प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
सभा पर्व
अनुद्यूत पर्व
अध्याय 72
सार
चिंतापरनागिद्द धृतराष्ट्रनिगॆ संजयनु ताने ऎल्लवन्नू माडिकॊंडु चिंतिसुवुदक्कॆ अर्थविल्ल ऎन्नुवुदु (1-7). धृतराष्ट्रनु कुरुगळ पराभववु दैवनिश्चितवादुदॆंदू (8-12), सभॆयल्लि नडॆद घटनॆगळिंदाद तुमुलगळु, शकुनगळु, महा आपत्तन्नु सूचिसुत्तवॆ ऎंदू (13-24), विदुरनु सभॆयल्लि हेळिद मातन्नू (25-35) मत्तु तानु अदन्नु स्वीकरिसलिल्ल (36) ऎन्नुवुदन्नु संजयनल्लि हेळिकॊळ्ळुवुदु.
02072001 वैशंपायन उवाच।
02072001a वनं गतेषु पार्थेषु निर्जितेषु दुरोदरे।
02072001c धृतराष्ट्रं महाराज तदा चिंता समाविशत्।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “महाराज! द्यूतदल्लि सोत पार्थरु वनक्कॆ होगलु धृतराष्ट्रनन्नु चिंतॆयु समावेशगॊंडितु.
02072002a तं चिंतयानमासीनं धृतराष्ट्रं जनेश्वरं।
02072002c निःश्वसंतमनेकाग्रमिति होवाच संजयः।।
आ जनेश्वर धृतराष्ट्रनु चिंतॆयल्लि निट्टुसिरु बिडुत्ता एकाग्रचित्तनागिरदे कुळितुकॊंडिरलु संजयनु हेळिदनु:
02072003a अवाप्य वसुसंपूर्णां वसुधां वसुधाधिप।
02072003c प्रव्राज्य पांडवान्राज्याद्राजन्किमनुशोचसि।।
“वसुधाधिप! राजन्! संपत्तिनॊंदिगॆ संपूर्ण वसुधॆयन्नु पडॆदु, पांडवरन्नु अवर राज्यदिंद हॊरहाकि, याकॆ शोकिसुत्तिद्दीयॆ?”
02072004 धृतराष्ट्र उवाच।
02072004a अशोच्यं तु कुतस्तेषां येषां वैरं भविष्यति।
02072004c पांडवैर्युद्धशौंडैर्हि मित्रवद्भिर्महारथैः।।
धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “युद्धशौंडरन्नु मित्ररन्नागि पडॆदिरुव आ महारथि पांडवरॊंदिगॆ वैरवागिरुवरिगॆ चिंतॆ माडलु एनू इल्लवे?”
02072005 संजय उवाच।
02072005a तवेदं सुकृतं राजन्महद्वैरं भविष्यति।
02072005c विनाशः सर्वलोकस्य सानुबंधो भविष्यति।।
संजयनु हेळिदनु: “राजन्! इदु नीने माडिकॊंड सुकृत. अतिदॊड्ड वैरवु उंटागुत्तदॆ. अनुयायिगळॊंदिगॆ सर्वलोकद विनाशवागुत्तदॆ.
02072006a वार्यमाणोऽपि भीष्मेण द्रोणेन विदुरेण च।
02072006c पांडवानां प्रियां भार्यां द्रौपदीं धर्मचारिणीं।।
02072007a प्राहिणोदानयेहेति पुत्रो दुर्योधनस्तव।
02072007c सूतपुत्रं सुमंदात्मा निर्लज्जः प्रातिकामिनं।।
भीष्म, द्रोण मत्तु विदुररु बेडवॆंदरू अत्यंत दड्डनू निर्लज्जनू आद निन्न पुत्र दुर्योधननु पांडवर प्रिय भार्यॆ धर्मचारिणि द्रौपदियन्नु करॆतरलु सूतपुत्र प्रतिकामियन्नु कळुहिसिदनु.”
02072008 धृतराष्ट्र उवाच।
02072008a यस्मै देवाः प्रयच्छंति पुरुषाय पराभवं।
02072008c बुद्धिं तस्यापकर्षंति सोऽपाचीनानि पश्यति।।
धृतराष्ट्रनु हेळिदनु: “यार पराभववन्नु देवतॆगळे निश्चयिसिद्दारो अवनु विषयवन्नु सरियागि काणदे इरलि ऎंदु मॊदलु अवन बुद्धियन्नु कित्तुकॊळ्ळुत्तारॆ.
