प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
विराट पर्व
कीचकवध पर्व
अध्याय 15
सार
कीचकनु कै हिडियलु अवळु ओडि होगुत्तिद्दाग द्रौपदिय कूदलन्नु ऎळॆदु ऒदॆदु विराटन आस्थानदल्लि कॆडहुवुदु (1-7). अगोचर राक्षसनिंद हॊडॆयल्पट्टु कीचकनु मूर्छितनागि बीळुवुदु (8-9). सिट्टिगॆद्द भीमसेननन्नु युधिष्ठिरनु तडॆदुदु (10-12). कुपितळाद द्रौपदियु आस्थानदल्लि विराटनन्नुद्देशिसि रोदिसुवुदु (13-26). विराट, युधिष्ठिर मत्तु सभासदरु अवळन्नु अरमनॆगॆ मरळलु हेळिदुदु (27-36). द्रौपदियु सुदेष्णॆयल्लिगॆ मरळि अवळ गंडंदिरु कीचकनन्नु अवश्यवागि कॊल्लुवरॆंदु हेळुवुदु (37-41).
04015001 कीचक उवाच।
04015001a स्वागतं ते सुकेशांते सुव्युष्टा रजनी मम।
04015001c स्वामिनी त्वमनुप्राप्ता प्रकुरुष्व मम प्रियं।।
कीचकनु हेळिदनु: “चॆलुगूदलिनवळे! निनगॆ स्वागत. इरुळु ननगॆ सुप्रभातवन्नु तंदिदॆ. नन्न ऒडतियंतॆ नीनु बंदिरुवॆ. नन्नन्नु संतोषगॊळिसु.
04015002a सुवर्णमालाः कंबूश्च कुंडले परिहाटके।
04015002c आहरंतु च वस्त्राणि कौशिकान्यजिनानि च।।
चिन्नद सरगळन्नू, बळॆगळन्नु, सुवर्णकुंडलगळन्नू, रेष्मॆ वस्त्रगळन्नू, जिंकॆय चर्मगळन्नू तरिसुत्तेनॆ.
04015003a अस्ति मे शयनं शुभ्रं त्वदर्थमुपकल्पितं।
04015003c एहि तत्र मया सार्धं पिबस्व मधुमाधवीं।।
निनगागि नन्न हासिगॆ शुभ्रवागि अणियागिदॆ. अल्लिगॆ बा. नन्नॊडनॆ माधवी मधुवन्नु कुडि.”
04015004 द्रौपद्युवाच।
04015004a अप्रैषीद्राजपुत्री मां सुराहारीं तवांतिकं।
04015004c पानमानय मे क्षिप्रं पिपासा मेति चाब्रवीत्।।
द्रौपदियु हेळिदळु: “राजपुत्रियु नन्नन्नु निन्न बळि सुरॆयन्नु तरुवुदक्कागि कळुहिसिद्दाळॆ. ‘ननगॆ पानीयवन्नु बेग ता. बायारिकॆयागिदॆ!’ ऎंदु हेळि कळुहिसिद्दाळॆ.”
04015005 कीचक उवाच।
04015005a अन्या भद्रे नयिष्यंति राजपुत्र्याः परिस्रुतं।
कीचकनु हेळिदनु: “भद्रे! राजपुत्रिगॆ मद्यवन्नु बेरॆयवरु ऒय्युत्तारॆ.””
04015006 वैशंपायन उवाच।
04015006a इत्येनां दक्षिणे पाणौ सूतपुत्रः परामृशत्।
04015006c सा गृहीता विधुन्वाना भूमावाक्षिप्य कीचकं।।
04015006e सभां शरणमाधावद्यत्र राजा युधिष्ठिरः।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “हीगॆ हेळि सूतपुत्रनु अवळ बलगैयन्नु हिडिदुकॊंडनु. हिडितक्कॆ सिक्किद अवळु नडुगुत्ता कीचकनन्नु नॆलक्कॆ कॆडवि राज युधिष्ठिरनिद्द सभॆगॆ रक्षणॆगागि ओडिदळु.
