044 उत्तरगोग्रहे कृपवाक्यः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

विराट पर्व

गोहरण पर्व

अध्याय 44

सार

कृपनु कर्णन पौरुषवन्नु निंदिसि, अर्जुनन पराक्रमवन्नु हॊगळुत्ता, तावॆल्ल षड्रथरू ऒट्टादरॆ मात्र अर्जुननॊंदिगॆ होराडबल्लॆवु ऎंदु हेळिदुदु (1-22).

04044001 कृप उवाच।
04044001a सदैव तव राधेय युद्धे क्रूरतरा मतिः।
04044001c नार्थानां प्रकृतिं वेत्थ नानुबंधमवेक्षसे।।

कृपनु हेळिदनु: “कर्ण! निन्न क्रूरतर मनस्सु यावागलू युद्धदल्लि आसक्तवागिरुत्तदॆ. विषयगळ स्वरूप निनगॆ तिळियदु. अवुगळ परिणामवू निनगॆ काणुवुदिल्ल.

04044002a नया हि बहवः संति शास्त्राण्याश्रित्य चिंतिताः।
04044002c तेषां युद्धं तु पापिष्ठं वेदयंति पुराविदः।।

शास्त्रगळ आधारदिंद चिंतितवाद नीतिगळु बहळष्टुंटु. अवुगळल्लि युद्धवु पापपूरितवादुदॆंदु हिंदिनदन्नु बल्लवरु भाविसुत्तारॆ.

04044003a देशकालेन सम्युक्तं युद्धं विजयदं भवेत्।
04044003c हीनकालं तदेवेह फलवन्न भवत्युत।
04044003e देशे काले च विक्रांतं कल्याणाय विधीयते।।

देशकालगळु कूडिबंदाग मात्र युद्धवु विजयवन्नु तरुत्तदॆ. कॆट्ट कालगळल्लि अदु फलवन्नु कॊडुवुदिल्ल. तक्क देशकालगळल्लि तोरुव पराक्रमवु कल्याणवन्नुंटुमाडुत्तदॆ.

04044004a आनुकूल्येन कार्याणामंतरं संविधीयतां।
04044004c भारं हि रथकारस्य न व्यवस्यंति पंडिताः।।

देशकालगळ अनुकूलक्कॆ तक्कंतॆ कार्यगळ सफलतॆयन्नु योचिसिकॊळ्ळबेकु. रथ तयारिसुववन अभिप्रायदंतॆ पंडितरु आदरॆ युद्ध योग्यतॆयन्नु निर्धरिसुवुदिल्ल.

04044005a परिचिंत्य तु पार्थेन संनिपातो न नः क्षमः।
04044005c एकः कुरूनभ्यरक्षदेकश्चाग्निमतर्पयत्।।

इदन्नॆल्ल आलोचिसिदरॆ पार्थनॊडनॆ युद्धमाडुवुदु नमगॆ उचितवल्ल. अवनु ऒंटियागिये कौरवरन्नु गंधर्वरिंद रक्षिसिदवनु. ऒंटियागिये अग्नियन्नु तृप्तिगॊळिसिदनु.

04044006a एकश्च पंच वर्षाणि ब्रह्मचर्यमधारयत्।
04044006c एकः सुभद्रामारोप्य द्वैरथे कृष्णमाह्वयत्।
04044006e अस्मिन्नेव वने कृष्णो हृतां कृष्णामवाजयत्।।

अर्जुननु ऒंटियागि ऐदु वर्ष ब्रह्मचर्यवन्नाचरिसिदनु. सुभद्रॆयन्नु रथदल्लि कुळ्ळिरिसिकॊंडु ऒंटियागिये कृष्णनन्नु द्वंद्वयुद्धक्कॆ करॆदनु. ई वनदल्लिये अपहृतळाद कृष्णॆयन्नु गॆद्दुकॊंडनु.

04044007a एकश्च पंच वर्षाणि शक्रादस्त्राण्यशिक्षत।
04044007c एकः साम्यमिनीं जित्वा कुरूणामकरोद्यशः।।

ऒंटियागि ऐदु वर्ष इंद्रनिंद अस्त्रगळन्नु कलितनु. ऒंटियागिये शत्रुगळन्नु गॆद्दु कुरुगळिगॆ यशवन्नुंटुमाडिदनु.

04044008a एको गंधर्वराजानं चित्रसेनमरिंदमः।
04044008c विजिग्ये तरसा संख्ये सेनां चास्य सुदुर्जयां।।

आ शत्रुविनाशकनु गंधर्वराज चित्रसेननन्नू अवन अजेय सैन्यवन्नू युद्धदल्लि ऒंटियागिये बेग सोलिसिद्दनु.

04044009a तथा निवातकवचाः कालखंजाश्च दानवाः।
04044009c दैवतैरप्यवध्यास्ते एकेन युधि पातिताः।।

हागॆये देवतॆगळू कॊल्ललागदिद्द निवातकवच मत्तु कालखंजरॆंब राक्षसरन्नू अवनॊब्बने युद्धदल्लि उरुळिसिदनु.

04044010a एकेन हि त्वया कर्ण किं नामेह कृतं पुरा।
04044010c एकैकेन यथा तेषां भूमिपाला वशीकृताः।।

कर्ण! आ पांडवरल्लि ऒब्बॊब्बरे अनेक राजरन्नु वशपडिसिकॊंडंतॆ नीनु ऒंटियागि हिंदॆ एनन्नादरू माडिरुवॆयेनु?

