प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
उद्योग पर्व
संजययान पर्व
अध्याय 22
सार
धृतराष्ट्रनु संजयनिगॆ पांडवर मत्तु अवरल्लि बंदु सेरिद योधर पराक्रमवन्नु वर्णिसुत्ता तानु अवर बलक्कॆ हॆदरुववनॆंदू, तानु पांडवरॊंदिगॆ शांतियन्नु बयसुत्तानॆंदू, युद्धद विषयवन्नु ऎत्तबारदॆंदू हेळि पांडवरल्लिगॆ कळुहिसिदुदु (1-39).
05022001 धृतराष्ट्र उवाच।
05022001a प्राप्तानाहुः संजय पांडुपुत्रान्। उपप्लव्ये तान्विजानीहि गत्वा।
05022001c अजातशत्रुं च सभाजयेथा। दिष्ट्यानघ ग्राममुपस्थितस्त्वं।।
धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “संजय! पांडुपुत्ररु उपप्लव्यक्कॆ बंदिद्दारॆंदु हेळुत्तारॆ. होगि तिळिदुकॊंडु बा. अजातशत्रुवन्नु ई रीति संभोधिसु: “अनघ! नीनु ग्रामक्कॆ बंदिरुवुदु ऒळ्ळॆयदे आयितु.”
05022002a सर्वान्वदेः संजय स्वस्तिमंतः। कृच्च्रं वासमतदर्हा निरुष्य।
05022002c तेषां शांतिर्विद्यतेऽस्मासु शीघ्रं। मिथ्योपेतानामुपकारिणां सतां।।
संजय! ऎल्लरिगू हेळबेकु: “अनर्हरागिद्दरू वनवासद कष्टगळन्नु मुगिसिद नीवु चॆन्नागिद्दीरा?” मोसगॊंडिद्दरू शीघ्रदल्लिये अवरु नम्म मेलॆ शांतियन्नु ताळुत्तारॆ. एकॆंदरॆ अवरु उपकारिगळु मत्तु ऒळ्ळॆयवरु.
05022003a नाहं क्व चित्संजय पांडवानां। मिथ्यावृत्तिं कां चन जात्वपश्यं।
05022003c सर्वां श्रियं ह्यात्मवीर्येण लब्ध्वा। पर्याकार्षुः पांडवा मह्यमेव।।
संजय! नानु ऎंदू पांडवरल्लि मिथ्यावृत्तियन्नु कंडवनल्ल. अवरु ऎल्ला संपत्तन्नू तम्मदे वीर्यदिंद गळिसिद्दरू पांडवरु नन्न परिचारकरंतिद्दरु.
05022004a दोषं ह्येषां नाधिगच्चे परिक्षन्। नित्यं कं चिद्येन गर्हेय पार्थान्।
05022004c धर्मार्थाभ्यां कर्म कुर्वंति नित्यं। सुखप्रिया नानुरुध्यंति कामान्।।
नित्य परीक्षिसिदरू पार्थरल्लि दूषिसुवंथह स्वल्पवू दोषवन्नु नानु काणलिल्ल. नित्यवू अवरु धर्म मत्तु अर्थगळिगागि कार्यगळन्नु माडुत्तारॆ. सुखप्रियरागि कामदिंद माडुवुदिल्ल.
05022005a घर्मं शीतं क्षुत्पिपासे तथैव। निद्रां तंद्रीं क्रोधहर्षौ प्रमादं।
05022005c धृत्या चैव प्रज्ञ्या चाभिभूय। धर्मार्थयोगान्प्रयतंति पार्थाः।।
उष्ण, शीत, हसिवु मत्तु बायारिकॆ, निद्रॆ, मैथुन, क्रोध, हर्ष, प्रमादगळन्नु सहिसिकॊंडु प्रज्ञॆयल्लिद्दुकॊंडु पार्थरु धर्मार्थयोगगळल्लि नडॆयुत्तारॆ.
