प्रवेश
।। ओं ओं नमो नारायणाय।। श्री वेदव्यासाय नमः ।।
श्री कृष्णद्वैपायन वेदव्यास विरचित
श्री महाभारत
आदि पर्व
संभव पर्व
अध्याय 95
सार
शंतनु-सत्यवतियरल्लि चित्रांगद-विचित्रवीर्यर जनन, शंतनविन मरण, चित्रांगदन पट्टाभिषेक (1-5). तन्नदे हॆसरिन गंधर्वनॊडनॆ होराडि चित्रांगदन अकाल मरण (6-10). बालक विचित्रवीर्यनिगॆ पट्ट (11-14).
01095001 वैशंपायन उवाच।
01095001a ततो विवाहे निर्वृत्ते स राजा शंतनुर्नृपः।
01095001c तां कन्यां रूपसंपन्नां स्वगृहे संन्यवेशयत्।।
वैशंपायननु हेळिदनु: “विवाहकार्यगळु मुगिद नंतर नृप शंतनु राजनु आ रूपसंपन्न कन्यॆयॊंदिगॆ कूडि तन्न मनॆयल्लि वासिसतॊडगिदनु.
01095002a ततः शांतनवो धीमान्सत्यवत्यामजायत।
01095002c वीरश्चित्रांगदो नाम वीर्येण मनुजानति।।
शंतनुविगॆ सत्यवतियु वीरतॆयल्लि मनुष्यरॆल्लरन्नू मीरिद चित्रांगद ऎन्नुव धीमंत वीर पुत्रनिगॆ जन्मवित्तळु.
01095003a अथापरं महेष्वासं सत्यवत्यां पुनः प्रभुः।
01095003c विचित्रवीर्यं राजानं जनयामास वीर्यवान्।।
नंतर पुनः आ महेष्वास प्रभुवु सत्यवतियल्लि विचित्रवीर्यनॆन्नुव वीर्यवंत राजपुत्रनन्नु पडॆदनु.
01095004a अप्राप्तवति तस्मिंश्च यौवनं भरतर्षभ।
01095004c स राजा शंतनुर्धीमान्कालधर्ममुपेयिवान्।।
भरतर्षभ! अवरु यौवनवन्नु हॊंदुवुदरॊळगे आ धीमान् राज शंतनुवु कालधर्मक्कॊळगादनु.
01095005a स्वर्गते शंतनौ भीष्मश्चित्रांगदमरिंदमं।
01095005c स्थापयामास वै राज्ये सत्यवत्या मते स्थितः।।
शंतनुवु स्वर्गवासियाद नंतर भीष्मनु, सत्यवतिय इच्छॆयंतॆ, अरिंदम चित्रांगदनन्नु राजसिंहासनदल्लि कूरिसिदनु.
01095006a स तु चित्रांगदः शौर्यात्सर्वांश्चिक्षेप पार्थिवान्।
01095006c मनुष्यं न हि मेने स कं चित्सदृशमात्मनः।।
चित्रांगदनादरू तन्न शौर्यदिंद पृथ्विय सर्व पार्थिवरन्नू मनुष्यरल्लि तन्न सदृश यारू इल्लवेनो ऎन्नुवंतॆ गॆद्दनु.
01095007a तं क्षिपंतं सुरांश्चैव मनुष्यानसुरांस्तथा।
01095007c गंधर्वराजो बलवांस्तुल्यनामाभ्ययात्तदा।
01095007e तेनास्य सुमहद्युद्धं कुरुक्षेत्रे बभूव ह।।
01095008a तयोर्बलवतोस्तत्र गंधर्वकुरुमुख्ययोः।
01095008c नद्यास्तीरे हिरण्वत्याः समास्तिस्रोऽभवद्रणः।।
ई रीति अवनु ऎल्ल सुररु, मनुष्यरु, असुररॆल्लरन्नू गॆद्दाग, अदे हॆसरन्नु पडॆदिद्द, बलवंत गंधर्वराजनु अवनन्नु ऎदुरिसिदनु. अवरीर्वर मध्यॆ कुरुक्षेत्रदल्लि महा युद्धवे नडॆयितु. आ बलवंत गंधर्व-कुरुमुख्यर नडुवॆ हिरण्वती नदीतीरदल्लि मूरु वर्षगळ काल युद्ध नडॆयितु.
01095009a तस्मिन्विमर्दे तुमुले शस्त्रवृष्टिसमाकुले।
01095009c मायाधिकोऽवधीद्वीरं गंधर्वः कुरुसत्तमं।।
ऒंदे समनॆ शस्त्रवृष्टियागुत्तिद्द आ घोर युद्धदल्लि अधिक मायॆय वीर गंधर्वनु कुरुसत्तमनन्नु वधिसिदनु.
01095010a चित्रांगदं कुरुश्रेष्ठं विचित्रशरकार्मुकं।
01095010c अंताय कृत्वा गंधर्वो दिवमाचक्रमे ततः।।
विचित्र शरकार्मुक कुरुश्रेष्ठ चित्रांगदनन्नु कॊनॆगॊळिसि गंधर्वनु देवलोकवन्नु सेरिदनु.
01095011a तस्मिन्नृपतिशार्दूले निहते भूरिवर्चसि।
01095011c भीष्मः शांतनवो राजन्प्रेतकार्याण्यकारयत्।।
राजन्! आ भूरिवर्चस नृपतिशार्दूलनु तीरिकॊंड नंतर बीष्म शांतनवनु अवन प्रेतकार्यगळन्नु नॆरवेरिसिदनु.
01095012a विचित्रवीर्यं च तदा बालमप्राप्तयौवनं।
01095012c कुरुराज्ये महाबाहुरभ्यषिंचदनंतरं।।
आ महाबाहुवु इन्नू यौवनवन्नु पडॆयदिद्द बालक विचित्रवीर्यनन्नु कुरुराजनन्नागि अभिषेकिसिदनु.
01095013a विचित्रवीर्यस्तु तदा भीष्मस्य वचने स्थितः।
01095013c अन्वशासन्महाराज पितृपैतामहं पदं।।
महाराज! विचित्रवीर्यनादरू भीष्मन वचनवन्नु परिपालिसुत्ता तन्न पित-पितामहर राज्यवन्नु आळिदनु.
01095014a स धर्मशास्त्रकुशलो भीष्मं शांतनवं नृपः।
01095014c पूजयामास धर्मेण स चैनं प्रत्यपालयत्।।
आ धर्मशास्त्रकुशल नृपनु भीष्म शांतनवनन्नु पूजिसुत्ता धर्मदिंद राज्यवाळिदनु.”
समाप्ति
इति श्री महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि चित्रांगदोपाख्याने पंचनवतितमोऽध्यायः।।
इदु श्री महाभारतदल्लि आदिपर्वदल्लि संभव पर्वदल्लि चिंत्रांगदोपाख्यान विषयक तॊंभत्तैदनॆय अध्यायवु.