प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आरण्यक पर्व
तीर्थयात्रा पर्व
अध्याय 120
सार
सात्यकियु तन्न मत्तु इतर वृष्णिगळ पराक्रमवन्नु हेळिकॊळ्ळुवुदु (1-21). कृष्ण-युधिष्ठिररु युद्धद कुरितु नंतर योचिसबेकॆंदु हेळिदुदु; तीर्थयात्रॆयु मुंदुवरॆदुदु (22-30).
03120001 सात्यकिरुवाच।
03120001a न राम कालः परिदेवनाय। यदुत्तरं तत्र तदेव सर्वे।
03120001c समाचरामो ह्यनतीतकालं। युधिष्ठिरो यद्यपि नाह किं चित्।।
सात्यकियु हेळिदनु: “राम! परिवेदनॆ पडुव कालविदल्ल! अदन्नु अवरॆल्लरू अनंतर माडुत्तारॆ. ऒंदु वेळॆ युधिष्ठिरनु एनन्नू हेळदिद्दरू, ईगिन मत्तु हिंदिन विषयगळ कुरितु नावु योचिसबेकु.
03120002a ये नाथवंतो हि भवंति लोके। ते नात्मना कर्म समारभंते।
03120002c तेषां तु कार्येषु भवंति नाथाः। शैब्यादयो राम यथा ययातेः।।
लोकदल्लि अनाथरागिल्लदिरुववरु तावागिये कार्यगळन्नु प्रारंभिसुवुदिल्ल. आदरॆ राम! इवर कॆलसदल्लि ययातिगॆ शैब्यनिद्दहागॆ नाथरिद्दारॆ.
03120003a येषां तथा राम समारभंते। कार्याणि नाथाः स्वमतेन लोके।
03120003c ते नाथवंतः पुरुषप्रवीरा। नानाथवत्कृच्च्रमवाप्नुवंति।।
राम! लोकदल्लि अंथवर कार्यवन्नु नाथरे तम्म अभिप्रायदंतॆ प्रारंभिसुत्तारॆ. ई पुरुषप्रवीररु नाथवंतरु. अनाथरंतॆ दुःखपडबेकादुदिल्ल.
03120004a कस्मादयं रामजनार्दनौ च। प्रद्युम्नसांबौ च मया समेतौ।
03120004c वसत्यरण्ये सह सोदरीयैस्। त्रैलोक्यनाथानधिगम्य नाथान्।।
मूरु लोकगळिगू नाथराद ई राम, जनार्दनरिब्बरु, प्रद्युम्न मत्तु सांबरु हागू जॊतॆगॆ नन्नन्नू नाथरन्नागि पडॆदिरुव इवनु एकॆ सोदररॊंदिगॆ वनवास माडबेकु?
03120005a निर्यातु साध्वद्य दशार्हसेना। प्रभूतनानायुधचित्रवर्मा।
03120005c यमक्षयं गच्चतु धार्तराष्ट्रः। सबांधवो वृष्णिबलाभिभूतः।।
इंदे नाना आयुधगळन्नु, बण्णद कवचगळन्नू धरिसि दशार्हर सेनॆयु हॊरडलि. वृष्णिबलक्कॆ सोतु धार्तराष्ट्ररु तम्म बांधवरॊंदिगॆ यमलोकक्कॆ होगलि.
03120006a त्वं ह्येव कोपात्पृथिवीमपीमां। संवेष्टयेस्तिष्ठतु शांर्ङ्गधन्वा।
03120006c स धार्तराष्ट्रं जहि सानुबंधं। वृत्रं यथा देवपतिर्महेंद्रः।।
नीनॊब्बने कुपितनादरॆ ई पृथ्वियन्ने मुत्तिगॆ हाकबहुदु, इन्नु शांर्ङ्गधन्विय निलुवु एनिरबहुदु? देवपति महेंद्रनु वृत्रनन्नु हेगो हागॆ बंधुगळॊडनॆ धार्तराष्ट्ररन्नु संहरिसु.
