव, क्षमॆ, हागॆ सत्य इवु कुरुगळल्लिवॆ.

05093007a तस्मिन्नेवंविधे राजन्कुले महति तिष्ठति।
05093007c त्वन्निमित्तं विशेषेण नेह युक्तमसांप्रतं।।

राजन्! ई विधगळल्लि ऎत्तरवागि निंतिरुव ई कुलदल्लि सरियागिरदिद्दुदु यावुदू, विशेषवागि निन्निंद, नडॆयबारदु.

05093008a त्वं हि वारयिता श्रेष्ठः कुरूणां कुरुसत्तम।
05093008c मिथ्या प्रचरतां तात बाह्येष्वाभ्यंतरेषु च।।

कुरुसत्तम! कुरुश्रेष्ठ! कुरुगळल्लि यारादरू ऒळगिनवरल्लि अथवा हॊरगिनवरल्लि सुळ्ळागि नडॆदुकॊळ्ळुवुदन्नु नीने निल्लिसबहुदु.

05093009a ते पुत्रास्तव कौरव्य दुर्योधनपुरोगमाः।
05093009c धर्मार्थौ पृष्ठतः कृत्वा प्रचरंति नृशंसवत्।।
05093010a अशिष्टा गतमर्यादा लोभेन हृतचेतसः।
05093010c स्वेषु बंधुषु मुख्येषु तद्वेत्थ भरतर्षभ।।

कौरव्य! निन्न पुत्ररु, दुर्योधनन नायकत्वदल्लि, धर्म-अर्थगळन्नु हिंदॊत्ति, अशिष्टरागि, मर्यादॆयन्नु कळॆदुकॊंडु, लोभदिंद बुद्धि कळॆदुकॊंडु निन्न बंधुमुख्यरल्लि क्रूरवागि नडॆदुकॊळ्ळुत्तिद्दारॆ. भरतर्षभ! इदु निनगॆ तिळिदे इदॆ.

05093011a सेयमापन्महाघोरा कुरुष्वेव समुत्थिता।
05093011c उपेक्ष्यमाणा कौरव्य पृथिवीं घातयिष्यति।।

कौरव्य! ई महाघोर सन्निवेशवु कुरुगळिंदले उत्पन्नवागिदॆ. इदन्नु निर्लक्षिसिदरॆ इडी पृथ्वियन्ने अदु घातिगॊळिसुत्तदॆ.

05093012a शक्या चेयं शमयितुं त्वं चेदिच्चसि भारत।
05093012c न दुष्करो ह्यत्र शमो मतो मे भरतर्षभ।।

भारत! नीनु इच्छिसिदरॆ इदन्नु शांतगॊळिसलु शक्यविदॆ. भरतर्षभ! एकॆंदरॆ इल्लि शांतियन्नु तरुवुदु दुष्करवेनल्ल ऎंदु नन्न अनिसिकॆ.

05093013a त्वय्यधीनः शमो राजन्मयि चैव विशां पते।
05093013c पुत्रान्स्थापय कौरव्य स्थापयिष्याम्यहं परान्।।

विशांपते! राजन्! शांतियु निन्न मत्तु नन्न अधीनदल्लिदॆ. कौरव्य! नीनु पुत्ररन्नु तडॆ! नानु इतररन्नु तडॆयुत्तेनॆ.

05093014a आज्ञा तव हि राजेंद्र कार्या पुत्रैः सहान्वयैः।
05093014c हितं बलवदप्येषां तिष्ठतां तव शासने।।

राजेंद्र! तम्म अनुयायिगळॊंदिगॆ पुत्ररु निन्न आज्ञॆयंतॆ माडबेकु. इवरन्नु निन्न शासनदडियल्लि बलवत्तागि हिडिदिट्टुकॊळ्ळुवुदे हितकरवादुदु.

05093015a तव चैव हितं राजन्पांडवानामथो हितं।
05093015c शमे प्रयतमानस्य मम शासनकांक्षिणां।।

राजन्! निनगॆ हितवादुदु निन्न शासनदल्लिरलु बयसुव पांडवरिगॆ कूड, मत्तु शांतियन्नु प्रयत्निसुत्तिरुव ननगू हितवादुदु.

