प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आरण्यक पर्व
इंद्रलोकाभिगमन पर्व
अध्याय 66
सार
दमयंतिय मच्चॆयन्नु नोडि अवळु तन्न तंगिय मगळॆंदु गुरुतिसिद (1-10) राजमातॆयु, तंदॆय मनॆगॆ मक्कळन्नु नोडलु होग बयसिद अवळन्नु कळुहिसिकॊट्टिदुदु (11-26).
03066001 सुदेव उवाच।
03066001a विदर्भराजो धर्मात्मा भीमो भीमपराक्रमः।
03066001c सुतेयं तस्य कल्याणी दमयंतीति विश्रुता।।
सुदेवनु हेळिदनु: “भीमपराक्रमि धर्मात्मा भीमनु विदर्भद राज. दमयंति ऎंदु विश्रुत कल्याणि अवन मगळु.
03066002a राजा तु नैषधो नाम वीरसेनसुतो नलः।
03066002c भार्येयं तस्य कल्याणी पुण्यश्लोकस्य धीमतः।।
राज नैषधनु नल ऎंब हॆसरिन वीरसेनन मग. आ धीमत पुण्यश्लोकन भार्यॆये आ कल्याणि.
03066003a स वै द्यूते जितो भ्रात्रा हृतराज्यो महीपतिः।
03066003c दमयंत्या गतः सार्धं न प्रज्ञायत कर्हि चित्।।
आ महीपतियु द्यूतदल्लि सहोदरनिंद गॆल्लल्पट्टु, राज्यवन्नु कळिदुकॊंडु दमयंतियॊडगूडि हॊरटुहोदनु. अवनु ऎल्लिगॆ होदनॆंदु यारिगू तिळियदु.
03066004a ते वयं दमयंत्यर्थे चरामः पृथिवीमिमां।
03066004c सेयमासादिता बाला तव पुत्रनिवेशने।।
दमयंतिगोस्करवागि नावु ई पृथ्वियन्ने तिरुगुत्तिद्देवॆ. ईग निन्न पुत्रन निवेशनदल्लि आ बालकियन्नु नोडिद्देनॆ.
03066005a अस्या रूपेण सदृशी मानुषी नेह विद्यते।
03066005c अस्याश्चैव भ्रुवोर्मध्ये सहजः पिप्लुरुत्तमः।
03066005 श्यामायाः पद्मसंकाशो लक्षितोऽंतर्हितो मया।।
रूपदल्लि इवळ सदृशळाद इन्नॊब्ब मानुषियिल्ल. ई श्यामॆय हुब्बुगळ मध्यॆ सहजवाद उत्तमवाद, पद्मद आकारद मच्चॆयिद्दुदन्नु नानु नोडिद्दॆ; ईग अदु काणुत्तिल्ल.
03066006a मलेन संवृतो ह्यस्यास्तन्वभ्रेणेव चंद्रमाः।
03066006c चिह्नभूतो विभूत्यर्थमयं धात्रा विनिर्मितः।।
चंद्रमनु हगुराद मोडगळिंद मुच्चिकॊंडिरुवंतॆ, विधातनु विभूति मत्तु ऐश्वर्यगळ चिह्नॆयॆंदु अवळ मुखद मेलॆ इट्ट मच्चॆयु कॊळॆयिंद आवृतवागिदॆ.
03066007a प्रतिपत्कलुषेवेंदोर्लेखा नाति विराजते।
03066007c न चास्या नश्यते रूपं वपुर्मलसमाचितं।
03066007 असंस्कृतमपि व्यक्तं भाति कांचनसन्निभं।।
मोड आवरिसिद अमवास्यॆय रात्रि चंद्रन हॊर नक्षॆ हेगो हागॆ ईग अदु सरियागि काणुत्तिल्ल. आदरॆ अवळ रूपवु स्पल्पवू नशिसिल्ल; अवळु मलिनळागिरबहुदु मत्तु एनू अलंकारगळन्नु माडिकॊळ्ळदे इरबहुदु. आदरू नोडुववरिगॆ अवळु कांचनदंतॆ बॆळगुत्तिद्दाळॆ.