03120007a भ्राता च मे यश्च सखा गुरुश्च। जनार्दनस्यात्मसमश्च पार्थः।
03120007c यदर्थमभ्युद्यतमुत्तमं तत्। करोति कर्माग्र्यमपारणीयं।।
पार्थनु ननगॆ अण्णनिद्दंतॆ, सखनंतॆ मत्तु गुरुवू हौदु मत्तु जनार्दनन आत्म सम. आदुदरिंद नम्म मुंदॆ ईगले माडबेकाद उत्तम कार्यविदॆ. आ अपार कार्यवन्नु माडु.
03120008a तस्यास्त्रवर्षाण्यहमुत्तमास्त्रैर्। विहत्य सर्वाणि रणेऽभिभूय।
03120008c कायाच्छिरः सर्पविषाग्निकल्पैः। शरोत्तमैरुन्मथितास्मि राम।।
अवन अस्त्रगळ मळॆयन्नु नन्न उत्तम अस्त्रगळिंद ऎदुरिसि रणदल्लि अवरॆल्लरन्नू संहरिसुत्तेनॆ. राम! अग्नियंथह सर्पविषगळंतिरुव नन्न उत्तम शरगळिंद अवन देहदिंद शिरवन्नु तुंडरिसुत्तेनॆ.
03120009a खड्गेन चाहं निशितेन संख्ये। कायाच्छिरस्तस्य बलात्प्रमथ्य।
03120009c ततोऽस्य सर्वाननुगान् हनिष्ये। दुर्योधनं चापि कुरूंश्च सर्वान्।।
युद्धदल्लि नन्न हरिताद खड्गदिंद बलप्रयोगिसि अवन शरीरदिंद शिरवन्नु तुंडरिसुत्तेनॆ. अनंतर दुर्योधन मत्तु अवन ऎल्ल अनुयायिगळन्नू, कुरुगळॆल्लरन्नू कॊल्लुत्तेनॆ.
03120010a आत्तायुधं मामिह रौहिणेय। पश्यंतु भौमा युधि जातहर्षाः।
03120010c निघ्नंतमेकं कुरुयोधमुख्यान्। काले महाकक्षमिवांतकाग्निः।।
रोहिणिय मगने! आयुधगळन्नु हिडिदु युद्धक्कॆ सद्धनाद नन्नन्नु भूमिय मेलिरुववरु संतोषदिंद नोडलि. युगांतदल्लि कालाग्नियु ऒणगिद मरवन्नु हेगो हागॆ ऒब्बने कुरुयोधमुख्यरन्नु संहरिसुत्तेनॆ.
03120011a प्रद्युम्नमुक्तान्निशितान्न शक्ताः। सोढुं कृपद्रोणविकर्णकर्णाः।
03120011c जानामि वीर्यं च तवात्मजस्य। कार्ष्णिर्भवत्येष यथा रणस्थः।।
प्रद्युम्नन हरिताद शरगळन्नु कृप, द्रोण, विकर्ण मत्तु कर्णरु ऎदुरिसलु शक्तरिल्ल. ई निन्न मग, कृष्णन वीर मगनु रणरंगदल्लि निल्लुत्तानॆ ऎंदु नानु तिळिदिद्देनॆ.
03120012a सांबः ससूतं सरथं भुजाभ्यां। दुःशासनं शास्तु बलात्प्रमथ्य।
03120012c न विद्यते जांबवतीसुतस्य। रणेऽविषःयं हि रणोत्कटस्य।।
सांबनु तन्न तोळुगळ बलदिंद सूत मत्तु रथगळॊंदिगॆ दुःशासननन्नु कॊंदु शिक्षिसलि. रणोत्कट जांबवतीसुतनिगॆ रणरंगदल्लि सहिसलसाध्यवादुदु एनू तिळिदिल्ल.