02072009a बुद्धौ कलुषभूतायां विनाशे प्रत्युपस्थिते।
02072009c अनयो नयसंकाशो हृदयान्नापसर्पति।।
विनाशवु निश्चितवादाग मत्तु बुद्धियु कलुषितवादाग अन्यायवू न्यायवॆंदे तोरुत्तदॆ मत्तु अदन्नल्लदे बेरॆ एनन्नू हृदयवु बयसुवुदिल्ल.
02072010a अनर्थाश्चार्थरूपेण अर्थाश्चानर्थरूपिणः।
02072010c उत्तिष्ठंति विनाशांते नरं तच्चास्य रोचते।।
विनाशवु हत्तिरवादाग कॆट्टद्दु ऒळ्ळॆयदागियू ऒळ्ळॆयदु कॆट्टद्दागियू तोरुत्तदॆ मत्तु मनुष्यनु तनगॆ कंडद्दन्ने स्वीकरिसुत्तानॆ.
02072011a न कालो दंडमुद्यम्य शिरः कृंतति कस्य चित्।
02072011c कालस्य बलमेतावद्विपरीतार्थदर्शनं।।
कालवु दंडवन्नॆत्ति शिरवन्नॆंदू ऒडॆयुवुदिल्ल1. ई रीतिय विपरीत अर्थगळन्नु तोरिसुवुदे कालद बल.
02072012a आसादितमिदं घोरं तुमुलं लोमहर्षणं।
02072012c पांचालीमपकर्षद्भिः सभामध्ये तपस्विनीं।।
मैनविरेळिसुव ई घोर तुमुलवु तपस्विनी पांचालियन्नु सभामध्यदल्लि ऎळॆदु तंदिरुवुदरिंद आगिद्दुदु.
02072013a अयोनिजां रूपवतीं कुले जातां विभावरीं।
02072013c को नु तां सर्वधर्मज्ञां परिभूय यशस्विनीं।।
02072014a पर्यानयेत्सभामध्यमृते दुर्द्यूतदेविनं।
कॆट्ट जूजाडुववनल्लदे बेरॆ यारु तानॆ आ अयोनिजॆ, रूपवति, उत्तम कुलदल्लि हुट्टिद, विभावरी, सर्वधर्मज्ञॆ, यशस्विनियन्नु बलवंतवागि सभामध्यदल्लि ऎळॆदु तंदारु?
02072014c स्त्रीधर्मिणीं वरारोहां शोणितेन समुक्षितां।।
02072015a एकवस्त्रां च पांचालीं पांडवानभ्यवेक्षतीं।
02072015c हृतस्वान्भ्रष्टचित्तांस्तान् हृतदारान् हृतश्रियः।।
02072016a विहीनान्सर्वकामेभ्यो दासभाववशं गतान्।
02072016c धर्मपाशपरिक्षिप्तानशक्तानिव विक्रमे।।
आ स्त्रीधर्मिणी, वरारोहॆ, रक्तदिंद तोय्द एक वस्त्रधारिणि पांचालियु सोत, भ्रष्टचित्त, पत्नियन्नु कळॆदुकॊंड, संपत्तन्नु कळॆदुकॊंड, सर्वकामगळिंद वंचितराद, दासभाववन्नु हॊंदिद, धर्मपाशदल्लि सिलुकिकॊंड, विक्रमदल्लि अशक्तरंतिरुव पांडवरन्नु नोडिदळु.
02072017a क्रुद्धाममर्षितां कृष्णां दुःखितां कुरुसंसदि।
02072017c दुर्योधनश्च कर्णश्च कटुकान्यभ्यभाषतां।।
कृद्धळू, असहायकळू. दुःखितळू आगिद्द कृष्णॆयन्नु दुर्योधन कर्णरु कटु मातुगळिंद अवमानिसिदरु.
02072018a तस्याः कृपणचक्षुर्भ्यां प्रदह्येतापि मेदिनी।
02072018c अपि शेषं भवेदद्य पुत्राणां मम संजय।।
संजय! अवळ दीन कण्णुगळिंद इडी भूमिये सुट्टुहोगबहुदागित्तु. इन्नु नन्न पुत्ररु उळियुवरे?