04015007a तां कीचकः प्रधावंतीं केशपक्षे परामृशत्।
04015007c अथैनां पश्यतो राज्ञः पातयित्वा पदावधीत्।।
ओडुत्तिद्द अवळ केशवन्नु कीचकनु हिडिदुकॊंडु राजनु नोडुत्तिद्दंतॆये अवळन्नु बीळिसि कालिनिंद ऒदॆदनु.
04015008a ततो योऽसौ तदार्केण राक्षसः संनियोजितः।
04015008c स कीचकमपोवाह वातवेगेन भारत।।
भारत! आग सूर्यनिंद नियोजितनागिद्द राक्षसनु भिरुगाळिय वेगदिंद कीचकनन्नु तळ्ळिदनु. v04015009a स पपात ततो भूमौ रक्षोबलसमाहतः।
04015009c विघूर्णमानो निश्चेष्टश्चिन्नमूल इव द्रुमः।।
राक्षसन शक्तियुत हॊडॆतक्कॆ सिक्किद कीचकनु तिरुगुत्ता बेरु कडिद मरदंतॆ प्रज्ञॆतप्पि नॆलद मेलॆ बिद्दनु.
04015010a तां चासीनौ ददृशतुर्भीमसेनयुधिष्ठिरौ।
04015010c अमृष्यमाणौ कृष्णायाः कीचकेन पदा वधं।।
अल्लि कुळितिद्द भीमसेन-युधिष्ठिररिब्बरू कीचकनु कृष्णॆयन्नु कालिनिंद ऒदॆदुदन्नु नोडि कुपितरादरु.
04015011a तस्य भीमो वधप्रेप्सुः कीचकस्य दुरात्मनः।
04015011c दंतैर्दंतांस्तदा रोषान्निष्पिपेष महामनाः।।
आ महामन भीमनु अल्लिये दुरात्म कीचकनन्नु कॊल्ल बयसि रोषदिंद हल्लु कडिदनु.
04015012a अथांगुष्ठेनावमृद्नादंगुष्ठं तस्य धर्मराट्।
04015012c प्रबोधनभयाद्राजन्भीमस्य प्रत्यषेधयत्।।
राजन्! आग धर्मराजनु तम्म कुरितु तिळिदुबिडुत्तदॆयो ऎन्नुव भयदिंद अवन अंगुष्ठदिंद भीमन अंगुष्ठवन्नु अदुमि तडॆदनु.
04015013a सा सभाद्वारमासाद्य रुदती मत्स्यमब्रवीत्।
04015013c अवेक्षमाणा सुश्रोणी पतींस्तान्दीनचेतसः।।
04015014a आकारमभिरक्षंती प्रतिज्ञां धर्मसंहितां।
04015014c दह्यमानेव रौद्रेण चक्षुषा द्रुपदात्मजा।।
आ सुंदरि द्रौपदियु अळुत्ता, दीनचेतसराद तन्न आ पतिगळन्नु नोडुत्ता, मारुवेषवन्नू धर्मसंहित प्रतिज्ञॆयन्नू कापाडिकॊळ्ळुत्ता, सभाद्वारवन्नु सेरि रौद्राकारद कण्णुगळिंद मत्स्यनिगॆ हेळिदळु.
04015015 द्रौपद्युवाच।
04015015a येषां वैरी न स्वपिति पदा भूमिमुपस्पृशन्।
04015015c तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदावधीत्।।
द्रौपदियु हेळिदळु: “भूमियन्नु कालिनिंद मॆट्टि यार वैरियु निद्रिसलारनो अवर भार्यॆयाद मानिनियाद नन्नन्नु सूतपुत्रनु ऒदॆदनल्ल!
04015016a ये दद्युर्न च याचेयुर्ब्रह्मण्याः सत्यवादिनः।
04015016c तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदावधीत्।।
दानिगळू, याचिसदवरू, ब्राह्मणपूजकरू, सत्यवादिगळू आदवर भार्यॆयाद नन्नन्नु सूतपुत्रनु कालिनिंद ऒदॆदनल्ल!
