प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आदि पर्व
अर्जुनवनवास पर्व
अध्याय 207
सार
मणलूरिनल्लि चित्रांगदॆयन्नु कंडु अर्जुननु काममोहितनादुदु (1-16). अवळल्लि हुट्टिदवनु कुलद वारसनागबेकॆंब मणलूरेश्वरन निबंधनॆगॆ ऒप्पि अर्जुननु चित्रांगदॆयॊंदिगॆ मूरु वर्ष इद्दुदु (17-23).
01207001 वैशंपायन उवाच।
01207001a कथयित्वा तु तत्सर्वं ब्राह्मणेभ्यः स भारत।
01207001c प्रययौ हिमवत्पार्श्वं ततो वज्रधरात्मजः।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “भारत! वज्रधरात्मजनु अवॆल्लवन्नू ब्राह्मणरिगॆ वरदिमाडि, हिमवत्पर्वतद पक्कदिंद नडॆदनु.
01207002a अगस्त्यवटमासाद्य वसिष्ठस्य च पर्वतं।
01207002c भृगुतुंगे च कौंतेयः कृतवांशौचमात्मनः।।
कौंतेयनु अगस्त्यवट, वसिष्ठ पर्वत मत्तु भृगुतुंगगळिगॆ होगि अल्लि तन्नन्नु परिशुद्धिमाडिकॊंडनु.
01207003a प्रददौ गोसहस्राणि तीर्थेष्वायतनेषु च।
01207003c निवेशांश्च द्विजातिभ्यः सोऽददत्कुरुसत्तमः।।
कुरुसत्तमनु तीर्थस्थळगळल्लि द्विजरिगॆ सहस्रारु गोवु-निवेशनगळ दानवित्तनु.
01207004a हिरण्यबिंदोस्तीर्थे च स्नात्वा पुरुषसत्तमः।
01207004c दृष्टवान्पर्वतश्रेष्ठं पुण्यान्यायतनानि च।।
पुरुषसत्तमनु हिरण्यबिंदु तीर्थदल्लि स्नानमाडि पर्वतश्रेष्ठनन्नु मत्तु पुण्य प्रदेशगळन्नु नोडिदनु.
01207005a अवतीर्य नरश्रेष्ठो ब्राह्मणैः सह भारत।
01207005c प्राचीं दिशमभिप्रेप्सुर्जगाम भरतर्षभः।।
भारत! पूर्वदिशॆयल्लि होगलिच्छिसिद आ भरतर्षभ नरश्रेष्ठनु ब्राह्मणरॊडनॆ अल्लिंद कॆळगिळिदनु.
01207006a आनुपूर्व्येण तीर्थानि दृष्टवान्कुरुसत्तमः।
01207006c नदीं चोत्पलिनीं रम्यामरण्यं नैमिषं प्रति।।
01207007a नंदामपरनंदां च कौशिकीं च यशस्विनीं।
01207007c महानदीं गयां चैव गंगामपि च भारत।।
भारत! ऒंदॊंदागि आ कुरुसत्तमनु रम्य नैमिषारण्यद बळियल्लिद्द नदि उत्पलिनी, नंदा, अपरनंदा, यशस्विनी कौशिकी, महानदी, गया मत्तु गंगा मॊदलाद तीर्थगळन्नु कंडनु.
01207008a एवं सर्वाणि तीर्थानि पश्यमानस्तथाश्रमान्।
01207008c आत्मनः पावनं कुर्वन्ब्राह्मणेभ्यो ददौ वसु।।
ई रीति सर्व तीर्थगळन्नु मत्तु आश्रमगळन्नु नोडि, ब्राह्मणरिगॆ संपत्तुगळन्नित्तु तन्नन्नु पावनगॊळिसिकॊंडनु.