05093016a स्वयं निष्कलमालक्ष्य संविधत्स्व विशां पते।
05093016c सहभूतास्तु भरतास्तवैव स्युर्जनेश्वर।।

विशांपते! स्वयं नीने इदन्नु विचारिसि निर्धरिसु. जनेश्वर! नीने भारतरन्नु ऒंदागिसबहुदु.

05093017a धर्मार्थयोस्तिष्ठ राजन्पांडवैरभिरक्षितः।
05093017c न हि शक्यास्तथाभूता यत्नादपि नराधिप।।

राजन्! नराधिप! पांडवरिंद रक्षितनागि धर्मार्थगळल्लि नॆलॆसु. प्रयत्निसिदरू अवरन्नु इल्लवागिसलु साध्यवागुवुदिल्ल.

05093018a न हि त्वां पांडवैर्जेतुं रक्ष्यमाणं महात्मभिः।
05093018c इंद्रोऽपि देवैः सहितः प्रसहेत कुतो नृपाः।।

महात्म पांडवरिंद रक्षितनाद निन्नन्नु देवतॆगळ सहित इंद्रनू कूड जयिसलु साध्यविल्ल. इतर नृपरु ऎल्लि?

05093019a यत्र भीष्मश्च द्रोणश्च कृपः कर्णो विविंशतिः।
05093019c अश्वत्थामा विकर्णश्च सोमदत्तोऽथ बाह्लिकः।।
05093020a सैंधवश्च कलिंगश्च कांबोजश्च सुदक्षिणः।
05093020c युधिष्ठिरो भीमसेनः सव्यसाची यमौ तथा।।
05093021a सात्यकिश्च महातेजा युयुत्सुश्च महारथः।
05093021c को नु तान्विपरीतात्मा युध्येत भरतर्षभ।।

यार कडॆ भीष्म, द्रोण, कृप, कर्ण, विविंशति, अश्वत्थाम, विकर्ण, बाह्लिक सोमदत्त, सैंधव, कलिंग, कांभोज, सुदक्षिण, युधिष्ठिर, भीमसेन, सव्यसाची मत्तु यमळरु, महातेज सात्यकि मत्तु महारथि युयुत्सुवु इद्दारो अवरॊडनॆ भरतर्षभ! याव हुच्चनु ताने युद्धमाडियानु?

05093022a लोकस्येश्वरतां भूयः शत्रुभिश्चाप्रधृष्यतां।
05093022c प्राप्स्यसि त्वममित्रघ्न सहितः कुरुपांडवैः।।

अमित्रघ्न! कुरुपांडवरॊडनॆ नीनु लोकेश्वरत्ववन्नु पडॆयुत्तीयॆ मत्तु शत्रुगळिगॆ अजेयनागुत्तीयॆ.

05093023a तस्य ते पृथिवीपालास्त्वत्समाः पृथिवीपते।
05093023c श्रेयांसश्चैव राजानः संधास्यंते परंतप।।

पृथिवीपते! परंतप! ईग निन्न सरिसमरागिरुव अथवा निनगिंथलू उत्तमरागिरुव राजरु निन्नॊडनॆ संधि माडिकॊळ्ळुवरु.

05093024a स त्वं पुत्रैश्च पौत्रैश्च भ्रातृभिः पितृभिस्तथा।
05093024c सुहृद्भिः सर्वतो गुप्तः सुखं शक्ष्यसि जीवितुं।।

आग नीनु ऎल्ल कडॆयिंद मक्कळु-मॊम्मक्कळु, सहोदररु, पितृगळु, स्नेहितरिंद रक्षिसल्पट्टु सुखवाद जीवनवन्नु नडॆसलु शक्यनागुत्तीयॆ.

05093025a एतानेव पुरोधाय सत्कृत्य च यथा पुरा।
05093025c अखिलां भोक्ष्यसे सर्वां पृथिवीं पृथिवीपते।।

अवरन्नु मुंदॆ इरिसि हिंदिनंतॆये सत्करिसु. इदरिंद पृथिवीपते! इडी पृथ्विय ऎल्लवन्नू भोगिसबल्लॆ.

05093026a एतैर्हि सहितः सर्वैः पांडवैः स्वैश्च भारत।
05093026c अन्यान्विजेष्यसे शत्रूनेष स्वार्थस्तवाखिलः।।

भारत! पांडवरु मत्तु निन्नवरॆल्लरू ऒट्टिगे इतर शत्रुगळॆल्लरन्नु गॆल्लबहुदु. इदु संपूर्णवागि निन्नदे स्वार्थदल्लिदॆ.