04044011a इंद्रोऽपि हि न पार्थेन सम्युगे योद्धुमर्हति।
04044011c यस्तेनाशंसते योद्धुं कर्तव्यं तस्य भेषजं।।

इंद्रनू पार्थनॊडनॆ युद्धमाडलार. अवनॊडनॆ युद्धमाडबयसुववनिगॆ यावुदादरू औषध माडबेकु.

04044012a आशीविषस्य क्रुद्धस्य पाणिमुद्यम्य दक्षिणं।
04044012c अविमृश्य प्रदेशिन्या दंष्ट्रामादातुमिच्छसि।।

नीनु विचारमाडदे बलगैयन्नॆत्ति तोरुबॆरळन्नु चाचि रोषगॊंडिरुव विषसर्पद हल्लन्नु कीळबयसुत्तिरुवॆ.

04044013a अथ वा कुंजरं मत्तमेक एव चरन्वने।
04044013c अनंकुशं समारुह्य नगरं गंतुमिच्छसि।।

अथवा ऒब्बने अरण्यदल्लि अलॆयुत्त अंकुशविल्लदॆ मदगजवन्नु हत्ति नगरक्कॆ होगबयसुत्तिरुवॆ.

04044014a समिद्धं पावकं वापि घृतमेदोवसाहुतं।
04044014c घृताक्तश्चीरवासास्त्वं मध्येनोत्तर्तुमिच्छसि।।

अथवा तुप्प, कॊब्बु, मज्जॆगळ आहुतियिंद प्रज्वलिसुत्तिरुव अग्नियन्नु तुप्पदल्लि तॊय्द वस्त्र तॊट्टुकॊंडु दाटिहोगबयसुत्तिरुवॆ.

04044015a आत्मानं यः समुद्बध्य कंठे बद्ध्वा महाशिलां।
04044015c समुद्रं प्रतरेद्दोर्भ्यां तत्र किं नाम पौरुषं।।

तन्नन्नु हग्गदिंद बिगिदुकॊंडु कॊरळिनल्लि दॊड्ड कल्लॊंदन्नु कट्टिकॊंडु तोळुगळिंद ईजि समुद्रवन्नु दाटुववनारु? इदु ऎंथ पौरुष?

04044016a अकृतास्त्रः कृतास्त्रं वै बलवंतं सुदुर्बलः।
04044016c तादृशं कर्ण यः पार्थं योद्धुमिच्छेत्स दुर्मतिः।।

कर्ण! कृतास्त्रनू बलशालियू आद अंतह पार्थनॊडनॆ युद्धमाडबयसुव अस्त्र परिणितियिल्लदवनू दुर्बलनू आदवनु दुर्मति.

04044017a अस्माभिरेष निकृतो वर्षाणीह त्रयोदश।
04044017c सिंहः पाशविनिर्मुक्तो न नः शेषं करिष्यति।।

नम्मिंद हदिमूरु वर्षकाल वंचितरागि ईग पाशदिंद बिडुगडॆगॊंडिरुव ई सिंहवु नम्मल्लि यारन्नू उळिसुवुदिल्ल.

04044018a एकांते पार्थमासीनं कूपेऽग्निमिव संवृतं।
04044018c अज्ञानादभ्यवस्कंद्य प्राप्ताः स्मो भयमुत्तमं।।

बावियल्लि अडगिरुव बॆंकियंतॆ एकांतदल्लि इद्दंत पार्थनन्नु अज्ञानदिंद ऎदुरिसि नावु महाभयक्कॊळगादॆवु.

04044019a सह युध्यामहे पार्थमागतं युद्धदुर्मदं।
04044019c सैन्यास्तिष्ठंतु संनद्धा व्यूढानीकाः प्रहारिणः।।

युद्धोन्मत्तनागि बंदिरुव पार्थनॊडनॆ नावु होराडोण. सैन्य सन्नद्धवागि निल्ललि. योधरु व्यूहगॊळ्ळलि.

04044020a द्रोणो दुर्योधनो भीष्मो भवान्द्रौणिस्तथा वयं।
04044020c सर्वे युध्यामहे पार्थं कर्ण मा साहसं कृथाः।।

द्रोण, दुर्योधन, भीष्म, नीनु, अश्वत्थाम - नावॆल्लरू पार्थनॊडनॆ युद्धमाडोण कर्ण. नीनॊब्बने साहसमाडबेड.

04044021a वयं व्यवसितं पार्थं वज्रपाणिमिवोद्यतं।
04044021c षड्रथाः प्रतियुध्येम तिष्ठेम यदि संहताहः।

षड्रथराद नावु ऒट्टागि निंतरॆ वज्रपाणियंतॆ सिद्धवागि युद्धक्कॆ निश्चयिसिरुव पार्थनॊडनॆ होराडबल्लॆवु.

04044022a व्यूढानीकानि सैन्यानि यत्ताः परमधन्विनः।
04044022c युध्यामहेऽर्जुनं संख्ये दानवा वासवं यथा।।

व्यूहगॊंडु निंत सैन्यदॊडगूडिद श्रेष्ठ धनुर्धरराद नावु ऎच्चरिकॆयिंद रणदल्लि दानवरु इंद्रनॊडनॆ युद्धमाडुवंतॆ अर्जुननॊडनॆ युद्धमाडोण.”

समाप्ति

इति श्री महाभारते विराट पर्वणि गोहरण पर्वणि उत्तरगोग्रहे कृपवाक्ये चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः।
इदु श्री महाभारतदल्लि विराट पर्वदल्लि गोहरण पर्वदल्लि उत्तरगोग्रहदल्लि कृपवाक्यदल्लि नल्वत्नाल्कनॆय अध्यायवु.