017 द्रौपदीभीमसंवादः

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

विराट पर्व

कीचकवध पर्व

अध्याय 17

सार

द्रौपदियु भीमनल्लि तन्न दुःखक्कॆ कारणवन्नु हेळिकॊळ्ळुवुदु (1-29).

04017001 द्रौपद्युवाच।
04017001a अशोच्यं नु कुतस्तस्या यस्या भर्ता युधिष्ठिरः।
04017001c जानन्सर्वाणि दुःखानि किं मां त्वं परिपृच्छसि।।

द्रौपदियु हेळिदळु: “युधिष्ठिरनिगॆ पत्नियागिरुववळिगॆ यावाग ताने शोकवॆन्नुवुदिरुवुदिल्ल? नन्न दुःखद कुरितु ऎल्लवन्नु तिळिदू नन्नन्नु एकॆ प्रश्निसुत्तिरुवॆ?

04017002a यन्मां दासीप्रवादेन प्रातिकामी तदानयत्।
04017002c सभायां पार्षदो मध्ये तन्मां दहति भारत।।

भारत! अंदु नन्नन्नु सेवक प्रतिकामियु दासी ऎंदु करॆयुत्ता सभॆय मध्यॆ ऎळॆदुकॊंडु होदनल्ल अदु नन्नन्नु सुडुत्तिदॆ.

04017003a पार्थिवस्य सुता नाम का नु जीवेत मादृशी।
04017003c अनुभूय भृशं दुःखमन्यत्र द्रौपदीं प्रभो।।

प्रभो! ई द्रौपदियल्लदे बेरॆ याव राजपुत्रियु ताने नन्न हागॆ रोषवन्नु अनुभविसि जीविसिद्दाळु?

04017004a वनवासगतायाश्च सैंधवेन दुरात्मना।
04017004c परामर्शं द्वितीयं च सोढुमुत्सहते नु का।।

ऎरडनॆय बारि, वनवासदल्लिद्दाग दुरात्म सैंधवनु माडिद्दुदन्नू सहिसिकॊंडु यारुताने इद्दाळु?

04017005a मत्स्यराज्ञः समक्षं च तस्य धूर्तस्य पश्यतः।
04017005c कीचकेन पदा स्पृष्टा का नु जीवेत मादृशी।।

मत्स्यराजन समक्षमदल्लिये, आ दूर्तनु नोडुत्तिद्दंतॆये, कीचकन कालिनिंद ऒदॆसिकॊंड यारुताने नन्नहागॆ जीविसिद्दाळु?

04017006a एवं बहुविधैः क्लेशैः क्लिश्यमानां च भारत।
04017006c न मां जानासि कौंतेय किं फलं जीवितेन मे।।

भारत! हीगॆ बहुविधद दुःखगळिंद बाधितळाद नानु निनगॆ अर्थवागुत्तिल्ल. कौंतेय! नानु बदुकिद्दु फलवेनु?

04017007a योऽयं राज्ञो विराटस्य कीचको नाम भारत।
04017007c सेनानीः पुरुषव्याघ्र स्यालः परमदुर्मतिः।।
04017008a स मां सैरंध्रिवेषेण वसंतीं राजवेश्मनि।
04017008c नित्यमेवाह दुष्टात्मा भार्या मम भवेति वै।।

भारत! पुरुषव्याघ्र! ई राज विराटन सेनानियू भावमैदुननू आद कीचक ऎंब हॆसरिन परम दुर्मति दुष्टनु राजभवनदल्लि सैरंध्रिय वेषदल्लि वासिसुत्तिरुव नन्नन्नु नित्यवू ननगॆ हॆंडतियागु ऎंदु काडुत्तिरुत्तानॆ.

04017009a तेनोपमंत्र्यमाणाया वधार्हेण सपत्नहन्।
04017009c कालेनेव फलं पक्वं हृदयं मे विदीर्यते।।

शत्रुनाशकने! वधार्हनाद अवनिंद हीगॆ ऒत्तायक्कॊळपट्ट नन्न हृदयवु बहुकालदिंद पक्ववागिरुव फलदंतॆ बिरिदुहोगिदॆ.

04017010a भ्रातरं च विगर्हस्व ज्येष्ठं दुर्द्यूतदेविनं।
04017010c यस्यास्मि कर्मणा प्राप्ता दुःखमेतदनंतकं।।

महाजूजुकोरनाद निन्न अण्णनन्नु निंदिसु. अवन कॆलसदिंदले नानु ई कॊनॆयिल्लद दुःखवन्नु अनुभविसुत्तिद्देनॆ.