05022006a त्यजंति मित्रेषु धनानि काले। न संवासाज्जीर्यति मैत्रमेषां।
05022006c यथार्हमानार्थकरा हि पार्थाः। तेषां द्वेष्टा नास्त्याजमीढस्य पक्षे।।
कालक्कॆ सरियागि अवरु मित्ररल्लि धनवन्नु बिडुत्तारॆ. इवरॊंदिगिन मैत्रवु समय हॆच्चादंतॆ जीर्णवागुवुदिल्ल. एकॆंदरॆ पार्थरु यथार्हवागि गौरव संपत्तुगळन्नु नीडुत्तारॆ. अजमीढन पक्षदल्लि अवरन्नु द्वेषिसुववरु यारू इल्ल.
05022007a अन्यत्र पापाद्विषमान्मंदबुद्धेः। दुर्योधनात्क्षुद्रतराच्च कर्णात्।
05022007c तेषां हीमे हीनसुखप्रियाणां। महात्मनां संजनयंति तेजः।।
ई पापि, विषमान्, मंदबुद्धि दुर्योधन मत्तु क्षुद्रतर कर्णरहॊरतागि! इवरिब्बरू सुख मत्तु स्नेहितरन्नु कळॆदुकॊंड आ महात्मर तेजस्सन्नु हॆच्चिसुत्तारॆ.
05022008a उत्थानवीर्यः सुखमेधमानो। दुर्योधनः सुकृतं मन्यते तत्।
05022008c तेषां भागं यच्च मन्येत बालः। शक्यं हर्तुं जीवतां पांडवानां।।
हॆच्चिन वीर्यवुळ्ळ मत्तु सुखवन्ने अनुभविसिद दुर्योधननु उत्तम कार्यगळन्ने गौरविसुत्तानॆ. आदरू अवरु जीवंतविरुवागले पांडवर पालन्नु कसिदुकॊळ्ळबहुदु ऎन्नुवुदु बालतन.
05022009a यस्यार्जुनः पदवीं केशवश्च। वृकोदरः सात्यकोऽजातशत्रोः।
05022009c माद्रीपुत्रौ सृंजयाश्चापि सर्वे। पुरा युद्धात्साधु तस्य प्रदानं।।
यार हॆज्जॆगळन्नु अर्जुन-केशवरु, वृकोदर-सात्यकियरु, माद्री पुत्ररु मत्तु सृंजयरॆल्लरू अनुसरिसुत्तारो आ अजातशत्रुविगॆ युद्धक्कॆ मॊदले कॊडुवुदु ऒळ्ळॆयदु.
05022010a स ह्येवैकः पृथिवीं सव्यसाची। गांडीवधन्वा प्रणुदेद्रथस्थः।
05022010c तथा विष्णुः केशवोऽप्यप्रधृष्यो। लोकत्रयस्याधिपतिर्महात्मा।।
रथदल्लि कुळित सव्यसाची गांडीवधन्वियॊब्बने पृथ्वियन्नु सदॆबडियलु साकु. हागॆये जयिसलसाध्य विष्णु, केशव, लोकत्रयगळ अधिपति महात्मनू अदन्ने माडुववनु.
05022011a तिष्ठेत कस्तस्य मर्त्यः पुरस्ताद्। यः सर्वदेवेषु वरेण्य ईड्यः।
05022011c पर्जन्यघोषान्प्रवपं शरौघान्। पतंगसंघानिव शीघ्रवेगान्।।
सर्वदेवरल्लि श्रेष्ठनाद, इष्टपात्रनाद, मोडगळंतॆ घोषिसुव, शीघ्रवागि संचरिसबल्ल चिट्टॆगळ हिंडुगळंथ बाणगळन्नु प्रयोगिसुववन ऎदिरु याव मानवनु ताने निंतानु?
05022012a दिशं ह्युदीचीमपि चोत्तरान् कुरून्। गांडीवधन्वैकरथो जिगाय।
05022012c धनं चैषामाहरत्सव्यसाची। सेनानुगान्बलिदांश्चैव चक्रे।।
सव्यसाचियु गांडीववन्नु हिडिदु, रथदल्लि कुळितु ऒब्बने उत्तरदिक्कन्नु मत्तु उत्तरद कुरुगळन्नु गॆद्दु अवर धनवन्नु तंदनु मत्तु अवर सेनॆगळन्नु तन्न बलद भागवन्नागि माडिदनु.
