प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आरण्यक पर्व
घोषयात्रा पर्व
अध्याय 226
सार
परम संपत्तिनिंद कूडि पांडवरु वासिसुत्तिरुव द्वैतसरोवरक्कॆ होगि पांडुपुत्ररन्नु सुडु ऎंदु कर्णनु दुर्योधननिगॆ सलहॆ नीडुवुदु (1-22).
03226001 वैशंपायन उवाच।
03226001a धृतराष्ट्रस्य तद्वाक्यं निशम्य सहसौबलः।
03226001c दुर्योधनमिदं काले कर्णो वचनमब्रवीत्।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “धृतराष्ट्रन आ मातुगळन्नु केळिद कर्णनु दुर्योधन-सौबलरु जॊतॆयिरुवाग ई मातुगळन्नाडिदनु.
03226002a प्रव्राज्य पांडवान्वीरान्स्वेन वीर्येण भारत।
03226002c भुंक्त्वेमां पृथिवीमेको दिवं शंबरहा यथा।।
“भारत! वीर पांडवरन्नु निन्नदे वीर्यदिंद हॊरगट्टिद नीनु शंबरनन्नु कॊंदवनु स्वर्गवन्नु हेगो हागॆ ऒब्बने इडी भूमियन्नु भोगिसु!
03226003a प्राच्याश्च दाक्षिणात्याश्च प्रतीच्योदीच्यवासिनः।
03226003c कृताः करप्रदाः सर्वे राजानस्ते नराधिप।।
नराधिप! पूर्व-दक्षिण-पश्चिम मत्तु उत्तरगळ राजरॆल्लरू निनगॆ करवन्नु कॊंडुवंतॆ माडियागिदॆ.
03226004a या हि सा दीप्यमानेव पांडवान्भजते पुरा।
03226004c साद्य लक्ष्मीस्त्वया राजन्नवाप्ता भ्रातृभिः सह।।
राजन्! हिंदॆ पांडवरन्नु सेविसुत्तिद्द दीप्यमान लक्ष्मियन्नु सहोदररॊंदिगॆ नीनु पडॆदिद्दीयॆ.
03226005a इंद्रप्रस्थगते यां तां दीप्यमानां युधिष्ठिरे।
03226005c अपश्याम श्रियं राजन्नचिरं शोककर्शिताः।।
राजन्! इंद्रप्रस्थक्कॆ होदाग युधिष्ठिरनल्लि दीप्यमान श्रीयन्नु नावु नोडि तक्षणवे शोकदिंद सण्णवरागिद्दॆवु.
03226006a सा तु बुद्धिबलेनेयं राज्ञस्तस्माद्युधिष्ठिरात्।
03226006c त्वयाक्षिप्ता महाबाहो दीप्यमानेव दृश्यते।।
महाबाहो! नीनु बुद्धिबलवन्नु उपयोगिसि युधिष्ठिरनिंद आ राज्यवन्नु कसिदुकॊंडु दीप्यमाननागि काणुत्तिद्दीयॆ.
03226007a तथैव तव राजेंद्र राजानः परवीरहन्।
03226007c शासनेऽधिष्ठिताः सर्वे किं कुर्म इति वादिनः।।
राजेंद्र! परवीरह! हागॆये ऎल्ल राजरू निन्न शासनदडियल्लि इद्दारॆ मत्तु एनु माडबेकॆंदु निन्नन्ने केळुत्तारॆ.
03226008a तवाद्य पृथिवी राजन्निखिला सागरांबरा।
03226008c सपर्वतवना देवी सग्रामनगराकरा।
03226008e नानावनोद्देशवती पत्तनैरुपशोभिता।।
राजन्! इंदु सागर, आकाश, पर्वत, ग्राम, नगर, आकरगळु, नाना वनोद्देशगळु, सुंदरवागि शोभिसुव पट्टणगळिंद कूडिद इडी पृथ्वि देवियु निन्नदागिद्दाळॆ.
03226009a वंद्यमानो द्विजै राजन्पूज्यमानश्च राजभिः।
03226009c पौरुषाद्दिवि देवेषु भ्राजसे रश्मिवानिव।।
राजन्! द्विजरिंद वंदिसल्पट्टु, राजरिंद पूजिसल्पट्टु, नीनु पौरुषदल्लि देवतॆगळ मध्यॆ रवियंतॆ बॆळगुत्तिद्दीयॆ.
03226010a रुद्रैरिव यमो राजा मरुद्भिरिव वासवः।
03226010c कुरुभिस्त्वं वृतो राजन् भासि नक्षत्रराडिव।।
राजन्! रुद्ररल्लि यमनंतॆ, मरुत्तरल्लि वासवनंतॆ, कुरुगळिंद आवृतनागि नक्षत्रराजनंतॆ बॆळगुत्तिरुवॆ.
03226011a ये स्म ते नाद्रियंतेऽज्ञा नोद्विजंते कदा च न।
03226011c पश्यामस्तां श्रिया हीनान्पांडवान्वनवासिनः।।
निन्नन्नु यावागलू निर्लक्षिसिद, निन्नन्नु अर्थमाडिकॊळ्ळद पांडवरु ईग हेगॆ संपत्तन्नु कळॆदुकॊंडु वनवासिगळागिद्दारॆ ऎन्नुवुदन्नु नोडुत्तिद्देवॆ.
