018 कृष्णपांडवमागधयात्रा

प्रवेश

।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।

श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित

श्री महाभारत

सभा पर्व

जरासंधवध पर्व

अध्याय 18

सार

जरासंधनन्नु कॊल्लुव उपायवन्नु मातनाडिकॊंडु कृष्णनु युधिष्ठिरनल्लि भीमार्जुनरन्नु केळि पडॆदुदु (1-20). मूवरू मगधक्कॆ प्रयाणिसिदुदु (21-30).

02018001 वासुदेव उवाच।
02018001a पतितौ हंसडिभकौ कंसामात्यौ निपातितौ।
02018001c जरासंधस्य निधने कालोऽयं समुपागतः।।

वासुदेवनु हेळिदनु: “हंस-डिभकरु1 पतितरागिद्दारॆ; कंस मत्तु अवन अमात्यरु2 निपतितरागिद्दारॆ. ईग जरासंधन निधनद कालवु बंदॊदगिदॆ.

02018002a न स शक्यो रणे जेतुं सर्वैरपि सुरासुरैः।
02018002c प्राणयुद्धेन जेतव्यः स इत्युपलभामहे।।

अवनन्नु रणदल्लि गॆल्ललु सुरासुर सर्वरिंदलू शक्यविल्ल. आदरॆ, नमगॆ तिळिदिरुवंतॆ, प्राण-युद्ध3दल्लि अवनन्नु गॆल्लबहुदु.

02018003a मयि नीतिर्बलं भीमे रक्षिता चावयोर्जुनः।
02018003c साधयिष्याम तं राजन्वयं त्रय इवाग्नयः।।

नन्नल्लि नीतियिदॆ. भीमनल्लि बलविदॆ. मत्तु अर्जुननु नम्मीर्वरन्नु रक्षिसबल्लनु. राजन्! मूरु अग्निगळंतॆ नावु अवनन्नु साधिसुत्तेवॆ4.

02018004a त्रिभिरासादितोऽस्माभिर्विजने स नराधिपः।
02018004c न संदेहो यथा युद्धमेकेनाभ्युपयास्यति।।

एकांतदल्लि आ नराधिपनन्नु नावु मूवरू ऎदुरिसिदाग नम्मल्लि ऒब्बनन्नु युद्धदल्लि तॊडगिसुत्तानॆ ऎन्नुवुदरल्लि संदेहविल्ल.

02018005a अवमानाच्च लोकस्य व्यायतत्वाच्च धर्षितः।
02018005c भीमसेनेन युद्धाय ध्रुवमभ्युपयास्यति।।

लोकद अवमान मत्तु तन्न मेलिरुव अभिमानगळु5 निश्चितवागियू अवनन्नु भीमसेननॊडनॆ युद्धमाडलु प्रेरेपिसुत्तवॆ.

02018006a अलं तस्य महाबाहुर्भीमसेनो महाबलः।
02018006c लोकस्य समुदीर्णस्य निधनायांतको यथा।।

लोक निधनक्कॆ हेगॆ अंतकनु साको हागॆ अवन निधनक्कॆ महाबाहु महाबल भीमसेननु साकु6.

02018007a यदि ते हृदयं वेत्ति यदि ते प्रत्ययो मयि।
02018007c भीमसेनार्जुनौ शीघ्रं न्यासभूतौ प्रयच्छ मे।।

निन्न हृदयवु तिळिदिद्दरॆ7 मत्तु नन्नमेलॆ निनगॆ विश्वासविद्दरॆ शीघ्रदल्लिये भीमार्जुनरन्नु ननगॊप्पिसु.””

02018008 वैशंपायन उवाच।
02018008a एवमुक्तो भगवता प्रत्युवाच युधिष्ठिरः।
02018008c भीमपार्थौ समालोक्य संप्रहृष्टमुखौ स्थितौ।।

वैशंपायननु हेळिदनु: “भगवंतनु हीगॆ हेळलु युधिष्ठिरनु संप्रहृष्टमुखरागि निंतिद्द भीम-पार्थरॆडॆगॆ नोडुत्ता उत्तरिसिदनु:

02018009a अच्युताच्युत मा मैवं व्याहरामित्रकर्षण।
02018009c पांडवानां भवान्नाथो भवंतं चाश्रिता वयं।।

“अच्युत8! अच्युत! अमित्रकर्षण! नन्नॊंदिगॆ ई रीति व्यवहरिसबेड! पांडवर नाथनु नीनु. नावॆल्लरू निन्न आश्रयदल्लिद्देवॆ.

02018010a यथा वदसि गोविंद सर्वं तदुपपद्यते।
02018010c न हि त्वमग्रतस्तेषां येषां लक्ष्मीः पराङ्मुखी।।

गोविंद! नीनु हेळिदुदॆल्लवू सरिये. लक्ष्मियु परांङ्मुखियागिरुववर ऎदिरु नीनु बरुवुदे इल्ल.