01207009a अंगवंगकलिंगेषु यानि पुण्यानि कानि चित्।
01207009c जगाम तानि सर्वाणि तीर्थान्यायतनानि च।
01207009e दृष्ट्वा च विधिवत्तानि धनं चापि ददौ ततः।।
अंग, वंग1, कळिंग2गळल्लि याव याव पुण्य तीर्थस्थळगळिवॆयो अवॆल्लवुगळिगू होदनु. अवुगळन्नु नोडि अल्लि विधिवत्तागि धनवन्नू दान माडिदनु.
01207010a कलिंगराष्ट्रद्वारेषु ब्राह्मणाः पांडवानुगाः।
01207010c अभ्यनुज्ञाय कौंतेयमुपावर्तंत भारत।।
भारत! कलिंगराष्ट्र द्वारदल्लि पांडवनन्नु अनुसरिसि बंदिद्द ब्राह्मणरु कौंतेयन अनुज्ञॆयंतॆ हिंदिरुगिदरु.
01207011a स तु तैरभ्यनुज्ञातः कुंतीपुत्रो धनंजयः।
01207011c सहायैरल्पकैः शूरः प्रययौ येन सागरं।।
शूर कुंतीपुत्र धनंजयनु अवर अनुज्ञॆयन्नु पडॆदु कॆलवे सहायकरॊंदिगॆ सागरदवरॆगू प्रयाणिसिदनु.
01207012a स कलिंगानतिक्रम्य देशानायतनानि च।
01207012c धर्म्याणि रमणीयानि प्रेक्षमाणो ययौ प्रभुः।।
01207013a महेंद्रपर्वतं दृष्ट्वा तापसैरुपशोभितं।
01207013c समुद्रतीरेण शनैर्मणलूरं जगाम ह।।
कलिंगवन्नू अल्लिय धर्म, रमणीय, प्रेक्षणीय देश प्रदेशगळन्नू दाटि प्रभुवु तापसरिंद उपशोभित महेंद्रपर्वतवन्नु नोडि, निधानवागि समुद्रतीरदल्लिद्द मणलूरिगॆ बंदनु.
01207014a तत्र सर्वाणि तीर्थानि पुण्यान्यायतनानि च।
01207014c अभिगम्य महाबाहुरभ्यगच्छन्महीपतिं।
01207014e मणलूरेश्वरं राजन्धर्मज्ञं चित्रवाहनं।।
अल्लि सर्व पुण्य तीर्थक्षेत्रगळिगू भेटिनीडि आ महाबाहुवु मणलूरेश्वर3 धर्मज्ञ महीपति चित्रवाहननल्लिगॆ होदनु.
01207015a तस्य चित्रांगदा नाम दुहिता चारुदर्शना।
01207015c तां ददर्श पुरे तस्मिन्विचरंतीं यदृच्छया।।
आ पुरदल्लि विहरिसुत्तिद्द अवन मगळु चारुदर्शनॆ चित्रांगद ऎन्नुव हॆसरुळ्ळवळन्नु कंडनु.
01207016a दृष्ट्वा च तां वरारोहां चकमे चैत्रवाहिनीं।
01207016c अभिगम्य च राजानं ज्ञापयत्स्वं प्रयोजनं।
01207016e तमुवाचाथ राजा स सांत्वपूर्वमिदं वचः।।
अ वरारोहॆ चैत्रवाहिनियन्नु नोडिद कूडले अवनु काममोहितनादनु मत्तु राजनल्लिगॆ होगि तन्न उद्देशवन्नु तिळिसिदनु. आग राजनु अवनिगॆ ई सांत्वपूर्वक मातुगळन्नाडिदनु.
01207017a राजा प्रभंकरो नाम कुले अस्मिन्बभूव ह।
01207017c अपुत्रः प्रसवेनार्थी तपस्तेपे स उत्तमं।।
“ई कुलदल्लि प्रभंकर4 ऎंब हॆसरिन राजनिद्दनु. अपुत्रनाद अवनु संतानक्कागि उत्तम तपवन्नाचरिसिदनु.