03120013a एतेन बालेन हि शंबरस्य। दैत्यस्य सैन्यं सहसा प्रणुन्नं।
03120013c वृत्तोरुरत्यायतपीनबाहुर्। एतेन संख्ये निहतोऽश्वचक्रः।।
03120013e को नाम सांबस्य रणे मनुष्यो। गत्वांतरं वै भुजयोर्धरेत।।
बालकनागिरुवागले इवनु दैत्य शंबरन सेनॆयन्नु क्षणदल्लिये नाशगॊळिसिदनु. गुंडाद तॊडॆगळ मत्तु नीळबाहुगळ अश्वचक्रनन्नू रणदल्लि इवनु संहरिसिदनु. रणरंगदल्लि सांबन भुजगळ मध्यॆ सिलुकि, दीर्घकाल उळिदुकॊंड मनुष्यरादरू यारिद्दारॆ?
03120014a यथा प्रविश्यांतरमंतकस्य। काले मनुष्यो न विनिष्क्रमेत।
03120014c तथा प्रविश्यांतरमस्य संख्ये। को नाम जीवन्पुनराव्रजेत।।
काल बंदु यमन मध्यॆ प्रवेशिसिद याव मनुष्यनू हेगॆ हॊरबरलारनो हागॆ युद्धदल्लि अवन हत्तिर बंदु, तन्न जीवदॊंदिगॆ उळिदुकॊंडवरु यारिद्दारॆ?
03120015a द्रोणं च भीष्मं च महारथौ तौ। सुतैर्वृतं चाप्यथ सोमदत्तं।
03120015c सर्वाणि सैन्यानि च वासुदेवः। प्रधक्ष्यते सायकवह्निजालैः।।
नम्म वासुदेवनु तन्न बॆंकियंतह बाणगळिंद महारथि द्रोण-भीष्मरन्नु, तन्न मक्कळॊंदिगॆ सोमदत्तनन्नू मत्तु अवर सैन्यगळॆल्लवन्नू सुट्टु उरुळिसुत्तानॆ.
03120016a किं नाम लोकेष्वविषह्यमस्ति। कृष्णस्य सर्वेषु सदैवतेषु।
03120016c आत्तायुधस्योत्तमबाणपाणेश्। चक्रायुधस्याप्रतिमस्य युद्धे।।
तन्न धनुस्सु, बाणगळु मत्तु चक्रायुधवन्नु हिडिदु गुरियिट्ट युद्धदल्लि सरिसाटियिल्लद कृष्णनिगॆ देवतॆगळॊडनॆ सर्व लोकगळू सेरि एनुतानॆ असाध्य?
03120017a ततोऽनिरुद्धोऽप्यसिचर्मपाणिर्। महीमिमां धार्तराष्ट्रैर्विसंज्ञैः।
03120017c हृतोत्तमांगैर्निहतैः करोतु। कीर्णां कुशैर्वेदिमिवाध्वरेषु।।
अनंतर अनिरुद्धनु खड्ग तोमरगळन्नु हिडिदु ई भूमियन्नु मूर्छॆतप्पि, अंगागळन्नु तुंडरिसि कॊंदु धार्तराष्ट्ररिंद, यज्ञवेदियन्नु दर्बॆगळिंद तुंबिसुवंतॆ तुंबिसुत्तानॆ.
03120018a गदोल्मुकौ बाहुकभानुनीथाः। शूरश्च संख्ये निशठः कुमारः।
03120018c रणोत्कटौ सारणचारुदेष्णौ। कुलोचितं विप्रथयंतु कर्म।।
गद, उल्मुक, बाहुक, भानु, नीथ, रणशूर बालक निषठ, रणोत्कट सारण मत्तु चारुदेष्णरु तम्म कुलक्कॆ तक्कुदाद कार्यगळन्नॆसगुत्तारॆ.