04015017a येषां दुंदुभिनिर्घोषो ज्याघोषः श्रूयतेऽनिशं।
04015017c तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदावधीत्।।
यार दुंदुभिय निर्घोषवू, बिल्लिन हॆदॆय घोषवू सदा केळिबरुत्तदॆयो अवर भार्यॆयाद नन्नन्नु सूतपुत्रनु कालिनिंद ऒदॆदनल्ल!
04015018a ये ते तेजस्विनो दांता बलवंतोऽभिमानिनः।
04015018c तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदावधीत्।।
तेजस्विगळू उदारिगळू, बलशालिगळू, अभिमानिगळू आदवर भार्यॆयू मानिनियू आद नन्नन्नु सूतपुत्रनु कालिनिंद ऒदॆदनल्ल!
04015019a सर्वलोकमिमं हन्युर्धर्मपाशसितास्तु ये।
04015019c तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदावधीत्।।
यारु ई समस्त लोकवन्ने नाशमाडबल्लरो, धर्मपाशबद्धरो, अवर भार्यॆयू मानिनियू आद नन्नन्नु सूत पुत्रनु कालिनिंद ऒदॆदनल्ल!
04015020a शरणं ये प्रपन्नानां भवंति शरणार्थिनां।
04015020c चरंति लोके प्रच्छन्नाः क्व नु तेऽद्य महारथाः।।
मॊरॆहॊक्क शरणार्थिगळिगॆ आश्रयवागुव, लोकदल्लि गुप्तरागि संचरिसुव आ महारथरु इंदु ऎल्लि?
04015021a कथं ते सूतपुत्रेण वध्यमानां प्रियां सतीं।
04015021c मर्षयंति यथा क्लीबा बलवंतोऽमितौजसः।।
प्रियपत्नियन्नु सूतपुत्रनु ऒदॆयुवुदन्नु बलशालिगळू, महातेजस्विगळु आद अवरु नपुंसकरंतॆ हेगॆ तानॆ सहिसिकॊळ्ळुत्तारॆ?
04015022a क्व नु तेषाममर्षश्च वीर्यं तेजश्च वर्तते।
04015022c न परीप्संति ये भार्यां वध्यमानां दुरात्मना।।
दुरात्मनिंद ऒदॆयिसिकॊळ्ळुत्तिरुव भार्यॆय बळि धाविसदिरुव अवर कोप, पराक्रम, तेजस्सु ऎल्लि होयितु?
04015023a मयात्र शक्यं किं कर्तुं विराटे धर्मदूषणं।
04015023c यः पश्यन्मां मर्षयति वध्यमानामनागसं।।
तप्पिल्लदे ऒदॆयिसिकॊळ्ळुत्तिरुव नन्नन्नु नोडियू ई धर्मदूषणवन्नु सहिसिकॊंडिरुव विराटन विषयदल्लि नानेनु ताने माडबल्लॆ?
04015024a न राजन्राजवत्किं चित्समाचरसि कीचके।
04015024c दस्यूनामिव धर्मस्ते न हि संसदि शोभते।।
राजन्! कीचकन विषयदल्लि नीनु राजनंतॆ स्वल्पवू वर्तिसुत्तिल्ल. दस्युगळदंतिरुव निन्न ई धर्मवु सभॆयल्लि शोभिसुवुदिल्ल.
04015025a न कीचकः स्वधर्मस्थो न च मत्स्यः कथं चन।
04015025c सभासदोऽप्यधर्मज्ञा य इमं पर्युपासते।।
कीचकनु स्वधर्मवन्नु अनुसरिसुत्तिल्ल. मत्स्यराजनू यावागलू स्वधर्मवन्नु पालिसलिल्ल. ईतनन्नु सेविसुत्तिरुव सभासदरू धर्मज्ञरल्ल.
04015026a नोपालभे त्वां नृपते विराट जनसंसदि।
04015026c नाहमेतेन युक्ता वै हंतुं मत्स्य तवांतिके।
04015026e सभासदस्तु पश्यंतु कीचकस्य व्यतिक्रमं।।
विराट राज! जनर सभॆयल्लि निन्नन्नु निंदिसुवुदिल्ल. मत्स्य! निन्न आश्रयदल्लिद्द नानु इवन हिंसॆगॊळगागुवुदु युक्तवल्ल. कीचकन मितिमीरिद नडतॆयन्नु सभासदरू नोडलि.”