03066008a अनेन वपुषा बाला पिप्लुनानेन चैव ह।
03066008c लक्षितेयं मया देवी पिहितोऽग्निरिवोष्मणा।।
ई देह मत्तु मच्चॆयन्नु नोडिये नानु नन्न बालकि देवियन्नु हॊगॆयिंद मुच्चिकॊंड बॆंकियन्नु हेगो हागॆ गुरुतिसिदॆ.””
03066009 बृहदश्व उवाच।
03066009a तच्छृत्वा वचनं तस्य सुदेवस्य विशां पते।
03066009c सुनंदा शोधयामास पिप्लुप्रच्चादनं मलं।।
बृहदश्वनु हेळिदनु: “विशांपतॆ! सुदेवन ई मातुगळन्नु केळिद सुनंदळु आ मच्चॆयन्नु मुच्चिद्द कॊळॆयन्नु तॊळॆसिदळु.
03066010a स मलेनापकृष्टेन पिप्लुस्तस्या व्यरोचत।
03066010c दमयंत्यास्तदा व्यभ्रे नभसीव निशाकरः।।
03066011a पिप्लुं दृष्ट्वा सुनंदा च राजमाता च भारत।
03066011c रुदंत्यौ तां परिष्वज्य मुहूर्तमिव तस्थतुः।
03066011 उत्सृज्य बाष्पं शनकै राजमातेदमब्रवीत्।।
कॊळॆयन्नु तॊळॆदनंतर, मोडविल्लद आकाशदल्लि निशाकरनु हॊळॆयुवंतॆ दमयंतिय मच्चॆयु काणिसिकॊंडितु. भारत! मच्चॆयन्नु नोडिद सुनंद मत्तु राजमातॆयु अवळन्नु स्वल्प हॊत्तु अप्पि हिडिदु रोदिसिदरु. कण्णीरन्नु ऒरॆसिकॊंडु राजमातॆयु मृदुवागि हेळिदळु:
03066012a भगिन्या दुहिता मेऽसि पिप्लुनानेन सूचिता।
03066012c अहं च तव माता च राजन्यस्य महात्मनः।
03066012 सुते दशार्णाधिपतेः सुदाम्नश्चारुदर्शने।।
“नीनु नन्न तंगिय मगळु. निन्न मच्चॆयु सूचिसुत्तिदॆ. चारुदर्शिनी! नानु मत्तु निन्न तायि दशार्णाधिपति महात्म राज सुदामन पुत्रियरु.
03066013a भीमस्य राज्ञः सा दत्ता वीरबाहोरहं पुनः।
03066013c त्वं तु जाता मया दृष्टा दशार्णेषु पितुर्गृहे।।
अवळन्नु भीमराजनिगॆ मत्तु नन्नन्नु वीरबाहुविगॆ कॊडलायितु. नीनु हुट्टिदाग निन्नन्नु नानु नन्न तंदॆय मनॆयल्लि नोडिद्दॆ.
03066014a यथैव ते पितुर्गेहं तथेदमपि भामिनि।
03066014c यथैव हि ममैश्वर्यं दमयंति तथा तव।।
भामिनि! दमयंति! ई मनॆयू कूड निन्न तंदॆय मनॆ. मत्तु नन्न ई ऐश्वर्यवु निन्नदिद्दंतॆये.”
03066015a तां प्रहृष्टेन मनसा दमयंती विशां पते।
03066015c अभिवाद्य मातुर्भगिनीमिदं वचनमब्रवीत्।।
विशांपते! प्रहृष्ट मनस्कळाद दमयंतियु तायिय तंगियन्नु अभिवंदिसि ई मातुगळन्नु हेळिदळु:
03066016a अज्ञायमानापि सती सुखमस्म्युषितेह वै।
03066016c सर्वकामैः सुविहिता रक्ष्यमाणा सदा त्वया।।
“नानु यारॆंदु गुरुतिसल्पडदिद्दरू इल्लि निन्न रक्षणॆयल्लि नन्न ऎल्ल बयकॆगळू पूरैसल्पट्टु नानु सदा सुखवागिये इद्दॆ.
03066017a सुखात्सुखतरो वासो भविष्यति न संशयः।
03066017c चिरविप्रोषितां मातर्मामनुज्ञातुमर्हसि।।
इन्नु मुंदॆयू इल्लि नन्न वासवु इन्नू सुखकरवागिरुत्तदॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. माता! आदरॆ ननगॆ होगलु अनुमतियन्नु कॊडबेकु.