03120019a सवृष्णिभोजांधकयोधमुख्या। समागता क्षत्रियशूरसेना।
03120019c हत्वा रणे तांधृतराष्ट्रपुत्राऽल्। लोके यशः स्फीतमुपाकरोतु।।
वृष्णि-अंधक-भोज योधमुख्यरू सेरि इल्लि सेरिरुव क्षत्रिय सेनाशूररु रणरंगदल्लि आ धृतराष्ट्रन मक्कळन्नु कॊंदु लोकदल्लि उत्तम यशस्सन्नु गळिसबेकु.
03120020a ततोऽभिमन्युः पृथिवीं प्रशास्तु। यावद्व्रतं धर्मभृतां वरिष्ठः।
03120020c युधिष्ठिरः पारयते महात्मा। द्यूते यथोक्तं कुरुसत्तमेन।।
धर्मभृत वरिष्ठ महात्म कुरुसत्तम युधिष्ठिरनु द्यूतदल्लि मातुकॊट्टंतॆ नडॆदुकॊळ्ळुत्तिद्दरॆ अभिमन्युवु ई भूमियन्नु आळलि.
03120021a अस्मत्प्रमुक्तैर्विशिखैर्जितारिस्। ततो महीं भोक्ष्यति धर्मराजः।
03120021c निर्धार्तराष्ट्रां हतसूतपुत्रां। एतद्धि नः कृत्यतमं यशश्यं।।
नावु बिट्ट बाणगळिंद अवन शत्रुगळु हतराद नंतर धर्मराजनु भूमियन्नु भोगिसुत्तानॆ. धार्तराष्ट्ररु इल्लदहागॆ माडुवुदु मत्तु सूतपुत्रनन्नु संहरिसुवुदु नावु माडबेकाद यशस्वी मत्तु अत्यंत ऒळ्ळॆय कार्यवॆंदु तिळियिरि.”
03120022 वासुदेव उवाच।
03120022a असंशयं माधव सत्यमेतद्। गृह्णीम ते वाक्यमदीनसत्त्व।
03120022c स्वाभ्यां भुजाभ्यामजितां तु भूमिं। नेच्चेत्कुरूणामृषभः कथं चित्।।
वासुदेवनु हेळिदनु: “माधव! इदु सत्यवॆन्नुवुदरल्लि संशयवे इल्ल! अदीनसत्व! निन्न मातुगळन्नु स्वीकरिसुत्तेवॆ. तम्मदे भुजबलदिंद गॆल्लद भूमियन्नु कुरुवृषभनु हेगू ऒप्पुवुदिल्ल.
03120023a न ह्येष कामान्न भयान्न लोभाद्। युधिष्ठिरो जातु जह्यात्स्वधर्मं।
03120023c भीमार्जुनौ चातिरथौ यमौ वा। तथैव कृष्णा द्रुपदात्मजेयं।।
कामदिंदागली, भयदिंदागली अथवा लोभदिंदागली युधिष्ठिरनु तन्न धर्मवन्नु बिडुवुदिल्ल. हागॆये भीमार्जुनरू, अतिरथ यमळरू, द्रुपदन मगळु कृष्णॆयू कूड.
03120024a उभौ हि युद्धेऽप्रतिमौ पृथिव्यां। वृकोदरश्चैव धनंजयश्च।
03120024c कस्मान्न कृत्स्नां पृथिवीं प्रशासेन्। माद्रीसुताभ्यां च पुरस्कृतोऽयं।।
ई भूमियल्लिये वृकोदर धनंजयरिब्बरू युद्धदल्लि अप्रतिमरु. ई इब्बरू माद्रीसुतरिंद पुरस्कृतनादवने ई इडी पृथ्वियन्नु एकॆ आळबारदु?
03120025a यदा तु पांचालपतिर्महात्मा। सकेकयश्चेदिपतिर्वयं च।
03120025c योत्स्याम विक्रम्य परांस्तदा वै। सुयोधनस्त्यक्ष्यति जीवलोकं।।
महात्म पांचालराज, केकय मत्तु चेदिराजरु मत्तु नावू कूड ऒंदागि विक्रमदिंद शत्रुगळ मेलॆ धाळिमाडिदरॆ सुयोधननु जीवलोकवन्नु तॊरॆयुत्तानॆ.”