02018011a निहतश्च जरासंधो मोक्षिताश्च महीक्षितः।
02018011c राजसूयश्च मे लब्धो निदेशे तव तिष्ठतः।।

निन्न निर्देशनदंतॆ नडॆदरॆ जरासंधनु निहतनागुत्तानॆ, महीक्षितरु बिडुगडॆ हॊंदुत्तारॆ मत्तु राजसूयवु ननगॆ लब्धवागुत्तदॆ.

02018012a क्षिप्रकारिन्यथा त्वेतत्कार्यं समुपपद्यते।
02018012c मम कार्यं जगत्कार्यं तथा कुरु नरोत्तम।।

नरोत्तम! क्षिप्रकारिन्! नन्न जगत्कार्य कार्यवु सरियागि नॆरवेरुवंतॆ माडु9.

02018013a त्रिभिर्भवद्भिर्हि विना नाहं जीवितुमुत्सहे।
02018013c धर्मकामार्थरहितो रोगार्त इव दुर्गतः।।

नीवु मूवर विनः नानु जीविसलु शक्यनिल्ल. धर्मकामार्थरहित रोगियंतॆ बळलुत्तेनॆ10.

02018014a न शौरिणा विना पार्थो न शौरिः पांडवं विना।
02018014c नाजेयोऽस्त्यनयोर्लोके कृष्णयोरिति मे मतिः।।

शौरिय विनः पार्थनिल्ल, पांडवन विनः शौरियिल्ल. ई ईर्वरु कृष्णरिगॆ लोकदल्लि अजेयरु यारू इल्ल ऎन्नुवुदु नन्न अभिप्राय.

02018015a अयं च बलिनां श्रेष्ठः श्रीमानपि वृकोदरः।
02018015c युवाभ्यां सहितो वीरः किं न कुर्यान्महायशाः।।

ई श्रीमान् वृकोदरनू कूड बलिगळल्लि श्रेष्ठनु. निम्मिब्बर सहाय दॊरॆतरॆ ई महायशस्वि वीरनु एनन्नु साधिसलार?

02018016a सुप्रणीतो बलौघो हि कुरुते कार्यमुत्तमं।
02018016c अंधं जडं बलं प्राहुः प्रणेतव्यं विचक्षणैः।।

सुप्रणीतन नायकत्ववन्नु हॊंदिरुव बलप्रवाहवु उत्तम कार्यवन्नु साधिसबल्लदु. प्रणीतन नायकत्वदल्लि बलविरबेकु. इल्लदिद्दरॆ अदु कुरुडु मत्तु जडवागिरुत्तदॆ ऎंदु हेळुत्तारॆ.

02018017a यतो हि निम्नं भवति नयंतीह ततो जलं।
02018017c यतश्चिद्रं ततश्चापि नयंते धीधना बलं।।

तग्गिरुवल्लिगे नीरु हेगॆ हरियुत्तदॆयो हागॆ अमितबुद्धियुळ्ळवरु11 छिद्रविरुवल्लिगॆ बलवन्नु ऒय्युत्तारॆ.

02018018a तस्मान्नयविधानज्ञं पुरुषं लोकविश्रुतं।
02018018c वयमाश्रित्य गोविंदं यतामः कार्यसिद्धये।।

आदुदरिंद विधानज्ञ12 लोकविश्रुत पुरुष गोविंदन आश्रयदल्लिरुव नावु कार्यसिद्धियन्नु हॊंदुत्तेवॆ.

02018019a एवं प्रज्ञानयबलं क्रियोपायसमन्वितं।
02018019c पुरस्कुर्वीत कार्येषु कृष्ण कार्यार्थसिद्धये।।

हीगॆ कार्यार्थसिद्धिगागि ऎल्ल कार्यगळल्लि प्रज्ञॆ, नीति, बल मत्तु क्रियोपायसमन्वित कृष्णनन्ने मुंदिडबेकु.

02018020a एवमेव यदुश्रेष्ठं पार्थः कार्यार्थसिद्धये।
02018020c अर्जुनः कृष्णमन्वेतु भीमोऽन्वेतु धनंजयं।
02018020e नयो जयो बलं चैव विक्रमे सिद्धिमेष्यति।।

ई रीति कार्यार्थसिद्धिगागि पार्थ अर्जुननु यदुश्रेष्ठ कृष्णनन्नु अनुसरिसलि13. भीमनु दनंजयनन्नु अनुसरिसलि. नीति, जय मत्तु बलवु विक्रमवन्नु सिद्धिगॊळिसुत्तदॆ.”