05022013a यश्चैव देवान्खांडवे सव्यसाची। गांडीवधन्वा प्रजिगाय सेंद्रान्।
05022013c उपाहरत्फल्गुनो जातवेदसे। यशो मानं वर्धयन्पांडवानां।।
गांडीवधन्वि सव्यसाचि फल्गुननु खांडवदल्लि इंद्रनन्नू सेरि ऎल्ल देवतॆगळन्नू सोलिसि जातवेदसनिगॆ उणिसि, पांडवर यशस्सन्नू मानवन्नू हॆच्चिसिदनु.
05022014a गदाभृतां नाद्य समोऽस्ति भीमाद्। धस्त्यारोहो नास्ति समश्च तस्य।
05022014c रथेऽर्जुनादाहुरहीनमेनं। बाह्वोर्बले चायुतनागवीर्यं।।
गदॆयन्नु हिडियुववरल्लि भीमन समनादवरु इंदु यारू इल्ल. आनॆयन्नु एरुववरल्लि अवन समनादवरिल्ल. रथदल्लि अवनु अर्जुननिगू मणियुवुदिल्ल ऎंदु हेळुत्तारॆ. बाहुबलदल्लि अवनु हत्तु साविर आनॆगळिगॆ सम.
05022015a सुशिक्षितः कृतवैरस्तरस्वी। दहेत्क्रुद्धस्तरसा धार्तराष्ट्रान्।
05022015c सदात्यमर्षी बलवान्न शक्यो। युद्धे जेतुं वासवेनापि साक्षात्।।
सुशिक्षितनाद, वैरत्ववन्नु बॆळॆसिकॊंड, आ तरस्वियु कृद्धनादरॆ क्षणमात्रदल्लि धार्तराष्ट्ररन्नु सुट्टुबिडुत्तानॆ. सदा कोपदल्लिरुव आ बलवाननन्नु साक्षात् वासवनू कूड युद्धदल्लि जयिसनु शक्यनिल्ल.
05022016a सुचेतसौ बलिनौ शीघ्रहस्तौ। सुशिक्षितौ भ्रातरौ फल्गुनेन।
05022016c श्येनौ यथा पक्षिपूगान्रुजंतौ। माद्रीपुत्रौ नेह कुरून्विशेतां।।
सुचेतसराद, बलशालिगळाद, शीघ्र कैचळकवुळ्ळ, अण्ण फल्गुननिंद तरबेतिपडॆद, पक्षिगळ हिंडिन मेलॆ हाराडुव गिडुगगळंतिरुव माद्रीपुत्ररीर्वरु कुरुगळ मेलॆ हाराडुत्तिरुत्तारॆ.
05022017a तेषां मध्ये वर्तमानस्तरस्वी। धृष्टद्युम्नः पांडवानामिहैकः।
05022017c सहामात्यः सोमकानां प्रबर्हः। संत्यक्तात्मा पांडवानां जयाय।।
अवर मध्यॆ ओडाडुव तरस्वी धृष्टद्युम्ननु पांडवरल्ले ऒब्बनॆंदु हेळुत्तारॆ. अवनु पांडवर जयक्कागि अमात्यरॊंदिगॆ सोमकर मत्तु तन्न आत्मवन्नू त्यजिसलु सिद्धनिद्दानॆंदु केळिद्देनॆ.
05022018a सहोषितश्चरितार्थो वयःस्थः। शाल्वेयानामधिपो वै विराटः।
05022018c सह पुत्रैः पांडवार्थे च शश्वद्। युधिष्ठिरं भक्त इति श्रुतं मे।।
यारबळियल्लि स्वल्प समय उळिदुकॊंडिद्दरो आ वयस्थ, शाल्वेयानर अधिप विराटनु पुत्ररॊंदिगॆ पांडवरिगागि इद्दानॆ मत्तु अवनु युधिष्ठिरन भक्त ऎंदु नानु केळिद्देनॆ.
05022019a अवरुद्धा बलिनः केकयेभ्यो। महेष्वासा भ्रातरः पंच संति।
05022019c केकयेभ्यो राज्यमाकांक्षमाणा। युद्धार्थिनश्चानुवसंति पार्थान्।।
केकय राज्यदिंद भ्रष्ट बलशालि ऐवरु महेष्वास सहोदररिद्दारॆ. राज्याकांक्षिगळाद अवरु युद्धार्थिगळागि पार्थरन्नु अवलंबिसिद्दारॆ.