05093027a तैरेवोपार्जितां भूमिं भोक्ष्यसे च परंतप।
05093027c यदि संपत्स्यसे पुत्रैः सहामात्यैर्नराधिप।।

परंतप! नराधिप! ऒंदुवेळॆ पुत्ररॊंदिगॆ अमात्यरॊंदिगॆ ऒंदादॆयादरॆ, अवरु निनगॆ गळिसिकॊडुव भूमियन्नु नीनु भोगिसबहुदु.

05093028a संयुगे वै महाराज दृश्यते सुमहान् क्षयः।
05093028c क्षये चोभयतो राजन्कं धर्ममनुपश्यसि।।

आदरॆ राजन्! महाराज! युद्धवे आगबेकॆंदरॆ महानाशवु काणुत्तिदॆ. ऎरडू कडॆयवरु क्षयवागुवुदरल्लि नीनु याव धर्मवन्नु काणुत्तीयॆ?

05093029a पांडवैर्निहतैः संख्ये पुत्रैर्वापि महाबलैः।
05093029c यद्विंदेथाः सुखं राजंस्तद्ब्रूहि भरतर्षभ।।

राजन्! भरतर्षभ! युद्धदल्लि महाबल पांडवरु मत्तु निन्न पुत्ररू कूड हतरागुवुदरल्लि ऎंथह सुखविदॆ हेळु.

05093030a शूराश्च हि कृतास्त्राश्च सर्वे युद्धाभिकांक्षिणः।
05093030c पांडवास्तावकाश्चैव तान्रक्ष महतो भयात्।।

पांडवरु मत्तु निन्नवरु ऎल्लरू शूररु. कृतास्त्ररागिद्दारॆ. युद्धाकांक्षिगळागिद्दारॆ. अवरन्नु ई महाभयदिंद रक्षिसु.

05093031a न पश्येम कुरून्सर्वान्पांडवांश्चैव संयुगे।
05093031c क्षीणानुभयतः शूरान्रथेभ्यो रथिभिर्हतान्।।

आ शूररु रथिगळिंद रथगळु पुडियागि युद्धदल्लि नाशवन्नु हॊंदिदरॆ कुरुगळन्नू पांडवरॆल्लरन्नू नावु नोडलारॆवु.

05093032a समवेताः पृथिव्यां हि राजानो राजसत्तम।
05093032c अमर्षवशमापन्ना नाशयेयुरिमाः प्रजाः।।

राजसत्तम! पृथ्विय राजरु सिट्टिन वशरागि ई प्रजॆगळन्नु नाशपडिसुव उद्देशदिंद सेरिद्दारॆ.

05093033a त्राहि राजन्निमं लोकं न नश्येयुरिमाः प्रजाः।
05093033c त्वयि प्रकृतिमापन्ने शेषं स्यात्कुरुनंदन।।

कुरुनंदन! राजन्! ई लोकवन्नु उळिसु. निन्न प्रजॆगळु नाशवागलु बिडबेड. निन्न स्वभाववन्नु हॊंदि ऎल्लवन्नू उळियुवंतॆ माडु.

05093034a शुक्ला वदान्या ह्रीमंत आर्याः पुण्याभिजातयः।
05093034c अन्योन्यसचिवा राजंस्तान्पाहि महतो भयात्।।

राजन्! शुचियागिरुव, उदारिगळाद, विनीतराद, आर्यराद, पुण्यगळिंद हुट्टिद, अन्योन्यरॊडनॆ ऒंदागिरुव इवरन्नु महा भयदिंद रक्षिसु.

05093035a शिवेनेमे भूमिपालाः समागम्य परस्परं।
05093035c सह भुक्त्वा च पीत्वा च प्रतियांतु यथागृहं।।
05093036a सुवाससः स्रग्विणश्च सत्कृत्य भरतर्षभ।
05093036c अमर्षांश्च निराकृत्य वैराणि च परंतप।।

भरतर्षभ! परंतप! ई भूमिपालकरु शांतियुतवागि परस्पररन्नु सेरलि, ऒट्टिगे तिंदु कुडिदु, उत्तम उडुगॆगळन्नु तॊट्टु, मालॆगळन्नु धरिसि सत्कृतरागि, सिट्टु-वैरगळन्नु तॊरॆदु, तम्म तम्म मनॆगळिगॆ तॆरळलि.

