प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
सभा पर्व
दिग्विजय पर्व
अध्याय 26
सार
भीमसेननु पूर्वदिक्किन राजरन्नु गॆद्दुदु (1-10). शिशुपालनिंद सत्कृतनादुदु (11-16).
02026001 वैशंपायन उवाच।
02026001a एतस्मिन्नेव काले तु भीमसेनोऽपि वीर्यवान्।
02026001c धर्मराजमनुज्ञाप्य ययौ प्राचीं दिशं प्रति।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “इदे समयदल्लि वीर्यवान् भीमसेननु धर्मराजन अनुमतियन्नु पडॆदु पूर्वदिक्किन कडॆ हॊरटनु.
02026002a महता बलचक्रेण परराष्ट्रावमर्दिना।
02026002c वृतो भरतशार्दूलो द्विषच्छोकविवर्धनः।।
परराष्ट्रगळन्नु सदॆबडियुव महा बलचक्रदिंदॊडगूडि शत्रुगळ शोकवन्नु वृद्धिसुत्ता आ भरतशार्दूलनु मुंदुवरॆदनु.
02026003a स गत्वा राजशार्दूलः पांचालानां पुरं महत्।
02026003c पांचालान्विविधोपायैः सांत्वयामास पांडवः।।
आ राजशार्दूल पांडवनु मॊदलिगॆ पांचालर पुरक्कॆ होगि विविध उपायगळिंद पांचालरन्नु ऒलिसिदनु.
02026004a ततः स गंडकीं शूरो विदेहांश्च नरर्षभः।
02026004c विजित्याल्पेन कालेन दशार्णानगमत्प्रभुः।।
नरर्षभ शूर प्रभुवु कंडकी मत्तु विदेहरन्नु जयिसि स्वल्पवे समयदल्लि दशार्णर मेलॆ ऎरगिदनु.
02026005a तत्र दाशार्णको राजा सुधर्मा लोमहर्षणं।
02026005c कृतवान्कर्म भीमेन महद्युद्धं निरायुधं।।
अल्लि दाशार्णक राजा सुधर्मनु भीमनॊंदिगॆ निरायुध, नविरेळिसुव महायुद्धवन्नु नडॆयिसिदनु.
02026006a भीमसेनस्तु तद्दृष्ट्वा तस्य कर्म परंतपः।
02026006c अधिसेनापतिं चक्रे सुधर्माणं महाबलं।।
अवन ई कार्यवन्नु नोडिद परंतप भीमसेननु महाबल सुधर्मनन्नु तन्न सेनापतियन्नागि नियुक्तिसिदनु.
02026007a ततः प्राचीं दिशं भीमो ययौ भीमपराक्रमः।
02026007c सैन्येन महता राजन्कंपयन्निव मेदिनीं।।
राजन्! अनंतर भीमपराक्रमि भीमनु तन्न महासैन्यदिंद मेदिनियन्नु नडुगिसुत्ता पूर्वदिक्किनल्लि हॊरटनु.
02026008a सोऽश्वमेधेश्वरं राजन्रोचमानं सहानुजं।
02026008c जिगाय समरे वीरो बलेन बलिनां वरः।।
राजन्! आ बलिगळल्लि श्रेष्ठ वीरनु अश्वमेधेश्वर रोचमाननन्नु अवन अनुजनॊंदिगॆ समरदल्लि बलदॊंदिगॆ गॆद्दनु.
02026009a स तं निर्जित्य कौंतेयो नातितीव्रेण कर्मणा।
02026009c पूर्वदेशं महावीर्यो विजिग्ये कुरुनंदनः।।
अष्टॊंदु तीव्रवागिल्लद युद्धदल्लिये अवनन्नु सोलिसि महावीर कुरुनंदन कौंतेयनु पूर्वदेशवन्नु गॆद्दनु.
02026010a ततो दक्षिणमागम्य पुलिंदनगरं महत्।
02026010c सुकुमारं वशे चक्रे सुमित्रं च नराधिपं।।
अनंतर दक्षिणदल्लि महा पुनिंद नगरक्कॆ सेरि सुकुमार मत्तु नराधिप सुमित्रनन्नु गॆद्दनु.
02026011a ततस्तु धर्मराजस्य शासनाद्भरतर्षभः।
02026011c शिशुपालं महावीर्यमभ्ययाज्जनमेजय।।
जनमेजय! नंतर धर्मराजन शासनदंतॆ भरतर्षभनु महावीर शिशुपालनल्लिगॆ होदनु.
02026012a चेदिराजोऽपि तच्छृत्वा पांडवस्य चिकीर्षितं।
02026012c उपनिष्क्रम्य नगरात्प्रत्यगृह्णात्परंतपः।।
पांडवन इच्छॆयन्नु केळिद चेदिराजनु नगरदिंद हॊरबंदु आ परंतपनन्नु बरमाडिकॊंडनु.
02026013a तौ समेत्य महाराज कुरुचेदिवृषौ तदा।
02026013c उभयोरात्मकुलयोः कौशल्यं पर्यपृच्छतां।।
महाराज! कुरु मत्तु चेदि वृषभरीर्वरु भेटियादाग तम्म ऎरडू कुलगळ कुशलवन्नु परस्परररल्लि केळिदरु.
02026014a ततो निवेद्य तद्राष्ट्रं चेदिराजो विशां पते।
02026014c उवाच भीमं प्रहसन्किमिदं कुरुषेऽनघ।।
विशांपते! चेदिराजनु तन्न राज्यवन्नु अवनिगॆ समर्पिसि नगुत्ता भीमनिगॆ केळिदनु: “अनघ! इदेनु नीनु माडुत्तिरुवॆ?”
02026015a तस्य भीमस्तदाचख्यौ धर्मराजचिकीर्षितं।
02026015c स च तत्प्रतिगृह्यैव तथा चक्रे नराधिपः।।
आग भीमनु अवनिगॆ धर्मराजन बयकॆय कुरितु हेळिदनु. अदन्नु ऒप्पिकॊंड नराधिपनु अदक्कॆ तक्कुदागि नडॆदुकॊंडनु.
02026016a ततो भीमस्तत्र राजन्नुषित्वा त्रिदशाः क्षपाः।
02026016c सत्कृतः शिशुपालेन ययौ सबलवाहनः।।
राजन्! भीमनु अल्लि शिशुपालनिंद सत्कृतनागि सेनॆ वाहनगळॊंदिगॆ मूवत्तु रात्रिगळन्नु कळॆदनु1.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते सभापर्वणि दिग्विजयपर्वणि भीमदिग्विजये षड्विंशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि सभापर्वदल्लि दिग्विजयपर्वदल्लि भीमदिग्विजय ऎन्नुव इप्पत्तारनॆय अध्यायवु.
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जरासंधन अळिय मत्तु मित्र चेदिराज शिशुपालनु जरासंधनन्नु वधिसिद भीमसेननॊंदिगॆ इष्टॊंदु प्रीतिपूर्वकवागि नडॆदुकॊंडिद्दुदु आश्चर्यवे सरि! ↩︎