03120026 युधिष्ठिर उवाच।
03120026a नैतच्चित्रं माधव यद्ब्रवीषि। सत्यं तु मे रक्ष्यतमं न राज्यं।
03120026c कृष्णस्तु मां वेद यथावदेकः। कृष्णं च वेदाहमथो यथावत्।।
युधिष्ठिरनु हेळिदनु: “माधव! नीनु हेळुत्तिरुवुदु सरियादद्दे. ननगॆ राज्यक्किंतलू सत्यवन्नु रक्षिसुवुदु मुख्य. नन्नल्लिरुव विचारगळु कृष्णनिगे गॊत्तु. मत्तु कृष्णनन्नू नानु संपूर्णवागि अर्थमाडिकॊंडिद्देनॆ.
03120027a यदैव कालं पुरुषप्रवीरो। वेत्स्यत्ययं माधव विक्रमस्य।
03120027c तदा रणे त्वं च शिनिप्रवीर। सुयोधनं जेष्यसि केशवश्च।।
माधव! केशव! यावाग पुरुषप्रवीररु इदु विक्रमवन्नु तोरिसलु सरियाद समयवॆंदु तिळिदुकॊळ्ळुत्तारो आग रणदल्लि नीनू शिनिप्रवीरनू सुयोधननन्नु गॆल्लुविरि.
03120028a प्रतिप्रयांत्वद्य दशार्हवीरा। दृढोऽस्मि नाथैर्नरलोकनाथैः।
03120028c धर्मेऽप्रमादं कुरुताप्रमेया। द्रष्टास्मि भूयः सुखिनः समेतान्।।
ईग दशार्ह वीररु हिंदिरुगलि. नानु नरलोकनाथरिंद रक्षिसल्पट्टिद्देनॆ ऎन्नुवुदु धृड! अप्रमेयरे! धर्मवन्नु पालिसि! इन्नॊम्मॆ संतोषद समयदल्लि ऒंदागोण!””
03120029 वैशंपायन उवाच।
03120029a तेऽन्योन्यमामंत्र्य तथाभिवाद्य। वृद्धान्परिस्वज्य शिशूंश्च सर्वान्।
03120029c यदुप्रवीराः स्वगृहाणि जग्मू। राजापि तीर्थान्यनुसंचचार।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “अवरु अन्योन्यरन्नु करॆदु अभिवंदिसि वृद्धरन्नू मक्कळन्नू ऎल्लरन्नू आलंगिसि यदुप्रवीररु तम्म तम्म मनॆगळिगॆ तॆरळिदरु. राजनादरो अन्य तीर्थगळिगॆ मुंदुवरॆदनु.
03120030a विसृज्य कृष्णं त्वथ धर्मराजो। विदर्भराजोपचितां सुतीर्थां।
03120030c सुतेन सोमेन विमिश्रितोदां। ततः पयोष्णीं प्रति स ह्युवास।।
कृष्णनु हॊरटुहोद नंतर धर्मराजनु विदर्भराजनिंद विरचित उत्तम तीर्थगळिगॆ हॊरटनु. अल्लिये सोमवन्नु कडॆयुवाग बिद्द सोमदिंद मिश्रित पयोष्णि नदियु हरियुत्तदॆ.
समाप्ति
इति श्री महाभारते आरण्यकपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि लोमशतीर्थयात्रायां प्रभासे यादवपांडवसमागमे विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।
इदु महाभारतद आरण्यकपर्वदल्लि तीर्थयात्रापर्वदल्लि लोमशतीर्थयात्रॆयल्लि प्रभासदल्लि यादवपांडवसमागमदल्लि नूराइप्पत्तनॆय अध्यायवु.