प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
सभा पर्व
शिशुपालवध पर्व
अध्याय 41
सार
शिशुपालनु पुनः भीष्मनन्नु हीयाळिसुवुदु (1-23). कृष्णनु शिशुपालनन्नु अंत्यगॊळिसलि ऎंदु भीष्मनु केळिकॊळ्ळुवुदु (24-33).
02041001 भीष्म उवाच।
02041001a नैषा चेदिपतेर्बुद्धिर्यया त्वाह्वयतेऽच्युतं।
02041001c नूनमेष जगद्भर्तुः कृष्णस्यैव विनिश्चयः।।
भीष्मनु हेळिदनु: “अच्युतनन्नु कॆरळिसुव इदु चेदिपतिय अवन बुद्धियिंदल्ल. निश्चितवागियू इदु जगद्भर्तु कृष्णन निर्धारवे आगिरबेकु.
02041002a को हि मां भीमसेनाद्य क्षितावर्हति पार्थिवः।
02041002c क्षेप्तुं दैवपरीतात्मा यथैष कुलपांसनः।।
भीमसेन! ई कुलपांसननन्नु बिट्टु दैवपरितात्मनल्लद भूमिय मेलिरुव बेरॆ याव पार्थिवनु ई रीति नन्नन्नु हीयाळिसलु साध्य?
02041003a एष ह्यस्य महाबाहो तेजोंशश्च हरेर्ध्रुवं।
02041003c तमेव पुनरादातुमिच्छत्पृथुयशा हरिः।।
इवनु महाबाहु हरिय तेजस्सिन ऒंदु अंश मत्तु पृथुयश हरियु अदन्नु पुनः हिंदॆगॆदुकॊळ्ळलु बयसुत्तानिरबहुदु.
02041004a येनैष कुरुशार्दूल शार्दूल इव चेदिराट्।
02041004c गर्जत्यतीव दुर्बुद्धिः सर्वानस्मानचिंतयन्।।
कुरुशार्दूल! आदुदरिंदले ई दुर्बुद्धि चेदिराजनु नम्मॆल्लर कुरितु योचिसदे शार्दूलदंतॆ गर्जिसुत्तिद्दानॆ.””
02041005 वैशंपायन उवाच।
02041005a ततो न ममृषे चैद्यस्तद्भीष्मवचनं तदा।
02041005c उवाच चैनं संक्रुद्धः पुनर्भीष्ममथोत्तरं।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “आग चैद्यनु भीष्मन मातुगळिंद तत्तरिसदे संकृद्धनागि बीष्मनिगॆ पुनः उत्तरिसिदनु:
02041006 शिशुपाल उवाच।
02041006a द्विषतां नोऽस्तु भीष्मैष प्रभावः केशवस्य यः।
02041006c यस्य संस्तववक्ता त्वं बंडिवत्सततोत्थितः।।
शिशुपालनु हेळिदनु: “भीष्म! नीनु स्तुतिसिद केशवन प्रभाववु नम्म द्वेषिगळद्दिरलि. नीनु सतत अवन हॊगळुभट्टनागिद्दीयॆ.
02041007a संस्तवाय मनो भीष्म परेषां रमते सदा।
02041007c यदि संस्तौषि राज्ञस्त्वमिमं हित्वा जनार्दनं।।
ऒंदुवेळॆ निनगॆ सदा इन्नॊब्बरन्नु हॊगळुवुदरल्लिये संतोष दॊरॆयुत्तदॆयादरॆ जनार्दननन्नु बिट्टु बेरॆ यारादरू निज राजरन्नु हॊगळु.
02041008a दरदं स्तुहि बाह्लीकमिमं पार्थिवसत्तमं।
02041008c जायमानेन येनेयमभवद्दारिता मही।।
हुट्टुत्तले महियन्नु तन्नदागिसिकॊंड ई पार्थिवसत्तम दरद बाह्लीकनन्नु स्तुतिसु.
02041009a वंगांगविषयाध्यक्षं सहस्राक्षसमं बले।
02041009c स्तुहि कर्णमिमं भीष्म महाचापविकर्षणं।।
भीष्म! वंगांगदेशगळ अध्यक्ष, बलदल्लि सहस्राक्षन सम, महाचापविकर्षण ई कर्णनन्नु स्तुतिसु.
02041010a द्रोणं द्रौणिं च साधु त्वं पितापुत्रौ महारथौ।
02041010c स्तुहि स्तुत्याविमौ भीष्म सततं द्विजसत्तमौ।।
भीष्म! महारथि, सततवू द्विजसत्तम स्तुतिगळिगर्ह पित-पुत्र द्रोण-द्रौणियरन्नु स्तुतिसु.
02041011a ययोरन्यतरो भीष्म संक्रुद्धः सचराचरां।
02041011c इमां वसुमतीं कुर्यादशेषामिति मे मतिः।।
भीष्म! अवरल्लि यारॊब्बरू संकृद्धरादरॆ ई वसुमतियन्नु सचराचरगळ अशेषमतियन्नागि माडुत्तारॆ ऎंदु नन्न अभिप्राय.