03226012a श्रूयंते हि महाराज सरो द्वैतवनं प्रति।
03226012c वसंतः पांडवाः सार्धं ब्राह्मणैर्वनवासिभिः।।
महाराज! पांडवरु वनवासिगळाद ब्राह्मणरॊंदिगॆ द्वैतवनद सरोवरद हत्तिर वासिसुत्तिद्दारॆंदु केळुत्तेवॆ.
03226013a स प्रयाहि महाराज श्रिया परमया युतः।
03226013c प्रतपन्पांडुपुत्रांस्त्वं रश्मिवानिव तेजसा।।
महाराज! परम संपत्तिनिंद कूडि अल्लिगॆ होगि सूर्यनु तन्न तेजस्सिनिंद हेगो हागॆ पांडुपुत्ररन्नु सुडु.
03226014a स्थितो राज्ये च्युतान्राज्याच्च्रिया हीनां श्रिया वृतः।
03226014c असमृद्धान्समृद्धार्थः पश्य पांडुसुतान्नृप।।
नृप! राज्यवन्नु पडॆद नीनु राज्यवन्नु कळॆदुकॊंड पांडवरन्नु, श्रीयन्नु कळॆदु कॊंड अवरन्नु श्रीयिंद आवृतनागि, असमृद्धराद अवरन्नु समृद्ध संपत्तिन नीनु नोडु!
03226015a महाभिजनसंपन्नं भद्रे महति संस्थितं।
03226015c पांडवास्त्वाभिवीक्षंतां ययातिमिव नाहुषं।।
नाहुष ययातियो ऎंबंतॆ महाभिजनसंपन्ननाद, भद्रवागि महत्तरवागि स्थापितनागिरुव निन्नन्नु पांडवरु नोडलि!
03226016a यां श्रियं सुहृदश्चैव दुर्हृदश्च विशां पते।
03226016c पश्यंति पुरुषे दीप्तां सा समर्था भवत्युत।।
विशांपते! स्नेहितरू शत्रुगळू पुरुषनल्लि तेजस्सन्नु काणलु समर्थरु ऎन्नुवुदु अदृष्टद महत्ववे सरि.
03226017a समस्थो विषमस्थान्हि दुर्हृदो योऽभिवीक्षते।
03226017c जगतीस्थानिवाद्रिस्थः किं ततः परमं सुखं।।
समप्रदेशदल्लि निंतु विषमस्थानदल्लिरुव शत्रुगळन्नु नोडुवुदक्किंतलू हॆच्चिन सुखवु ई जगत्तिनल्लि इन्नेनिदॆ?
03226018a न पुत्रधनलाभेन न राज्येनापि विंदति।
03226018c प्रीतिं नृपतिशार्दूल याममित्राघदर्शनात्।।
नृपतिशार्दूल! मगनु हुट्टिदनॆन्नुवुदागली, धन अथवा राज्य लाभवायितॆन्नुवुदागली, शत्रुगळु कष्टदल्लिरुवुदन्नु नोडिदॆनॆन्नुवष्टु संतोषवन्नु तरुवुदिल्ल.
03226019a किं नु तस्य सुखं न स्यादाश्रमे यो धनंजयं।
03226019c अभिवीक्षेत सिद्धार्थो वल्कलाजिनवाससं।।
यशस्वियाद यारु ताने आश्रमदल्लि वल्कल जिनगळन्नुट्टिरुव धनंजयनन्नु नोडि संतोषपडुवुदिल्ल?
03226020a सुवाससो हि ते भार्या वल्कलाजिनवाससं।
03226020c पश्यंत्वसुखितां कृष्णां सा च निर्विद्यतां पुनः।
03226020e विनिंदतां तथात्मानं जीवितं च धनच्युता।।
सुंदर वस्त्रगळन्नुट्टिरुव निन्न भार्यॆयरु वल्कल जिनगळन्नु उट्टिरुव असुखि कृष्णॆयन्नु नोडलि मत्तु अवळ दुःखवन्नु हॆच्चिसलि! धनवन्नु कळॆदुकॊंड तन्न जीवनवन्नु ताने निंदनॆमाडिकॊळ्ळुवंतागलि.
03226021a न तथा हि सभामध्ये तस्या भवितुमर्हति।
03226021c वैमनस्यं यथा दृष्ट्वा तव भार्याः स्वलंकृताः।।
सभामध्यदल्लि अवळु अनुभविसिद दुःखवु स्वलंकृतराद निन्न भार्यॆयरन्नु नोडुवुदक्किंत हॆच्चिनदागलारदु!”
03226022a एवमुक्त्वा तु राजानं कर्णः शकुनिना सह।
03226022c तूष्णीं बभूवतुरुभौ वाक्यांते जनमेजय।।
जनमेजय! हीगॆ शकुनियॊंदिगिद्द राजनिगॆ कर्णनु हेळलु, मातिन कॊनॆयल्लि अवरिब्बरू सुम्मनादरु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते आरण्यक पर्वणि घोषयात्रा पर्वणि कर्णशकुनिवाक्ये षड्विंशत्याधिकद्विशततमोऽध्यायः।
इदु महाभारतद आरण्यक पर्वदल्लि घोषयात्रा पर्वदल्लि कर्णशकुनिवाक्ये इन्नूराइप्पत्तारनॆय अध्यायवु.