04017011a को हि राज्यं परित्यज्य सर्वस्वं चात्मना सह।
04017011c प्रव्रज्यायैव दीव्येत विना दुर्द्यूतदेविनं।।

आ जूजाळिय हॊरतु बेरॆ यारु ताने तन्नन्नू, राज्यवन्नू, सर्वस्ववन्नू तॊरॆदु वनवासक्कागिये जूजाडुत्तानॆ?

04017012a यदि निष्कसहस्रेण यच्चान्यत्सारवद्धनं।
04017012c सायंप्रातरदेविष्यदपि संवत्सरान्बहून्।।
04017013a रुक्मं हिरण्यं वासांसि यानं युग्यमजाविकं।
04017013c अश्वाश्वतरसंघांश्च न जातु क्षयमावहेत्।।

साविर नाण्यगळन्नू मत्तु इन्नू सारवत्ताद धनवन्निट्टु अनेक वर्षगळ वरॆगॆ बॆळिग्गॆ-संजॆ जूजाडुत्तिद्दरू अवन चिन्न, बॆळ्ळि, वस्त्र, वाहन, रथ, मेकॆ हिंडु, कुदुरॆ, मत्तु हेसरगत्तॆगळ समूहगळु करगुत्तिरलिल्ल.

04017014a सोऽयं द्यूतप्रवादेन श्रिया प्रत्यवरोपितः।
04017014c तूष्णीमास्ते यथा मूढः स्वानि कर्माणि चिंतयन्।।

जूजिन हुच्चिनल्लि संपत्तन्नु कळॆदुकॊंडु तानु माडिद्दुदर कुरितु चिंतिसुत्ता ईग मूढनंतॆ सुम्मनॆ कुळितिद्दानॆ.

04017015a दश नागसहस्राणि पद्मिनां हेममालिनां।
04017015c यं यांतमनुयांतीह सोऽयं द्यूतेन जीवति।।

तानु हॊरटाग चिन्नद हारगळिंद मत्तु तावरॆगळिंद अलंकृतवाद हत्तु साविर आनॆगळिंद हिंबालिसल्पडुत्तिद्दवनु इंदु जूजाडिकॊंडु अदरिंद जीविसुत्तिद्दानॆ!

04017016a तथा शतसहस्राणि नृणाममिततेजसां।
04017016c उपासते महाराजमिंद्रप्रस्थे युधिष्ठिरं।।

इंद्रप्रस्थदल्लि महाराज युधिष्ठिरनन्नु नूरारु साविरारु अमिततेजस जनरु पूजिसुत्तिद्दरु.

04017017a शतं दासीसहस्राणि यस्य नित्यं महानसे।
04017017c पात्रीहस्तं दिवारात्रमतिथीन्भोजयंत्युत।।

अवन अडुगॆ मनॆयल्लि नित्यवू सहस्र दासियरु कैयल्लि पात्रॆगळन्नु हिडिदु हगलिरुळु अतिथिगळिगॆ ऊट बडिसुत्तिद्दरु.

04017018a एष निष्कसहस्राणि प्रदाय ददतां वरः।
04017018c द्यूतजेन ह्यनर्थेन महता समुपावृतः।।

सहस्रनाण्यगळन्नु दानमाडुत्तिद्द श्रेष्ठ दानियु इंदु द्यूतदिंदाद दॊड्ड अनर्थक्कॆ सिलुकिकॊंडिद्दानॆ.

04017019a एनं हि स्वरसंपन्ना बहवः सूतमागधाः।
04017019c सायंप्रातरुपातिष्ठन्सुमृष्टमणिकुंडलाः।।

विमल मणिकुंडलगळन्नु धरिसिद्द स्वरसंपन्नराद बहुमंदि हॊगळु भटरु अवनन्नु संजॆ मत्तु मुंजानॆगळल्लि सेवॆ सल्लिसुत्तिद्दरु.

04017020a सहस्रमृषयो यस्य नित्यमासन्सभासदः।
04017020c तपःश्रुतोपसंपन्नाः सर्वकामैरुपस्थिताः।।

तपःस्संपन्नरू वेदसंपन्नरू ऎल्ल बयकॆगळ सिद्धिसिद्धरू आद सहस्र ऋषिगळु नित्यवू अवन सभासदरागिरुत्तिद्दरु.