02041012a द्रोणस्य हि समं युद्धे न पश्यामि नराधिपं।
02041012c अश्वत्थांनस्तथा भीष्म न चैतौ स्तोतुमिच्छसि।।
भीष्म! युद्धदल्लि द्रोणन अथवा अश्वत्थामन सरिसम नराधिपनन्नु काणलारॆ. आदरू नीनु इवरिब्बरन्नु हॊगळलु बयसुत्तिल्लवल्ल!
02041013a शल्यादीनपि कस्मात्त्वं न स्तौषि वसुधाधिपान्।
02041013c स्तवाय यदि ते बुद्धिर्वर्तते भीष्म सर्वदा।।
भीष्म! निन्न बुद्धियु ऎल्लर हॊगळिकॆयल्लि निरतवागिद्दरॆ नीनु शल्य मॊदलाद वसुधाधिपरन्नु एकॆ हॊगळुत्तिल्ल?
02041014a किं हि शक्यं मया कर्तुं यद्वृद्धानां त्वया नृप।
02041014c पुरा कथयतां नूनं न श्रुतं धर्मवादिनां।।
नृप! नीनु हिंदॆ धर्मवादिगळु हेळिकॊट्टवुगळन्नु केळदिद्दरॆ नानु तानॆ एनु माडबल्लॆ?
02041015a आत्मनिंदात्मपूजा च परनिंदा परस्तवः।
02041015c अनाचरितमार्याणां वृत्तमेतच्चतुर्विधं।।
आर्यनॆनिसिकॊंडवनु आत्मनिंदॆ, आत्मपूजॆ, परनिंदनॆ, परस्तुति ई नाल्कन्नू माडुवुदिल्ल.
02041016a यदस्तव्यमिमं शश्वन्मोहात्संस्तौषि भक्तितः।
02041016c केशवं तच्च ते भीष्म न कश्चिदनुमन्यते।।
भीष्म! निन्न मोहदिंदलो भक्तियिंदलो ई केशवनन्नु स्तुतिसुत्तीयादरॆ स्तुतिसु. आदरॆ बेरॆ यारू इदक्कॆ ऒप्पिकॊळ्ळुवुदिल्ल.
02041017a कथं भोजस्य पुरुषे वर्गपाले दुरात्मनि।
02041017c समावेशयसे सर्वं जगत्केवलकाम्यया।।
निन्न वैयक्तिक बयकॆयिंदागि भोजन बागिलु कावलुगारनाद ई दुरात्मनिगागि नीनु हेगॆ तानॆ सर्व जगत्तन्नू केवलगॊळिसबल्लॆ?
02041018a अथ वैषा न ते भक्तिः पकृतिं याति भारत।
02041018c मयैव कथितं पूर्वं भूलिंगशकुनिर्यथा।।
भारत! अथवा ई भक्तियु निन्न प्रकृतियागिरदिद्दरॆ - नीनु भूलिंग पक्षियन्नु होलुत्तीयॆ ऎंदु मॊदले निनगॆ नानु हेळिरलिल्लवे?
02041019a भूलिंगशकुनिर्नाम पार्श्वे हिमवतः परे।
02041019c भीष्म तस्याः सदा वाचः श्रूयंतेऽर्थविगर्हिताः।।
भीष्म! भूलिंग ऎंब हॆसरिन पक्षियु हिमालयद हत्तिरदल्लिरुत्तदॆ. अदर मातुगळु सदा अर्थहीनवागिरुत्तवॆ ऎंदु केळिद्देवॆ.
02041020a मा साहसमितीदं सा सततं वाशते किल।
02041020c साहसं चात्मनातीव चरंती नावबुध्यते।।
अदु दुडुकबेड ऎंदु सदा उपदेशनीडुत्तिरुत्तदॆ. आदरॆ दड्डतनदिंद ताने दुडुकुत्ता जीविसुत्तदॆ.
02041021a सा हि मांसार्गलं भीष्म मुखात्सिंहस्य खादतः।
02041021c दंतांतरविलग्नं यत्तदादत्तेऽल्पचेतना।।
भीष्म! याकॆंदरॆ ई अल्पचेतन पक्षियु तिन्नुत्तिरुव सिंहद मुखदमेलॆ तगलिरुव मत्तु हल्लुगळ नडुवॆ सिलुकिकॊंडिरुव मांसद तुंडुगळन्नु तिन्नुत्तदॆ.
02041022a इच्छतः सा हि सिंहस्य भीष्म जीवत्यसंशयं।
02041022c तद्वत्त्वमप्यधर्मज्ञ सदा वाचः प्रभाषसे।।
भीष्म! अदु सिंहद इच्छॆयंतॆ जीविसुत्तदॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. अदरंतॆ नीनू कूड सदा अधर्मज्ञन मातुगळन्नाडुत्तिद्दीयॆ.