04015027 विराट उवाच।
04015027a परोक्षं नाभिजानामि विग्रहं युवयोरहं।
04015027c अर्थतत्त्वमविज्ञाय किं नु स्यात्कुशलं मम।।
विराटनु हेळिदनु: “परोक्षवागि नडॆद निम्मिब्बर जगळवु ननगॆ तिळियदु. वस्तुस्थितियन्नु सरियागि तिळियदे नानु हेगॆ ताने तीर्मान नीडुवुदु उचित?””
04015028 वैशंपायन उवाच।
04015028a ततस्तु सभ्या विज्ञाय कृष्णां भूयोऽभ्यपूजयन्।
04015028c साधु साध्विति चाप्याहुः कीचकं च व्यगर्हयन्।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “बळिक सभासदरु ऎल्लवन्नू तिळिदु “साधु! साधु!” ऎंदु कृष्णॆयन्नु हॊगळिदरु मत्तु कीचकनन्नु हळिदरु.
04015029 सभ्या ऊचुः।
04015029a यस्येयं चारुसर्वांगी भार्या स्यादायतेक्षणा।
04015029c परो लाभश्च तस्य स्यान्न स शोचेत्कदा चन।।
सभासदरु हेळिदरु: “ई सुंदरि सर्वांगी मत्तु विशाल कण्णुगळुळ्ळवळु यार भार्यॆयो अवनिगॆ परम लाभदॊरॆतु ऎंदू दुःखवन्नु पडॆयुवुदिल्ल!””
04015030 वैशंपायन उवाच।
04015030a एवं संपूजयंस्तत्र कृष्णां प्रेक्ष्य सभासदः।
04015030c युधिष्ठिरस्य कोपात्तु ललाटे स्वेद आसजत्।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “हीगॆ सभासदरु कृष्णॆयन्नु हॊगळुत्तिरुवुदन्नु नोडिद युधिष्ठिरन हणॆयल्लि कोपद बॆवरु इळियितु.
04015031a अथाब्रवीद्राजपुत्रीं कौरव्यो महिषीं प्रियां।
04015031c गच्छ सैरंध्रि मात्र स्थाः सुदेष्णाया निवेशनं।।
आग आ कौरव्यनु प्रिय राणि राजपुत्रिगॆ हेळिदनु: “सैरंध्रि! इल्लि निल्लबेड! सुदेष्णॆय अरमनॆगॆ होगु!
04015032a भर्तारमनुरुध्यंत्यः क्लिश्यंते वीरपत्नयः।
04015032c शुश्रूषया क्लिश्यमानाः पतिलोकं जयंत्युत।।
वीरपत्नियरु पतियन्ननुसरिसि कष्टवन्नु सहिसिकॊळ्ळुत्तारॆ. कष्टदल्लियू अवन ऒळितन्नु बयसि पतिय कष्टगळन्नु गॆल्लुत्तारॆ.
04015033a मन्ये न कालं क्रोधस्य पश्यंति पतयस्तव।
04015033c तेन त्वां नाभिधावंति गंधर्वाः सूर्यवर्चसः।।
निन्न आ सूर्यवर्चस गंधर्व गंडंदिरु इदु सिट्टिगेळुव समयवल्लवॆंदु तिळिदु निन्नन्नु रक्षिसलु इल्लिगॆ बरलिल्लवॆंदु भाविसुत्तेनॆ.
04015034a अकालज्ञासि सैरंध्रि शैलूषीव विधावसि।
04015034c विघ्नं करोषि मत्स्यानां दीव्यतां राजसंसदि।
04015034e गच्छ सैरंध्रि गंधर्वाः करिष्यंति तव प्रियं।।
सैरंध्रि! निनगॆ समय ज्ञानविल्ल! नटियंतॆ इल्लि ओडिबंदु राजसंसदियल्लि मत्स्यराजन पगडॆयाटक्कॆ विघ्नवन्नु तंदॊड्डुत्तिद्दीयॆ! होगु सैरंध्रि! गंधर्वरु निनगॆ ऒळ्ळॆयदन्नु माडुत्तारॆ.”