04017021a अंधान्वृद्धांस्तथानाथान्सर्वान्राष्ट्रेषु दुर्गतान्।
04017021c बिभर्त्यविमना नित्यमानृशंस्याद्युधिष्ठिरः।।

युधिष्ठिरनु राष्ट्रदल्लिद्द ऎल्ल कुरुडरन्नू, वृद्धरन्नू, अनाथरन्नू मत्तु दुर्गतिकरन्नु विमनस्कनागदे करुणॆयिंद नित्यवू पोषिसुत्तिद्दनु.

04017022a स एष निरयं प्राप्तो मत्स्यस्य परिचारकः।
04017022c सभायां देविता राज्ञः कंको ब्रूते युधिष्ठिरः।।

अदे राज युधिष्ठिरनु ईग दुरवस्थॆगीडागि मत्स्यराजन परिचारकनागि अवनॊंदिगॆ सभॆयल्लि द्यूतवाडुत्ता कंकनॆंदु करॆयल्पडुत्तिद्दानॆ.

04017023a इंद्रप्रस्थे निवसतः समये यस्य पार्थिवाः।
04017023c आसन्बलिभृतः सर्वे सोऽद्यान्यैर्भृतिमिच्छति।।

इंद्रप्रस्थदल्लि वासिसुत्तिद्द समयदल्लि राजरॆल्लरू यारिगॆ कप्पवन्नु कॊडुत्तिद्दरो अवने इंदु इतरर आश्रयवन्नु केळिकॊंडिद्दानॆ.

04017024a पार्थिवाः पृथिवीपाला यस्यासन्वशवर्तिनः।
04017024c स वशे विवशो राजा परेषामद्य वर्तते।।

पृथिवीपालराद दॊरॆगळु यार वशवर्तिगळागिद्दरो आ राजने इंदु अस्वतंत्रनागि इतरर वशदल्लिद्दानॆ.

04017025a प्रताप्य पृथिवीं सर्वां रश्मिवानिव तेजसा।
04017025c सोऽयं राज्ञो विराटस्य सभास्तारो युधिष्ठिरः।।

समस्त पृथ्वियन्नु सूर्यनंतॆ तेजस्सिनिंद बॆळगिद आ युधिष्ठिरनु इंदु विराटराजन सभासदनागिद्दानॆ.

04017026a यमुपासंत राजानः सभायामृषिभिः सह।
04017026c तमुपासीनमद्यान्यं पश्य पांडव पांडवं।।

पांडव! सभॆयल्लि यारन्नु राजरु मत्तु ऋषिगळु पूजिसुत्तिद्दरो आ पांडवने ईग इतररन्नु पूजिसुत्तिरुवुदन्नु नोडु.

04017027a अतदर्हं महाप्राज्ञं जीवितार्थेऽभिसंश्रितं।
04017027c दृष्ट्वा कस्य न दुःखं स्याद्धर्मात्मानं युधिष्ठिरं।।

जीवितार्थक्कागि इतरर आश्रयदल्लिरुव महाप्राज्ञ धर्मात्म युधिष्ठिरनन्नु नोडि यारिगॆ ताने दुःखवागलारदु?

04017028a उपास्ते स्म सभायां यं कृत्स्ना वीर वसुंधरा।
04017028c तमुपासीनमद्यान्यं पश्य भारत भारतं।।

वीर! भारत! सभॆयल्लि यारन्नु इडी भूमिये पूजिसुत्तित्तो आ भारतने इतररन्नु उपासिसुत्तिरुवुदन्नु नोडु.

04017029a एवं बहुविधैर्दुःखैः पीड्यमानामनाथवत्।
04017029c शोकसागरमध्यस्थां किं मां भीम न पश्यसि।।

भीम! ई रीतियल्लिबहुविधद दुःखगळिंद शोकसागरद मध्यदल्लि निंतु अनाथळंतॆ पीडॆपडुत्तिरुवुदु निनगॆ काणुत्तिल्लवे?”

समाप्ति

इति श्री महाभारते विराटपर्वणि कीचकवधपर्वणि द्रौपदीभीमसंवादे सप्तदशोऽध्यायः ।
इदु श्री महाभारतदल्लि विराटपर्वदल्लि कीचकवधपर्वदल्लि द्रौपदीभीमसंवाददल्लि हदिनेळनॆय अध्यायवु.