02018021a एवमुक्तास्ततः सर्वे भ्रातरो विपुलौजसः।
02018021c वार्ष्णेयः पांडवेयौ च प्रतस्थुर्मागधं प्रति।।

अवनु ई रीति हेळलु विपुलौजस सर्व भ्रातररू - वार्ष्णेय मत्तु पांडवरीर्वरु - मगधद कडॆ हॊरटरु.

02018022a वर्चस्विनां ब्राह्मणानां स्नातकानां परिच्छदान्।
02018022c आच्छाद्य सुहृदां वाक्यैर्मनोज्ञैरभिनंदिताः।।

वर्चस्वि स्नातक ब्राह्मणर उडुपन्नु हॊद्दु सुहृदयर मनोज्ञ मातुगळिंद अभिनंदितरागि हॊरटरु.

02018023a अमर्षादभितप्तानां ज्ञात्यर्थं मुख्यवाससां।
02018023c रविसोमाग्निवपुषां भीममासीत्तदा वपुः।।

सुंदर वस्त्रगळन्नु धरिसिद्द मत्तु अभितप्त ज्ञातिगळिगोस्कर सिट्टिगॆद्दिद्द आ रविसोमाग्निवपुषर देहगळु भयंकरवागि तोरुत्तिद्दवु14.

02018024a हतं मेने जरासंधं दृष्ट्वा भीमपुरोगमौ।
02018024c एककार्यसमुद्युक्तौ कृष्णौ युद्धेऽपराजितौ।।

भीमनन्नु मुंदिट्टुकॊंडु ऒंदे कार्यदल्लि तॊडगिरुव युद्धदल्लि अपराजित कृष्णरीर्वरन्नु नोडिद अवनु जरासंधनु हतनादनॆंदे भाविसिदनु.

02018025a ईशौ हि तौ महात्मानौ सर्वकार्यप्रवर्तने।
02018025c धर्मार्थकामकार्याणां कार्याणामिव निग्रहे।।

याकॆंदरॆ अवरीर्वरु महात्मरू सर्वकार्यगळन्नु प्रारंभिसुवुदरल्लि मत्तु धर्मार्थकामकार्यगळ निग्रहदल्लि ईशरु15.

02018026a कुरुभ्यः प्रस्थितास्ते तु मध्येन कुरुजांगलं।
02018026c रम्यं पद्मसरो गत्वा कालकूटमतीत्य च।।
02018027a गंडकीयां तथा शोणं सदानीरां तथैव च।
02018027c एकपर्वतके नद्यः क्रमेणैत्य व्रजंति ते।।

कुरुदेशदिंद हॊरटु कुरुजंगलद मध्यदिंद हाय्दु रम्य पद्मसरोवरक्कॆ होगि कालकूटवन्नु दाटि, ऒंदे पर्वतदिंद उद्भविसुव गंडकी, शोण मत्तु सदानीर नदिगळन्नु ऒंदॊंदागि दाटि मुंदुवरॆदरु.

02018028a संतीर्य सरयूम्रम्यां दृष्ट्वा पूर्वांश्च कोसलान्।
02018028c अतीत्य जग्मुर्मिथिलां मालां चर्मण्वतीं नदीं।।

रम्य सरयूवन्नु दाटि पूर्वदल्लि कोसलवन्नु नोडुत्ता मिथिलॆगॆ होगि माला मत्तु चर्मण्वती नदिगळन्नु दाटिदरु.

02018029a उत्तीर्य गंगां शोणं च सर्वे ते प्राङ्मुखास्त्रयः।
02018029c कुरवोरश्चदं जग्मुर्मागधं क्षेत्रमच्युताः।।

आ मूवरु अच्युतरू पूर्वमुखवागि हॊरटु गंगा मत्तु शोण नदिगळन्नु दाटि कुरव वृक्षगळिंद सुत्तुवरॆयल्पट्ट मागध क्षेत्रवन्नु तलुपिदरु16.

02018030a ते शश्वद्गोधनाकीर्णमंबुमंतं शुभद्रुमं।
02018030c गोरथं गिरिमासाद्य ददृशुर्मागधं पुरं।।

गोवुगळ गुंपिनिंद कूडिद, ऒळ्ळॆय नीरु मत्तु सुंदर वृक्षगळिंद कूडिद गोरथ गिरियन्नु तलुपि अल्लिंद अवरु मागध पुरवन्नु कंडरु.

समाप्ति

इति श्री महाभारते सभापर्वणि जरासंधवधपर्वणि कृष्णपांडवमागधयात्रायां अष्टादशोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि सभापर्वदल्लि जरासंधवधपर्वदल्लि कृष्णपांडवर मागधयात्रॆ ऎन्नुव हदिनॆंटनॆय अध्यायवु.