03066018a दारकौ च हि मे नीतौ वसतस्तत्र बालकौ।
03066018c पित्रा विहीनौ शोकार्तौ मया चैव कथं नु तौ।।
नन्न इब्बरु बालक मक्कळु अल्लि वासिसुत्तिद्दारॆ. पितृ विहीनरागि शोकार्तराद अवरु नानू इल्लदे हेगिद्दारो!
03066019a यदि चापि प्रियं किं चिन्मयि कर्तुमिहेच्चसि।
03066019c विदर्भान्यातुमिच्चामि शीघ्रं मे यानमादिश।।
नानु विदर्भक्कॆ होगलु बयसुत्तेनॆ. इन्नू ननगॆ प्रियवादुद्दन्नु माडबेकॆंदॆनिसिदरॆ, ईगले ऒंदु यानवन्नु तरिसिकॊडु.”
03066020a बाढमित्येव तामुक्त्वा हृष्टा मातृष्वसा नृप।
03066020c गुप्तां बलेन महता पुत्रस्यानुमते ततः।।
03066021a प्रस्थापयद्राजमाता श्रीमता नरवाहिना।
03066021c यानेन भरतश्रेष्ठ स्वन्नपानपरिच्चदां।।
नृप! भरतश्रेष्ठ! अवळ तायिय भगिनि राजमातॆयु हर्षदिंद खंडित हागॆये आगलि ऎंदु पुत्रन अनुमतियन्नु पडॆदु पुरुषरिंद हॊरल्पट्ट, साकष्टु अन्न-पान-सरकुगळिंद तुंबल्पट्ट सुंदर पल्लक्कियल्लि दॊड्ड दंडिनॊडनॆ अवळन्नु कळुहिसिकॊट्टळु.
03066022a ततः सा नचिरादेव विदर्भानगमच्शुभा।
03066022c तां तु बंधुजनः सर्वः प्रहृष्टः प्रत्यपूजयत्।।
हीगॆ आ शुभॆयु अल्प समयदल्लिये विदर्भक्कॆ आगमिसिदळु. अवळ बंधु जनरॆल्लरू प्रहृष्टरागि अवळन्नु स्वागतिसिदरु.
03066023a सर्वान्कुशलिनो दृष्ट्वा बांधवान्दारकौ च तौ।
03066023c मातरं पितरं चैव सर्वं चैव सखीजनं।।
03066024a देवताः पूजयामास ब्राह्मणांश्च यशस्विनी।
03066024c विधिना परेण कल्याणी दमयंती विशां पते।।
विशांपतॆ! मक्कळु मत्तु माता-पितरन्नू सेरि ऎल्ल बंधुगळु मत्तु सखिजनरु कुशलदिंदिद्दारॆंदु नोडि यशस्विनि कल्याणि दमयंतियु विधिवत्तागि ब्राह्मण-देवतॆगळ पूजॆगैदळु.
03066025a अतर्पयत्सुदेवं च गोसहस्रेण पार्थिवः।
03066025c प्रीतो दृष्ट्वैव तनयां ग्रामेण द्रविणेन च।।
मगळन्नु नोडि हर्षितनाद पार्थिवनु सुदेवनिगॆ ग्राम, दक्षिणॆ मत्तु सहस्र गोवुगळन्नित्तु तृप्तिपडिसिदनु.
03066026a सा व्युष्टा रजनीं तत्र पितुर्वेश्मनि भामिनी।
03066026c विश्रांता मातरं राजन्निदं वचनमब्रवीत्।।
राजन्! अल्लि तंदॆय मनॆयल्लि रात्रियन्नु कळॆदु विश्रांतिहॊंदिद भामिनियु तन्न मातॆयॊडनॆ ई मातुगळन्नाडिदळु.
समाप्ति
इति श्री महाभारते आरण्यकपर्वणि इंद्रलोकाभिगमनपर्वणि नलोपाख्याने दमयंतीसुदेवसंवादे षट्षष्टितमोऽध्यायः।
इदु महाभारतद आरण्यकपर्वदल्लि इंद्रलोकाभिगमनपर्वदल्लि नलोपाख्यानदल्लि दमयंती-सुदेव संवाद ऎन्नुव अरवत्तारनॆय अध्यायवु.