05022020a सर्वे च वीराः पृथिवीपतीनां। समानीताः पांडवार्थे निविष्टाः।
05022020c शूरानहं भक्तिमतः शृणोमि। प्रीत्या युक्तान्संश्रितान्धर्मराजं।।
पृथ्वीपतिगळल्लि वीररॆल्लरू पांडवर विषयदल्लि निष्ठरागि सेरिद्दारॆ. आ शूररु भक्तिमतरागि प्रीतियिंद धर्मराजनन्नु सेरिद्दारॆ ऎंदु नानु केळिद्देनॆ.
05022021a गिर्याश्रया दुर्गनिवासिनश्च। योधाः पृथिव्यां कुलजा विशुद्धाः।
05022021c म्लेच्चाश्च नानायुधवीर्यवंतः। समागताः पांडवार्थे निविष्टाः।।
गिरि दुर्गगळल्लि वासिसुववरु मत्तु पृथ्वियल्लि विशुद्ध कुलदल्लि हुट्टिद योधरु, नाना आयुधवीर्यवंत म्लेच्चरु पांडवरिगागि निष्ठॆयिंद सेरिद्दारॆ.
05022022a पांड्यश्च राजामित इंद्रकल्पो। युधि प्रवीरैर्बहुभिः समेतः।
05022022c समागतः पांडवार्थे महात्मा। लोकप्रवीरोऽप्रतिवीर्यतेजाः।।
इंद्रसमनाद राज पांड्यनू युद्धदल्लि बहु प्रवीरररॊंदिगॆ लोकप्रवीर, अप्रतिम वीर्य तेजस्विगळाद महात्म पांडवरिगागि सेरिद्दारॆ.
05022023a अस्त्रं द्रोणादर्जुनाद्वासुदेवात्। कृपाद्भीष्माद्येन कृतं शृणोमि।
05022023c यं तं कार्ष्णिप्रतिमं प्राहुरेकं। स सात्यकिः पांडवार्थे निविष्टः।।
द्रोण, अर्जुन, वासुदेव, कृप मत्तु भीष्मरिंद कलित कृष्णन मगनिगॆ सरिसमनाद सात्यकियु पांडवरिगागि निष्ठावंतनागिद्दानॆंदु हेळुत्तारॆ.
05022024a अपाश्रिताश्चेदिकरूषकाश्च। सर्वोत्साहैर्भूमिपालैः समेताः।
05022024c तेषां मध्ये सूर्यमिवातपंतं। श्रिया वृतं चेदिपतिं ज्वलंतं।।
05022025a अस्तंभनीयं युधि मन्यमानं। ज्याकर्षतां श्रेष्ठतमं पृथिव्यां।
05022025c सर्वोत्साहं क्षत्रियाणां निहत्य। प्रसह्य कृष्णस्तरसा ममर्द।।
चेदि मत्तु करूषगळ भूमिपालरु ऎल्लरू उत्साहदिंद सेरिद्दारॆ. अवर मध्यॆ सूर्यनंतॆ सुडुत्तिरुव श्रीयिंद प्रज्वलिसुव चेदिपतियन्नु संहरिसिद, युद्धदल्लि अजेयनाद, गौरवान्वित, बिल्लन्नु ऎळॆयुववरल्लॆल्ला श्रेष्ठनाद, क्षत्रियर सर्वोत्साहवन्नु कसिदुकॊंडु नगुत्तिरुव तरस्वि कृष्णनिद्दानॆ.
05022026a यशोमानौ वर्धयन्यादवानां। पुराभिनच्चिशुपालं समीके।
05022026c यस्य सर्वे वर्धयंति स्म मानं। करूषराजप्रमुखा नरेंद्राः।।
अवनु हिंदॆ शिशुपालनन्नु संहरिसि यादवर यशस्सु मानगळन्नु वर्धिसिदनु. अदे करूषराज प्रमुखनन्नु नरेंद्ररॆल्लरू गौरविसि वर्धिसुत्तिद्दरु.