02072019a भारतानां स्त्रियः सर्वा गांधार्या सह संगताः।
02072019c प्राक्रोशन्भैरवं तत्र दृष्ट्वा कृष्णां सभागतां।।
अल्लि सेरिद्द गांधारियन्नू सेरि सर्व भारत स्त्रीयरु कृष्णॆयन्नु सभॆगॆ करिसिद्दुदन्नु नोडि भैरववागि कूगिकॊंडरु.
02072020a अग्निहोत्राणि सायाह्ने न चाहूयंत सर्वशः।
02072020c ब्राह्मणाः कुपिताश्चासन्द्रौपद्याः परिकर्षणे।।
सर्व ब्राह्मणरू द्रौपदिय बलात्कारदिंद कुपितरागि अंदिन संजॆ अग्निहोत्रगळु उरियलिल्ल.
02072021a आसीन्निष्टानको घोरो निर्घातश्च महानभूत्।
02072021c दिवोल्काश्चापतन्घोरा राहुश्चार्कमुपाग्रसत्।
02072021e अपर्वणि महाघोरं प्रजानां जनयन्भयं।।
अनिष्ट घोर भूकंपनद ध्वनियु केळिबंदितु. आकाशदिंद घोर उल्कॆगळु बिद्दवु. ग्रहण कालवल्लदिद्दरू महाघोर राहुवु सूर्यग्रहण माडि प्रजॆगळल्लि भयवन्नुंटु माडिदनु.
02072022a तथैव रथशालासु प्रादुरासीद्धुताशनः।
02072022c ध्वजाश्च व्यवशीर्यंत भरतानामभूतये।।
हागॆये भारतर विनाशवन्नु सूचिसुवंतॆ रथशालॆगळल्लि बॆंकियु काणिसिकॊंडितु मत्तु ध्वजस्थंभगळु तावागिये मुरिदु बिद्दवु.
02072023a दुर्योधनस्याग्निहोत्रे प्राक्रोशन्भैरवं शिवाः।
02072023c तास्तदा प्रत्यभाषंत रासभाः सर्वतोदिशं।।
दुर्योधनन अग्निहोत्रदल्लि नरिगळु भैरववागि कूगिदवु, अदक्कॆ प्रत्युत्तरवागि ऎल्ल दिक्कुगळिंदलू कत्तॆगळु कूगिदवु.
02072024a प्रातिष्ठत ततो भीष्मो द्रोणेन सह संजय।
02072024c कृपश्च सोमदत्तश्च बाह्लीकश्च महारथः।।
संजय! आग भीष्मनु द्रोण, कृप, सोमदत्त, महारथि बाह्लीकरॊंदिगॆ सभॆयन्नु बिट्टु हॊरटु होदनु.
02072025a ततोऽहमब्रुवं तत्र विदुरेण प्रचोदितः।
02072025c वरं ददानि कृष्णायै कांक्षितं यद्यदिच्छति।।
आग नानु विदुरनिंद प्रचोदितनागि बेडिद वरवन्नु कॊडुत्तेनॆ ऎंदु कृष्णॆगॆ हेळिदॆनु.
02072026a अवृणोत्तत्र पांचाली पांडवानमितौजसः।
02072026c सरथान्सधनुष्कांश्चाप्यनुज्ञासिषमप्यहं।।
आग पांचालियु अमितौजस पांडवरन्नु केळिकॊंडळु. नानु रथ, धनुस्सुगळॊंदिगॆ अवरिगॆ होगलु अनुमतियन्नित्तॆनु.
02072027a अथाब्रवीन्महाप्राज्ञो विदुरः सर्वधर्मवित्।
02072027c एतदंताः स्थ भरता यद्वः कृष्णा सभां गता।।
आग महाप्राज्ञ, सर्वधर्मविदु विदुरनु हेळिदनु: “भारतरे! कृष्णॆयु सभॆगॆ बंदिरुवुदु निम्म अंत्यवन्नु सूचिसुत्तदॆ.
02072028a एषा पांचालराजस्य सुतैषा श्रीरनुत्तमा।
02072028c पांचाली पांडवानेतान्दैवसृष्टोपसर्पति।।
ई पांचालराजन सुतॆ पांचालियु पांडवरिगागिये देवतॆगळु सृष्टिसिद उत्तम श्री.
02072029a तस्याः पार्थाः परिक्लेशं न क्षंस्यंतेऽत्यमर्षणाः।
02072029c वृष्णयो वा महेष्वासाः पांचाला वा महौजसः।।
अवळ अपमानवन्नु सिट्टिगॆद्द पांडवरागली, महेष्वास वृष्णिगळागली, अथवा महौजस पांचालरागली सहिसुवुदिल्ल.