  1. हंस मत्तु डिभकरु जरासंधन सहायकरु मत्तु अवरु यमुना नदियल्लि मुळुगि सावन्नप्पिदरु. इवर निजवाद हॆसरु कौशिक मत्तु चित्रसेन. ↩︎

  2. गोरखपुरद संपुटदल्लि पतितौ हंसडिंभकौ कंसश्च सगणो हतः ऎंदिदॆ. ↩︎

  3. गोरखपुर परिपाठदल्लि “प्राणयुद्ध” द बदलागि “बाहुयुद्ध” ऎंदिदॆ. रणयुद्धवॆंदरॆ शस्त्रास्त्रगळिंद होराट. बाहुयुद्धवॆंदरॆ आयुधगळन्नेनन्नू बळसदे, बरिगैयल्लि, मुष्ठियुद्ध माडुवुदु ऎंदर्थ. ↩︎

  4. गोरखपुरद संपुटदल्लि मागधं साधयिष्याम इष्टिं त्रय इवाग्नयः ऎंदिदॆ. अंदरॆ “मूरु अग्निगळु यज्ञवन्नु हेगॆ साधिसुत्तवॆयो हागॆ नावु मूवरु मागधनन्नु (मगध राज जरासंधनन्नु) साधिसुत्तेवॆ” ऎंदर्थ. ↩︎

  5. गोरखपुरद संपुटदल्लि अवमानाच्च लोभाच्च बाहुवीर्याच्च दर्पितः ऎंदिदॆ. अंदरॆ, अपमानद भयदिंद, भीमसेननंथह महा योद्धनॊडनॆ होराडुव आसॆयिंद, मत्तु तन्न बाहुबलदिंद दर्पितनागिरुवुदरिंद अवनु भीमसेननॊंदिगॆ होराडलु निश्चयिसुत्तानॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल. ↩︎

  6. इडी लोकवन्नु अंत्यगॊळिसलु अंतकनॊब्बने इरुव हागॆ जरासंदनन्नु अंत्यगॊळिसलु भीमसेननॊब्बने साकु. ↩︎

  7. इडी लोकवन्नु अंत्यगॊळिसलु अंतकनॊब्बने इरुव हागॆ जरासंदनन्नु अंत्यगॊळिसलु भीमसेननॊब्बने साकु. ↩︎

  8. तन्न मर्यादॆयिंद च्युतनागदवनु अच्युत. ↩︎

  9. गोरखपुर संपुटदल्लि अप्रमत्तो जगन्नाथ तथा कुरु नरोत्तम ऎंदिदॆ. ↩︎

  10. ोरखपुर संपुटदल्लि दुर्गतः ऎन्नुवुदर बदलु दुःखितः ऎंदिदॆ. ↩︎

  11. “धीधना” ऎंदरॆ बुद्धियन्ने संपत्तन्नागि हॊंदिदवरु ऎंदू अर्थवागुत्तदॆ. ↩︎

  12. एनु माडबेकॆंदु तिळिदिरुववनु ↩︎

  13. गोरखपुरद संपुटदल्लि एवमेव यदुश्रेष्ठ यावत्कार्यार्थसिद्धये ऎंदिदॆ. ↩︎

  14. गोरखपुरद संपुटदल्लि अमर्षदभितप्तानां ज्ञात्यर्थं मुख्यतेजसां। रविसोमागिवपुषां दीप्तमासीत् तदा वपुः।। ऎंदिदॆ. अंदरॆ: जरासंधन मेलिन सिट्टिनिंद प्रज्वलिसुत्तिद्द मत्तु ज्जाति क्षत्रियरन्नु बिडुडडॆमाडुव उद्देशदिंद मुखदल्लि तेजस्सन्नु प्रकटिसुत्तिद्द, रवि, सोम मत्तु अग्नि समान तेजस्वि शरीरवन्नु हॊंदिद्द आ मूवर स्वरूपगळु अत्यंत उद्भासितवागि तोरुत्तिद्दवु. ↩︎

  15. गोरखपुरद संपुटदल्लि ईशौ हि तौ महात्मानौ सर्वकार्यप्रवर्तिनौ। धर्मकामार्थलोकानां कार्याणां च प्रवर्तकौ।। ऎंदिदॆ. इदरर्थ: याकॆंदरॆ इवरीर्वरु महात्र्मरू सर्वकार्यप्रवर्तिगळागिद्दु लोकगळ धर्म, काम, मत्तु अर्थक्कॆ संबंधिसिद सर्व कार्यगळ प्रवर्तकरु. ↩︎

  16. गोरखपुरद संपुटदल्लि कुरवोरश्चदं ऎन्नुवुदर बदलिगॆ कुशचीरच्छदा ऎंदिदॆ. इदर अर्थ: कुश मत्तु चीरगळन्नु धरिसिद (आ मूवरू). ↩︎