05022027a तमसह्यं केशवं तत्र मत्वा। सुग्रीवयुक्तेन रथेन कृष्णं।
05022027c संप्राद्रवंश्चेदिपतिं विहाय। सिंहं दृष्ट्वा क्षुद्रमृगा इवान्ये।।
अल्लि सुग्रीव मत्तु इतर कुदुरॆगळन्नु कट्टिद रथदल्लिद्द कृष्ण केशवनु असह्यनॆंदु तिळिदु, चेदिपतियन्नु बिट्टु, सिंहवन्नु नोडिद क्षुद्रमृगगळंतॆ इतररु ओडिहोदरु.
05022028a यस्तं प्रतीपस्तरसा प्रत्युदीयाद्। आशंसमानो द्वैरथे वासुदेवं।
05022028c सोऽशेत कृष्णेन हतः परासुः। वातेनेवोन्मथितः कर्णिकारः।।
सॊक्किनिंद तरस्तनागि वासुदेवनन्नु द्वंद्वयुद्धदल्लि ऎदुरिसलु अवनु कृष्णनिंद भिरुगाळिय हॊडॆतक्कॆ सिलुकि उरुळिद कर्णिकार वृक्षदंतॆ हॊडॆततिंदु जीववन्नु कळॆदुकॊंडु बिद्दनु.
05022029a पराक्रमं मे यदवेदयंत। तेषामर्थे संजय केशवस्य।
05022029c अनुस्मरंस्तस्य कर्माणि विष्णोः। गावल्गणे नाधिगच्चामि शांतिं।।
संजय! गावल्गणे! अवरिगागि केशवनु एनॆल्ल माडिद ऎंदु हेळुवुदन्नु केळिदरॆ मत्तु आ विष्णुविन कर्मगळन्नु स्मरिसिकॊंडरॆ ननगॆ शांतियॆन्नुवुदे इल्लवागिदॆ.
05022030a न जातु तां शत्रुरन्यः सहेत। येषां स स्यादग्रणीर्वृष्णिसिंहः।
05022030c प्रवेपते मे हृदयं भयेन। श्रुत्वा कृष्णावेकरथे समेतौ।।
आ वृष्णिसिंहन नायकत्वदल्लिरुव अवरन्नु याव शत्रुवू ऎदुरिसलु साध्यविल्ल. इब्बरु कृष्णरू ऒंदे रथदल्लि सेरिद्दारॆ ऎंदु केळि नन्न हृदयवु भयदिंद कंपिसुत्तिदॆ.
05022031a नो चेद्गच्चेत्संगरं मंदबुद्धिः। ताभ्यां सुतो मे विपरीतचेताः।
05022031c नो चेत्कुरून्संजय निर्दहेतां। इंद्राविष्णू दैत्यसेनां यथैव।
05022031e मतो हि मे शक्रसमो धनंजयः। सनातनो वृष्णिवीरश्च विष्णुः।।
नन्न मंदबुद्धि मगनु अवरॊंदिगॆ संगरवन्नु माडलु उत्सुकनागिद्दरॆ, संजय, अवनु अदन्नु माडियानु. इल्लदिद्दरॆ इंद्र मत्तु विष्णु इब्बरू दैत्यसेनॆयन्नु हेगो हागॆ शक्रसमनाद धनंजय मत्तु सनातन विष्णु वृष्णिवीररु अवनन्नु संहरिसुत्तारॆ ऎंदु ननगन्निसुत्तदॆ.
05022032a धर्मारामो ह्रीनिषेधस्तरस्वी। कुंतीपुत्रः पांडवोऽजातशत्रुः।
05022032c दुर्योधनेन निकृतो मनस्वी। नो चेत्क्रुद्धः प्रदहेद्धार्तराष्ट्रान्।।
कुंतीपुत्र पांडव अजातशत्रुवु धार्मिक. मर्यादॆयन्नु कळॆदुकॊळ्ळुव कॆलसगळन्नु माडदे इरुववनु. मत्तु तरस्वी. आ मनस्वियु दुर्योधननिंद मोसगॊंडिद्दानॆ. कृद्धनागि अवनु धार्तराष्ट्ररन्नु सुट्टुबिडुवुदिल्लवे?