02072030a तेन सत्याभिसंधेन वासुदेवेन रक्षिताः।
02072030c आगमिष्यति बीभत्सुः पांचालैरभिरक्षितः।।
अवरु सत्याभिसंध वासुदेवन रक्षणॆयल्लिद्दारॆ. पांचालरिंद रक्षितनाद बीभत्सुवु बरुत्तानॆ.
02072031a तेषां मध्ये महेष्वासो भीमसेनो महाबलः।
02072031c आगमिष्यति धुन्वानो गदां दंडमिवांतकः।।
अवर मध्यदल्लि महेष्वास महाबल भीमसेननु अंतकन दंडदंतिरुव गदॆयन्नु बीसुत्ता बरुत्तानॆ.
02072032a ततो गांडीवनिर्घोषं श्रुत्वा पार्थस्य धीमतः।
02072032c गदावेगं च भीमस्य नालं सोढुं नराधिपाः।।
धीमत पार्थन गांडीवद घोषवन्नागली, भीमन गदाप्रहारद रभसवन्नागली केळलु नराधिपरिगागलिक्किल्ल.
02072033a तत्र मे रोचते नित्यं पार्थैः सार्धं न विग्रहः।
02072033c कुरुभ्यो हि सदा मन्ये पांडवां शक्तिमत्तरान्।।
आदुदरिंद पार्थरॊंदिगॆ ऎंदू युद्धवन्नु बयसबारदु ऎंदु ननगन्निसुत्तदॆ. कुरुगळिगिंत पांडवरे हॆच्चु शक्तिवंतरु ऎंदु सदा नन्न अभिप्राय.
02072034a तथा हि बलवान्राजा जरासंधो महाद्युतिः।
02072034c बाहुप्रहरणेनैव भीमेन निहतो युधि।।
महाद्युति राज जरासंधनु बलशालियागिद्दरू अवनन्नु भीमनु केवल बाहुप्रहारदिंदले कॊंदनु.
02072035a तस्य ते शम एवास्तु पांडवैर्भरतर्षभ।
02072035c उभयोः पक्षयोर्युक्तं क्रियतामविशंकया।।
भरतर्षभ! पांडवरॊंदिगॆ शांतियिंदिरु मत्तु ऎरडू पक्षगळिगू युक्तवागिरुव कार्यवन्नु शीघ्रवे कैगॊळ्ळु!”
02072036a एवं गावल्गणे क्षत्ता धर्मार्थसहितं वचः।
02072036c उक्तवान्न गृहीतं च मया पुत्रहितेप्सया।।
गावल्गणि! पुत्रनिगॆ हितवन्नुंटुमाडलु बयसिद नानु क्षत्तनु ई रीति धर्मार्थसंहित मातुगळन्नु हेळिदरू स्वीकरिसलिल्ल!””
समाप्ति
इति श्री महाभारते शतसहस्र्यां संहितायां सभापर्वणि अनुद्यूतपर्वणि धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्विसप्ततितमोऽध्यायः।।
इदु ऒंदु लक्ष श्लोकगळ संहितॆ श्री महाभारतदल्लि सभापर्वदल्लि अनुद्यूतपर्वदल्लि धृतराष्ट्रसंजयसंवाद ऎन्नुव ऎप्पत्तॆरडनॆय अध्यायवु.
इति श्री महाभारते शतसहस्र्यां संहितायां सभापर्वणि अनुद्यूतपर्वः।।
इदु ऒंदु लक्ष श्लोकगळ संहितॆ श्री महाभारतदल्लि सभापर्वदल्लि अनुद्यूतपर्ववु.
इति श्री महाभारते शतसहस्र्यां संहितायां सभापर्वः।।
इदु ऒंदु लक्ष श्लोकगळ संहितॆ श्री महाभारतदल्लि सभापर्ववु.
इदूवरॆगिन ऒट्टु महापर्वगळु-2/18, उपपर्वगळु-29/100, अध्यायगळु-297/1995, श्लोकगळु-9580/73784.
-
अंदरॆ कालवु ऒंदे समनॆ मनुष्यनन्नु नाशगॊळिसुवुदिल्ल. अवनन्नु निधानवागि, विपरीत निर्धारगळन्नु तॆगॆदुकॊळ्ळुवंतॆ माडि, कॊल्लुत्तदॆ. ↩︎