05093037a हार्दं यत्पांडवेष्वासीत्प्राप्तेऽस्मिन्नायुषः क्षये।
05093037c तदेव ते भवत्वद्य शश्वच्च भरतर्षभ।।

भरतर्षभ! ईग निन्न जीवनद हॆच्चुकालवु कळॆदुहोगिरलु, निनगॆ हिंदॆ पांडवरॊडनिद्द सौहार्दतॆय इन्नॊम्मॆ तोरिबरलि.

05093038a बाला विहीनाः पित्रा ते त्वयैव परिवर्धिताः।
05093038c तान्पालय यथान्यायं पुत्रांश्च भरतर्षभ।।

भरतर्षभ! बालकरागिरुवागले तंदॆयन्नु कळॆदुकॊंड अवरु निन्निंदले बॆळॆदरु. पुत्ररंतॆ यथान्यायवागि अवरन्नु पालिसबेकु.

05093039a भवतैव हि रक्ष्यास्ते व्यसनेषु विशेषतः।
05093039c मा ते धर्मस्तथैवार्थो नश्येत भरतर्षभ।।

विशेषवागि व्यसनदल्लिरुवाग अवरिगॆ निन्नदे रक्षणॆयु बेकु. भरतर्षभ! इल्लदिद्दरॆ निन्न धर्मार्थगळु नाशवागुत्तदॆ.

05093040a आहुस्त्वां पांडवा राजन्नभिवाद्य प्रसाद्य च।
05093040c भवतः शासनाद्दुःखमनुभूतं सहानुगैः।।
05093041a द्वादशेमानि वर्षाणि वने निर्व्युषितानि नः।
05093041c त्रयोदशं तथाज्ञातैः सजने परिवत्सरं।।

राजन्! पांडवनु निन्नन्नु अभिवंदिसि करुणॆयन्नु बेडि केळिकॊळ्ळुत्तिद्दारॆ: “निन्न शासनदंतॆ अनुगरॊंदिगॆ दुःखवन्नु सहिसिकॊंडु ई हन्नॆरडु वर्षगळु वनदल्लि मत्तु हागॆये हदिमूरनॆय वर्षवन्नु जनर मध्यॆ यारिगू तिळियदंतॆ कळॆदिद्देवॆ.

05093042a स्थाता नः समये तस्मिन्पितेति कृतनिश्चयाः।
05093042c नाहास्म समयं तात तच्च नो ब्राह्मणा विदुः।।

तंदॆयु ऒप्पंददंतॆ नडॆदुकॊळ्ळुत्तानॆ ऎंदु योचिसि नावु नडॆदुकॊंडॆवु. अप्पा! नावु ऒप्पंदवन्नु मुरियलिल्ल. इदन्नु ब्राह्मणरु तिळिदिद्दारॆ.

05093043a तस्मिन्नः समये तिष्ठ स्थितानां भरतर्षभ।
05093043c नित्यं संक्लेशिता राजन्स्वराज्यांशं लभेमहि।।

आदुदरिंद भरतर्षभ! ऒप्पंददंतॆ नडॆदुकॊंडु बंदवरॊडनॆ ऒप्पंददंतॆ नडॆदुको! राजन्! नावु साकष्टु कष्टगळन्नु अनुभविसिद्देवॆ. ईग नमगॆ नम्म राज्यांशवु दॊरॆयबेकु.

05093044a त्वं धर्ममर्थं युंजानः संयं नस्त्रातुमर्हसि।
05093044c गुरुत्वं भवति प्रेक्ष्य बहून्क्लेशांस्तितिक्ष्महे।।

धर्म-अर्थगळन्नु चॆन्नागि जोडिसि नम्मन्नु नीनु रक्षिसबेकु. निन्नन्नु गुरुवॆंदु स्वीकरिसि नावु बहळ क्लेशगळन्नु अनुभविसिद्देवॆ.

05093045a स भवान्मातृपितृवदस्मासु प्रतिपद्यतां।
05093045c गुरोर्गरीयसी वृत्तिर्या च शिष्यस्य भारत।।

नम्मन्नु नीनु तंदॆ-तायियंतॆ पालिसबेकु. भारत! गुरुविन कडॆ शिष्यरु नडॆदुकॊळ्ळुव रीतियु अति दॊड्डदु.

