प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आदि पर्व
चैत्ररथ पर्व
अध्याय 164
सार
ऋषि वसिष्ठन कुरितु केळलु, गंधर्वनु अर्जुननिगॆ अवन साधनॆगळन्नु वर्णिसिदुदु (1-14).
01164001 वैशंपायन उवाच।
01164001a स गंधर्ववचः श्रुत्वा तत्तदा भरतर्षभ।
01164001c अर्जुनः परया प्रीत्या पूर्णचंद्र इवाबभौ।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “गंधर्वन ई मातुगळन्नु केळिद भरतर्षभ अर्जुननु परम संतुष्टनागि पूर्ण चंद्रनंतॆ कांतियुक्तनादनु.
01164002a उवाच च महेष्वासो गंधर्वं कुरुसत्तमः।
01164002c जातकौतूहलोऽतीव वसिष्ठस्य तपोबलात्।।
वसिष्ठन अतीव तपोबलद कुरितु कुतूहल हुट्टिद कुरुसत्तमनु महेष्वास गंधर्वनल्लि केळिकॊंडनु:
01164003a वसिष्ठ इति यस्यैतदृषेर्नाम त्वयेरितं।
01164003c एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं यथावत्तद्वदस्व मे।।
“वसिष्ठ ऎंब हॆसरिन ऋषिय कुरितु हेळिदॆयल्ल अवन कुरितु केळलु बयसुत्तेनॆ. यथावत्तागि ननगॆ हेळु.
01164004a य एष गंधर्वपते पूर्वेषां नः पुरोहितः।
01164004c आसीदेतन्ममाचक्ष्व क एष भगवानृषिः।।
गंधर्वपते! नन्न पूर्वजर पुरोहितनागिद्द भगवानृषिय कुरितु ननगॆ हेळु.”
01164005 गंधर्व उवाच।
01164005a तपसा निर्जितौ शश्वदजेयावमरैरपि।
01164005c कामक्रोधावुभौ यस्य चरणौ संववाहतुः।।
गंधर्वनु हेळिदनु: “अमररिंदलू जयिसलाध्य काम क्रोधगळन्नु तपस्सिनिंद जयिसि अवु तन्न चरणगळन्नु ऒत्तुवंतॆ माडिदवने अवनु.
01164006a यस्तु नोच्छेदनं चक्रे कुशिकानामुदारधीः।
01164006c विश्वामित्रापराधेन धारयन्मन्युमुत्तमं।।
विश्वामित्रन अपराधदिंद उंटाद अत्यंत कोपवन्नु सहिसिकॊंडु कुशिकरनन्नु नाशपडिसदे इद्दवनु अवनु.
01164007a पुत्रव्यसनसंतप्तः शक्तिमानपि यः प्रभुः।
01164007c विश्वामित्रविनाशाय न मेने कर्म दारुणं।।
पुत्रव्यसन संतप्तनादाग शक्तिवंतनागिद्दरू विश्वामित्रन विनाशक्कागि यावुदे दारुण कृत्यवन्नू माडद प्रभुवु अवनु.
01164008a मृतांश्च पुनराहर्तुं यः स पुत्रान्यमक्षयात्।
01164008c कृतांतं नातिचक्राम वेलामिव महोदधिः।।
सागरवु हेगॆ ऒंदु गडियन्नु दाटि मुंदॆ बरुवुदिल्लवो हागॆ अवनु यमक्षयदिंद मृतराद तन्न पुत्ररन्नु पुनः करॆयिसिकॊळ्ळलिल्ल.
01164009a यं प्राप्य विजितात्मानं महात्मानं नराधिपाः।
01164009c इक्ष्वाकवो महीपाला लेभिरे पृथिवीमिमां।।
ई विजितात्म महात्मनन्नु पडॆद इक्ष्वाकु वंशद नराधिपरु इडी पृथ्वियन्ने पडॆदु महीपालरादरु.
01164010a पुरोहितवरं प्राप्य वसिष्ठमृषिसत्तमं।
01164010c ईजिरे क्रतुभिश्चापि नृपास्ते कुरुनंदन।।
कुरुनंदन! ऋषिसत्तम वसिष्ठनन्नु श्रेष्ठ पुरोहितनन्नागि पडॆद आ नृपरु हलवारु क्रतुगळन्नु याजिसिदरु.
01164011a स हि तान्याजयामास सर्वान्नृपतिसत्तमान्।
01164011c ब्रह्मर्षिः पांडवश्रेष्ठ बृहस्पतिरिवामरान्।।
पांडवश्रेष्ठ! अमररिगॆ बृहस्पतियु हेगो हागॆ आ ऎल्ल नृपसत्तमरिगॆ ई ब्रह्मर्षियु यज्ञयागादिगळन्नु माडिसिकॊट्टनु.
01164012a तस्माद्धर्मप्रधानात्मा वेदधर्मविदीप्सितः।
01164012c ब्राह्मणो गुणवान्कश्चित्पुरोधाः प्रविमृश्यतां।।
आदुदरिंद धर्मप्रधानात्म वेदधर्मविदीप्सित गुणवंत ब्राह्मण यारन्नादरू निन्न पुरोहितनन्नागि माडिकॊळ्ळलु हुडुकु.
01164013a क्षत्रियेण हि जातेन पृथिवीं जेतुमिच्छता।
01164013c पूर्वं पुरोहितः कार्यः पार्थ राज्याभिवृद्धये।।
पार्थ! क्षत्रियनागि हुट्टिदवनु, पृथ्वियन्नु जयिसुव इच्छॆयुळ्ळवनु राज्याभिवृद्धिगागि मॊदलु पुरोहितनन्नु पडॆयुव कार्यवन्नु माडबेकु.
01164014a महीं जिगीषता राज्ञा ब्रह्म कार्यं पुरःसरं।
01164014c तस्मात्पुरोहितः कश्चिद्गुणवानस्तु वो द्विजः।।
महियन्नु जयिसलिच्छिसुव राजनु तन्न पुरस्सरदल्लि ब्रह्मकार्यवन्नु माडबेकु. आदुदरिंद गुणवंत द्विज यारादरू निम्म पुरोहितनागलि.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते आदिपर्वणि चैत्ररथपर्वणि पुरोहितकरणकथने चतुःषष्ट्यधिकशततमोऽध्याय:।।
इदु श्री महाभारतदल्लि आदिपर्वदल्लि चैत्रपर्वदल्लि पुरोहितकरणकथनदल्लि नूराअरवत्त्नाल्कनॆय अध्यायवु.