05022033a नाहं तथा ह्यर्जुनाद्वासुदेवाद्। भीमाद्वापि यमयोर्वा बिभेमि।
05022033c यथा राज्ञाः क्रोधदीप्तस्य सूत। मन्योरहं भीततरः सदैव।।
सूत! क्रोधदीप्तनाद राजन सिट्टिगॆ सदैव हॆदरुवष्टु नानु अर्जुन, वासुदेव, भीम अथवा यमळरिगॆ हॆदरुवुदिल्ल.
05022034a अलं तपोब्रह्मचर्येण युक्तः। संकल्पोऽयं मानसस्तस्य सिध्येत्।
05022034c तस्य क्रोधं संजयाहं समीके। स्थाने जानन्भृशमस्म्यद्य भीतः।।
तपस्सु मत्तु ब्रह्मचर्यदिंद युक्तनाद अवनु मनस्सिनल्लि संकल्पिसिदुदु सिद्धियागुत्तदॆ. संजय! अवन क्रोधवन्नु मत्तु अदु ऎष्टु न्यायवादुदु ऎंदु तिळिदाग नन्नन्नु भीतियु आवरिसुत्तदॆ.
05022035a स गच्च शीघ्रं प्रहितो रथेन। पांचालराजस्य चमूं परेत्य।
05022035c अजातशत्रुं कुशलं स्म पृच्चेः। पुनः पुनः प्रीतियुक्तं वदेस्त्वं।।
नन्निंद कळुहिसल्पट्ट रथदल्लि शीघ्रवागि पांचालराजन सेनॆयु तंगिरुवल्लिगॆ होगु. अजातशत्रुविन कुशलवन्नु केळु. पुनः पुनः अवनन्नु प्रीतियिंद मातनाडिसु.
05022036a जनार्दनं चापि समेत्य तात। महामात्रं वीर्यवतामुदारं।
05022036c अनामयं मद्वचनेन पृच्चेः। धृतराष्ट्रः पांडवैः शांतिमीप्सुः।।
मगू! नीनु महामात्रनू, वीर्यवतनू, उदारनू, अनामयनू आद जनार्दननन्नु भेटियागुवॆ. नन्न मातिनंतॆ कुशलवन्नु केळुवॆ मत्तु धृतराष्ट्रनु पांडवरॊंदिगॆ शांतियन्नु बयसुत्तानॆ ऎंदु हेळुवॆ.
05022037a न तस्य किं चिद्वचनं न कुर्यात्। कुंतीपुत्रो वासुदेवस्य सूत।
05022037c प्रियश्चैषामात्मसमश्च कृष्णो। विद्वांश्चैषां कर्मणि नित्ययुक्तः।।
सूत! कुंतीपुत्रनु वासुदेवन मातिल्लदे एनन्नू माडलार. कृष्णनु अवरिगॆ आत्मदष्टे प्रियनादवनु. विध्वांसनाद अवनु नित्यवू अवर एळ्गॆय कॆलसवन्ने माडुत्तानॆ.
05022038a समानीय पांडवान्सृंजयांश्च। जनार्दनं युयुधानं विराटं।
05022038c अनामयं मद्वचनेन पृच्चेः। सर्वांस्तथा द्रौपदेयांश्च पंच।।
पांडवरन्नु, सृंजयरन्नु, जनार्दननन्नु, युयुधाननन्नु, विराटनन्नु, मत्तु ऐवरु द्रौपदेयरन्नू भेटिमाडि नन्न मातिनंतॆ कुशलवन्नु केळु.
05022039a यद्यत्तत्र प्राप्तकालं परेभ्यः। त्वं मन्येथा भारतानां हितं च।
05022039c तत्तद्भाषेथाः संजय राजमध्ये। न मूर्चयेद्यन्न भवेच्च युद्धं।।
संजय! अल्लि इन्नू इतर कालक्कॆ तक्कंतह, भारतर हितवॆंदॆनिसिद, अस्वीकृतगॊळ्ळद, युद्धवन्नु सूचिसद ऎल्लवन्नू राजमध्यदल्लि हेळु.””
समाप्ति
इति श्री महाभारते उद्योग पर्वणि संजययान पर्वणि धृतराष्ट्रसंदेशे द्वाविंशोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि उद्योग पर्वदल्लि संजययान पर्वदल्लि धृतराष्ट्रसंदेशदल्लि इप्पत्तॆरडनॆय अध्यायवु.