05093046a पित्रा स्थापयितव्या हि वयमुत्पथमास्थिताः।
05093046c संस्थापय पथिष्वस्मांस्तिष्ठ राजन्स्ववर्त्मनि।।

नावु दारितप्पिरुववरादरॆ तंदॆयागि नीने नम्मन्नु निल्लिसबेकु. राजन्! नीनु नम्मन्नु दारियल्लि इरिसि नीनू कूड सरियाद दारियल्लि निंतिरु.”

05093047a आहुश्चेमां परिषदं पुत्रास्ते भरतर्षभ।
05093047c धर्मज्ञेषु सभासत्सु नेह युक्तमसांप्रतं।।

भरतर्षभ! निन्न मक्कळु ई परिषत्तिगॆ इदन्नु हेळिकळुहिसिद्दारॆ: “धर्मवन्नु तिळिदिरुव ई सभासदरल्लि असांप्रतवु सरियल्ल.

05093048a यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च।
05093048c हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः।।

ऎल्लि धर्मवु अधर्मदिंद मत्तु सत्यवु सुळ्ळिनिंद सायिसल्पडुत्तदॆयो अदन्नु अल्लिद्दु नोडुत्तिरुव सभासदरू हतरागुत्तारॆ.

05093049a विद्धो धर्मो ह्यधर्मेण सभां यत्र प्रपद्यते।
05093049c न चास्य शल्यं कृंतंति विद्धास्तत्र सभासदः।
05093049e धर्म एतानारुजति यथा नद्यनुकूलजान्।।

अधर्मदिंद चुच्चल्पट्ट धर्मवु सभॆगॆ बंदाग आ मुळ्ळन्नु अवरु कित्तु तॆगियदे इद्दरॆ, अदु आ सभासदरन्ने चुच्चुत्तदॆ. नदियु तन्न दंडॆयल्लिरुव मरगळन्नु कॊच्चिकॊंडु होगुवंतॆ धर्मवु अवरन्नू कॊच्चिकॊंडु होगुत्तदॆ.”

05093050a ये धर्ममनुपश्यंतस्तूष्णीं ध्यायंत आसते।
05093050c ते सत्यमाहुर्धर्मं च न्याय्यं च भरतर्षभ।।

भरतर्षभ! धर्मवन्नु नोडिकॊंडु, ध्यानासक्तरागिद्दुकॊंडु अवरु सत्यवन्ने हेळुत्तिद्दारॆ. इल्लि धर्मवे न्यायवु.

05093051a शक्यं किमन्यद्वक्तुं ते दानादन्यज्जनेश्वर।
05093051c ब्रुवंतु वा महीपालाः सभायां ये समासते।
05093051e धर्मार्थौ संप्रधार्यैव यदि सत्यं ब्रवीम्यहं।।

जनेश्वर! अवरिगॆ कॊडुत्तेनॆ ऎन्नुवुदल्लदे बेरॆ एनन्नु हेळलु साध्य? नानु धर्मार्थगळन्नु योचिसि सत्यवन्नु हेळुत्तिद्देनॆ ऎंदादरॆ ई सभॆयल्लि सेरिरुव महीपालर्यारादरू हेळलि.

05093052a प्रमुंचेमान्मृत्युपाशात्क्षत्रियान् क्षत्रियर्षभ।
05093052c प्रशाम्य भरतश्रेष्ठ मा मन्युवशमन्वगाः।।

क्षत्रियर्षभ! ई क्षत्रियरन्नु मृत्युपाशदिंद बिडुगडॆ माडु. शांतनागु भरतश्रेष्ठ! कोपवशनागबेड!

05093053a पित्र्यं तेभ्यः प्रदायांशं पांडवेभ्यो यथोचितं।
05093053c ततः सपुत्रः सिद्धार्थो भुंक्ष्व भोगान्परंतप।।

पांडवरिगॆ यथोचितवागि अवर पितृगळ अंशवन्नु कॊट्टुबिडु! अनंतर परंतप! पुत्ररॊंदिगॆ अर्थसिद्धियन्नु हॊंदि भोगगळन्नु भोगिसु.