04015035 द्रौपद्युवाच।
04015035a अतीव तेषां घृणिनामर्थेऽहं धर्मचारिणी।
04015035c तस्य तस्येह ते वध्या येषां ज्येष्ठोऽक्षदेविता।।
द्रौपदियु हेळिदळु: “अतीव कृपाळुगळाद अवरिगोस्करवागिये नानु धर्मचारिणियागिद्देनॆ. अवरल्लि हिरियनादवन जूजिनल्लिरुव परमासक्तिय कारणदिंदले अवरु कष्टक्कॊळगागिद्दारॆ.””
04015036 वैशंपायन उवाच।
04015036a इत्युक्त्वा प्राद्रवत्कृष्णा सुदेष्णाया निवेशनं।
04015036c केशान्मुक्त्वा तु सुश्रोणी संरंभाल्लोहितेक्षणा।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “हीगॆ हेळि आ सुश्रोणियु मुडिबिच्चिकॊंडु कोपदिंद कॆंपाद कण्णुगळुळ्ळवळागि सुदेष्णॆय अरमनॆगॆ ओडिदळु.
04015037a शुशुभे वदनं तस्या रुदंत्या विरतं तदा।
04015037c मेघलेखाविनिर्मुक्तं दिवीव शशिमंडलं।।
ऒंदेसमनॆ अळुत्तिद्द अवळ मुखवु आकाशदल्लि मोडगळिंद बिडुगडॆहॊंदिद चंद्रमंडलदंतॆ शोभिसुत्तित्तु.
04015038 सुदेष्णोवाच।
04015038a कस्त्वावधीद्वरारोहे कस्माद्रोदिषि शोभने।
04015038c कस्याद्य न सुखं भद्रे केन ते विप्रियं कृतं।।
सुदेष्णॆयु हेळिदळु: “वरारोहे! यारु निन्नन्नु हॊडॆदरु? एतक्कॆ अळुत्तिरुवॆ शोभने? भद्रे! यारिंद निनगॆ ई दुःखवु प्राप्तवायितु? यारिंद निनगॆ ई अप्रियवादुदु नडॆयितु?”
04015039 द्रौपद्युवाच।
04015039a कीचको मावधीत्तत्र सुराहारीं गतां तव।
04015039c सभायां पश्यतो राज्ञो यथैव विजने तथा।।
द्रौपदियु हेळिदळु: “निनगॆ सुरॆयन्नु तरलु होदाग अल्लि नन्नन्नु कीचकनु सभॆयल्लि राजनु नोडुत्तिद्दंतॆये यारू इल्लदॆडॆयल्लि हेगॆ ऒदॆयुत्तारो हागॆ ऒदॆदनु.”
04015040 सुदेष्णोवाच।
04015040a घातयामि सुकेशांते कीचकं यदि मन्यसे।
04015040c योऽसौ त्वां कामसम्मत्तो दुर्लभामभिमन्यते।।
सुदेष्णॆयु हेळिदळु: “सुंदर कूदलिनवळे! नीनु इष्टपट्टरॆ कीचकनन्नु कॊल्लिसुत्तेनॆ. कामदिंद हुच्चनाद निन्नन्नु पीडिसुत्तिद्दानॆ.”
04015041 द्रौपद्युवाच।
04015041a अन्ये वै तं वधिष्यंति येषामागः करोति सः।
04015041c मन्ये चाद्यैव सुव्यक्तं परलोकं गमिष्यति।।
द्रौपदियु हेळिदळु: “यारिगॆ अवनु अपरादवन्नॆसगिद्दानॆयो अवरे अवनन्नु वधिसुत्तारॆ. इंदे अवनु परलोकक्कॆ होगुत्तानॆ ऎन्नुवुदु स्पष्टवॆंदु भाविसुत्तेनॆ.””
समाप्ति
इति श्री महाभारते विराटपर्वणि कीचकवधपर्वणि द्रौपदीपरिभवे पंचदशोऽध्यायः ।
इदु श्री महाभारतदल्लि विराटपर्वदल्लि कीचकवधपर्वदल्लि द्रौपदीपरिभवदल्लि हदिनैदनॆय अध्यायवु.