01207018a उग्रेण तपसा तेन प्रणिपातेन शंकरः।
01207018c ईश्वरस्तोषितस्तेन महादेव उमापतिः।।
अवन उग्र तपस्सिनिंद मत्तु प्रणिपात5दिंद शंकर ईश्वर महादेव उमापतियु संतुष्टनादनु.
01207019a स तस्मै भगवान्प्रादादेकैकं प्रसवं कुले।
01207019c एकैकः प्रसवस्तस्माद्भवत्यस्मिन्कुले सदा।।
भगवाननु अवनिगॆ कुलद ऒंदॊंदु पीळिगॆयल्लि ऒंदॊंदे संतानवागुत्तदॆ ऎंदु वरवन्नित्तनु. अंदिनिंद ई कुलदल्लि ऒंदे संतानवु आगुत्ता बंदिदॆ.
01207020a तेषां कुमाराः सर्वेषां पूर्वेषां मम जज्ञिरे।
01207020c कन्या तु मम जातेयं कुलस्योत्पादनी ध्रुवं।।
नन्न पूर्वजरॆल्लरिगू पुत्ररु हुट्टिद्दरु. आदरॆ नन्न कुलदल्लि कन्यॆयु हुट्टिद्दाळॆ. अवळे ई कुलवन्नु मुंदुवरिसिकॊंडु होगुत्ताळॆ ऎन्नुवुदरल्लि संशयविल्ल.
01207021a पुत्रो ममेयमिति मे भावना पुरुषोत्तम।
01207021c पुत्रिका हेतुविधिना संज्ञिता भरतर्षभ।।
भरतर्षभ! पुरुषोत्तम! अवळु नन्न पुत्रनॆंदे भाविसुत्तिद्देनॆ. विधिवत्तागि अवळु पुत्रिकॆयंतिद्दाळॆ.
01207022a एतच्छुल्कं भवत्वस्याः कुलकृज्जायतामिह।
01207022c एतेन समयेनेमां प्रतिगृह्णीष्व पांडव।।
पांडव! निन्निंद अवळल्लि हुट्टुववनु ई कुलद वारसनागलि. इदु नन्न शुल्क. इदक्कॆ ऒप्पिगॆयिद्दरॆ अवळन्नु स्वीकरिसु.”
01207023a स तथेति प्रतिज्ञाय कन्यां तां प्रतिगृह्य च।
01207023c उवास नगरे तस्मिन्कौंतेयस्त्रिहिमाः समाः।।
हागॆये आगलॆंदु प्रतिज्ञॆमाडि अवनु आ कन्यॆयन्नु स्वीकरिसिदनु. कौंतेयनु आ नगरदल्लि मूरु वर्षगळ पर्यंत वासिसिदनु6.”
समाप्ति
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि अर्जुनवनवासपर्वणि चित्रांगदसंगमे सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः।।
इदु श्रीमहाभारतद आदिपर्वदल्लि अर्जुनवनवासपर्वदल्लि चित्रांगदसंगम ऎन्नुव इन्नूराएळनॆय अध्यायवु.
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ईगिन बंगाळ ↩︎
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ईगिन ऒदिशा ↩︎
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कन्नड भारत दर्शन संपुटदल्लि आ नगरद हॆसरु “मणीपूर” ऎंदिदॆ. ↩︎
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कन्नड भारतदर्शनदल्लि ई राजन हॆसरु “प्रभंजन” ऎंदिदॆ. ↩︎
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‘प्रणिपात’ ऎंदरेनु? ↩︎
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कन्नड भारत दर्शन संपुटदल्लि चित्रांगदॆयु धनंजयनिंद अवनिगॆ अनुरूप मगनन्नु पडॆदु चित्रवाहननिगॆ अतीव संतोषवन्नु तंदळु; मत्तु धनंजयनु मगन शिरस्सन्नु आघ्राणिसि, चित्रवाहनन अनुमतियन्नु पडॆदु मुंदॆ प्रयाण माडिदनु ऎंदिदॆ. ↩︎