05093054a अजातशत्रुं जानीषे स्थितं धर्मे सतां सदा।
05093054c सपुत्रे त्वयि वृत्तिं च वर्तते यां नराधिप।।

सदा संतर धर्मदल्लि नडॆयुव अजातशत्रुवन्नु नीनु तिळिदिद्दीयॆ. नराधिप! हागॆये अवनु निन्न मत्तु निन्न मक्कळॊडनॆयू कूड नडॆदुकॊळ्ळुत्तिद्दानॆ.

05093055a दाहितश्च निरस्तश्च त्वामेवोपाश्रितः पुनः।
05093055c इंद्रप्रस्थं त्वयैवासौ सपुत्रेण विवासितः।।

सुडुव प्रयत्नक्कॊळपट्टिद्द, हॊरगट्टल्पट्ट, पुत्ररॊंदिगॆ निन्निंद इंद्रप्रस्थक्कॆ कळुहिसल्पट्ट अवनु पुनः निन्न आश्रितनागिरलु बयसुत्तानॆ.

05093056a स तत्र निवसन्सर्वान्वशमानीय पार्थिवान्।
05093056c त्वन्मुखानकरोद्राजन्न च त्वामत्यवर्तत।।

राजन्! अल्लि वासिसिरुवाग अवनु सर्व पार्थिवरन्नू गॆद्दरू निन्नन्नु ऎंदू मीरिसलिल्ल.

05093057a तस्यैवं वर्तमानस्य सौबलेन जिहीर्षता।
05093057c राष्ट्राणि धनधान्यं च प्रयुक्तः परमोपधिः।।

हीगॆ अवनु नडॆदुकॊळ्ळुत्तिरलु सौबलनु अवन राष्ट्रगळन्नु, धनधान्यगळन्नु गॆल्लुव आसॆयिंद परम उपायवन्नु बळसिदनु.

05093058a स तामवस्थां संप्राप्य कृष्णां प्रेक्ष्य सभागतां।
05093058c क्षत्रधर्मादमेयात्मा नाकंपत युधिष्ठिरः।।

आ अवस्थॆयन्नु पडॆदु, कृष्णॆयन्नु सभॆगॆ ऎळॆदुतंदुदन्नु नोडियू आ अमेयात्म युधिष्ठिरनु क्षत्रधर्मदिंद अलुगाडलिल्ल.

05093059a अहं तु तव तेषां च श्रेय इच्चामि भारत।
05093059c धर्मादर्थात्सुखाच्चैव मा राजन्नीनशः प्रजाः।।

भारत! धर्म, अर्थ मत्तु सुखगळल्लि नानु निम्म मत्तु अवर श्रेयस्सन्नु बयसुत्तिद्देनॆ. राजन्! प्रजॆगळन्नु नाशपडिसबेड!

05093060a अनर्थमर्थं मन्वाना अर्थं वानर्थमात्मनः।
05093060c लोभेऽतिप्रसृतान्पुत्रान्निगृह्णीष्व विशां पते।।

विशांपते! अनर्थवादुदन्नु लाभदायकवॆंदू, लाभदायकवादुदन्नु तमगॆ सरियल्ल ऎंदु तिळिदिरुव, लोभदल्लि बहळ मुंदुवरॆदिरुव निन्न मक्कळन्नु हिडिदिडु!

05093061a स्थिताः शुश्रूषितुं पार्थाः स्थिता योद्धुमरिंदमाः।
05093061c यत्ते पथ्यतमं राजंस्तस्मिंस्तिष्ठ परंतप।।

अरिंदम पार्थरु निन्न सेवॆमाडलु सिद्धरागिद्दारॆ, युद्दक्कू सिद्धरागिद्दारॆ. राजन्! परंतप! निनगॆ यावुदु उत्तमवॆनिसुत्तदॆयो अदरंतॆ निर्धरिसु.”

05093062a तद्वाक्यं पार्थिवाः सर्वे हृदयैः समपूजयन्।
05093062c न तत्र कश्चिद्वक्तुं हि वाचं प्राक्रामदग्रतः।।

पार्थिवरॆल्लरू अवन आ मातुगळन्नु हृदयदल्लिये मॆच्चिदरु. आदरॆ अल्लि यारू एनन्नु हेळलू मुंदॆ बरलिल्ल.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि भगवद्यान पर्वणि श्रीकृष्णवाक्ये त्रिनवतितमोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि भगवद्यान पर्वदल्लि श्रीकृष्णवाक्यदल्लि तॊंभत्मूरनॆय अध्यायवु.