02041023a इच्छतां पार्थिवेंद्राणां भीष्म जीवस्यसंशयं।
02041023c लोकविद्विष्टकर्मा हि नान्योऽस्ति भवता समः।।
भीष्म! ई पार्थिवेंद्रर इच्छॆयंतॆ नीनु जीविसुत्तिद्दीयॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. याकॆंदरॆ जनरिगॆ इष्टवागदे इरुव निन्नंथ बेरॆ यारू इल्ल.””
02041024 वैशंपायन उवाच।
02041024a ततश्चेदिपतेः श्रुत्वा भीष्मः स कटुकं वचः।
02041024c उवाचेदं वचो राजंश्चेदिराजस्य शृण्वतः।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “राजन्! चेदिपतिय ई कटुक मातुगळन्नु केळिद भीष्मनु चेदिराजनिगॆ केळुवहागॆ ई मातुगळन्नाडिदनु:
02041025a इच्छतां किल नामाहं जीवांयेषां महीक्षितां।
02041025c योऽहं न गणयांयेतांस्तृणानीव नराधिपान्।।
“हौदु! ई नराधिप गणवन्नु तृणसमानवागि काणुत्तिरुव नानु ई महीक्षितर हॆसरिनल्लि जीविसुत्तिद्देनॆ!”
02041026a एवमुक्ते तु भीष्मेण ततः संचुक्रुधुर्नृपाः।
02041026c के चिज्जहृषिरे तत्र के चिद्भीष्मं जगर्हिरे।।
भीष्मन ई मातिगॆ नृपरल्लि कॆलवरु संकृद्धरादरु. कॆलवरु तत्तरिसिदरु मत्तु इन्नु कॆलवरु भीष्मनन्नु निंदिसिदरु.
02041027a के चिदूचुर्महेष्वासाः श्रुत्वा भीष्मस्य तद्वचः।
02041027c पापोऽवलिप्तो वृद्धश्च नायं भीष्मोऽर्हति क्ष्मां।।
भीष्मन ई मातुगळन्नु केळिद इतर महेष्वासरु “पापि, अवलिप्त, वृद्ध भीष्मनु नम्म क्षमॆगॆ अर्हनल्ल!” ऎंदु कूगिदरु.
02041028a हन्यतां दुर्मतिर्भीष्मः पशुवत्साध्वयं नृपैः।
02041028c सर्वैः समेत्य संरब्धैर्दह्यतां वा कटाग्निना।।
नृपरॆल्लरू सेरि “ई दुर्मति भीष्मनन्नु बलिपशुवंतॆ कॊंदुहाकोण अथवा कटाग्नियल्लि सुट्टुहाकोण!” ऎंदु हेळिदरु.
02041029a इति तेषां वचः श्रुत्वा ततः कुरुपितामहः।
02041029c उवाच मतिमान्भीष्मस्तानेव वसुधाधिपान्।।
अवर ई कूगन्नु केळिद कुरुपितामह मतिवंत भीष्मनु अल्लि नॆरदिद्द वसुधाधिपरल्लि हेळिदनु:
02041030a उक्तस्योक्तस्य नेहांतमहं समुपलक्षये।
02041030c यत्तु वक्ष्यामि तत्सर्वं शृणुध्वं वसुधाधिपाः।।
“इल्लि ई रीति मातनाडुवुदरिंद याव अंत्यवन्नू नानु काणलारॆ. वसुधाधिपरे! नानु एनु हेळलिद्देनो अदन्नु केळि!
02041031a पशुवद्घातनं वा मे दहनं वा कटाग्निना।
02041031c क्रियतां मूर्ध्नि वो न्यस्तं मयेदं सकलं पदं।।
पशुवंतॆ नन्नन्नु कॊल्लि अथवा कटाग्नियल्लि सुडि! आदरॆ नानु निम्मॆल्लरन्नू तुळियुत्तेनॆ.
02041032a एष तिष्ठति गोविंदः पूजितोऽस्माभिरच्युतः।
02041032c यस्य वस्त्वरते बुद्धिर्मरणाय स माधवं।।
02041033a कृष्णमाह्वयतामद्य युद्धे शांङ्रगदाधरं।
02041033c यावदस्यैव देवस्य देहं विशतु पातितः।।
इल्लि निंतिद्दानॆ नावु पूजिसिद अच्युत गोविंद! यार बुद्धियु मरणक्कॆ कातरिसुत्तिदॆयो अवनु युद्धदल्लि ई शांङ्रगदाधर देव यादव माधव कृष्णनिंद पतनवागि अवन देहवन्नु प्रवेशिसलि!””
समाप्ति
इति श्री महाभारते सभापर्वणि शिशुपालवधपर्वणि भीष्मवाक्ये एकचत्वारिंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि सभापर्वदल्लि शिशुपालवधपर्वदल्लि भीष्मवाक्य ऎन्नुव नलवत्तॊंदनॆय अध्यायवु.